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Surat Takshashila Agni Kand: सूरत का तक्षशिला अग्निकांड, जब शहर के पास चौथी मंजिल पर जाने की सीढ़ी तक नहीं थी!


मई 2019 का वो दर्दनाक हादसा। आज 2021 का नवंबर महीना चल रहा है। यूँ तो हमारा आधुनिक और पढ़ा-लिखा समाज सदियों पुराने इतिहास में बिजी रहता है, किंतु अपना बदनूमा वर्तमान भूल जाता है! लाज़मी है कि एजुकेटेड और इंटेलीजेंट, आज कल दोनों के बीच सीधा रिश्ता है कहाँ?

मनमोहन सिंह के समय भारत चाँद पर पहुंचा था। मोदीजी के समय मंगल पर पहुंचने को काफी क़रीब है। लेकिन जब शहर में कहीं आग लगती है तो फायर ब्रिगेड की सीढ़ी चौथी मंजिल तक नहीं पहुंच पाती!!! हमारे पड़ोसी की एक सनक काफी मशहूर है। एक ज़माने में उसके शासक ने कहा था कि पाकिस्तान घास फूस खाकर ज़िंदा रह लेगा, लेकिन परमाणु बम ज़रूर बनाएगा। पाकिस्तान ने बम बना लिया, भले घास फूस खाने की नौबत आन पड़ी। सोच और सनक के बीच का यह अंतर। लोग सोचते बहुत हैं, किंतु जीते हैं सनक में ही!
 
उन दिनों तपती गर्मी का महीना चल रहा था। सूरत के उस अग्निकांड के वीडियो जगह जगह व्हाट्सएप पर बाँटे जा रहे थे। अपनी जान बचाने के लिए चौथी मंजिल से कूदते बच्चे, चीख़ें, चिल्लाहट, भीड़, जान जोखिम में डालकर मदद करता हुआ समाज, सब कुछ वीडियो में क़ैद करके लोग एक दूसरे को भेज रहे थे। वीडियो देख देख कर लोग भी उस पीड़ा को महसूस कर रहे थे। शासन और प्रशासन को भला-बुरा भी कहा जा रहा था। फिर क्या हुआ? उस त्रासदी को भूगतने वाले आज भी सिसक रहे हैं, समाज अपना कर्तव्य निभाकर आगे बढ़ चला है। क्योंकि उसे वर्तमान भूलकर सदियों पुराने इतिहास को आलू-मटर की तरह छिलने का काम भी तो करना है।
 
गुजरात का सूरत शहर। यहाँ सरथाणा नाम का एक इलाक़ा है। वहाँ एक बिल्डिंग है। नाम तक्षशिला कॉम्प्लेक्स। सबसे ऊपर के फ्लोर पर कोचिंग क्लास हुआ करता था। नाम था अलोहा क्लासेज। टैरेस को कवर करके क्लासेस चलाए जाते थे। आर्किटेक्ट और डिज़ाइनिंग के स्टूडेंट यहाँ आते थे। नाटा, यानी नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट इन आर्किटेक्चर की तैयारी करने। ये एक प्रवेश परीक्षा होती है। तो उसी की तैयारी के लिए अलोहा क्लासेज में बच्चे आते थे। गर्मी में इनकी संख्या ज़्यादा हो जाती थी। क्योंकि छुट्टियाँ चल रही होती हैं, तो समर क्लास में बहुत सारे बच्चे एडमिशन लेते हैं। इनमें से ज़्यादातर लड़कियाँ होती हैं।
 
24 मई के दिन भी, इस कोचिंग क्लास में बच्चे आए थे। क़रीब 40 बच्चे। बिल्डिंग के पास ही गुजरात इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का ट्रांसफॉर्मर था। जिसमें अचानक से स्पार्क हुआ और आग लग गई। थोड़ी ही देर में आग तक्षशिला बिल्डिंग के उस माले तक पहुंच गई, जहाँ अलोहा कोचिंग क्लास थी। अब जो कोचिंग क्लास थी, वो छत पर ही शेड डालकर चलाई जा रही थी! उसी शेड ने आग को पकड़ लिया। अचानक से भभक-भभक कर वो शेड जलने लगा। बच्चे अंदर ही थे। ख़ुद को बचाने के लिए कुछ बच्चे नीचे भागे, तो कुछ खिड़कियों के ज़रिए नीचे कूद गए। अफ़रा-तफ़री मच गई। जलने और कूदने से 20 बच्चों की मौत हो गई।
उर्मी वेकरीया, 16 साल की लड़की थी। ये भी उन 40 बच्चों में शामिल थीं, जो कोचिंग में थे। उर्मी बाल-बाल बच गईं। मीडिया रिपोर्ट की माने तो, उर्मी को केतन चौडवाडिया नाम के एक लड़के ने बचाया था। इस घटना के बाद रिपोर्टर गोपी मनियार ने उर्मी से बातचीत की थी।

रिपोर्ट के मुताबिक़, उर्मी बताती हैं, "नीचे आग लगी थी, वहाँ से धुआँ ऊपर आ रहा था। धुआँ बढ़ गया, और फिर हमारे कोचिंग में भी आग लग गई। कुछ लोग ख़ुद को बचाने के लिए कूद गए। कुछ जल गए।"
 
सूरत ही नहीं, बल्कि पूरे गुजरात में उस वक़्त हर कोई दमकल विभाग पर गुस्सा कर रहा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ फायर ब्रिगेड का कार्यालय तक्षशिला बिल्डिंग से महज़ 3 किलोमीटर दूर था, लेकिन उन्हें घटनास्थल पर पहुंचने में 45 मिनट लग गए!


फायर ब्रिगेड के बारे में जब उर्मी से सवाल किया गया, तब उन्होंने बताया"फायर ब्रिगेड वाले पहुंच तो गए थे, लेकिन उनके पास कुछ था ही नहीं कि हमें बचाया जा सके। कुछ कपड़ा, सीढ़ी कुछ भी नहीं था। उनके पास सीढ़ियाँ नहीं थीं। जो थीं वो केवल एक फ्लोर पर आकर ख़त्म हो जा रही थीं।"

उर्मी के पिता ने गोपी मनियार को बताया"फायर ब्रिगेड आया था, लेकिन उनके पास कोई सुविधा नहीं थी। नेट नहीं थी, सीढ़ी नहीं थी, रस्सी नहीं थी। वो सब बच्चे जो अभी अस्पताल में हैं, या जिनकी मौत हो गई है, वो बच जाते, अगर फायर ब्रिगेड के पास सुविधा होती।"
 
उन दिनों जो वीडियो आए, वीडियो में दिखाई दे रहा था कि जिस वक़्त बच्चे इमारत से छलांग लगा रहे थे, उस वक़्त दमकल सामने खड़ी थीं, लेकिन उनकी सीढ़ियाँ ऊपरी मंजिल तक नहीं पहुंच पाईं!
 
आग से बचने के लिए छात्र तीसरी और चौथी मंजिल से कूद रहे थे। आग से बचे वे नीचे गिरने की वजह से या तो मारे गए, या बुरी तरह से घायल हुए। आनन फानन में गुजरात के सभी आठ नगर निगमों ने व्यावसायिक परिसरों में चलने वाले सभी कोचिंग बंद करने के आदेश दे दिए। सरकार नींद से उठ गई। सभी कोचिंग संस्थान, पुस्तकालय, अस्पताल, व्यावसायिक परिसर, रेसीडेंसियल बिल्डिंग समेत तमाम जगहों पर जाँच की जाने लगी। कमियाँ दूर करने के लिए आदेश दे दिए गए। लेकिन चिड़िया खेत चुग चुकी थी। जो जब करना होता है तब नहीं होता, होता तभी है जब जो नहीं होना होता वह हो जाए।
सूरत पुलिस कमिशनर सतीष शर्मा ने कहा कि अग्निकांड में दक्षिण गुजरात बिजली कंपनी लिमिटेड (डीजीवीसीएल), सूरत महानगरपालिका और फायर विभाग की स्पष्ट लापरवाही सामने आई है। आश्वासन वही था कि पूरे मामले में ज़िम्मेदारों को किसी भी परिस्थिति में छोड़ा नहीं जाएगा।
 
बीच में मानवाधिकार आयोग का भी इस मामले को लेकर एक रिपोर्ट आया। रिपोर्ट में लिखा गया कि राज्य सरकार और उसके बड़े अधिकारी लोग इस घटना के लिए ज़िम्मेदार नज़र आते हैं।
 
फिर इस अग्निकांड का एक महीना बीत गया। महीना बीत जाने के बाद भी पीड़ितों के परिजन न्याय को तरस रहे थे। न्याय पाने की आश में मृतकों के परिजन एक महीने के बाद उसी जगह पहुंचे और मारे गए बच्चों को श्रद्धांजली दी। महीने के बाद भी उस दिन वहाँ परिजन रो रहे थे, विलप रहे थे, न्याय को तरस रहे थे। अपनों को याद कर वहाँ परिजनों की आँखें बह रही थीं।
 
एक महीने के भीतर घटना के बाद 14 गिरफ़्तारियाँ हो चुकी थीं। उन गिरफ़्तार लोगों में से कॉर्पोरेशन और फायर ब्रिगेड के कुछेक अधिकारी जमानत पर बाहर भी आ चुके थे। परिजन देख रहे थे कि बड़े मगरमच्छ आज़ाद थे, मछलियाँ फँसी हुई थीं। माँग की गई कि इस मामले में जो बड़े नाम हैं, जिनकी ज़िम्मेवारी बनती है, उन्हें जाँच के दायरे में लाया जाए।


फिर क्या हुआ? एक महीने की जगह एक साल बीत गया। इस हादसे की पहली बरसी के दिन भी वही हाल था, जो महीने के बाद था। पहली बरसी के दिन भी परिजन उस जगह पहुंचे। श्रद्धांजली दी, आँसू बहाए, अपनों को याद किया और न्याय की माँग की।
 
फिर दो साल बीत गए। समाज तो कुछ ही महीनों के बाद उस घटना को भुला कर आगे बढ़ चुका था। दो साल बीतने के बाद चार्ज फ्रैम तक नहीं हो पाया था। दो सालों बाद पीड़ितों के परिजनों की अविरत पुकार के बाद चार्ज फ्रैम हो पाया। उधर ज़्यादातर लोगों को जमानत मिल चुकी थी।

परिजनों ने दिव्य भास्कर को बताया कि वे लोग 10 बार सुप्रीम कोर्ट में, उससे ज़्यादा बार हाईकोर्ट में और उससे भी ज़्यादा दफा सेसंस कोर्ट में आते-जाते रहे, लेकिन अब भी वहीं के वहीं हैं। अब तो कोरोना कोविड19 का समय आ चुका था। लाज़मी था कि जब वायरस नहीं था तब कुछ नहीं हुआ, तो अब वायरस है। शासन, प्रशासन और न्याय, तीनों को इसके फेर में उलझना होगा। हालाँकि वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए एक दूसरे अपराध को लेकर इससे पहले कार्रवाई हो चुकी है, किंतु इस अपराध में ऐसी उम्मीद परिजनों को भी नहीं होगी।
इस घटना में जो मारे गए उनके परिजनों के जख़्म ताउम्र भर नहीं सकते। दिखने वाला न्याय ही एकमात्र आश्वासन है। जो मिल नहीं रहा। उधर जो जख़्मी हुए उनमें से कुछ तो दो साल बाद भी ठीक नहीं हो पाए हैं।
 
गुजराती अख़बार दिव्य भास्कर के मुताबिक़, उस हादसे में जख़्मी हुए जतीन के हालात कुछ ऐसे ही थे। रिपोर्ट की माने तो जतीन ने उस दिन क़रीब 15 बच्चों को बचाया। इस बीच वो नीचे गिर गया। सिर में गंभीर चोटें आईं। सूरत और अहमदाबाद के अलग अलग अस्पतालों में निजी ख़र्चे पर इलाज हुआ उनका। उनके रिश्तेदार के हवाले से लिखा गया कि जतीन के इलाज में क़रीब 40 लाख रुपये का ख़र्च हुआ और दो साल बाद भी महीने में 40-50 हज़ार का ख़र्च होता है। किंतु अब भी वो पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाए हैं।
 
उस झकझोरने वाले हादसे के दिन को याद करके जाह्नवी के पिता कहते हैं"उसका वो आख़िरी कॉल था। कह रही थीं, पापा जल्दी आ जाइए, जल्दी आइए... मुझे बचा लीजिए।" जो परिजन उस दिन वहाँ पहुंच पाए, वे भी कुछ नहीं कर सकें। उनके फूल जैसे बच्चे उनकी नज़रों के सामने दुनिया को अलविदा कह गए।


आज वो तमाम परिजन अपनों की चीज़ें देख गमगीन हो जाते हैं, उनके कमरे, उनकी बुक्स देखकर सिसकियाँ लेते रहते हैं। पीड़ितों के परिजन न्याय के लिए सेशन से लेकर सुप्रीम तक के चक्कर काट रहे हैं। शासन और प्रशासन को लिख रहे हैं। चुनावों के बहिष्कार की योजना बनाने को मजबूर हैं। प्रशासन ने मुआवज़े देने का अपना वादा भी पूरा नहीं किया है। उधर जिन अधिकारियों पर गाज़ गिरी थी, वे सारे दौबारा नौकरी पर हैं।
 
हर ऐसी घटना के समय होता है वैसा ही हाल हुआ करता था उन दिनों। शहर ही नहीं बल्कि राज्यभर में उस वक़्त मातम पसरा हुआ था। मंत्री और मुख्यमंत्री ने बच्चों के पैरेंट्स से मुलाकात कर ली। हादसे की जगह का जायज़ा ले लिया। मुआवज़े का ऐलान कर दिया। घटना की जाँच के आदेश दे दिए। कमेटी बनाई गई। गिरफ़्तारियाँ हुईं, सस्पेंशन हुए। राज्य में जितने कोचिंग सेंटर थे वहाँ स्थानीय अधिकारी घावा बोलने लगे। बहुत सारे कोचिंग सेंटर महीनों तक बंद रहे। बहुत सारी जगहों पर फायर सेफ्टी जैसे सुरक्षा इंतज़ाम होने लगे। आज 2021 का नवंबर महीना चल रहा है। यह तमाम चीज़ें अब पुरानी हो चुकी हैं। फिर एक बार... उसी रास्ते पर यार।
 
आगे ऐसा दूसरा हादसा होगा तब फिर एक बार समाज जागरूक होगा। फिर एक बार सरकारें दौड़ेगी। फिर एक बार व्हाट्सएप पर वीडियो बाँटे जाएँगे। कर्तव्य पालन होगा। फिर... फिर क्या? एक और नये हादसे का इंतज़ार। फिर एक बार... उसी रास्ते पर यार।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)