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Bye Bye 2016 : ऐसी घटनाएं जिन पर विश्वास नहीं होता या जो झकझोर कर चली गई


वैसे तो साल गुजरते जाते हैं। हर दफा ऐतिहासिकयादगारसुनहरेकालेपीले या लाल रंग की घटनाएं आख़िरी दिनों में अखबारों में चमकती रहती हैं। यादों के साथ साल को बाय बाय कहने की औपचारिकताएं हर दफा निभा ली जाती है। लेकिन हम बात करते हैं कुछ ऐसी यादों की, जिन पर विश्वास नहीं होता या जो झकझोर कर चली गई। ना यह यादें ऐतिहासिक होती हैं, ना ही यादगार। शायद इसी वजह से ये हर साल खुद को दोहराती ज़रूर हैं।

रेलवे का 120 टन का इंजन गायब, 60 हज़ार लोग ढूंढने के लिए जुटे
ये घटना बिलासपुर इलाके की है, जो सन 2016 में हुई थी। यहां रेलवे ट्रेन का 120 टन वजनी इंजन ही गायब हो गया। यह इंजन दिल्ली के तुगलकाबाद लोको शेड का Electric Locomotive Engine था। और यह जून 2016 में गायब हुआ था। दो महीने बीत जाने के बाद भी इसका कोई अतापता नहीं लगा। पश्चिम मध्य रेलवे जोन इसकी तपतीश कर चुका, लेकिन उनके हाथ कोई सुराग तक नहीं लगा। उसके बाद यह जानकारी केंद्रीय रेलवे को दी गई और उसने तमाम जोन को इसके बारे में सूचित किया। यह इंजन मरम्मत के लिए शेड में लाना था। रेलवे के तमाम चालकों को इस इंजन के बारे में सूचना दे दी गई। यह 23384 नंबर का इंजन था। शुरुआत में यह माना गया कि इंजन किसी दूरदराज के इलाके में गया होगा। जून में गुम हुए इस 120 टन वजनी इंजन को ढूंढने में पश्चिम मध्य रेलवे नाकाम रही। आखिर 10 जुलाई के दिन राष्ट्रव्यापी खोज अभियान शुरू किया गया। जिन जिन इलाकों या स्टेशन को सूचित किया गया उन सभी का आंकड़ा जोड़े तो कहा जा सकता है कि तकरीबन 60 हज़ार रेल अधिकारियों या कर्मियों को इसमें किसी न किसी रूप से लगाया गया। लेकिन राष्ट्रव्यापी खोज अभियान के बावजूद अगस्त 2016 तक तो इसके बारे में सुराग तक नहीं मिल पाया था। गौरतलब है कि रेलवे का कोई भी इंजन रेलवे की पटरियों पर ही चल सकता है। लेकिन रेलवे को महीनों तक इसकी कोई भनक तक नहीं लगी कि इतना बड़ा और इतना वजनी इंजन आखिर गायब कैसे हो सकता है?

एयरफोर्स के 29 लोगों समेत गायब हो गया भारी भरकम एएन32 हवाई जहाज
यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना 22 जुलाई 2016 के दिन हुई। एयरफोर्स के एएन32 हवाई जहाज ने सुबह चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के लिए उड़ान भरी। यह जहाज सुबह 11-30 बजे पोर्ट ब्लेयर के हवाई अड्डे पर उतरने वाला था। लेकिन चेन्नई से अपनी उड़ान के 16 मिनट बाद ही इससे संपर्क टूट गया। इस हवाई जहाज में एयरफोर्स के 29 लोग सवार थे, जिनमें 6 क्रू मेंबर्स थे। इस जहाज ने चेन्नई के तांबरम एयरपोर्ट से सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर उड़ान भरी थी। 8-46 बजे इस जहाज से संपर्क टूट गया। जब इस जहाज से आख़िरी बार संपर्क हुआ तब उसने 1,375 किमी की दूरी तय कर ली थी और 28,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहा था। जहाज पर जो लोग सवार थे उनमें 6 क्रू मेंबर्स थे। इसके अलावा 3 एयरफोर्स पायलट, 3 नेवी अधिकारी, 8 नेवी संबंधित कर्मी, 2 कमांडो तथा अन्य आपातकालीन आधार पर जोड़े गए अधिकारी थे।

खोजी अभियान शुरू किया गया। कोस्ट गार्ड ने चेन्नई से 200 नोटीकल माइल की दूरी पर चार जहाज और दो डोर्नियर प्लेन के साथ खोज शुरू कर दी। भारतीय नौसेना तथा वायुसेना ने लापता हवाई जहाज को ढूंढने के लिए प्रयत्न शुरू किए। इस खोजी अभियान के लिए भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अपने 13 बड़े जहाज उतार दिए। नौसेना ने आईएनएस सह्याद्री, डिस्ट्रॉयर आईएनएस राजपूत, रणविजय, कॉर्वेट्स आईएनएस किर्च- कामूक तथा कोरा को भी बंगाल के समंदर में उतार दिया। इसके अलावा आईएनएस शक्ति, ज्योति, आईएनएस घडियाल, आईएनएस सुकन्या जैसे जहाजों को भी इस काम में लगाया गया। पानी के अंदर खोज के लिए तथा संकेत पकड़ने के लिए एक पनडुब्बी को भी खोज अभियान में सहायता के लिए लगाया गया। एयरफोर्स ने पी8-1 हवाई जहाजों को आसमान में भेज दिया। इसके अलावा एयरफोर्स ने डीओ-228, सी-130जे जैसे हवाई जहाजों को भी काम पर लगा दिया। एनडीआरएफ की भी मदद ली गई।

कई दिन गुजरते गए। कोस्ट गार्ड, नौसेना या वायुसेना को इस जहाज के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। कुछेक दिन बाद तत्कालीन रक्षामंत्री ने कहा कि जहाज के साथ कुछ दुखद घटित हो गया हो ऐसी संभावनाएं ज्यादा लग रही हैं। तकरीबन डेढ़ महीना गुजर जाने के बाद भी इस हवाई जहाज के बारे में कोई खबर तक नहीं मिल पाई। कोई नहीं जानता कि इसे आसमान खा गया या समंदर। आखिरकार, सितम्बर 2016 के महीने के मध्यकाल में इस हवाई जहाज के तमाम यात्रियों को मृत मान लिया गया।

संसद भवन की लाइब्रेरी में पहुंचा बंदरआधे घंटे बाद वीवीआईपी गेट से निकला बाहर
देश की सबसे ज्यादा सुरक्षित समझी जाने वाली संसद की सुरक्षा में 28 जुलाई 2016 को बड़ी चूक हो गई। संसद के कामकाज के दौरान ही एक बंदर संसद भवन की लाइब्रेरी में पहुंच गया। उसने वहां तकरीबन 30 मिनट बिताए। बताया गया कि बंदर आधे घंटे तक पत्रकारों और सांसदों के लिए बने रीडिंग रूम में रहा। इसके बाद वह उसके बगल में स्थित गैलरी एरिया में लगे मेजों पर उछलकूद मचाने लगा। इस दौरान वह वहां से निकलने की लगातार कोशिश करता रहा।

गौरतलब है कि बंदरों के आतंक को देखते हुए इससे पहले भी संसद भवन में लंगूरों को छोड़ा गया थालेकिन उस दिन वहां कोई भी लंगूर नहीं था। वहींलाइब्रेरी के कर्मचारियों ने संसद की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों को भी बुलाने का प्रयास किएलेकिन कोई नहीं पहुंचा।

काफी जद्दोजहद के बाद वह मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते हुए कॉरिडोर की हरी कॉरपेट पर चलते हुए बिल्डिंग में वीआईपी के लिए बने मेन गेट से बाहर निकल गया। बताया गया कि इस दौरान सेंट्रल हॉल में कई सांसदमंत्री और पत्रकार मौजूद थे।

रसगुल्ले पर अधिकार की लड़ाई
रसगुल्ला। नाम ही ऐसा कि मुंह से लार निकलने लगे। भारत की विशाल और विविधता से भरी पाक कला का एक अनूठा अंग यानी रसगुल्ला। लेकिन अगस्त 2016 के दौरान उड़ीसा और पश्चिम बंगाल रसगुल्ला के मुद्दे को लेकर एक दूसरे से भीड़ गए। इतने भीड़े कि मामला अदालत तक जा पहुंचा। बंगाल तथा उड़ीसा के बीच रसगुल्ले को लेकर तनातनी अरसे से चल रही थी, लेकिन इस महीने वे न्यायालय तक जा पहुंचे। दरअसल उड़ीसा ने मई 2016 में रसगुल्ला के लिए जीआई (Geographical Indication) के लिए अरजी दायर की और इस बीच बंगाल सरकार कूद पड़ी। पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया कि रसगुल्ला मूलत: उनका उत्पाद है। बंगाल ने भी जीआई टेग की मांग रख दी। वहीं उड़ीसा ने भी कुछ दस्तावेज सामने रखे। उड़ीसा ने दावा किया कि रसगुल्ला का जन्म उनके राज्य में हुआ था। वही बंगाल सरकार ने भी रसगुल्ला उनकी जागीर है इस बात को लेकर ढेर सारे दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश कर दिए। कृष्णदेव के चरितामृत तक का दस्तावेज पेश किया गया। बंगाल ने दावा किया कि रसगुल्ला को सर्वप्रथम बंगाल के नवीनचंद्र दास ने बनाया था। फिलहाल तो कोई फैसला नहीं आया है। पिछले काल में तिरुपति बालाजी के लड्डू, बनारस की सारी, मैसूर का सिल्क, मकराणा के मार्बल या जलगांव के बैंगन भी जीआई टेग हासिल कर चुके हैं। वाकई कमाल है कि कभी कभार न्यायालय को ऐसे फैसले करने की नौबत भी आन पड़ती है। जबकि लाखों मामले और जजों की कमी से न्यायालय जूझ रहा है।

स्कूल बेग को लेकर सातवीं कक्षा के छात्रों ने बुलाया पत्रकार परिषद
छात्र... देश के भविष्य की आधारशीला। साथ ही, देश का इतिहास गवाह है कि छात्रों ने अपने आंदोलनों या आंदोलनों को अपने सह्योग के जरिये कई बार ऐसे काम भी किए हैं, जो इतिहास में दर्ज हुए। वर्तमान समय में छात्रों के स्कूल बेग को लेकर छात्र भी चिंतित रहते है और उनके माता-पिता भी। कभी कभार समाज भी चितिंत हो जाया करता है। लेकिन चिंता करने के अलावा आगे जब कोई कुछ ना कर पाएं तब? महाराष्ट्र के चंद्रपुर की स्कूल के सातवीं कक्षा के दो छात्रों ने तब पत्रकार परिषद बुला लिया। पत्रकार परिषद में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि वे स्कूल बेग के वजन से परेशान हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि इतना भारी बेग उठाकर, घर से पांच किलोमीटर की दूरी तय करके वे परेशान हो चुके हैं। उन्होंने इस चीज़ को लेकर उनके प्रिन्सिपल से शिकायत की, लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया। स्थानिक प्रेस क्लब के मीडियाकर्मी भी थोडी देर सदके में आ गए। इस स्कूल का नाम विद्या निकेतन स्कूल था। पत्रकार परिषद को 12 साल के दो छात्रों ने संबोधित किया। छात्रों ने यह भी बताया कि उन्हें समस्या सुलझ जाएगी ऐसी कोई आश नहीं है। उन्होंने अनशन करने की भी चेतावनी दी।

पार्टी या शादी समारोह में 100 से ज्यादा मेहमानों को बुलाने से पहले पुलिसियां इजाज़त लेनी पड़ेगी?
महाराष्ट्र में तत्कालीन भाजपा सरकार ने महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट-2016 का ड्राफ्ट तैयार किया। ड्राफ्ट के प्रावधानों के मुताबिक शादी, जन्मदिन, पूजा या किसी पारिवारिक कार्यक्रमों में अगर आप के मेहमानों की संख्या 100 से ज्यादा हो जाती है, तब ऐसी स्थिति में आप को पुलिस की इजाज़त लेनी पड़ेगी। आतंरिक सुरक्षा को मजबूत बनाने के उद्देश्य का हवाला दिया गया। पुलिस की इजाज़त के बिना कार्यक्रम आयोजित होता है तब आयोजनकर्ता को 3 साल की जेल तथा 50,000 का जुर्माना होगा। हालांकि आमतौर पर ड्राफ्ट के बाद लोगों से सूचन या शिकायतें मंगाई जाती है। इस ड्राफ्ट में भी यही प्रक्रिया जारी है। ड्राफ्ट के प्रावधानों के तहत 7 सदस्यों की सुरक्षा समिति बनाने की बात की गई है। जिसमें गृहराज्यमंत्री, मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्यसचिव (गृह), डिजीपी, पुलिस कमिश्नर और गुप्तचर विभाग के प्रमुख समाविष्ट होंगे। इस सुरक्षा समिति में प्रतिपक्ष या अन्य लोकप्रतिनिधियों को स्थान नहीं होगा। यह समिति आंतरिक सुरक्षा के लिए मार्गदर्शिका तैयार करेगी। ड्राफ्ट को मान्यता नहीं मिली है, किंतु इसे लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

खाट परिषद में खाट तक लूट कर ले गए लोग, वहीं लोहे की ग्रील लगाकर करना पड़ा समारोह
ये वाक़या 6 सितम्बर, 2016 के दिन का था। इस दिन कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीतिक हेतु एक परिषद का आयोजन किया था। यह परिषद उत्तरप्रदेश में देवरिया इलाके में हुई थी। इसे खाट परिषद नाम दिया गया था, जिसमें सैकड़ों खाट बिछाई गई और उस पर बैठ कर नेताओं ने लोगों के साथ चर्चा की। लेकिन सभा खत्म होते ही खाट के लिए लोगों में बेचेनी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई। इतना ही नहीं, सभा में आये लोगों ने लड्डू और पानी की बोतल तक को नहीं छोड़ा। सभा खत्म होते ही लोगों में खाट को ले जाने को लेकर आपाधापी शुरू हो गई। खाट ले जाने के लिए लोगों के बीच हाथापाई और तू-तू में-में भी होने लगी। सभा में आये पुरुष और महिलाएं, दोनों ने खाट से लेकर पानी के बोतलें तक के लिए जी-जान लगा दी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बुढ़े लोगों को धक्के मार कर युवा खाट छीनते भी नजर आए। दूसरे दिन इस खाट लूट को लेकर अखबारों में खबरें भी छपी। खबरों के साथ साथ खाट ले जाते लोगों की तस्वीरें भी छपी।

उसके कुछ दिनों बाद ही गुजरात के सूरत शहर में केंद्र में सत्ताधीन पार्टी भाजपा की ओर से एक समारोह आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने की थी। यह समारोह गुजरात के पाटीदार नेताओं के सम्मान में रखा गया था। हालांकि समारोह में स्टेज की बनावट खबरों की सुर्खियां बनी। गौरतलब है कि इन्हीं दिनों गुजरात में पाटीदारों ने आरक्षण को लेकर आंदोलन किया था और उसके बाद उनका भाजपा के विरुद्ध गुस्सा सतह पर दिखने लगा था। इसी वजह के चलते समारोह में स्टेज बनाते समय बड़े नेताओं की सुरक्षा के लिए खास इंतज़ाम किए गए थे। हालांकि ये सुरक्षा इंतज़ाम किसी आतंकी हमले के लिए नहीं, बल्कि लोगों की नाराजगी से नेताओं को सुरक्षित रखने के लिए किए गए थे। स्टेज के बिलकुल सामने बड़ी सी लोहे की ग्रील बनाई गई थी, जिससे नाराज लोग चप्पल या अंडे जैसी चीजें फेंक कर विरोध ना करे। लोहे की ग्रील के बाद बांस से एक दीवार भी बनाई गई थी, जिससे लोगों और स्टेज में दूरी बनी रहे। हालांकि समारोह के अंत में लोगों ने वहां रखी गई कुर्सियों के ऊपर अपना गुस्सा निकाला। उत्तरप्रदेश में खाट को लूटा गया था, जबकि यहां कुर्सियां तोड़ कर लोगों ने दोनों समारोह को एकसरीखा बना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

भगवे पहन लिये तो क्या हुआ... पत्नी का खयाल रखना आप की ही जिम्मेदारी है
पहली नजर में ये मामला किसी धर्म के संदर्भ का लगता है। लेकिन असलियत में है नहीं। यह मामला सामाजिक है, जिसमें सामाजिक जिम्मेदारियों से बच कर निकलने वाले एक इंसान को कोर्ट ने कुछ कुछ ऐसा ही कह कर अपना फ़र्ज़ याद दिलाया था। ये मामला गुजरात राज्य का था, जो 2016 में हुआ। दरअसल सुनिल नाम का एक शख्स अपनी बैंक ऑफ हैदराबाद की 11,000 की नौकरी छोड़कर विश्व जाग्रृति मिशन के आनंदधाम आश्रम चला गया। उसने संसार को छोड़ दिया और सन्यास ले लिया। इसके बाद उनकी पत्नी अलका ने कोर्ट में मुआवजे के लिए अपील दायर की। गुजरात हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सुनिल को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी को प्रतिमाह 3,500 रुपये दे। हालांकि सुनिल ने सन्यास की दलील देते हुए इस आदेश के खिलाफ अपील ज़रूर की थी। इतना ही नहीं, उसने अपनी दलील के समर्थन में उस धार्मिक संस्था की ओर से पत्र भी पेश किया, जिसमें लिखा हुआ था कि सुनिल ने अब से अपना जीवन धर्म और सामाजिक कार्यों के लिए अर्पित कर दिया है। हालांकि, न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सुनिल एक स्वस्थ इंसान है तथा उसकी पत्नी के लिए भी उसकी सामाजिक, नैतिक और कानूनी जवाबदेही है और उसे अपनी पत्नी को प्रतिमाह जीवननिर्वाह के लिए रुपये देने पड़ेंगे।

ये वाक़या तथा कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए भी एक तमाचा था, जो जिम्मेदारियों से बचने के लिए ऐसी गलियां पकड़ लेते हैं। तथा ऐसी धार्मिक संस्थाओं को भी स्वयं सोचना होगा कि सामाजिक-नैतिक तथा कानूनी जवाबदेही ही सर्वप्रथम कर्तव्य पालन होता है।

भारतीय व्यवस्थाओं की लाश लेकर चल पड़े दाना मांझी
जन्माष्टमी के दिन आयी इस तस्वीर ने देश को अब जाकर सचमुच झकझोर दिया। उड़ीसा के कालाहांडी से ये खबर आई। इसकी तस्वीरों ने मीडियानागरिकता से लेकर नौकरशाही और सरकारी व्यवस्था को, जो कि पहले से ही कटघरे में खड़े थे, अपराधी घोषित कर दिया। तस्वीरें देख कर लगा कि यह आदमी कंधे पर अपनी बीवी की लाश समेट कर आपके हमारे ड्राइंग रूम में घुस आया है। दाना मांझी अगर अपनी पत्नी की लाश को चादर-चटाई में बांध कर कंधे पर नहीं लादता, तो शायद उड़ीसा राज्य की कोई खबर राष्ट्रीय मीडिया में छायी नहीं रहती। उड़ीसा का दाना मांझी अपनी पत्नी की लाश कंधे पर लाद कर बारह किमी तक पैदल चलता रहा। साथ में उसकी बेटी चलती रही। दाना मांझी अपनी बीमार पत्नी को गांव से साठ किलोमीटर दूर भवानीपटना के सरकारी अस्पताल लेकर आए थे। मांझी की पत्नी अमांग देई को टीबी हो गया था। 24 अगस्त की रात उनकी पत्नी ने दम तोड़ दिया। उसके पास पत्नी को वापस घर ले जाने के लिए पैसे नहीं थे। अस्पताल से मदद मांगी पर किसी ने सुनी नहीं।

कहा गया कि सरकारी व्यवस्थाओं से पहले से परेशान मांझी ने उसके बाद ज्यादा गीड़गीड़ा कर मदद मांगना ज़रूरी नहीं समझा। उसने पत्नी को कंधे पर लाद लिया और अपनी बेटी के साथ पैदल निकल पड़ा। लोगों ने जब देखा कि कोई कंधे पर लाश लिये यूं चला जा रहा है, तो सवदा नामक जगह पर पीतांबर नायक नाम के एक आदमी ने उसे रोका और मदद करने का भरोसा दिया। तभी गांव के कुछ लोगों ने मीडियाकर्मी को फोन कर बताया और कलेक्टर को भी सूचना दी। मीडिया वालों के पहुंचने के घंटे भर के भीतर एंबुलेंस भी पहुंच गया। 6 घंटे तक दाना मांझी अपनी पत्नी की लाश को लादे चल चुके थे।

यहां पर भी कार्रवाई के नाम पर कार्रवाई हुई। हालांकि इस बार कार्रवाई में लापरवाही से इनकार करने के लिए पीड़ित दाना मांझी पर ही आरोप लगाए गए। कालाहांडी की ज़िलाधिकारी ब्रुंडा देवराजन ने कहा कि करीब 2 बजे बिना बताए वह शव को लेकर चले गए, अगर मदद मांगी होती तो हम मदद करते। डीएम ने यह भी कहा कि अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें बताया कि दाना मांझी ने शराब पी रखी थी। अब सवाल ज़िलाधिकारी के गोलमोल जवाब के सामने भी पूछा जा सकता था कि अस्तपाल के कैंपस से बिना किसी प्रमाणपत्र के कोई लाश लेकर कैसे निकल गया? क्या कर्मचारियों ने भी शराब पी रखी थी? मीडिया पर देखकर किसी को नहीं लगता था कि यह शख्स, जो छह घंटे से अपनी पत्नी के शव को लिये जा रहा है वो शराब के नशे में है। क्या उसने शराब के नशे में पत्नी के शव को इस तरह लपेटा होगाबांधा होगाकंधे पर लादा होगा? उसके पास दवा के पैसे नहीं थे। उसके पास दूसरे अस्पताल तक ले जाने के पैसे नहीं थेक्या ये सच्चाई नहीं हो सकती है? उसके साथ उसकी बेटी भी थी। 6 किलोमीटर तक वो व्यवस्थाओं के शव को कंधे पर ढोकर चलता रहा। देखने वालों ने भी यह नहीं कहा कि उसने शराब पी रखी थी।

पक्ष बदलने की अभूतपूर्व घटना, अरुणाचल में मुख्यमंत्री समेत 43 विधायकों ने कांग्रेस को छोड़ा
राजनीति... ये चीज़ ही है ऐसी जिसमें लोग और स्वयं नेता, दोनों चौंक ही जाते हैं। अरुणाचलप्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थायी थी। जुलाई 2016 में ही सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल पर लगाए गए राष्ट्रपति शासन को अवैध करार देकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उसके बाद कांग्रेस फिर से सत्ता पर काबिज हुई थी और पेमा खांडु मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त यह फैसला भाजपा के लिए झटका था। लेकिन सितम्बर 2016 में पेमा खांडु ने अपने दल कांग्रेस को ही झटका दे दिया। 16 सितम्बर के दिन मुख्यमंत्री खांडु और 42 अन्य विधायक, या यूं कहे कि पूरा कैबिनेट, कांग्रेस से निकलकर पीपीए (People's Party of Arunachal) में जुड़ गया। पीपीए तथा केंद्र में सत्ता भुगत रहे एनडीए, दोनों के बीच गठबंधन था। सत्ता का ये खैल देश के नागरिकों के लिए राजनीतिक दलों की नियत का खुला प्रदर्शन था। जनसेवा के लिए ऐसा किया गया हो ऐसी संभावनाएं ढूंढ़नी हो तो शायद मेग्नीफायर ग्लास की आवश्यकता आन पड़ेगी। 1980 के बाद यह पहला ऐसा वाक़या था, जिसमें सामूहिक रूप से दलबदल हुआ हो। 1980 में हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी। उस वक्त हरियाणा के सीएम भजनलाल भी अपने विधायकों के साथ कांग्रेस से जुड़ गए थे।

बिना लाइसेंस पायलट ने उड़ा दिया पैसेंजर से भरा जहाज
बात है ही चौंकानेवाली। खास करके तब, जब दुनिया में पैसेंजर जहाजों के अपहरण का खतरा बना हुआ है। ये घटना दिल्ली की है। जेट एयरवेज के एक जहाज में कमांडर रेंज कॉकपिट में एक शख्स बिना इजाज़त घुस भी गया। इतना ही नहीं, उसने बिना लाइसेंस के जहाज उड़ा भी लिया। ये शख्स दिल्ली-बेंग्लुरु तथा बेंग्लुरु-दिल्ली की फ्लाइट में दो दो बार देखने के लिए मिला। इस पायलट ने न केवल जहाज उड़ाया, साथ ही उसके तमाम रिकॉर्डस भी नष्ट कर दिए। कहा गया कि इस घटना से संबंधित कोई भी रिकॉर्ड नहीं है। इस आदमी ने दो दो बार कॉकपिट में सेंध लगा दी थी। सोचिए, कोई शख्स दो दो बार कॉकपिट में घुस जाता है, बिना लाइसेंस जहाज भी उड़ा लेता है और आराम से सारे रिकॉर्डस नष्ट भी कर देता है। आतंक का खतरा झेल रहे भारत के लिए ऐसी घटना वाकई Shocking and Unbelievable टाइप की है। 

एलियन्स का हमला हुआ तो कैसे बचाएगी सरकार? – आरटीआई में पूछा गया था यह सवाल
आरटीआई भारत के इतिहास के अंदर लोकशाही को सुद्दढ करने की ओर लिया गया ऐतिहासिक कदम माना जाता है। आरटीआई के जरिये ही कई सारे मामले व घोटाले उजागर हुए थे। लेकिन सन 2016 में आरटीआई के जरिये सरकार से अजीब और टफ सवाल पूछा गया। तत्कालीन गृहराज्यमंत्री किरण रिजिजू ने अपने ट्विटर पर ऐसी ही एक आरटीआई की अर्जी को शेयर किया। पूछा गया था कि अगर देश के ऊपर परग्रहवासी (Aliens) हमला कर देते हैं तब स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार की तैयारियां क्या हैं? सरकार ने इस विषय में कौन सी योजना बनाई हुई है? इस योजना की सफल होने की संभावना कितनी है? एलियन्स को पराजित करने के लिए हमारे पास कौन से साधन हैं? क्या युद्ध में हम मैन इन ब्लैक के हीरो विल स्मिथ के बगैर जीत सकते हैं? सरकार ने इस आरटीआई का क्या उत्तर दिया था- यह जानकारी नहीं है। लेकिन, पूछे गए... या यूं कहे कि दागे गए सवालों को अपने अपने तरीके से सोचा जा सकता है।  

एग्जाम में दागा गया एक सवाल  कोहली की गर्लफ्रेंड का नाम क्या है?
वैसे ये एग्जाम किसी भर्ती को लेकर होता, तब भी मामला Shocking and Unbelievable न्यूज़ के दायरे से बाहर रहता। ये सोचकर कि वहां ऐसे सामान्य ज्ञान ज़रूरी माने जाते होंगे! लेकिन एग्जाम 9वीं कक्षा का था। अक्टूबर 2016 के दौरान थाणे के भिवंडी के एक स्कूल में पीटी विषय के क्वेश्चन पेपर में यह सवाल किसी महानुभाव ने दाग दिया। सवाल पूछा गया कि क्रिकेटर विराट कोहली की गर्लफ्रेंड का नाम क्या हैसवाल पूछा नहीं बल्कि दागा गया। दागने वाले भी महान ही होंगे कि उन्होंने एक ही सवाल में क्रिकेट और बॉलीवुड का मिश्रण कर लेना चाहा। सवाल के नीचे विकल्प दिए गए थे  प्रियंका, अनुष्का या दीपिका। शायद 9वीं कक्षा के छात्रों को क्रिकेटरों के मैदान के बाहर के खेल भी देखने होंगे। क्योंकि महानुभाव कोई भी सवाल दाग दिया करते हैं।

भारतीय राजनीति में सरकारी प्रक्रिया ऐसे भी हो जाया करती है
अक्टूबर 2016 का दौर था। तमिलनाडु की तत्कालीन सीएम जयललिता बीमार थी और तकरीबन 3 सप्ताह से अस्पताल में थी। वैसे इनके मेडीकल बुलेटिन और उनकी स्थिति की जानकारी टॉप सीक्रेट रखी जा रही थी। इतनी टॉप सीक्रेट व्यवस्था अगर उस पंडुबी में रखी जाती तो खुफिया जानकारियां लीक नहीं होती। खैर, लेकिन इस बीच तमिलनाडु सरकार की कैबिनेट बैठक हुई। इस बैठक में नेताभक्ति और चापलूसी की वो हदें देखने के लिए मिली जो वाकई अजीब सी थी। अजीब इसलिए कि चापलूसी और भक्ति की ये हदें आमतौर पर सभाओं या अन्य जगहों पर देखने के लिए मिलती हैं, लेकिन ये तो कैबिनेट बैठक में देखने के लिए मिली। जयललिता की कुर्सी खाली रखी गई और कुर्सी के सामने टेबल के ऊपर उनकी तस्वीर रखी गई। जयललिता के पीछे उनके समर्थक दीवाने तो हैं ही, यहां मंत्री भी दीवानेपन की हदें पार करते नजर आए।

साल के आख़िरी दिनों में विधायकजी ने लगाई मिल्खा दौड़
जगह थी त्रिपुरा विधानसभा। दिन था 20 दिसंबर। साल के आखिरी दिनों में विधायकजी ने ऐसा नजारा पेश किया, लगा कि विधानसभा में वो मिल्खा सिंह बने दौड़ रहे हैं। वैसे इन दिनों नेताओं और नागरिकों के बीच नियमों के भेदभाव की चर्चा सोशल मीडिया में जोरों पर थी। हमारे यहां सड़क पर लाल सिग्नल तोड़ने वाले आम नागरिक और विधानसभा या लोकसभा में देश की संपत्ति तोड़ने वाले खास नेताओं के बीच नियमों का अंतर धरती से मंगल ग्रह तक की दूरी वाला अंतर लगता है।

टीएमसी के सांसद सुदीप रॉय बर्मन त्रिपुरा के वन व ग्रामीण विकास मंत्री नरेश जमातिया पर लगे कथित महिला अपराध के मामले में चर्चा की मांग कर रहे थे। उन्हें चर्चा की मंजूरी नहीं मिली। चर्चा की मांग कर रहे विधायकजी की भावना नाम की भावना अचानक ओलंपिक रेस की तरह दौड़ने लगी। स्वयं विधायकजी विधानसभा स्पीकर के मेज तक जा धमके। आमतौर पर आलसी स्वभाव की छवि वाले हमारे ये नेता इतनी स्फूर्ति से मेज के आगे रखी मेस (सिम्बल ऑफ अथॉरिटी यानी छड़ी) पर झपट पड़े कि कुछ पल तक किसी को पता नहीं चला कि हो क्या रहा है। तेजी से विधायकजी मेस पर झपटे और मेस लेकर विधानसभा में दौड़ने लगे। पीछे सफेद कपड़े वाले कर्मी भाग रहे थे। ये दृश्य टेलीविजन पर आया और साल के आखिरी दिनों में एक और शर्मसार करने वाला नजारा पेश कर गया। मेस लेकर इधर उधर भागते विधायकजी, उनके पीछे भाग रहे विधानसभा कर्मी, एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे की तलाश में भटक रहे विधायकजी आलसी छवि को गाड़कर तेजी से दरवाजा लांध कर निकल गए। कहते हैं कि बाद में उन्होंने मेस लौटाया, लेकिन स्फूर्ति के टेस्ट में मेरिट के साथ पास हो गए। रही बात शर्मसार होने की, वो नागरिकों के जिम्में होता है। वैसे इस मेस को दंड भी कहा जाता है। विधायकजी ने सोचा होगा कि दंड ही छीन लिया जाए, ताकि दंड भी ना मिले और मंजूरी ना मिलने का दंड भी दे दिया जाए!

(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 21 दिसंबर 2016, एम वाला)