जो शख़्स देश के कथित रूप से सबसे लोकप्रिय राजनेता को, कथित रूप से सबसे
लोकप्रिय प्रधानमंत्री को, एक या दो बार नहीं किंतु तीन-तीन बार हरा चुका हो वह आख़िरकार उसीके हाथों इस
तरह से हारे यह कोई सामान्य सा चुनाव नतीजा नहीं है। जिस केजरीवाल को उस राज्य की जनता
ने लगातार तीन तीन बार मोदी नामक कथित महानायक के बरअक़्श चुना हो वह हार जाए, उसका दूसरे क्रम का
सिपहसालार, जिसे कथित रूप से देश के सफल शिक्षा मंत्रियों की सूची में रखा जाता था उसे जनता
बाहर का दरवाजा दिखा दे, उसके तमाम प्रमुख चेहरों को हरा कर नकार दें, यह कोई सामान्य चुनावी
नतीजा नहीं कहा जा सकता।
2024 के लोकसभा चुनाव में जैसे तैसे जीतने वाले नरेंद्र मोदी इसके बाद अलग अलग विधानसभा
चुनावों में लगातार जीते हैं और यह उनकी बड़ी जीत है यह भी एक पहलू है। किंतु आख़िरकार
यह बड़े मोदी के हाथों छोटे मोदी की करारी हार है।
केजरीवाल क्यों हारे
यह सवाल तो है ही नहीं, बल्कि छोटे मोदी के नाम पर जिन्हें अधिकांश लोगों ने जान-पहचान लिया था वह केजरीवाल
करारी हार के साथ फेंक दिए गए हैं यह जवाब ही प्रथम कारक है। अरे भाई, पता है कि राजनीति
में कोई हार या कोई जीत अंतिम नहीं होती, पता है कि यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं होता, इंदिरा गांधी से लेकर अब तक का राजनीतिक इतिहास भी पता है, साथ ही हमारी भावुक
जनता का पल-पल बदलने वाला मन और उसका चौंकाने वाला इतिहास भी पता है।
फ़िलहाल तो छोटे मोदी
अरविंद केजरीवाल असली मोदी के हाथों बुरी तरह से मुँह की खा चुके हैं। अन्ना हज़ारे
और उनकी कथित विवादित कार्यशैली, भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम, आंदोलन नामक पवित्र हथियार का सभी राजनीतिक दलों द्वारा घोर राजनीतिक इस्तेमाल, बहुत आधुनिक कहलाने
वाली नौजवानों की पीढ़ी को सिर से पाँव तक मूर्ख बनाने का ताज़ा इतिहास, कांग्रेस जैसे राजनीतिक
दल की कब्रगाह वाली कहानी का एक और संस्करण, इन सब विषयों का भी इसमें आना-जाना तो है ही।
जो प्रजाति 2014 में लिख रही थी कि
झाड़ू छह महीने से ज़्यादा नहीं चलता उन्हें क़रीब एक दशक के बाद मौक़ा नसीब हुआ है।
वहीं कांग्रेस ने आर्यभट्ट द्वारा खोजे गए शून्य को तीसरी बार गले लगाया है! देश की राजधानी दिल्ली में लगातार तीन-तीन बार नरेंद्र मोदी को हराने वाले केजरीवाल
ही नहीं उनके तमाम बड़े चेहरे अपना चुनाव गँवा चुके हैं।
5 फ़रवरी 2025 को यहाँ 70 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में मतदान संपन्न हुआ। मतदान प्रतिशत में इस बार
कमी आई। इस बार 60.44 प्रतिशत मतदान हुआ। 2020 में 62.55 प्रतिशत, 2015 में 67.47 प्रतिशत, वहीं 2013 में 66.02 प्रतिशत मतदान हुआ था।
चुनाव से ठीक पहले
अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से यह कहकर इस्तीफ़ा दिया था कि उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार
के आरोपों को ग़लत साबित करने के लिए वे जनता के बीच जा रहे हैं। उनके इस्तीफ़े के
बाद आतिशी मार्लेना सिंह को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
8 फ़रवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और नतीजों ने आख़िरकार केजरीवाल
का महल शीशे की तरह तोड़ दिया। बीजेपी और सह्योगी दल ने 48 सीटें जीती। पिछली
बार की तुलना में बीजेपी का 8 से सीधे 48 तक पहुँचना वाक़ई शानदार सफलता थी। बीजेपी का वोट शेयर 45.56 प्रतिशत तक पहुँचा।
जबकि आम आदमी पार्टी
को महज़ 22 सीटें मिली, जो उसके सबसे पहले चुनाव से भी कम सीटें थी। आम आम आदमी पार्टी का वोट शेयर क़रीब
10 फ़ीसदी गिरकर 53.6 से 43.57 प्रतिशत पर पहुँच गया। आम आदमी पार्टी पिछले
चुनाव की अपनी 62 सीटों से बहुत नीचे जा गिरी।
कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार 0 को पाया! हालाँकि कांग्रेस
का वोट शेयर 2020 के 4.26 प्रतिशत के मुक़ाबले इस बार 6.34 प्रतिशत तक पहुँचा। राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के सहारे अपनी ज़मीन वापस पाने
के लिए अब तक विफल कोशिश करने वाली कांग्रेस की 67 सीटों पर ज़मानत ज़ब्त
हो गई!
बीजेपी ने 27 सालों बाद दिल्ली
में जीत हासिल की। लगातार चौथी बार दिल्ली की कुर्सी पर बैठने का केजरीवाल का सपना
टूट गया। साल 1998 से 2013 तक, यानी 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ रही कांग्रेस लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में
भी कोई सीट नहीं जीत पाई!
2013, 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर ही बीजेपी ने लड़े थे, किंतु केजरीवाल ने
मोदी से पार पा लिया था। लेकिन इस बार केजरीवाल से नरेंद्र मोदी ने पार पा ही लिया।
आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली
विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे सीटों के हिसाब से बड़ा झटका तो है ही, किंतु पार्टी पर वज्रपात उसके सुप्रीमो और मुख्य चेहरे अरविंद
केजरीवाल तथा पार्टी के दूसरे नंबर के नेता और स्कूल मॉडल के नायक मनीष सिसोदिया की
हार का है। केजरीवाल और सिसोदिया के अलावा आप के दूसरे तारे भी इस बार ज़मीन पर आ गिरे
हैं।
इन चुनाव नतीजों में अरविंद केजरीवाल का ख़ुद की नई दिल्ली सीट हारना बहुत बड़ी
घटना है। केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट 2013 के चुनाव में कांग्रेस
की दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकार हासिल की थी और तब
से वे लगातार जीत रहे थे।
किंतु इस बार बीजेपी
के प्रवेश वर्मा ने इन्हें 4,089 मतों से मात दे दी है। प्रवेश वर्मा को कुल
30,088 वोट मिले और अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले। तीसरे नंबर पर कांग्रेस के संदीप दीक्षित रहे, जिन्हें कुल 4,568 वोट मिले।
2020 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बीजेपी के
सुनील कुमार यादव की तुलना में लगभग दोगुने वोट (61.1%) मिले थे। वहीं पिछले चुनाव की तुलना में केजरीवाल को इस बार
क़रीब 19 प्रतिशत कम वोट मिले हैं।
आम आदमी पार्टी के दूसरे नंबर के चेहरे, दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री और
स्कूल मॉडल के नायक मनीष सिसोदिया भी हार चुके हैं! कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में आए तरविंदर सिंह मारवाह ने सिसोदिया
को जंगपुरा सीट से 675 वोटों से हरा दिया। मारवाह को 38,859 वोट मिले, वहीं सिसोदिया को 38,184 वोट मिले।
सिसोदिया सीट बदल कर
भी हार गए! तीन बार पटपड़गंज से चुनाव जीतने वाले सिसोदिया
को पिछली बार काफी कम अंतर से जीत मिली थी और इस वजह से इस बार इन्हें जंगपुरा सीट
से लड़ाया गया था, जो कि पार्टी के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती थी। किंतु सिसोदिया सुरक्षित सीट
को भी बचा नहीं पाए!
पार्टी का एक और
प्रमुख चेहरा सौरभ भारद्वाज ग्रेटर कैलाश सीट से बीजेपी की नेता शिखा रॉय से 3,188 वोटों के अंतर से
हार गए।
दिल्ली के पूर्व मंत्री और आम आदमी पार्टी के बड़े नेता सत्येंद्र जैन को शकूर
बस्ती सीट से बीजेपी के उम्मीदवार करनैल सिंह ने 20,998 मतों के बड़े अंतर
से हरा दिया। सत्येंद्र जैन इस सीट को लगातार दो बार जीतने के बाद तीसरी
बार बुरी तरह से गँवा बैठे। वे मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल यात्रा कर चुके हैं।
एक समय दिल्ली के
मंत्री रहे पार्टी के एक और दिग्गज नेता सोमनाथ भारती मालवीय नगर सीट से बीजेपी के
नेता सतीष उपाध्याय के हाथो 2,131 वोटों के अंतर से हार गए। इनका विवादों से ख़ूब
रिश्ता रहा और मारपीट मामले में जेल भी गए।
वहीं पटपड़गंज सीट
से (जो कभी मनीष सिसोदिया की सीट हुआ करती थी) लोकप्रिय शिक्षक से आम आदमी पार्टी
के नेता बने अवध ओझा बीजेपी उम्मीदवार रविंदर सिंह नेगी से चुनाव 28,072 वोटों के विशाल अंतर
से हार गए।
पार्टी का एक और प्रसिद्ध चेहरा दुर्गेश पाठक भी बीजेपी के नेता उमंग बजाज के सामने राजिंदर नगर सीट से चुनाव 1,231 वोटों के अंतर से
हार गए।
आम आदमी पार्टी
के नेता प्रदीप मित्तल रोहिणी सीट से बीजेपी के दिग्गज नेता विजेंदर गुप्ता के
हाथो 37,816 वोटों के अंतर से हार गए।
आतिशी और गोपाल राय ही पार्टी के दो प्रमुख चेहरे रहे जिन्हें जीत नसीब हुई! चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने वाली आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी
ने कालकाजी सीट से बीजेपी के रमेश बिधूड़ी को 3,521 वोटों से हराया। जबकि दिल्ली के मंत्री और पार्टी के दिग्गज नेता गोपाल राय ने
बीजेपी के अनिल कुमार वशिष्ठ को बाबरपुर सीट से 22,439 वोटों के अंतर से हराया।
लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों
में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पिछले विधानसभा चुनाव के आँकड़ों से
तुलना करें तो इस बार आप को 65 सीटों
पर वोट शेयर का नुक़सान हुआ। वहीं पार्टी सिर्फ़ 5 सीटों पर वोट शेयर में बढ़ोतरी हासिल कर पाई।
दूसरी तरफ़ बीजेपी 59 सीटों पर अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही। सिर्फ़ 7 सीटों पर इसके वोट शेयर में गिरावट दर्ज की गई।
आम आदमी पार्टी के
वोट शेयर में सबसे ज़्यादा गिरावट ओखला, संगम विहार और मुस्तफ़ाबाद सीटों पर दिखाई दी। पार्टी ने इन सभी तीन सीटों पर
साल 2020 में 50 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल किए थे। जिन सीटों पर इसका वोट शेयर बढ़ा उनमें बदरपुर, गांधीनगर और सीलमपुर
सीटें शामिल हैं।
केजरीवाल का 62 सीटों से 22 तक पहुँचना पार्टी
के लिए बड़ा झटका है। आम आदमी पार्टी को साल 2020 में 48 सीटों पर 50 फ़ीसदी से अधिक वोट
मिला था। इस चुनाव में उसे सिर्फ़ 12 सीटों पर ही 50 फ़ीसदी से अधिक वोट मिल सके।
दिल्ली विधानसभा की
जिन सीटों पर सबसे ज़्यादा झुग्गी झोपड़ियाँ हैं वहाँ साल 2020 में आम आदमी पार्टी
को सबसे ज़्यादा वोट मिले थे। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में यह तस्वीर बदल गई। दिल्ली
में 675 स्लम कॉलोनियाँ हैं, जहाँ क़रीब 3 लाख परिवार रहते हैं। ये स्लम कॉलोनियाँ 62 विधानसभा क्षेत्रों में फैली हुई हैं।
इन 62 में से 10 विधानसभा सीटों पर
इस आबादी का क़रीब 40 फ़ीसदी हिस्सा रहता है। इन सभी 10 सीटों पर 2020 में आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार 2025 में बीजेपी ने इनमें से 7 सीटें जीत लीं। सबसे अधिक झुग्गी झोपड़ियों वाली जिन सीटों
पर बीजेपी को जीत मिली उनमें मोती नगर, वजीरपुर और मॉडल टाउन सीटें शामिल हैं।
इस बार बीजेपी ने आम आदमी पार्टी
के 26 में से 16 क़िले
ढहा दिए! इन तमाम 26 सीटों
पर आम आदमी पार्टी लगातार 3 विधानसभा
चुनावों से जीत रही थी। बीजेपी को सबसे ज़्यादा फ़ायदा वेस्ट और नॉर्थ वेस्ट दिल्ली
में हुआ। 2020 में यहाँ की 20 सीटों
में से बीजेपी सिर्फ़ 1 सीट
जीती थी, लेकिन इस बार बीजेपी ने यहाँ से 16 सीटें जीत गई! उपरांत दिल्ली की सभी 10 जाट बहुल सीटें भी बीजेपी ने जीत ली!
आम आदमी पार्टी ने
इस बार अपने 70 प्रत्याशियों में से 28 चेहरे नए उतारे थे। इनमें से सिर्फ़ 7 प्रत्याशी जीत पाएँ!
जैसा कि सबको ज्ञात
है, दिल्ली में बीजेपी
या आम आदमी पार्टी की जीत या हार कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर है! दिल्ली विधानसभा चुनाव की पिछले 10 सालों की स्थिति के बारे में जानकार पहले से बताते आए हैं कि यहाँ कांग्रेस का
वोट शेयर किसी एक पार्टी की स्थिति को बिगाड़ या बना देता है!
2025 के इस विधानसभा चुनाव में जहाँ बीजेपी ने 45.56 वोटिंग प्रतिशत के साथ 48 सीटें जीती, वहीं
आम आदमी पार्टी को बीजेपी से 1.99 प्रतिशत कम वोट मिले और वह 43.57 वोटिंग प्रतिशत के साथ 22 सीटें ही जीत सकी। सिर्फ़ 1.99 प्रतिशत के अंतर ने बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच 26 सीटों का फ़ासला बना दिया!
बीजेपी को इस बार पिछले
चुनाव की तुलना में क़रीब 7.1 फ़ीसदी अधिक वोट शेयर प्राप्त हुआ, जबकि आम आदमी पार्टी को अपने पिछले प्रदर्शन के मुक़ाबले इस बार क़रीब 10 फ़ीसदी कम वोट शेयर
मिला।
कांग्रेस 67 सीटों पर अपनी ज़मानत गँवाने के बावजूद 14 सीटों पर आम आदमी
पार्टी का खेल बिगाड़ने में कामयाब रही! जिन 14 सीटों पर आप दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही (एक सीट पर कांग्रेस दूसरे
नंबर पर रही और आप तीसरे नंबर पर), वहाँ इसका वोट शेयर विजेता उम्मीदवारों की जीत के अंतर से ज़्यादा था। इनमें तीन
प्रमुख सीटें हैं- नई दिल्ली, जंगपुरा और ग्रेटर कैलाश। यहाँ आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता बीजेपी उम्मीदवारों
से हार गए।
नई दिल्ली सीट पर प्रवेश
वर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को 6.6 परसेंटेज वोटों के
अंतर से हराया। यहाँ कांग्रेस के संदीप दीक्षित का वोट शेयर 7.4 फ़ीसदी रहा। जंगपुरा
में मनीष सिसोदिया बीजेपी के उम्मीदवार से 0.8 परसेंटेज प्वाइंट वोट के अंतर से हार गए। यहाँ कांग्रेस का वोट शेयर 8.6 फ़ीसदी रहा। ग्रेटर
कैलाश में सौरभ भारद्वाज बीजेपी की शिखा रॉय से क़रीब 3 फ़ीसदी वोटों के अंतर से हार गए। यहाँ कांग्रेस का वोट 6.4 फ़ीसदी रहा।
आम आदमी पार्टी से
इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में शामिल हुए पूर्व परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने बिजवासन से
11 हज़ार 276 वोट से जीत दर्ज की।
उन्होंने आम आदमी पार्टी के सुरेंद्र भारद्वाज को हराया। इसी तरह आम आदमी पार्टी से
इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में शामिल हुए करतार सिंह तंवर ने छतरपुर से चुनाव जीत लिया।
उन्होंने आम आदमी पार्टी के ब्रह्म सिंह तंवर को हरा दिया।
वो 2013 का साल था जब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा
और उसने अपने पहले ही चुनाव में 70 में 28 सीटें जीत ली थी! सबसे बड़ी पार्टी
बनकर उभरी बीजेपी ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस ने 8 सीटें जीती थी। अंत
में कांग्रेस ने चौंकाते हुए आप का साथ दिया था और इस तरह अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री
बने थे!
साल 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व
वाली यूपीए सरकार के दौरान कथित भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ दिल्ली में आंदोलन हुआ था और
इसका मुख्य चेहरा अन्ना हज़ारे थे। अन्ना हज़ारे की टीम का मुख्य चेहरा अरविंद केजरीवाल
थे और वे खुलकर कांग्रेस की आलोचना करते थे।
लेकिन जैसे नरेंद्र मोदी ने
2014 में सत्ता तक पहुँचने के बाद 2014 के पहले के अपने तमाम स्टैंड से पलट कर काम किया, अरविंद केजरीवाल उनके एक कदम आगे निकले! केजरीवाल ने सत्ता तक पहुँचने
के लिए 2013 में कांग्रेस का ही साथ ले लिया! हालाँकि बाद में मोदीजी
ने भी जम्मू-कश्मीर समेत दूसरे मामलों में ऐसा ही सरप्राइज़ टाई अप कर हिसाब बराबर
कर लिया!
2013 के उस चुनाव में आप को 29 फ़ीसदी से कुछ अधिक, बीजेपी को क़रीब 30 फ़ीसदी और कांग्रेस को 25 प्रतिशत के आसपास वोट शेयर मिला था। साल 2013 वो आख़िरी साल था
जब दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 30 से अधिक जीती थी। इसके बाद तो वो दहाई का आँकड़ा भी पार नहीं कर पाई!
2013 के बाद केजरीवाल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी पार्टी ने 2015 और 2020 में अपने दम पर दिल्ली
में बहुमत की सरकार बनाई। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की जीत काफी शानदार रही थी।
2015 में केजरीवाल ने 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट शेयर के साथ 67 सीटें जीतीं! यह काफी शानदार प्रदर्शन था। बीजेपी केवल 3 पर सिमट गई! हालाँकि उसका वोट शेयर अब भी 30 फ़ीसदी के आसपास था! कांग्रेस का वोट शेयर
10 प्रतिशत के नीचे चला
गया और वह एक भी सीट जीत नहीं पाई।
2020 का चुनाव काफी विवादित और सांप्रदायिक प्रचार के बाद संपन्न हुआ। इस
बार भी केजरीवाल ने शानदार नतीजे हासिल किए। 50 फ़ीसदी से कुछ अधिक वोट शेयर के साथ आप ने 62 सीटें जीती। बीजेपी ने अपना पिछला वोट शेयर बरक़रार रखा और उसने 8 सीटें जीती। कांग्रेस
फिर एक बार 0 पर रुक गई!
हालाँकि 2013 से 2024 के बीच लोकसभा चुनाव
के नतीजे यहाँ बिलकुल भिन्न थे। 2014, 2019 और 2024 तीनों लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में गई।
कथित शराब घोटाले को
लेकर स्वयं मुख्यमंत्री केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया तथा पार्टी के राज्यसभा सांसद और
राष्ट्रीय चेहरे संजय सिंह भी जेल गए! सुप्रीम कोर्ट ने महीनों बाद सभी को ज़मानत तो दी, किंतु जनता ने अपना
मन बदल लिया!
2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया।
इन्होंने सितंबर 2024 में इस्तीफ़ा देने का एलान करने हुए कहा कि जब तक जनता उनको इस पद पर बैठने के
लिए नहीं कहेगी, तब तक वो फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। किंतु जनता ने इनसे किनारा
कर लिया। जनता ने किनारा भी कुछ इस तरह किया कि केजरीवाल ही नहीं, आम आदमी पार्टी के
तमाम चमकने वाले सितारे अपनी अपनी सीटें हार गएँ!
इसमें कोई शक नहीं
कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार के कामकाज में बाधा उत्पन्न करने का निरंतर प्रयास होता
रहा। इसमें भी कोई शक नहीं कि एक राजनीतिक लड़ाई को जाँच संस्थानों के कथित ग़लत इस्तेमाल
से लेकर अदालत, नीति, नियम, संविधान, क़ानून, मीडिया, आदि हथियारों से भी लड़ा गया।
उधर केजरीवाल टकराव की
राजनीति करते रहे और ख़ुद को पीड़ित और मजबूर बताते रहे। लाभार्थी वोट बैंक बनाने
में तथा मुफ़्त योजनाओं में वे नरेंद्र मोदी के साथ स्पर्धा में दिखाई देते रहे।
साथ ही सॉफ़्ट हिंदुत्व को थामे रहे। बीजेपी के श्री राम के बदले वे हनुमानजी को
मैदान में ले आए! श्री रामजी चले न हनुमान के बिना! निशुल्क तीर्थ यात्रा
स्कीम भी ले आए! भगत सिंह की तस्वीर लगाकर बीजेपी के राष्ट्रवाद वाली सड़क
को भी नापते रहे!
आम आदमी पार्टी क्यों
हारी, उसका आगे क्या होगा, टाइप विश्लेषणों से सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया भरा पड़ा है। केजरीवाल
का अहंकार, अति आत्मविश्वास, कांग्रेस के साथ न रहना और अकेले चुनाव लड़ना, टकराव की राजनीति
से परेशान जनता का मन, मतदान से चार दिन पहले केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को राहत, महिला वोटर, आदि वजहों को ज़िम्मेदार
बताया जा रहा है।
केजरीवाल ने मोहल्ला
क्लिनिक, विश्वस्तरीय स्कूल, मुफ़्त बिजली और मुफ़्त पानी जैसी योजनाओं के माध्यम से एक मज़बूत वोट बैंक तैयार
किया था। इसके बाद भी केजरीवाल, सिसोदिया जैसे दिग्गज समेत पूरी पार्टी बुरी तरह से क्यों हारी इसकी अनेक वजहें
होगी। सबसे बड़ी वजह, जो दिखाई दे रही है, वह यह है कि बीजेपी ने केजरीवाल की छवि को धूमिल करने में सफलता प्राप्त कर ली
थी।
लगता है कि अरविंद
केजरीवाल ने राजनीति और सत्ता प्राप्ति के इस खेल में लोगों के बीच स्वयं के मानदंड
को कुछ ज़्यादा ही ऊंचा ही रख दिया था और वे इसी में फँस गए! ईमानदार राजनीति, लो प्रोफाइल, पार्टी के भीतर लोकतंत्र, पारदर्शिता जैसे हथियारों के ज़रिए राजनीति करने वाले केजरीवाल को बीजेपी ने लगातार
इन्हीं मुद्दों पर शाम-दाम-दंड तथा भेद से जनता के बीच बोना साबित कर दिया!
यूँ तो नरेंद्र मोदी
और अरविंद केजरीवाल, दोनों की राजनीति लगभग लगभग एक समान रही है। लगातार तीन बार केजरीवाल मोदी से
आगे चलते रहे, किंतु इस बार पिछड़ गए। लगातार कोशिश के बाद बीजेपी ने केजरीवाल की छवि बिगाड़ने
में सफलता प्राप्त की और विधानसभा चुनाव नतीजा बदल गया।
लगातार तीन तीन लोकसभा चुनावों में तथा पिछले एक दशक में अनेक राज्यों के विधानसभा
चुनावों में सफलता का परचम फहराते रहने के बाद भी दिल्ली में एक शख़्स के हाथों लगातार
हारते रहना बीजेपी और मोदी-शाह के लिए दर्ददेह खालीपन सा था। उपरांत दिल्ली में 27 वर्षों का सूखा इसमें
वृद्धि करता था।
आख़िरकार नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में न सिर्फ़ केजरीवाल के बड़े बड़े क़िले ढहा
दिए हैं, बल्कि इंदप्रस्थ से केजरीवाल का तंबू ही उखाड़ फेंका है। जिस व्यक्ति को उसके
कार्यकर्ता देश के भावि प्रधानमंत्री के रूप में दिखाया करते थे उसे अंत में तत्कालीन
प्रधानमंत्री ने करारी शिकस्त दी है!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)