ऐसा नहीं है कि राष्ट्र ही एक दूसरे के साथ सरहद के लिए बवाल मचाये हुए हैं। राष्ट्रों
के भीतर उनके राज्य भी फेफड़े फाड़ते हैं, अपनी अपनी सरहदों को लेकर! दूसरे राष्ट्रों की बात हम काहे करें? हम हमारी ही बात कर लेते हैं। आज़ाद भारत के भीतर, उस आज़ाद भारत के भीतर, जिसकी अखंडता और एकता
के गीत बनाए गए हैं, गीत गाकर फेफड़े फाड़े गए हैं, उस आज़ाद भारत के भीतर गली मोहल्लों का वो नज़ारा हम सबने अनेक बार देखा हुआ है।
वह नज़ारा, जिसमें छोटी सी गली के लिए क़त्ल तक कर दिए जाते हैं! कमाल की सभ्यता है हम! तिरंगा, बॉर्डर, माँ तुझे सलाम, एलओसी जैसी फ़िल्में देखकर तिरंगे के लिए जान दे देंगे, उधर दो बीघा ज़मीन
के लिए अपनों की जान ले लेंगे!
नागरिकों से गाँव बनते हैं, शहर बनते हैं। गाँवों और शहरों से राज्य बनते हैं। राज्यों से देश बनता है। नागरिकों के भीतर प्रजा भी रहती है! वो प्रजा, जो फ़िल्में देखकर तिरंगे के लिए जान देती है, लेकिन छोटी सी गली के लिए अपनों की जान भी ले लेती है! उसी प्रजा से बनने वाले गाँव, शहर, राज्य, देश आदि को संभालने के लिए, जो सिस्टम बनाया गया है उसे चलाने के लिए, सत्ता नाम की एक ऐसी चिड़िया होती है, जिसके ऊपर कई गिद्धों की नज़र होती है। वे गिद्ध उसी प्रजा से निकलकर आते हैं, जिनका कमाल का द्दष्टिकोण हमने ऊपर देखा। फिर वे लोग और उनकी प्रजा पतली गली के गाँवों-शहरों वाले झगड़े को स्टेट डिस्प्यूट तक ले जाते हैं!
देखिए न। जब गर्मी का सीज़न होता है तो राज्य आपस में लड़ते हैं। कहते हैं कि हम आपको पानी नहीं दे सकते! जब मॉनसून का सीज़न आता है तो दोनों एक दूसरे पर गरियाते हैं। कहते हैं कि हमारा पानी आप आगे जाने से रोक नहीं सकते!
अभी आज़ाद भारत के दो राज्य, असम और मिज़ोरम, सरहद को लेकर एक दूसरे से लड़ रहे हैं, एक दूसरे को जान से मार रहे हैं! वे एक दूसरे पर क़ानूनी मामले दर्ज कर रहे हैं! एक राज्य का मुख्यमंत्री कहता है कि हम सीमा विवाद सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाएँगे। दोनों एक दूसरे को समन दे रहे हैं। जैसे एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के लिए चेतावनी जारी करता है, बाक़ायदा भारत के दो राज्य एक दूसरे के लिए ऐसी एडवाइज़री जारी कर रहे हैं। एक दूसरे के वाहनों की जाँच कर रहे हैं। एक राज्य दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करा रहा है!
भारत में आज़ादी के बाद से ही राज्य सरहद के लिए लड़ रहे हैं। यूँ कहे कि अखंड भारत की राजनीति करने वाले गिद्ध ज़मीन के टुकड़े के लिए प्रजा को एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर रहे हैं। नागरिक समझ सकते हैं, प्रजा नहीं! सो, प्रजा समझती नहीं। बल्कि वो तो एक दूसरे के सामने खड़ा होने को ही गौरव समझती है!!! असम मिज़ोरम का हालिया विवाद राज्यों के पुराने सरहदी विवाद के लिहाज़ से नया नहीं है। नया तो नहीं है, किंतु चौंकाता ज़रूर है।
एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस पर हमला कर रही है! पुलिस कर्मियों की मौत हो रही है। अखंड भारत के राज्य एक दूसरे के नागरिकों को अपने यहाँ आने से रोक रहे हैं। नहीं जाने की सलाह दे रहे हैं। दो मुख्यमंत्री खुलेआम एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं, जैसे कि गली-मोहल्ले वाला झगड़ा हो! दोनों राज्य एक दूसरे के अधिकारियों को हुक्म दे रहे हैं कि हाज़िर हो! आपराधिक मुकदमें दर्ज हो रहे हैं। एक राज्य दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास, आपराधिक षडयंत्र और अन्य जुर्मों का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कर रहा है! नाकेबंदी हो रही है!
भारत में सीमा विवाद नयी चीज़ तो नहीं है। किंतु यह नयापन ज़रूर नया है, जिसमें सीमा विवाद होने के बाद दोनों राज्य के मुख्यमंत्री एक दूसरे के साथ फ़ोन पर बात करके मामले को ठंड़ा करने की कोशिश नहीं करते! वे तो ऐसा करते हैं, जैसे दो शत्रु देश हो! दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सार्वजनिक बयान, चेतावनियाँ, नसीहतें देख लीजिए। लगेगा कि दोनों अलग अलग देशों के राज्य हो! पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देने का वह नारा यहाँ दो राज्य एक दूसरे के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करते दिखे!!! दोनों राज्य के नेता अपने अपने नागरिकों को उत्तेजित करते दिख रहे हैं! एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा कर रहे हैं अपने अपने नागरिकों को!
कमाल है! राज्यों के नागरिकों का ही नहीं बल्कि उनकी सिस्टम तक का एक दूसरे के साथ यूँ
लड़ना, राज्यों की एक दूसरे के लिए नाकाबंदी, अपने अपने नागरिकों
को चेतावनी, एक दूसरे के ख़िलाफ़ क़ानूनन प्राथमिकी, दो राज्यों की पुलिस
और उनके नागरिकों का एक दूसरे से युद्ध सरीखा बर्ताव करना और एक दूसरे को मार देना...
राष्ट्रवादियों में किसी प्रकार का क्षोभ उत्पन्न नहीं कर रहा! जो बफर ज़ोन दो दुश्मन देशों के बीच होता है, वैसा यहाँ एक ही देश
के दो राज्यों के बीच बना हुआ है! सोशल मीडिया पर अखंड भारत और उसके ऐतिहासिक पात्रों के लिए एक दूसरे पर गरियाने
वालों को, इतिहास के अपने अपने हिस्सों को लेकर अपने अपने बाड़े उत्पन्न करने वालों को, क्षोभ उत्पन्न होगा
भी कैसे?
सत्ता अपने ख़िलाफ़ छोटी सी आलोचना पर आलोचक के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह जैसे भयानक आरोप तक लगा देती है! सत्ता उन लोगों को यूनियन वॉर बुक तक में डाल देती है, जो उनकी नीतियों की पर्ते उधेड़ते हो! लेकिन यहाँ दो राज्य, दोनों के सिस्टम, दोनों के नागरिक तमाम सीमाओं को आसानी से पार कर जाते हैं! क्यों? देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच यही तो अंतर है। देशभक्ति देश को एकजुट करती है। राष्ट्रवाद एक देश के भीतर किसी दूसरे देश का सृजन कर देता है। राष्ट्रवाद भी अलग अलग तरह के होते हैं! ज़रूरत के हिसाब से राष्ट्रवाद! राज्यों के हिसाब से राष्ट्रवाद! स्थिति के हिसाब से राष्ट्रवाद! साथ ही, ज़रूरत से ज़्यादा राष्ट्रवाद!
यहाँ असमिया राष्ट्रवाद हावि है इस समय। असम और मिज़ोरम की प्रजा और उनका सिस्टम जो कुछ कर गया, कर रहा है, उसे राष्ट्रवाद की प्रतिक्रिया भर माना जा रहा है। सिंपल सी बात मानी जा रही है। हर देश एक दूसरे के साथ ज़मीन को लेकर जंग कर रहा है। और देश के भीतर राज्य इसी चीज़ को लेकर एक दूसरे से भीड़ रहे हैं! बहुत सिंपल सी बात! है न?
ताज़ा घटनाक्रम में असम मिज़ोरम की पुलिस और जनता ने ही एक दूसरे से जंग नहीं लड़ी, उनके मुख्यमंत्री तक एक दूसरे के ख़िलाफ़ ट्विटर पर लिखने लगे! धमकियाँ देने लगे! कभी सलाह मशविरे की बात करने लगे, कभी चेतावनी जारी करने लगे! यह भूलकर कि वे राष्ट्रीय राजनीतिक दल के वरिष्ठ नेता हैं। यह भूलकर कि वे राज्य की संवैधानिक और जवाबदेह शख़्सियतें हैं। असम के मुख्यमंत्री ने एलान कर दिया कि वे सीमा की रक्षा के लिए 4000 कमांडो तैनात करेंगे।
असम के पुलिसकर्मी इस ताज़ा झगड़े में मारे गए। असम के मुख्यमंत्री ने उनके नाम गिनाए, लेकिन विशेष धर्म के नाम नहीं गिनाए, बाकियों के नाम लिये! सोचिए, राजनीति कितनी शैतानी होती है! ज़मीन का झगड़ा ज़मीन को लेकर होता है, और फिर उसमें धर्म, जाति, उपजाति, भावना, फ़ेक न्यूज़, घृणा, नफ़रत आदि का तड़का लगाकर राजनीति अपने हिसाब से अपना एक नया कॉकटेल तैयार करती है!
असम मिज़ोरम ने एक दूसरे से जो बवाल काटा, इस बीच असम, नागालैंड और असम मेघालय के बीच भी सीमा-विवाद की ख़बर मिली है! इसी सिलसिले में जब संसद में सवाल पूछा गया तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश में इस वक्त 7 ऐसे बॉर्डर हैं, जिनको लेकर राज्यों में आपसी तकरार है। नित्यानंद राय ने ये भी बताया कि इन विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों से कभी-कभार विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएँ हो जाती हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के जवाब के मुताबिक़, हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक, असम-अरुणाचल प्रदेश, असम-नागालैंड, असम-मेघालय और असम-मिज़ोरम के सीमावर्ती क्षेत्रों में विवाद है। इन 7 में से 4 सीमा विवाद पूर्वोत्तर भारत के हैं और इन चारों में असम का किसी ना किसी राज्य से डिस्प्यूट है। इसका एक बड़ा कारण ये है कि असम की सीमा कहीं न कहीं बाक़ी सभी 6 पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा से मिलती है।
वैसे हमारे यहाँ पुल का गिरना कितना आसान है, मुश्किल है तो यह जानना कि वह क्यों गिरा! यहाँ भी ऐसा ही है। जिन राज्यों के बीच सीमा विवाद है, उनमें से ज़्यादातर कांग्रेस सरकारों के दौरान के विवाद है। बस यही एक चीज़ ग़ैरकांग्रेसी दलों के लिए हथियार है। समाधान ढूंढने में किसी की दिलचस्पी नहीं है, हथियार मिल गया तो उसी से लड़ना है! बीजेपी ने भी देश में 12-13 साल तक सत्ता को संभ्हाले रखा, लेकिन इन मसलों को लेकर कुछ नहीं हुआ।
उल्टा हुआ यह कि जो राज्य आज़ादी के बाद बिलकुल शांति से, इत्मीनान से, गुज़र बसर किया करता था, वहाँ अब बवाल काटे जा रहे हैं! हम बात कर रहे हैं लक्षद्वीप की, जहाँ हालिया दिनों में जमकर अशांति फैली थी। वैसी तो नहीं, जैसी असम मिज़ोरम
की घटना में फैली। किंतु दशकों से शांत लक्षद्वीप परेशान हो चला है अब! केरल, कश्मीर, बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाड़ु जैसे राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों राजनीतिक दल
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीक़ों से राजनीतिक नफ़ा नुक़सान हेतु अशांति फैलाते रहते हैं।
राजनीति नारों से सत्ता को चमकाती रहती है, उम्मीदें जगाती रहती है। किंतु राजनीति तभी सफल मानी जाती है, जब उस नारों से सत्ता मिलें, या मिलीं हुई सत्ता बरकरार रहे। इसके लिए नैरेटिव बनाना पड़ता है। नैरेटिव बनाने के लिए ख़ास तरह का वातावरण तैयार करना पड़ता है। कमाल यह कि नारों और नैरेटिव, दोनों में बहुत दूरी रखती है राजनीति! मतलब कि नारा कुछ और, नैरेटिव कुछ दूसरा ही! अखंड भारत का नारा कितना सुंदर है। लेकिन राजनीति उस अखंड भारत को राज्यों की अस्मिता के नाम पर बाँटती रहती है!
राजनीति नारों से सत्ता को चमकाती रहती है, उम्मीदें जगाती रहती है। किंतु राजनीति तभी सफल मानी जाती है, जब उस नारों से सत्ता मिलें, या मिलीं हुई सत्ता बरकरार रहे। इसके लिए नैरेटिव बनाना पड़ता है। नैरेटिव बनाने के लिए ख़ास तरह का वातावरण तैयार करना पड़ता है। कमाल यह कि नारों और नैरेटिव, दोनों में बहुत दूरी रखती है राजनीति! मतलब कि नारा कुछ और, नैरेटिव कुछ दूसरा ही! अखंड भारत का नारा कितना सुंदर है। लेकिन राजनीति उस अखंड भारत को राज्यों की अस्मिता के नाम पर बाँटती रहती है!
कोरोना का समय ही देख लीजिए। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय की बदौलत राजनीति ने जिस प्रकार की घृणा, नफ़रत और फ़ेक न्यूज़ का प्रचार किया, लोग न जाने क्या क्या मानने लगे थे। बात कोरोना की नहीं करनी है, किंतु ढेरों उदाहरणों में से एक ताज़ा उदाहरण ही ले लीजिए। बातें यही हुईं कि महाराष्ट्र और केरल कोरोना के मारे हुए हैं, कोरोना वायरस से परेशान हैं, वहीं से दूसरी लहर शुरू हुई और तीसरी भी वहीं से आएगी। नैरेटिव ऐसा, जैसे कि भारत के दूसरे राज्यों ने कोरोना को पहली और दूसरी लहर में चारो खाने चित कर दिया हो! उधर यूपी, बिहार, एमपी तक की नदियों में जो सैकड़ों लाशें बहीं, श्मशानों के बाहर कतारें ही कतारें दिखीं, वह किसीको नहीं दिखा! क्योंकि नारों और नैरेटिव की दुनिया वाक़ई चाणक्य-तेनालीराम-बीरबल-मुल्ला नसरुद्दीन तक को भी मात दे जाती हैं!
अखंड भारत की बातें करने वाला गौरव गैंग ही देश में दूसरे तर्कों को अलग अलग गैंगों के नाम से नवाजता रहता है! मुँहतोड़ जवाब दुश्मन को देना होता था, किंतु अखंड भारत के लोग और राज्य एक दूसरे को दे रहे होते हैं! कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे, वाली सनक राज्यों के भीतर भी है, जो सीमा विवाद में दिखती रहती है सालों से! घुसकर मारेंगे वाला मुहावरा केवल पाकिस्तान के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता! बफर ज़ोन भारत और पाकिस्तान के बीच ही नहीं है, भारत के भीतर राज्यों के बीच भी है!
देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच यही तो अंतर
है। देशभक्ति देश को एकजुट करती है। राष्ट्रवाद एक देश के भीतर किसी दूसरे देश का सृजन
कर देता है। तभी तो राष्ट्रवाद को नशे की शीशी कहा गया था। राष्ट्रवाद भी अलग अलग तरह
के होते हैं! ज़रूरत के हिसाब से राष्ट्रवाद! राज्यों के हिसाब से राष्ट्रवाद! स्थिति के हिसाब से राष्ट्रवाद! नौकरशाह अमिताभ कांत ने कहा था कि भारत में ज़रूरत से ज़्यादा लोकतंत्र है। लोकतंत्र
ज़रूरत से ज़्यादा है, या फिर राष्ट्रवाद ज़रूरत से ज़्यादा है?
26 जुलाई 2021 के दिन असम मिज़ोरम की सीमा पर जो हुआ वह यूँ तो नया नहीं है! किंतु अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में अब तक ख़बरें यही देखने को मिलती थी कि भारत-पाक सीमा पर गोलीबार, स्थिति तनावपूर्ण, वगैरह वगैरह। ऐसे ही हेडलाइन असम मिज़ोरम के मसले को लेकर देखने को मिलें!
भारत और पाकिस्तान के बीच गोलीबारी के बाद जो मंज़र देखने को मिलते थे, असम मिज़ोरम सीमा विवाद में देखने को मिले! दोनों राज्यों के सत्ताधारी नेता प्रेस में और सोशल मीडिया पर एक दूसरे को चेतावनी देने लगे, तीखी नसीहतें देने लगे! एक दूसरे के नागरिकों के लिए आदेश जारी करने लगे! एक दूसरे के ख़िलाफ़ मामले दर्ज करने लगे! बातचीत ठप कर दी! नाकेबंदी कर दी! आवश्यक सेवाओं को रोक कर एक दूसरे का जीना हराम करने लगे! नयी पुलिस चौकियाँ बनने लगीं! बंकर भी बनने लगे! एंबुलेंस और हथियारों का जमावड़ा होने लगा! बीबीसी हिंदी और सत्यहिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक़ एक राज्य की पुलिस ने एलएमजी लगा दी!!! सोचिए, वही एलएमजी, जो सेना इस्तेमाल करती है। दो राज्यों के बीच नो मैंस लैंड!!! आर्थिक नाकाबंदी! वह सब कुछ, जो भारत पाकिस्तान के बीच हुआ करता है!
एक प्रजा के रूप में आप गौरव सेना हैं तो गौरव कर सकते हैं। नागरिक हैं तो शर्म कर सकते हैं। इस बात के लिए कि हमारे यहाँ राज्यों के बीच ऐसे सीमा विवाद नए नहीं हैं। महसूस होता है कि इतनी आसानी से राष्ट्र निर्माण नहीं हो जाता और अनेक प्रकार के तनाव (जिनके ऐतिहासिक कारण हैं, और तात्कालिक भी) बने रहते हैं। वे तनाव कालक्रम में शिथिल होते हैं। रिश्ते इतनी आसानी से नहीं बनते।
हम जम्मू-कश्मीर को लेकर फेफड़े फाड़ते रहते हैं। किंतु लगता है कि जम्मू-कश्मीर तो पुस्तक का वो मेन पन्ना भर ही है! पुस्तक के भीतर ऐसे दूसरे ढेरों संस्करण हैं! तभी तो हमारी मान्यता यही होती है कि 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर का विकास नहीं हो पाया। जैसे कि हमारे यहाँ दूसरे राज्यों ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया हो! दिक्कतें तो सभी जगह हैं। लेकिन पुस्तक का मेन पन्ना दिखता है, भीतर के संस्करण छूट जाते हैं!
राष्ट्रवादियों ने ग़ज़ब का संयम रखा है इस बार! जैसे कि तय कर लिया है कि वे न तो असम के मुख्यमंत्री को राष्ट्र विरोधी कहेंगे, न मिज़ोरम के मुख्य मंत्री को। बिना लॉकडाउन के दोनों राज्यों ने एक दूसरे के लिए नाकाबंदी कर अखंड भारत के चमकते हुए राष्ट्रवादी नारे को नुक़सान पहुंचाया, एक दूसरे के लोगों को आने जाने से रोक लिया, कथित रूप से दोनों ने एक दूसरे के अधिकारियों और नागरिकों को मार गिराया, किंतु राष्ट्रवाद सिलेक्टीव बहुत हैं! हनुमानजी पर महाभारत हो गया था बीच में, क्या कुछ नहीं हुआ हनुमानजी को लेकर, कितना सारा बोला गया था, किंतु धर्म के ठेकेदार चुप रहे! वह ठेकेदार जो राई का पहाड़ बनाते थे, चुप रहे थे! अब राष्ट्र के ठेकेदार चुप हैं!
असमिया राष्ट्रवाद मिज़ोरम, नागालैंड और दूसरे राज्यों के बीच वही पुराना तनाव ज़िंदा किए जा रहा है। मेघालय के एक मंत्री ने बाक़ायदा बिन मांगी नसीहत दी कि मेघालय भी उसकी सीमा में अतिक्रमण करने वाले दूसरे राज्यों को मुँहतोड़ जवाब दे! ‘मुँहतोड़ जवाब’ पाकिस्तान के लिए इस्तेमाल होने वाला राजनीतिक डिक्शनरी का नारा है, जो आजकल भारत की राजनीति भारत के भीतर ही इस्तेमाल किए जा रही है!!!
मूल रूप से देखे और समझे तो सत्ता नाम की चिड़िया, जिस पर कई गिद्धों की नज़र होती है, धृणा और हिंसा की संजीवनी पर जीवित रहती है। भले यह गिद्ध उसी प्रजा से आए हुए होते हैं, लेकिन फिर वे प्रजा नहीं होते। वह सत्ता होते हैं। वह बूँद बूँद ज़हर का इंजेक्शन देते रहते हैं अपनी प्रजा को। ताकि सब स्वाभाविक लगे। नागरिक समझ सकते हैं, प्रजा नहीं। सो, प्रजा समझती नहीं। बल्कि वो तो एक दूसरे के सामने खड़ा होने को ही गौरव समझती है!
कांग्रेस हो या बीजेपी हो, सत्ता इसी पद्धति पर चलती रही है। बेचारा लक्षद्वीप शांति से जीवन यापन कर रहा था, वहाँ भी सत्ता ने कांडी लगा दी। ऐसे कई क़िस्से कांग्रेस काल के, कई बीजेपी के दौर के, आपको मिल जाएँगे और आगे मिलते भी रहेंगे। क्योंकि जिस प्रजा का सरपंच तक चुनने का सिस्टम कमाल का हो, वह ऐसे कमाल के बागड़बिल्ले राज्यों और देश के लिए चुनती रहेगी और फिर बागड़बिल्ले प्रजा को उनके हिस्से की ऐसी ख़ुशियाँ या ग़म देते रहेंगे। बेचारी बिल्लियाँ खामखाँ बदनाम हो गई हैं देश में, जबकि नुक़सान तो बागड़बिल्ले कर जाते हैं!!!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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