श्री हनुमानजी रामायण का पूजनीय और अभिन्न अंग है। महाभारत में भी ज़िक्र ज़रूर
मिलता है। लेकिन रामायण को महाभारत बनाना हमारे नेताओं को ज़रूर आता है। हमारे हिंदू
धर्म के पवित्र ग्रंथों व मान्यताओं के अनुसार श्री हनुमानजी रुद्रावतार थे।
रुद्र... जो भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। यानी कि मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी को
भगवान शिव का ही अंश माना जाता है। लेकिन रामभक्त पार्टी के नेताओं की माने तो,
हनुमानजी दलित-आदिवासी-आर्य-चीनी-मुसलमान... सब कुछ थे। यानी कि भगवान शिव का अंश
माने जाने वाले हनुमानजी की जाति का निर्धारण आखिरकार भगवान शिव का ही अपमान सरीखा
लगा। हनुमानजी हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण से जुड़े हुए हैं, लेकिन रामभक्त
पार्टी के बड़े बड़े नेताओं ने रामायण पर ही महाभारत खड़ा कर दिया। कहते हैं कि पुजारी
हो या बुखारी हो, मंदिर या मस्जिदों में ही अच्छे लगते हैं। वे बाहर आए तो क्या क्या
होता है यह तो हम अरसे से देख ही रहे हैं।
वैसे देवी-देवताओं
की कोई जाति नहीं होती। हां... उनके बारे में यह ज़रूर पढ़ा है कि प्रभु तेरो नाम
हजार... लेकिन अब जातियां भी हजार!!! भारतीय राजनीति के ‘मिट्टी दे शेर’ ऐसा चमत्कार भी किए जा रहे थे। इस लेख में दो बिंदु है। पहला – हम नागरिकों का दोगलापन
और दूसरा – धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल का दृष्टिकोण और इसे लेकर समर्थकों या
नागरिकों की समझ।
रामायण के महान व
पूजनीय पात्र के ऊपर ही महाभारत खड़ा करने का कारनामा भारतीय राजनीति ही कर सकती है! लेकिन यह कारनामा वही पार्टी करेगी जो रामभक्त के एकाधिकार छीन कर बैठी हुई
है, यह बात वाकई कई सवालों के जवाब दे गई। धर्मरक्षा के नाम पर अपने फेफड़े फाड़नेवाले उन राष्ट्रवादियों की चुप्पी वाकई कई रहस्यों को सुलझा गई। हनुमानजी की
जाति क्या थी... यह तर्क ही अपनेआप में विचित्रता के शिखरबिंदु तक पहुंचने वाला
कार्य है! यह कार्य रामभक्तों ने ही कर दिया! सीधा कहा जाए तो इन खोखले धर्मरक्षकों व नकली राष्ट्रवादियों की समझ एक ही
दिखी – घर के अंदर कोई इनके आराध्यदेव का अपमान कर दे तो यह मामूली बात है,
बाहरवाला कोई कर दे तभी इनके अंदर का खोखलापन जगेगा, वर्ना शांति से ये लोग बैठे
रहेंगे!!!
वैसे मैं व्यक्तिगत
रूप से मानता हूं कि राजनीति ‘शातिर दिमागों का
विश्वविद्यालय’ है। लिहाजा हनुमानजी का कास्ट
सर्टिफिकेट वाला विवाद आयोजित था या वोट बैंक की राजनीति थी या भावना में बहकर दिया
गया बयान था ... इस पर भी जितने तर्क होते हैं सारे चर्चा के अधीन होने चाहिए। लेकिन
भगवान को जातियों में बांटने का प्रयास दूसरे करते थे, तभी तो इन पर धर्मरक्षा का
भरोसा कइयों ने किया था। लेकिन ‘छगन’ कहता है कि ‘मगन’ ने किया था तो हम भी करेंगे!!!
धर्म से और विशेषत:
श्री राम को अपना समस्त जीवन समर्पित कर चुके मेरे कई मित्र रामभक्त पार्टी से तन
और मन से जुड़े हुए हैं। धन से कितना जुड़े हुए हैं मुझे नहीं पता। उनमें से कई ऐसे हैं
जिनकी हर सुबह की शुरुआत जय श्री राम वाले स्टेटस अपडेट से होती है। मुझे पता है
कि जो यह पढ़ेंगे वे समझेंगे कि मैंने उनका ज़िक्र किया है। लेकिन मेरे कई ‘राजनीतिक रामभक्त’ ऐसे हैं जो दिन की
शुरुआत इसी स्टेटस अपडेट के साथ करते हैं। लिहाजा मैं उन सबका ही ज़िक्र कर रहा हूं,
ना कि किसी एक का। देश में समस्याएँ चाहे जितनी भी बड़ी क्यों न हो, वो जय श्री राम
वाली सुबह नहीं भुलते। मुझे उनकी यह बात अच्छी लगती है। लेकिन जब हनुमानजी का हनन
उनकी ही पार्टी के लोग किए जा रहे थे, उनकी जय श्री राम वाली सुबह नहीं बदली।
हां... एक दफा किसी बॉलीवुड सेलिब्रिटी ने भगवान गणेश पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी
थी तो ये लोग एक-दो दिन नहीं, बल्कि शायद एकाध सप्ताह तक जय श्री राम को छोड़कर के
गणेश भगवान के ऊपर गलत टिप्पणी करने के विषय पर फेफड़े फाड़ते रहे। मैंने सोचा अच्छा
है यह। हिंदू हो या किसी अन्य धर्म विशेष की बात हो, धार्मिक भावनाएँ आहत करने का
अधिकार किसी को नहीं है। इस लिहाज से गणेश भगवान के ऊपर गलत टिप्पणी के बाद उन
धर्मरक्षकों का यूं हथियार उठाना अच्छा लगा। लेकिन ‘अब की बार उनकी सरकार’ थी तो उन्होंने
हथियारों को छुपा दिया यह उतना ही बुरा लगा। दरअसल, कई अनसुलझे सवालों के जवाब ही
मिल गए। हर दिन हनुमानजी भगवान का हनन सा होता रहा, आए दिन रामभक्त पार्टी के नेता
लोग थर्ड क्लास से भी नीचे जाकर टेंथ क्लास वाली टिप्पणियां करते रहे, और ये लोग
चुप रहे! क्यों? इस लिए कि उनके ही पार्टी के नेता हनुमानजी का अपमान कर रहे थे!!! लगा कि इनके
लिए श्रीराम या हनुमानजी महत्व नहीं रखते, इनके लिए एक सिम्बल ही महत्व रखता है, जो
उनकी पार्टी या उनके संगठन से जुड़ा हुआ है।
इससे पहले कई
हिंदू देवी-देवताओं के ऊपर अपमानजनक टिप्पणियां हो चुकी है। ऐसा जब जब हुआ, तब तब
इन रामभक्त पार्टी के समर्थकों से लेकर उनके नेता, उनके नेता से लेकर उनके मुख्य
संगठन तक, सारे के सारे उबलते दिखते थे। ऐसा बोलने वालों के पुतले जलाए जाते थे,
जमकर विरोध होता था, फेसबुक या ट्विटर पर उनके खिलाफ गाली-गलौज से लेकर तार्किक
और बुद्धिक्षमता से भरपूर तर्क तक होते थे। चैनलों पर ये लोग पहुंचकर बाकायदा बहस
करते थे। हिंदू धर्म और उनके पात्रों की सुरक्षा का जिम्मा इनके ऊपर था, सो ये लोग ऐसा कुछ होता तो खाना-पीना छोड़कर उस आदमी के घर तक पहुंचते थे! दिनों तक विरोध चलता, नारे दागे जाते, प्रदर्शन होते। पाकिस्तान भेजने की बातें होती। हिंदू धर्म की सुरक्षा को लेकर इनकी यह समर्पणशक्ति देखकर दिल को सुकून मिलता
था। लेकिन हनुमानजी को लेकर एक बार नहीं किंतु अनेकों बार आपत्तिजनक टिप्पणियां होती
रही। एक दिन नहीं, बल्कि अनेक दिन तक यह चलता रहा। हद तो तब हो चुकी जब हनुमानजी
को मुसलमान तक बता दिया गया!!! लेकिन वो सारे
धर्मरक्षक रजाई ओढ़कर सोते दिखाई दिए। ना कोई विरोध, ना कोई प्रदर्शन!!! भाजपा और
संघ, दोनों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े नेता हनुमानजी का हनन कर रहे
थे... और इन दोनों के समर्थकों में मनमोहन सिंहजी की आत्मा घुस चुकी थी!!! धर्म की रक्षा का इनका जूनुन हवा हो चुका था!!! इनकी तार्किक दलीलें निकल ही नहीं रही थी!!! बुद्धिक्षमता से भरपूर इनके तर्क ठिठुर चुके थे!!! गाली-गलौज वाली सदाबहार संस्कृति मर चुकी थी!!! भाजपा हो या संघ हो या कोई दूसरा-तीसरा हिंदू संगठन, उनके वो बन बैठे धर्मरक्षक हो या धर्मगुरु, कोई
कुछ नहीं बोला। बस सारे के सारे इस घिनौनी राजनीतिक प्रवृत्ति को देखते रहे!
यह दोगलापंति नहीं है तो फिर क्या है?
ऊपर देखा वैसे, एक
दफा गणेश भगवान के ऊपर आपत्तिजनक टिप्पणी हुई तो इन धर्मरक्षकों ने धर्मरक्षा का
झंडा पकड़कर क्या क्या किया था ये ताज़ा इतिहास है, उतना पुराना भी नहीं है। वो
इतिहास अच्छा लगा था वैसे। सिर्फ भगवान गणेश ही नहीं, कई दफा हिंदू धर्म के
देवी-देवताओं के ऊपर कई लोगों ने आपत्तिजनक भाषा व टिप्पणियों का इस्तेमाल किया हुआ
है। और ऐसे तमाम मौकों पर धर्मरक्षकों ने वही काम किया जो उन्हें करना चाहिए था। लेकिन
हनुमानजी के ऊपर जब उनके ही पार्टी के नेता आपत्तिजनक दलीलें देने लगे तब उनकी
चुप्पी धर्मरक्षा पर दोगलेपन को उभारती नजर आई। इतने सारे हिंदू संगठन हैं, कोई कुछ
नहीं बोला!!! इतने सारे स्वयंघोषित राष्ट्रवादी लोग
हैं यहां, सारे चुप रहे! सिर्फ इसलिए कि उनकी पार्टी के लोग बोल रहे थे!!! कोई दूसरा बोला होता
तो क्या होता यह सभी को पता है। किसी और का नहीं, बल्कि श्रीराम के अतिप्रिय
हनुमानजी का हनन होता रहा, और तमाम चुप!!! यह दोगलापंति तो ही थी। मंदिर वही बनाएंगे वाला वो राजनीतिक दौर चल रहा था और
उस दौर के दिग्गज ही श्रीराम के अतिप्रिय श्रीहनुमानजी को लेकर आपत्तिजनक बयान दिए
जा रहे थे! स्वयंघोषित राष्ट्रवादी चुप थे! खुद को हिंदू धर्मरक्षक बताने वाले सारे साइलेंट मोड में चले गए थे! हर नए दिन हनुमानजी की नई नई जाति घोषित होती रही। सब कुछ इतनी आसानी से चलता
रहा, जैसे कि उन्हें कोई डर ही नहीं था। जैसे कि वो सारे इसे गौरवान्वित होना मान
रहे हो। तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा जब यह लोग भविष्य में हनुमानगढ़ी जाकर श्री राम से पहले हनुमानजी की आराधना भी कर लेंगे और तब इन दोगलों के फेफड़े धर्म की सनक से फट ही जाएंगे।
बीफ व मीट को लेकर
इसी दौर में दोगलापंति सामने आ चुकी थी। कहीं बीफ व मीट को लेकर आंदोलन हो रहे थे तो
कहीं पर बाकायदा उनके ही नेता कह रहे थे कि जीते तो अच्छी क्वालिटी का बीफ और मीट सस्ते
में उपलब्ध करवाएंगे! कहीं पर गोहत्या को लेकर मानवहत्याएँ होना सामान्य सी बात थी, कहीं पर कह गए थे कि
गोहत्या पर रोक नहीं लगेगी! बीफ की राजनीति ने पुरे देश में आग लगा दी थी। यूं कहे कि
बीफ की राजनीति से देश में आग लगा दी थी। वहीं भोपाल में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह देश
का सबसे बड़ा बूचड़खाना खोलने की इजाज़त दे चुके थे!!! बूचड़खानों पर क्या क्या हुआ कौन नहीं जानता। जबकि एक आरटीआई में भाजपा शासित सरकार ने जो जवाब दिया उससे पता चला कि भाजपा
शासित राज्यों में ही बूचड़खाने सबसे ज्यादा है!!! बस कुछ दिन नौटंकियां चलती, फिर नयी नौटंकी के लिए
एक और मुद्दा। फिर नये मुद्दे पर महीना गुजर जाता। लेकिन बीफ-मीट-बूचड़खाने, वगैरह को लेकर आधिकारिक
आंकड़े दोगलापंति की तरफ ही इशारा किए जा रहे थे।
जून 2016 के दौरान
बाबा रामदेव ने अपने एक योग शिविर में भगवान शनि देव को काला पत्थर कहा था। आश्चर्य
की बात थी कि अभी तक किसी की धार्मिक भावनाएँ आहत नहीं हुई। क्या धार्मिक भावनाएँ भी
राजनीतिक समर्थन देखकर आहत होती है? इन्हीं दिनों गुजरात के प्रसिद्ध सारंगपुर के हनुमानजी मंदिर में हनुमानजी को सांता
क्लाॅज जैसे कपड़े पहनाए गए। फिर क्या था। तुरंत ही सोशल मीडिया पर लोगों ने विरोध कर
दिया। हिंदू भावना जग उठी। कपड़े को लेकर भावना नाम की भावना जगी, लेकिन दिनों तक हनुमानजी पर जो जातिगत राजनीति होती थी वहां यह भावना नाम की भावना ठंड की वजह से रजाई में से
बाहर नहीं निकली थी!!! फिल्मों से धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं लेकिन नेता ही भगवान की फिल्म
बनाने लगे तब भावनाएँ नाम की भावनाओं का ऐसा हाल क्यों? नेताओं की एक बात से सहमत हूं कि हिंदू केवल धर्म ही नहीं है, बल्कि एक संस्कृति
है। तो फिर निवेदन है कि इस संस्कृति को अपने वोट बैंक की वजह से इतना भी प्रताड़ित मत
करो। हम हिंदूओं की एकता की बात आप लोग करते हैं,
लेकिन आप सब ही वोटों के नाम पर अलग-थलग क्यों है? मंदिर और राम को लेकर
गंदी राजनीति का पता है, किंतु विपक्षी दलों से खिन्न होकर ही आपको हजारों-लाखों लोगों ने चुना था, उन हजारों-लाखों लोगों को ये यकीन मत दिलाओ कि सत्ता पर जाने वाला हर कोई कांग्रेस ही हो जाता है।
धर्म को लेकर शुरुआत पहले भी होती रही थी, लेकिन हनुमानजी
को लेकर सीएम योगी ने ही पहला विवाद शुरू किया
धर्म और धर्म के
पात्रों को लेकर पहले भी इन नेताओं ने सीमाएँ लांधी थी। पहले लिखा वैसे, ‘अब की बार हमारी सरकार’ होने की वजह से
सीमाएँ लांधना बुरा नहीं माना गया। अपने मनपसंद नेता को विष्णु का अवतार बताना,
भगवान के वस्त्रों के साथ उनका चित्रण करके उन्हें भगवान सरीखा बताना, इससे भी आगे
बहुत कुछ हो चुका था। लेकिन बात हनुमानजी के जाति-निर्धारण विवाद की करे तो, सबसे
पहला नाम आता है यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का। जो खुद भगवा धारण करके धर्म से राजनीति
के उच्च बिंदु तक जा पहुंचे थे, उन्होंने ही रामायण और हनुमान चालीसा की कहानी नये
सिरे से लिखना शुरू कर दिया!
यह तो तय था कि
इन्होंने जो कहा वो किसी और ने कहा होता तो धर्मरक्षा के नाम पर कहीं न कहीं आग लग ही
जाती। लेकिन हनुमानजी को भी ‘अब की बार हमारी सरकार’ की पीड़ा से गुजरना पड़ गया। योगी के इस बयान का पहला असर यह हुआ कि आगरा में हनुमानजी के एक प्राचीन मंदिर पर दलितों ने कब्जा कर लिया, यह कहते हुए कि अब साफ
हो गया है कि हनुमानजी दलित थे और अब इस मंदिर पर हमारा अधिकार है!!! एक सूबे के
सीएम द्वारा हनुमानजी पर दिया गया यह बयान कितना ज्यादा राजनीतिक था ये समझने के
लिए मैट्रिक पास होना ज़रूरी नहीं है। और इसका पहला परिणाम जो हुआ वो कितना सही था
या कितना गलत, यह भी समझा जा सकता है। हिंदू-मुसलमान एक दूसरों की जगहों पर कब्जा
किया करते थे, ‘अब की बार हमारी सरकार' ने अलग ही नजारा पेश करने का श्रेय लिया था!
सीएम योगी ने बतौर स्टार प्रचारक राजस्थान के अलवर जिले के मालाखेड़ा
में एक सभा को संबोधित करते हुए बजरंगबली को दलित,
वनवासी, गिरवासी और वंचित करार दिया। यह नवम्बर 2018 का महीना था। योगी
ने कहा कि, “बजरंगबली एक ऐसे लोक
देवता हैं जो स्वयं वनवासी हैं, गिरवासी हैं, दलित हैं और वंचित हैं।”
वनवासी और गिरवासी के साथ साथ उन्होंने हनुमानजी को ‘दलित’ और ‘वंचित’ तक कह दिया। दलित राजनीति... इस लफ्ज़ के क्या मायने
है भारत में कौन नहीं जानता। हनुमानजी जैसे पात्र को दलित और वंचित कहकर इन्होंने तो
रामायण में नया अध्याय डालकर रामायण को महाभारत बनाने की शुरुआत ही कर दी। जिसको
उनके ही नेताओं ने आगे ले जाने का काम किया। हमारे ग्रंथ, पुराण, रामायण या महाभारत
की कहानियां, जिससे हमने इतना सब कुछ सीखा है, अब भगवा धारण करनेवाला एक शख्स नयी
कहानी बता रहा था!
साफ था कि योगी की यह
कहानी दलित और वंचित राजनीति और वोट बैंक से जुड़ी हुई थी। गजब ही कह लीजिए कि राम-राम
करने वाले लोग ही अब राम की आत्मा सरीखे हनुमानजी को भी वोट बैंक और राजनीति के
प्रपंचों में खींच कर ला रहे थे! ये सस्ता प्रयास किसी और ने किया होता तो क्या होता
ये सभी को पता है। उनके आईटी सेल से लेकर जमीनी स्तर तक, एफबी-वाट्सएप से लेकर
जिला-तहसील तक, धर्म की रक्षा का अभियान हिंसा के साथ शुरू हो चुका होता। लेकिन ‘अब की बार हमारी सरकार’
के आगे स्वयं हनुमानजी भी लाचार थे, जो कि श्री राम के अत्यंत प्रिय थे। शायद दलित
और वंचित के साथ साथ ‘वनवासी’ और ‘गिरवासी’ को चालाकी से शामिल किया गया था। स्वयं भाजपा समर्थक
भी अकेले में स्वीकार कर लेते हैं कि श्रीराम के नाम पर राजनीति करके कई छिटपुटियें
नेता बन बैठे हैं। लेकिन अब श्रीराम के साथ साथ हनुमानजी को भी वोट बैंक की राजनीति
में घसीटने का हिन प्रयास हो रहा था। लेकिन धर्मरक्षक भक्तों की शांति अनिवार्य थी,
क्योंकि उनके लिए कोई और नहीं बल्कि उनके नेता ही उनके भगवान होते होंगे।
योगी का हनुमानजी को
लेकर दिया गया बयान वाकई वोट बैंक की गंदी राजनीति का उत्तम नमूना था। अब तक
कांग्रेस के ऊपर आरोप लगाते लगाते कांग्रेस से भी हल्की राजनीति करने का श्रेय खुद
ही ले रहे थे। लेकिन नेता तो ऐसे ही होते हैं। दरअसल, कांग्रेस कभी नहीं जाती, जिसे
सत्ता मिलती है वही कांग्रेस बन जाती है! लेकिन यहां धर्मरक्षा के
नाम पर फेफड़े फाड़नेवाले दिव्यांग मनुष्यों की चुप्पी उनका चरित्र-प्रदर्शन ज़रूर करवा गई। हनुमानजी जैसे दैवीय पात्र को वोट बैंक और जाति की गंदी राजनीति में घसीटने पर इन लोगों
ने इतने फेफड़ें नहीं फाड़े, जितने नसीरुद्दीन शाह के बयान पर फाड़े गए!!! कुल मिलाकर, जान का
खतरा उनके नेता को हो, वे लोग सैकड़ों जवानों की सुरक्षा में चले तो कोई बात नहीं,
लेकिन किसी और को जान का खतरा हो तो आग लगा देंगे!!! ठीक वैसे ही, उनके नेता
श्रीराम से लेकर हनुमानजी पर कितनी भी गंदी राजनीति करे, कोई बात नहीं, कोई और
करेगा तो आग लगा देंगे!!!
सीएम योगी को धर्म
निभाने की सलाह राज्यपाल ने दी। योगी के बयान पर नाराजगी जाहिर करते हुए राज्यपाल ने उन्हें
अटल बिहारी वाजपेयी से सीख लेने की नसीहत दी थी। लेकिन इस सीख का परिणाम यह हुआ कि योगी का हनुमानजी को कास्ट सर्टिफिकेट देने का विचित्र प्रयास तेजी से आगे बढ़ गया।
फिर तो उनके ही लोगों ने हनुमानजी को कई जातियों बांट दिया।
भाजपा नेता गोपाल नारायण
सिंह- हनुमानजी दलित से भी नीचे थे
1 दिसम्बर 2018 को भाजपा
सांसद और नेता गोपाल नारायण सिंह ने योगी को सीधा ही गलत नहीं कहा, लेकिन योगी के
बयान को काटते हुए नया बयान दे दिया। इन्होंने स्तर को ज्यादा गिराने का काम आगे
बढ़ाते हुए कह दिया कि, “हनुमानजी तो बंदर थे।
बंदर पशु होता है। पशु का दर्जा दलित से भी नीचे का होता है। वो तो श्रीराम थे
जिन्होंने हनुमानजी को भगवान बना दिया।” गोपाल
नारायण सिंह और डार्विन थ्योरी वाले बीजेपी के मंत्री सत्यपाल सिंह को सार्वजनिक
बहस में उतार ही देना चाहिए था! सोचिए, केजरीवाल या राहुल गांधी ने यह बयान दिया
होता तो धर्मरक्षक ‘हनुमानजी बंदर थे, बंदर
पशु होता है’ वाला हिस्सा पकड़कर उनके
घर के आगे धर्मरक्षा हेतु एकाध यज्ञ कर ही लेते। योगी ने हनुमानजी को दलित कहा,
इन्होंने स्तर को गिराने का कार्य आगे बढ़ाया।
भाजपाई सांसद सावित्री
बाई फुले- हनुमानजी मनुवादियों के गुलाम थे
केजरीवाल या राहुल गांधी
तो बोले नहीं थे कि हनुमानजी बंदर थे, पशु थे। तो फिर यज्ञ का काम रुका हुआ था। इस
बीच 5 दिसम्बर 2018 को भाजपा की सांसद सावित्री बाई फुले ने गिरते हुए स्तर को एक
और धक्का दिया। इन्होंने कहा, “हनुमानजी दलित थे और
मनुवादियों के गुलाम थे। यदि लोग कहते हैं कि भगवान राम का बेड़ा पार करवाने का काम
इन्होंने किया था, अगर उनमें इतनी शक्ति थी, तो जिन लोगों ने राम का बेड़ा पार करने का
काम किया उन्हें बंदर क्यों बना दिया?”
दलित से लेकर बंदर, बंदर
से लेकर पशु, दलित से नीचे का स्तर और अब मनुवादियों के गुलाम और रामायण पर नये
सिरे से सवाल... लेकिन बात यहां रुकने वाली नहीं थी। ‘अब
की बार हमारी सरकार’ ने तय किया था कि
श्रीराम की पूजा करते करते श्रीराम के प्रिय पात्र हनुमानजी को लेकर स्तर बहुत
नीचे ले ही जाना है। हिंदू धर्म का ठेका इनके पास था, सो कोई और डर था नहीं इन्हें।
फेफड़े फाड़नेवाली सेना शायद राम या हनुमान से ज्यादा तो पार्टी विशेष या व्यक्ति
विशेष की पूजा में लगी है, यह सत्य इन्हें पता था। इसीलिए ये दुखद बयानबाजी
रुकने वाली नहीं थी। और हुआ भी यही। वैसे इन दिनों ही सावित्री बाई फुले ने भाजपा को
अलविदा कह दिया था। उन्होंने शायद 5 दिसम्बर या 6 दिसम्बर को भाजपा छोड़ी थी।
बीजेपी विधायक ज्ञानदेव
आहूजा ने दिया 'ज्ञान', कहा- हनुमान थे धरती पर पहले आदिवासी नेता
राजस्थान से बीजेपी के
विधायक ज्ञानदेव आहूजा इस रेस में कहा पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी कास्ट
सर्टिफिकेट डिस्ट्रीब्यूशन में हिस्सा लिया। आहूजा ने कहा कि, “इस धरती पर प्रथम
आदिवासी नेता हनुमान हुए हैं। सबसे ज्यादा मंदिर भी हनुमानजी के हैं, हमें उनका असम्मान नहीं करना चाहिए।” दरअसल, बाड़मेर में एससी/एसटी
एक्ट को लेकर किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान हनुमानजी की मूर्ति का अपमान किया
गया था, इसीके विरोध में वे प्रदर्शन कर रहे थे।
बताइए, वो खुद कहते हैं
कि हमें उनका असम्मान नहीं करना चाहिए, उधर इस महान और प्रेरणामूर्ति सरीखे पात्र को
वो प्रथम आदिवासी नेता बताकर राजनीति भी कर जाते हैं!!! आदिवासी बताया उससे
ज्यादा बुरा तो यह लगा कि हनुमानजी को नेता बता दिया!!! अरे भाई... तुम नेताओं की कीमत
जनता में कितनी है क्या तुम नहीं जानते? तो फिर हनुमानजी जैसे
महान पात्र को खामखा तुम लोग नेताओं की सस्ती औकात में क्यों ले आते हो? और रही बात प्रदर्शन की, हमें पता है कि ‘अब की बार हमारी सरकार’
है, वर्ना हनुमानजी की जाति तय करने वाले बयानों पर ही तुम लोग प्रदर्शन तो कर ही
लेते।
वरिष्ठ बीजेपी नेता नंदकुमार साय ने भी लिया हिस्सा, कहा – हनुमानजी आदिवासी थे
पता नहीं कि हनुमानजी का
जाति-निर्धारण सोची-समझी प्रक्रिया थी या कुछ और... छत्तीसगढ़ बीजेपी के वरिष्ठ
नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने हनुमानजी को
अनुसूचित जनजाति, यानी आदिवासी समुदाय से बताया। नंदकुमार ने लखनऊ में एक
कार्यक्रम के दौरान कहा कि, “हनुमान का गौत्र भी आदिवासियों के गौत्र से मिलता है।” उन्होंने आगे कहा कि, “अनुसूचित जनजाति में हनुमान एक गौत्र होता है। कई जगह
पर गिद्ध गौत्र भी है। जैसे तिग्गा भी एक गौत्र होता है जिसे कुड़ुक में बंदर कहते
हैं।”
बीजेपी के मंत्री सत्यपाल
सिंह का नया ज्ञान, कहा- हनुमानजी आर्य थे
हर दिन हनुमानजी की नयी
जाति तय होने लगी थी। अब बीजेपी के मंत्री और विवादों से दिल का रिश्ता रखनेवाले
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने नयी थ्योरी पेश कर दी। ये महोदय मुंबई के पुलिस
कमिश्नर रह चुके थे। दूसरे नेताओं से शायद ज्यादा पढ़े-लिखे थे, लिहाजा उन्होंने कुछ
ज्यादा ही ऊंचा ज्ञान पेश किया!
बागपत से बीजेपी के
सांसद और केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने भगवान हनुमानजी की पहचान को लेकर कहा कि, “भगवान राम और हनुमानजी
के युग में, इस देश में कोई जाति
व्यवस्था नहीं थी। कोई दलित, वंचित और शोषित नहीं था।
वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस को आप अगर पढ़ेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि उस समय
जाति व्यवस्था नहीं थी। हनुमानजी आर्य थे। इस बात को मैंने स्पष्ट किया है, उस समय आर्य थे और हनुमानजी उस आर्य जाति के महापुरुष थे।”
इन्होंने रात भर शायद
रामायण का अध्ययन किया होगा और सुबह थ्योरी पेश करते हुए कहा कि चूंकि रामायण काल
में कोई जाति थी ही नहीं, बल्कि नस्ल थी। एक तरीके से उन्होंने हनुमानजी की जाति
निर्धारित करने वाले अपनी ही पार्टी के सीएम योगी से लेकर दूसरे भाजपाई नेताओं को ही
नया ज्ञान दे दिया, जिन्होंने हनुमानजी की जाति तय की थी। जाति के बजाय नस्ल लफ्ज़ का अवतरण अब हो चुका था। लेकिन गजब बात यह थी कि यही मंत्रीजी इसी साल कह चुके थे
कि डार्विन की थ्योरी गलत है, इंसान बंदर नहीं थे। डार्विन की थ्योरी से लेकर
रामायण में जाति और नस्ल... धर्म के नाम पर वोट बटोरने के बाद शायद राजनीति का अगला
अपडेट वर्जन देवताओं का कास्ट सर्टिफिकेशन था!!!
भाजपा के विधायक ने तो हनुमानजी को मुसलमान ही बता दिया
20 दिसम्बर 2018 के दिन भाजपा के एमएलसी और विधानपरिषद सदस्य बुक्कल नवाब ने
विवादित बयान दे दिया। बुक्कल नवाब ने भगवान हनुमानजी को मुसलमान बताया। बुक्कल
नवाब ने कह दिया कि, “हनुमानजी मुसलमान थे,
इसलिए
मुसलमानों में जो नाम रखे जाते हैं - रहमान, रमज़ान, फरमान, ज़ीशान, कुर्बान - जितने भी नाम रखे जाते हैं, वे करीब-करीब उन्हीं पर रखे जाते हैं। हिंदूओं में आपको ऐसे
नाम नहीं मिलेंगे, सिर्फ हनुमान नाम मिलेगा।
इसलिए हनुमानजी मुसलमान थे।” बुक्कल ने कहा कि, “जहां तक हनुमानजी को
जाति-धर्म में बांटने की बात है तो वे पूरी दुनिया के ही थे। मगर व्यक्तिगत तौर पर
हमारा मानना है कि हनुमानजी मुसलमान थे।” दलित
या आदिवासी के बाद अब मुसलमान! लेकिन आहत मत
होना, क्योंकि इस बयान से भी धर्मरक्षक ज्यादा आहत नहीं हुए थे! नाम में पीछे मान होने से बुक्कल ने मान को लेकर बहुत कुछ मान लिया और मनवाने
की कोशिशें करने लगे!!! हनुमानजी को भाजपा के ही विधायक मुसलमान बता गए, लेकिन सांप्रदायिक
यूनिवर्सिटी के लोगों ने इसे सिलेबस में शामिल नहीं किया।
बीजेपी सांसद बृजभूषण
शरण सिंह का बयान, कहा- हनुमानजी भी मानते
हैं मेरा आदेश
कैसरगंज से बाहुबली
बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कह दिया कि, “इस
समय हनुमानजी की चर्चा चारों तरफ हो रही है। ये हनुमान और रामजी की सेना है। अगर
मैं उस समय कुश्ती संघ का अध्यक्ष होता तो बिना मेरी परमिशन के हनुमानजी कहीं नहीं
जा पाते। वहीं हनुमानजी भी मेरा हर आदेश मानते।”
बीजेपी सांसद गोंडा के नंदिनी नगर महाविद्यालय परिसर में आयोजित सीनियर नेशनल
कुश्ती चैंपियनशिप और तरण ताल के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुंचे थे। बताइए, पढ़ा और
सुना था कि हनुमानजी श्रीराम का आदेश मानते थे, पता नहीं था कि भगवान हनुमानजी
वृजभूषण शरण सिंह का भी कहना मान लेते थे! वैसे इनसे स्पष्टीकरण मांगने पर यही जवाब आ सकता था कि बयान को गलत तरीके से
पेश किया गया। लेकिन वो यह नहीं कहेंगे कि दूसरों ने नहीं बल्कि मैंने ही गलत तरीके से
पेश कर दिया था!
भाजपा के सांसद कीर्ति
आजाद का नया तर्क, हनुमानजी को बताया विदेशी, कहा – चीन से थे
भाजपा के सांसद कीर्ति
आजाद ने तो प्रतियोगिता में बहुत आगे निकल जाने का मन बना लिया था। इन्होंने
हनुमानजी को भारत के बाहर का बता दिया, यानी कि विदेशी!!! 21 दिसम्बर 2018 को
इन्होंने कहा, “हनुमानजी चीनी थे।” इन्होंने तो दलित से लेकर आदिवासी तक की थ्योरी को
धक्का दे दिया। क्योंकि चीन में तो कोई दलित या आदिवासी नहीं होता होगा। क्या पता,
शायद चीन में भी ऐसी जातियां होती है ऐसा ज्ञान कोई दूसरा नेता बांट दे!
भाजपा के एक और सांसद ने
तो हनुमानजी समेत तमाम पात्रों की जातियां निर्धारित कर दी
जब सीएम योगी ने इन
विचित्र (लेकिन शायद शातिर जातिगत राजनीति) बयानों के दौर की अगुवाई की उसके तुरंत
बाद सोशल मीडिया में तंज कसते हुए लिखा जाने लगा था कि जामवंतजी की दाढ़ी और टोपी
के कारण उन्हें मुसलमान भी कह सकते हैं यह लोग। यह तंज था लेकिन तंज को भी सच बनाने
का इन्होंने शायद तय कर लिया था! यूपी के आंबेडकरनगर से सांसद हरिओम पांडे ने तो
हनुमानजी के साथ साथ दूसरों की भी जातियां निर्धारित कर दी। इन्होंने हनुमानजी के
बारे में कहा कि, “वे ब्राह्मण थे।” आगे बढ़कर इन्होंने सुग्रीव को कुर्मी और बाली को यादव
कुल से बता दिया! इन्होंने उस तंज में समन्वित जामवंतजी को तो बक्ष दिया,
लेकिन जटायु के बारे में कहा कि, “वो पक्षी नहीं था, बल्कि मुसलमान था।” वो यही नहीं रुके, इन्होंने पत्थरों से पुल बनानेवाले
नल और नील की भी जातियां निर्धारित कर दी!!! गजब तो यही लगा कि ये
लोग हिंदू धर्म की रक्षा करने का ठेका लेकर बैठे हैं, लेकिन इनसे ही हिंदू धर्म की
रक्षा कौन करेगा?
बाबा रामदेव ने हनुमानजी
को क्षत्रिय कहा, शंकराचार्य ने कहा ब्राह्मण, जैन मुनि भी अपना ज्ञान बांट चुके
थे
धर्म के बन बैठे धुरंधरों को यह रोकना चाहिए था। लेकिन इनमें से एक धुरंधर योगगुरु बाबा रामदेवजी ने हनुमानजी को क्षत्रिय बता दिया। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने हनुमानजी को
ब्राह्मण बता दिया। एक जैन मुनि ने हनुमानजी को जैन बता दिया था। पता नहीं,
दूर-दराज के इलाकों में ऐसे गुरुओं या बाबाओं ने दूसरा क्या क्या कहा होगा, जिसके बारे
में पता ना चला हो। जहां लोग राजनीति और धार्मिक भावना, दोनों को नीचे ले जानेवाले
नेताओं से आश रख रहे थे कि नेता कहीं पर तो स्टॉप करेंगे, वहीं जिनके जिम्में धर्म है,
उन्हीं लोगों ने नेताओं से अप्रत्यक्ष रूप से कह दिया कि नोन-स्टाॅप!!!
भाजपा सांसद उदित राज का
धमाका- हनुमानजी तो थे ही नहीं
कीर्ति आजाद ने हनुमानजी
को विदेशी कहा वहां तक तो ठीक था लेकिन भाजपा सांसद उदित राज ने तो हनुमानजी के
होने पर ही सवाल खड़े कर दिए!!! 21 दिसम्बर को ही इन्होंने कहा कि, “हनुमानजी का कोई
अस्तित्व ही नहीं था। कई दृष्टिकोण हैं जिनमें से अनेक दृष्टिकोण यह कहते हैं कि वह
जंगल में थे जिसके हिसाब से वह आदिवासी थे। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार कहा जाए तो
उनका कोई अस्तित्व है ही नहीं।” उदित राज के इस बयान पर
भी पिन ड्रॉप साइलेंस!!! श्रीराम के परम प्रिय और हिंदू धर्म के महान पात्र
हनुमानजी पर उदित राज ने कह दिया कि हनुमानजी तो थे ही नहीं। यानी कि हिंदू धर्म की
मान्यता पर ही इन्होंने सवाल उठा दिया। लेकिन अब की बार हमारी सरकार। ये थोड़ी राहुल
गांधी या केजरीवाल ने कहा था, यह तो घर से ही कहा गया था। सो... मौन ही महान साधना
है वाली थ्योरी भक्तों में अभी भी व्याप्त थी!!!
हनुमानजी थे खिलाड़ी, यूपी
के खेल मंत्री चेतन चौहान
लगा कि शायद ये आयोजित
षड्यंत्र होगा, या फिर बहुत ऊपर से इजाज़त मिली होगी कि हर सुबह हनुमानजी को लेकर
नया सर्टिफिकेट देना ही है। अब यूपी के खेल और युवा कल्याण मंत्री चेतन चौहान ने
जंप कर दिया। इन्होंने कहा कि, “हनुमानजी कुश्ती लड़ते थे और खिलाड़ी भी थे। जितने भी
पहलवान लोग हैं, उनकी पूजा करते हैं। मैं
उनको वही मानता हूं। वो हमारे ईष्ट हैं। भगवान की कोई जाति नहीं होती। मैं उनको
जाति में नहीं बांटना चाहता।” इन्होंने कहा कि मैं उनको
जाति में बांटना नहीं चाहता। बहुत बड़ा उपकार था उनका। लेकिन यह मशविरा जिन्हें दिया
जाना था, शायद मुमकिन नहीं था तो इन्होंने सार्वजनिक रूप से दिया। लेकिन फिर
हनुमानजी कुश्ती लड़ते थे... खिलाड़ी थे... वगैरह कहकर अपने अपने कुएं में हनुमानजी
को कैद करने का दौर जारी ज़रूर रखा!
हनुमानजी थे जाट! यूपी के मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण की नई थ्योरी
शायद इन दिनों स्वर्ग में भी सारे देवी-देवता हक्का-बक्का होंगे। क्योंकि पृथ्वी के ऊपर उनके ही कथित भक्त
हर सुबह धर्म की समझ को नयी नयी गटर में फेंके जा रहे थे। यूपी के मंत्री चौधरी
लक्ष्मी नारायण ने नई थ्योरी दी। चौधरी के मुताबिक हनुमानजी जाट थे!!! उन्होंने विचित्रता का
ऑस्कर अवार्ड जीतने के लिए तर्क दिया कि, “जाट
भी बिना मामला समझे किसी काम में कूद पड़ते हैं। इसी तरह का कुछ स्वभाव हनुमानजी
का भी था।” कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी
नारायण चौधरी ने कहा, “जाट प्रभु हनुमान के वंशज हैं। हनुमानजी जाट थे।” चौधरी ने अपनी दलील के
पीछे तर्क दिया कि, “भगवान राम की पत्नी माता सीता का हरण रावण ने किया था
लेकिन लंका का दहन हनुमानजी ने किया था। ये ऐसी ही बात है कि किसी के प्रति कोई
अन्याय कर रहा हो और तीसरे व्यक्ति को दोनों के ही बारे में पता ना हो। यह जाट का
स्वभाव होता है... जब किसी के साथ अन्याय होता है तो वे (जाट) हस्तक्षेप करते हैं।” उन्होंने कहा कि, “प्रभु हनुमान से बलशाली कौन था। दारा सिंह कौन थे। वे
जाट थे।” बताइए, विचित्र बयानों के लिए ऑस्कर अवार्ड होता तो ऑस्कर की चयन समिति भी बाल नोंच लेती!
आचार्य निर्भय सागर
बोले- हनुमानजी जैन थे
नेताओं की मूर्खता के बीच
जैन मुनि चुप नहीं रह पाए और इन्होंने हनुमानजी को जैन बता दिया। जैन आचार्य निर्भय
सागर ने समसगढ़ के पंचबालयति जैन मंदिर में मीडिया से बात करते हुए हनुमानजी को जैन
बताया। आचार्य ने कहा कि, “जैन दर्शन के कई ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें हनुमानजी के
जैन धर्म से होने की बात लिखी है। जैन धर्म में 24 कामदेव होते हैं। इनमें
एक हनुमानजी हैं। जैन दर्शन के अनुसार चक्रवर्ती,
नारायण, प्रति नारायण, बलदेव, वासुदेव, कामदेव और तीर्थंकर के
माता पिता ये सभी क्षत्रिय हुआ करते हैं।”
आचार्य निर्भय सागर ने बताया कि, “इनकी संख्या 169 हुआ करती है, जो कि महापुरुष होते हैं। इन महापुरुषों में हनुमान का भी
नाम है और कामदेव होने के नाते ये क्षत्रिय थे।”
उन्होंने कहा कि, “जैन दर्शन के अनुसार हनुमान पहले क्षत्रिय थे।
उन्होंने वैराग्य की अवस्था को धारण किया इसके बाद जंगलों में जाने के बाद हनुमान
ने दीक्षा ली।”
अब तो स्वर्ग में यकीनन
आपातकालीन बैठक हुई होगी और सोचा गया होगा कि पृथ्वी पर पामर जीव जो कर रहा है
उसको कैसे रोका जाए। चित्रगुप्त और नारदजी ने असमर्थता जताते हुए कहा होगा कि जीव
को रोका जा सकता है, नेताजीव को नहीं। वाकई गजब का स्तर दिखा रहे थे सब। शायद नेता
से लेकर योगी और मुनि, सारे हनुमानजी के बजाय खुद के ही स्तर का एलान किए जा रहे
थे। और ये एलान अंधभक्ति का चश्मा निकालने के बाद ही समझ आ सकता था।
मंत्री रघुराजसिंह ने तो
भगवान राम को भी कास्ट सर्टिफिकेट दिया, कहा – रामजी और हनुमानजी ठाकुर थे
हिंदू धर्म की रक्षा का
ठेका लेकर बैठे सारे नेता, संत, बाबा तो चुप थे ही, भक्तों में भी मौन साधना व्याप्त
थी। इधर हर दिन हनुमानजी को कास्ट सर्टिफिकेट देने की मूर्खता चरम पर थी। इसी कड़ी में यूपी सरकार में राज्य स्तर के मंत्री रघुराज सिंह ने कह दिया कि, “बजरंगबली ठाकुर थे।” मथुरा में रघुराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि, “श्रीराम और श्रीकृष्ण,
दोनों ही ठाकुर थे।” ये रुकनेवाले नहीं थे।
इन्होंने तो कहा कि, “ज्यादातर ऋषि-मुनि भी ठाकुर समुदाय के ही थे। त्याग,
तपस्या और बलिदान देने वाला ही सच्चा ठाकुर है। हनुमानजी भी ठाकुर समुदाय से थे।” हनुमानजी से शुरू हुआ यह गटरछाप तर्कों का दौर अब
श्रीराम की भी जाति निर्धारित किए जा रहा था!
हनुमानजी किसान थे-
लोकदल के अध्यक्ष सुनिल सिंह भी कूदे
जहां विपक्षी पार्टियां
बच रही थी, सत्तादल जैसे कि छोड़ने को राजी नहीं था। लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष
सुनिल सिंह ने नया सर्टिफिकेट देते हुए कहा कि, “हनुमानजी किसान थे और इन्होंने धनपति रावण के सामने
जंग छेड़ी थी।” इन्होंने अंबानी और
अडानी को धनपति रावण कहकर सब किसानों को हनुमानजी बनने का आह्वान किया।
विवाद में कूदी समाजवादी पार्टी,
नेता ने कहा- यादव थे हनुमानजी
समाजवादी पार्टी
के कदावर नेता व जिले से सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष शिव शंकर यादव ने भी युवा
प्रतिनिधि संमेलन से हनुमानजी की जाति निर्धारण प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।
इन्होंने कहा कि, “हनुमानजी अहीर थे और यह बात भाजपा वाले नहीं बता रहे।” उनके दावे के बारे में पत्रकारों ने उनसे पूछा तो उन्होंने तुलसी रामायण से यह
ज्ञान प्राप्त करने का दावा किया!!! यह तो उग्र होकर कहने लगे कि, “सारे लोग झूठी जानकारी दे रहे हैं, हनुमानजी तो अहीर
थे।” जब सपा नेता धर्मेन्द्र यादव से इस बयान पर पूछा गया तो
इन्होंने किनारा करते हुए कहा कि यह तो शिव शंकर यादवजी को पता कि उन्होंने किस आधार
पर यह कहा है।
सपा के पूर्व सांसद ने हनुमानजी को बताया गोंड
सपा के राष्ट्रीय
महासचिव व पूर्व सांसद रमाशंकर विद्यार्थी ने हनुमानजी को गोंड जाति का बता दिया।
फेसबुक पर शेयर की वीडियो में उन्होंने कहा कि, “रामायण काल में वानर काल का अस्तित्व रहा है। हनुमानजी का जन्म गोंडवाना
प्रदेश में हुआ था, उस प्रदेश में गोंड जाति का राज्य हुआ करता था। वहां हनुमानजी का
भी राज्य था, इसलिए हम कह रहे हैं कि हनुमानजी गोंड थे।”
इन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि भाजपा भगवान को जातियों में बांटने का पाप करती है।
लेकिन इन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने जो जाति-निर्धारण किया वो पाप था या पूण्य?
विवादों पर पार्टी के
लोगों ने दी विचित्र प्रतिक्रियाएँ... स्वयंघोषित रक्षकों ने खुद का दोगला चेहरा उजागर किया
हनुमानजी के जाति
निर्धारण के प्रयासों पर बीजेपी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा
कि, “यह उनका संवैधानिक अधिकार है। हमारा वोटर हमारे साथ
है। बीजेपी को इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं कि कौन क्या कर रहा है?” बताइए, वो बता रहे थे कि बीजेपी को इन सब चीजों से
कोई मतलब नहीं कि कौन क्या कर रहा है!!! अब इस एलान का क्या
मतलब निकाले? हिंदू धर्म की रक्षा का
ठेका जबरन जिन्होंने ले रखा है वो कह रहे थे कि हमें कोई मतलब नहीं कि कौन क्या कर
रहा है!!! लेकिन यही चीज़ अगर दूसरों ने की होती तो वो क्या क्या
कर जाते यह सब को पता है। तब तो बयान होता कि हमारे देवताओं को अपमानित किया गया है,
हम उसकी जान ले लेंगे, पर अपमान नहीं सहेंगे, नहीं सहेगा हिंदुस्तान, वगैरह वगैरह। गजब की बात है कि नियत का
दोगलापन और खोखलापन अपने ही मुंह से बयां कर गये थे। वो संवैधानिक अधिकार की बात
कर गए, कह गए कि भाजपा को कौन क्या कर रहा है उससे मतलब नहीं। लेकिन कौन क्या खाता
है, कैसे रहता है उससे उन्हें इतना मतलब रहता है कि देशभर में इसी मुद्दे को लेकर वो
महीने और साल तक बर्बाद कर देते हैं!!! संवैधानिक अधिकार की बात करते करते उन्होंने देखा नहीं होगा कि कई पत्रकार
आलोचना के चक्कर में जेल चले गए, कई मार दिए गए, लेकिन इस बार घर की बात थी तो फिर
दूसरा कुतर्क निकलने वाला था ही नहीं।
प्रदेश अध्यक्ष ने सीएम
योगी द्वारा हनुमानजी पर दिए गए बयान पर उनका बचाव किया था। उन्होंंने कहा था कि, “उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया। उनके कहने का कुछ और मतलब था। पूरा संदर्भ समझे बिना ही मामले को तूल दे दिया गया।” हमने देखा है कि हमारे हिंदू देवी-देवताओं पर पहले भी
आपत्तिजनक टिप्पणियां हो चुकी है, लेकिन तब बयान के गलत मतलब वाला रास्ता होता ही
नहीं था!!! लेकिन ‘अब की बार हमारी सरकार’ होने की वजह से बयान का गलत मतलब वाला बेतुका रास्ता
पकड़ना पड़ रहा था। दोगलापन और खोखलापन के अलावा दूसरा कौन सा लफ्ज़ हो सकता है इनके
लिए? कभी हिंदू रक्षा की
ब्रांड रही उमा भारती ने भी डिफेन्स बैटिंग करते हुए कहा कि भगवान की जाति पर
विवाद नहीं हो सकते, वो समस्त मानव-जाति के हैं।
कुछ धार्मिक और राजनीतिक
प्रतिक्रियाएँ ज़रूर आई थी, बचाव-मुद्रा वाली। लेकिन बड़े बड़े नेताओं ने विवाद जगाया,
जबकि छोटे छोटे चेहरों ने बचाव-मुद्रा वाली बैटिंग करी। इसका असर कब होने वाला था
भला? डिफेन्स बैटिंग में ज्यादातर तो यही तर्क आए कि हनुमानजी सबके थे, वो सभी जातियों के थे, सभी समुदाय
के थे, सभी धर्म के थे वगैरह वगैरह...। अरे भाई... ये तो कई लोग पहले से ही तो कह
रहे थे। लेकिन तब आगजनी करके यह कहा जाता था कि नहीं, हनुमानजी फलांने फलांने के ही
थे। अधिकार वाला दावा आता था तब। लेकिन अब की बार... हमारी सरकार...। वैसे भगवानों के इलेक्शन आईडी कार्ड से लेकर आधार कार्ड भी जब बन सकते हैं तो फिर कास्ट सर्टिफिकेट
से लेकर आगे दूसरे सर्टिफिकेट भी बांटे ही जाएंगे। क्योंकि फैंस वाली जाति हर
किसीके पास मौजूद है।
धर्म को लेकर विचित्र समझ को स्थापित करने के प्रयास... धार्मिक संकीर्णता के बहाने सत्ता विस्तार की राजनीति या फिर विचारशून्य सभ्यता विस्तार के आसरे सत्ता विस्तार का लक्ष्यांक
वैसे राष्ट्र और
धर्म... इसमें से धर्म को राष्ट्र से कभी जुदा नहीं किया जा सकता, किंतु दोनों में इतनी भी नजदीकी नहीं होनी चाहिए कि दूरी खत्म ही हो जाए। इसे लेकर हम एक अलग
संस्करण पहले ही लिख चुके हैं। हनुमानजी को लेकर जो विवाद हुआ, इसे लेकर फैंस
प्रजाति की प्रतिक्रियाएँ भी उतनी ही राजनीतिक थी, जितना राजनीतिक यह विवाद था।
फैंस प्रजाति, जिसे हम लठैत या भक्त या अंधभक्त कहकर पुकारते हैं। हमने देखा वैसे,
खुद को धर्मरक्षक के रूप में जबरन स्थापित करनेवाले दल से यह विवाद शुरू हुआ और इसी
लिए ‘अब की बार हमारी सरकार’ होने की वजह से उस दल के लठैतों ने मनमोहन सिंहजी की आत्मा में घुसना ठीक समझा! क्योंकि उनके लिए उनके नेता ही भगवान थे, भगवान खुद भगवान नहीं होंगे!!! वर्ना किसी दूसरे ने यह सब कहा होता तो क्या क्या होता यह सभी को भली-भांति
ज्ञात है। दूसरी तरफ, कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों के पास भी अपने पर्सनल लठैत
है, उन्होंने भी इस विवाद पर चुटकियां ली। ये चुटकियां भी राजनीतिक ही थी। सोशल
मीडिया पर लिखा जाने लगा कि बजरंगबली और अली के चक्कर में तीन राज्य में हार का
प्रसाद मिला है, बजरंगबली को छेड़ना छोड़ दो, वर्ना 2019 में भंडारा हो जाएगा...
जैसा बहुत कुछ लिखा जाने लगा। लेकिन ये सब भावना नाम की भावना आहत होने का मामला
नहीं था, बस राजनीतिक चीड़ ही थी।
वैसे भी जिनकी
भावना हमेशा छोटी-मोटी चीजों पर आहत होती थी उन लोगों की भावना आहत नहीं हुई तो
विरोधियों की क्या होती? वो तो बस
राजनीतिक मजा ले रहे थे। वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतों के मामले हो, दिल्ली में सैनिक
की खुदकुशी का मामला हो, पूर्व सैनिकों पर लांठी भांजने का दुखद मंजर हो, किसान की
आत्महत्याओं के मामले हो या फिर भगवान के अपमान के मामले हो, किसान-जवान-विज्ञान के
बाद भगवान भी लठैतों और नेताओं की गटरछाप भावना से बच नहीं पाए। सपा-बसपा-कांग्रेस
समेत कई अन्य दल हिंदू देवी-देवताओं का अपमान कर चुके हैं। उन मामलों में हिंदूवादियों
ने क्या किया था और इस मामले में क्या नहीं किया, इस सत्यता के बीच एक दूसरा सत्य भी
याद रखना ज़रूरी है कि उन तमाम पुराने मामलों में कथित अपमान या विवादित टिप्पणियां उन
विपक्षी दलों की तरफ से ही तो आई थी। आज इनके लठैत जो कर रहे थे, वही तो उनके लठैत
उस दौर में करते थे।
राज्यसभा के भीतर
सपा सांसद नरेश अग्रवाल का वो विवादित बयान हर किसीको याद होगा। गणेश भगवान से
लेकर दूसरे तमाम हिंदू देवी-देवताओं के ऊपर हो चुके विवाद किसने किए थे सभी को पता
होना चाहिए। बॉलीवुड से लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा, टीएमसी... लंबी सूची है।
उत्पादों पर देवी-देवताओं के चित्रण, विवादित उत्पाद (शराब, बिकनी वगैरह) पर देवी या
देवताओं के फोटो, विदेशी उत्पादों से लेकर देशी उत्पाद पर हिंदू धर्म से संबंधित
विवाद, ये सभी ताज़ा इतिहास ही है। पुराना इतिहास भी कुछ कुछ ऐसा ही बदतर रहा।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने ये किया था तो हम भी करेंगे!!! जिन चीजों पर भावनाएँ आहत होती थी उन चीजों पर भावनाओं को प्रताड़ित करने का क्या
मतलब? जिन चीजों पर फेफड़े फाड़े जाते थे उन्हीं
मसलों पर चुप्पी धारण करने का क्या अर्थ? विरोधियों ने किया था तो हम भी करेंगे का मतलब ही बड़ा विचित्र है। छगन कहता
है कि मगन ने भी तो 100 किलोग्राम के काले कारनामे किए थे, हमने तो 90 किलोग्राम
के ही किए...!!! इस दलील का क्या मतलब होता है?
भारत ने पाकिस्तान
के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी थी। फिर उसके मार्केटिंग का दौर था। उस दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोदी ने दशहरा के दिन सभा में कहा था कि भगवान श्रीराम ने
आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहला युद्ध किया था!!! आतंकवाद और अधर्म... दोनों को जोड़ा ज़रूर
जा सकता है। लेकिन आतंकवाद और अधर्म की इस समझ को स्वीकार कर ले तो फिर श्रीराम से
पहले भी श्रीविष्णु ने कई अवतार धारण करके अधर्म का नाश किया था। खैर, लेकिन क्या
पीएम को सेना, उनका पराक्रम, पाकिस्तान-भारत का जमीनी विवाद, इन सबको धार्मिक
मान्यताओं के साथ जोड़ना चाहिए था? तर्क तो यही कहता
है कि नहीं। राजनीति, राजनीतिक उत्तरदायित्व और धर्म... इन सब में अंतर तो रहना ही
चाहिए। राष्ट्र और धर्म के बीच जो पतला सा अंतर है, उस अंतर को बरकरार रखने की
जिम्मेदारी पीएम को निभानी चाहिए थी। अब कुछ लोग कहेंगे कि पहले के पीएम ने यह कहा
था, वो कहा था। तो क्या छगन ने कहा था तो मगन भी कहेगा? पहले के पीएम ने जो गलतियां की थी उसे दोहराना अच्छी बात नहीं होती इतनी
मैट्रिक पास समझ होनी चाहिए। दरअसल, हर चीजों को धर्म से जोड़ने की शुरुआत पीएम
करेंगे तो फिर उनके मंत्री पीछे भी नहीं रहेंगे। खास करके तब कि जब इजाज़त बोस ने ही
दी हो, तो फिर चेले क्यों छूट जाए! इसका ही परिणाम था हनुमानजी का जाति–निर्धारण।
इधर श्रीराम के
लिए जगह नहीं मिल रही, उधर भगवान श्रीकृष्ण का बागीचा (मथुरा में) 300 करोड़ में अवैध
तरीके से बेच देने का विवाद हो गया!!! राजनीति का स्तर तो देखिए, उसी मंदिर पर भावना और हिंदूत्व जगेगा जो मंदिर वोट दिला सकता है। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में करीब 500 मंदिर ऐसे थे जो तोड़ दिए गए, या फिर तोड़ने के लिए आवारा ही छोड़ दिए गए, क्योंकि वो ऐसे
मंदिर थे जो वोट नहीं दे सकते थे!!! आस्था सरयू नदी
के प्रदुषण पर आहत नहीं होती!!! वही नदी जो
श्रीराम से जुड़ी हुई है। माँ गंगा के नाम पर आस्था जगती है, लेकिन उसी गंगा के
शुद्धिकरण के लिए कई लोग जान देते हैं तब आस्था सोती रहती है!!! हनुमानजी के कास्ट सर्टिफिकेट वाली वोट बैंक राजनीति का परिणाम यह भी हुआ कि
कुछ तो श्रीराम पर भी टिप्पणियां करने लगे थे। ऊपर हमने जितने भी बयान देखे वो
सारे पुष्ट थे। एक अपुष्ट खबर के मुताबिक इन दिनों कांग्रेस के किसी नेता ने
श्रीराम को पैगंबर से जोड़ दिया था। यह कितनी पुष्ट खबर थी ये पता नहीं, लेकिन कहीं
पर पढ़ने में ज़रूर आया था।
ऐसी चीजों का अंतिम
परिणाम क्या आता है? उसका जवाब कुछ
कुछ यूं है कि – युवा मोर्चे वाले कुछ फिल्मों का देश जलाकर विरोध करते हैं लेकिन
घोटालों पर चुप रहते हैं, और अंत में उन घोटालों से कई जिंदगियां, कई परिवार, कई
सभ्यताएँ, कई प्रदेश सदैव के लिए बर्बाद हो जाते हैं। गजब है यह तो। लोग भ्रष्टाचार
की, योजनाओं की, नीतियों की, सिस्टम की बात करे तब सांप्रदायकिता की बात करो... फिर
जब सांप्रदायिकता वाली राजनीति में घिरते नजर आओ तब भ्रष्टाचार या सिस्टम की बात
करो!!! सांप्रदायिकता अच्छी है, लेकिन लंपटता गलत है। बीफ न खाने की चेतावनी दी जाती
है, लेकिन बीफ कंपनी से मिला पैसा (फंड) ठूंस ठूंस के खाते हैं!!! परिणाम यह आता है
कि भारत कृषि प्रधान देश होते हुए भी दाल आयात करता है और जीव प्रेमी होते हुए भी माँस
निर्यात करता है!!! परिणाम यह आता है कि श्रीराम ने सदैव अपनी मर्यादा का खयाल रखा,
और उनके नाम के सहारे कुछ लोग मर्यादा के साथ ही दुष्कर्म कर देते हैं!!! भूख के चलते देश
में सैकड़ों बच्चे और उनकी माताएँ मर जाती हैं, वहीं कुछ बन बैठे साधुओं को यहां दूध से
स्नान करवाया जाता है!!! धर्मरक्षा के नाम पर हथियार उठाने वाले लोग ही हथियारधारी
कमांडो के साथ विचरण करते हुए पाए जाते हैं!!! कुछ साल पहले गणपति विसर्जन का एक
दृश्य देखा था। गणपति विसर्जन हो रहा था, सामने से एक यात्रा निकली... डीजे के
साथ... गाना बज रहा था... पी ले पी ले, ओ मेरे राजा...!!!!!! यह कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है, सच्ची घटना है।
धर्मरक्षक
रक्षात्मक खेल खेलते हुए कहते हैं कि देवी या देवताएँ सबके हैं, किसी एक के नहीं।
लेकिन हालात तो देखिए। कृष्ण ओबीसी के भगवान हैं, राम सवर्णों के ईष्ट हैं, हनुमानजी
दलितों के खाते में चले गए हैं, उधर शिवजी और ब्रह्माजी के कास्ट सर्टिफिकेट पेंडिंग
हैं!!! यह हालात काफी कुछ बयां कर जाते हैं।
नोट – इस लेख के ऊपर लठैत टाइप प्रजाति की पहली दलील यही होगी कि कांग्रेस या
दूसरे दलों के नेताओं ने देवी-देवताओं के जो अपमान किए हैं उस पर पहले लिखो। उन लठैतों को सूचित किया जाता है कि उनके काल में उनका लिखा जा चुका है। साथ में उस दौर में (जब
वे लोग ऐसी टिप्पणियां करते थे तब) उन लठैतों का जो फेफड़ा-फाड़ अभियान चलता था उसका
आज ‘अब की बार हमारी
सरकार’ की वजह से क्या
हाल है उसका संक्षिप्त विवरण यही है कि – छगन कहता है कि देखो भाई.. मगन ने भी 100
किलोग्राम के काले काम किए थे, हमने तो 90 किलोग्राम के ही तो किए हैं!!!
(इंडिया इनसाइड,
24 दिसम्बर 2018, एम वाला)
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