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Charles Sobhraj: बिकिनी किलर चार्ल्स शोभराज, जो क़ानूनी जाल और सिस्टम लूप्स का ख़ूब इस्तेमाल करता रहा

 
सुनील गुप्ता, जो तिहाड़ जेल में सालों तक लॉ ऑफ़िसर रहे, थोड़े सालों पहले सेवानिवृत्त हुए। उन्हें जब पुलिस में नौकरी मिली थी, यह उन दिनों की बात है। उनका पहला पोस्टिंग था नई दिल्ली का तिहाड़ जेल। सुनील वहाँ पहुंचे। जेल के मुख्य अधिकारी से वो मिल नहीं पा रहे थे। उनका काग़ज़ी कामकाज शुरू ही नहीं हो पा रहा था। उनके पास नियुक्ति पत्र था, लेकिन फिर भी वह इंतज़ार में बैठे रहे। तभी सूट बूट और क्लीन शेव में एक शख़्स वहाँ आया। उसने वहाँ निराश बैठे सुनील को देखा और उनसे बात की। कहा कि चिंता मत करो, मैं देखता हूँ।
 
अपनी नौकरी के पहले ही दिन निराश होकर बैठे सुनील को चेतना मिलती दिखी। उन्हें लगा कि यह उस जेल अधिकारी से भी बड़ा कोई अधिकारी है। वो शख़्स भीतर मुख्य कक्ष में गया। कुछ देर बाद लौटा और उसने सुनील को संपूर्ण प्रक्रिया पूरी किए हुए काग़ज़ सौंप दिए और चल दिया। सुनील इसे कोई बड़ा अधिकारी मान तन कर खड़े रहे। उन्हें बाद में पता चला कि वह जिसे मिले थे, वह कोई पुलिस अधिकारी नहीं था। वह तो एक ऐसा कैदी था, जो आधा दर्जन से भी ज़्यादा देशों में वॉन्टेड था!
 
एक ऐसा कैदी, जब वह आज़ाद होता था तब अनेक देशों की पुलिस उसके पीछे लगी रहती थी। जब वो कैद में था, तब भी पुलिस वालों की नींद हराम रहती थी। मकड़ी के जाल सरीखे क़ानूनी दाँव पेंच से बचने की उसमें कमाल की क्षमता थी। सिस्टम की भीतरी ख़राबी का उसे पूरा ज्ञान था। वह 'बिकिनी किलर' के नाम से दुनियाभर में बदनाम था। भारत में उसे 'द सर्पेंट' (साँप) की संज्ञा दी गई थी। एक ऐसा सीरियल किलर, जिस पर बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक में फ़िल्म बनी, वेब सीरीज़ और टेलीविज़न क्राइम स्टोरीज़ बनी, तथा अनेक किताबें भी लिखी गईं। उसका नाम था - चार्ल्स शोभराज।
 
तिहाड़ जेल का क़िस्सा सुनील गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी द्वारा लिखित पुस्तक "ब्लैक वारंट" में दर्ज है। वियतनामी माता और सिंधी भारतीय पिता की संतान चार्ल्स शोभराज (Charles Sobhraj) का जन्म सन 6 अप्रैल 1944 को वियतनाम के साइगॉन में हुआ था। उसका वास्तविक नाम हतचंद भावनानी गुरुमुख चार्ल्स शोभराज है। वियतनामी भारतीय चार्ल्स ने फ्रांस की नागरिकता ले ली थी।
 
1970 के दशक में दक्षिणपूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में विदेशी पर्यटकों को अपना शिकार बनाने वाला चार्ल्स शोभराज चोरी, ठगी से लेकर हत्याओं का कुख्यात अपराधी है। अन्य सीरियल किलर की तरह चार्ल्स शोभराज ना तो क्रोधी था और ना ही हिंसक स्वभाव का था। साथ ही उसके परिवार का अपराध की दुनिया से कभी भी लेना-देना नहीं रहा था। 
उसके बारे में लिखऩे वाले पत्रकार तथा कुछ जाँचकर्ताओं के मुताबिक़ चार्ल्स शोभराज मात्र अपनी जीवन शैली को रोचक और उत्तेजक बनाए रखने के लिए चोरी और ठगी करता रहा। सरलता से पैसे कमाने का यह रास्ता बाद में उसके लिए आदत बन गया। समय बीतता गया और फिर यह चोर आगे जाकर हत्यारा, यूँ कहे कि एक बदनाम सीरियल किलर बन गया। वह एक ऐसा अपराधी बन चुका था, जिसके पीछे इंटरपोल लग गया और आधा दर्जन से भी ज़्यादा देशों में वह वांछित अपराधी बन गया।
 
उस पर कई हत्याओं के आरोप लगे, किंतु अनेक हत्याओं को कथित रूप से अभियोजन पक्ष ने ही छिपा लिया तथा अनेक अपराध साबित ही नहीं हो पाए। वह चालाक और शातिर अपराधी है। हत्या, लूटपाट, नशीली दवा बेचना, आभूषणों की चोरी, इत्यादि उसके लिए सामान्य काम हैं। वह लोगों को मार कर केवल पैसा या क़ीमती चीज़ें ही नहीं, उन पीड़ितों के तमाम दस्तावेज़ भी उड़ा ले जाता था! और फिर वह उन दस्तावेज़ों का इस्तेमाल अपने अगले अपराध के समय करता रहता! उसकी जोखिम और साज़िश से भरपूर ज़िंदगी को मीडिया में इतनी जगह मिली कि वह किसी सेलिब्रिटी की भाँति मशहूर हो गया!
 
जेल में भी वह इतने मज़े से रहता कि कोई नेता सुने तो उसे भी जलन होने लगे। जेल में रहने के बावजूद उसके पास टाइपराइटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर और एक बड़ा पुस्तकालय हुआ करता था! इसके अलावा वह अपने साथी कैदियों को खुश करने के लिए ड्रग्स भी रखता था।
 
जिस समय भारतीय अदालत से शोभराज को हत्या के जुर्म में कड़ी सज़ा मिली थी, उसी दौरान उसने दिल्ली के तिहाड़ जेल में रहते हुए अपनी ज़िंदगी पर बनने वाली हॉलीवुड फ़िल्म के लिए 15 मिलियन डॉलर का सौदा किया था! और तो और, जब वह पेरिस से लौटा था, तब उसने मीडिया को अपना इंटरव्यू देने की लिए भी 5,000 डॉलर वसूले थे!
 
उसको जन्म देने वाली उसकी माता और उसके पिता एकसाथ नहीं रहे। उसके पिता ने उसकी माँ को छोड़ दिया। बाद में उसकी माता ने एक फ्रेंच सैन्य अधिकारी से शादी कर ली। आगे जाकर उसके नये पिता एक लड़ाई के दौरान मानसिक रूप से बीमार हो गए और उनका शेष जीवन अस्पताल में ही बीता।
लोग बुरा व्यवहार करें या अपराध करने लगे, तब इसके पीछे सदैव यह वजह नहीं हो सकती कि उस अपराधी को अपने जीवन के पूर्व काल में कोई मानसिक आघात हुआ होगा। शोभराज बचपन से ही झूठ बोलना, बुरा व्यवहार करना, स्कूल न जाना, अनुशासन में न रहना, का आदती था।
 
पत्रकार रिचर्ड नेविल लिखते हैं, "चार्ल्स कहता था कि उसकी ज़िंदगी फ्रेंच क़ानून के ख़िलाफ़ थी और उसका प्यार वियतनाम के साथ था।" वह कहता, "मेरे आपराधिक कार्यों को हवा देने वाला एशिया है।" नेविल ने लिखा है, "वह जब इस तरह से बोलता था, तो मनोवैज्ञानिक तौर से काफी प्रभावित करने की क्षमता रखता था।"
 
रिचर्ड नेविल की बायोग्राफी में चार्ल्स शोभराज कहता हैं, "जब तक मेरे पास लोगों से बात करने का मौक़ा है, तब तक मैं उन्हें बहला-फुसला सकता हूँ।"
 
शोभराज से अनेक बार मिलने वाले पत्रकार रॉबर्ट हर्ज ने लिखा है, "वो लोगों को खिन्नता की वजह से नहीं मारता था, बल्कि वह लोगों को अपने फ़ायदे और मज़़े के लिए मारता था। वह उन लोगों के पासपोर्ट तथा दूसरे पहचान संबंधी काग़ज़ का उपयोग तस्करी तथा कई ग़ैर क़ानूनी धंधे चलाने में करता था।"
 
पत्रकार रॉबर्ट के मुताबिक़, "वह उन लोगों को ही मारता था, जो उसके रास्ते में होते थे या फिर जिसको मारने से उसको फ़ायदा होता था।" भारत में उसके मुकदमे के दौरान रिचर्ड नेविल को चार्ल्स ने बताया था कि, "उसने अपने व्यवसाय के लिए लोगों का क़त्ल किया या करवाया।"
 
यूँ तो चार्ल्स कई बार जेल गया। वह अपने आप को इस तरह जेल के अनुकूल बना लेता था कि लगता था कि वहाँ सब उसके जानने वाले हैं। किंतु वह साल 1963 का था, जब चार्ल्स पहली बार जेल गया था। भयानक और ख़ूंखार कैदियों के बीच चार्ल्स वहाँ छोटी मछली सरीखा था। 16वीं शताब्दी में बना पॉएसी जेल पेरिस शहर से दूर एक एकांत जगह पर था। पहले वह बैरागियों का निवास था, लेकिन बाद में फ्रेंच क्रांति के समय उसे जेल में तब्दील कर दिया गया था।
इस कैदखाने की दीवारें इतनी मोटी और ऊंची थीं कि जेल की दुनिया का बाहरी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था। इसमें बने जेल के कमरे इतने संकरे थे कि उसमें केवल सोया जा सकता था। दिन के समय कैदी बाहर निकल कर छोटी-छोटी टोलियों में रहते थे। चार्ल्स शोभराज की जीवनकथा लिखने वाले लेखक थॉमसन कहते हैं, "जब वह जेल के अंदर था तो वहाँ की दुनिया देखकर उसकी रूह काँप उठी। शोभराज जेल में चुपचाप ही रहता था। उसे जो भी मांगना होता था वह इशारे से मांगा करता था। वहाँ के जेलर उसे किताब पढ़ने के लिए कहते थे, पर वह नहीं पढ़ता था।"
 
वहाँ फ़ेलिक्स नाम का एक अमीर आदमी उससे टकराया। वह अमीर आदमी हर हफ़्ते जेल में आता और वहाँ लोगों की समस्याएँ सुनता। जहाँ तक संभव होता वहाँ तक वह उनकी मदद करता। चार्ल्स उसे अपने रक्षक के रूप में मानने लगा। फ़ेलिक्स ने चार्ल्स और उसके पिता के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश भी की। साथ में चार्ल्स और उसकी माता को भी मिलाया। यह कुछ हद तक सफल भी रहा। इस तरह फ़ेलिक्स ने चार्ल्स का मानसिक संतुलन बनाए रखने और उसे एक सही रास्ते पर लाने की कोशिश की।
 
इस दौरान उसे कुछ दिन बाद पैरोल पर रिहा कर दिया गया। कहते हैं कि रिहा होने के बाद वह अपने रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए भारत आया। लेकिन उसका मन यहाँ नहीं लगा और वह फ्रांस चला गया। वह अपने घातक व्यवहार के कारण दुबारा 8 महीने के लिए जेल आ गया। शोभराज की सज़ा के समय फ़ेलिक्स ने जज को पत्र लिख कर उसके अच्छे व्यवहार के बारे में बताया था, तथा यह भी कहा था कि उसे सज़ा देने से पहले एक बार मनोचिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

 
पहली बार जेल में रहने के बाद बाहर आते ही पेरिस के नामी गुनाहगारों से उसका नाता जुड़ गया। छोटी-मोटी चोरी करने वाले चार्ल्स का नाम अब बड़ी बड़ी चोरियों में सामने आने लगा!
 
चार्ल्स की कहानी में इसी अवधि के दौरान सैंटल कॉम्पैग्नन आती हैं। सैंटल एक ख़ूबसूरत पारसी लड़की थी, जो अपने माता-पिता के साथ रहती थी। पेरिस में एक पार्टी के दौरान वह चार्ल्स से मिली। उसके बाद वह जल्द ही चार्ल्स के क़रीब आ गई। दरअसल, चार्ल्स का हुलिया और उसका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वह किसी भी कमज़ोर दिलों दिमाग वाले को प्रभावित कर देता था। उपरांत उसके पास अपने काल्पनिक किस्से भी होते थे। उसके बोलने का अंदाज़ बिलकुल कीवियों की तरह था।
 
चार्ल्स जिस दिन सैंटल को शादी के लिए प्रपोज़ करने गया, उसी दिन पेरिस पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। दरअसल, वो जिस बाइक को लेकर सैंटल से मिलने गया था, वह बाइक दो दिन पहले उसने कहीं से चुराई थी! आठ महीने के लिए उसे जेल भेज दिया गया।
उधर सैंटल उससे शादी करने के लिए तैयार थी! हालाँकि वह सैंटल के माता-पिता को शादी के लिए नहीं मना सका। सैंटल के माता-पिता फ्रेंच कैथोलिक प्रथा को मानने वाले थे। उन्हें चार्ल्स से शादी इसलिए मंजूर नहीं थी, क्योंकि चार्ल्स के पिता कैथोलिक समुदाय से नहीं थे। सैंटल कहती थी कि मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह अमीर है या नहीं। आठ महीने की जेल के दौरान वह हमेशा उससे मिलती थी।
 
कहते हैं कि चार्ल्स के जेल से रिहा होने के तुरंत बाद दोनों ने शादी कर ली। समय बीतता गया। चार्ल्स ने अपने घोटालों से काफी धन एकत्र कर लिया। 1970 का साल था, जब चार्ल्स और सैंटल की संतान आने वाली थी और उसी समय चार्ल्स ने यूरोप छोड़ने का निर्णय लिया। वह यहाँ ओरिएंट क्षेत्र का काम संभालता था, जहाँ से वह पूरे फ्रांस में नकली चेक के ज़रिए धोखाधड़ी का काम करता था।
 
चार्ल्स एक बार फिर फ़ेलिक्स से मिला और उसकी कार एक-दो दिन के लिए उधार मांगी। इसके बाद उसने अपना कमाया हुआ पूरा धन उस कार में भरा और पूर्वी यूरोप के रास्ते देश छोड़ दिया! फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के साथ दोनों पूर्वी यूरोप की यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में शोभराज कई टूरिस्ट से मिला, और उनसे दोस्ती के बहाने लूटपाट की। ये पहली बार था जब वो विदेशियों से लूटपाट कर रहा था। उस पर हत्याओं के आरोप लगने लगे थे। अंततः फ़ेलिक्स से मांगी हुई कार के साथ वह इस्तांबुल जा पहुंचा!
 
अंत में वह भारत आ गया, जहाँ सैंटल ने मुंबई में चार्ल्स के बच्चे को जन्म दिया। उसका नाम उषा रखा गया। इघर चार्ल्स के अपराध और बढ़ गए थे। अब तो वो जेल से भाग निकलने में भी महारत हासिल कर चुका था। इस बीच पेरिस में अधिकारियों की एक टीम चार्ल्स और उसकी पत्नी के बारे में पूछताछ के लिए चार्ल्स के दोस्तों से मिल रही थी।
 
सैंटल यही दावा करती रही कि वह अपनी शादी के बाद भी चार्ल्स के काम के बारे में बिलकुल नहीं जानती थी, क्योंकि चार्ल्स उसे कुछ नहीं बताता था। किंतु कहा जाता है कि दोनों मिलकर पर्यटकों को लूटते थे और उनके पासपोर्ट्स पर दुनिया घूमते थे।
भारत में आने के बाद वह एक फ्रेंच सोसाइटी से जुड़ गया। चार्ल्स एक ऐसा व्यक्ति था, जो आसानी से किसी के भी साथ मेलजोल बना लेता था। उसने यहाँ के अमीर लोगों में अपनी पहचान बना ली। सैंटल तो एक सुन्दर और आकर्षक दिखने वाली महिला थी ही। उसके साथ एक प्यारा बच्चा भी था। इसके कारण लोगों ने उनका चाय और पार्टी देकर स्वागत किया।
 
इस प्रकार वह कई महीने बीतने के बाद भी अपना काम करता रहा। पुलिस को इस बात की ख़बर तक नहीं थी। 1970 के दौरान उसने चोरी की गई कारों की दलाली करना शुरू कर दिया। वह अमेरिकन, यूरोपियन, फ्रेंच तथा रईस भारतीयों (जो विदेशी कारों के रखने के शौकीन थे) को कारें बेचता था! वह पाकिस्तान तथा ईरान से कारों की चोरी करता और भारत में बॉर्डर के रास्ते लाता। भारत की बॉर्डर पर तैनात सुरक्षा व्यवस्था की भीतरी ख़राबी का वो फ़ायदा उठाता रहा। वह इन कारों की भारत में नीलामी करता था।
 
चार्ल्स का यह धंधा काफी अच्छा चल रहा था। ज़्यादातर वह घर से दूर रहता था। इसी बीच चार्ल्स को जुए की लत लग गई। एक दिन वह सब कुछ हार गया। यहाँ तक कि उसने जो आभूषण सैंटल को दिए थे, वो भी हार गया और पैसे भी उधार हो गए। अचानक उसे एक फ्रेंचमैन मिला, जिसने उसे एक गहने की दुकान से चोरी का आइडिया बताया। सन 1973 में उसने दिल्ली के होटल अशोका में एक जूलरी शॉप में चोरी की।
 
वहाँ उसने ख़ुद को 'नेपाल का प्रिंस' बताया और दुकान के मालिक के साथ गहने देखने चले गया! फिर उसने मालिक को नशीली दवाई देकर बेहोश कर दिया और लूट चला कर वहाँ से भाग निकला। दुकान के कर्मचारियों को पता चला, कुछ दस्तावेज़ मिले और शोभराज की पहचान कर ली गई। एयरपोर्ट को तुरंत जानकारी दी गई। हवाई अड्डे पर एक यात्री की जाँच के दौरान कस्टम अधिकारियों को कुछ संदिग्ध लगा। उन्होंने बैग से भरा लूट का सारा माल ज़ब्त कर लिया। हालाँकि शोभराज वहाँ से भाग निकला।
 
कुछ समय बाद उसने फिर से अपराध किया। इस बार वो पुलिस की पकड़ में आ गया। उसे जेल भेज दिया गया। उसने अल्सर के बहाने अस्पताल में भर्ती होने की साज़िश रची। इसमें उसकी पत्नी ने भी उसका साथ दिया, पर वह अपनी पत्नी के साथ पकड़ा गया। इस बार दोनों को जेल जाना पड़ा, लेकिन सैंटल को जमानत मिल गई। कुछ दिन बाद उसने जमानत के लिए साइगॉन में रह रहे अपने पिता से पैसे मांगे और अपनी जमानत करवाई। इसके बाद वह भारत से भाग निकला। भारत से भागने के बाद चार्ल्स का नया ठिकाना बना काबुल, यानी अफ़ग़ानिस्तान।
 
वह यहाँ हिप्पियों को बड़े आराम से ठगता और लूटता था। ख़ासकर उन लोगों को, जो नशीली दवा ख़रीदने के लिए यूरोपियन देशों से आते थे। उसकी ज़िंदगी बड़े आराम से कट रही थी, लेकिन उसे जल्द ही काबुल से निकलना था। इसी बीच उसे काबुल पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। उसने फिर जेल से भागने का षडयंत्र रचा।
यहाँ भी उसने बीमार होने का नाटक किया और उसे अस्पताल ले जाया गया, जहाँ से वह ईरान भाग गया। अगले साल उसने यूरोप के चक्कर काटे, पर उसने ज़्यादा समय कहीं नहीं बिताया। शायद उसे पकड़े जाने का डर सता रहा था। चार्ल्स के पास क़रीब 10 पासपोर्ट थे, जिसमें से कुछ चुराए और कुछ ख़रीदे हुए थे। वह अपना पासपोर्ट बदलता और फिर उसी नाम से वह जाना जाता! उसने बाद में पुलिस को जानकारी दी कि 1972-1973 के दौरान उसने कराची, रोम, तेहरान, काबुल, यूगोस्लाविया, बुल्गारिया और कोपहेगन की यात्राएँ की थी!
 
इधर काबुल में अपने परिवार को छोड़कर भागने के बाद वह समझ चुका था कि इस शादी का अंत हो चुका है। सैंटल को भी समझ आ चुका था कि इंटरपोल के पास उसके पति के साथ साथ उस पर भी अपराधिक गतिविधियों से संबंधित मामला दर्ज हो चुका है। वह कुछ समय बाद पेरिस चली गई। इंटरपोल सूची में आने के बाद चार्ल्स को छिपने के लिए कुछ ही देश बचे थे।
 
इस्तांबुल में वह अपने छोटे भाई एंड्र्यू से मिला और उसके साथ घोटालों में सक्रिय हो गया। क्योंकि चार्ल्स अंतराष्ट्रीय अपराधी बन चुका था, इसलिए उसने अपने भाई को राज़ी कर लिया था कि वह फ्रांस कभी नहीं जाएगा, बल्कि वह पूर्व के देशों में जाएगा, जहाँ उसे कोई पहचान न पाए। फ़िलहाल वह तुर्की (तुर्किये) गया, जहाँ उसने कुछ छोटी-मोटी लूटपाट की और वहाँ से फ़रार हो कर ग्रीस चला गया। एथेंस में उसने कुछ धनी नागरिकों को अपना शिकार बनाया।
 
उसी दौरान वह छोटे-मोटे आभूषणों की चोरी में गिरफ़्तार कर लिया गया। चार्ल्स ने ख़ुद को एंड्र्यू बताया और जेल से कुछ हफ़्तों बाद छूट गया। जब तक पुलिस को इस बात की जानकारी मिली कि वह एंड्र्यू नहीं बल्कि चार्ल्स है, वह देश से निकल चुका था। इधर एंड्र्यू को पुलिस गाड़ी से भागने के जुर्म में ग्रीस पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया और वहाँ की अदालत ने उसे 18 वर्ष की सज़ा सुनाई।
 
वहाँ से शोभराज एक बार फिर भारत लौटा। इस बार उसकी मुलाकात अजय चौधरी नाम के लड़के से हुई। अजय शोभराज के लिए काम करने लगा। दोनों मिलकर उसी यूनिक तरीक़े से टूरिस्टों के साथ समय बिताते, दोस्ती करते, फिर उनका सारे पैसे और सामान लूटते और हत्या कर देते।
 
इस बीच 1975 में शोभराज का नेपाल की राजधानी काठमांडू जाना हुआ। वहाँ उसने एक अमेरिकी और कनेडियन नागरिक की हत्या की और भाग निकला। ये मामला उस वक़्त तो दब गया, लेकिन बाद में यही उसके लिए नासूर बना।
इस बीच थाईलैंड में चार्ल्स, मैरी आंड्रे लेक्लर्क के संपर्क में आया, जो उसकी नज़दीक़ी मित्र बन गई। उसके साथ मिलकर चार्ल्स ने कई गुनाहों को अंजाम दिया। इस जोड़े ने विदेशी पर्यटकों को अपना निशाना बनाना शुरू किया। वह उनका मित्र बन उन्हें नशीली दवाई देते और फिर उनकी हत्या कर देते। विदेशी महिलाएँ उनका मुख्य शिकार बनतीं थीं। 1972-1976 के बीच चार्ल्स ने 24 लोगों की हत्या की थी।
 
एक बार काठमांडू में कुछ विदेशी नागरिकों की हत्याएँ हुईं, जिसमें एक महिला की भी हत्या कर दी गई थी। काठमांडू पुलिस तफ़्तीश में जुटी। तफ़्तीश करते समय पुलिस को कुछ जानकारियाँ हाथ लगीं, जिसके दम पर उन्होंने एक होटल में जाँच की। वहाँ उन्हें कार्ल गेसल नाम के एक शख़्स का पता चला। होटल वालों ने बताया कि वो नीदरलैंड का नागरिक है और सफ़ेद कार लेकर वहाँ रुका है। ये कोई ख़ास सुराग़ नहीं था, लेकिन इसके बल पर आगे बढ़ा जा सकता था। पुलिस ने काठमांडू में चेक पॉइंट लगाकर दर्जनों कारों को रोका और उनमें मौजूद लोगों से पूछताछ करना शुरू किया।
 
एक अधिकारी ने ऐसी ही एक सफ़ेद कार को रोका। उसका चालक शांत था। उसने अपना पासपोर्ट दिखाया, जिसमें उसका नाम कार्ल गेसल था। कार में एक महिला थी, जो ख़ुद को उसकी पत्नी आईडा बॉस बता रही थी। पुलिस दोनों को ज़्यादा पूछताछ के लिए मुख्यालय ले आई। ये व्यक्ति ख़ुद को एक स्कॉलर (प्रोफेसर) बता रहा था, और उसकी पत्नी आईडा बॉस ख़ुद को एक डच टेलीविज़न स्टार बता रही थीं।

 
कार्ल गेसल कहता रहा कि उसने मृतक महिला को कभी नहीं देखा। जिस महिला की हत्या हुई थी उसकी एक महिला दोस्त को इस शख़्स की पहचान के लिए बुलाया गया, किंतु वह उसे पहचान नहीं पाई। काठमांडू डिटेक्टीव विश्वलाल श्रेष्ठ बताते हैं, नेपाली संस्कृति में किसी विदेशी या मेहमान के साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता है। इसीलिए जाँच दल ने उस जोड़े पर ज़्यादा शक नहीं किया। दस्तावेज़ दोबारा बनाए जा सकते हैं, जो असली दस्तावेज़ की तरह ही दिखते हैं, जाँच कर्ता के लिए जाली दस्तावेज़ की पहचान करना मुश्किल काम है।
 
पुलिस ने कुछ चीज़ें नोट कर इस जोड़े को जाने दिया। कथित कार्ल गेसल और उसकी पत्नी अपनी होटल लौट आए। पुलिस के पास उन्हें रोके रखने का कोई कारण भी नहीं था।
 
बाद में काठमांडू पुलिस ने एक ऐसे गवाह का बयान लिया, जिसने शव वाली जगह पर एक सफ़ेद कार को देखा था। पुलिस के लिए अच्छी बात ये थी कि उस गवाह को कार का नंबर प्लेट याद था। ये नंबर प्लेट कार्ल गेसल की कार के नंबर प्लेट से मिलता था। फिर पुलिस को एक ठोस सबूत भी मिला। पुलिस को मृतक के दो अराइवल कार्ड मिले। लेकिन दोनों कार्ड के दस्तख़त मेल नहीं खा रहे थे। लिखावट विशेषज्ञ ने पाया कि दूसरे कार्ड में जो लिखावट थी, वो कार्ल गेसल की लिखावट से मिलती थी। दूसरे अराइवल कार्ड की तारीख़ 24 दिसम्बर थी, और इसी दिन मृतक की लाश शव परीक्षक के दफ़्तर पर लाई गई थी।
पुलिस ने ये नतीजा निकाला कि गेसल नाम वाले जिस व्यक्ति से वे लोग मिले थे, वो मृतक के नाम से दोबारा देश में दाखिल हुआ था। यानी कि शांत सा दिखने वाला प्रोफेसर झूठ बोल रहा था।
 
अब गेसल के विरुद्ध मामला बनता था। पुलिस उसे गिरफ़्तार करने निकल पड़ी। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। गेसल और आईडा भाग चुके थे! उनके कमरे में हर जगह कपड़े और चीज़ें फैली हुई थीं, दस्तावेज़ बिखरे हुए पड़े थे। वहाँ पुलिस को पासपोर्ट भी मिले। गैसोलीन का सिलेंडर भी मिला। उनके कमरे से पासपोर्ट में हेराफेरी करने वाली चीज़ें भी मिलीं। ये सब मिलने के बाद पुलिस को यक़ीन हो गया कि ये जोड़ा अपराधी था। किंतु वो अब फ़रार हो चुका था! पुलिस को मालूम ही नहीं था कि उसे कहाँ ढूंढा जाए। इंटरपोल के पास भी ये सूचना कई महीनों बाद पहुंची।
 
पत्रकार एलन डॉसन कहते हैं, नेपाल से संपर्क स्थापित करने में दो दिन लगते थे। उन दिनों संचार व्यवस्था भी इतनी अच्छी नहीं थी। जब तक सरकार अपना मामला तैयार करती तब तक महत्वपूर्ण समय निकल जाता था।
 
थाईलैंड में हत्याओं का संदिग्ध मौजूद ज़रूर था, किंतु उसकी कोई भी पहचान नहीं हो पायी थी। साथ ही जिन 4 विदेशी नागरिकों की हत्या हुई थी, उनकी भी पहचान स्थापित नहीं हो पायी थी। इंटरपोल चीफ़ सुथुमाई सबूतों की तलाश कर रहे थे।
 
वे बताते हैं, ये अजीब बात थी कि काफी विदेशियों की हत्याएँ हो चुकी थीं। थाई में ऐसी वारदात पहले कभी नहीं हुई थी। हम इन संभावनाओं की जाँच कर रहे थे कि हत्यारा थाईलैंड से था या नहीं।
 
थाई पुलिस मृतकों की पहचान कायम करने की कोशिश कर रही थी। उधर बैंकॉक में डच एंबेसी को एक अहम सुराग़ मिला। डच एंबेसी के सबसे जुनियर राजद्वारी हरमन निपेनबर्ग को एक डिप्लोमैटिक पाउच मिला, जिसमें एक चिठ्ठी थी। चिठ्ठी में एक डच दंपति के ग़ायब होने की ख़बर थी, जो थाईलैंड घूमने आया था। एक परिवार के द्वारा लिखी गई उस चिठ्ठी में ग़ायब होने वाले उस दंपति का नाम कार्ल गेसल और आईडा बॉस बताया गया था। चिठ्ठी लिखने वाले परिवार ने चिंता जताई थी कि पिछले 6 हफ़्तों से उस दंपति का कोई संपर्क नहीं है, जबकि ये दंपति नियमित रूप से उन्हें चिठ्ठियाँ लिखा करते थे।
 
निपेनबर्ग को मालूम नहीं था कि कार्ल गेसल और आईडा बॉस नामक ये दंपति कितने महत्वपूर्ण हो जाने वाले थे।
उस परिवार के पास सिर्फ़ एक सुराग़ था कि जब आख़िरी चिठ्ठी आई तब उस गुमसुदा दंपति ने चिठ्ठी में ज़िक्र किया था कि उन्होंने बैंकॉक में एक नया और फैशनेबल दोस्त बनाया था। ये फ्रांसीसी शख़्स एक अमूल्य रत्न ख़रीदने में उनकी मदद कर रहा था। वो फ्रांसीसी शख़्स उनसे काफी मिलजुल गया था और उसने गुमशुदा दंपति को अपने अपार्टमेंट में आने की दावत भी दी थी। गुमशुदा दंपति को मालूम नहीं था कि उस शख़्स की नियत साफ थी या नहीं, पर उन्हें इस बात का शक होने लगा था कि कुछ गड़बड़ तो है।
 
पर उस चिठ्ठी के बाद उनकी कोई ख़बर नहीं मिली। आख़िर 6 हफ़्ते बाद परिवार ने उस दंपति को ढूंढने के लिए डच दूतावास से मदद मांगी। निपेनबर्ग ने थाई अधिकारियों से संपर्क किया और उन्हें कार्ल गेसल तथा आईडा बॉस के नाम दिए। थाई पुलिस के पास इस गुमशुदा दंपति की कोई ख़बर नहीं थी।
 
अब निपेनबर्ग को किसी ऐसे इंसान को ढूंढना था, जो उस रहस्यमयी फ्रांसीसी नागरिक को जानता हो। उन्हें एक दूसरे दुतावास में मौजूद अपने एक दोस्त से सुराग़ मिला। उन्हें ऑस्ट्रेलियन काउंसिल से पता चला कि एक फ्रांसीसी नागरिक जेम्स ने एक युवा ऑस्ट्रेलियाई दंपति को ड्रग्स देकर बेहोश करके लूट लिया था। निपेनबर्ग ने लूटे गए उस दंपति को खोज लिया और उनसे उस फ्रांसीसी नागरिक का नाम जान लिया। उसका नाम था एलेन गौटियर।
 
लेकिन 45 लाख की आबादी वाले शहर में एलेन गौटियर को ढूंढना लगभग नामुमकिन था। पर तभी निपेनबर्ग को एक ऐसी महिला के बारे में पता चला, जो एलेन गौटियर को जानती थी। वो उसी अपार्टमेंट में रहती थी, जिसमें एलेन रहता था। उस महिला का नाम था नादीन गियर्स।
 
नादीन ने बताया कि एलेन आकर्षक और बेरहम है। कई महीनों पहले नादीन की मुलाकात मैरी आंद्रे लेक्लर्क नामकी एक फ्रांसीसी केनेडीयन महिला से हुई थी, जो एलेन की पत्नी थी। वह उस अपार्टमेंट में आयी भी थी। मैरी ने नादीन को बताया कि एलेन बहुत ही सनकी क़िस्म का आदमी था और अगर उसने एलेन को छोड़ने की कोशिश की, तो वो उसे जान से मार डालेगा। लेकिन जब नादीन ने चिंता ज़ाहिर की, तो मैरी ने उसे कहा कि वो तो मज़ाक कर रही है।
लेकिन जल्द ही नादीन को इससे उल्टी बात पता चली। नादीन को पता चला कि उसके साथ दो और लोग भी थे। इनमें अजय चौधरी सबसे ख़तरनाक था। निपेनबर्ग बताते हैं, चौधरी को एक हत्यारा समझा जाता था और उसे लोगों को अपना चाकु दिखाने में बड़ा मज़ा आता था।वो कहते हैं, मैरी आंद्रे में दूसरे हुनर भी थे। उसे फार्मसी की बहुत जानकारी थी। वो लोगों को इंजेक्शन लगा सकती थी और ज़हर देने का काम भी करती थी।
 
निपेनबर्ग के मुख़बिरों ने बताया कि एलेन ख़तरनाक आदमी है। वो अनजान लोगों को आसानी से बहला फुसला सकता था। निपेनबर्ग को एक ऐसे शख़्स के बारे में भी पता चला, जो अपनी तबियत ख़राब होने पर एलेन के साथ गया, लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटा। लोगों का एलेन के अपार्टमेंट से ग़ायब होने का एक ख़ास तरीक़ा था। वो अचानक कहीं जाते और फिर लौटकर नहीं आते थे! किंतु अपने बेग, जवाहरात तथा पासपोर्ट छोड़ जाते थे!
 
फिर निपेनबर्ग को वो जानकारी मिल गई, जिसकी वो उम्मीद कर रहे थे। नादीन गुमशुदा दंपति जोड़े गेसल और बॉस से मिल चुकी थी। उसने कहा कि वो दंपति जब रत्न ख़रीद रहे थे, तब अचानक उनकी तबियत ख़राब हो गई। इसके थोड़ी देर बाद एलेन और चौधरी उस बीमार डच दंपति को कहीं ले गए। फिर एलेन के एक मेहमान दोस्त ने नादीन को अख़बार में छपी एक तस्वीर दिखाई। उस तस्वीर में क़त्ल किए गए जोड़े की तस्वीर थी, जिनका बेरहमी से क़त्ल किया गया था और उनकी लाशें पहचानने लायक नहीं थी। तस्वीर में मृतकों ने जो कपड़े पहने थे, वो डच दंपति ने जो कपड़े पहने थे उससे मेल खाते थे।

 
नादीन को अब विश्वास हो गया कि पटाया के बाहर जो जली हुई लाशें मिलीं, वो गुमशुदा दंपति ही था। अब नादीन को ये जानना था कि आख़िर ये हो क्या रहा है?
 
एलेन तथा मैरी यात्रा पर थे और इसका फ़ायदा उठाते हुए नादीन उनके अपार्टमेंट जा पहुंची। एक सेफ में पत्रिकाएँ, पासपोर्ट और जवाहरात रखे थे। पास ही एक सूटकेस में सिरिंज़ तथा ड्रग्स वगैरह थे, जिसकी मदद से आकर्षक एलेन अपने मेहमानों को मार कर उनकी पहचान ख़ुद धारण कर लेता था!
 
नादीन को अब अपनी जान का ख़तरा लगने लगा। उसने दूतावास में अपने एक दोस्त से संपर्क किया। उसी दोस्त ने निपेनबर्ग से बात की और फिर निपेनबर्ग नादीन से मिले। नादीन सबूत के तौर पर वो डायरी ले आई, जो उसने अपार्टमेंट से चुरा ली थी। साथ ही अन्य हत्याएँ और अख़बार के कटींग निपेनबर्ग को दे दिए। निपेनबर्ग ने ये लेख पढ़े और बैंकॉक के बाहर हुई हत्या की ख़बर पर नज़र डालते समय उन्होंने एक बात देखी। उन्होंने पाया कि उस मृतक महिला ने जो टीशर्ट पहनी हुई थी, उस पर मेड इन हॉलैंड का लेबल लगा था।
निपेनबर्ग कोई पुलिस अधिकारी नहीं थे, लेकिन उनकी स्थिति किसी छानबीन करने वाले अधिकारी जैसी हो गई थी। हालात जो चीज़ें पेश कर रहे थे वो सबूत नहीं थे। उन्हें सबूत चाहिए थे। और उन्हें ये सबूत उस गुमशुदा दंपति के दांतों के रिकॉर्ड से मिला।
 
वो बताते हैं, मैं जब शव परीक्षक के कमरे में दाखिल हुआ तो आवाज़ आई, मिस्टर निपेनबर्ग, मिल गया। ये वोही लोग हैं। और उस वक़्त मुझे लगा कि आशंकाएँ सच साबित हो रही थीं।
 
क़त्ल किए गए पुरुष और महिला वही डच दंपति कार्ल गेसल तथा आईडा बॉस थे। एलेन गौटियर और मैरी आंद्रे लेक्लर्क ही वो हत्यारे थे, जिसकी थाई पुलिस तलाश कर रही थी। उन्होंने उस डच दंपति के नाम और दस्तावेज़ इस्तेमाल किए थे, ताकी वे हत्या के आरोपों से बच सकें या जाँच को भ्रमित कर सकें।
 
लेकिन अब भी इन दोनों देशों के पुलिस अधिकारियों के बीच संपर्क स्थापित नहीं हुआ था। इसलिए इंटरपोल को ही इस संदिग्ध हत्यारे के सूत्र जुटाकर उसका पीछा करना था।
 
निपेनबर्ग को शक था कि युवा डच दंपति का क़त्ल एलेन गौटियर ने ही किया था। लेकिन उन्हें ये मालूम नहीं था कि एलेन सिलसिलेवार तरीक़े से क़त्ल करने वाला हत्यारा था। जिसका असली नाम था- चार्ल्स शोभराज।
 
निपेनबर्ग ने थाई में इस अपराधी द्वारा किए गए संदिग्ध अपराधों का गहन अध्ययन किया तथा सबूत जुटाए और उस डच दंपति की हत्या के साथ दो अन्य महिलाओं की हत्याओं के तार जुड़ गए, जिनकी अब तक पहचान नहीं हो पायी थी। अपनी इस खोजबीन के दौरान उन्हें काठमांडू की अन्य अनसुलझी हत्याओं का भी पता चला।
 
वो कहते हैं, नेपाल से जो ख़बरें मिली थीं, उनमें भी हत्याओं का एकदम यही तरीक़ा इस्तेमाल किया गया था। पहले लोगों को मारा गया था और फिर गेसोलीन से जला दिया गया था। उन्होंने अपनी जाँच रिपोर्ट वहाँ की पुलिस को सौंप दी और उन्हें वैसी ही प्रतिक्रिया मिली, जैसी वो चाहते थे।
थाई पुलिस और एक सीक्रेट स्क्वॉड ने एलेन के अपार्टमेंट पर छापा मारा। अंदर दो पुरुष और एक महिला मिली। महिला ने अपना नाम मैरी आंद्रे लेक्लर्क बताया। उसके पास एक वैध पासपोर्ट था। एक पुरुष अजय चौधरी था, जिसके पास भारत के दस्तावेज़ थे। लेकिन तीसरा संदिग्ध, जिसे एलेन गौटियर के नाम से जाना जाता था, उसने एक अमेरिकी पासपोर्ट दिखाया और अब वो ख़ुद को स्टीव वॉटसन बता रहा था!
 
पुलिस इन लोगों की पूछताछ करने के लिए उन्हें पुलिस स्टेशन ले आई। अपार्टमेंट में मौजूद एक सेफ को भी ज़ब्त किया गया। लेकिन एक बार फिर इस कार्रवाई का कोई नतीजा नहीं निकला! एलेन ने पुलिस के सामने ये साबित कर दिया कि वो वाक़ई एक अमेरिकी नागरिक है! उसके पासपोर्ट के जाली होने की मौक़े पर जाँच नहीं की जा सकी।
 
इंटरपोल के अमेरिकी कार्यालय के पूर्व निदेशक जोन इमहॉक बताते हैं, “असली लगने वाले जाली दस्तावेज़ दोबारा बनाए जा सकते हैं। अगर वो इस काम में माहिर था या इस काम में माहिर लोगों को जानता था, तो फिर थाई अधिकारियों को उससे और पूछताछ करने की कोई वजह नहीं बनती थी।
 
जिस सेफ को चुराए हुए पासपोर्ट से भरा होना चाहिए था, उसमें कुछ रसीदों के अलावा कुछ नहीं मिला! पुलिस ने उन तीनों के पासपोर्ट तो ले लिए, पर उन्हें जाने दिया।
 
निपेनबर्ग कहते हैं, जब पुलिस ने मुझे बताया कि उनकी आपराधिक प्रवृत्तियों का कोई सबूत नहीं था, तो मैं हैरान रह गया। ऐसा कैसे हो सकता था कि कुछेक युवा और निर्दोष लोगों का क़त्ल कर दिया जाता है और कोई भी पकड़ा नहीं जाता?
 
निपेनबर्ग चुपचाप बैठे नहीं रहे। संदिग्धों की फ़ाइल बैंकॉक में इंटरपोल के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो को भेजी गई। इंटरपोल के प्रमुख सुथुमाई के पास अब तमाम जानकारियाँ थीं। उन्हें अंदेशा था कि आपराधिक प्रवृत्ति के कारण वो अपराधी और अपराध करेगा। अब तक किसी को भी इस हत्यारे का असली नाम मालूम नहीं था। लेकिन इंटरपोल उसके पीछे लग चुकी थी और उसकी किस्मत उसे घोखा देने वाली थी।
 
उधर कनाडा में एजेंट्स ने मैरी के माता पिता के बारे में पता लगाया। वहाँ से उन्हें पता लगा कि मैरी ने उन्हें एक ऐसी महिला का नंबर दिया था, जिसका नाम था मैडम शोभराज।
फ्रांस में इंटरपोल हेडक्वार्टर में एजेंट्स ने ज्ञात अपराधियों के अंतरराष्ट्रीय डाटा बेस में शोभराज के नाम की खोज की। और आख़िरकार उन्हें संभवित हत्यारे की असली पहचान मालूम पड़ गई। कार्ल गेसल, एलेन गौटियर से लेकर स्टीव वॉटसन, और न जाने क्या क्या, ऐसे अनेक नामों से जी रहे उस संभवित हत्यारे का असली नाम था- चार्ल्स शोभराज।
 
थाईलैंड और नेपाल में पश्चिमी देशों के 6 युवा नागरिकों की हत्या करने वाला शोभराज अब एशिया में अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था। भारत सरकार को पहले ही इसकी तलाश थी। इंटरपोल ने इसे मोस्ट वॉन्टेड की सूची में शामिल कर दिया और दुनिया के अपने सदस्य देशों को रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया। इंटरपोल वो संगठन है, जो उन दिनों किसी ख़ास क़िस्म के अपराध के बारे में तुरंत ही 181 देशों को सूचना भेजने की योग्यता रखता था।
 
भारत में तो पहले से ही शोभराज की खोज हो रही थी। यहीं उसे उसका उपनाम 'द सर्पेंट', यानी की 'साँप' दिया गया था। क्योंकि वो क़ानून की पकड़ से बच निकलने की कमाल की योग्यता रखता था। अब ये साँप फिर हरकत में था।
 
भारत में उसकी पहले से ही तलाश थी, फिर भी शोभराज यहाँ आया और उसने फिर वार किया! 7 जुलाई, 1976 के दिन नई दिल्ली में एक टूरिस्ट होटल में पश्चिमी देश का एक युवा मृत पाया गया। इस व्यक्ति का पासपोर्ट और पेसे ग़ायब थे। शव परीक्षक के मुताबिक़ उसे ज़हर दिया गया था।
 
इस घटना के तीन दिन बाद नई दिल्ली में पुलिस को पता चला कि एक स्थानीय होटल में 50 से भी अधिक सैलानियों को ज़हर दिया गया है। ये एक बहुत बड़ी आपराधिक घटना थी।
 
फ्रांसीसी विद्यार्थियों के एक दल ने दावा किया कि उनके टूर गाइड ने उन्हें ज़हर दिया था। अच्छी बात यह थी कि उस गाइड को लोगों ने रोक कर रखा था। पुलिस तुरंत उस टूर गाइड के पास पहुंची। पुलिस फौरन शोभराज को पहचान गई। उसे हिरासत में लिया गया।
पत्रकार डॉसन कहते हैं, शायद शोभराज सोचता था कि वो जो चाहे कर सकता था। वो ख़ुद को ज़्यादा ही होशियार समझने लगा था और उस दिन वो चूक गया।
 
शोभराज के साथ मैरी आंद्रे भी गिरफ़्तार हुई और उस पर विद्यार्थियों को ज़हर देकर उनकी हत्या के प्रयास का आरोप लगा। इन दोनों का साथी अजय चौधरी उनके साथ नहीं था, और वो फिर कभी नज़र भी नहीं आया!
 
शोभराज को इस अपराध का दोषी पाया गया। उसे 12 साल की सज़ा हुई और मैरी 8 साल के लिए जेल भेजी गई। इन दोनों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया, जो आज दक्षिणी एशिया का सबसे बड़ा जेल है।
 
जेल में शोभराज कुछ ख़ास सहूलियतें हासिल करता रहा और मीडिया के ज़रिए थाई अधिकारियों से भी बात करता रहा! पत्रकार एलन डॉसन उससे कई बार मिले। उन्होंने उसे हत्याओं के बारे में पूछा। शोभराज ने बताया कि वो सभी मृतकों से परिचित था और उसे पता है कि उनकी हत्याएँ कैसे हुईं। उसने ये बात साफ कही कि वो इन हत्याओं के दौरान प्रत्यक्ष रूप से मौजूद था।
 
एक बार तो उसने बहुत परेशान करने वाली बात बताई। उसने पटाया की एक जगह का मानचित्र बनाया और एक निशान लगाकर वो जगह बताई, जहाँ एक शव दबा हुआ था। डॉसन ने थाईलैंड लौटकर ये मानचित्र पुलिस को दे दिया और जब पुलिस ने वहाँ जाकर खुदाई की, तो उन्हें वहाँ से एक शव मिला! वो कहते हैं, थाई पुलिस चाहती थी कि शोभराज वहाँ लौटे, मुकदमा झेले, अपराधी घोषित हो और उसे गोली मार दी जाए।
 
मई 1982 में भारत की एक अदालत में चार्ल्स को 1976 में बनारस में इज़राइली पर्यटक एलन जैकब की हत्या का दोषी करार दिया गया था। उम्रकैद की सज़ा भी सुनाई गई। लेकिन ऊपरी अदालत में अपील करने और सुबूतों के अभाव में एक साल बाद बरी भी कर दिया गया! चार्ल्स पर एक फ्रेंच नागरिक की हत्या का भी आरोप था, लेकिन वह भी साबित नहीं हो पाया।
प्रत्यर्पण की कार्रवाई पहले ही शुरू हो चुकी थी। थाई सरकार शोभराज को ले जाने की कोशिश कर रही थी। सुथुमाई ये देखने भारत आए कि प्रत्यर्पण की प्रकिया कहाँ तक पहुंची है। भारतीय पुलिस उन्हें जेल में बंद शोभराज के पास ले गई। शोभराज को अच्छी तरह मालूम था कि अगर वो थाई गया तो उसे मरना ही होगा, क्योंकि वहाँ उसके ख़िलाफ़ कई हत्याओं के सबूत थे।
 
इधर, भारत में किए गए अपराधों की सज़ा उसे भारत में भुगतनी थी। समय गुज़रता रहा। अब शोभराज एक प्रसिद्ध कैदी बन चुका था! जेल के सुरक्षा गार्ड शायद शोभराज के रूतबे का आनंद लेते थे और उससे मिलने आने वाले लोगों को बड़ी आसानी से मिलने देते थे!
 
1986 का साल था। जेल में अपने 10 साल पूरे होने के मौक़े पर एक पूर्व कैदी (ड्रग सप्लायर डेविड हॉल) शोभराज से मिलने के लिए आया और साथ में बिस्कुट और अंगूर का एक डिब्बा लाया। शोभराज ने सभी को ये चीज़ें बांटी। एक घंटे के भीतर ही कैदी और गार्डस बेहोश हो गए!
 
जेल के स्टाफ़ को नशीले अंगूर और बिस्कुट खिलाकर शोभराज जेल के गेट नं. 3 से भागकर एक बार फिर भगोड़ा बन गया! उसके साथ तीन और कैदी भी भागे! शोभराज का तिहाड़ जैसी जेल से भागना सनसनीखेज़ बात थी। हांगकांग तक के अख़बारों में इस पर एडिटोरियल लिखे जा रहे थे। देशभर की पुलिस सिर पर पाँव रखे चार्ल्स को खोज रही थी। इंटरपोल ने उसकी फ़ाइल फिर खोल दी और अपने सदस्यों को सूचना दे दी।
 
नई दिल्ली पुलिस को ये मालूम नहीं था कि शोभराज देश से बाहर चला गया है या देश में ही छिपा है। लिहाज़ा पुलिस ने उसके पुराने ठिकानों पर एक खोजी दल भेजा। तीन हफ़्तों के बाद, 6 अप्रैल 1986 के दिन, नई दिल्ली पुलिस के डिटेक्टीव मधुकर ज़ेंडे ने गोवा के एक होटल में सन हेट पहने हुए एक शख़्स को देखा। वो कहते हैं, उसे देखकर मैंने सोचा कि इस आदमी ने रात में भी सन हेट क्यों पहन रखा है? मैंने अपनी नज़रें उस पर गड़ा दीं। वो शोभराज जैसा लगा।
अब उसे फिर एक बार गिरफ़्तार करने का वक़्त था। एजेंट्स ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। शोभराज को जेल से भागने के आरोप में 10 साल की और सज़ा हो गई।
 
किंतु कहानी में ट्विस्ट यहीं से शुरू होता है। ये मामला कुछ ज़्यादा ही आसान लग रहा था। जेल से भागने के बाद शोभराज कथित तौर पर छुट्टियाँ मना रहे छात्र की तरह पेश आ रहा था। उसे फिर से गिरफ़्तार करने वाले एजेंट्स भी सोच रहे थे कि क़ानून को चकमा देने के लिए बदनाम हत्यारा इतना लापरवाह कैसे हो सकता था? वो जेल से भागने के बाद भी उस जगह क्यों था, जहाँ उसे खोजा जा सकता था? जेल से भागने पर उसे 10 साल अतिरिक्त सज़ा हो गई। और वो यही चाहता था!
 
पत्रकार डॉसन के मुताबिक़, उसने बाद में बताया कि वो जानबूझकर जेल से भागा था। क्योंकि भारतीय जेल में उसकी सज़ा की अवधि ख़त्म हो रही थी। और फिर उसे भारतीय जेल से निकलना पड़ता। थाईलैंड ने उसके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया हुआ था। वहाँ उसे भेज दिया जाता तो उसे मौत की सज़ा होना निश्चित था। किंतु अगर वो भारतीय जेल से भाग जाता, तो उसे अतिरिक्त सज़ा मिलती और उससे प्रत्यर्पण टल जाता। और हुआ भी यही!
 
भारत ऐसे किसी अपराधी को प्रत्यर्पित नहीं कर सकता था, जो फ़िलहाल भारतीय क़ानून के तहत सज़ा काट रहा हो। शोभराज अपने अतिरिक्त सज़ा के दिन काट रहा था, इसी दौरान थाई में उसकी सज़ा की अवधि सन 1995 में समाप्त हो गई! वहाँ के उस समय के क्रिमिनल लॉ के अनुसार, कोई भी अपराधी, जिस पर उसकी सज़ा सुनाने के 20 साल के अंदर कार्रवाई नहीं होती, तब उसके ऊपर लगे सारे इल्ज़ामों से उसे बरी कर दिया जाएगा।
भारत में सज़ा काटने के बाद शोभराज 1997 में रिहा हो गया। उसे फ्रांस प्रत्यर्पित कर दिया गया। चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए। वर्ष 2003 में वह नेपाल पहुंचा। वहाँ उसने प्रेस को इंटरव्यू भी दिया! नेपाल में उस पर 28 साल पुराना मामला लंबित था। सन 1975 में हुए दो हिप्पियों के हत्या के आरोप में अप्रत्याशित तरीक़े से उसे गिरफ़्तार कर कई मुकद्दमे चलाए गए। 12 अगस्त, 2004 को चार्ल्स शोभराज को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। नेपाली सर्वोच्च न्यायालय ने भी 30 जुलाई, 2010 को उसकी इस सज़ा को बरकरार रखा।
 
2014 में कनाडाई बैकपैकर की हत्या के लिए दूसरी बार नेपाल की एक कोर्ट ने उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई। नेपाल में उम्रक़ैद की सीमा 20 साल होती है।
 
दोस्ती, ड्रग्स, लूटपाट और फिर हत्या! उसने अधिक मात्रा में नशा देकर प्रवासियों को मारा, या उनके गले काटे, या पीट पीट कर मारा, या जला कर! चोरी, ठगी, दलाली, हेराफेरी, चोरी की कारें बेचना, जाली दस्तावेज़ बनाना, हत्या, समेत अनेक मामलों का अपराधी चार्ल्स शोभराज भारत के अलावा अफ़ग़ानिस्तान, ग्रीस और ईरान की जेलों से भी भागा! उसने क़ानूनी दाँवपेंच और सिस्टम की भीतरी ख़राबी का ख़ूब फ़ायदा उठाया।
 
चार्ल्स सालों तक नेपाल के काठमांडू जेल में बंद रहा। बेशक चार्ल्स को वहाँ पहली जेल जैसी सुविधाएँ मुहैया नहीं कराई गईं, लेकिन वह फिर भी यदाकदा चर्चा में आता रहता! एक बार तो उसने जेल से ही विदेशी मीडिया को इंटरव्यू दिया था, जिसने नेपाल में काफी बवाल काटा था!
 
नेपाल में सज़ा काटने के दौरान चार्ल्स नेपाली लड़की निहिता बिस्वास से मिला। निहिता के दावे की माने तो, दोनों ने जेल में ही शादी कर ली! निहिता ने इस शादी का एलान मीडिया के समक्ष किया था। शादी के वक़्त निहिता 20 वर्ष की थी, जबकि चार्ल्स 64 वर्ष का था!
चार्ल्स शोभराज से शादी करने के बाद निहिता बिस्वास सुर्खियाँ बटोर रही थी। उसी दौरान निहिता को टीवी रियलिटी शो 'बिग बॉस 5' में मौक़ा मिला! वो बिग बॉस 5 में एक प्रतिभागी के तौर पर नज़र आई थी। मगर वो इस शो में ज़्यादा दिन टिक नहीं पाई थी और शो से बाहर हो गई थी।
 
इंडियन एक्सप्रेस ने शोभराज का एक इंटरव्यू प्रकाशित किया था, जो कथित रूप से सन 2016 में लिया गया था। इंटरव्यू में शोभराज ने दावा किया था कि साल 2000 से 2003 के बीच उसने पाकिस्तान की कई यात्राएँ कीं और आतंकवादी मसूद अज़हर से मुलाकात की थी! शोभराज ने उस इंटरव्यू में बताया था, ''जसवंत सिंह (उस वक़्त विदेश मंत्री) मेरे सीधे संपर्क में थे। सबसे पहले उन्होंने पेरिस में मुझसे मिलने के लिए एक दूत भेजा। इस मुलाकात और जसवंत सिंह से बातचीत के बाद मैंने मसूद की पार्टी हरकत उल अंसार के लोगों से संपर्क किया।" शोभराज ने कंधार विमान हाईजैक से जुड़ी कई घटनाओं के बारे में अचंभित करने वाले दावे किए!
 
24 दिसंबर 2022 के दिन प्रकाशित बीबीसी हिंदी रिपोर्ट के मुताबिक़, शोभराज ने ये इंटरव्यू 15 अगस्त 2016 को ई-मेल के ज़रिए दिया था। इंटरव्यू इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार ऋतु सरीन ने लिया था। हालाँकि शोभराज ने ये शर्त रखी थी कि ये इंटरव्यू उनके काठमांडू जेल से रिहा होन के बाद प्रकाशित किया जाए। उस वक़्त तक शोभराज को लगने लगा था कि उसकी रिहाई होने ही वाली है!
 
23 दिसंबर 2022 के दिन नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चार्ल्स शोभराज को रिहा किया गया। मानवाधिकार, कैदी की उम्र और कैदी की बीमारी, तीन वजहों से उसे जेल से आज़ाद कर दिया गया। वह फिर अपने देश फ्रांस लौट गया। चार्ल्स शोभराज का साथी अजय चौधरी आज तक किसी पुलिस के हाथ नहीं लगा है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)