Ticker

6/recent/ticker-posts

Hockey India - भारत के राष्ट्रीय खेल का निधन... मनोरंजन के खजाने की माथापच्ची और महंगी राजनीति

 
इस देश में अगर मुमकिन होता तो क्रिकेट के अलावा दूसरे सारे खेलों को राइट क्लिक करके रिसायकल बिन में भेज दिया जाता। यह सच है कि हर एक वस्तु का दौर आता है, और फिर जाता भी है, किंतु यहाँ सच इससे इतर भी है।
 
भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी को माना जाता है। हालाँकि यह लिख रहे हैं तब तक तो आधिकारिक रूप से कोई भी खेल भारत में राष्ट्रीय नहीं है। किंतु दशकों से सभ्यताओं के बीच हॉकी को ही राष्ट्रीय खेल माना जाता है। और यह खेल भारत का राष्ट्रीय खेल है और इसका नाम हॉकी है, इस बात के अलावा देश के बहुधा लोगों ने या सरकारों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई हो ऐसे ताज़ा वाक़ये कम ही मिलेंगे।
 
1928 से भारतीय हॉकी टीम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ थी। 1928, 1932 तथा 1936 में भारतीय हॉकी ने ओलंपिक्स में सुवर्ण पदक जीते। 1940 तथा 1944 के ओलंपिक्स खेल दूसरे विश्वयुद्ध के कारण नहीं हो पाए थे। उसके बाद 1948, 1952 तथा 1956 में भी हॉकी टीम ने ओलंपिक्स में भारत को सुवर्ण पदक दिलाए।
 
1960 वो साल था, जब किसी भी पदक के बिना भारतीय हॉकी टीम वापस आई। 1964 में हॉकी टीम ने एक पदक ज़रूर जीता, किंतु उसके बाद भारतीय हॉकी टीम के बुरे दिन शुरू हो गए। 1968 तथा 1972 में हॉकी टीम को कांस्य पदक से संतुष्ट होकर लौटना पड़ा। एक ज़माने की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम, जिसने लगातार 6 ओलंपिक्स में सुवर्ण पदक जीते थे, जिसने लगातार 3 दशकों तक दुनिया में हॉकी की सरताज टीम का ख़िताब अपने पास रखा था, उसके बुरे दिन चल रहे थे।
हालाँकि 1975 में हॉकी टीम ने विश्वकप जीतकर फिर एक बार वापसी करने के प्रयत्न किए। किंतु 1982 में दिल्ही के एशियन गेम्स में टीम बुरी तरीके से हार गई। कहा जा सकता है कि 1960 से 1982 तक भारतीय हॉकी टीम बुरे दौर से गुजरती रही। लेकिन 1982 के बाद तो ऐसा दौर चल पड़ा कि भारतीय हॉकी अपने अस्तित्व को लेकर ही जूझती रही।
 
भारत में क्रिकेट अत्यंत लोकप्रिय खेल हो चुका था और उस खेल के खिलाड़ी नये हीरो बनने लगे थे। शायद सारी व्यवस्थाओं का और सारे खेलप्रेमियों का स्नेह क्रिकेट की तरफ़ ही था। मार्च 2008 में एक ऐसा वाक़या हो गया, जब चंद और बचेखुचे हॉकी प्रेमियों ने मान लिया कि भारतीय हॉकी का निधन हो चुका है।
 
"हॉकी के जादूगर" कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के देश में ही हॉकी का निधन हो रहा हो ऐसा माहौल सचमुच आहत करने वाला था। अपने पहले 30 सालों में भारतीय हॉकी ने दुनिया पर राज किया था। और पिछले 30 सालों से भारत में हॉकी एक बीमार इंसान की तरह लैटी हुई थी। कुछ संगठन तथा कुछ लोग आशान्वित थे कि हॉकी फिर से खड़ी होगी।
 
सन 1855 में कोलकाता में पहली बार हॉकी खेली गई थी और मार्च 2008 में हॉकी ने जैसे अंतिम सांस ले ली। 10 मार्च, 2008 का वो दिन था जब भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक्स में क्वालीफाई ही नहीं हो पाई। पिछले 80 सालों में ये पहली बार हुआ था। इस ऐतिहासिक विफलता के बाद केपीएस गिल को इंडियन हॉकी फेडरेशन के प्रमुख के ओहदे से हटा दिया गया और फेडरेशन को बंद कर दिया गया।
कहा यह भी गया कि हॉकी की इस स्थिति के लिए वे सारे लोग ज़िम्मेदार थे, जो खुद को हॉकी का खिलाड़ी मानते थे। कुछ ने कहा कि इसके लिए वे लोग भी ज़िम्मेदार थे जो हॉकी को राष्ट्रीय खेल मानते थे, किंतु दीवाने क्रिकेट के थे।
 
हर खेल अपना जमाना ज़रूर गँवा देता है। किंतु भारतीय हॉकी का जिस ढंग से अंजाम हुआ वो कई लोगों को आहत कर गया। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को अपनी ही आँखों से अपने खेल को बुरे हालात में देखना पड़ा था। दिग्विजय सिंह ने तो हॉकी को बचाने में असमर्थ होने पर खुद को निसहाय मानकर अपनी जान गँवा दी थी। रूप सिंह, किशन लाल, रणबीर सिंह या केशव दत्त जैसे हॉकी के जानेमाने खिलाड़ी आख़िरी सांस तक हॉकी को बचाने के लिए कहते रहे। 30 सालों तक हॉकी ने अपने ही देश में ऐसी ठोकरें खाई, जिसे सुनकर किसी को भी खेल मंत्रालय के ऊपर गुस्सा आ जाए। तीन-तीन दशक तक हॉकी के विषय पर कोई ठोस प्रयत्न नहीं हुए।
 
खुद को हॉकी के खिलाड़ी मानने वाले इन्दर राज मोहन, अश्विनी कुमार, रामा स्वामी या केपीएस गिल जैसे अधिकारियों ने कथित रूप से अपनी कार्यशैली से हॉकी को और कमज़ोर कर दिया। "टू हेल विद हॉकी" जैसा पुस्तक लिखने वाले असलम शेर ख़ान जैसों ने कमजोर हॉकी को ठोकर मारने का काम कर दिया।
 
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का जन्मदिन 29 अगस्त को भारत राष्ट्रीय खेल दिन के तौर पर मनाता है। हालाँकि 10 मार्च, 2008 के काले दिन को पीछे छोड़ने के लिए और नई शुरुआत के लिए 29 अगस्त, 2009 के दिन घोषणाएँ हुईं। कहा गया कि इंडियन हॉकी फेडरेशन फिर से गठित किया जाएगा तथा उसका नाम हॉकी इंडिया होगा और हॉकी को फिर से संजीदगी से लिया जाएगा।
लेकिन ये वो देश है, जहाँ अगर मुमकिन होता तो क्रिकेट के अलावा दूसरे सारे खेलों को राइट क्लिक करके रिसायकल बिन में भेज दिया जाता!!! क्रिकेट ही सबसे बड़ा प्रमाणपत्र है। क्रिकेट के सितारें कुछ भी करके 10वीं, 12वीं या स्नातक के प्रमाणपत्र ले आते हैं। कहा जा सकता है कि अगर आप के पास क्रिकेट का प्रमाणपत्र है तो फिर अन्य प्रमाणपत्र ज़रूर मिल जाएँगे।
 
क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों को लाखों रुपये दिए जाते हैं, पाँच सितारा होटलों में इन्हें ठहराया जाता हैं और खाने-पीने से लेकर हर मुमकिन सहूलियत इन्हें मुहैया कराई जाती हैं। क्रिकेट की कोई भी श्रुंखला का प्रसारण पूरे देश में होता है और मीडिया में आधे आधे घंटे क्रिकेट के लिए ही अलग रख दिए जाते हैं। अख़बारों में एक-दो पन्ने क्रिकेट को ही समर्पित होते हैं। इसके पीछे बहुत सारी वजहें हैं।

 
उधर क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के खिलाड़ियों को अच्छा खाना भी नहीं मिल पाता, जैसे कि कुस्ती या बॉक्सिंग इत्यादि। कई खेल या खिलाड़ी ऐसे हैं, जब वे अंतरराष्ट्रीय खेलों में पदक लेकर वापस आते हैं तभी मीडिया के माध्यम से पता चलता है कि भारत गौरवान्वित हुआ है। लेकिन इससे आगे और कोई तवज्जो इन्हें नहीं दी जाती।
 
आप जानकर हैरान रह जाएँगे कि राज्यों के बीच जो खेल खेले जाते हैं उसके खिलाड़ियों को दिन के और रात के खाने के लिए हाल ही के जमाने तक केवल 75 रुपये दिए जाते थे। कई सारे वाक़ये ऐसे भी देखने के लिए मिल जाएँगे, जिसमें भारत को गौरवान्वित करने वाला खिलाड़ी पदक लेकर देश वापस लौटता है और फिर उसे घर पर पहुंचने के लिए भारी परेशानी उठानी पड़ती है। उन्हें ऑटो में या ऐसे किसी वाहन का जुगाड़ करके घंटों बाद घर पहुंचने का सुख नसीब होता है!
चैंपियन रह चुके खिलाड़ी राज्यों के बीच खेल के दौरान मेहमानों को चाय-पानी पिलाते हुए भी नजर आते रहे हैं! कई बार ख़बरें आती रहती हैं कि फलां फलां खिलाड़ी ने अपने सम्मान बेचने के लिए निकाले हैं, क्योंकि उन्हें पैसों की ज़रूरत है। देश को गौरव दिलाने वाले कई खिलाड़ी रोजगार के लिए घूमते हुए या कुछ ऐसा काम करते हुए भी नजर आते रहे हैं!
 
वैसे क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों में बड़े मौकों पर बड़े खिलाड़ियों की जीत को देश मनाता ज़रूर है। कई खेलों में देश को गौरवान्वित करने वाले खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है, नागरिकों का प्यार भी मिलता है। लेकिन पता नहीं क्यों, पीटी उषा सामान्य ज्ञान के पन्नों के अलावा और कहीं नहीं दिखती! मैरी कॉम से ज़्यादा कमाई और प्रसिद्धि प्रियंका चोपड़ा की हो जाती है! और तो और, देशभक्ति और हिंदुस्तान के प्रति अपना समर्पण सैकड़ों मौकों पर दिखाने वाले ध्यानचंद को छोड़ सचिन तेंदुलकर को ही भारत रत्न मिल जाता है!
 
हॉकी, बॉक्सिंग, कबड्डी, कुस्ती, जूडो इत्यादि के साथ ऐसे खेलों की लंबी सूची है, जो ओलंपिक जेसे खेलों में भारत के लिए सुवर्ण पदक जीतकर लाते हैं, लेकिन प्रोत्साहन की कमी, मदद की कमी के चलते ज़िंदगी से जूझते रहते हैं। वैसे बचेखुचे हॉकी प्रेमियों को आश है कि एकाध दफा खेलकूद मंत्रालय में कूद के बजाए खेल पर ध्यान देने वाला कोई आएगा। तब तक हॉकी टीम अपने दम पर अपना प्रदर्शन करके हॉकी को रुतबा देने के प्रयास करती रहेगी।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)