टीकाकरण में
विश्व विक्रम बनाने के बाद, गौरव करने के बाद, दीवार पर फ़ोटू चिटकाने के बाद, विश्व विक्रम
के दूसरे दिन से ही विक्रम की जगह ग़ज़ब के बेताल देखने को मिल रहे हैं। बात आज उन बेतालों
की करनी है। पूरा यक़ीन भी है कि आगे नया विक्रम ज़रूर बनेगा। वैक्सीनेशन में धीमापन, फिर अचानक से तेज़ी वाला विक्रम, फिर दोबारा कछुए टाइप स्पीड, उसके बाद फिर एक नया विक्रम
ज़रूर बनाएगा भारत। क्योंकि वैक्सीनेशन को लेकर भारत में भले वैक्सीन की कमी चल रही
हो, लेकिन अनुभव
और मानव संसाधन ज़्यादा है।
हम बार बार कह रहे हैं और यहाँ फिर एक बार नोट कर देते हैं कि महामारी के दौर में वैक्सीनेशन को लेकर रोज़ाना आँक़डों में ऊंच नीच होना स्वाभाविक सी चीज़ है। आँकड़ों में ऊपर नीचे होना, कभी रुकना और कभी सरपट दौड़ लगाना, ये सब महामारी के दौर में हर किसी के साथ होने वाली चीज़ें हैं। इसे लेकर ना सरकार को ज़रूरत से ज़्यादा आसमान फैलाने की ज़रूरत होती है और ना ही विरोधियों को आँकड़ों पर सवाल करके मूल मुद्दों को दफनाने की कोशिश करनी चाहिए।
रही बात हालियाँ घटनाओं की, जिसमें ग़ज़ब की चीज़ें हो रही हैं। कह सकते हैं कि जहाँ बिना वाहन के ई मेमो आ जाता हो, वहाँ बिना वैक्सीन लगाए सर्टिफ़िकेट आ जाना कौनो बड़ी बात है? है न? बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं! नागरिक लोग चिंता करते रहिए, प्रजा बिंदास ही होती है। वैसे भी हमारे यहाँ कोरोना से संक्रमित मरीजों के, कोरोना की वजह से मारे गए लोगों के, उनके मृत्यु प्रमाणपत्र के ही आँकड़े सवालों के घेरे में हैं तो फिर वैक्सीनेशन में ऐसी चीज़ें होती रहेगी!
दूसरे भी मीडिया रिपोर्ट हैं ऐसी चीज़ों को लेकर, जो कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम में खामियों, गलतियों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। लोगों के पास बिना वैक्सीन लगवाए उनके मोबाइल नंबर पर मैसेज आ रहे हैं! यहाँ तक कि मृतकों के नाम पर भी उनके परिजनों को टीकाकरण के मैसेज आ गए! मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऐसे लोगों के नाम पर भी टीका लगने के मैसेज आ गए, जो इस दुनिया में नहीं है!
बीबीसी हिंदी जैसे मीडिया रिपोर्ट की माने तो सतना में कातिकराम, कालिंद्री और चंदन को 21 जून 2021 को वैक्सीन के महाभियान के दिन टीका लगा। शाम 4 बजे टीका लगा। पाँच पाँच मिनट के अंतराल पर। तीनों के वैक्सीनेशन का मैसेज आ गया। वे बीबीसी हिंदी को बताते हैं कि पाँच मिनट के अंदर तीन मैसेज आए, बस नाम अलग हैं, मैंने आज तक कोई टीका लगवाया नहीं है।
भोपाल के टीला जमालपुरा की हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में रहने वाले 13 साल के वेदांत डांगरे को भी 21 जून को टीका लग गया!!! भले ही सरकार कह रही हो कि 18 साल से ऊपर वालों को ही टीका लगेगा, लेकिन वेदांत के नाम पर बाकायदा मैसेज आ गया! उनके पिता रजत डांगरे ने एनडीटीवी से कहा कि 21 जून को शाम को 7.27 पर मैसेज आया कि वेदांत को वैक्सीन लग गई है, जबकि उसकी उम्र अभी 13 साल है, जबकि बच्चों के लिए वैक्सीनेशन शुरू नहीं हुआ है!
बीबीसी हिंदी भी लिखता है कि अब रजत डांगरे वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट निरस्त कराने के लिए सरकारी कचहरियों के चक्कर काट रहे हैँ। बीबीसी हिंदी के मुताबिक़ स्वास्थ्य विभाग के लोग सर्टिफ़िकेट निरस्त कराना मुश्किल बताते हैं, लेकिन रजतजी को आश्वासन ज़रूर देते हैं कि जब बच्चों के लिए टीकाकरण शुरू होगा तो उनके पुत्र को टीका दे दिया जाएगा। टीका दे दिया जाएगा वाला आश्वासन अच्छा है, अगर वह सचमुच पूरा होता है तो। किंतु मूल सवाल तो यही कि लोगों को छोटी छोटी चीज़ों को लेकर न जाने क्या क्या सहन करना पड़ता है, इधर सरकार और उसके विभाग ऐसी महाकाय गड़बड़ी को गंभीर ही नहीं मानते! कहते हैं कि चिंता मत करिए, टीका लगा देंगे, सर्टिफ़िकेट उस वक्त नया दे देंगे, फ़िलहाल जो सर्टिफ़िकेट है वो निरस्त नहीं हो सकता।
एक और चमत्कार ये है कि वेदांत की उम्र 56 साल लिखी है! वेदांत खुद कहते हैं मैं 13 साल का हूं। उनके पास अपनी उम्र के जो दस्तावेज़ हैं वह दस्तावेज़ उनकी उम्र 13 साल दर्शाते भी हैं। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि वेदांत को जो लिंक दिए थे मैसेज में, उनके पापा ने सर्टिफ़िकेट डाउनलोड किया तो उनके ही डॉक्यूमेंट लगे थे, लेकिन उम्र 56 साल कर दी गई थी!
बीबीसी हिंदी और भोपाल के लोकल अख़बारों में एक और रिपोर्ट है। रिपोर्ट के मुताबिक़ भोपाल में पीजीबीटी कॉलेज रोड पर रहने वाली नुज़हत सलीम को भी 21 जून को वैक्सीन लगने का मैसेज मिला। उन्हें पेंशन नहीं मिलती, लेकिन पहचान पत्र सत्यापन में पेंशन डाक्यूमेंट के दस्तावेज़ दर्ज हैं!!! वो कहती हैं कि मेरे पास 21 जून को रात में मैसेज आया कि 10.57 बजे आपको वैक्सीन लग चुकी है, जबकि उन्हें अभी वैक्सीन लगी नहीं है! उन्हें डर है कि अगर वो वैक्सीन लगवाने जाएगी तो ऐसा ना हो कि वो बोलें कि आपको कोरोना वैक्सीन लग चुकी है।
हम बार बार कह रहे हैं और यहाँ फिर एक बार नोट कर देते हैं कि महामारी के दौर में वैक्सीनेशन को लेकर रोज़ाना आँक़डों में ऊंच नीच होना स्वाभाविक सी चीज़ है। आँकड़ों में ऊपर नीचे होना, कभी रुकना और कभी सरपट दौड़ लगाना, ये सब महामारी के दौर में हर किसी के साथ होने वाली चीज़ें हैं। इसे लेकर ना सरकार को ज़रूरत से ज़्यादा आसमान फैलाने की ज़रूरत होती है और ना ही विरोधियों को आँकड़ों पर सवाल करके मूल मुद्दों को दफनाने की कोशिश करनी चाहिए।
रही बात हालियाँ घटनाओं की, जिसमें ग़ज़ब की चीज़ें हो रही हैं। कह सकते हैं कि जहाँ बिना वाहन के ई मेमो आ जाता हो, वहाँ बिना वैक्सीन लगाए सर्टिफ़िकेट आ जाना कौनो बड़ी बात है? है न? बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं! नागरिक लोग चिंता करते रहिए, प्रजा बिंदास ही होती है। वैसे भी हमारे यहाँ कोरोना से संक्रमित मरीजों के, कोरोना की वजह से मारे गए लोगों के, उनके मृत्यु प्रमाणपत्र के ही आँकड़े सवालों के घेरे में हैं तो फिर वैक्सीनेशन में ऐसी चीज़ें होती रहेगी!
मध्य प्रदेश...
जहाँ नाबालिगों और मृतकों तक को टीके लगाने के मामले रिपोर्ट हो रहे हैं!!! जहाँ बिना
वैक्सीन लगाए आप वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट डाउनलोड कर सकते हैं!!!
वैक्सीनेशन के विक्रम, यूं कहे कि विश्व विक्रम के तुरंत बाद, मध्य प्रदेश से ग़ज़ब की ख़बरें आ रही हैं। सवाल
उठ रहा है कि क्या मध्य प्रदेश में नाबालिगों और मृतकों को भी टीका लग गया? यहाँ बिना वैक्सीन लगाए भी वैक्सीनेशन के मैसेज
मिल रहे हैं!!! 28 जून 2021 को अनेक मीडिया रिपोर्ट हैं कि मध्य प्रदेश के कई शहरों
में बिना कोरोना वैक्सीन लगवाए लोगों के मोबाइल नंबर पर टीका लग जाने के मैसेज आ गए!!!
मीडिया रिपोर्ट में ग़ज़ब की चीज़ दर्ज है कि मृतकों के नाम पर भी उनके परिजनों को टीकाकरण
के मैसेज आ गए!!!दूसरे भी मीडिया रिपोर्ट हैं ऐसी चीज़ों को लेकर, जो कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम में खामियों, गलतियों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। लोगों के पास बिना वैक्सीन लगवाए उनके मोबाइल नंबर पर मैसेज आ रहे हैं! यहाँ तक कि मृतकों के नाम पर भी उनके परिजनों को टीकाकरण के मैसेज आ गए! मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऐसे लोगों के नाम पर भी टीका लगने के मैसेज आ गए, जो इस दुनिया में नहीं है!
बीबीसी हिंदी जैसे मीडिया रिपोर्ट की माने तो सतना में कातिकराम, कालिंद्री और चंदन को 21 जून 2021 को वैक्सीन के महाभियान के दिन टीका लगा। शाम 4 बजे टीका लगा। पाँच पाँच मिनट के अंतराल पर। तीनों के वैक्सीनेशन का मैसेज आ गया। वे बीबीसी हिंदी को बताते हैं कि पाँच मिनट के अंदर तीन मैसेज आए, बस नाम अलग हैं, मैंने आज तक कोई टीका लगवाया नहीं है।
भोपाल के टीला जमालपुरा की हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में रहने वाले 13 साल के वेदांत डांगरे को भी 21 जून को टीका लग गया!!! भले ही सरकार कह रही हो कि 18 साल से ऊपर वालों को ही टीका लगेगा, लेकिन वेदांत के नाम पर बाकायदा मैसेज आ गया! उनके पिता रजत डांगरे ने एनडीटीवी से कहा कि 21 जून को शाम को 7.27 पर मैसेज आया कि वेदांत को वैक्सीन लग गई है, जबकि उसकी उम्र अभी 13 साल है, जबकि बच्चों के लिए वैक्सीनेशन शुरू नहीं हुआ है!
बीबीसी हिंदी भी लिखता है कि अब रजत डांगरे वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट निरस्त कराने के लिए सरकारी कचहरियों के चक्कर काट रहे हैँ। बीबीसी हिंदी के मुताबिक़ स्वास्थ्य विभाग के लोग सर्टिफ़िकेट निरस्त कराना मुश्किल बताते हैं, लेकिन रजतजी को आश्वासन ज़रूर देते हैं कि जब बच्चों के लिए टीकाकरण शुरू होगा तो उनके पुत्र को टीका दे दिया जाएगा। टीका दे दिया जाएगा वाला आश्वासन अच्छा है, अगर वह सचमुच पूरा होता है तो। किंतु मूल सवाल तो यही कि लोगों को छोटी छोटी चीज़ों को लेकर न जाने क्या क्या सहन करना पड़ता है, इधर सरकार और उसके विभाग ऐसी महाकाय गड़बड़ी को गंभीर ही नहीं मानते! कहते हैं कि चिंता मत करिए, टीका लगा देंगे, सर्टिफ़िकेट उस वक्त नया दे देंगे, फ़िलहाल जो सर्टिफ़िकेट है वो निरस्त नहीं हो सकता।
ऐसे में टीकाकरण का आँकड़ा सही कैसे होगा, यह भी सवाल
है। किंतु इसका जवाब जनता को पहले ही दिया जा चुका है। जनता भी समझ गई है कि जब यहाँ
संक्रमितों के, कोरोना की मौतों
के, श्मशानों के
ही आँकड़े सही नहीं है, तो फिर टीकाकरण के आँकड़े ऊँच नीच होना बड़ी बात नहीं है।
एक और चमत्कार ये है कि वेदांत की उम्र 56 साल लिखी है! वेदांत खुद कहते हैं मैं 13 साल का हूं। उनके पास अपनी उम्र के जो दस्तावेज़ हैं वह दस्तावेज़ उनकी उम्र 13 साल दर्शाते भी हैं। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि वेदांत को जो लिंक दिए थे मैसेज में, उनके पापा ने सर्टिफ़िकेट डाउनलोड किया तो उनके ही डॉक्यूमेंट लगे थे, लेकिन उम्र 56 साल कर दी गई थी!
बीबीसी हिंदी और भोपाल के लोकल अख़बारों में एक और रिपोर्ट है। रिपोर्ट के मुताबिक़ भोपाल में पीजीबीटी कॉलेज रोड पर रहने वाली नुज़हत सलीम को भी 21 जून को वैक्सीन लगने का मैसेज मिला। उन्हें पेंशन नहीं मिलती, लेकिन पहचान पत्र सत्यापन में पेंशन डाक्यूमेंट के दस्तावेज़ दर्ज हैं!!! वो कहती हैं कि मेरे पास 21 जून को रात में मैसेज आया कि 10.57 बजे आपको वैक्सीन लग चुकी है, जबकि उन्हें अभी वैक्सीन लगी नहीं है! उन्हें डर है कि अगर वो वैक्सीन लगवाने जाएगी तो ऐसा ना हो कि वो बोलें कि आपको कोरोना वैक्सीन लग चुकी है।
इसी रिपोर्ट में यह भी लिखा
गया है कि रतलाम में कर सलाहकार प्रेम पंड्या ने स्लॉट तो बुक किया लेकिन वैक्सीन लगवाने
जा नहीं पाए। इसके बावजूद वैक्सीन लगवाने का मैसेज आ गया!!! शाम को 4 बजे मैसेज आया
कि वैक्सीन लग गई है। लिखा था कि आप सर्टिफ़िकेट डाउनलोड कर लीजिए। लेकिन वे सवाल करते
हैं कि मैं जब गया ही नहीं तो वैक्सीन कैसे लग गई? इसे फेसबुक पर लिखा तो ईश्वर कृपा से अगले दिन कॉल आया और कोरोना वैक्सीन लगी!
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट में अमिताभ पांडेय की भी कहानी है। भोपाल से बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट है कि यहाँ अमिताभ पांडेय को वैक्सीन लगने का मैसेज 22 जून को मिलता है। पहली चीज़ यह कि उसमें उनका नाम अमिताभ पांडेय नहीं बल्कि भूपेंद्र कुमार जोशी लिखा हुआ था! वे हंसते हुए कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनका नाम अमिताभ पांडेय से भूपेंद्र कुमार जोशी हो गया है अब! नाम बदलने से क्या क्या होता है वह उन लोगों से पूछ लीजिएगा, जो इन दिक्कतों से रूबरू हो चुके हैं।
छोटा सा स्पेलिंग एरर तक सरकार और उनके विभाग नहीं चलाते, किंतु यही विभाग पूरा का पूरा नाम ही बदल देते हैं! ऐसे में नाम बदल जाने से आगे क्या क्या होगा, सोचना वाक़ई मुश्किल है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती अमिताभ पांडेयजी के किस्से में।
बीबीसी हिंदी बताता है कि अमिताभजी को जो मैसेज मिला उसमें लिखा था कि आपको वैक्सीन की पहली डोज़ लग चुकी है, जबकि उन्होंने पहली डोज़ अप्रैल में लगवाई थी और उन्हें अभी दूसरी डोज़ लगना बाकी है। अमिताभजी कहते हैं कि वे 21 जून को वैक्सीनेशन के लिए न तो कहीं गए थे और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य गया था।
अलग-अलग शहरों से शिकायतों के बावजूद भी मंत्री जी कह रहे हैं कहीं दिक्कत नहीं है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि ऐसा नहीं है, कहीं ऐसी दिक्कत नहीं है, आप कहां से ये बात लेकर आए हैं, मैं पहली बार सुन रहा हूं, कहीं ऐसा मिलेगा तो हम जांच करवाएंगे। मंत्रीजी इस अंदाज़ से कहते हैं, जैसे कि वो इन चीज़ों को लेकर गंभीर है ही नहीं।
मंत्रीजी कहते हैं कि ऐसी कोई बात नहीं है, उधर अनेक रिपोर्ट में नाबालिग को टीके लगना, मृतकों को टीके लगना, एक ही आधार नंबर पर एक से अधिक को टीके लगना, जैसी चीज़ें दर्ज होती जा रही हैं! एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बैतूल में 47 गांवों में वैक्सीन नहीं लगी थी उस दिन! अधिकारी कहते हैं कि जाँच वाच कराई जाएगी। सोचिए, जहाँ मारे गए लोगों का सही आँकड़ा ही ना हो वहाँ जाँच वाच का अंजाम क्या होगा?
सत्य हिंदी ने भी इसे लेकर रिपोर्ट लिखी है। कहा है कि कोरोना टीकाकरण में घपला। मध्य प्रदेश, वह राज्य जिसने उस दिन रिकॉर्ड टीकाकरण करने का दावा किया था। और उसके बाद ग़ज़ब की कहानियाँ पढ़ने सुनने को मिल रही हैं!
भोपाल से प्रकाशित 'दैनिक भास्कर' की ख़बरों पर भरोसा किया जाए तो एक ही आधार नंबर पर कई लोगों को टीका दे दिया गया है, एक आदमी को कई बार टीका देने का रिकॉर्ड दर्ज है, एक आदमी को पोर्टल पर कई बार रजिस्टर कर दिया गया है!!!
इस तरह की कई अनियमितताएं सामने आई हैं अब तक! ऐसा लगता है जैसे कि अधिक लोगों को टीका दिया हुआ दिखाने की कोशिश करने में गड़बड़ियाँ हुई हो। सत्यहिंदी लिखता है कि अधिक से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन दिखाने की कोशिश का आलम यह है कि 555 आधार नंबर पर दो-दो, 90 आधार कार्डों पर तीन-तीन लोगों को कोरोना टीका दे दिया गया है! मीडिया रिपोर्ट की माने तो एक आधार नंबर पर 16 लोगों को टीका दे देने का मामला भी रिपोर्ट किया गया है! आगे लिखा है कि 661 आधार नंबरों पर 1459 लोगों को टीका दिया गया!
भोपाल में ऐसे लोगों को भी टीका दिया हुआ दिखाया गया है जो वहाँ गए ही नहीं थे!!! 'दैनिक भास्कर' ने 10 हज़ार लोगों के वैक्सीनेशन रिकार्ड का अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है। अख़बार ने कई केस स्टडी भी किए हैं और उदाहरण पेश किए हैं। उसका कहना है कि आधार नंबर ********9999 पर सुलेमान नामक व्यक्ति को टीका लगाए जाने की जानकारी दर्ज है। लेकिन सुलेमान के नाम जो मोबाइल नंबर दर्ज दिया गया है, वह सतना के राज चांदवानी का है! राज चांदवानी का कहना है कि वे तो पिछले छह साल से भोपाल गए ही नहीं है, फिर उन्हें टीका कैसे दे दिया गया?
एक दूसरे मामले में ********9999 नंबर पर प्रियंका को कोरोना टीका दिया हुआ दिखाया गया है, पर वह महाराष्ट्र के पुणे में रहती हैं! इसी नंबर पर रामदयाल को भी टीका लगाने की बात कही गई है, पर वह तो झारखंड में रहते हैं!
'दैनिक भास्कर' का कहना है कि वैक्सीनेशन डेटा रिपोर्ट के अनुसार बैरसिया, बैरागढ़, कोलार क्षेत्र और सिटी सर्कल के कई वैक्सीनेशन सेंटर्स के रिकॉर्ड में हितग्राहियों के रजिस्टर्ड आधार नंबर सीरीज के रूप में दर्ज हैं। अख़बार ने लिखा है कि सीरियल नंबर 3301 से 3399 के बीच 50 लोगों को टीका दिया हुआ दिखाया गया है। इनके जो मोबाइल नंबर दर्ज किए गए हैं उनमें से कुछ तो तमिलनाडु, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के हैं!
इस तरह की छोटी-मोटी ढेर सारी गड़बड़ियाँ देखी गई हैं। दैनिक भास्कर ने लिखा है कि वैक्सीनेशन रिकॉर्ड में दर्ज जानकारी के अनुसार एक मोबाइल नंबर पर भरतराम और पारो बाई को टीका दिया गया है, पर यह मोबाइल नंबर बिलासपुर के हर्ष नागदेव का है! लेकिन वे तो कभी भोपाल आए ही नहीं! एक दूसरे मामले में चार अलग-अलग मोबाइल नंबर से चार लोगों का रजिस्ट्रेशन किया गया, पर टीका लगाने के लिए सभी का आधार नंबर एक ही दर्ज किया गया!!!
भोपाल के अरुण कोचेटा के नाम जो मोबाइल नंबर दर्ज हैं, कोचेटा का कहना है कि यह उनका मोबाइल नंबर नहीं है! ऊपर से अरुण का नाम सर्टिफ़िकेट में वरुण लिख दिया है। दूसरे पोर्टल में उनके नाम दो बार रजिस्ट्रेशन हो गया है और दोनों के नंबर भी अलग अलग हैं!
अख़बार लिखता है कि सरकारी आँकड़ों के आधार पर आधार नंबर #### #### 0#44 पर बैरसिया में संदीप नामदेव, रेखा और रेखा अहिरवार को टीका दिया हुआ दिखाया गया है! संदीप नामदेव का कहना है कि वे रेखा या रेखा अहिरवार को नहीं जानते। रेखा अहिरवरा का जो मोबाइल नंबर लिखा गया है, वह तो तमिलनाडु के नागराज का है!
गुजरात का लोकल अख़बार दिव्य भास्कर लिखता है कि टीके का स्टॉक नहीं है! जहाँ हर रोज 1 लाख टीके लगने थे, वहाँ विक्रमी दिन के बाद के चार दिनों में महज 71 हज़ार लोगों को ही टीके लगाए गए हैं!!! विश्व विक्रम के उस दिन के बाद गुजरात में स्टॉक की कमी साफ दिखाई दे रही है।
अहमदाबाद में 21 जून 2021 को म्युनिसिपल ने घोषणा की थी कि रोज़ाना 1 लाख टीके लगाएँगे। उस घोषणा के बाद एक हफ्ते तक हाल यह रहा कि लोग टीका केंद्रों तक पहुंचने के बाद बिना टीका लगाए वापस जा रहे हैं!!! रोज़ाना 1 लाख की छोड़िए, एक हफ्ते का कुल मिलाकर आँकड़ा भी 1 लाख नहीं है शहर का!!! लोग टीका लगाने यहाँ वहाँ घूम रहे हैं! क्योंकि राज्य सरकार और उनकी पुलिस ने एक तरीक़े से धमकी दी हुई है कि फलां फलां तारीख से पहले व्यापारी लोग टीकाकरण करवा लें, वर्ना पैनडेमिक एक्ट के तहत सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाएगी। हालात देखकर कार्रवाई किस पर करनी है यह समझ आ ही जाता है।
अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन कह सकता है कि रोज़ाना 1 लाख वाली बात तो जुमला थी! लोकल अख़बार दिव्य भास्कर की माने तो यहाँ 175 टीका केंद्रों पर टीका लगाने का काम शुरू हुआ था, किंतु 70 केंद्रो को ही टीका मिला है, बाकियों को नहीं!
व्यापारियों, रेहड़ी वालों को गुजरात सरकार और उनकी पुलिस ने एक तरीक़े से धमकी भरे अंदाज़ में धमकी दी है कि टीका लगा लो, वर्ना पैनडेमिक एक्ट के तहत सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाएगी। पुलिस सरकार के आदेश के तहत बाजारों में निकलकर कह रही है कि टीका लगा लो, वर्ना दुकान का लाइसेंस कैंसिल कर देंगे, भारी जुर्माना लगा देंगे। लेकिन हालात यह कि सरकारी टीका केंद्र ही मरे पड़े हुए हैं!!! मजबूरन सरकार को अपनी उस धमकी की समयसीमा आगे बढ़ानी पड़ रही है!
गुजरात मॉडल बेचारा बना हुआ है। वह पश्चिम बंगाल या राजस्थान जैसी दिक्कतें या बहाने आगे नहीं रख सकता। क्योंकि केंद्र में भी उनकी सरकार है, राज्य में भी उनकी ही सरकार है और ऊपर से कॉर्पोरेशन में भी उनका ही शासन है। अब यहाँ सरकार दूसरे राज्यों की तरह बहानेबाजी कर नहीं पा रही। क्या पता वैक्सीन का स्टॉक नहीं है या फिर विश्व विक्रम वाली सनक के लिए स्टॉक इक्ठ्ठा किया जा रहा है।
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट में अमिताभ पांडेय की भी कहानी है। भोपाल से बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट है कि यहाँ अमिताभ पांडेय को वैक्सीन लगने का मैसेज 22 जून को मिलता है। पहली चीज़ यह कि उसमें उनका नाम अमिताभ पांडेय नहीं बल्कि भूपेंद्र कुमार जोशी लिखा हुआ था! वे हंसते हुए कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनका नाम अमिताभ पांडेय से भूपेंद्र कुमार जोशी हो गया है अब! नाम बदलने से क्या क्या होता है वह उन लोगों से पूछ लीजिएगा, जो इन दिक्कतों से रूबरू हो चुके हैं।
छोटा सा स्पेलिंग एरर तक सरकार और उनके विभाग नहीं चलाते, किंतु यही विभाग पूरा का पूरा नाम ही बदल देते हैं! ऐसे में नाम बदल जाने से आगे क्या क्या होगा, सोचना वाक़ई मुश्किल है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती अमिताभ पांडेयजी के किस्से में।
बीबीसी हिंदी बताता है कि अमिताभजी को जो मैसेज मिला उसमें लिखा था कि आपको वैक्सीन की पहली डोज़ लग चुकी है, जबकि उन्होंने पहली डोज़ अप्रैल में लगवाई थी और उन्हें अभी दूसरी डोज़ लगना बाकी है। अमिताभजी कहते हैं कि वे 21 जून को वैक्सीनेशन के लिए न तो कहीं गए थे और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य गया था।
अलग-अलग शहरों से शिकायतों के बावजूद भी मंत्री जी कह रहे हैं कहीं दिक्कत नहीं है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि ऐसा नहीं है, कहीं ऐसी दिक्कत नहीं है, आप कहां से ये बात लेकर आए हैं, मैं पहली बार सुन रहा हूं, कहीं ऐसा मिलेगा तो हम जांच करवाएंगे। मंत्रीजी इस अंदाज़ से कहते हैं, जैसे कि वो इन चीज़ों को लेकर गंभीर है ही नहीं।
मंत्रीजी कहते हैं कि ऐसी कोई बात नहीं है, उधर अनेक रिपोर्ट में नाबालिग को टीके लगना, मृतकों को टीके लगना, एक ही आधार नंबर पर एक से अधिक को टीके लगना, जैसी चीज़ें दर्ज होती जा रही हैं! एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बैतूल में 47 गांवों में वैक्सीन नहीं लगी थी उस दिन! अधिकारी कहते हैं कि जाँच वाच कराई जाएगी। सोचिए, जहाँ मारे गए लोगों का सही आँकड़ा ही ना हो वहाँ जाँच वाच का अंजाम क्या होगा?
लोगों के साथ जिस प्रकार की चीज़ें हुई हैं, उसमें से जो दो सवाल
बाहर आते हैं वह वाक़ई गंभीर हैं। पहला सवाल यह कि ऐसी दिक्कतें अनेक लोगों के साथ
हुई होगी, तो वे कैसे
साबित करेंगे कि उन्हें वैक्सीन नहीं लगा है। जबकि उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा उनका
अधिकार भी है तथा सरकार की जवाबदेही भी। दूसरा सवाल यह कि जो लोग वैक्सीन नहीं लगाना
चाहते उन्हें भी शायद मैसेज और सर्टिफ़िकेट मिल गए होंगे। यानि उन्हें टीका नहीं लगा
है, किंतुं सरकार ने उन्हें सबूत दे दिया कि आपको टीका लग गया है!!!
सत्य हिंदी ने भी इसे लेकर रिपोर्ट लिखी है। कहा है कि कोरोना टीकाकरण में घपला। मध्य प्रदेश, वह राज्य जिसने उस दिन रिकॉर्ड टीकाकरण करने का दावा किया था। और उसके बाद ग़ज़ब की कहानियाँ पढ़ने सुनने को मिल रही हैं!
भोपाल से प्रकाशित 'दैनिक भास्कर' की ख़बरों पर भरोसा किया जाए तो एक ही आधार नंबर पर कई लोगों को टीका दे दिया गया है, एक आदमी को कई बार टीका देने का रिकॉर्ड दर्ज है, एक आदमी को पोर्टल पर कई बार रजिस्टर कर दिया गया है!!!
इस तरह की कई अनियमितताएं सामने आई हैं अब तक! ऐसा लगता है जैसे कि अधिक लोगों को टीका दिया हुआ दिखाने की कोशिश करने में गड़बड़ियाँ हुई हो। सत्यहिंदी लिखता है कि अधिक से अधिक लोगों का वैक्सीनेशन दिखाने की कोशिश का आलम यह है कि 555 आधार नंबर पर दो-दो, 90 आधार कार्डों पर तीन-तीन लोगों को कोरोना टीका दे दिया गया है! मीडिया रिपोर्ट की माने तो एक आधार नंबर पर 16 लोगों को टीका दे देने का मामला भी रिपोर्ट किया गया है! आगे लिखा है कि 661 आधार नंबरों पर 1459 लोगों को टीका दिया गया!
भोपाल में ऐसे लोगों को भी टीका दिया हुआ दिखाया गया है जो वहाँ गए ही नहीं थे!!! 'दैनिक भास्कर' ने 10 हज़ार लोगों के वैक्सीनेशन रिकार्ड का अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है। अख़बार ने कई केस स्टडी भी किए हैं और उदाहरण पेश किए हैं। उसका कहना है कि आधार नंबर ********9999 पर सुलेमान नामक व्यक्ति को टीका लगाए जाने की जानकारी दर्ज है। लेकिन सुलेमान के नाम जो मोबाइल नंबर दर्ज दिया गया है, वह सतना के राज चांदवानी का है! राज चांदवानी का कहना है कि वे तो पिछले छह साल से भोपाल गए ही नहीं है, फिर उन्हें टीका कैसे दे दिया गया?
एक दूसरे मामले में ********9999 नंबर पर प्रियंका को कोरोना टीका दिया हुआ दिखाया गया है, पर वह महाराष्ट्र के पुणे में रहती हैं! इसी नंबर पर रामदयाल को भी टीका लगाने की बात कही गई है, पर वह तो झारखंड में रहते हैं!
'दैनिक भास्कर' का कहना है कि वैक्सीनेशन डेटा रिपोर्ट के अनुसार बैरसिया, बैरागढ़, कोलार क्षेत्र और सिटी सर्कल के कई वैक्सीनेशन सेंटर्स के रिकॉर्ड में हितग्राहियों के रजिस्टर्ड आधार नंबर सीरीज के रूप में दर्ज हैं। अख़बार ने लिखा है कि सीरियल नंबर 3301 से 3399 के बीच 50 लोगों को टीका दिया हुआ दिखाया गया है। इनके जो मोबाइल नंबर दर्ज किए गए हैं उनमें से कुछ तो तमिलनाडु, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के हैं!
इस तरह की छोटी-मोटी ढेर सारी गड़बड़ियाँ देखी गई हैं। दैनिक भास्कर ने लिखा है कि वैक्सीनेशन रिकॉर्ड में दर्ज जानकारी के अनुसार एक मोबाइल नंबर पर भरतराम और पारो बाई को टीका दिया गया है, पर यह मोबाइल नंबर बिलासपुर के हर्ष नागदेव का है! लेकिन वे तो कभी भोपाल आए ही नहीं! एक दूसरे मामले में चार अलग-अलग मोबाइल नंबर से चार लोगों का रजिस्ट्रेशन किया गया, पर टीका लगाने के लिए सभी का आधार नंबर एक ही दर्ज किया गया!!!
भोपाल के अरुण कोचेटा के नाम जो मोबाइल नंबर दर्ज हैं, कोचेटा का कहना है कि यह उनका मोबाइल नंबर नहीं है! ऊपर से अरुण का नाम सर्टिफ़िकेट में वरुण लिख दिया है। दूसरे पोर्टल में उनके नाम दो बार रजिस्ट्रेशन हो गया है और दोनों के नंबर भी अलग अलग हैं!
अख़बार लिखता है कि सरकारी आँकड़ों के आधार पर आधार नंबर #### #### 0#44 पर बैरसिया में संदीप नामदेव, रेखा और रेखा अहिरवार को टीका दिया हुआ दिखाया गया है! संदीप नामदेव का कहना है कि वे रेखा या रेखा अहिरवार को नहीं जानते। रेखा अहिरवरा का जो मोबाइल नंबर लिखा गया है, वह तो तमिलनाडु के नागराज का है!
गुजरात मॉडल...
जहाँ तीन तीन दिनों तक टीकाकरण बंद रहता है!!! जहाँ टीका केंद्र पहुंचकर भी लोग बिना
टीका लगाए वापस जा रहे हैं!!!
विश्व विक्रमी दिन के बाद
गुजरात मॉडल की बात कर लेते हैं। गुजरात मॉडल में भी ग़ज़ब चल रहा है। अहमदाबाद म्युनिसिपल
कॉर्पोरेशन घोषणा करता है कि रोज़ाना 1 लाख लोगों का टीकाकरण किया जाएगा। फिर विश्व
विक्रम के बाद दो दिनों में महज 20 हज़ार लोगों को ही टीका लगा पाते हैं!!! उनकी घोषणा
के अनुसार इन दो दिनों में टीका लगना था 2 लाख लोगों को, लगा पाते हैं 20 हज़ार को!!!गुजरात का लोकल अख़बार दिव्य भास्कर लिखता है कि टीके का स्टॉक नहीं है! जहाँ हर रोज 1 लाख टीके लगने थे, वहाँ विक्रमी दिन के बाद के चार दिनों में महज 71 हज़ार लोगों को ही टीके लगाए गए हैं!!! विश्व विक्रम के उस दिन के बाद गुजरात में स्टॉक की कमी साफ दिखाई दे रही है।
अहमदाबाद में 21 जून 2021 को म्युनिसिपल ने घोषणा की थी कि रोज़ाना 1 लाख टीके लगाएँगे। उस घोषणा के बाद एक हफ्ते तक हाल यह रहा कि लोग टीका केंद्रों तक पहुंचने के बाद बिना टीका लगाए वापस जा रहे हैं!!! रोज़ाना 1 लाख की छोड़िए, एक हफ्ते का कुल मिलाकर आँकड़ा भी 1 लाख नहीं है शहर का!!! लोग टीका लगाने यहाँ वहाँ घूम रहे हैं! क्योंकि राज्य सरकार और उनकी पुलिस ने एक तरीक़े से धमकी दी हुई है कि फलां फलां तारीख से पहले व्यापारी लोग टीकाकरण करवा लें, वर्ना पैनडेमिक एक्ट के तहत सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाएगी। हालात देखकर कार्रवाई किस पर करनी है यह समझ आ ही जाता है।
अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन कह सकता है कि रोज़ाना 1 लाख वाली बात तो जुमला थी! लोकल अख़बार दिव्य भास्कर की माने तो यहाँ 175 टीका केंद्रों पर टीका लगाने का काम शुरू हुआ था, किंतु 70 केंद्रो को ही टीका मिला है, बाकियों को नहीं!
व्यापारियों, रेहड़ी वालों को गुजरात सरकार और उनकी पुलिस ने एक तरीक़े से धमकी भरे अंदाज़ में धमकी दी है कि टीका लगा लो, वर्ना पैनडेमिक एक्ट के तहत सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाएगी। पुलिस सरकार के आदेश के तहत बाजारों में निकलकर कह रही है कि टीका लगा लो, वर्ना दुकान का लाइसेंस कैंसिल कर देंगे, भारी जुर्माना लगा देंगे। लेकिन हालात यह कि सरकारी टीका केंद्र ही मरे पड़े हुए हैं!!! मजबूरन सरकार को अपनी उस धमकी की समयसीमा आगे बढ़ानी पड़ रही है!
गुजरात मॉडल बेचारा बना हुआ है। वह पश्चिम बंगाल या राजस्थान जैसी दिक्कतें या बहाने आगे नहीं रख सकता। क्योंकि केंद्र में भी उनकी सरकार है, राज्य में भी उनकी ही सरकार है और ऊपर से कॉर्पोरेशन में भी उनका ही शासन है। अब यहाँ सरकार दूसरे राज्यों की तरह बहानेबाजी कर नहीं पा रही। क्या पता वैक्सीन का स्टॉक नहीं है या फिर विश्व विक्रम वाली सनक के लिए स्टॉक इक्ठ्ठा किया जा रहा है।
गुजरात में 7, 8 और 9 जुलाई 2021 को समूचे राज्य में वैक्सीन बंद
है!!! 7 जुलाई को
सरकार कहती है कि ममता दिवस है इसलिए वैक्सीनेशन का कार्यक्रम बंद रहेगा। बताइए, ममता दिवस है तो काहे बंद रहेगा? ये तुक किसी भी एंगल से समझ में आता नहीं! वैक्सीनेशन कितना महत्वपूर्ण है सब समझ चुके हैं
अब, जल्द से जल्द
टीकाकरण करना होगा यह सब कह रहे हैं, ऐसे में किसी ऐसे दिन के नाम पर समूचे राज्य में टीकाकरण बंद करने का कोई ख़ास कारण नज़र नहीं आता। कहानी में ट्विस्ट दूसरे दिन ले आती है गुजरात सरकार! अगले दिन सरकार की तरफ से औपचारिक सूचना दी जाती
है कि अब अगले दो दिनों तक, यानि 8 और
9 जुलाई को भी, टीकाकरण बंद
रहेगा!!!
जनवरी 2021 में टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के बाद पहली दफा है जब गुजरात में लगातार तीन तीन दिनों तक टीके का कार्यक्रम बंद रखना पड़ रहा है! उस विक्रमी दिन में हिस्सा लेने के बाद गुजरात की यह स्थिति है! एक दिन के विक्रम के लिए तीन दिन कुर्बान है!!! या फिर तीन दिन कुर्बान करके अगली बार फिर से एक दिन का कोई विक्रम बनाना है!!!
तीसरी लहर का खोफ लटक रहा है और गुजरात जैसा राज्य तीन दिनों तक कार्यक्रम बंद रखने को मजबूर है! या तो ये उस रिकॉर्ड वाली सनक का परिणाम है या फिर रिकॉर्ड वाली सनक की तैयारी!
लोकल अख़बार दिव्य भास्कर अपने सूत्रों के हवाले से लिखता है कि गुजरात में विक्रमी दिन के बाद रोज़ाना ज़रूरत के सामने 45 फीसदी स्टॉक कम आ रहा है। अख़बार की माने तो विक्रमी दिन से पहले गुजरात को ज़रूरत के हिसाब से डोज़ मिल रहे थे, लेकिन उसके बाद स्टॉक कम आ रहा है।
18 से 45 वालों के लिए जैसे ही टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया तब से यूं तो समूचे भारत में टीके की कमी की समस्या उत्पन्न हो चुकी है।
यूं तो गुजरात में गुजरात सरकार और उसकी पुलिस, दोनों मिलकर व्यापारियों, रेहड़ी वालों को धमकी भरे अंदाज़ में सूचित कर रहे हैं कि फलां फलां दिन पहले वैक्सीन लगवा लीजिए, वर्ना सख़्त कार्रवाई की जाएगी। धमकी भरे अंदाज़ में सूचित करने के बाद व्यापारियों, रेहड़ी पटरी वालों, के अलावा दूसरे लोगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी बड़ी तस्वीरें दिखाकर वैक्सीनेशन महाभियान शुरू किया जाता है।
ममता दिवस है इसलिए टीकाकरण बंद... !!! गुजरात सरकार
की ये घोषणा ही अपने आप में हास्यास्पद भी है, तथा सवालों
के घेरे में भी। ऐसे तो ढेरों दिन, यूं कहे कि
सरकारी योजनाओं के ऐसे भावनात्मक नामकरण वाले ढेरों दिन गुजरात में चल रहे हैं, तो क्या ऐसे
हर दिन पर टीकाकरण बंद कर देंगे आप? होना तो यह चाहिए था कि ऐसे दिन, जो राज्य सरकार
चला रही होती है, उसे बंद रखा
जाए और वैक्सीनेशन जारी रखा जाए। किंतु यहाँ टीका बंद और सरकारी योजना का कार्यक्रम
जारी!!! ममता दिन के
नाम पर एक दिन बंद करने के बाद दूसरे दिन दूसरी सूचना कि अब आने वाले दो दिनों तक भी
बंद रहेगा टीकाकरण!!! या तो साफ साफ
ही कह दो कि टीके का स्टॉक नहीं है या कोई दूसरा अच्छा सा बहाना बना लो सरकार।
जनवरी 2021 में टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के बाद पहली दफा है जब गुजरात में लगातार तीन तीन दिनों तक टीके का कार्यक्रम बंद रखना पड़ रहा है! उस विक्रमी दिन में हिस्सा लेने के बाद गुजरात की यह स्थिति है! एक दिन के विक्रम के लिए तीन दिन कुर्बान है!!! या फिर तीन दिन कुर्बान करके अगली बार फिर से एक दिन का कोई विक्रम बनाना है!!!
तीसरी लहर का खोफ लटक रहा है और गुजरात जैसा राज्य तीन दिनों तक कार्यक्रम बंद रखने को मजबूर है! या तो ये उस रिकॉर्ड वाली सनक का परिणाम है या फिर रिकॉर्ड वाली सनक की तैयारी!
लोकल अख़बार दिव्य भास्कर अपने सूत्रों के हवाले से लिखता है कि गुजरात में विक्रमी दिन के बाद रोज़ाना ज़रूरत के सामने 45 फीसदी स्टॉक कम आ रहा है। अख़बार की माने तो विक्रमी दिन से पहले गुजरात को ज़रूरत के हिसाब से डोज़ मिल रहे थे, लेकिन उसके बाद स्टॉक कम आ रहा है।
18 से 45 वालों के लिए जैसे ही टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया तब से यूं तो समूचे भारत में टीके की कमी की समस्या उत्पन्न हो चुकी है।
यूं तो गुजरात में गुजरात सरकार और उसकी पुलिस, दोनों मिलकर व्यापारियों, रेहड़ी वालों को धमकी भरे अंदाज़ में सूचित कर रहे हैं कि फलां फलां दिन पहले वैक्सीन लगवा लीजिए, वर्ना सख़्त कार्रवाई की जाएगी। धमकी भरे अंदाज़ में सूचित करने के बाद व्यापारियों, रेहड़ी पटरी वालों, के अलावा दूसरे लोगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी बड़ी तस्वीरें दिखाकर वैक्सीनेशन महाभियान शुरू किया जाता है।
धमकी भरे अंदाज़ वाली वह सूचना, वैक्सीनेशन महाभियान वाला कार्यक्रम, और उसके बाद गुजरात में विक्रमी टीकाकरण वाले दिन के बाद दूसरे दिन से ही हालात देखिए। यहाँ अहमदाबाद, सूरत और राजकोट जैसे बड़े शहरों के टीका केंद्रों पर पोस्टर लटके हुए थे, जिसमें लिखा था – वैक्सीन उपलब्ध नहीं है! लोकल अख़बार दिव्य भास्कर की माने तो कागज पर साढ़े नौ लाख का स्टॉक है, फिर भी टीका केंद्र पर टीका नहीं है! आगे विक्रम वाला दूसरा खेला करने की योजना है या दूसरी चीज़ें हैं, पता नहीं।
लोग बड़ी तादाद में टीका लगवाने पहुंच रहे हैं, लेकिन पहुंचने के बाद पता चलता है कि टीके नहीं हैं! अहमदाबाद के आँबली, बोपल, घूमा, गोधावी जैसे इलाकों के टीका केंद्र पर वैक्सीन उपलब्ध नहीं है वाले पोस्टर लोकल अख़बारों में भी छपे हैं। वीकेंड पर लोग पहुंचे तो यहाँ उन्हें बताया गया कि टीका नहीं है, फिर आइए। और उसके बाद ममता दिवस, उसके बाद किसी अज्ञात वजहों से टीकाकरण समूचे राज्य में तीन तीन दिनों तक बंद!!!
गुजरात में तीन दिन तक पूरे राज्य में टीकाकरण बंद रहेगा। किंतु इससे पहले भी यहाँ कई ऐसे केंद्र हैं, जहाँ कई दिनों तक ताला लगा रहता है! टीका लगवाने आए लोग बिना टीका लगवाए वापस जाने को मजबूर हैं। उन्हें वहाँ जानकारी देने के लिए भी कोई कर्मचारी नहीं मिलता! बिना टीका लगवाए और बिना जानकारी लिए वापस जाते हैं लोग! दिव्य भास्कर रिपोर्ट करता है कि इन दिनों सूरत, राजकोट, वड़ोदरा जैसे बड़े शहरों में भी ऐसे ही हालात है। सूरत, जहाँ विक्र्म वाले दिन जमकरण टीकाकरण हुआ था, उस केंद्र पर अब ताला लगा हुआ है!!! गुजरात के कई शहरों से ऐसी चीज़ों के रिपोर्ट लोकल अख़बारों में छप रहे हैं।
ग़ज़ब सीन चल रहा है गुजरात में। एक तरफ शहरों की पुलिस लाउडस्पीकर लेकर निकलती है बाजारों में। कहती है कि सरकारश्री के आदेश के अनुसार फलां फलां तारीख से पहले वैक्सीन ले लो, वर्ना दुकानें बंद करवा देंगे। सख़्त से सख़्त कदम का सामना करने की धमकियाँ दी जाती हैं। फिर वैक्सीन लगवाने जाते हैं लोग, तो वहाँ ताला लटका हुआ मिलता है!!! सिर्फ व्यापारी समुदाय ही नहीं, आम जनता, जो व्यापारी समुदाय से नहीं है वह जनता, टीका लगवाने जाती है तो उन्हें बिना टीका लगवाए वापस लौटना पड़ता है! क्योंकि केंद्र बंद होता है! ऐसा लग रहा है जैसे कि लोग जाग गए हैं और राज्य सरकार सो गई है!!!
उत्तर प्रदेश...
वैक्सीन लगी भी नहीं और मोबाइल पर आ गए मैसेज और सर्टिफ़िकेट!!!
यहाँ यह घटना किसी और के
साथ नहीं बल्कि बीजेपी के ही पार्षद देवेंदर भारती के साथ हो गई! गाजियाबाद नगर निगम
में यह बीजेपी के पार्षद हैं। 24 जून 2021 को निगम के टीकाकरण केंद्र पर अपने बेटे
और पत्नी से साथ टीका लगाने गए थे।1 जूलाई 2021 को रवीश रंजन शुक्ला की रिपोर्ट है, जिसमें इस तरह की गड़बड़ी दर्ज की गई है। पत्नी और बेटे को टीका लग गया लेकिन टीके की कमी की वजह से पार्षद खुद टीका लगा नहीं पाए। उन्हें बिना टीका लगाए वापस लौटना पड़ा। रिपोर्ट की माने तो, फिर भी उन्हें 4 दिन बाद मैसेज आ गया कि आपका टीकाकरण हो चुका है!!! उन्होंने आरोग्य सेतु एप पर इसे चेक किया तो उनका सर्टिफ़िकेट आ चुका था!!! जबकि उन्हें टीका लगा ही नहीं था! रवीश रंजन शुक्ला अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि इसके बाद पार्षदजी ने अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। अब वह डीएम से बात करने को मजबूर हैं। सोचिए, पार्षद को भी समाधान नहीं मिल पा रहा तो आम जनता को कैसे मिल सकता है?
इस रिपोर्ट में मेरठ के दीपक की भी यही कहानी है। दीपक ने अपनी बुजुर्ग माताजी के लिए मेरठ में टीके का स्लॉट बुक कराया लेकिन बुखार आने की वजह से वो गई नहीं। बावजूद इसके दूसरे दिन दीपक के मोबाइल पर उनके टीका लगने का मैसेज आ गया!!! अब वो शिकायत करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं! दीपक कहते हैं कि मुझे एक और मैसेज आया कि आप अपना सर्टीफीकेट डाउनलोड कर लें। सर्टीफीकेट डाउनलोड हो भी जाता है!!! जिसमें लिखा होता है कि टीका लगाने वाली प्रीती हैं। जबकि दीपक के माताजी टीका लगवाने जा ही नहीं पाए थे!!!
एक तरफ सैकड़ों लोग टीका लगाने के लिए धक्के खा रहे हैं, घंटों लाइन में खड़े रहने के बावजूद टीके की कमी से नंबर नहीं आ रहा है। दूसरी तरफ बिना टीका लगे ही लोगों को टीकाकरण का प्रमाणपत्र मिल रहा है! अधिकारियों का कहना है कि आधार नंबर नोट करवाने के चलते ऐसी गलती हो सकती है। वे दावा करते हैं कि ऐसी चीज़ें बड़े पैमाने पर नहीं है। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य राज्य मंत्री अतुल गर्ग जाँच करवाने की बात कह रहे हैं।
आगे जाकर सरकार
सर्टिफ़िकेट की गलतियाँ सुधारने की प्रक्रिया में नागरिकों को लगाएगी, लेकिन
गलतियाँ ही सुधरेगी, उन गंभीर गड़बड़ियों का क्या होगा?
यह मानना ठीक नहीं हो
सकता कि जितने मामले सामने आए हैं उतनी ही गड़बड़ियां हुई होगी। ऐसा कई जगहों पर,
कई लोगों के साथ हुआ होगा, जो मीडिया में रिपोर्ट नहीं हो पाए होंगे। यूं तो सरकार
वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट में गलतियाँ सुधारने को लेकर कुछ कर भी देगी। कहेगी कि ऐसा
करिए, वैसा करिए और सर्टिफ़िकेट में गलतियाँ सुधार लीजिए। बिना कोरोना के जब अलग
अलग प्रमाणपत्रों में गलतियाँ ठीक करना टेढ़ी खीर है तो फिर कोरोना काल में यह
प्रक्रिया कितनी सरल या मुश्किल होगी यह आने वाला समय बताएगा। सवाल यह भी है कि
स्पेलिंग एरर जैसी चीज़ें सुधरेगी, या ऐसी कुछ दूसरी हल्की फुल्की गलतियाँ सुधरेगी,
किंतु जो बड़ी बड़ी और गंभीर गड़बड़ियां देखने को मिल रही हैं उसका क्या होगा? बिना वैक्सीन लगवाए जिन्हें सर्टिफ़िकेट मिल
गया है वे कचहरियों के चक्कर काट रहे हैं! कचहरियों से जवाब मिलता है कि सर्टिफ़िकेट निरस्त नहीं हो सकता। सवाल स्पेलिंग
एरर का नहीं है। सवाल उससे भी आगे का है। उसके बारे में कहा है कि जाँच कराएँगे। इतने
सारे रिपोर्ट के बाद भी प्रशासन, अधिकारी और मंत्री मान नहीं रहे कि गंभीर प्रकार
की गड़बड़ी या कथित रूप से घोटाले हुए हैं, तो फिर जाँच वाच का क्या होगा यह पूछने
का रिवाज हमारे यहाँ नहीं है।ऐसी महामारी के खिलाफ अंतिम हथियार वैक्सीन ही है। सरकार वैक्सीनेशन पर भी ध्यान दे रही है, किंतु महसूस यह भी होता रहता है कि सरकार स्वास्थ्य अमले को रिकॉर्ड बनाने के लिए भी कह रही है। ताकि एक बड़ा नंबर दूसरे सारे छोटे नंबरों को मार गिरा दे!
उधर यूं तो कोरोना से संक्रमित मरीजों के आँकड़े पहली लहर की तुलना में अब भी ज़्यादा है। किंतु रोज़ाना 4 से 4.5 लाख संक्रमित और रोज़ाना 4 से 5 हज़ार मौतों को पचा लेने वाली प्रजा अब रोजाना 50 हज़ार संक्रमितों या कुछ मौतों को महत्व नहीं दे रही!!! रोज़ाना 4-4.5 लाख संक्रमित और 4-5 हज़ार तक की कैपेसिटी हो चुकी है हमारी! पहले हम 100 मौतों पर रोया करते थे, अब 4 से 5 हज़ार मौतें हमें डरा नहीं सकती! कोरोना का पीक कितना भी हो, हमारी ढीठता का पीक बहुत ऊंचा है! भीड़ जमा करके लुत्फ़ तो हम पिछले साल से ही उठा रहे हैं! राजनीति चुनावी भीड़ पर चिंता जताने के बजाए गदगद हुआ करती थी! अब वह चिंता जताएगी! प्रजा पहले चिंता जताती थी, अब गदगद हो जाया करेगी! इस अभूतपूर्व लड़ाई में, जहाँ स्वयं राजनीति भीड़ इक्ठ्ठा करती थी, अब प्रजा भीड़ जमा कर रही है, हम कोरोना को हरा देंगे। कौन सी वैक्सीन कितने फीसदी प्रभावी साबित हो रही है जैसी चीज़ों पर काँहे को माथा पीट रहे हो वैज्ञानिकों।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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