साल ट्वेंटी ट्वेंटी वन। ये साल भी पिछले साल की तरह ही ताउम्र याद रहेगा।
2020 महामारी का साल था। 2021 उसी महामारी के चलते अपनों से अचानक ही हमेशा के लिए
छूटने का साल रहा, मौत के तांडव का साल रहा। यह साल किसानों के बहुत ही लंबे संघर्ष
और आंदोलन का साल था।
किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी की हिंसा, साल भर चले आंदोलन को लगा था दाग़
नरेंद्र मोदी सरकार
पिछले साल कोरोना महामारी के बीच तीन कृषि क़ानून लाई थी। इस क़ानून के लागू होने के
तरीक़े पर विवाद तो था ही, उधर उसी साल किसानों ने इन तीन कृषि क़ानूनों को काले और अन्यायी
क़ानून बताते हुए आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। नरेंद्र मोदी सरकार अपने क़ानूनों के
बारे में किसान भाइयों को समझा न सकी। साथ ही सरकार तथा उससे जुड़े नेताओं और समर्थकों
ने किसानों के इस आंदोलन को कुचलने तथा बदनाम करने के लिए जैसे कि मुहिम ही चला दी।
नतीज़न, केंद्र सरकार और किसान आंदोलनकारियों के बीच अविश्वास की खाई ज़्यादा गहरी होती
गई।
पिछले क़रीब दो-तीन
महीने से किसान दिल्ली से सटी तमाम सीमाओं पर जम गए। पिछले साल से शांतिपूर्ण प्रदर्शन
कर रहे किसानों ने अपनी माँगों को सरकार के बहरे हो चुके कानों तक पहुंचाने के उद्देश्य
से 26 जनवरी 2021, गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च निकाला। क़ानून व्यवस्था बनाए रखने
के लिए, साथ ही मार्च को रोकने के लिए सरकार ने पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों को सड़कों पर
उतार दिया। दिल्ली में जगह जगह बैरिकेडिंग की गई। कुछ जगहों पर बैरिकेडिंग ऐसी थी, जैसे
सिमेंट क्रॉकिट की दीवारे बना दी गई हो! सरकार ने किसानों को रोकने के लिए पक्की सड़कों तक को बुलडोजर से तोड़ दिया! कंटीली तारें लगा दी गईं और कुछ जगहों पर पक्की सड़कों के बीचोबीच सैकड़ों क़ीले
ठोक दी!
पिछले साल से चल रहा संघर्ष, संघर्ष को कुचलने और बदनाम करने के खेल, सरकार का अड़ियल रवैया, उधर आंदोलनकारियों की ज़िद, अंत में ट्रैक्टर मार्च को रोकने के लिए ग़ज़ब के इंतज़ाम। लाज़मी
था कि कुछ न कुछ तो होने ही वाला था। 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस पर हज़ारों
किसान अपने अपने ट्रैक्टर लेकर नई दिल्ली पहुंच गए। इस दौरान पुलिस के साथ आंदोलनकारियों
का जमकर संघर्ष हुआ। संघर्ष इतना ज़्यादा तेज़ था कि शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा आंदोलन
अचानक ही हिंसक संघर्ष में तब्दील हो गया। किसानों ने तमाम बैरिकेड्स तोड़ दिए। सैकड़ों
किसान लाल क़िले तक पहुंच गए और उसकी दीवारों पर चढ़ाई कर दी! लाल क़िले पर राष्ट्रीय ध्वज के पास थोड़ा नीचे अपना धार्मिक झंडा फहरा दिया!
कई सरकारी कारों के
नष्ट करने की रपटे छपीं। कई पुलिस जवान जख़्मी हुए। उधर अनेक किसान भी जख़्मी हुए। हिंसा
में ट्रैक्टर दुर्घटना में आंदोलनकारी की मौत भी हुई। 26 जनवरी की इस हिंसा ने किसान
और किसान आंदोलन की छवि को गहरा धक्का लगाया। कई प्रदर्शनकारी दिल्ली में घुस गए। पुलिस
बेरहमी से आंदोलनकारियों को पीटती रही, उधर आंदोलनकारी पुलिस
को पीटते रहे। इस हिंसा का अंतिम चित्र यह रहा कि उन दिनों वह किसान आंदोलन पूरी तरह
से बदनाम हो गया।
किंतु राकेश टिकैत
के भावुक वीडियो ने इस प्रदर्शन को नई ऊर्जा दी। दो मिनट के इस वीडियो ने उस लंबे संघर्ष को ऐतिहासिक किसान आंदोलन में बदल दिया।
लखीमपुर खीरी हिंसा, 4 किसानों को मंत्री के बेटे ने कार से रौंद दिया, 8 लोगों की मौत, एक पत्रकार भी शामिल
किसान आंदोलन को जब
भी याद किया जाएगा, लखीमपुर खीरी काँड उसके साथ जुड़ा रहेगा। इस साल अक्टूबर के महीने में लखीमपुर
में मंत्री के बेटे ने जो किया उसने 26 जनवरी की हिंसा को बौना साबित कर दिया। यूपी
के लखीमपुर खीरी में प्रदर्शनकारी किसानों पर एक थार गाड़ी चढ़ा दी गई। इसमें 4 किसानों
की मौत हो गई। इस हिंसा में कुल 8 लोग मारे गए। इस कांड में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री
अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को आरोपी बनाया गया और काफ़ी विरोध और बवाल के बाद
उसे 9 अक्टूबर को गिरफ़्तार कर जेल भेजा गया।
3 अक्टूबर को लखीमपुर
खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर थार गाड़ी चढ़ा दी गई। कृषि क़ानूनों का विरोध
कर रहे 4 किसानों को कार से रौंद कर मौत की नींद सुला दिया गया। इस घटना के वीडियो
भी सामने आए। इस घटना में साधना न्यूज़ चैनल के निघासन तहसील संवाददाता रतन कश्यप की
भी कवरेज करने के दौरान मौत हो गई।
यह घटना लखीमपुर ज़िला
मुख्यालय से क़रीब 75 किमी दूर तिकुनिया गाँव में हुई। किसानों पर गाड़ी चढ़ा कर 4
किसानों को मार देने की घटना के बाद वहाँ हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में 2 भाजपा कार्यकर्ता
समेत तीन और लोगों की मौत हो गई।
दरअसल इस घटना के कुछ
दिन पहले लखीमपुर के सम्पूर्णानगर के एक किसान सम्मेलन में मंत्री अजय मिश्र मंच से
किसानों को धमकाते नज़र आए थे। उन्होंने काले झंडे दिखाने वाले किसानों को चेतावनी
और धमकी भरे अंदाज़ में मंच से झाड़ दिया था। मंत्रीजी के इस तरीक़े के तल्ख़ बयानों
के बाद किसानों में ख़ासा गुस्सा था। इस दिन यूपी के उप मुख्यमंत्री और मंत्री अजय मिश्र
लखीमपुर के तिकुनिया गाँव आने वाले थे और किसानों ने वहाँ जाकर मंत्रीजी के धमकी भरे
बयानों का विरोध करने का तय किया था। और उसी दौरान यह चौंकाने वाली घटना हो गई।
एसआईटी जाँच में पाया
गया कि यह घटना एक सोची समझी साज़िश थी। आशीष मिश्रा समेत 14 आरोपियों पर हत्या का मामला
बना। यह मामला संसद के शीत सत्र में बड़े बवाल का सबब बना। मामले में विपक्ष ने गृह
राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफ़े की मांग को लेकर बवाल मचाया।
आख़िरकार केंद्र सरकार ने वापस लिया विवादित कृषि क़ानून, ऐतिहासिक आंदोलन को स्थगित करने का किसानों ने किया एलान
तीन कृषि क़ानूनों
के ख़िलाफ़ पिछले साल से चल रहा किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन इस वर्ष ख़त्म हो गया। हालाँकि
किसानों ने इसे ख़त्म करने के बजाए स्थगित करने का एलान किया।
क़रीब 13 महीने चले
इस ऐतिहासिक संघर्ष के बाद आख़िरकार ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की मांगों
को मानकर आंदोलन ख़त्म करने की अपील की। 378 दिन तक ये आंदोलन चला। प्रधानमंत्री के
एलान के बाद किसानों ने सरकार के साथ बातचीत की और उसके पश्चात 11 दिसंबर 2021 को किसानों
ने घर लौटना शुरू कर दिया। इस दिन उन्होंने किसान विजय दिवस के रूप में मनाया।
आज़ाद हिंदुस्तान के
इतिहास में यह सबसे लंबे समय तक चला किसान आंदोलन था। भारी संघर्ष, 26 जनवरी की हिंसा, राकेश टिकैत की भावुक अपील और इसके बाद अहिंसात्मक ढंग से चले
इस आंदोलन ने इन 378 दिनों में कई अच्छे और बुरे मंज़र देखे। इस दौरान सरकार और किसानों
के बीच कई दौर की बातचीत होती रही, किंतु सरकार के ढुलमुल
रवैये के बाद किसानों ने दिल्ली के पास ही डेरा जमा लिया।
इस लंबे आंदोलन के
दौरान सबसे पहले अपने अपने राज्यों में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन की शुरुआत, दो-तीन महीनों के बाद भी केंद्र सरकार का किसानों की माँगों पर ध्यान न देना, बहरी हो चुकी सरकार के सामने आख़िरकार दिल्ली से सटी तमाम सीमाओं पर डेरा डाल किसानों
का केंद्र सरकार से सीधा सीधा सामना करने का एलान, आख़िरकार केंद्र सरकार
के साथ बातचीत की शुरुआत, 26 जनवरी के दिन हुई हिंसा, राकेश टिकैत की भावुक
अपील, 3 अक्टूबर के दिन लखीमपुर में केंद्रीय मंत्री के बेटे द्वारा आंदोलनकारी 4 किसानों
को कार से कुचल देना,
साल से भी अधिक चले आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के दावे के मुताबिक़ क़रीब 700 किसानों का निधन, ट्रोल आर्मी और सोशल
मीडिया गैंग के सामने किसान आंदोलनकारियों की सफल टक्कर, सरकार के तमाम पैतरों को सामने लड़ते रहने का माद्दा, गोदी मीडिया को हैंडल करने के लिए किसानों की रणनीति, समैत कई रंग और रूप इस दौरान दिखते रहे।
एक साल से भी अधिक
चले इस आंदोलन ने बहुमत के नशे में चूर सत्ता को घुटनों पर ला दिया। आंदोलन को प्रताड़ित
करने की तमाम कोशिशें सरकार ने की। 26 जनवरी की हिंसा के बाद किसानों का पक्ष कमज़ोर
होता दिखा, सरकार हावी हो रही थी। लगा कि अब इस आंदोलन का अंत होने वाला है। किंतु किसानों
ने इस हिंसा के बाद बहुत सलीक़े से आंदोलन को नयी ऊर्जा दी और अहिंसात्मक तरीक़े से तीन
कृषि क़ानूनों का विरोध करते रहे। यह संघर्ष बहुत लंबा चला। किसान थकने को तैयार नहीं
थे।
आख़िरकार सरकार झुकी
और पीएम नरेंद्र मोदी ने क़ानून वापस लेने का एलान कर किसानों को अपनी बात नहीं समझ
पाने के लिए माफ़ी भी मांगी। इसके बाद ही आंदोलन का इसी माह सुखद पटाक्षेप हुआ। हालाँकि
आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के दावे के मुताबिक़ 700 किसानों की मौत हो गई थी।
कोरोना महामारी ने ढाया कहर, मौत का तांडव, ऑक्सीजन का संकट, गंगा में बहती रही लाशें, गाँव गाँव-शहर शहर श्मशान घाटों में कतारें लगी
कोरोना महामारी ने
इस साल अप्रैल और मई में भारत पर कहर ढा दिया। कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने भारत की
तमाम व्यवस्थाओं को झकझोर के रख दिया। ऑक्सीजन का अभूतपूर्व संकट हर जगह दिखाई दिया।
समूचे देश में मौत का तांडव चलता रहा। माँ गंगा में लाशें तैरती दिखाई दीं। क्या गाँव, क्या शहर, लगभग तमाम जगहों पर श्मशान घाटों में लंबी लंबी कतारें लगी।
नेता लोग चुनाव लड़ते
रहे, लोग मरते रहे! देश की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुल गई।
ऑक्सीजन संकट ने कईयों को मार डाला। रेमडेसिविर जैसी दवाओं की क़िल्लत ने लोगों को यहाँ
वहाँ दौडाया। हज़ारों लोग मारे गए। अंत में केंद्र सरकार ने कह दिया कि ऑक्सीजन की कमी
के कारण कोई नहीं मरा!!!
इस साल डेल्टा वैरिएंट
ने जो कहर ढाया, जिन्होंने इसे भूगता, जिन्होंने अपनों को गँवाया, वे इस साल को कभी भूल
नहीं सकते। अस्पताल के बाहर मरीज़ों की कतार के वो मंज़र शायद ही कोई भूल पाएगा। लोग
ऑक्सीजन सिलेंडर और रेमडेसिविर के लिए भटकते रहे, उधर उनके अपने मरते
रहे। महामारी इतनी भयावह रूप ले चुकी थी कि कई जगह तो श्मशान हो या कब्रिस्तान, लाशें जलाने और दफ्नाने के लिए जगह कम पड़ गई थी!
रोज़ाना 4 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित होने लगे तो हज़ारों मौतों से घरों से श्मशानों तक मातम पसर गया। मौजूदा
पीढ़ी ने अपने जीवनकाल में पहली बार श्मशानों में कतारों जैसा अविस्मरणी क्रूर दृश्य
देखा। नागरिक लाशों में तब्दील होते गए। इन लाशों को सम्मानजनक विदाई भी नसीब नहीं
हो पा रही थी। ना श्मशानों में जगह थी, ना लाशों को ढोने का
ढाँचा बचा था। डब्ल्यूएचओ ने जिस रेमडेसिविर को कोरोना की दवा नहीं माना था, उसी दवा का भारत में जमकर काला व्यापार हुआ!
एक साथ सैकड़ों लोगों
को एक साथ जलाने की तस्वीरों से देश सकते में था। लगातार जल रही चिताओं की गर्मी से
पास में लगे पेड़ भी झुलस गए! आँकड़ों की मायाजाल
में फिर एक बार सबको गुमराह करने का खेल पिछले साल की तरह इस साल भी जारी रहा। लोग
सिर्फ़ अपनी जान ही नहीं गँवा रहे थे, बल्कि इंसानियत का भी अंतिम संस्कार हो रहा
था। लोग अस्पतालों, लैब, मेडिकल स्टोर के ही चक्कर नहीं काट रहे थे, वे श्मशान दर श्मशान
भटक रहे थे। हालात यह हो चुके थे कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन किए बिना ही लाशें जलानी
पड़ रही थीं! कुछ मामलों में तो कोविड मरीज़ की लाशें
स्वजनों को ही दी जा रही थी, यह कहकर कि अपने शहर-गाँव में जाकर जला देना, यहाँ कोई इंतज़ाम नहीं बचा है अब!!! लोग यह भी करने को मजबूर थे।
धी-दूध की नदियाँ बहानी
थी, लेकिन माँ गंगा की गौद में सैकड़ों लाशें बहने लगी! कहीं पूरे के पूरे परिवार ख़त्म हो गए। कहीं छोटे छोटे बच्चे बच गए, उनके माता-पिता चल बसे। शहरों में ही नहीं बल्कि गाँवों में भी हर दिन लोग लाशें
बनने लगे। वैज्ञानिक और विशेषज्ञ पिछले साल से चिल्ला रहे थे, इस साल भी आगाह कर रहे थे, लेकिन नेता लोग भीड़ इक्ठ्ठा कर चुनावी प्रचार में व्यस्त रहे! और फिर उन्होंने उसी जनता को बेमौत मरने के लिए छोड़ दिया!
पिछले साल तामझाम के
साथ जिन कोरोना अस्पतालों को शुरू किया गया था, जिस प्रकार से देश
को आश्व्स्त किया गया था, जिस प्रकार से तैयारियों को लेकर बड़े बड़े दावे किए गए थे, इनमें से कुछ भी लोगों को नसीब नहीं हुआ! लोग इलाज के लिए तरस रहे थे, मर रहे थे और उधर अस्पतालों के पास दवा
नहीं थी, इंजेक्शन नहीं थे, ऑक्सीजन नहीं था! हर दिन सैकड़ों लोगों की साँसे रुकती गई, बिना इलाज के लोग मरते
गए। क्योंकि समूचा ढाँचा भरभरा कर गिर चुका था।
बंगाल चुनाव और हिंसा, बंगाल में ख़ूब चला खेला होबे, फिर भारी पड़ी दीदी
पश्चिम बंगाल में भाजपा
की शिकस्त इस साल की सबसे प्रमुख राजनीतिक घटना कही जा सकती है। हालाँकि ममता बनर्जी
के नेतृत्व वाली टीएमसी के लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद राज्य में हिंसा
भड़क गई। विपक्ष ने इस हिंसा के लिए टीएमसी को ज़िम्मेदार ठहराया। जबकि टीएमसी ने इसे
विपक्ष की साज़िश बताया। बाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हिंसा के पीड़ितों को मुआवज़ा देने में विफल रहने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की खिंचाई की।
पश्चिम बंगाल में अप्रैल
में विधानसभा चुनाव हुए थे, जबकि मई की शुरुआत में नतीजे आए। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी
ने 294 सीटों वाली विधानसभा में 215 सीटों पर जीत हासिल की, बीजेपी को 77 सीटें मिलीं। हालाँकि नंदीग्राम की सीट पर ममता को गहरा धक्का लगा।
वहाँ वे बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी से पराजित हो गईं। बाद में भवानीपुर विधानसभा
उपचुनाव में जीत हासिल कर ममता ने नियमों की औपचारिकता पूरी कर ली।
नतीजों के बाद बड़े
पैमाने पर हिंसा भड़क उठी। 50 से ज़्यादा लोगों ने इस हिंसा में अपनी जान गँवाई। हिंसा
मामले की जाँच सीबीआई को सोंपी गई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच रिपोर्ट
में ममता बनर्जी सरकार को हिंसा के लिए दोषी माना। इसी रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट
ने सीबीआई जाँच का आदेश दिया और हिंसा से संबंधित अन्य आपराधिक मामलों की जाँच के लिए
एक एसआइटी का गठन करने का निर्देश दिया।
100 करोड़ कोविड वैक्सीन का रिकॉर्ड
21 अक्टूबर 2021 के
दिन कोरोना से जंग में भारत ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज दिए जाने का रिकॉर्ड कायम किया।
भारत सरकार ने 9 जनवरी 2021 को एलान किया था कि देश में 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीनेशन
का अभियान शुरू होगा। केंद्र सरकार ने 1 फ़रवरी 2021 से ही फ्रंटलाइन वर्करों के टीकाकरण
की मंजूरी दे दी। इनमें पुलिसकर्मी, सेना, आपात सेवाओं से जुड़े
सरकारी विभाग और अन्य कर्मी शामिल थे।
24 फ़रवरी 2021 को एलान
किया कि 60 साल से अधिक उम्र और गंभीर बीमारियों के शिकार 45 साल से ज़्यादा आयु के
लोग 1 मार्च से सरकारी या निजी केंद्रों पर कोविड-19 वैक्सीन लगवा सकेंगे। 7 अप्रैल
2021 को सरकार ने विश्व स्वास्थ्य दिवस के दिन कार्यस्थलों पर टीकाकरण करने की मंजूरी
दे दी। इससे कंपनियों, संस्थानों और अन्य सार्वजनिक समूहों के बीच वैक्सीनेशन का रास्ता
साफ़ हुआ।
इस बीच केंद्र की विवादित
नीति से वैक्सीनेशन को लेकर राज्य मुश्किल में दिखे। इसे लेकर कई राज्यों ने नाराज़गी
भी जताई। विवाद हुआ और आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की। इसके
बाद वैक्सीनेशन नीति में बदलाव किया गया।
6 अगस्त को 50 करोड़
कोविड वैक्सीन देने का रिकॉर्ड बना। 20 अक्टूबर की रात 12 बजे तक कोविड वैक्सीनेशन
99.79 करोड़, यानी क़रीब 100 करोड़ तक पहुंच गया था। 21 अक्टूबर के दिन भारत ने 100 करोड़
कोविड वैक्सीनेशन का लक्ष्य हासिल कर लिया।
हेलीकॉप्टर हादसा, देश के प्रथम सीडीएस जनरल रावत समेत 13 सैन्य अफ़सरों का निधन
8 दिसंबर को तमिलनाडु
के कुन्नूर में हुए हेलीकॉप्टर हादसे में देश के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ जनरल बिपिन
रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत 13 लोगों की जान चली गई। हादसे में एकमात्र जीवित
बचे, लेकिन गंभीर रूप से घायल मिले ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने भी क़रीब आठ दिन तक मौत
से संघर्ष के बाद दम तोड़ दिया।
हेलीकॉप्टर में 14
लोग सवार थे, जिनमें से 13 लोगों की मौक़े पर ही मौत हो गई। शवों की पहचान डीएनए जाँच से करनी
पड़ी। यह एक सैन्य हेलीकॉप्टर एमआई-17 वी5 था। दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के
लिए भारतीय वायु सेना ने जाँच के आदेश दिए। क्रैश तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले के कुन्नूर
में हुआ। हेलीकॉप्टर सुलुर के आर्मी बेस से निकला था। जनरल रावत को लेकर यह हेलीकॉप्टर
वेलिंगटन सैन्य ठिकाने की ओर बढ़ रहा था।
बिपिन रावत और उनकी
पत्नी मधुलिका रावत के अलावा हेलीकॉप्टर में ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर, लेफ़्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह और अन्य अधिकारी मौजूद थे। साथ ही नायक गुरसेवक
सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांस नायक विवेक कुमार, लांस नायक बीसाई तेजा
और हवलदार सतपाल भी हेलीकॉप्टर पर मौजूद थे।
पैंडोरा पेपर्स लीक मामला, सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबाणी समेत अनेक भारतीय दिग्गजों का नाम सामने आया
पैंडोरा पेपर्स लीक
मामले को इस वर्ष देश की प्रमुख घटनाओं में गिना जा सकता है। इन पेपर में 300 भारतीय
लोगों के नाम शामिल थे, जिनमें 60 लोग ज़्यादा ख़ास थे। इनमें सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी, नीरव मोदी, जैकी श्रॉफ, अजीत केरकर और किरण मजूमदार-शॉ जैसे चेहरे शामिल थें।
दरअसल 3 अक्टूबर
2021 को दुनिया भर में पत्रकारीय साझेदारी द्वारा लीक हुए लाखों दस्तावेज़ों को ''पैंडोरा पेपर्स''
कहा गया। इसमें भारत समेत 91 देशों में वर्तमान और पूर्व विश्व
नेताओं, राजनेताओं और सार्वजनिक अधिकारियों के वित्तीय रहस्यों का खुलासा करने का दावा
था। इन पेपर्स में 1.2 करोड़ दस्तावेज़ शामिल थें, जिन्हें आईसीआईजे
ने हासिल किया था। वॉशिंग्टन आधारित इस थिंक टैंक ने दस्तावेज़ों की जानकारियाँ प्रकाशित
की।
इस लीक में कई विश्व
नेताओं, पूर्व राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और उद्योगपतियों व खिलाड़ियों के नाम सामने
आए। भारत की बात करे तो भारत रत्न से सम्मानित भारतीय क्रिकेटर और राज्यसभा सांसद सचिन
तेंदुलकर, उघोगपति अनिल अंबानी, भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी, बायोकॉन की प्रमोटर
किरण मजूमदार शॉ, बॉलीवुड अभिनेता जैकी श्रॉफ, गांधी परिवार से जुड़े सतीश शर्मा, नीरा राडिया, अजीत केरकर जैसे दिग्गजों के नामों का खुलासा हुआ।
इससे पहले 2016 में
पनामा पेपर्स का भी खुलासा हुआ था, जिसमें भी नामी लोगों के नाम शामिल थें।
इसके बाद 2017 में पैराडाइज़ पेपर्स खुलासे में भी कई बड़े बड़े भारतीयों के नाम सामने
आए थे।
पेगासस स्नूपगेट मामला, भारतीय पत्रकारों
व नेताओं की डिजिटल जासूसी का सनसनीखेज़ मामला, मोदी सत्ता पर उठे सवाल
18 जुलाई 2021 के दिन
एक ख़बर आई। ख़बर यह कि दुनियाभर की कई सरकारों ने 50,000 से अधिक नंबरों को ट्रैक
करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया था। पेगासस एक स्नूपिंग सॉफ़्टवेयर
है, जो इज़रायली कंपनी एनएसओ का है। द गार्जियन और वॉशिंग्टन पोस्ट ने अपने रिपोर्ट
में यह दावा किया। 50 हज़ार से अधिक नंबरों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना
बनाया गया था। नोट करें कि पड़ताल के बाद दावा फ़ोन हैकिंग और फ़ोन टैपिंग का भी था।
दावे के मुताबिक़ भारत
में देश के 40 पत्रकारों की जासूसी पेगासस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई! इसमें हिन्दुस्तान
टाइम्स, द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, न्यूज़ 18 और द वायर के पत्रकार शामिल थें।
द वायर ने एक ख़बर में यह दावा किया। एनडीटीवी ने एक ख़बर में कहा कि इसके अलावा संवैधानिक
पद पर बैठे एक व्यक्ति और विपक्ष के तीन नेताओं की जासूसी भी स्पाइवेयर से की गई थी।
भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के फ़ोन नंबर उस लीक डाटाबेस में पाए गए! इसके अलावा
लीगल कम्यूनिटी मेंबर्स, बिज़नेसमैन, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं और अन्यों के नंबर इस लिस्ट में शामिल थे! प्राथमिक जानकारी के अनुसार
इस लिस्ट में 300 से ज़्यादा भारतीय मोबाइल नंबर थे।
फ्राँस ने इस मामले
के सामने आने के बाद अपने यहाँ जाँच के आदेश दे दिए। भारत सरकार ने बिना जाँच के एलान
कर दिया है कि कुछ नहीं हुआ है!
टाटा को 7 दशक बात मिला एयर इंडिया, जिन्होंने स्थापना
की थी उन्हीं हाथों में फिर एक बार पहुंची कंपनी
नमक से सॉफ़्टवेयर
तक का कारोबार करने वाले टाटा समूह ने क़र्ज़ में डूबी सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया
को इस साल ख़रीद लिया। टाटा संस को क़रीब सात दशक बाद एयर इंडिया का स्वामित्व मिला।
टाटा संस ने 2021 में एयर इंडिया की बोली जीती, जिस एयरलाइन की स्थापना उसने लगभग 90 साल
पहले की थी। सरकार ने एयर इंडिया के लिए टाटा की तरफ़ से 18,000 करोड़ रुपए की बोली
स्वीकार कर, टाटा को कंपनी का 100 फ़ीसदी अधिग्रहण दे दिया। एयर इंडिया की स्थापना 1932 में
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा ने की थी।
एयर इंडिया को ख़रीदने
के लिए सात कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई थी। क़ीमत के तौर पर टाटा संस एयर इंडिया के
15,300 करोड़ रुपये के क़र्ज़ का ज़िम्मा लेगा, बाक़ी रकम का वो नक़द में भुगतान करेगा। हालाँकि
ख़रीद संबंधी पूरी प्रक्रिया पूरी होना अभी बाकी है और एयर इंडिया को संपूर्ण रूप से
टाटा के हाथों में जाने के लिए अगले साल तक का समय लगेगा।
जून 2017 में आर्थिक
मामलों की कैबिनेट समिति ने एयर इंडिया और उसकी पाँच सहायक कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश
के विचार को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी। मार्च 2018 में सरकार ने एयर इंडिया में
76 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदने के लिए निवेशकों से रूचि पत्र आमंत्रित किए। इसके तहत
शेष 26 प्रतिशत सरकार के पास होती। बोली लगाने की आख़िरी तारीख़ 14 मई थी। लेकिन कोई
बोली नहीं मिली। इसके बाद जनवरी 2020 में सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण के लिए रूचि
पत्र (ईओआई) जारी किया। सरकार ने कहा कि वह 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेच कर एयर इंडिया
से पूरी तरह बाहर निकलेगी। इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस का 100 प्रतिशत और एआईएसएटीएस
का 50 प्रतिशत भी शामिल होगा। बोली लगाने की अंतिम तिथि 14 दिसंबर तक पाँच बार बढ़ाई
गई। अक्टूबर 2020 में सरकार ने सौदे को आकर्षक बनाया; निवेशकों को एयर इंडिया के क़र्ज़ की राशि के एक हिस्से की अदायगी की शर्त में ढील
दी। दिसंबर 2020 ने सरकार ने कहा कि बोलियाँ मिली हैं। तीसरी कोशिश में आख़िरकार एयर
इंडिया अक्टूबर 2021 में बिक गई।
ओलंपिक में भारत को गोल्ड, भारतीय खिलाड़ियों
ने अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया
इस साल ओलंपिक में
भारत ने गोल्ड पर कब्ज़ा जमाने के साथ ही सबसे ज़्यादा मेडल भी जीते। टोक्यो में हुए
ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने अपना अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इस प्रतियोगिता
में नीरज चौपड़ा ने इतिहास रचते हुए जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीता, जबकि 2 रजत और 4 कांस्य पदक भी भारत की झोली में आए। वहीं भारतीय पुरुष हॉकी टीम
ने 41 साल बाद हॉकी में मेडल हासिल किया।
2020-21 में कोविड19 लॉकडाउन और उससे जुड़ी चुनौतियों के साथ टोक्यो में भारतीय एथलीटों की उपलब्धियों
ने देश को गौरवान्वित किया। इस प्रदर्शन ने भारत को 2012 के लंदन खेलों में हासिल किए
गए छह पदकों के अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पार करने में भी मदद की। इस साल
भारत ने कुल मिलाकर 7 पदक जीते।
भारतीय महिला ने जीता मिस यूनिवर्स का ताज
इस साल भारत की हरनाज
सिंधू ने मिस यूनिवर्स का ख़िताब जीता। भारत को क़रीब दो दशक बाद यह ख़िताब मिला। ये प्रतियोगिता
इज़राइल में हुई थी। इसकी प्रीलिमिनरी स्टेज में 79 से अधिक कंटेस्टेंट्स ने हिस्सा
लिया था। 21 साल की हरनाज ने पैराग्वे की नाडिया फेरीरा और दक्षिण अफ्रीका की लालेला
मस्वाने को पीछे छोड़कर ये ताज अपने नाम किया। इससे पहले 1994 में सुष्मिता सेन तथा वर्ष 2000 में लारा दत्ता ने देश के लिए मिस
यूनिवर्स का ख़िताब जीता था।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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