वैसे महामारियों का इतिहास दर्शाता है कि किसी भी महामारी से जूझते समय इंसान अपनी वैज्ञानिक सोच में, मेडिकल तरीकों में परिवर्तन करता ही रहता है। रिसर्च, नतीजे आदि आते रहते हैं और उसीके आधार पर इंसान अपनी लड़ाई में स्वाभाविक तौर पर बदलाव करता ही है। कभी कोई वैज्ञानिक रिसर्च होता है, कभी स्टॉक की भी कमी होती है, कभी कुछ और होता है। यह बिल्कुल कॉमन सी चीजें हैं। लेकिन ऐसे परिवर्तनों को अगर सियासी लोग अपनी इज्जत बचाने हेतु या किसी की इज्जत उछालने हेतु किसी दूसरे तरीके से प्रदर्शित करने लगे तब सवाल उठने लाजमी है।
जब वैक्सीन की दो खुराक के बीच का अंतराल भारत सरकार ने बढ़ाया तो उसके बाद व्हाट्सएप विश्वविद्यालय की कृपा से हम तो यही समझते थे कि वैक्सीन की दो डोज़ के बीच का गैप बढ़ाया गया है। फिर जाकर पता चला कि कोविशील्ड की दो खुराक के बीच का अंतराल बढ़ा है, कोवैक्सीन की दो खुराक के बीच का अंतराल नहीं। कोविशील्ड और कोवैक्सीन को लेकर थोड़ी बहुत जमीनी चर्चा हमने एक लेख में कर ही ली थी। सो, वह चर्चा वहीं पर जाकर पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। यहाँ क्लिक करें - कोविशील्ड और कोवैक्सीन
सरकार ने 13 मई 2021 को देश को बताया था कि उन्होंने कोविड 19 कार्य समूह (कोविड 19 वर्किंग ग्रुप) की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच समयांतराल बढ़ाया है। यहाँ एक बात नोट कर लेते हैं। अव्वल तो बड़े बड़े शहरों में जो भी स्थिति हो, छोटे शहरों में और गाँवों में एक स्थिति अभी कुछ दिनों पहले तक तो यही थी कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन कौन सी कंपनियाँ बनाती हैं, दोनों वैक्सीन को विकसित कौन से देश के वैज्ञानिकों ने किया, दोनों वैक्सीन की निर्माता कंपनियाँ कौन कौन हैं, दोनों वैक्सीन को लेकर अलग अलग राष्ट्रों में क्या क्या नीतियाँ रही हैं, इसे लेकर कोई खास जानकारी जुटाने की कोशिश नहीं की जाती थी। जब दो डोज़ के बीच समयांतराल बढ़ाया गया, तब से लेकर अब तक, सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें यही लगता है कि वैक्सीन की दो डोज़ के बीच का गैप बढ़ा है। उन्हें यह नहीं पता कि कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच का गैप बढ़ा है, कोवैक्सीन की दो डोज़ के बीच का नहीं।
कोविशील्ड की दो खुराक के बीच का अंतराल बढ़ा उसके बाद कई सवाल उठे, जिसके जवाब सभी ने अलग अलग दिये हैं। दूसरे देशों ने भी अंतराल बढ़ाया है, यह दलील देकर अपने वाले अंतराल को प्रमाणित करने की कोशिश हुई। कुछ दूसरे वैज्ञानिक रिसर्च को आगे रखा गया, जो कितने अलग अलग हैं यह हम इसी लेख में आगे देखेंगे। डॉक्टरों ने अपने अपने तर्क कहे, जिसमें भी कंट्राडिक्शन ज्यादा रहा। अव्वल तो यही रहा कि स्टॉक नहीं था तभी दुनिया के राष्ट्रों ने अंतराल बढ़ाया था। भारत ने भी यही किया होगा।
सोचिए, स्टॉक होता तो अंतराल बढ़ाने की कोई नीति आती ही नहीं। कंपनियाँ कहती कि टीके ज्यादा दिनों तक वातावरण में सुरक्षित रखना मुश्किल है, जल्दी से जल्दी सारे मानवों के शरीर में इंजेक्ट कर ही दो। घर घर जाकर कोने से लोगों को निकाल निकाल कर टीके दे देतें। लेकिन माल ही नहीं तो फिर ऐसे तरीके आजमाने ही पड़ते हैं। लेकिन इसे सियासी तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता इसीलिए यह विवाद हो जाता है। वैसे, टीका उत्सव के एलान के बाद उत्सव के बीच ऐसे अंतराल शायद उत्सव प्रिय नेताओं की उत्सव को ज्यादा लंबा खींचने की कोशिश हो।
एक बात तो ज़रूर लिखी कही जा सकती है। यही बात कि जब वैज्ञानिक और विशेषज्ञ दूसरी
लहर की आशंका जता रहे थे, चेता रहे थे, तभी हमारे यहाँ राष्ट्र के महानायक मोदीजी कोरोना विजय की घोषणा का भँवरा छोड़
देते हैं!!! भँवरा छोड़ने के बाद हमारे यहाँ कितनी लाशें बिछी इसका कोई आंकड़ा ही नहीं
है! अनगिनत लोग मारे गए। फिर वही महानायक आकर कह देता है कि कोरोना अब भी हमारे बीच
है, जागरूक रहिए!!! कितना कंट्राडिक्शन
है खुद ही सोच लीजिए। सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय,
जिनके जिम्मे है यह सब, मार्च 2021 की शुरुआत में कह
देता है कि कोरोना अब खत्म होने को है!!! फिर कोरोना सैकड़ों जिंदगियों को,
परिवारों को खत्म कर देता है। फिर स्वास्थ्य मंत्रालय
आकर देश को जागरूक बनने को कहता है!!! कंट्राडिक्शन की कितनी बड़ी डिक्शनरी है खुद
ही सोच लीजिए। ऐसे भँवरा छोड़ उत्सव में नये नये भँवरों पर विवाद होना स्वाभाविक है।
भारत के अलावा यूके, फ्रांस, ब्राजिल, साउथ आफ्रिका, कनाडा समेत कई देशों में अलग अलग कंपनी की वैक्सीन के लिए दो डोज़ के बीच का अंतराल बढ़ाया जा चुका है। यूके में तो अंतराल बढ़ाने के बाद घटाया भी जा चुका है। भारत की बात करें तो पहले हमारे यहाँ दूसरी डोज़ 4 हफ्तों में लेनी थी, फिर इसे 6 से 8 हफ्ते किया गया, फिर 12 से 16 हफ्ते। भारत में इन दिनों सीरम उत्पादन को लेकर संघर्ष कर रही थी, दूसरी लहर की शुरुआत हो चुकी थी, जो पहले से ज्यादा संक्रामक थी।
कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच का अंतराल बढ़ाने के विवाद में केंद्र सरकार का स्पष्टीकरण,
कहा कि सब कुछ सर्वसम्मति से और पर्याप्त डाटा के आधार
पर हुआ
सबसे पहले बता दें कि भारत सरकार कोविशील्ड वैक्सीन के दो खुराक के बीच का अंतराल
जनवरी 2021 से लेकर अब तक 3 बार बढ़ा चुकी है। दूसरे कई देश भी ऐसा कर चुके हैं। गैप
बढ़ाने के बाद सरकारें गैप घटा भी सकती है। जैसे हमने ऊपर लिखा है वैसे महामारियों
के समय इस प्रकार बदलाव करना सामान्य सी बात है। इसके पीछे अलग अलग कारण होते हैं।
विवाद की संभावना किन चीजों को लेकर हो सकती है उसकी बात भी हम ऊपर कर चुके हैं।
हमारे यहाँ इतनी सामान्य सी बात को लेकर विवाद उत्पन्न होने के पीछे स्वयं सरकार
भी जिम्मेदार है, तथा उसकी कार्यशैली भी। मार्च
2020 से लेकर अब तक सरकार ने कोरोना के संदर्भ में कई मसलों को लेकर गजब के तर्क और
शैली दिखाई है, इधर और उधर की बातें भी की
है, विजय की घोषणा के बाद लाशों
के ढेर पर बैठे भारत को भी देखा है नागरिकों ने। और भी बहुत कुछ ऊंच नीच हुई है। अब
जितनी सामान्य चीज़ महामारियों में इलाज़ के तरीकों में बदलाव होना है,
इतनी ही सामान्य चीज़ है सरकार के काम करने के तरीकों
से उन बदलाव के तरीकों को जोड़ कर देखना।
हमारे यहाँ हुआ यह कि टीका उत्सव की घोषणा कर दी थी महानायकजी ने! लेकिन कहीं टीका था नहीं!!! कई राज्यों में सैकड़ों टीका केंद्र बंद हो चुके थे! ऐसे में कोविशील्ड के दो डोज़ के बीच का अंतराल बढ़ाया गया। इसके लिए प्रभावी, असरकारकता, एंटीबॉडी आदि आदि लफ्जों का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक तर्कों के सहारे दलीले दी गई। लेकिन स्टॉक की कमी का विवाद पीछा छोड़ नहीं रहा था। इस विवाद के बीच 16 जून 2021 के दिन केंद्र सरकार ने कहा कि कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच समयांतराल 6-8 हफ्ते की जगह 12 से 16 हफ्ते करने का फैसला वैज्ञानिक साक्ष्यों और तथ्यों पर आधारित है। यह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान है। इसी दिन नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एनटीएजीआई) के चेयरमैन एनके अरोड़ा ने भी यही कहा।
अरोड़ा ने सरकार की तरफ से कहा कि समूह की बैठक के दौरान इस फैसले को लेकर कोई मतभेद नहीं था और सर्वसम्मति से यह सिफारिश की गई थी। उन्होंने डोज़ बढ़ाने के पीछे के कारणों को तफ्सील से बताया। उन्होंने कहा कि, “सबसे पहले 4 हफ्ते का गैप ब्रिजिंग ट्रायल के डाटा के आधार पर किया गया। उसके बाद गैप को उन स्टडीज़ के आधार पर बढ़ाया गया जिनमें ऐसा करने से क्षमता बढ़ने की बात सामने आई थी। कोविशील्ड को लेकर शुरुआती स्टडीज़ काफी अलग-अलग तरह की आ रही थीं। कुछ देश जैसे यूनाइटेड किंगडम ने दिसंबर 2020 में ही ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के डोज़ के बीच गैप को बढ़ा कर 12 हफ्ते कर दिया था। इस डाटा के आने के बाद भी हमने अपने यहां कोविशील्ड के बीच में गैप का फैसला लेने से पहले ब्रिज़िंग ट्रायल का डाटा देखा। इसमें गैप बढ़ाने से अच्छे रिजल्ट दिखे थे। उसके बाद हमें दूसरे साइंटिफिक और लैब के डाटा मिले। इसके बाद ही हमें लगा कि हमें डोज़ के बीच इंटरवल को बढ़ाना चाहिए। इसके बाद ही हमने गैप को 4 से बढ़ा कर 8 हफ्ते किया था। स्टडी से पता चला था कि 4 हफ्ते के गैप में मिली 57 फीसदी कारगर क्षमता 8 हफ्ते के गैप में 60 फीसदी हो जाती है।”
जब उनसे यह सवाल किया गया कि पहले ही गैप को बढ़ा कर 12 हफ्ते क्यों नहीं किया गया, तो उन्होंने कहा कि हमने फैसला लिया कि हम ऐसा तब ही करेंगे जब यूके से ग्राउंड लेवल का डाटा आ जाएगा। उन्होंने कहा कि दूसरे देश जैसे कनाडा और श्रीलंका आदि भी ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन (कोविडशील्ड) के दो डोज़ के बीच 12 से 16 हफ्ते का गैप दे रहे हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्वीट में जानकारी देते हुए लगभग लगभग यही कहा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ट्वीट कर रहा कि कोविशील्ड की दो खुराक के बीच अंतराल बढ़ाने का निर्णय वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर पारदर्शी तरीके से लिया गया है। सरकार ने इस दिन यह भी कहा कि गैप वैक्सीन की कमी के चलते नहीं, बल्कि रिसर्च के आधार पर बढ़ाया गया था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अपने ट्वीट में गजब का एक भँवरा यह भी छोड़ दिया कि भारत में ऐसे हेल्थ डेटा के आकलन का बेहतरीन तंत्र है। बताइए, पिछले साल से वैज्ञानिक और उनके समूह, रिसर्च करने वाले लोग और संस्थाएँ एक ही शिकायत करते हैं कि सही डाटा नहीं मिल रहा! वे लोग पिछले साल से कह रहे हैं कि बिना सही और सटीक डाटा के रिसर्च ठीक से नहीं हो पा रहा! इधर देश के स्वास्थ्य मंत्री डाटा आकलन के बेहतरीन तंत्र का भँवरा उछाल देते हैं!!! अरे भाई, कोरोना ही थोड़ी वेरिएंट बना सकता है, हमारे यहाँ राजनीति उससे भी ज्यादा वेरिएंट वाली होती है!
डाटा और आंकड़ों को लेकर मोदी सरकार पहले से रेनकोट पहनकर नहाने की कला दिखाती रही है! कई नामचीन लोग, जो बहुत पहले से डाटा-संख्या-आंकड़ें आदि चीजों पर सरकार के साथ, सरकार के विभागों के साथ, सरकार संबंधित संस्थाओं के साथ काम कर रहे थे, निराश होकर बिदा ले चुके हैं। यह कोरोना से भी पहले की बात है। ऐसे में डाटा, यूं कहे कि आंकड़ों के जाल को लेकर सरकार को संदिग्ध नजरों से देखा जाए यह भी उतनी ही स्वाभाविक बात है, जितना महामारियों के समय पद्धतियों का बदलते रहना।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि रियल लाइफ एविडेंस की उपलब्धता के आधार पर, विशेषकर ब्रिटेन से मिले साक्ष्यों के आधार पर कोविड 19 वर्किंग ग्रुप ने दो खुराक के बीच समय बढ़ाने पर सहमति जताई थी। नोट करें कि सिर्फ सीरम की कोविशील्ड के दो डोज़ का गैप बदला गया था, भारत बायोटेक की कोवैक्सिन का नहीं। ऐसा क्यों इसे लेकर सरकार के जो तर्क हैं उसकी चर्चा आगे करेंगे। सरकार ने बताया कि कोविड 19 वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन पर बने नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप (एनइजीवीएसी) ने कार्यसमूह की ये सिफारिशें 12 मई 2021 को स्वीकार की थी। देश को यह सूचना 13 मई 2021 को दी गई थी।
यहाँ बता दे कि एनइजीवीएसी की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल कर रहे हैं। वीके पॉल ने गैप बढ़ाते समय प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि वैज्ञानिक परीक्षणों पर आधारित निष्कर्ष में इसे ज्यादा प्रभावी पाया गया था, इसीलिए सिफारिशें स्वीकार की थी। उन्होंने कहा था कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज हुई तो ज्यादा डाटा इक्ठ्ठा हुआ, संशोधन में पाया गया कि दो डोज़ का अंतराल बढ़ाने पर ज्यादा एंटीबॉडी शरीर में बनती है और यह कोरोना वायरस के खिलाफ ज्यादा प्रभावी है। डॉ. पॉल ने ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा था कि वहां भी अंतराल बढ़ाया गया है। हालाँकि डॉ. पॉल ने सीरम- कोविशील्ड- एस्ट्राजेनेका- ब्रिटेन के रिश्ते का स्पष्टीकरण देना ठीक नहीं समझा होगा शायद।
अब बात करते हैं कि कोवैक्सीन की डोज़ के बीच गैप क्यों नही बढ़ाया गया, कोविशील्ड को लेकर ही ऐसा क्यों हुआ? कोवैक्सीन को लेकर सरकार की तरफ से कहा गया है कि इस लिहाज से कोवैक्सीन का कोई ट्रायल नहीं हुआ है। कोवैक्सीन के संबंध में कहा गया कि इसे लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है, इसलिए किसी दावे के साथ सरकार नहीं जा सकती।
दूसरे देशों ने खुराक देने का पैटर्न क्यों नहीं बदला इसका जवाब नागरिक खुद ही ढूंढ ले, सरकार अपना कहेगी, दूसरों का नहीं। ज्यादा डाटा इक्ठ्ठा होने पर रिसर्च अच्छा मिलता है यह डॉ. पॉल के बयान में है ही। सो, ज्यादा से ज्यादा रिसर्च करें, डाटा इक्ठ्ठा करें। किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नहीं, बस यही समझने के लिए कि एक ही चीज़ को लेकर एक ही फिल्ड के लोग अलग अलग बातें क्यों कर रहे हैं।
हमारे यहाँ हुआ यह कि टीका उत्सव की घोषणा कर दी थी महानायकजी ने! लेकिन कहीं टीका था नहीं!!! कई राज्यों में सैकड़ों टीका केंद्र बंद हो चुके थे! ऐसे में कोविशील्ड के दो डोज़ के बीच का अंतराल बढ़ाया गया। इसके लिए प्रभावी, असरकारकता, एंटीबॉडी आदि आदि लफ्जों का इस्तेमाल करके वैज्ञानिक तर्कों के सहारे दलीले दी गई। लेकिन स्टॉक की कमी का विवाद पीछा छोड़ नहीं रहा था। इस विवाद के बीच 16 जून 2021 के दिन केंद्र सरकार ने कहा कि कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच समयांतराल 6-8 हफ्ते की जगह 12 से 16 हफ्ते करने का फैसला वैज्ञानिक साक्ष्यों और तथ्यों पर आधारित है। यह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान है। इसी दिन नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन (एनटीएजीआई) के चेयरमैन एनके अरोड़ा ने भी यही कहा।
अरोड़ा ने सरकार की तरफ से कहा कि समूह की बैठक के दौरान इस फैसले को लेकर कोई मतभेद नहीं था और सर्वसम्मति से यह सिफारिश की गई थी। उन्होंने डोज़ बढ़ाने के पीछे के कारणों को तफ्सील से बताया। उन्होंने कहा कि, “सबसे पहले 4 हफ्ते का गैप ब्रिजिंग ट्रायल के डाटा के आधार पर किया गया। उसके बाद गैप को उन स्टडीज़ के आधार पर बढ़ाया गया जिनमें ऐसा करने से क्षमता बढ़ने की बात सामने आई थी। कोविशील्ड को लेकर शुरुआती स्टडीज़ काफी अलग-अलग तरह की आ रही थीं। कुछ देश जैसे यूनाइटेड किंगडम ने दिसंबर 2020 में ही ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के डोज़ के बीच गैप को बढ़ा कर 12 हफ्ते कर दिया था। इस डाटा के आने के बाद भी हमने अपने यहां कोविशील्ड के बीच में गैप का फैसला लेने से पहले ब्रिज़िंग ट्रायल का डाटा देखा। इसमें गैप बढ़ाने से अच्छे रिजल्ट दिखे थे। उसके बाद हमें दूसरे साइंटिफिक और लैब के डाटा मिले। इसके बाद ही हमें लगा कि हमें डोज़ के बीच इंटरवल को बढ़ाना चाहिए। इसके बाद ही हमने गैप को 4 से बढ़ा कर 8 हफ्ते किया था। स्टडी से पता चला था कि 4 हफ्ते के गैप में मिली 57 फीसदी कारगर क्षमता 8 हफ्ते के गैप में 60 फीसदी हो जाती है।”
जब उनसे यह सवाल किया गया कि पहले ही गैप को बढ़ा कर 12 हफ्ते क्यों नहीं किया गया, तो उन्होंने कहा कि हमने फैसला लिया कि हम ऐसा तब ही करेंगे जब यूके से ग्राउंड लेवल का डाटा आ जाएगा। उन्होंने कहा कि दूसरे देश जैसे कनाडा और श्रीलंका आदि भी ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन (कोविडशील्ड) के दो डोज़ के बीच 12 से 16 हफ्ते का गैप दे रहे हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्वीट में जानकारी देते हुए लगभग लगभग यही कहा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ट्वीट कर रहा कि कोविशील्ड की दो खुराक के बीच अंतराल बढ़ाने का निर्णय वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर पारदर्शी तरीके से लिया गया है। सरकार ने इस दिन यह भी कहा कि गैप वैक्सीन की कमी के चलते नहीं, बल्कि रिसर्च के आधार पर बढ़ाया गया था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अपने ट्वीट में गजब का एक भँवरा यह भी छोड़ दिया कि भारत में ऐसे हेल्थ डेटा के आकलन का बेहतरीन तंत्र है। बताइए, पिछले साल से वैज्ञानिक और उनके समूह, रिसर्च करने वाले लोग और संस्थाएँ एक ही शिकायत करते हैं कि सही डाटा नहीं मिल रहा! वे लोग पिछले साल से कह रहे हैं कि बिना सही और सटीक डाटा के रिसर्च ठीक से नहीं हो पा रहा! इधर देश के स्वास्थ्य मंत्री डाटा आकलन के बेहतरीन तंत्र का भँवरा उछाल देते हैं!!! अरे भाई, कोरोना ही थोड़ी वेरिएंट बना सकता है, हमारे यहाँ राजनीति उससे भी ज्यादा वेरिएंट वाली होती है!
डाटा और आंकड़ों को लेकर मोदी सरकार पहले से रेनकोट पहनकर नहाने की कला दिखाती रही है! कई नामचीन लोग, जो बहुत पहले से डाटा-संख्या-आंकड़ें आदि चीजों पर सरकार के साथ, सरकार के विभागों के साथ, सरकार संबंधित संस्थाओं के साथ काम कर रहे थे, निराश होकर बिदा ले चुके हैं। यह कोरोना से भी पहले की बात है। ऐसे में डाटा, यूं कहे कि आंकड़ों के जाल को लेकर सरकार को संदिग्ध नजरों से देखा जाए यह भी उतनी ही स्वाभाविक बात है, जितना महामारियों के समय पद्धतियों का बदलते रहना।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि रियल लाइफ एविडेंस की उपलब्धता के आधार पर, विशेषकर ब्रिटेन से मिले साक्ष्यों के आधार पर कोविड 19 वर्किंग ग्रुप ने दो खुराक के बीच समय बढ़ाने पर सहमति जताई थी। नोट करें कि सिर्फ सीरम की कोविशील्ड के दो डोज़ का गैप बदला गया था, भारत बायोटेक की कोवैक्सिन का नहीं। ऐसा क्यों इसे लेकर सरकार के जो तर्क हैं उसकी चर्चा आगे करेंगे। सरकार ने बताया कि कोविड 19 वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन पर बने नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप (एनइजीवीएसी) ने कार्यसमूह की ये सिफारिशें 12 मई 2021 को स्वीकार की थी। देश को यह सूचना 13 मई 2021 को दी गई थी।
यहाँ बता दे कि एनइजीवीएसी की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल कर रहे हैं। वीके पॉल ने गैप बढ़ाते समय प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि वैज्ञानिक परीक्षणों पर आधारित निष्कर्ष में इसे ज्यादा प्रभावी पाया गया था, इसीलिए सिफारिशें स्वीकार की थी। उन्होंने कहा था कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज हुई तो ज्यादा डाटा इक्ठ्ठा हुआ, संशोधन में पाया गया कि दो डोज़ का अंतराल बढ़ाने पर ज्यादा एंटीबॉडी शरीर में बनती है और यह कोरोना वायरस के खिलाफ ज्यादा प्रभावी है। डॉ. पॉल ने ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा था कि वहां भी अंतराल बढ़ाया गया है। हालाँकि डॉ. पॉल ने सीरम- कोविशील्ड- एस्ट्राजेनेका- ब्रिटेन के रिश्ते का स्पष्टीकरण देना ठीक नहीं समझा होगा शायद।
अब बात करते हैं कि कोवैक्सीन की डोज़ के बीच गैप क्यों नही बढ़ाया गया, कोविशील्ड को लेकर ही ऐसा क्यों हुआ? कोवैक्सीन को लेकर सरकार की तरफ से कहा गया है कि इस लिहाज से कोवैक्सीन का कोई ट्रायल नहीं हुआ है। कोवैक्सीन के संबंध में कहा गया कि इसे लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है, इसलिए किसी दावे के साथ सरकार नहीं जा सकती।
दूसरे देशों ने खुराक देने का पैटर्न क्यों नहीं बदला इसका जवाब नागरिक खुद ही ढूंढ ले, सरकार अपना कहेगी, दूसरों का नहीं। ज्यादा डाटा इक्ठ्ठा होने पर रिसर्च अच्छा मिलता है यह डॉ. पॉल के बयान में है ही। सो, ज्यादा से ज्यादा रिसर्च करें, डाटा इक्ठ्ठा करें। किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नहीं, बस यही समझने के लिए कि एक ही चीज़ को लेकर एक ही फिल्ड के लोग अलग अलग बातें क्यों कर रहे हैं।
भारत सरकार के स्पष्टीकरण के उलट वैज्ञानिकों ने मीडिया से कहा था –
भारत सरकार ने हमारी बात सुने बिना वैक्सीन के दोनों
डोज़ का गैप बढ़ा दिया, कहा कि ज़रूरी डाटा नहीं था
भारत सरकार ने 16 जून 2021 को यह स्पष्टीकरण जारी किया था, क्योंकि इससे पहले वैज्ञानिकों ने मीडिया से जो कहा था वह भारत सरकार के इस ताजा
दावे से बिल्कुल विपरित था। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने एडवाइजरी बोर्ड के सदस्यों के
हवाले से दावा किया था कि सरकार के इस फैसले के पीछे बोर्ड के सभी सदस्यों की सहमति
नहीं थी। यानि सरकार ने सर्वसम्मति का जो दावा किया, वह गलत था क्या? अगर सर्वसम्मति का दावा गलत था तो फिर एक दूसरा तर्क यह भी निकलता है कि सभी के
रिसर्च एक समान नहीं थे, यानि रिसर्च के बाद नतीजों
वाला सरकारी दावा भी गलत ही था क्या?
न्यूज़ एजेंसी ने उन सदस्यों के हवाले से लिखा था कि कुछ सदस्यों की राय कोविशील्ड
वैक्सीन के दो डोज़ के बीच गैप को 8 से 12 हफ्ते रखने की थी,
लेकिन सरकार ने इसे 12 से 16 हफ्ते कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम
में गौर करने लायक बात यह भी है कि सरकार ने गैप तभी बढ़ाया जब वैक्सीन की किल्लत थी
और संक्रमण की दूसरी लहर उफान पर जाने को बेताब थी।
13 मई 2021 को जब कोविशील्ड डोज़ का गैप बढ़ा, किंतु कोवैक्सीन का नहीं, तभी काफी विवाद हुआ था। वैक्सीन की कमी के चलते गैप बढ़ा दिया गया है, यह आरोप पहले से लग रहे थे। गैप बढ़ाते समय डॉ. वीके पॉल ने जो बयान दिया वह ऊपर हमने देखा। इसके बाद बार बार सरकार की तरफ से गैप बढ़ाने को लेकर कुछ तर्क आते रहे। अंत में स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जो स्पष्टीकरण आया उसे भी हमने ऊपर देखा।
इस सरकारी स्पष्टीकरण में पर्याप्त डाटा के रिसर्च के आधार पर गैप बढ़ाया गया, यह जानकारी दी गई। किंतु इस सरकारी स्पष्टीकरण के उलट इस ग्रुप के 14 कोर मेंबर्स में से तीन मेंबर्स ने कहा कि गैप बढ़ाने को लकर पर्याप्त डाटा ग्रुप के पास मौजूद ही नहीं था। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के पूर्व निदेशक एमडी गुप्ते ने रॉयटर्स को बताया कि एनटीएजीआई ने वैक्सीन की दो डोज़ के बीच का अंतर 8 से 12 हफ्ते करने की सलाह दी थी, डब्ल्यूएचओ भी यही सलाह देता है, लेकिन 12 हफ्ते से ज्यादा दो डोज़ के बीच के अंतर को लेकर अभी कोई डाटा नहीं है। उन्होंने कहा कि 8 से 12 हफ्ते तक का अंतर ठीक है, लेकिन 12 से 16 हफ्ते का गैप सरकार अपनी मर्जी से लेकर आई है, ये सही भी हो सकता है और नहीं भी, अभी हमारे पास कोई डाटा नहीं है।
यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि ग्रुप के सदस्य इस बात को स्वीकार करते हैं कि गैप बढ़ाना गलत बात नहीं है। मामला उस गैप में कितने हफ्ते का समय कहा गया और नहीं कहा गया उसीको लेकर है। इतनी सी छोटी बात को लेकर बवाल काहे को भाई? इस मामले के जो भी विशेषज्ञ हैं वे, और सरकार, दोनों जो है वह बोल दें। बस इतनी सी तो बात है न इसमें?
एमडी गुप्ते जी ने जो बात कही वही बात एनटीएजीआई के सदस्य मैथ्यू वर्गीस भी कहते हैं। वे भी कहते हैं कि 8 से 12 हफ्ते की सीमा ही रिकमेंड की थी। कोविड वर्किंग ग्रुप के एक और सदस्य जेपी मुलियिल भी रॉयटर्स को बताते हैं कि एनटीएजीआई में वैक्सीन के डोज़ के बीच का अंतर बढ़ा कर 12 से 16 हफ्ते करने की बात नहीं कही थी।
24 मई 2021 की अमर उजाला की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में एक सरकारी पैनल के अध्यक्ष के हवाले से कहा गया है कि कोरोना वैक्सीन की खुराकों में समय बढ़ाकर टीकों को बचाने की कोशिश की जा रही है। अमर उजाला ने जिस व्यक्ति के हवाले से यह लिखा है उनका नाम है एनके अरोड़ा। जी हां, वही साहब, जिनकी बात हमने ऊपर की है, जिसमें वे सरकारी फैसले का बचाव करते दिख रहे हैं।
13 मई 2021 को जब कोविशील्ड डोज़ का गैप बढ़ा, किंतु कोवैक्सीन का नहीं, तभी काफी विवाद हुआ था। वैक्सीन की कमी के चलते गैप बढ़ा दिया गया है, यह आरोप पहले से लग रहे थे। गैप बढ़ाते समय डॉ. वीके पॉल ने जो बयान दिया वह ऊपर हमने देखा। इसके बाद बार बार सरकार की तरफ से गैप बढ़ाने को लेकर कुछ तर्क आते रहे। अंत में स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जो स्पष्टीकरण आया उसे भी हमने ऊपर देखा।
इस सरकारी स्पष्टीकरण में पर्याप्त डाटा के रिसर्च के आधार पर गैप बढ़ाया गया, यह जानकारी दी गई। किंतु इस सरकारी स्पष्टीकरण के उलट इस ग्रुप के 14 कोर मेंबर्स में से तीन मेंबर्स ने कहा कि गैप बढ़ाने को लकर पर्याप्त डाटा ग्रुप के पास मौजूद ही नहीं था। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के पूर्व निदेशक एमडी गुप्ते ने रॉयटर्स को बताया कि एनटीएजीआई ने वैक्सीन की दो डोज़ के बीच का अंतर 8 से 12 हफ्ते करने की सलाह दी थी, डब्ल्यूएचओ भी यही सलाह देता है, लेकिन 12 हफ्ते से ज्यादा दो डोज़ के बीच के अंतर को लेकर अभी कोई डाटा नहीं है। उन्होंने कहा कि 8 से 12 हफ्ते तक का अंतर ठीक है, लेकिन 12 से 16 हफ्ते का गैप सरकार अपनी मर्जी से लेकर आई है, ये सही भी हो सकता है और नहीं भी, अभी हमारे पास कोई डाटा नहीं है।
यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि ग्रुप के सदस्य इस बात को स्वीकार करते हैं कि गैप बढ़ाना गलत बात नहीं है। मामला उस गैप में कितने हफ्ते का समय कहा गया और नहीं कहा गया उसीको लेकर है। इतनी सी छोटी बात को लेकर बवाल काहे को भाई? इस मामले के जो भी विशेषज्ञ हैं वे, और सरकार, दोनों जो है वह बोल दें। बस इतनी सी तो बात है न इसमें?
एमडी गुप्ते जी ने जो बात कही वही बात एनटीएजीआई के सदस्य मैथ्यू वर्गीस भी कहते हैं। वे भी कहते हैं कि 8 से 12 हफ्ते की सीमा ही रिकमेंड की थी। कोविड वर्किंग ग्रुप के एक और सदस्य जेपी मुलियिल भी रॉयटर्स को बताते हैं कि एनटीएजीआई में वैक्सीन के डोज़ के बीच का अंतर बढ़ा कर 12 से 16 हफ्ते करने की बात नहीं कही थी।
24 मई 2021 की अमर उजाला की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में एक सरकारी पैनल के अध्यक्ष के हवाले से कहा गया है कि कोरोना वैक्सीन की खुराकों में समय बढ़ाकर टीकों को बचाने की कोशिश की जा रही है। अमर उजाला ने जिस व्यक्ति के हवाले से यह लिखा है उनका नाम है एनके अरोड़ा। जी हां, वही साहब, जिनकी बात हमने ऊपर की है, जिसमें वे सरकारी फैसले का बचाव करते दिख रहे हैं।
वैक्सीन की दो खुराक के बीच का अंतर... तर्क और मत में भिन्नता
सरकार का तर्क और सरकार ने जिस ग्रुप का हवाला दिया उसी ग्रुप में तर्क में भिन्नता
का मंजर हमने ऊपर देख ही लिया। वैक्सीन को दो खुराक के बीच के अंतर पर कुछ महत्वपूर्ण
तर्क देख लेते हैं।
गुजरात सरकार के कोविड टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. नवीन ठाकर कहते हैं कि वैक्सीन चाहे कोई भी हो, ज्यादातर मामलों में थोड़ा लंबा गैप रखना बेहतर होता है। वे कोवैक्सीन टीके में कम से कम 4 से 6 हफ्ते का गैप रखने की वकालत करते हैं। साथ ही यह भी कहते हैं कि उसमें भी ज्यादा गैप होगा तो ज्यादा फायदेमंद होगा।
सीएमसी में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर गगनदीप कांग कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति वैक्सीन की पहली डोज़ लेने के बाद संक्रमित हो जाता है और 6 से 10 हफ्ते में उसकी रिकवरी हो जाती है तब भी उसे दूसरा डोज़ लेना चाहिए।
फरवरी 2021 में लैंसेट पत्रिका में एक स्टडी में कहा गया था कि 12 हफ्ते से ज्यादा गैप पर ऑक्सफोर्ड व एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन की एफिकेसी और बेहतर हो रही है। एस्ट्राज़ेनेका, यानि वही कंपनी जिसने कोविशील्ड के उत्पादन का काम सीरम को दिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाहकार समूह ने 10 फरवरी 2021 को सुझाव दिया था कि गैप 8 से 12 हफ्तों का होना चाहिए।
लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के लेखक ऑक्सफोर्ड प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड के शब्दों को भी समझा जाना चाहिए। वह कहते हैं कि ऐसे में जबकि वैक्सीन की सप्लाई सीमित है तब वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित नीतियां बनाई जाएं तो जल्दी बड़ी आबादी को एक डोज़ से सुरक्षा मिल सकती है। यानि प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड साफ लफ्जों में कह देते हैं कि वैक्सीन की कमी है इसलिए डोज़ का गैप बढ़ाना सही फैसला होगा।
जैसा हमने ऊपर देखा वैसे, कोविड ग्रुप के तीन सदस्यों, एमडी गुप्ते, मैथ्यू वर्गीस, जेपी मुलियिल ने डाटा की कमी की बात कही। कहा कि बिना पर्याप्त डाटा के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। वे गैप को बहुत ज्यादा बढ़ाने पर असहमत नजर आते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से एनके अरोड़ा, जो एनटीएजीआई के चेयरमैन हैं, उनके हवाले से अमर उजाला ने अपनी 24 मई 2021 की रिपोर्ट में दावा किया है कि एनके अरोड़ा ने कहा था कि वैक्सीन की दो डोज़ के गैप को बढ़ाकर टीकों को बचाए रखने की कोशिश की जा रही है।
हाल ही में कोविड पर गठित की गई सरकारी पैनल छोड़ने वाले भारतीय वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील सरकार द्वारा आंकड़े उपलब्ध ना कराने को लेकर अपनी नाराजगी जता चुके हैं तथा पैनल छोड़ चुके हैँ। यानि उनके हिसाब से पर्याप्त डाटा इक्ठ्ठा नहीं किया जा सका है।
यूके में फाइजर की वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप बढ़ाने का ऐलान किया गया तब फाइजर ने कहा था कि वो इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि गैप बढ़ाने से वैक्सीन की क्षमता बढ़ जाती है।
4 जून 2021 के दिन इंडियन मीडिया में लैंसेट का एक और अध्ययन प्रकाशित हुआ। इस बार लैंसेट ने कहा कि वैक्सीन की डोज में अगर कम अंतर होता है तो यह डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होगा। यह वही दिन थे जब ब्रिटेन में दो खुराक के बीच का गैप कम किया जा रहा था।
यूसीएलएच इंफेक्शियस डिजीज कंसल्टेंट और सीनियर क्लिनिकल रिसर्च फेलो एमा वॉल कहती हैं कि हमारे नतीजे बताते हैं कि सबसे अच्छा तरीका है कि जल्दी से दूसरी खुराक दी जाए और उन लोगों को बूस्टर मुहैया कराया जाए जिनकी इम्युनिटी इन नए वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा नहीं हो सकती है।
अमेरिका के कोविड एक्सकपर्ट और राष्ट्रपति के मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर एंथनी फाउची कहते हैं कि कोविड वैक्सीन के बीच अंतराल बढ़ाने से लोगों के वायरस के वेरिएंट की चपेट में आने की आशंका बढ़ सकती है। वे कहते हैं कि डेल्टा वेरिएंट से जूझ रहे देशों को चिंतित होना चाहिए। डॉक्टर एंथनी फाउची भी प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड सरीखा मत प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि कोई देश वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है तभी उसे अंतराल बढ़ाना चाहिए, अन्यथा नहीं।
यूं तो वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि हर वैक्सीन बीमारी की गंभीरता को
कम कर रही हैं। किंतु कुछ स्टडीज़ में एक दावा यह भी किया गया कि वायरस की प्रकृति
ही है वेरिएंट बदलते रहना और इसीके चलते संपूर्ण वैक्सीनेशन की वकालत कई स्टडी में
की गई। यानि दो डोज़ के बीच कम से कम गैप।
एम्स ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि कोरोना डेल्टा वेरिएंट की वजह से ब्रेकथू इंफेक्शन हो रहा है, यानि टीका लेने के बाद भी संक्रमण। ब्रिटेन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट टीके के प्रभाव को कम कर रहा है। अभी महज 4-5 दिनों पहले ही डब्ल्यूएचओ एक बयान जारी कर रहा है कि जितनी भी वैक्सीन फिलहाल मौजूद है वे कितने समय तक बीमारी से सुरक्षा दे पाएगी इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है, जानकारी मिलने में समय लगेगा। ऐसे ही रिपोर्ट के आधार पर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि दो डोज़ के बीच का गैप ज्यादा रहेगा तो यह चिंता करनेवाली बात है।
सरकार कह रही है कि सब कुछ सर्वसम्मति से हुआ, जबकि उसी ग्रुप के कुछ सदस्य उस कथित सर्वसम्मति से उलट कुछ और ही कह रहे हैं! सरकार कह रही है कि ज़रूरी और पर्याप्त डाटा था, जबकि सदस्य डाटा की कमी की बात कर रहे हैं! कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, यह सवाल इन्हीं कंट्राडिक्शन की वजह से पैदा होता है। सर्वसम्मति वाली बात सर्वसम्मति से कही जाती तो सर्वसम्मति से सर्व जगह सम्मति होती।
हमें दो डोज़ के बीच का अंतर 6-8-12 हफ्ते क्या, 24 हफ्ते का कह दो, हम तैयार ही है! ये भी कह दो कि सुबह को एक डोज़, दोपहर को दूसरा डोज़... हम वही करेंगे! हम तो सुबह कोविशील्ड, दोपहर को कोवैक्सीन और शाम को स्पूतनिक वाला टीका भी लगाने को तैयार हैं! चिंता मत करो, हमें यह भी बता दो कि एक डोज़ ले लिया, अब दूसरा डोज़ लेने की ज़रूरत नहीं है, हम नहीं लेंगे! अरे भाई, हम नागरिकों को तो यही आश्वासन चाहिए कि हम सब कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं। आप सब लोग यूं आपस में मत लड़ो। पक्ष विपक्ष वाला कोण यहाँ है ही नहीं। क्योंकि इसके तो हम आदतन आदती हो चुके हैं। हमें सर्वसम्मति वाला आश्वासन दे दो। हम खुश हो जाएँगे। हैप्पीनेस इंडेक्शन में तो आगे बढ़ेगा इंडिया।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
एम्स ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि कोरोना डेल्टा वेरिएंट की वजह से ब्रेकथू इंफेक्शन हो रहा है, यानि टीका लेने के बाद भी संक्रमण। ब्रिटेन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट टीके के प्रभाव को कम कर रहा है। अभी महज 4-5 दिनों पहले ही डब्ल्यूएचओ एक बयान जारी कर रहा है कि जितनी भी वैक्सीन फिलहाल मौजूद है वे कितने समय तक बीमारी से सुरक्षा दे पाएगी इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है, जानकारी मिलने में समय लगेगा। ऐसे ही रिपोर्ट के आधार पर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि दो डोज़ के बीच का गैप ज्यादा रहेगा तो यह चिंता करनेवाली बात है।
सरकार कह रही है कि सब कुछ सर्वसम्मति से हुआ, जबकि उसी ग्रुप के कुछ सदस्य उस कथित सर्वसम्मति से उलट कुछ और ही कह रहे हैं! सरकार कह रही है कि ज़रूरी और पर्याप्त डाटा था, जबकि सदस्य डाटा की कमी की बात कर रहे हैं! कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, यह सवाल इन्हीं कंट्राडिक्शन की वजह से पैदा होता है। सर्वसम्मति वाली बात सर्वसम्मति से कही जाती तो सर्वसम्मति से सर्व जगह सम्मति होती।
हमें दो डोज़ के बीच का अंतर 6-8-12 हफ्ते क्या, 24 हफ्ते का कह दो, हम तैयार ही है! ये भी कह दो कि सुबह को एक डोज़, दोपहर को दूसरा डोज़... हम वही करेंगे! हम तो सुबह कोविशील्ड, दोपहर को कोवैक्सीन और शाम को स्पूतनिक वाला टीका भी लगाने को तैयार हैं! चिंता मत करो, हमें यह भी बता दो कि एक डोज़ ले लिया, अब दूसरा डोज़ लेने की ज़रूरत नहीं है, हम नहीं लेंगे! अरे भाई, हम नागरिकों को तो यही आश्वासन चाहिए कि हम सब कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं। आप सब लोग यूं आपस में मत लड़ो। पक्ष विपक्ष वाला कोण यहाँ है ही नहीं। क्योंकि इसके तो हम आदतन आदती हो चुके हैं। हमें सर्वसम्मति वाला आश्वासन दे दो। हम खुश हो जाएँगे। हैप्पीनेस इंडेक्शन में तो आगे बढ़ेगा इंडिया।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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