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Bye Bye 2018 : वही मंजर, जो याद दिलाते रहते हैं कि साल बदलेंगे, व्यवस्थाएं रहेगी जस की तस


2018 का यह साल सिद्धियां लेकर आया, नयी नीतियां लेकर आया, नये दौर लेकर आया, लेकिन अजीब था कि पुरानी सिद्धियां, पुरानी नीतियां और पुराना दौर बिल्कुल नहीं बदला। अब इसमें पुरानी सिद्धियां, नीतियां या दौर... इन लफ्जों को मैट्रिक पास आदमी भी समझ सकता है। कहते हैं कि हकारात्मक सोच के साथ नये साल को गले लगाना चाहिए। इस लिहाज से ये नकारात्मक लेखन लग सकता है, लेकिन फिर नये साल में यही सुविचार लटके मिलते हैं कि अपनी गलतियों को ठीक करके आगे चलने से मंजिल मिलती है वगैरह वगैरह...। लिहाजा गलतियों को याद रखना ज़रूरी है, ताकि सुधारने का मौका मिले। वर्ना कल को इतने ज्यादा हकारात्मक हो जाएंगे कि लगेगा कि गलतियां है ही नहीं तो सुधारने की ज़रूरत ही क्या!!!

जेट एयरवेज के कॉकपिट में ही पायलट दंपत्ति का झगड़ा हो गया, पारिवारिक विवाद ने 300 से ज्यादा मुसाफ़िरों की जिंदगी दांव पर लगा दी
कहा जाता है कि संसार शुरू किया हो तो फिर बर्तन की आवाज तो आती ही है। लेकिन ये आवाज रसोई से आनी चाहिए, ना कि कॉकपिट से! 3 जनवरी 2018 के दिन पति-पत्नी का व्यक्तिगत झगड़ा इस कदर बढ़ गया कि एक वक्त 300 से ज्यादा मुसाफ़िरों की जिंदगियां दांव पर लग गई थी। लंदन से मुंबई आ रही जेट एयरवेज की फ्लाइट (9 डब्ल्यू 119) में कॉकपिट के भीतर ही पायलट एक दूसरे से भिड़ गए। दोनों पति-पत्नी थे। कॉकपिट के भीतर ही दोनों के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई। दावे के मुताबिक दोनों थप्पड़बाजी तक जा पहुंचे थे! कुछेक मुसाफ़िर तथा क्रू सदस्य बीच-बचाव करने आये तब जाकर मामला शांत हुआ। कंपनी ने दोनों पायलट को फ्लाइंग सर्विस से हटा दिया। गनीमत थी कि बीच-बचाव से बर्तन शांत हुए और कइयों का बचाव हो गया। कहते हैं न कि ज़रूरी नहीं की उड़न तश्तरी आसमान के पार से ही आए, कभी कभी रसोईघर से भी आ सकती है। लेकिन कॉकपिट से आए तो कइयों के संसार की उड़न तश्तरी क्रैश हो सकती थी।

लालू यादव से जुड़े मामले में दस्तखत करने के लिए ही जज को इस्तेमाल करने पड़े 4 पेन
चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार मामले में लालू प्रसाद यादव को 23 दिसम्बर 2017 के दिन दोषी करार दिया जा चुका था। 6 जनवरी 2018 के दिन देवघर कोषागार मामले में लालू यादव को साढ़े तीन साल की सज़ा सुनाई गई। सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने दो मामलों में लालू यादव को 5-5 लाख का जुर्माना भी किया। मीडिया रिपोर्ट की माने तो सीबीआई जज शिवपाल सिंह ने 2,400 पेज वाली फाइल में दस्तखत किये और इसके लिए 4 पेन इस्तेमाल करने पड़े थे। ऐसा नहीं है कि 4 अलग-अलग पेन इस्तेमाल किये गये हो, बल्कि एक के बाद एक पेन की स्याही खत्म होती गई और इन्हें कुल मिलाकर 4 पेन इस्तेमाल करने पड़ गए थे!!!

आम कैदियों की तरह ट्रीट किए जाने पर लालू नाराजजज से की शिकायत, जज ने भी दिए थे मजेदार उत्तर
वैसे कई सारी जगहों पर सुना और पढ़ा है कि कानून सबके लिए एक समान होता है। फैसले के वक्त ऊंच-नीच नहीं देखा जाता। लेकिन जितनी जगहों पर ये एक समान वाली बात सुनी व पढ़ी है, उन सारी जगहों पर यह भी सुना व पढ़ा है कि जेल में बंद नेता, सेलिब्रिटी या उद्योगपति को खास सहूलियते दी गई, गद्दा दिया गया, घर का खाना मिला, टीवी मिला, कूलर मिला... वगैरह वगैरह…!!! लेकिन आम कैदी को ये सब नसीब होते हुए नहीं देखा। कमाल है कि फिर भी हमें ये मानना-पढ़ना और सुनना पड़ता है कि कानून सबके लिए समान होता है!!! शायद कानून या सज़ा समान होती होगी, लेकिन उसे भुगतना असमान बनाया गया होगा!!!

चारा घोटाला मामले में सलाखों के पीछे पहुंचे आरजेडी चीफ लालू यादव ने सुनवाई के दौरान सीबीआई कोर्ट से कई शिकायतें की। उन्होंने खुद को एक बड़ा नेता याद बताते हुए कोर्ट से कहा कि, उनके साथ सामान्य कैदी की तरह व्यवहार किया गया। कोर्ट ने इसके जवाब में लालू से कहा कि, नियम सभी के लिए बराबर होते हैं फिर चाहे वो कोई भी हो। इस दौरान लालू ने शिकायत करते हुए कहा कि, उनके जानकारों से जेल परिसर मिलने नहीं दे रहा है। इस पर जज ने कहा कि, जेल के नियमों का पालन करना पड़ेगा। वहीं लालू ने जब सजा साढ़े तीन साल से ढाई साल करने की कही तो जज ने कहा कि, “वे ऐसा क्यों करें?” जज ने कहा कि, ऐसी बातें कोर्ट में न करें।

10 जनवरी 2018 को लालू ने कोर्ट में एक और दलील देते हुए कहा कि, मकर संक्रांति महोत्सव रविवार को है। हम इसे दही-चूड़ा खाकर धूम-धाम तरीके से मनाते हैं। इसी वजह से उन्हें समर्थकों से मिलने दिया जाए। मगर जज ने उनकी इस बात को नजरअंदाज करते हुए एक फिकी मुस्कान देते हुए कहा कि, वो इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें जेल में दही-चूड़ा मिल जाए।

ओल्ड एज होम में दिन काट रहे चुनाव आयोग को दबंग बनाने वाले टीएन शेषन
जनवरी 2018 के दौरान टीएन शेषन को लेकर यह चौंकानेवाली खबर आई। टीएन शेषन, यह वही नाम है जिससे आज भी राजनीतिक दलों के नेता ख़ौफ़ खाते हैं। लेकिन हमारे यहां इतिहास में बिजी रहनेवाले लोग ताज़ा इतिहास बदलने वालों को कम ही याद करते हैं। टीएन शेषन सरीखी शख्सियत का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा। जनवरी 2018 के दौरान उनके बारे में एक खबर आई कि चुनावी प्रक्रिया में एक अहम बदलाव लाने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन 85 वर्ष की उम्र में ओल्ड एज होम में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं।

शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान चुनाव में पारदर्शिता लाने के लिए कई अहम कदम उठाए थे। शेषन के कार्य को पहली बार सराहना तब मिली थी जब उन्होंने बिहार में पहली बार निष्पक्ष चुनाव करवाए थे। यह चुनाव शेषन के लिए एक चुनौती था। इससे पहले बिहार में हुए चुनावों में बूथ कैप्चरिंगहिंसा और गड़बड़ी के मसले आम थेलेकिन शेषन ने बिहार में चुनावी प्रक्रिया में बदलाव लाकर अपनी समझदारी का परिचय दे दिया था। शेषन ने यहांं निष्पक्ष चुनाव के लिए पहली बार चरणों में वोटिंग कराने की परंपरा शुरू की।

उन्होंने बतौर मुख्य चुनाव आयुक्त पूरे चुनावी सिस्टम के ढांचे को ही बदल कर रख दिया था। जिसकी मिसाल लोग आज भी देते नहीं थकते। लेकिन इस बदलाव के पीछे की शख्सियत आज अपना बुढ़ापा चेन्नई में अपने घर से 50 किलोमीटर दूर एक ओल्ड एज होम में गुजार रही थी, और इधर देश सदियों पुराने झगड़ों में बिजी था। एक अखबार की मानें तो शेषन को भूलने की बीमारी हो गई थी, जिसके चलते उन्हें एसएसम रेजिडेंसी में शिफ्ट करवा दिया गया था। तीन साल बाद सामान्य होने के बाद अपने फ्लैट में रहने आ गए थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अभी भी वह कई दिनों के लिए ओल्ड एज होम चले जाते थे।

लालू को सज़ा सुनाने वाले जज खुद इंसाफ न मिलने से परेशान!!!
चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार मामले में लालू प्रसाद यादव को 23 दिसम्बर 2017 के दिन दोषी करार दिया गया था। 6 जनवरी 2018 के दिन लालू यादव को साढ़े तीन साल की सज़ा सुनाई गई थी। उन्हें दोषी करार देने वाले तथा सज़ा सुनाने वाले जज का नाम था शिवपाल सिंह। जज शिवपाल सिंह जालौन के शेखपुर खुर्द के निवासी हैं। लेकिन इनके बारे में एक ऐसी खबर छपी, लगा कि इंसाफ के देवता को ही इंसाफ नसीब नहीं होता इस देश में। दावे के मुताबिक रांची सीबीआई की विशेष अदालत के जज शिवपाल सालों पुराने मामले में न्याय के लिए तरस रहे थे। जज और उनका परिवार कई साल पुराने मामले में न्याय पाने के लिए काफी प्रयास कर रहे थे, लेकिन उनके सारे प्रयास मिट्टी में मिलते ही दिख रहे थे। शिवपाल सिंह अपनी पैतृक जमीन के बीच से चक रोड निकल जाने से काफी परेशान बताए गए। दावे के मुताबिक इसके लिए वह कई बार अधिकारियों के टेबल का चक्कर लगा चुके थे, लेकिन उनकी गुहार की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा था। अधिकारियों की उदासीनता के कारण शिवपाल सिंह और उनका परिवार काफी परेशान बताए गए। दरअसल, यह मामला साल 2006 का था। शिवपाल के भाई सुरेंद्र पाल सिंह का कहना था कि पूर्व प्रधान ने अपने कार्यकाल के दौरान बिना किसी अधिकार के उनकी जमीन पर चक रोड निकाल दी थी। तभी से ही शिवपाल और उनका परिवार सरकारी कचहरियों के चक्कर काट रहा है। 

पश्चिम बंगाल में शादी के लिए दूल्हे की शर्त- सोशल मीडिया की आदत ना हो ऐसी दुल्हन चाहिए!!!
आये दिन हम सोशल मीडिया में जोक्स पढ़ते हैं, जिसमें वाट्सएप या फेसबुक-ट्विटर वगैरह को लेकर कुछ ऐसे ही चुटकुले सुनाए जाते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में एक दूल्हे ने इस चुटकुले को सही में लागू कर दिया। जनवरी 2018 के दूसरे सप्ताह के दौरान एक लड़के ने शादी के लिए इश्तेहार अख़बार में छपवाया। लेकिन इश्तेहार का अंदाज ही कुछ ऐसा था कि प्रिंट मीडिया का ये इश्तेहार सोशल मीडिया की सुर्खियां बन गया। लड़के ने शादी के लिए इश्तेहार छपवाया, जिसमें शर्त रखी कि ऐसी लड़की चाहिए जिसे सोशल मीडिया की आदत ना हो। लड़के ने इश्तेहार में लड़की की उम्र, लड़की की शिक्षा आदि शर्तों के साथ यह भी छपवाया था कि लड़की को फेसबुक, वाट्सएप जैसी सोशल मीडिया की आदतें नहीं होनी चाहिए।

विदेशी शोधकर्ताओं का खुलासाः 500 सड़कों के निर्माण के लिए भुगतान हुआलेकिन वे बनी ही नहीं…!!!
अमेरिका और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने भारत सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) में भ्रष्टाचार को उजागर किया। उनके अनुसार इस योजना में जिन 500 सड़कों को बनाने के लिए भुगतान किया जा चुका है उनका निर्माण ही नहीं हुआ था!!! देश के दूरदराज के इलाकों को शेष भाग से जोड़ने के लिए शुरू की गई इस योजना के बारे में यह खुलासा अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और फ्रांस के पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं ने किया। उनका यह शोध जर्नल ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में प्रकाशित हुआ, जिसके बारे में जनवरी 2018 के दूसरे सप्ताह में भारत में खबरें छपी।

इस शोध का नेतृत्व कर रहे प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जैकब एन शेपिरो ने कहा कि, इस योजना में भ्रष्टाचार के कारण 8 लाख 57 हज़ार ग्रामीण प्रभावित हुए जिनके लिए वे सड़कें बनाई जानी थी। वर्ष 2000 में शुरू की गई इस योजना के तहत देशभर के 3 लाख गांवों को हर मौसम में काम आने वाली सड़कों से जोड़ा जाना था। शोधकर्ताओं ने इस योजना में भ्रष्टाचार पर हैरानी जताई, क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हर संभव उपाय किए गए थे।

पीएमजीएसवाई में भ्रष्टाचार के सबूत जुटाने के लिए शेपिरो और उनकी टीम ने विधानसभा चुनावों में जीते उम्मीदवारों से संबंधित आंकड़ों को खंगाला। उन्होंने पता लगाया कि नए विधायक के चुने जाने के बाद इस योजना के तहत कितनी सड़कों के ठेके उस जनप्रतिनिधि के सरनेम वाले ठेकेदारों को स्थानांतरित किए गए। नतीजा काफी चौंकाने वाला था। मालूम हुआ कि चुनाव के बाद नवनिर्वाचित विधायकों के सरनेम वाले ठेकेदारों की संख्या 75 फीसदी से ज्यादा हो गई थी। जबकि चुनाव से पहले उनकी संख्या 4 से 7 फीसदी तक थी।

शोधकर्ताओं ने ठेकेदारों के बाद इस योजना के तहत बनाई गई 90 हज़ार सड़कों से संबंधित आंकड़ों की जांच की। उन्हें पता चला कि जिन सड़कों का कभी निर्माण ही नहीं हुआउनमें से ज्यादातर ठेके राजनीतिक दबदबा रखने वाले ठेकेदारों को दिए गए थे। हालांकि इस योजना में सड़कों और ठेकेदारों के चयन में स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कोई भूमिका नहीं थी। ये सारे निर्णय नौकरशाही को लेने थे। ऐसे में सवाल उठा कि भ्रष्टाचार कैसे हुआइसके जवाब में शोधकर्ताओं का कहना था कि, भारत में जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों में जातीय और क्षेत्रीय पहचान के आधार पर नजदीकी संबंध कायम हो जाते हैं। इन्ही संबंधों का फायदा उठाकर जनप्रतिनिधियों ने अपने खास लोगों को ये ठेके दिलवाने में अहम भूमिका निभाई। शोधकर्ताओं के अनुसार चुनाव जीतने वाले राजनेता और नौकरशाह का सरनेम एक होने पर योजना में भ्रष्टाचार की संभावना ज्यादा पाई गई।

जब सर्वोच्च न्यायायल के ही चार जजों ने प्रेस वार्ता आयोजित करके सीजेआई को ही कटघरे में खड़ा किया
12 जनवरी 2018 के दिन आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में एक दिन वो भी रहा, जब सरकार, मीडिया से लेकर देश का नागरिक तक सकते में आ गया था। इस दिन सुप्रीम कोर्ट के 4 प्रमुख और वरिष्ठ जजों ने एक प्रेसवार्ता आयोजित कर सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर मनमानी करने का आरोप लगाया। 12 जनवरी 2018 के दिन सुप्रीम कोर्ट से जुड़े घटनाक्रम ने पूरे देश को हैरान कर दिया था। यह ऐसी घटना थी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज देश के इतिहास में पहली बार मीडिया के सामने आए और कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है, यदि संस्था को ठीक नहीं किया गया तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद वरिष्ठ जस्टिस जे. चेलमेश्‍वर ने जस्टिस रंजन गोगोईजस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ मीडिया से कहा कि, हम चारों मीडिया का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। किसी भी देश के कानून के इतिहास में यह बहुत बड़ा दिनअभूतपूर्व घटना है, क्‍योंकि हमें यह ब्रीफिंग करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्‍होंने कहा कि, हमने यह प्रेस कॉन्‍फ्रेंस इसलिए की, ताकि हमें कोई यह न कह सके कि हमने आत्मा को बेच दिया है।

आजाद हिंदुस्तान की इस एकमात्र घटना के बाद संस्थान के भीतर कितना कुछ हुआ या बदला ये सचमुच कोई नहीं जानता। बात देश के सर्वोच्च संस्थान की थी, लिहाजा सारी चीजें खुलकर सामने आती ये मुमकिन नहीं था। लेकिन सेवानिवृत्त होने के बाद दिसम्बर 2018 में इनमें से एक जज ने यह दोबारा कहा कि तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा पर किसी का दबाव ज़रूर था और वे निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर पा रहे थे। एक तरीके से उन्होंने यह तक कह डाला कि पूर्व सीजेआई रिमोट कंट्रोल से चल रहे थे। बताइए, एक ताज़ा जमाना था जब रिमोट कंट्रोल से चलने वाला पीएम हुआ करता था, अब नया जमाना है जब रिमोट कंट्रोल कही और इस्तेमाल होता है। कंट्रोल और रिमोट कंट्रोल... इस सबका उपाय है ट्रोल। तभी तो कई मुद्दे पिछड़ जाते हैं।

मध्यप्रदेश सरकार से नाराज परिवार ने शादी के कार्ड पर छपवाया- हमारी भूल कमल का फूल
राज्य सरकारें हो या केंद्र सरकारें होलोग अपनी अपनी वजहों से सरकारों से सदैव नाराज रहते हैं। लेकिन कभी कभी अपनी नाराजगी जताने के लिए गजब के प्रयोग भी कर जाते हैताकि उनकी नाराजगी खबरों में अपनी जगह बना पाएं या फिर उनकी समस्या मीडिया के जरिये सरकार या समाज तक पहुंचे। मध्यप्रदेश के सागर जिले में एक परिवार ने राज्य सरकार का विरोध कुछ कुछ ऐसे तरीके से किया कि नाराजगी अख़बार की सुर्खियां बन गई। परिवार ने अपनी बेटी की शादी का कार्ड छपवाया तो उसमें 'हमारी भूल कमल का फूललिखवाकर अनोखा विरोध जताया। वैसे इससे पहले भी गुजरात के व्यापारियों ने इस पंचलाइन का प्रयोग कर बीजेपी का विरोध किया था। 26 फरवरी 2018 को सागर में देवरी तहसील के राजेन्द्र की बिटिया रागिनी की शादी थी। शादी के लिए खेत गिरवी रखने की नौबत आ गई क्योंकि बेटा अनुराग जैन जो 2010 में स्वास्थ्य विभाग में संविदा पर नियुक्त हुआ थाउसके साथ करीब 473 कर्मचारियों को सरकार ने नौकरी से निकाल दिया था।

अनुराग की मां अनीता ने कहा, “हमारा लड़का 7 साल पहले नौकरी करता थाजून में सेवा खत्म कर दीघर में आय का कोई साधन नहीं है। हमने खेती गिरवी रखी हैलोन लेने सोमवार को निकल जाएंगेसाल में बेटा 50 बार भोपाल गयाकितने लोगों से उधार लिया। हमने ज़िंदगी में एक ही गलती की कि बीजेपी को वोट दिया। वहीं अनुराग ने कहा कि अभी हमने कार्ड पर छपवाया हैआगे बच्चों के स्कूल ड्रेस मेंफिर घर के बाहर बैनर भी लगवाएंगे। सरकार नौजवानों को नौकरी देने की बात कह रही है लेकिन हक़ीक़त में उनसे नौकरी छीनी जा रही है। 

शादी का ये कार्ड सुर्खियों में छाया रहा। स्वाभाविक था कि विरोधी दलों के लिए ये मौका था। कांग्रेस ने इसे अपने राजनीतिक तरीके से प्रस्तुत कियावहीं सत्तादल भाजपा ने सरकारी कर्मियों की कार्यशैली व उनकी गंभीरता पर ही सवाल उठाए। अब हालात जो भी होराजनीति एक अलग विषय हैलेकिन सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जताने के या अजीब तरीका चर्चा में ज़रूर रहा था।

देश की राजधानी में भुखमरी से तीन बच्चियों की मौत
डिजिटल इंडिया का यह क्रिटिकल रूप ही कह लीजिए। अपनी पत्नी की लाश कंधों पर ढो कर चलने वाला दाना मांझी यादों में ताज़ा होगा। लेकिन अबके साल देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसी घटना हुई, जो शर्म से सिर झुका गई। राजधानी दिल्ली के मंडावली में जुलाई महीने में तीन मासूम बच्चियों की भुखमरी के कारण मौत हो गई। तीनों ही बच्चियां सगी बहनें थीं और उन्हें कई दिनों से खाना नहीं मिला था। तीनों बहनों की विसरा रिपोर्ट के मुताबिक शरीर में कोई ज़हर नहीं मिला। तीनों बहनों के दो पोस्टमार्टम भी हुए। शुरुआत में प्रशासन और सरकार ने भुखमरी से मौत का तर्क खारिज किया, लेकिन बाद में इसकी पुष्टि हो गई।

आठ साल की मानसीचार साल की शिखा और दो साल की पारुल का शव मंडावली में एक कमरे से बरामद हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि तीनों की मौत 25 जुलाई को तड़के हुई थी और मौत की वजह थी कुपोषण। बच्चियों के शव के पोस्टमार्टम में खाने का एक भी अंश नहीं मिला। डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें सात-आठ दिन से खाना नहीं मिला था। उन्हें खाना क्यों नहीं मिला इसको लेकर विवाद होते रहे। उनकी माँ की हालत मानसिक रूप से अस्थिर बताई गई। लेकिन स्थिर सच तो यही था कि राजधानी दिल्ली में तीन बच्चियों ने भुखमरी से अपनी जिंदगी गंवा दी थी।

टुंडे कबाब तो सिर्फ लखनऊ का ही है - हाईकोर्ट ने की टिप्पणी
असली टुंडे कबाब वही है जो पुराने लखनऊ में 1905 से बेचे जा रहे हैं, इन्हें हाजी मुराद अली टुंडे ने बनाना शुरू किया था। यह बात दिल्ली हाईकोर्ट में भी आखिरकार साबित हो गई। लखनऊ की पहचान बन चुके टुंडे कबाब को नई दिल्ली में फ्रेंचाइजी के जरिए होटलों में इसी नाम से बेचा जा रहा थाजिसके खिलाफ मोहम्मद उस्मान ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने उस्मान के हक में निर्णय दिया।

उस्मान द्वारा यह याचिका 2014 में दिल्ली के जिस फूड चेन के खिलाफ दायर की गई थीउसके मालिक मोहम्मद मुस्लिम की ओर से फ्रेंचाइजी कारोबार के तहत होटलों को लखनऊ टुंडे कबाब नाम उपयोग करने दिया जा रहा था। याचिका में उस्मान का कहना था कि 110 साल से अधिक समय से लखनऊ में टुंडे कबाब की दुकान चल रही है। यहां उनका विशिष्ट व्यंजन गलावटी कबाब बेचा जाता है। लेकिन हाल के समय में कबाब बेचने के लिए टुंडे नाम का उपयोग जगह-जगह किया जा रहा हैइसकी वजह से असली टुंडे की पहचान और नाम को नुकसान हो रहा है।

उस्मान ने हाईकोर्ट में बताया कि हाजी मुराद अली का एक हाथ नहीं था। उन्होंने 1905 में पुराने लखनऊ के गोल दरवाजा गली में कबाब की दुकान शुरू की। उन्हें इस विशिष्ट कबाब के लिए लखनऊ के नवाब द्वारा संरक्षण दिया गया। उनकी वजह से ही टुंडे कबाब’ नाम लोकप्रिय हुआ। इसकी रेसिपी किसी को आज तक जाहिर नहीं की गई है। उस्मान का कहना था कि 1995 में इसे ट्रेडमार्क बनाकर लखनऊ में उनके पिता हाजी रईस अहमद ने अमीनाबाद में दुकान शुरू की थी।

दूसरी ओर मोहम्मद मुस्लिम का दावा था कि हाजी मुराद अली उनके परनाना थे। इसी वजह से वे यह नाम उपयोग कर रहे हैं। हाजी मुराद की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने भाई की बेटी को गोद लिया था। इस बेटी का विवाह मोहम्मद हनीफ से हुआ जो मोहम्मद मुस्लिम के पिता थे।

सभी पक्षों और साक्ष्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि मोहम्मद मुस्लिम के पक्ष को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं हैं। उनका टुंडे कबाब या टुंडे कबाबी नाम पर क्या अधिकार हैयह वे साबित नहीं कर पाए हैं। वे जो ट्रेडमार्क उपयोग कर रहे हैंवह मोहम्मद उस्मान द्वारा उपयोग किए जा रहे ट्रेडमार्क से मिलता जुलता है। ऐसे में इसे कानून का उल्लंघन करार दिया जाता है। उनके पास इसे उपयोग करने का अधिकार नहीं है। मोहम्मद उस्मान की याचिका स्वीकार की जाती है।

जब उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू की चप्पलें हो गई गायब
आम लोगों की चप्पलें कभी ना कभी और कहीं ना कहीं चोरी हो जाती हैं। यह एक आम सी बात है। लेकिन क्या हो जब किसी खास को इस तरह की परिस्थिति से गुजरना पड़े। हुआ कुछ यूं कि उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू भाजपा सांसद पीसी मोहन के बेंगलुरु वाले घर में 19 जनवरी 2018 को नाश्ते पर मीटिंग करने के लिए पहुंचे थे और वहीं उनकी चप्पलें चोरी हो गई। इसकी वजह से उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ा।

सांसद के घर के भीतर जाने से पहले नायडू ने चप्पलें बाहर उतार दी थीं। जब वह वापस आए तो उनकी चप्पलें गायब हो चुकी थीं। सांसद के घर हुई मीटिंग में उन्होंने एक घंटा बिताया। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा, कर्नाटक के विधायक सीटी रवि और जगदीश शेट्टार मौजूद थे। मीटिंग खत्म होने के बाद जब वेंकैया बाहर आए तो उन्हें चप्पलें नहीं मिली। मौके पर मौजूद स्टाफ कर्मचारियों ने उप-राष्ट्रपति की चप्पलें ढूंढने की काफी कोशिशें कीं लेकिन सभी इसमें नाकाम रहे। जिसके बाद पास के शोरुम से उनके लिए नई चप्पलें खरीदकर लाई गई। इससे पहले सदन में नायडू ने बताया था कि कैसे वो एक कंपनी के विज्ञापन की वजह से धोखाधड़ी का शिकार हो गए थे।

केंद्रीय मंत्री ने डार्विन की थ्योरी को बताया गलतकहा- इंसान बंदर नहीं थे
हमारे नेता यह याद नहीं रखते कि वो नेता है। इसी कड़ी में जनवरी 2018 के मध्यकाल में केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने दावा कर दिया कि, मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है। उन्होंने स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में इसमें बदलाव की भी हिमायत की!!! मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री के मुताबिक, हमारे पूर्वजों ने कहीं भी लिखित रूप से या मौखिक तौर पर यह ज़िक्र नहीं किया है कि उन्होंने किसी बंदर को मानव में बदलते देखा। जब से धरती पर मानव को देखा गया, वह हमेशा से ही मानव था। आईपीएस से राजनेता बने सत्यपाल सिंह अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन में हिस्सा लेने यहां पहुंचे थे। उन्होंने कहा, हमने जो भी किताबें पढ़ी हैं या अपने दादा-नाना से कहानियां सुनी हैंउनमें कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है।” 

मंत्री तो मंत्री, मुख्यमंत्री ने भी गजब कर दिया, हनुमानजी को भी नहीं छोड़ा योगीजी ने, फिर तो दूसरे मंत्री भी बुद्धि-प्रदर्शन में हिस्सा लेते नजर आए
सत्तादल के नेता या मंत्री तक तो ठीक है, लेकिन योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नाम ने भी भगवान को नहीं छोड़ा। दिसम्बर 2018 के दौर में पांच राज्यों के चुनावी प्रचार के दौरान इन्होंने भगवान हनुमानजी की जाति ही सुनिश्चित कर दी। इन्होंने एक जगह कह दिया कि हनुमानजी दलित जाति से थे। बताइए, राम-राम का नाम जपते हुए कुछ लोग वहां जा पहुंचे थे, जहां उनको नहीं पहुंचना था। बयान देखकर तो यही लगा। हनुमानजी जैसे पूजनीय धार्मिक पात्र को जातियों में बांटने का काम करना शायद इन नेताओं के लिए अष्ट सिद्धी-नव निधि समान होता होगा! फिर तो हनुमानजी की जाति को लेकर कुछ और मंत्री भी बोले थे। लोगों ने तंज में लिखना शुरू कर दिया कि जामवंतजी की टोपी और दाढ़ी के कारण कोई नेता इन्हें किसी जाति विशेष का सर्टिफिकेट ना दे दें।

योगी के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने हनुमानजी को अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) समुदाय का बता दिया था। मोदी सरकार में मंत्री सत्यपाल सिंह भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कह दिया कि हनुमानजी आर्य थे। उन्होंने कहा कि भगवान राम और हनुमानजी के युग में कोई जाति व्यवस्था नहीं थी, इसलिए हनुमानजी आर्य थे। उधर बीजेपी सांसद सावित्रीबाई फुले ने योगी का रास्ता पकड़ा और कहा कि हनुमानजी दलित थे। उन्होंने आगे जाकर यह तक कह दिया कि मनुवादियों ने उन्हें गुलाम बनाया था। इन्होंने तो आरएसएस की मूल राजनीति को ही थप्पड़ मार दिया और कहा कि श्रीराम ने उन्हें बंदर क्यों बनाया, जबकि हनुमानजी ने ही भगवान राम का बेड़ा पार कराया था, उनको तो इंसान बनाना चाहिये था लेकिन इंसान ना बनाकर उन्हें बंदर बना दिया गया, उनको पूंछ लगा दी गईउनके मुंह पर कालिख पोत दी गई, चूंकि वह दलित थे इसलिए उस समय भी उनका अपमान किया गया।

सोचिए, भगवान के नाम पर कैसे कैसे लोग नेता बन बैठे थे और वो भी भगवा धारण करके। धर्म को लेकर फेफड़े फाड़नेवाले इससे कितना आहत हुए ये मुझे नहीं पता, लेकिन भगवान को भी जातियों में बांटने का ये नया दौर वाकई धर्म की मूल समझ को लेकर सिरे से सोचने को मजबूर कर रहा था।

एमआरआई मशीन में फंसकर शख्स की दिल दहला देने वाली मौत, कमरे में घुसते हुए पकड़ा दिया था सिलेंडर
28 जनवरी 2018 के दिन मुंबई के नायर अस्पताल में एक दिल दहलाने वाला हादसा हो गया। 32 साल के राजेश मारू को एमआरआई मशीन ने इस कदर अपनी तरफ खींच लिया कि उसके हाथ में पकड़ा हुआ ऑक्सीजन सिलेंडर खुल गया और पूरी गैस पेट में चली गई। बताया गया कि गैस पेट में जाते ही वो गुब्बारे की तरह फूलने लगा, आंखें बाहर आ गईं और उसी जगह पर उसकी मौत हो गई। न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक उस वार्ड बॉय को सस्पेंड कर दिया गया जिसने ऑक्सीजन सिलेंडर देकर रूम में भेजा था। साथ ही, डॉक्टर, वार्ड बॉय और महिला अटेंडेंट पर लापरवाही से मौत का मामला दर्ज कर लिया गया। सीएम फडणवीस ने भी पीड़ित परिवार को 5 लाख रुपये के मुआवजे का एलान किया।
 
राजेश मारू के जीजा हरीश सोलंकी ने बताया कि उनकी मां की तबियत खराब थी इसलिए नायर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने मां का एमआरआई करवाने के लिए कहा। साथ में राजेश भी था। आरोप यह था कि एमआरआई रूम के बाहर अस्पताल के वार्ड बॉय ने शरीर पर से घड़ी और सोने की चेन तो उतरवा ली लेकिन मरीज को दिया जा रहा ऑक्सीजन सिलेंडर अंदर ले जाने को कहा। हरीश के मुताबिक, उन्होंने विरोध किया लेकिन साथ में आए वार्ड ब्यॉय ने बताया कि अभी मशीन बंद है। उसके बाद जैसे ही राजेश कमरे में अंदर गया मशीन ने सिलेंडर को अपनी तरफ खींच लिया। सिलेंडर को पकड़े हुए राजेश भी मशीन में चले गए। तभी दबाव से सिलेंडर का ढक्कन खुल गया और पूरी गैस राजेश के पेट में चली गई। हरीश का कहना था कि वार्ड ब्यॉय के साथ मिलकर हमने तुरंत उसे खींचना चाहा। उसे खींच भी लिया लेकिन तब तक उसकी आंखें बाहर आ चुकी थी।

पाकिस्तान के ऊपर से गुजरा पीएम मोदी का विमानतो भेज दिया 2.86 लाख रुपये का बिल
पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस्तेमाल किए गए भारतीय वायुसेना के विमान के रूट नेविगेशन शुल्क के रूप में भारत को 2.86 लाख रुपये का बिल भेजा। यह जानकारी आरटीआई कानून के तहत दायर आवेदन के जवाब में दी गई थी। यह शुल्क प्रधानमंत्री के विमान के लाहौर में ठहराव और रूसअफगानिस्तानईरान तथा कतर यात्राओं के सिलिसले में भेजा गया था। कार्यकर्ता एवं अवकाशप्राप्त कोमडर लोकेश बत्रा ने आरटीआई आवेदन दायर कर जानकारी मांगी थी। इसमें कहा गया कि जून 2016 तक भारतीय वायुसेना के विमान का इस्तेमाल प्रधानमंत्री की 11 देशों- नेपालभूटानबांग्लादेशअफगानिस्तानकतरऑस्ट्रेलियापाकिस्तानरूसईरानफिजी और सिंगापुर यात्राओं के लिए किया गया।

बत्रा ने अगस्त 2017 से लेकर 30 जनवरी 2018 तक मिले आरटीआई जवाबों की प्रति पीटीआई भाषा को दी। इस तरह की एक यात्रा के दौरान 25 दिसंबर 2015 को मोदी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के आग्रह पर कुछ समय के लिए लाहौर में रुके थे। यह पड़ाव तब हुआ जब मोदी रूस और अफगानिस्तान से लौट रहे थे। इसके लिए रूट नेविगेशन शुल्क के रूप में 1.49 लाख रुपये का बिल जारी किया गया। पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग से आरटीआई कानून के तहत मिले रिकॉर्ड में यह जानकारी दी गई। इसके अलावा पाकिस्तानी अधिकारियों ने 77,215 रुपये का रूट नेविगेशन शुल्क तब लगाया जब मोदी ने 22-23 मई 2016 को ईरान की यात्रा के लिए भारतीय वायुसेना के विमान का इस्तेमाल किया।

इसके साथ ही जब उन्होंने 4-6 जून 2016 को कतर की यात्रा की तो 59,215 रुपये का बिल नेविगेशन शुल्क के रूप में जारी किया गया। इन दोनों ही यात्राओं के लिए मोदी का विमान पाकिस्तान के ऊपर से गुजरा था। डाटा के अनुसार 2014 से 2016 के बीच मोदी की यात्राओं के लिए भारतीय वायुसेना के विमान के इस्तेमाल पर करीब दो करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

साईं के नाम पर धार्मिक विवाद की नौटंकी की, फिर साईँ ट्रस्ट से ही 500 करोड़ का लोन लिया
साईं भगवान थे या नहीं थे, इस विषय पर भाजपा के समर्थकों से लेकर संघ के पदाधिकारियों ने एक दौर में माहौल गर्मा दिया था। साईं के नाम का जमकर चरित्र हनन हुआ। उन दिनों लोग थक कर कहने लगे थे कि भगवान कौन है या नहीं ये मन ही मन तय कर लेना, लेकिन अपने नेताओं को भगवान नहीं मानना। वर्ना व्यवस्थाएँ चौपट हो जाएगी। लेकिन 2018 में वो दौर भी आया जब संघ समर्थित महाराष्ट्र सरकार ने इसी ट्रस्ट से 500 करोड़ का लोन लिया!!! इन दिनों महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस सरकार थी। कहा गया कि सरकार के आर्थिक हालात इतने बदतर थे कि इन्हें शिरडी के साईं मंदिर ट्रस्ट से सरकारी योजनाओं के लिए 500 करोड़ का लोन लेना पड़ा था। अहमदनगर जिले में पीने के पानी की योजना को लेकर सरकार के पास पैसे थे नहीं। बाद में ट्रस्ट और सरकार के बीच जो भी हुआ हो, लेकिन आधिकारिक खबरें आई कि सरकार ने ट्रस्ट से 500 करोड़ का ब्याज मुक्त लोन लिया है। यानी कि साईं इन दिनों सरकार के भगवान बनकर ही आए थे!!!

सीबीआई के भीतर की ऐतिहासिक जंग, आधी रात में सीबीआई के तख्तापलट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के भीतर एक दूसरे पर लिखित और सनसनीखेज आरोपों का नया दौर
इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की प्रेस वार्ता के बाद साल के अंत में सीबीआई ने सभी को चौंका दिया था। ये अक्टूबर 2018 का दौर था। सीबीआई के निदेशक ने विशेष निदेशक के खिलाफ तथा विशेष निदेशक ने निदेशक के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच की जंग सार्वजनिक हो गई और इतनी बढ़ी कि आधी रात को सीबीआई में तख्तापलट हो गया! लेकिन विवाद थमने के बजाय बढ़ता ही गया। सीबीआई के कई बड़े जांच अधिकारी से लेकर पीएमओ, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, बड़े मंत्री और स्वयं सीवीसी, सब के ऊपर सनसनीखेज आरोप लगते रहे। साल के अंत तक इस सनसनीखेज मामले में कोई अंतिम सिरा नहीं मिल पाया था। इस मामले के मुख्य सूत्रधार मोईन कुरैशी का गजब इतिहास ही कह लीजिए कि कुरैशी नामक इस शख्स ने मनमोहन सिंह की सीबीआई के दो निदेशकों को भी बिना कपड़ों का कर दिया और अब नरेन्द्र मोदी की सीबीआई के निदेशक और विशेष निदेशक, दोनों का भी यही हाल था!!! जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था तब एक और मामले में याचिकाकर्ता ने उसका मामला सीबीआई को सौंपने को कहा। बदले में जज ने कहा कि पहले सीबीआई को तो अपना घर ठीक कर लेने दीजिए। याचिकाकर्ता ने भी मन ही मन कहा होगा कि जनवरी के बाद आपका घर ठीक हुआ हो तो आप ही कुछ कर लीजिए।

गंगा के एक और भगीरथ ने गंगा के लिए दी अपनी जान, मीडिया पैनलों पर शांति और उधर भगीरथ का शव दिनों तक अस्पताल में पड़ा रहा, नकली हीरो और असली हीरो की मौत के बाद का दौर अजीब ही था
श्रीराम और माँ गंगा...। भारत में ये दो नाम ऐसे हैं जिनके सहारे कई छिटपुटिये नेता बन गए, उधर इन दोनों नामों को लेकर श्रद्धापूर्वक जीने वाले लोग बेमौत मारे गए। गंगा नदी की सफाई को लेकर इस साल एक और संत श्री स्वामी सानन्द का देहांत हो गया। दुखद ये था कि उनका देहांत किसी बीमारी के चलते या उम्र की वजह से नहीं, बल्कि गंगा सफाई अभियान के प्रयत्नों के चलते हुआ था। गंगा नदी के शुद्धिकरण को लेकर आमरण अनशन पर बैठे स्वामी सानन्द का देहांत हो गया। दरअसल, स्वामी सानन्द एक प्रोफेसर थे, जिनका नाम प्रो. जीडी अग्रवाल था।

दुखद था कि उनकी मौत तथा उनके भागीरथ प्रयत्नों को ना लोगों ने तवज्जो दी और ना ही मीडिया ने! उनकी मौत की खबर महज एक खबर बनकर रह गई। इस देश ने इन्हीं दिनों राजेश खन्ना, शशिकपूर और श्रीदेवी जैसे कलाकारों के निधन का दौर देखा था। दिनों तक मीडिया पर एंकर से लेकर आम लोग आंसू बहाते दिखे थे। राजनेताओं से लेकर बड़े बड़े लोग इन अभिनेताओं या अभिनेत्री की अंतिम यात्रा में जाते दिखाई दिए थे। तिरंगे का कफन इन अदाकारों को नसीब हुआ था। ठीक इसी दौर में देश ने प्रो. जीडी अग्रवाल तथा 1971 युद्ध के हीरो कुलदीप सिंह चांदपुरी के निधन को भी देखा। प्रो. जीडी अग्रवाल और कुलदीप सिंह चांदपुरी के निधन के बाद कुछ भी ऐसा नहीं था, जैसा उन अदाकारों के निधन के बाद देखा गया था। प्रो. जीडी अग्रवाल का मृत शरीर तो दिनों तक अस्पताल में पड़ा रहा! अदालती प्रक्रियाओं और वाद-विवाद के बाद कई घंटों के पश्चात उनके मृत शरीर के लिए कोई आदेश आ पाया था। नकली हीरो और असली हीरो के मौतों के बाद देश का ये मूड देखने के बाद भी किसी को विश्वगुरु बनने का एहसास होता है तो उस एहसास को दुनिया का आठवां अजूबा ही मान लीजिए।

मी टू का दौर, कई कोठरियां काजल की निकली, लेकिन अंत में ट्रेंड ने दम तोड़ा और काजल कहीं छुप सा गया
इस साल 'मी टू' का दौर चला। कई बड़े बड़े नाम सामने आए। राजनीति, मीडिया, फिल्मी दुनिया, साहित्य... कई सारे तबकों से मी टू की आवाज बुलंद हुई। विदेश से आए इस ट्रेंड ने भारत में भी आग लगाई। मोदी सरकार के मंत्री और पूर्व पत्रकार एमजे अकबर पर तो दर्जनों महिलाओं ने आरोप लगाए। फिल्मी दुनिया के संस्कारी दादा आलोकनाथ की पर्तें खुल गई। मीडिया में भी कई नाम आए। बॉलीवुड को तो आना ही था। नाना पाटेकर को भी आग ने झुलसा दिया। मी टू ने कई ऐसी कोठरी खोलकर रख दी, जिसका काजल चमक उठा। लेकिन अचानक से आए मी टू अभियान ने अचानक से ही बिदाई भी ले ली। काजल कहीं छुप सा गया। लगा कि एक दौर आया था और चला भी गया। मी टू का ये दौर आगे कितने रंग लाएगा ये तो कोई नहीं जानता। लेकिन मंत्री से लेकर अभिनेता, पत्रकारों से लेखर खेल, सभी का ढक्कन मी टू ने खोल दिया था।

कलेक्टर साहब ने ईवीएम को अनाकरली की तरह दीवार में ही चुनवा दिया
नवम्बर 2018 के दौरान चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में एक ऐसा नजारा देखने को मिलाजिससे एक बार फिर से 'मुगल-ए-आजमकी अनारकली और सलीम को दीवार में चुनवाने की यादें ताज़ा हो गईं। बेमेतरा जिले में सुरक्षा के लिहाज से मतदान के बाद ईवीएम मशीन को दीवार में ही चुनवा दिया गया। जिला निर्वाचन अधिकारी ने स्ट्रॉंग रुम के मुख्य द्वार पर दीवार चुनवा दी, ताकि ईवीएम को गिनती के दिन तक सुरक्षित रखा जा सके। बताया गया कि मतगणना के दिन ईवीएम को दीवार से आज़ाद किया गया। ईवीएम हैक नहीं हो सकता, लेकिन कोई हाथों-हाथ क्रैक तो कर ही सकता है, कलेक्टर साहब की चिंता कितनी वाजिब थी ये आपको सोचना है। वैसे राजस्थान तथा एमपी में तो एक ईवीएम मतदात के 48 घंटों बाद अपने अंतिम स्थल तक पहुंच पाया था। शायद... लाख पहरे लगा दो, चुनवा दो भले दीवार में, करना ही है तो कर ही जाएंगे ईवीएम तेरे प्यार में... यह भावना उस सुरक्षा भावना से टकराने का मन कर रही होगी।

ईवीएम भले आधुनिक मशीन हो, नेता ने अगरबत्ती जलाकर प्रणाम करके वोट डाला
नवम्बर 2018 के दौरान छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मतदान का दिन था। इस दौरान उम्मीदवार जीत के लिए अजीबो-गरीब कारनामे करते दिखाई दिए। बेमेतरा जिले के नवागढ़ विधानसभा के भाजपा उम्मीदवार और रमन सरकार के मंत्री दयालदास बघेल अगरबत्ती जलाकर मतदान केंद्र पहुंचे। इतना ही नहीं, उन्होंने अगरबत्ती जलाकर पूरे बूथ का चक्कर काटा। इसके बाद नारियल हाथ में लेकर उन्होंने बाकायदा ईवीएम मशीन को प्रणाम किया और मतदान केंद्र से बाहर आकर नारियल फोड़ा। यह सब करने के बाद बघेल ने अपना वोट डाला। पीठासीन अधिकारी ने मंत्री के इस तरह के कारनामों पर कोई भी आपत्ति नहीं की। आधुनिक से आधुनिक मशीन के सामने भी हमारे नेता पुरानी परंपराओं को ताज़ा कर रहे थे तो आपत्ति कैसे हो सकती थी। ईवीएम हैकिंग के चैप्टर के सामने ईवीएम की पूजा वाली डॉक्यूमेंट्री अच्छी ही मान लीजिए। जब कलेक्टर साहब ईवीएम को दीवार में चुनवा सकते हैं तो फिर उम्मीदवार उसकी पूजा तो करेंगे ही।

एनएसजी को तामझाम के साथ कश्मीर लाया गया, किसी भी ऑपरेशन में हिस्सा लिए बिना बैठे थे जवान
बीते छह महीने से एनएसजी की एक टुकड़ी जम्मू-कश्मीर में तैनात थी। लेकिन दिसम्बर तक उन्हें एक भी अभियान में हिस्सा लेने का सौभाग्य नहीं मिल पाया था। वजह यह थी कि गृह मंत्रालय ने उन्हें बताया ही नहीं कि उनकी भूमिका क्या है। इस मसले पर एनएसजी के डीजी सूबे के राज्यपाल से मुलाकात भी कर चुके थे। एनएसजी ने गृहमंत्रालय से गुहार भी लगाई कि उन्हें बताया जाए कि उनकी भूमिका क्या है। दरअसल, एनएसजी की टुकड़ी को कथित रूप से जबरन वहां लगाया गया था। कहा गया था कि सुरक्षाबलों को यह पहले से रास नहीं आया था। कोई कह रहा था कि घाटी में पहले से कई जवान तैनात हैं, ऐसे में सुरक्षा की श्रृंखला को छेड़ना ठीक नहीं होगा। कोई और ही दलील दे रहा था। लेकिन तामझाम के साथ एनएसजी को वहां ले जाया गया था, जो अब बिना काम के वहां बैठे थे और विभागों को गुहार लगा रहे थे। अलग अलग विभागों में श्रेष्ठ संकलन के लिए पहले से ही कुछ घोषणाएँ हो चुकी थी, ऐसे में ये स्थिति उन घोषणाओं में कितना दम बचा है यह भी जता रही थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विजय माल्या को भगोड़ा घोषित करने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए... गडकरी ने कहा- माल्याजी भगोड़ा नहीं कहे जाने चाहिए
7 दिसम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विजय माल्या पर आर्थिक अपराध में भगोड़ा घोषित करने की कार्रवाई जारी रहेगी। वहीं इसके कुछ दिनों बाद मोदी सरकार में मंत्री नितिन गडकरी ने कह दिया कि विजय माल्या को भगोड़ा नहीं कहा जाना चाहिए, उन्होंने नियमित रूप से भुगतान किया है। अब तक भाजपा कह रही थी कि कांग्रेस काल में सब कुछ हुआ। गडकरी ने तो भाजपा की दलीलों को भी झूठा जता दिया, यह कहकर कि माल्या ने पिछले 40 सालों से नियमित रूप से भुगतान किया है!!! उन्होंने तो भगोड़े विजय माल्या को 'माल्याजी' कहकर संबोधित भी कर दिया था!!! उन्होंने कहा कि माल्याजी को चोर कहना गलत है। सोचिए, सरकार विजय माल्या को वापस लाने का प्रयत्न कर रही हो, भगोड़ा विजय माल्या लिखा जा रहा हो, सुप्रीम कोर्ट इसके लिए सूचित कर रही हो और आखिर में उसी सरकार का मंत्री माल्या को माल्याजी कहकर यह कहे कि उन्हें भगोड़ा नहीं कहा जाना चाहिए तो फिर कहानी में कितने चूहे होंगे उसका अंदाजा साफ लग जाता है। कुल मिलाकर आम जनता काला धन के नाम पर बेवकूफ बनती रहे, काला सा दूल्हा बड़ा दिलवाला होगा और कुछ को भाएगा ही भाएगा।

चुनाव से पहले नेतृत्व की कमी से जूझ रही कांग्रेस चुनाव के बाद नेतृत्व के अतिरेक से जूझती नजर आई
दिसम्बर में पांच राज्यों के चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए नया जीवन लेकर आए। लेकिन अजीब मंजर यह था की चुनाव से पहले जहां कांग्रेस नेतृत्व की कमी से जूझ रही थी, वहीं चुनाव के नतीजों में अप्रत्याशित जीत के बाद नेतृत्व के अतिरेक से परेशान होती नजर आई। पांचों राज्यों में कांग्रेस के पास एक भी चेहरा नहीं था चुनाव से पहले, लेकिन जीत मिली तो चेहरे आसमान से उतर आए। हो सकता है कि पहले से जमीं पर हो यह चेहरे, लेकिन बाद में तो आसमां से ही उतरते नजर आए। एक राज्य में कम से कम दो-दो दूल्हे घोड़ी लेकर निकले थे। राजस्थान में पायलट और गहलोत, उधर एमपी में कमलनाथ और सिंधिया। छत्तीसगढ़ में तो दूल्हों की संख्या चार पर पहुंच चुकी थी। पहले जहां कांग्रेस में कोई चेहरा ही नजर नहीं आता था, अब वहां घोड़ी पर सवार होकर कई लोग अपनी अपनी बारात के साथ निकल चुके थे। इतना ही नहीं, राजस्थान में तो अपने अपने दूल्हे को लेकर बारातवालों ने आगजनी, तोड़फोड़ और प्रदर्शन तक कर डाले। कांग्रेस का मुख्य दूल्हा इतने सारे दूल्हों को लेकर परेशान तो ज़रूर हुआ होगा। जीतने के बाद सीएम तय करने में भाजपा को भी दिनों लग जाते थे, लेकिन नवजीवन प्राप्त करनेवाली कांग्रेस में इतने सारे दूल्हे अचानक से बारात लेकर निकले... लगा कि चुनाव के बाद दूल्हे के लिए भी एक और चुनाव करना पड़ेगा क्या।

रफाल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पता नहीं कौन राइट क्लिक करके इग्नोर करना भूल गया या किसने एड टू डिक्शनरी कर दिया
दिसम्बर 2018 के मध्य में रफाल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। जो लोग राममंदिर को लेकर अदालत को नसीहतें दे रहे थे, वो अदालत का पक्ष लेने लगे और जो पहले पक्ष लेते थे वो झाड़ने लगे। इस प्रकार का पारंपरिक दौर चलना ही था। लेकिन फैसले के बाद जो हुआ वो वाकई सकते में डालनेवाला था। स्कूलों में छोटे बच्चों को माइक्रोसॉफ्ट वर्ड प्रोग्राम में स्पेलिंग और ग्रामर एरर को राइट क्लिक करके इग्नोर या एड करना सिखाया जाता है। लेकिन यहां फैसला आने के बाद इसीको लेकर बवाल हो गया। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ज़िक्र किया कि रफाल को लेकर कैग का रिपोर्ट पीएसी के सामने है और वहां इसे जांचा गया है। फैसले के तुरंत बाद साफ हो गया कि ऐसी कोई रिपोर्ट पीएसी में है ही नहीं। सवाल उठा कि क्या केंद्र सरकार ने गलत जानकारी दी है। फिर कहा जाने लगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में टाइपो है। शाम होते होते केंद्र सरकार ने ही हलफनामा दायर कर कहा कि ग्रामेटिकल एरर को ठीक किया जाए।

अब इस माथापच्ची में विचित्र तो यही था कि स्कूलों में छोटे बच्चे तक राइट क्लिक करके स्पेलिंग या ग्रामर एरर को ठीक किया करते हैं। कुछ होते हैं जो नहीं करते या कर नहीं पाते या भूल जाते हैं। लेकिन यह मामला केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट का था। किसने क्या गलती की वो तो पता नहीं, लेकिन गलती हो गई यही गजब था। ऐसे गंभीर मामले में ऐसी गंभीर गलती ही पुरी प्रक्रिया को मजाकिया बना गई। उधर केंद्र सरकार ने एक तरीके से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने समझने में गलती की है। यानी कि स्पेलिंग–ग्रामर एरर सुप्रीम कोर्ट से हुई है। विपक्ष सरकार पर दोष मड़े जा रहा था। पिछले साल गुजरात हाईकोर्ट ने एक मामले में अंग्रेजी टाइपिंग को लेकर कड़ी टिप्पणी की थी। लेकिन अब केंद्र सरकार कह रही थी कि सुप्रीम कोर्ट से गलती से गलती हो गई है। विपक्ष की माने तो गलती या जानबूझ कर गलती केंद्र सरकार ने की थी और अब गलती को छिपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को स्पेलिंग-ग्रामर के लेक्चर दिए जा रहे थे।

हम नागरिक संविधान या कानून विशेषज्ञ नहीं है। पता नहीं गलती के बाद अब राइट क्लिक करके गलती को इग्नोर वन्स किया जाएगा, इग्नोर ओल किया जाएगा या फिर कोई एड टू डिक्शनरी कर देगा। अब तो अंग्रेजी राष्ट्रीय समस्या घोषित कर देना चाहिए, ताकि दूसरी समस्याओं से निपटा जा सके।

(इंडिया इनसाइड, एम वाला)