हमें गर्व होना चाहिए कि हमारे यहाँ कोरोना के पेशेंट कम हैं, एक्सपर्ट ज्यादा
हैं। दुनिया कितनी पीछे है। हम तो पापड़, अंग्रेजी नारे, मशाल, साउंड वाइब्रेशन, टैबलेट,
साबुन तक से कोरोना को मार रहे हैं। उधर बेचारी दुनिया अब भी टीका ढूंढ रही है।
कुछ लोग शिकायत कर रहे हैं कि कोरोनिल जैसे विवाद उत्पन्न करने को लेकर भारत सरकार पतंजलि और रामदेव के विरुद्ध कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते? उनसे आग्रह है कि मार्च 2020 का वो दौर याद कर लीजिए। डब्ल्यूएचओ ने 30 जनवरी 2020 को अपना सबसे बड़ा और अंतिम अलार्म बजाया था महामारी को लेकर, किंतु भारत सरकार गाहे बगाहे लाखों लोगों की भीड़ इक्ठ्ठा कर विदेशी नेता का चुनाव प्रचार हमारे यहाँ कर रही थी!!! कोरोना को लेकर कह रही थी कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं, भारत में ऐसी स्थिति नहीं है! लॉकडाउन लगाने से महज कुछ दिनों पहले ही भारत सरकार ने बाकायदा कह दिया था कि भारत में सब ठीक है! वही सरकार महज कुछ दिनों में ही देश को जागरूक बनने को कह देती है!!!
जिस सरकार का नायक और उसका सेनापति बिना शर्म के अपनी बातों को जुमला बताते हो उनसे बेहतर उम्मीद भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा था कि जो कांग्रेस ने 70 सालों में नहीं किया वह हम 5 सालों में कर देंगे। कर ही तो रहे हैं! बस उनकी यही एक बात जुमला साबित नहीं हुई। देखिए न, कांग्रेस चंद्रास्वामी को ले आई थी, ये लोग रामदेव को ले आए!
चंद्रास्वामी का वो दौर, वो कहानियाँ आपको ज्ञात होनी चाहिए। उन कांग्रेसी समर्थकों को विशेष रूप से याद होनी चाहिए। एक तांत्रिक भारत सरकार से ऊपर हो चुका था!!! उसके कदमों के तले केंद्रीय मंत्री तक बैठा करते थे!!! प्रधानमंत्री भी बैठते होंगे, तभी तो मंत्रीमंडल बैठता होगा। भाजपाई समर्थक कह सकते हैं कि रामदेवजी इस कदर हावी नहीं है। ‘मगन’ और ‘छगन’ वाली व्हाट्सएप टाइप दलील अब तो बहुत ऊपर तक जा चुकी है, तो फिर इस मामले में वे समर्थक खुलकर इस्तेमाल कर सकते हैं।
चंद्रास्वामी को छोड़ हम बात करते हैं बाबा रामदेवजी की। स्वामी रामदेव कहे, व्यापारी रामदेव कहे, काले धन वाले बाबा कहे, पेट्रोल डीज़ल वाले अर्थशास्त्री कहे, योग गुरु रामदेव कहे, सेलिब्रिटी बाबा कहे, आर्युवेद बिज़नेस का मजा हुआ खिलाड़ी कहे या उत्तराखंड व हिमाचल के लोग कहा करते हैं वह कहे। इनके बारे में हर नामकरण फिट बैठ ही जाएगा! भले ही दिल्ली पुलिस ने एक जमाने में इन्हें लाठी योग सिखाया हो, किंतु अब इनके आने भर से दिल्ली की पुलिस को अलग अलग प्रकार के आसनों में व्यस्त रहना पड़ता है! योग से शरीर इतना लचीला हो जाता है कि किसी भी औरत के कपड़े आपको फिट हो सकते हैं, यह तंज उन पर उस जमाने में खूब चला! आज भी चल रहा है। बावजूद इसके, रामदेव महाराज घर घर में आज अनेक प्रकार के अपने उत्पाद बेच रहे हैं। कपड़े फिट आए न आए, बिज़नेस का उनका विस्तार कइयों को अनफिट कर गया है।
एक आसाराम थे। क्या खूब नाम और विस्तार करके रखा था उन्होंने। सीएम-पीएम तक उनके दरबार में हाजरी लगाया करते थे! लेकिन करतूतों ने ‘थे’ से ‘था’ कर दिया! मतलब कि ‘आसाराम थे’, यह लिखने की जगह ‘आसाराम था’ टाइप अपमानित भाषा आज आपको उनके बारे में हर जगह मिल जाएगी। करतूत ही ऐसे किए तो फिर ‘थे’ से ‘था’ तो होना ही था। एक रामदेव हैं। क्या खूब विस्तार किया है! राजनीति हो, धंधा हो या वोट बैंक हो, हर लिहाज से विस्तार! आज आसाराम कहाँ पहुंच गए और रामदेव कहाँ! रामदेवजी महाराज ने साबित कर दिया है कि भैंस नहीं अक्ल ही बड़ी होती है।
कुछ लोग शिकायत कर रहे हैं कि कोरोनिल जैसे विवाद उत्पन्न करने को लेकर भारत सरकार पतंजलि और रामदेव के विरुद्ध कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते? उनसे आग्रह है कि मार्च 2020 का वो दौर याद कर लीजिए। डब्ल्यूएचओ ने 30 जनवरी 2020 को अपना सबसे बड़ा और अंतिम अलार्म बजाया था महामारी को लेकर, किंतु भारत सरकार गाहे बगाहे लाखों लोगों की भीड़ इक्ठ्ठा कर विदेशी नेता का चुनाव प्रचार हमारे यहाँ कर रही थी!!! कोरोना को लेकर कह रही थी कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं, भारत में ऐसी स्थिति नहीं है! लॉकडाउन लगाने से महज कुछ दिनों पहले ही भारत सरकार ने बाकायदा कह दिया था कि भारत में सब ठीक है! वही सरकार महज कुछ दिनों में ही देश को जागरूक बनने को कह देती है!!!
जिस सरकार का नायक और उसका सेनापति बिना शर्म के अपनी बातों को जुमला बताते हो उनसे बेहतर उम्मीद भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा था कि जो कांग्रेस ने 70 सालों में नहीं किया वह हम 5 सालों में कर देंगे। कर ही तो रहे हैं! बस उनकी यही एक बात जुमला साबित नहीं हुई। देखिए न, कांग्रेस चंद्रास्वामी को ले आई थी, ये लोग रामदेव को ले आए!
चंद्रास्वामी का वो दौर, वो कहानियाँ आपको ज्ञात होनी चाहिए। उन कांग्रेसी समर्थकों को विशेष रूप से याद होनी चाहिए। एक तांत्रिक भारत सरकार से ऊपर हो चुका था!!! उसके कदमों के तले केंद्रीय मंत्री तक बैठा करते थे!!! प्रधानमंत्री भी बैठते होंगे, तभी तो मंत्रीमंडल बैठता होगा। भाजपाई समर्थक कह सकते हैं कि रामदेवजी इस कदर हावी नहीं है। ‘मगन’ और ‘छगन’ वाली व्हाट्सएप टाइप दलील अब तो बहुत ऊपर तक जा चुकी है, तो फिर इस मामले में वे समर्थक खुलकर इस्तेमाल कर सकते हैं।
चंद्रास्वामी को छोड़ हम बात करते हैं बाबा रामदेवजी की। स्वामी रामदेव कहे, व्यापारी रामदेव कहे, काले धन वाले बाबा कहे, पेट्रोल डीज़ल वाले अर्थशास्त्री कहे, योग गुरु रामदेव कहे, सेलिब्रिटी बाबा कहे, आर्युवेद बिज़नेस का मजा हुआ खिलाड़ी कहे या उत्तराखंड व हिमाचल के लोग कहा करते हैं वह कहे। इनके बारे में हर नामकरण फिट बैठ ही जाएगा! भले ही दिल्ली पुलिस ने एक जमाने में इन्हें लाठी योग सिखाया हो, किंतु अब इनके आने भर से दिल्ली की पुलिस को अलग अलग प्रकार के आसनों में व्यस्त रहना पड़ता है! योग से शरीर इतना लचीला हो जाता है कि किसी भी औरत के कपड़े आपको फिट हो सकते हैं, यह तंज उन पर उस जमाने में खूब चला! आज भी चल रहा है। बावजूद इसके, रामदेव महाराज घर घर में आज अनेक प्रकार के अपने उत्पाद बेच रहे हैं। कपड़े फिट आए न आए, बिज़नेस का उनका विस्तार कइयों को अनफिट कर गया है।
एक आसाराम थे। क्या खूब नाम और विस्तार करके रखा था उन्होंने। सीएम-पीएम तक उनके दरबार में हाजरी लगाया करते थे! लेकिन करतूतों ने ‘थे’ से ‘था’ कर दिया! मतलब कि ‘आसाराम थे’, यह लिखने की जगह ‘आसाराम था’ टाइप अपमानित भाषा आज आपको उनके बारे में हर जगह मिल जाएगी। करतूत ही ऐसे किए तो फिर ‘थे’ से ‘था’ तो होना ही था। एक रामदेव हैं। क्या खूब विस्तार किया है! राजनीति हो, धंधा हो या वोट बैंक हो, हर लिहाज से विस्तार! आज आसाराम कहाँ पहुंच गए और रामदेव कहाँ! रामदेवजी महाराज ने साबित कर दिया है कि भैंस नहीं अक्ल ही बड़ी होती है।
BJP & RSS after 2014 : नरेन्द्र मोदी ने देश को बदला हो या ना बदला हो, भाजपा और संघ तो बदल ही चुके हैं?
रामदेव के पास केवल ग्राहक ही नहीं है, समर्पित ग्राहक हैं। दूसरी कंपनियों के उत्पाद खरीदने वाले केवल उपभोक्ता होते हैं। जबकि पतंजलि या रामदेव के उत्पाद खरीदने वाले ज्यादातर लोग समर्पित उपभोक्ता हैं। बिज़नेस की दुनिया में ऐसे समर्पित उपभोक्ता कितने कितने फायदे करा सकते हैं, किसी कॉर्पोरेट दुनिया के नजदीकी मित्र से पूछ लीजिएगा।
खैर हम बात करते हैं यहाँ जो मुद्दा है उसकी। बात अभी से शुरू नहीं हुई है यह। मतलब कि कोरोना की दवा या कोरोना की वैक्सीन की बात। इस साल अप्रैल के अंत तक कोरोना की दवा और वैक्सीन की बात मुख्य चर्चा का विषय बन चुकी थी। भले इसे लेकर अब तक किसी प्रकार की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। जब पूरी दुनिया और पूरा देश किसी दवा की बात कर रहा हो और ऐसे में पतंजलि वाले बाबा चुप बैठे यह तो मुमकीन ही नहीं! न जाने क्या किया उन्होंने, फटाक से एक टैबलेट ले आए! कह दिया कि कोरोना की दवा आ गई! पतंजलि ने ढूंढ लिया समाधान!
दुनियाभर के वैज्ञानिक डाटा इक्ठ्ठा कर रहे थे, वायरस को लेकर अलग अलग शोध कर रहे थे, सिक्वेंसिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग पर माथा पीट रहे थे। इधर हमारे काली दाढ़ी वाले बाबा कूद पड़े! कह दिया कि मेरी कंपनी ने दवा ढूंढ ली है कोरोना की! पता नहीं कहाँ से इन्होंने डाटा इक्ठ्ठा किया, पता नहीं कहाँ से मरीजों को लेकर रिसर्च किए, पता नहीं कहाँ से मरीजों पर टेस्ट किया, पता नहीं वायरस की वैज्ञानिक जानकारी को लेकर क्या माथा पीटा बाबा ने! किसी को पता नहीं! बस, बाबा टैबलेट लेकर जंप कर दिए! कह दिया कि कोरोना का सौ फीसदी इलाज इससे संभव है।
इन्होंने कोरोनिल टैबलेट और श्वासारि वटी दवा पेश की। उन्होंने दावा किया कि इससे कोरोना का सौ फीसदी इलाज संभव है। पतंजलि ने दावा किया कि इसका क्लीनिकल ट्रायल हुआ है और मरीजों पर सौ फीसदी सकारात्मक असर देखने को मिला है।
उनके इस दावे का असर इतना हुआ कि दवा की लॉन्चिंग के कुछ घंटे बाद ही आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार प्रसार और बिक्री पर रोक लगा दी!!! कहा कि मंत्रालय को इस दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से कहा कि वह दवा का पूरा नाम, उसके निर्माण में इस्तेमाल किए गए घटक आदि जानकारियाँ बताए। इसके साथ ही मंत्रालय ने सैंपल साइज, जहाँ दवा का टेस्ट किया गया उस लैब या अस्पताल और आचार समिति की मंजूरी समेत कई अन्य जानकारियाँ देने को भी कहा। आयुष मंत्रालय के अलावा भारतीय चिकित्सा अनुसंघान संस्थान (आईसीएमआर) ने भी इस तरह की किसी भी दवा की जानकारी होने से इनकार किया।
इन सब कार्रवाईयों के बाद पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के चेयरमैन और रामदेव के वह विवादित साथी आचार्य बालकृष्ण ने बाल लीला करते हुए दावा किया कि उन्होंने दवा संबंधी सभी जानकारियाँ आयुष मंत्रालय को दे दी हैं। बालकृष्ण ने इस पूरे मामले को कम्यूनिकेशन गैप करार दिया! उन्होंने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल के जितने भी मानक हैं, इस दवा को लेकर उन सभी मानकों का पालन किया गया है और इससे संबंधित सभी जानकारी मंत्रालय को मुहैया कराई गई है।
पतंजलि, रामदेव और बाल लीला करने वाले बालकृष्ण, इन सबके बिज़नेस स्टाइल को देखिए। पहले प्रचार ऐसा कि कोरोना की दवा आ गई, सौ फीसदी इलाज करेगी। समर्पित उपभोक्ता अब दूसरी कोई चीजें सुनेंगे तो नहीं। पढ़े लिखे शिक्षक समुदाय सरीखे लोग इनके समर्पित उपभोक्ता हैं! इसके पीछे भारत के आर्युवेद का मजबूत इतिहास है। इतिहास के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी है। बाबा का बिजनेस करने का वह धांसू स्टाइल, जिसमें वे राष्ट्र, देश, स्वेदश, योग, संस्कृति, इतिहास के भावनात्मक तत्वों को मिलाकर दवा बेचते हैं, वह भी शामिल है। एलोपैथी वर्सेज आयुर्वेद की लड़ाई में अभी उनका पलड़ा भारी है। उनकी अपनी आँख भले ठीक ना हो पाए, वह हर बीमारी का इलाज ढूंढ लेते हैं और उस इलाज को बोतल, पैकेट या रैपर में डालकर मार्केट में बेच भी देते हैं।
रामदेव के पास केवल ग्राहक ही नहीं है, समर्पित ग्राहक हैं। दूसरी कंपनियों के उत्पाद खरीदने वाले केवल उपभोक्ता होते हैं। जबकि पतंजलि या रामदेव के उत्पाद खरीदने वाले ज्यादातर लोग समर्पित उपभोक्ता हैं। बिज़नेस की दुनिया में ऐसे समर्पित उपभोक्ता कितने कितने फायदे करा सकते हैं, किसी कॉर्पोरेट दुनिया के नजदीकी मित्र से पूछ लीजिएगा।
खैर हम बात करते हैं यहाँ जो मुद्दा है उसकी। बात अभी से शुरू नहीं हुई है यह। मतलब कि कोरोना की दवा या कोरोना की वैक्सीन की बात। इस साल अप्रैल के अंत तक कोरोना की दवा और वैक्सीन की बात मुख्य चर्चा का विषय बन चुकी थी। भले इसे लेकर अब तक किसी प्रकार की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। जब पूरी दुनिया और पूरा देश किसी दवा की बात कर रहा हो और ऐसे में पतंजलि वाले बाबा चुप बैठे यह तो मुमकीन ही नहीं! न जाने क्या किया उन्होंने, फटाक से एक टैबलेट ले आए! कह दिया कि कोरोना की दवा आ गई! पतंजलि ने ढूंढ लिया समाधान!
दुनियाभर के वैज्ञानिक डाटा इक्ठ्ठा कर रहे थे, वायरस को लेकर अलग अलग शोध कर रहे थे, सिक्वेंसिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग पर माथा पीट रहे थे। इधर हमारे काली दाढ़ी वाले बाबा कूद पड़े! कह दिया कि मेरी कंपनी ने दवा ढूंढ ली है कोरोना की! पता नहीं कहाँ से इन्होंने डाटा इक्ठ्ठा किया, पता नहीं कहाँ से मरीजों को लेकर रिसर्च किए, पता नहीं कहाँ से मरीजों पर टेस्ट किया, पता नहीं वायरस की वैज्ञानिक जानकारी को लेकर क्या माथा पीटा बाबा ने! किसी को पता नहीं! बस, बाबा टैबलेट लेकर जंप कर दिए! कह दिया कि कोरोना का सौ फीसदी इलाज इससे संभव है।
इन्होंने कोरोनिल टैबलेट और श्वासारि वटी दवा पेश की। उन्होंने दावा किया कि इससे कोरोना का सौ फीसदी इलाज संभव है। पतंजलि ने दावा किया कि इसका क्लीनिकल ट्रायल हुआ है और मरीजों पर सौ फीसदी सकारात्मक असर देखने को मिला है।
उनके इस दावे का असर इतना हुआ कि दवा की लॉन्चिंग के कुछ घंटे बाद ही आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार प्रसार और बिक्री पर रोक लगा दी!!! कहा कि मंत्रालय को इस दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से कहा कि वह दवा का पूरा नाम, उसके निर्माण में इस्तेमाल किए गए घटक आदि जानकारियाँ बताए। इसके साथ ही मंत्रालय ने सैंपल साइज, जहाँ दवा का टेस्ट किया गया उस लैब या अस्पताल और आचार समिति की मंजूरी समेत कई अन्य जानकारियाँ देने को भी कहा। आयुष मंत्रालय के अलावा भारतीय चिकित्सा अनुसंघान संस्थान (आईसीएमआर) ने भी इस तरह की किसी भी दवा की जानकारी होने से इनकार किया।
इन सब कार्रवाईयों के बाद पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के चेयरमैन और रामदेव के वह विवादित साथी आचार्य बालकृष्ण ने बाल लीला करते हुए दावा किया कि उन्होंने दवा संबंधी सभी जानकारियाँ आयुष मंत्रालय को दे दी हैं। बालकृष्ण ने इस पूरे मामले को कम्यूनिकेशन गैप करार दिया! उन्होंने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल के जितने भी मानक हैं, इस दवा को लेकर उन सभी मानकों का पालन किया गया है और इससे संबंधित सभी जानकारी मंत्रालय को मुहैया कराई गई है।
पतंजलि, रामदेव और बाल लीला करने वाले बालकृष्ण, इन सबके बिज़नेस स्टाइल को देखिए। पहले प्रचार ऐसा कि कोरोना की दवा आ गई, सौ फीसदी इलाज करेगी। समर्पित उपभोक्ता अब दूसरी कोई चीजें सुनेंगे तो नहीं। पढ़े लिखे शिक्षक समुदाय सरीखे लोग इनके समर्पित उपभोक्ता हैं! इसके पीछे भारत के आर्युवेद का मजबूत इतिहास है। इतिहास के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी है। बाबा का बिजनेस करने का वह धांसू स्टाइल, जिसमें वे राष्ट्र, देश, स्वेदश, योग, संस्कृति, इतिहास के भावनात्मक तत्वों को मिलाकर दवा बेचते हैं, वह भी शामिल है। एलोपैथी वर्सेज आयुर्वेद की लड़ाई में अभी उनका पलड़ा भारी है। उनकी अपनी आँख भले ठीक ना हो पाए, वह हर बीमारी का इलाज ढूंढ लेते हैं और उस इलाज को बोतल, पैकेट या रैपर में डालकर मार्केट में बेच भी देते हैं।
विवाद हुआ तो बालकृष्ण
ने ट्वीट कर कह दिया कि पतंजलि ने कोरोना के लिए क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल पूर्ण होने
से पहले कोरोनिल टैबलेट को चिकित्सकीय या कानूनी रूप से कभी भी कोरोना की दवा नहीं
कहा। उधर रामदेव कह गए कि कोरोना वायरस की दवाओं की इस किट को दोहरे स्तर के ट्रायल
पर खरा उतरने के बाद तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि दवा बनाने से पहले क्लीनिकल
कंट्रोल का अध्ययन किया गया और फिर क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल भी किया गया।
पतंजलि ने दावा किया था कि इस दवा का ट्रायल जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (निम्स) अस्पताल में किया गया। इसे लेकर राजस्थान सरकार ने निम्स को एक नोटिस जारी किया, जिसमें इस ट्रायल के बारे में जानकारी मांगी गई थी। राज्य सरकार ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि सरकार को इस ट्रायल की न तो जानकारी मिली और न ही अस्पताल ने अनुमति मांगी।
वहीं, अस्पताल के चेयरमैन बीएस तोमर ने पतंजलि और रामदेव के दावे को गलत बताया। तोमर ने इस संबंध में कहा कि उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग किया था, लेकिन यह कोई इलाज या दवा नहीं थी। तोमर ने यह भी कहा कि उनके संस्थान ने कोरोनिल बनाने में पतंजलि का कोई सहयोग नहीं किया। हालांकि, जानकारी के अनुसार इस दवा की लॉन्चिंग के मौके पर तोमर भी मौजूद थे!!!
इसके बाद रामदेव, बालकृष्ण, वैज्ञानिक अनुराग वार्ष्णेय, एनआईएमएस के अध्यक्ष बलबीर सिंह तोमर और निदेशक अनुराग तोमर के ख़िलाफ़ जयपुर के ज्योति नगर थाने में एफ़आईआर दर्ज कराई गई।
केंद्रीय मंत्रालय की ओर से दवा के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने और उत्तराखंड सरकार से इस संबंध में जवाब-तलब करने के बाद राज्य सरकार ने भी पल्ला झाड़ लिया। प्रदेश के आयुष विभाग ने कहा कि पतंजलि को इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था। कोरोना की दवा कैसे बना ली और दवा की किट का विज्ञापन क्यों किया गया इसका पता लगाया जाएगा। राज्य के आयुष विभाग ने पतंजलि को नोटिस जारी कर दिया।
मिला था इम्यूनिटी बूस्टर का लाइसेंस, बना दी कोरोना की दवा!!! इम्यूनिटी बूस्टर को पतंजलि और रामदेव बाकायदा कोरोना का सौ फीसदी इलाज बता देते हैं!!! फिर विवाद होता है तो अपनी लीला करते हैं, लीला से काला और लाल भी करते हैं! अलग अलग राज्य के अलग अलग महकमे उन्हें नोटिस जारी करते हैं। नोटिस जारी करने को महीना गुजर चुका है। नोटिस जारी किया तब ऐसे किया जैसे चिकित्सा पद्धति और लोगों के साथ छल करने को लेकर कार्रवाई करेंगे। लेकिन नोटिस भी एक प्रकार का छल निकला। नेताजी पापड़ से इलाज कर सकते हैं कोरोना का, तो फिर रामदेव टैबलेट से क्यों नहीं कर सकते? शायद सरकारी विभागों ने इसी तर्ज पर रामदेव और पतंजलि को प्यारी सी डाँट लगाकर जाने दिया।
वहीं, बालकृष्ण के इस दावे पर कि आयुष मंत्रालय को सभी जानकारियां दी जा चुकी थी, दूसरी कहानी सामने आ जाती है। जानकारी के अनुसार मंत्रालय को पतंजलि ने तीन दस्तावेज भेजे थे। जिन पर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। दवा के बारे में अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया था कि कोरोनिल के क्लीनिकल ट्रायल के परिणाम आ चुके हैं या अंतिम नतीजे आने अभी बाकी है। जानकारी के अनुसार अभी यह भी स्पष्ट नहीं है ट्रायल पूरे भी हुए हैं या नहीं। पतंजलि की इस दवा कोरोनिल पर राजस्थान और महाराष्ट्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।
दवा की लॉन्चिंग के मौके पर रामदेव ने बताया था कि इस आयुर्वेदिक दवा को बनाने में सिर्फ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें मुलैठी, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वासारि का इस्तेमाल किया गया है। रामदेव ने कहा था कि गिलोय में पाने जाने वाले टिनोस्पोराइड और अश्वगंधा में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व और श्वासारि के रस के प्रयोग से इस दवा का निर्माण किया गया है।
पतंजलि ने कोरोनिल की कार्य पद्धति के बारे में कहा था कि इस दवा के निर्माण में इस्तेमाल की गई औषधियां मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को तुरंत बढ़ाती हैं और कोरोना के संक्रमण की चेन तोड़ती हैं। कोरोना वायरस फेफड़ों की मूल इकाई एल्वियोलाई की कार्यप्रणाली को बाधित करने की कोशिश करता है, ये औषधियां इसे रोकती हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर वायरस को खत्म करती हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में किसी दवा को विकसित करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल पूरे करने और उसे बाजार में लाने का काम शुरू करने में कम से कम तीन साल का समय लगता है। अधिकारी ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में यह अवधि कम हो सकती है, लेकिन फिर भी कम से कम 10 महीने से एक साल का समय तो लगता ही है।
भारत में किसी दवा को बाजार में उतारने से पहले कई चरणों से होकर गुजरना होता है। इसे आम भाषा में ड्रग अप्रूवल प्रोसेस (दवा अनुमति प्रक्रिया) कहते हैं। इसके तहत, क्लीनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, ट्रायल कराना, मार्केटिंग ऑथराइजेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई चरण आते हैं। हालांकि हर देश में अप्रूवल का एक ही तरीका हो यह जरूरी नहीं है। विभिन्न देशों में अपने कुछ विशेष प्रावधान और नियम होते हैं।
भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 औषधियों व प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री और वितरण को विनियमित करता है। इन अधिनियमों के अंतर्गत सीडीएससीओ दवाओं के अनुमोदन, परीक्षणों का संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित होने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह देते हुए औषधि और प्रसाधन सामग्री के लिए जिम्मेदार होता है।
भारत में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेशन यानी आईएनडी को सीडीएससीओ के पास जमा करना होता है। न्यू ड्रग डिवीजन इसका परीक्षण करता है। इसके बाद आईएनडी समिति इसका अध्ययन और समीक्षा करती है। इसके बाद दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के पास भेजा जाता है। अगर वहाँ से, आईएनडी के इस आवेदन को सहमति मिलती है तब जाकर जाकर क्लीनिकल ट्रायल की बारी आती है।
क्लीनिकल ट्रायल के चरण पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास फिर एक आवेदन करना होता है। यह आवेदन नई दवा के पंजीकरण के लिए होता है। एक बार फिर डीसीजीआई इसे रीव्यू करता है। सभी मानकों पर खरा उतरने के बाद लाइसेंस जारी किया जाता है। लेकिन ऐसा न होने पर डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है। दवा के लाइसेंस के लिए बने नियमों का उल्लंघन होने पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
ऊपर जितने मानकों और प्रक्रियाओं की जानकारी दी गई है वे कागजों पर हैं। ताजा उठापठक के बाद जमीनी चीजें तो अलग होती हैं यह फिर महसूस होने लगा है सबको। कहते हैं कि ज़रूरी नहीं कि सारे मानकों और प्रक्रियाओं का तुरंत पालन हो। फंड और वोट बैंक वाली पार्टी हो तो पालन वालन होता रहेगा, दवा बाजार में पहले ही बिकने लगती है!
दवा को बाजार में उतारा गया तो किन दावों के साथ और कौन से वातावरण में उतारा गया सबको पता है। कोरोना के इलाज का दावा, सौ फीसदी इलाज का दावा, सब कुछ हुआ था! विवाद हुआ तो कोरोनिल दवाई के निर्माण पर जारी नोटिस के जवाब में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने कहा कि कंपनी ने इस प्रक्रिया में किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया। कंपनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने यह भी कहा कि कंपनी ने यह कभी नहीं कहा था कि इससे कोरोना का इलाज होगा। कंपनी ने ''कोरोना किट' नामक किसी भी दवा का उत्पादन करने और उसे घातक वायरस के खिलाफ उपचार के रूप में प्रचारित करने से भी इनकार किया! कंपनी ने कहा कि उसने केवल दिव्य श्वासरी वटी, दिव्य कोरोनिल टैबलेट और दिव्य अणुतेल नाम की दवाइयों को एक पैकेजिंग कार्टन में पैक किया था ताकि उन्हें आसानी से बाहर भेजा जा सके।
पतंजलि ने कह दिया कि हमने मीडिया के समक्ष दवा के सफल परीक्षण को केवल प्रमोट किया था, नोटिस मीडिया द्वारा तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का परिणाम था। रामदेव ने सारा दोष मीडिया के सिर डाल दिया! यह कहकर कि मीडिया ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया! जब दवा मार्केट में आ रही थी तब प्रचार प्रसार मीडिया कर रहा था या बाबा? इसका सही जवाब यह साबित कर देता है कि तथ्यों को गलत तरीके से किसने पेश किया था।
कोरोना के सौ फीसदी इलाज वाले दावे के बाद बवाल उठ खड़ा हुआ, नोटिस मिले तो बाबा की कंपनी ने कह दिया कि किसी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं किया और इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता।
पतंजलि ग्रुप पर इस 'दवा के नाम पर फ़्रॉड' करने के आरोप में चंद एफ़आईआर भी दर्ज हो चुकी हैं। उठापटक को नजदीक से देखे तो भारी उठापठक दिखेगी। सरकारी विभाग जो भी कह रहे हो, बीबीसी हिन्दी ने दावा किया है कि उसके पास सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर रजिस्टर किए गए उस फ़ॉर्म (CTRI/2020/05/025273) की कॉपी है, जिसमें पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट, हरिद्वार ने "कोरोना वायरस बीमारी के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं के असर" पर किए जाने वाले क्लीनिकल ट्रायल की हामी भरी है। इस दस्तावेज़ के मुताबिक़ पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने 20 मई, 2020 को सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर इसे रजिस्टर कराया था और इसमें लिखा है कि इस क्लीनिकल ट्रायल के लिए कोविड-19 के पहले मरीज़ का एनरोलमेंट 29 मई, 2020 को किया गया।
क्लीनिकल ट्रायल की शुरुआत के सिर्फ़ 25 दिन बाद ही, 23 जून, 2020 को, योग गुरू बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में 'कोरोनिल टैबलेट' और 'श्वासारि वटी' नाम की दो दवाएं दुनिया के सामने पेश कीं। इस कार्यक्रम में पतंजलि का दावा था कि इन दवाओं से कोविड-19 का इलाज किया जा सकेगा। भले पतंजलि मीडिया पर दोष मड़ती हो, लेकिन बीबीसी हिंदी के दावे के मुताबिक पतंजलि ने कार्यक्रम में इसे कोविड-19 का इलाज बताया था। पतंजलि ने कार्यक्रम में इसके क्लीनिकल ट्रायल का दावा भी किया था और सौ फीसदी इलाज संभव है वाला जुमला भी फेंका था।
फिर आचार्य बालकृष्ण ने जो दावा किया वह हमने ऊपर देखा। कह दिया कि कंपनी ने इसे कोरोना के इलाज की दवा कभी नहीं कहा। सरकारी विभाग देश को बताने में जुट गया कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है। रामदेव को नोटिस दिए गए।
उधर 1 जुलाई 2020 को पतंजलि ने एक प्रेस विज्ञप्ति में एक नया दावा किया। इसके मुताबिक़ आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार दिव्य कोरोनिल टैबलेट, दिव्य श्वासरि वटी और दिव्य अणु तेल, जिसे कि स्टेट लाइसेंस अथॉरिटी, आयुर्वेद-यूनानी सर्विसेस, उत्तराखंड सरकार से निर्माण एवं वितरण करने की जो पतंजलि को अनुमति मिली हुई है, उसके अनुरूप अब पतंजलि इसे सुचारू रूप से सम्पूर्ण भारत में निष्पादित कर सकते हैं। कोविड-19 संक्रमण से रोगियों को मुक्त करा देने वाले अपने पुराने दावे को न दोहराते हुए पतंजलि ने ये भी बताया कि कैसे कुल 95 कोरोना मरीज़ों पर उनकी स्वेच्छा से ट्रायल किया गया, जिनमें 45 को पतंजलि की औषधि दी गई जबकि 50 को प्लेसेबो दिया गया।
पतंजलि की विज्ञप्ति के अनुसार ये आयुर्वेदिक औषधियों का कोविड-19 पॉज़िटिव रोगियों पर किया गया पहला क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल था और अब कंपनी इन औषधियों के मल्टीसेंट्रिक क्लीनिकल ट्रायल की दिशा में अग्रसर हैं।
इस सफ़ाई के एक दिन पहले ही पतंजलि ने इसी बात को लेकर कहा था कि हमने कोरोना किट बनाने जैसा कोई दावा कभी नहीं किया। सोचिए, एक ही कंपनी के दोनों मुख्य चेहरे, रामदेव और बालकृष्ण, दोनों के बयानों में कितना अंतर है, कंपनी की विज्ञप्ति में कितना अंतर है। एक दिन में कितना कुछ बदल जाता है यहाँ!
सब कुछ बहुत आसानी से यूं ही चलता रहा! देश की बड़ी कंपनी ने किस आधार पर अपनी दवा को कोरोना के इलाज की दवा बताकर पेश कर दिया, सही और तथ्यात्मक जवाब नहीं मिले हैं अब तक! पतंजलि सफाई नहीं दे सकी कि महज 25 दिनों के ट्रायल के भीतर सिर्फ 95 मरीज़ों पर कथित क्लीनिकल ट्रायल को किस ऑथॉरिटी ने मान्यता दे दी। जबकि पतंजलि ने अपने फ़ॉर्म (CTRI/2020/05/025273) में लिख कर दिया था कि क्लीनिकल ट्रायल की अवधि दो महीने की होगी। महामारी कानून, चिकित्सा कानून की धज्जियाँ कैसे उड़ी, कोई बता नहीं रहा! कोरोना के जिन मरीज़ों को पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियाँ दी गईं उन सभी औषधियों की मात्रा हर लिहाज़ से बराबर थी या नहीं, रामदेव की कंपनी के पास कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है! जब भी किसी दवा का क्लीनिकल ट्रायल होता है तो उसमें दवा की मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
पतंजलि का कहना है कि सभी 95 ट्रायल जयपुर के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च की देख रेख में हुए। वहाँ के लोग तो इसे इम्यूनिटी बूस्टर बता रहे हैं। तो फिर इम्यूनिटी बूस्टर और ऐसा क्लीनिकल ट्रायल, दोनों का मेल कोई कैसे करे? पतंजलि के पास ठोस जवाब नहीं है।
आईसीएमआर की सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर रजिस्टर करते समय पतंजलि आयुर्वेद ने कहा था वह अपने क्लीनिकल ट्रायल में कोरोना के 'मॉडरेटली सिम्पटोमैटिक' मरीज़ों को शामिल करेंगे, लेकिन ये नहीं किया गया। कोरोनिल दवा के ट्रायल से जुड़े एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बीबीसी हिन्दी को बताया कि ट्रायल में शामिल किए गए मरीज़ों की उम्र 35-45 थी और ज़्यादातर एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण वाले) थे या उनमें बेहद हल्के सिम्प्टम थे।
ग़ौर करने वाली एक और बात ये भी है कि इस ट्रायल में उन मरीज़ों को शामिल नहीं किया गया जिन्हें डायबिटीज़ या ब्लडप्रेशर की शिकायत रही है। ये अहम इसलिए है क्योंकि डब्लूएचओ समेत दुनिया के बड़े मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों या इनमें से एक भी बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए कोरोना ज़्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है। जवाब इसका भी नहीं मिल सका कि जिन मरीज़ों पर पतंजलि के क्लीनिकल ट्रायल हुए वो पहले से कौन सी दवाएँ ले रहे थे, क्योंकि कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए आईसीएमआर ने दवाओं की सूची जारी कर रखी है।
ड्रग विशेषज्ञों का सवाल है कि अगर मरीज़ पहले से कोई ऐलोपैथिक दवा ले रहे थे तो फिर आयुर्वेदिक दवा के बाद किसका कितना असर हुआ ये कैसे नापा जा सकेगा? जाने-माने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट दिनेश ठाकुर ने भी पतंजलि के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने कम मरीज़ों के ट्रायल के आधार पर आप कोरोना के इलाज का दावा कैसे कर सकते हैं?
आख़िर में सबसे अहम सवाल ये उठा कि अगर पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर मई महीने में रजिस्टर कर दिया था और कोरोना के मरीज़ों पर क्लीनिकल ट्रायल जारी थे तो फिर डीजीसीआई (DGCI) और आईसीएमआर (ICMR) को इस बात की जानकारी क्यों नहीं मिली कि किन मरीज़ों पर ट्रायल हुए? भारत में कोरोना संक्रमण के सभी मामलों की लिस्ट न सिर्फ़ आईसीएमआर बल्कि राज्य के कोविड-19 नोडल अफ़सर, ज़िला प्रशासन और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास होती है।
हालाँकि पतंजलि की 'कोरोना किट' के मार्केट में लॉन्च होते ही आयुष मंत्रालय हरकत में आ गया था, लेकिन इस बात पर सवाल उठने लाज़मी हैं कि आख़िर इस ट्रायल के नतीजों को लेकर पब्लिक में आने के पहले पतंजलि ने मंत्रालय की रज़ामंदी क्यों नहीं ली?
कहानी में फिर एक बड़ा ट्विस्ट आता है। एक घटना अदालत के भीतर होती है। पता चलता है कि रामदेव की दवा जो भी हो, महज बूस्टर हो या कुछ और, किंतु उसका नाम उसका है ही नहीं!!! पता चला कि कोरोनिल नाम तो रामदेव ने किसी से चुरा लिया है! कोरोनिल दवा को लेकर तो नहीं, किंतु कोरोनिल नाम को लेकर बाबा की कंपनी पर अदालत ने जुर्माना लगा दिया। इतना ही नहीं, बाकायदा अदालत में जज कह देते हैं कि पतंजलि और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट मुनाफ़ा कमाने के लिए लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैले डर और परेशानी को हथियार बना रहे हैं।
7 अगस्त 2020 को मद्रास हाईकोर्ट ने इस संबंध में रामदेव की कंपनी पतंजलि पर 10 लाख का जुर्माना ठोका। मद्रास हाईकोर्ट में चेन्नई की अरुद्रा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से याचिका दायर की गई थी। कंपनी की ओर से कहा गया था कि कोरोनिल 92बी नाम से उनका ट्रेडमार्क प्रोडक्ट रजिस्टर्ड है और वह लगभग तीन दशक से औद्योगिक रसायन की सफाई के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। तब हाईकोर्ट ने कोरोनिल शब्द के इस्तेमाल पर स्टे लगा दिया था और पतंजलि इस नाम से दवा नहीं बना सकी थी। अदालत ने पतंजलि द्वारा कोरोनिल शब्द का इस्तेमाल करने पर लगे स्टे को हटाने की मांग को भी खारिज कर दिया।
जस्टिस सीवी कार्तिकेय ने अपने 104 पेज के आदेश में कहा कि पतंजलि और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ने इस बात को कई बार प्रोजेक्ट किया कि वह 10 हज़ार करोड़ रुपये की कंपनी है, लेकिन इसके बाद भी वे मुनाफ़ा कमाने के लिए लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैले डर और परेशानी को हथियार बना रहे हैं। अदालत ने कहा कि वे आम लोगों के बीच कोरोना के इलाज का दावा कर रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि उनकी कोरोनिल टैबलेट कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है बल्कि यह खांसी, बुखार और सर्दी के लिए एक इम्यूनिटी बूस्टर है।
अदालत ने कहा कि यह आसानी से पता किया जा सकता है कि कोरोनिल एक रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है। अगर कंपनी ने यह पता किया और फिर भी वे धृष्टता के साथ इस नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर उनकी बात सुनने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि पतंजलि अदयार कैंसर इंस्टीट्यूट और नैचुरोपैथी मेडिकल कॉलेज को 5-5 लाख रुपये दे। ये दोनों ही संस्थान मरीज़ों की निशुल्क सेवा कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह पैसा 21 अगस्त से पहले दे दिया जाना चाहिए।
2015 में बाबा ने बिना लाइसेंस के मैगी को लॉन्च कर दिया था! बीच में एएससीआई ने कहा था कि पतंजलि के केश और दंत कांति ब्रांड के एड गुमराह करने वाले हैं। साल 2018 में भी रामदेव अपने एक टेक उत्पाद को लेकर विवादों में फंसे थे। उन्होंने अमेरिकी ऐप किम्भो को पतंजलि का ऐप बनाकर पेश कर दिया था! साथ में स्वदेशी वाला तड़का भी लगाया था। बाद में विवाद बढ़ा तो प्ले स्टोर से इसे हटा लिया गया था। किम्भो से कोरोनिल का सफर तड़क भड़क वाला ही रहा है। उनके कुछ उत्पादों को लेकर कई दफा ऊँच नीच हो चुकी है।
इधर इस साल कोरोनिल को लेकर मई और जून से सारी उठापठक शुरू हुई। विवाद हुआ तो नोटिस दिए गए। नोटिस के बाद बाबा की कंपनी ने जवाब दिए। नोटिस दिए गए तब माहौल ऐसा था जैसे कि भारत सरकार, राज्य सरकारें और उनके विभाग लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और महामारी कानून के नियमों के पालन पर गंभीर हो। नोटिस दिए जाने के बाद, जवाब मिलने के बाद सारा मामला निपट गया है ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। ‘बड़ी चालाकी’ से इसे ‘ठंडे बस्ते’ में डाल दिया गया है! नियमों और प्रक्रियाओं के पालन में ऊंच नीच हुई भी होगी तब भी पतंजलि और रामदेव को कोई दिक्कत नहीं है! मामला ‘ठंडे बस्ते’ में है। आगे बाहर निकाला जा सकता है। रामदेव सत्ता के अनुकूल नहीं रहेंगे तो उन पर ऐसे अनेका अनेक मामले हैं ही। दोनों का अनुकूलन रहा तो ये उत्पाद फिर एक बार बाजार में आ भी सकता है।
वैसे भी हमारे यहाँ कोरोना के आगमन के बाद साबुन, हैंड वॉश, टूथपेस्ट, एयर कंडीशनर, बच्चों को सुबह शाम पिलाए जाने वाले पेय पदार्थ, सारे के सारे कोरोना वायरस के विषाणुओं को मार गिराने का दावा टेलीविजन पर करते ही रहते हैं! पापड़ खाने से भी कोरोना छू मंतर हो जाता है! ऐसे में बाबाजी ने अपनी आदत के मुताबिक दावा कर दिया तो कौनो बड़ी बात है? है न? वैज्ञानिकों को बोल दो कि भाई वैक्सीन के लिए माथा पीटना छोड़ दो, हमारे यहाँ साबुन भी कोरोना को मार देता है! साबुन से न मरा कोरोना, तो बाबा का टैबलेट है ही!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
पतंजलि ने दावा किया था कि इस दवा का ट्रायल जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (निम्स) अस्पताल में किया गया। इसे लेकर राजस्थान सरकार ने निम्स को एक नोटिस जारी किया, जिसमें इस ट्रायल के बारे में जानकारी मांगी गई थी। राज्य सरकार ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि सरकार को इस ट्रायल की न तो जानकारी मिली और न ही अस्पताल ने अनुमति मांगी।
वहीं, अस्पताल के चेयरमैन बीएस तोमर ने पतंजलि और रामदेव के दावे को गलत बताया। तोमर ने इस संबंध में कहा कि उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग किया था, लेकिन यह कोई इलाज या दवा नहीं थी। तोमर ने यह भी कहा कि उनके संस्थान ने कोरोनिल बनाने में पतंजलि का कोई सहयोग नहीं किया। हालांकि, जानकारी के अनुसार इस दवा की लॉन्चिंग के मौके पर तोमर भी मौजूद थे!!!
इसके बाद रामदेव, बालकृष्ण, वैज्ञानिक अनुराग वार्ष्णेय, एनआईएमएस के अध्यक्ष बलबीर सिंह तोमर और निदेशक अनुराग तोमर के ख़िलाफ़ जयपुर के ज्योति नगर थाने में एफ़आईआर दर्ज कराई गई।
केंद्रीय मंत्रालय की ओर से दवा के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने और उत्तराखंड सरकार से इस संबंध में जवाब-तलब करने के बाद राज्य सरकार ने भी पल्ला झाड़ लिया। प्रदेश के आयुष विभाग ने कहा कि पतंजलि को इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था। कोरोना की दवा कैसे बना ली और दवा की किट का विज्ञापन क्यों किया गया इसका पता लगाया जाएगा। राज्य के आयुष विभाग ने पतंजलि को नोटिस जारी कर दिया।
मिला था इम्यूनिटी बूस्टर का लाइसेंस, बना दी कोरोना की दवा!!! इम्यूनिटी बूस्टर को पतंजलि और रामदेव बाकायदा कोरोना का सौ फीसदी इलाज बता देते हैं!!! फिर विवाद होता है तो अपनी लीला करते हैं, लीला से काला और लाल भी करते हैं! अलग अलग राज्य के अलग अलग महकमे उन्हें नोटिस जारी करते हैं। नोटिस जारी करने को महीना गुजर चुका है। नोटिस जारी किया तब ऐसे किया जैसे चिकित्सा पद्धति और लोगों के साथ छल करने को लेकर कार्रवाई करेंगे। लेकिन नोटिस भी एक प्रकार का छल निकला। नेताजी पापड़ से इलाज कर सकते हैं कोरोना का, तो फिर रामदेव टैबलेट से क्यों नहीं कर सकते? शायद सरकारी विभागों ने इसी तर्ज पर रामदेव और पतंजलि को प्यारी सी डाँट लगाकर जाने दिया।
वहीं, बालकृष्ण के इस दावे पर कि आयुष मंत्रालय को सभी जानकारियां दी जा चुकी थी, दूसरी कहानी सामने आ जाती है। जानकारी के अनुसार मंत्रालय को पतंजलि ने तीन दस्तावेज भेजे थे। जिन पर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। दवा के बारे में अभी भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया था कि कोरोनिल के क्लीनिकल ट्रायल के परिणाम आ चुके हैं या अंतिम नतीजे आने अभी बाकी है। जानकारी के अनुसार अभी यह भी स्पष्ट नहीं है ट्रायल पूरे भी हुए हैं या नहीं। पतंजलि की इस दवा कोरोनिल पर राजस्थान और महाराष्ट्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।
दवा की लॉन्चिंग के मौके पर रामदेव ने बताया था कि इस आयुर्वेदिक दवा को बनाने में सिर्फ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें मुलैठी, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वासारि का इस्तेमाल किया गया है। रामदेव ने कहा था कि गिलोय में पाने जाने वाले टिनोस्पोराइड और अश्वगंधा में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व और श्वासारि के रस के प्रयोग से इस दवा का निर्माण किया गया है।
पतंजलि ने कोरोनिल की कार्य पद्धति के बारे में कहा था कि इस दवा के निर्माण में इस्तेमाल की गई औषधियां मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को तुरंत बढ़ाती हैं और कोरोना के संक्रमण की चेन तोड़ती हैं। कोरोना वायरस फेफड़ों की मूल इकाई एल्वियोलाई की कार्यप्रणाली को बाधित करने की कोशिश करता है, ये औषधियां इसे रोकती हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर वायरस को खत्म करती हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में किसी दवा को विकसित करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल पूरे करने और उसे बाजार में लाने का काम शुरू करने में कम से कम तीन साल का समय लगता है। अधिकारी ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में यह अवधि कम हो सकती है, लेकिन फिर भी कम से कम 10 महीने से एक साल का समय तो लगता ही है।
भारत में किसी दवा को बाजार में उतारने से पहले कई चरणों से होकर गुजरना होता है। इसे आम भाषा में ड्रग अप्रूवल प्रोसेस (दवा अनुमति प्रक्रिया) कहते हैं। इसके तहत, क्लीनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, ट्रायल कराना, मार्केटिंग ऑथराइजेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई चरण आते हैं। हालांकि हर देश में अप्रूवल का एक ही तरीका हो यह जरूरी नहीं है। विभिन्न देशों में अपने कुछ विशेष प्रावधान और नियम होते हैं।
भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 औषधियों व प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री और वितरण को विनियमित करता है। इन अधिनियमों के अंतर्गत सीडीएससीओ दवाओं के अनुमोदन, परीक्षणों का संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित होने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह देते हुए औषधि और प्रसाधन सामग्री के लिए जिम्मेदार होता है।
भारत में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेशन यानी आईएनडी को सीडीएससीओ के पास जमा करना होता है। न्यू ड्रग डिवीजन इसका परीक्षण करता है। इसके बाद आईएनडी समिति इसका अध्ययन और समीक्षा करती है। इसके बाद दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) के पास भेजा जाता है। अगर वहाँ से, आईएनडी के इस आवेदन को सहमति मिलती है तब जाकर जाकर क्लीनिकल ट्रायल की बारी आती है।
क्लीनिकल ट्रायल के चरण पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास फिर एक आवेदन करना होता है। यह आवेदन नई दवा के पंजीकरण के लिए होता है। एक बार फिर डीसीजीआई इसे रीव्यू करता है। सभी मानकों पर खरा उतरने के बाद लाइसेंस जारी किया जाता है। लेकिन ऐसा न होने पर डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है। दवा के लाइसेंस के लिए बने नियमों का उल्लंघन होने पर कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
ऊपर जितने मानकों और प्रक्रियाओं की जानकारी दी गई है वे कागजों पर हैं। ताजा उठापठक के बाद जमीनी चीजें तो अलग होती हैं यह फिर महसूस होने लगा है सबको। कहते हैं कि ज़रूरी नहीं कि सारे मानकों और प्रक्रियाओं का तुरंत पालन हो। फंड और वोट बैंक वाली पार्टी हो तो पालन वालन होता रहेगा, दवा बाजार में पहले ही बिकने लगती है!
दवा को बाजार में उतारा गया तो किन दावों के साथ और कौन से वातावरण में उतारा गया सबको पता है। कोरोना के इलाज का दावा, सौ फीसदी इलाज का दावा, सब कुछ हुआ था! विवाद हुआ तो कोरोनिल दवाई के निर्माण पर जारी नोटिस के जवाब में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने कहा कि कंपनी ने इस प्रक्रिया में किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया। कंपनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने यह भी कहा कि कंपनी ने यह कभी नहीं कहा था कि इससे कोरोना का इलाज होगा। कंपनी ने ''कोरोना किट' नामक किसी भी दवा का उत्पादन करने और उसे घातक वायरस के खिलाफ उपचार के रूप में प्रचारित करने से भी इनकार किया! कंपनी ने कहा कि उसने केवल दिव्य श्वासरी वटी, दिव्य कोरोनिल टैबलेट और दिव्य अणुतेल नाम की दवाइयों को एक पैकेजिंग कार्टन में पैक किया था ताकि उन्हें आसानी से बाहर भेजा जा सके।
पतंजलि ने कह दिया कि हमने मीडिया के समक्ष दवा के सफल परीक्षण को केवल प्रमोट किया था, नोटिस मीडिया द्वारा तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का परिणाम था। रामदेव ने सारा दोष मीडिया के सिर डाल दिया! यह कहकर कि मीडिया ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया! जब दवा मार्केट में आ रही थी तब प्रचार प्रसार मीडिया कर रहा था या बाबा? इसका सही जवाब यह साबित कर देता है कि तथ्यों को गलत तरीके से किसने पेश किया था।
कोरोना के सौ फीसदी इलाज वाले दावे के बाद बवाल उठ खड़ा हुआ, नोटिस मिले तो बाबा की कंपनी ने कह दिया कि किसी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं किया और इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता।
पतंजलि ग्रुप पर इस 'दवा के नाम पर फ़्रॉड' करने के आरोप में चंद एफ़आईआर भी दर्ज हो चुकी हैं। उठापटक को नजदीक से देखे तो भारी उठापठक दिखेगी। सरकारी विभाग जो भी कह रहे हो, बीबीसी हिन्दी ने दावा किया है कि उसके पास सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर रजिस्टर किए गए उस फ़ॉर्म (CTRI/2020/05/025273) की कॉपी है, जिसमें पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट, हरिद्वार ने "कोरोना वायरस बीमारी के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं के असर" पर किए जाने वाले क्लीनिकल ट्रायल की हामी भरी है। इस दस्तावेज़ के मुताबिक़ पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने 20 मई, 2020 को सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर इसे रजिस्टर कराया था और इसमें लिखा है कि इस क्लीनिकल ट्रायल के लिए कोविड-19 के पहले मरीज़ का एनरोलमेंट 29 मई, 2020 को किया गया।
क्लीनिकल ट्रायल की शुरुआत के सिर्फ़ 25 दिन बाद ही, 23 जून, 2020 को, योग गुरू बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में 'कोरोनिल टैबलेट' और 'श्वासारि वटी' नाम की दो दवाएं दुनिया के सामने पेश कीं। इस कार्यक्रम में पतंजलि का दावा था कि इन दवाओं से कोविड-19 का इलाज किया जा सकेगा। भले पतंजलि मीडिया पर दोष मड़ती हो, लेकिन बीबीसी हिंदी के दावे के मुताबिक पतंजलि ने कार्यक्रम में इसे कोविड-19 का इलाज बताया था। पतंजलि ने कार्यक्रम में इसके क्लीनिकल ट्रायल का दावा भी किया था और सौ फीसदी इलाज संभव है वाला जुमला भी फेंका था।
फिर आचार्य बालकृष्ण ने जो दावा किया वह हमने ऊपर देखा। कह दिया कि कंपनी ने इसे कोरोना के इलाज की दवा कभी नहीं कहा। सरकारी विभाग देश को बताने में जुट गया कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है। रामदेव को नोटिस दिए गए।
उधर 1 जुलाई 2020 को पतंजलि ने एक प्रेस विज्ञप्ति में एक नया दावा किया। इसके मुताबिक़ आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार दिव्य कोरोनिल टैबलेट, दिव्य श्वासरि वटी और दिव्य अणु तेल, जिसे कि स्टेट लाइसेंस अथॉरिटी, आयुर्वेद-यूनानी सर्विसेस, उत्तराखंड सरकार से निर्माण एवं वितरण करने की जो पतंजलि को अनुमति मिली हुई है, उसके अनुरूप अब पतंजलि इसे सुचारू रूप से सम्पूर्ण भारत में निष्पादित कर सकते हैं। कोविड-19 संक्रमण से रोगियों को मुक्त करा देने वाले अपने पुराने दावे को न दोहराते हुए पतंजलि ने ये भी बताया कि कैसे कुल 95 कोरोना मरीज़ों पर उनकी स्वेच्छा से ट्रायल किया गया, जिनमें 45 को पतंजलि की औषधि दी गई जबकि 50 को प्लेसेबो दिया गया।
पतंजलि की विज्ञप्ति के अनुसार ये आयुर्वेदिक औषधियों का कोविड-19 पॉज़िटिव रोगियों पर किया गया पहला क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल था और अब कंपनी इन औषधियों के मल्टीसेंट्रिक क्लीनिकल ट्रायल की दिशा में अग्रसर हैं।
इस सफ़ाई के एक दिन पहले ही पतंजलि ने इसी बात को लेकर कहा था कि हमने कोरोना किट बनाने जैसा कोई दावा कभी नहीं किया। सोचिए, एक ही कंपनी के दोनों मुख्य चेहरे, रामदेव और बालकृष्ण, दोनों के बयानों में कितना अंतर है, कंपनी की विज्ञप्ति में कितना अंतर है। एक दिन में कितना कुछ बदल जाता है यहाँ!
सब कुछ बहुत आसानी से यूं ही चलता रहा! देश की बड़ी कंपनी ने किस आधार पर अपनी दवा को कोरोना के इलाज की दवा बताकर पेश कर दिया, सही और तथ्यात्मक जवाब नहीं मिले हैं अब तक! पतंजलि सफाई नहीं दे सकी कि महज 25 दिनों के ट्रायल के भीतर सिर्फ 95 मरीज़ों पर कथित क्लीनिकल ट्रायल को किस ऑथॉरिटी ने मान्यता दे दी। जबकि पतंजलि ने अपने फ़ॉर्म (CTRI/2020/05/025273) में लिख कर दिया था कि क्लीनिकल ट्रायल की अवधि दो महीने की होगी। महामारी कानून, चिकित्सा कानून की धज्जियाँ कैसे उड़ी, कोई बता नहीं रहा! कोरोना के जिन मरीज़ों को पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियाँ दी गईं उन सभी औषधियों की मात्रा हर लिहाज़ से बराबर थी या नहीं, रामदेव की कंपनी के पास कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है! जब भी किसी दवा का क्लीनिकल ट्रायल होता है तो उसमें दवा की मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
पतंजलि का कहना है कि सभी 95 ट्रायल जयपुर के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च की देख रेख में हुए। वहाँ के लोग तो इसे इम्यूनिटी बूस्टर बता रहे हैं। तो फिर इम्यूनिटी बूस्टर और ऐसा क्लीनिकल ट्रायल, दोनों का मेल कोई कैसे करे? पतंजलि के पास ठोस जवाब नहीं है।
आईसीएमआर की सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर रजिस्टर करते समय पतंजलि आयुर्वेद ने कहा था वह अपने क्लीनिकल ट्रायल में कोरोना के 'मॉडरेटली सिम्पटोमैटिक' मरीज़ों को शामिल करेंगे, लेकिन ये नहीं किया गया। कोरोनिल दवा के ट्रायल से जुड़े एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बीबीसी हिन्दी को बताया कि ट्रायल में शामिल किए गए मरीज़ों की उम्र 35-45 थी और ज़्यादातर एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण वाले) थे या उनमें बेहद हल्के सिम्प्टम थे।
ग़ौर करने वाली एक और बात ये भी है कि इस ट्रायल में उन मरीज़ों को शामिल नहीं किया गया जिन्हें डायबिटीज़ या ब्लडप्रेशर की शिकायत रही है। ये अहम इसलिए है क्योंकि डब्लूएचओ समेत दुनिया के बड़े मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों या इनमें से एक भी बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए कोरोना ज़्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है। जवाब इसका भी नहीं मिल सका कि जिन मरीज़ों पर पतंजलि के क्लीनिकल ट्रायल हुए वो पहले से कौन सी दवाएँ ले रहे थे, क्योंकि कोरोना संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए आईसीएमआर ने दवाओं की सूची जारी कर रखी है।
ड्रग विशेषज्ञों का सवाल है कि अगर मरीज़ पहले से कोई ऐलोपैथिक दवा ले रहे थे तो फिर आयुर्वेदिक दवा के बाद किसका कितना असर हुआ ये कैसे नापा जा सकेगा? जाने-माने पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट दिनेश ठाकुर ने भी पतंजलि के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने कम मरीज़ों के ट्रायल के आधार पर आप कोरोना के इलाज का दावा कैसे कर सकते हैं?
आख़िर में सबसे अहम सवाल ये उठा कि अगर पतंजलि रिसर्च इंस्टीच्यूट ने सीटीआरआई (CTRI) वेबसाइट पर मई महीने में रजिस्टर कर दिया था और कोरोना के मरीज़ों पर क्लीनिकल ट्रायल जारी थे तो फिर डीजीसीआई (DGCI) और आईसीएमआर (ICMR) को इस बात की जानकारी क्यों नहीं मिली कि किन मरीज़ों पर ट्रायल हुए? भारत में कोरोना संक्रमण के सभी मामलों की लिस्ट न सिर्फ़ आईसीएमआर बल्कि राज्य के कोविड-19 नोडल अफ़सर, ज़िला प्रशासन और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पास होती है।
हालाँकि पतंजलि की 'कोरोना किट' के मार्केट में लॉन्च होते ही आयुष मंत्रालय हरकत में आ गया था, लेकिन इस बात पर सवाल उठने लाज़मी हैं कि आख़िर इस ट्रायल के नतीजों को लेकर पब्लिक में आने के पहले पतंजलि ने मंत्रालय की रज़ामंदी क्यों नहीं ली?
कहानी में फिर एक बड़ा ट्विस्ट आता है। एक घटना अदालत के भीतर होती है। पता चलता है कि रामदेव की दवा जो भी हो, महज बूस्टर हो या कुछ और, किंतु उसका नाम उसका है ही नहीं!!! पता चला कि कोरोनिल नाम तो रामदेव ने किसी से चुरा लिया है! कोरोनिल दवा को लेकर तो नहीं, किंतु कोरोनिल नाम को लेकर बाबा की कंपनी पर अदालत ने जुर्माना लगा दिया। इतना ही नहीं, बाकायदा अदालत में जज कह देते हैं कि पतंजलि और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट मुनाफ़ा कमाने के लिए लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैले डर और परेशानी को हथियार बना रहे हैं।
7 अगस्त 2020 को मद्रास हाईकोर्ट ने इस संबंध में रामदेव की कंपनी पतंजलि पर 10 लाख का जुर्माना ठोका। मद्रास हाईकोर्ट में चेन्नई की अरुद्रा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से याचिका दायर की गई थी। कंपनी की ओर से कहा गया था कि कोरोनिल 92बी नाम से उनका ट्रेडमार्क प्रोडक्ट रजिस्टर्ड है और वह लगभग तीन दशक से औद्योगिक रसायन की सफाई के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। तब हाईकोर्ट ने कोरोनिल शब्द के इस्तेमाल पर स्टे लगा दिया था और पतंजलि इस नाम से दवा नहीं बना सकी थी। अदालत ने पतंजलि द्वारा कोरोनिल शब्द का इस्तेमाल करने पर लगे स्टे को हटाने की मांग को भी खारिज कर दिया।
जस्टिस सीवी कार्तिकेय ने अपने 104 पेज के आदेश में कहा कि पतंजलि और दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट ने इस बात को कई बार प्रोजेक्ट किया कि वह 10 हज़ार करोड़ रुपये की कंपनी है, लेकिन इसके बाद भी वे मुनाफ़ा कमाने के लिए लोगों के बीच कोरोना को लेकर फैले डर और परेशानी को हथियार बना रहे हैं। अदालत ने कहा कि वे आम लोगों के बीच कोरोना के इलाज का दावा कर रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि उनकी कोरोनिल टैबलेट कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है बल्कि यह खांसी, बुखार और सर्दी के लिए एक इम्यूनिटी बूस्टर है।
अदालत ने कहा कि यह आसानी से पता किया जा सकता है कि कोरोनिल एक रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क है। अगर कंपनी ने यह पता किया और फिर भी वे धृष्टता के साथ इस नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर उनकी बात सुनने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा कि पतंजलि अदयार कैंसर इंस्टीट्यूट और नैचुरोपैथी मेडिकल कॉलेज को 5-5 लाख रुपये दे। ये दोनों ही संस्थान मरीज़ों की निशुल्क सेवा कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह पैसा 21 अगस्त से पहले दे दिया जाना चाहिए।
2015 में बाबा ने बिना लाइसेंस के मैगी को लॉन्च कर दिया था! बीच में एएससीआई ने कहा था कि पतंजलि के केश और दंत कांति ब्रांड के एड गुमराह करने वाले हैं। साल 2018 में भी रामदेव अपने एक टेक उत्पाद को लेकर विवादों में फंसे थे। उन्होंने अमेरिकी ऐप किम्भो को पतंजलि का ऐप बनाकर पेश कर दिया था! साथ में स्वदेशी वाला तड़का भी लगाया था। बाद में विवाद बढ़ा तो प्ले स्टोर से इसे हटा लिया गया था। किम्भो से कोरोनिल का सफर तड़क भड़क वाला ही रहा है। उनके कुछ उत्पादों को लेकर कई दफा ऊँच नीच हो चुकी है।
इधर इस साल कोरोनिल को लेकर मई और जून से सारी उठापठक शुरू हुई। विवाद हुआ तो नोटिस दिए गए। नोटिस के बाद बाबा की कंपनी ने जवाब दिए। नोटिस दिए गए तब माहौल ऐसा था जैसे कि भारत सरकार, राज्य सरकारें और उनके विभाग लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और महामारी कानून के नियमों के पालन पर गंभीर हो। नोटिस दिए जाने के बाद, जवाब मिलने के बाद सारा मामला निपट गया है ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। ‘बड़ी चालाकी’ से इसे ‘ठंडे बस्ते’ में डाल दिया गया है! नियमों और प्रक्रियाओं के पालन में ऊंच नीच हुई भी होगी तब भी पतंजलि और रामदेव को कोई दिक्कत नहीं है! मामला ‘ठंडे बस्ते’ में है। आगे बाहर निकाला जा सकता है। रामदेव सत्ता के अनुकूल नहीं रहेंगे तो उन पर ऐसे अनेका अनेक मामले हैं ही। दोनों का अनुकूलन रहा तो ये उत्पाद फिर एक बार बाजार में आ भी सकता है।
वैसे भी हमारे यहाँ कोरोना के आगमन के बाद साबुन, हैंड वॉश, टूथपेस्ट, एयर कंडीशनर, बच्चों को सुबह शाम पिलाए जाने वाले पेय पदार्थ, सारे के सारे कोरोना वायरस के विषाणुओं को मार गिराने का दावा टेलीविजन पर करते ही रहते हैं! पापड़ खाने से भी कोरोना छू मंतर हो जाता है! ऐसे में बाबाजी ने अपनी आदत के मुताबिक दावा कर दिया तो कौनो बड़ी बात है? है न? वैज्ञानिकों को बोल दो कि भाई वैक्सीन के लिए माथा पीटना छोड़ दो, हमारे यहाँ साबुन भी कोरोना को मार देता है! साबुन से न मरा कोरोना, तो बाबा का टैबलेट है ही!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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