कोलंबिया नामक छोटा सा देश, उसके राष्ट्रपति का वह ट्वीट, अमेरिका की आँखों में आँखें डालकर बात करने का वह साहस, यह इतना निर्भीक है
कि इसने मिथ्याभिमानी और दिव्यता व भव्यता की सनक के चक्र में फँसे भारत की व्हाट्सएप
यूनिवर्सिटी के मूर्ख विद्यार्थियों को तथा उसके कथित महानायक को बाक़ायदा आईना दिखा
दिया है। कोलंबिया जैसा स्वाभिमान, उसके जैसी हिम्मत अगर भारत की सरकार और उसके कथित महान प्रधानमंत्री नहीं दिखा
सके हैं तो यह अनेक भ्रमों को चीरने जैसा है।
2019 से पहले भारत विश्वगुरु बनने के लगभग आऊटर पर खड़ा था और अब तो 2024 के पश्चात मनलुभावन
नारों और भव्यता तथा दिव्यता की सनक के बीच भारत विश्वगुरु बन ही चुका है वाला ऐतिहासिक
भ्रम आम जनमानस में घर कर चुका है। और विश्वगुरु बनने के बाद भारत का नहीं बल्कि मोदी
नामक एक राजनेता का डंका दुनियाभर में बज रहा है वाली भ्रमणा गोदी मीडिया के सहारे
देश के गली-कूचों में भरी पड़ी है।
और इस डंका-डंकी वाली भ्रमणा के बीच उसी देश के नागरिकों को अमेरिका ने जिस तरह
से अमानवीय तरीक़े से, बेड़ियों में जकड़ कर, हाथों में हथकड़ियाँ डालकर, अपने सैन्य विमान से भारत में आकर एक तरीक़े से फेंक दिया है, वह नये भारत का गौरव, नये भारत का स्वाभिमान, नये भारत का डंका, तमाम भ्रमणाओं को, मिथकों को, तमाम झूठे प्रचार-प्रसार
को, प्रधानमंत्री के खोखले नारों को चीरते हुए प्रथम और अंतिम सच को सामने ले आया
है।
इस बात से क़तई इनकार
नहीं है कि अमेरिका ने अपनी नीतियों के अनुसार, स्वयं के हितों की रक्षा करते हुए जो भी किया है वह स्वाभाविक ही है। इसे हम क्यों
ग़लत माने? उसने अपनी ज़मीन पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से घुसे विदेशियों को पकड़ कर बाहर कर
दिया इसमें हम अमेरिका को क्यों दोष दें? उसका अपना देश है, उसकी अपनी सरकार है, उसने अपने हितों को देखा और जो किया वह स्वाभाविक रूप से जायज़ है। इससे कोई इनकार
कभी नहीं है।
अमेरिका ने सिर्फ़
भारतीयों को नहीं दुनिया के अनेक देशों के ऐसे नागरिकों को, जो अवैध तरीक़े से
अमेरिका में घुसे थे, उन्हें बाहर किया है। डंके की चोट पर बाहर किया है। वे नागरिक जहाँ भी थे वहाँ
से उन्हें पकड़ कर अपने सैन्य विमान में बेड़ियाँ पहनाकर उनके अपने वतन में ले जाकर
किसी कचरे की भाँति फेंक दिया है।
ऐसा नहीं है कि पहली
बार अवैध भारतीय प्रवासियों को डिपोर्ट किया गया हो। ऐसा पहले भी हो चुका है। 2019 तथा 2020 में क्रमानुसार 1,616 और 2,312 अवैध प्रवासियों को
वापस किया गया था। किंतु सैन्य विमान का इस्तेमाल, दूसरे देश के सैन्य विमान का भारतीय ज़मीन पर लैंडिंग, अवैध प्रवासियों को
हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ना, यह सब गरिमापूर्ण वापसी के ख़िलाफ़ था।
इस पूरी प्रक्रिया
में कोलंबिया जैसे छोटे देश ने जिस तरह का स्वाभिमान, आत्मगौरव और साहस
दिखाया है, वह भारत और उसके कथित महान प्रधानमंत्री नहीं दिखा पाए तो यह अमेरिका पर नहीं
बल्कि भारत की सरकार पर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल है। दरअसल उनके खोखले नारों को सरेआम
चीर दिया गया है। उस खोखले आभामंडल को, दिव्यता और भव्यता की सनक में घूम रहे नागरिकों के मिथकों को पटक दिया गया है।
कोलंबिया जैसा साहस तो छोड़िए, भारत ब्राज़ील या मैक्सिको जैसी आपत्ति भी जता नहीं पाया है! उलटा हमारे विदेश मंत्री ने तमाम सवालों और विरोध को एक तरीक़े से नकार दिया है।
एक ज़माने में हमारे
घोर चुनावजीवी प्रधानमंत्री मोदीजी ने जिस ट्रंप के लिए चुनावी नारे लगाए थे उसी ट्रंप
ने अपनी सेना के विमान में 100 से अधिक भारतीयों को भरकर वापस भेज दिया है। यक़ीनन अमेरिका का वह सैन्य विमान
अवैध रूप से बसे भारतीयों को लेकर आया था। इसमें ग़लत तो कुछ नहीं था। जो व्यक्ति किसी
देश का क़ानून तोड़ कर वहाँ रहेगा वह या तो गिरफ़्तार होगा या फिर वापस किया जाएगा।
लेकिन बात इतनी ही सामान्य
थी तो फिर उस विमान तक मीडिया को क्यों पहुँचने नहीं दिया गया? विमान के भीतर की तस्वीरें कहाँ हैं, जिससे देश देखता और समझता कि दूसरे देश के क़ानून तोड़े तो
इसी तरह बेड़ियों में जकड़ दिए जाएँगे।
सरकार ने इस घटना को
ख़बरों में कहीं छिपाने की कोशिश तो की, किंतु हंगामा हुआ तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 6 फ़रवरी 2025 के दिन राज्यसभा में
बताया कि अमेरिका से 104 भारतीयों को डिपोर्ट किया गया है।
विदेश मंत्री ने कहा, "अमेरिका विमान के ज़रिए
जो निर्वासन करता है उसकी मानक संचालन प्रक्रिया है। यह 2012 से प्रभावी है। इस
प्रक्रिया के तहत लाए जाने वाले लोगों पर कुछ प्रतिबंध होते हैं। हालाँकि हमें अधिकारियों
ने बताया है कि महिलाओं और बच्चों पर किसी क़िस्म का प्रतिबंध नहीं होता।"
उन्होंने कहा, "इसके अलावा, निर्वासित लोगों की
दूसरी ज़रूरतों जैसे- भोजन, इलाज या अन्य चीज़ों पर ध्यान दिया जाता है। ज़रूरत पड़ने पर शौचालय का इस्तेमाल
करने के लिए उनके बंधन खोले भी जाते हैं।"
बकौल विदेश मंत्री, "मानक संचालन की यह
प्रक्रिया चार्टर्ड विमानों के साथ-साथ सैन्य विमानों पर भी लागू होती है। 5 फ़रवरी 2025 को अमेरिका से आई
उड़ान में पिछली प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बेशक, हम यह सुनिश्चित करने
के लिए अमेरिकी सरकार से बातचीत कर रहे हैं कि निर्वासित लोगों के साथ उड़ान के दौरान
किसी भी तरह का दुर्व्यवहार न हो।"
अमेरिका का सैनिक विमान अवैध तरीक़े से बसे भारतीयों को बेड़ियों में कैद कर भारत
की धरती पर उतरा है। गौरव गाथा में फँसे लोगों को कभी कभी शर्म
भी आनी चाहिए। या फिर मिथ्याभिमान और भव्यता तथा दिव्यता की सनक धारण करने वाली
गौरव सेना को शर्मसार होने से बचाया जा रहा है?
इसी मामले में कोलंबिया के
राष्ट्रपति ने अमेरिका के सैन्य विमान को अपनी घरती पर उतरने नहीं दिया। बल्कि कोलंबिया
ने अपना विमान अमेरिका भेजा और अपने नागरिकों को वापस ले आए। गोदी मीडिया और गौरव सेना, दोनों को उस सवाल से क्यों बचाया गया? सवाल वही कि विश्वगुरु भारत के प्रधानमंत्री मोदी कोलंबिया के
राष्ट्रपति जैसा क्यों कर नहीं सकें?
क्यों भारत में मीडिया को उस अमेरिकी सैन्य विमान से दूर रखा गया? क्यों मीडिया को विमान
के उतरने का, उस विमान से बेड़ियों में कैद उन भारतीय नागरिकों का वीडियो नहीं लेने दिया गया? मीडिया को दूर रखा गया, किंतु फिर भी कईं जगहों पर उस सैन्य विमान की तस्वीरें आ गईं, और वीडियो भी। शायद
आम लोगों ने वह वीडियो तथा तस्वीरें लेकर कुछ मीडिया हाउस तक पहुँचाए।
अमेरिकी सैन्य विमान
सी-17 ग्लोबमास्टर 5 फ़रवरी को दोपहर क़रीब 1 बजे 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को लेकर अमृतसर के गुरु रविदास इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुँचा।
इस अमेरिकी सैन्य विमान में 11 क्रू मेंबर्स थे और 45 अमेरिकी अधिकारी भी थे।
मीडिया रिपोर्ट्स की
माने तो इनमें पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लोग थे। बताया जाता है कि इनमें 48 लोग ऐसे थे, जिनकी उम्र 25 से कम थी! 12 के आसपास की संख्या
में नाबालिग भी बताए गए, जिनमें एक 4 साल का बच्चा भी था!
ख़बरों की माने तो इन सभी को क्लियरेंस के बाद विविध राज्यों की पुलिस को सोंप
दिया गया, जिन्हें मीडिया और अन्य लोगों की नज़रों से बचाते हुए अलग अलग तरीक़े से ले जाया
गया। ये सभी, तथा ख़बरों के मुताबिक़ और भी भारतीय डिपोर्ट होने वाले हैं, सभी अवैध प्रवासी
कनाडा, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत 20 अन्य देशों में भी नहीं जा पाएँगे, क्योंकि अमेरिका की वीजा नीति क़रीब 20 देश फॉलो करते हैं।
उस अमेरिकी सैन्य विमान
की भारतीय हवाई अड्डे पर कोई आधिकारिक तस्वीर तो नहीं है, किंतु आम लोगों ने
वीडियो और तस्वीरें कैद कर लीं, जो सोशल मीडिया में फैल गईं। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति की प्रेस सेक्रेटरी ने अवैध
प्रवासियों को ज़ंजीरों में कैद कर वापस भेजने की तस्वीरें पोस्ट की हैं। अमेरिका के
बॉर्डर पेट्रोल संस्था के अध्यक्ष माइकल बैंक्स ने एक वीडियो जारी किया है। इसमें भारतीय
नागरिक ज़जीरों में, मुश्किल से चलते हुए विमान के अंदर जाते दिख रहे हैं।
किसी भी देश के लिए यह शर्मनाक
है कि दूसरे देश का सैनिक विमान उसके अपने नागरिकों को आतंकवादी या युद्ध कैदी की तरह
लेकर उसकी अपनी ज़मीन पर उतरे। कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपने देश को इस शर्म से बचा
लिया है। भारत को भी कहना चाहिए था कि वह अपना विमान भेजकर अपने नागरिकों को उस देश
से बाहर निकाल लाएगा।
पुलवामा में इतना आरडीएक्स कहाँ से आया था, आईएसआई को पठानकोट
हवाई अड्डे पर क्यों घुसने दिया गया था, यह दोनों सवाल जिस तरह से अब भी तैर रहे हैं, यह भी तैरेगा कि भारत
ने अमेरिका के सैन्य विमान को अपनी धरती पर उतरने क्यों दिया?
गोदी मीडिया और गौरव
सेना इन सवालों से बचने के लिए बता रहे हैं कि अमेरिका ने सिर्फ़ भारतीय नागरिकों को
ही नहीं बल्कि मैक्सिको, ग्वाटेमाला, पेरू, होंडुरास के नागरिकों को भी इसी तरह से बाहर किया है। लेकिन वह मीडिया और वह
सेना कोलंबिया का उदाहरण देने से क्यों बच रहे हैं?
सिर्फ़ और सिर्फ़ पीएम मोदी की लार्जर दैन लाइफ़ वाली क्रिएटेड इमेज को बचाने के
लिए मीडिया और गौरव सेना भारत को मैक्सिको और ग्वाटेमाला की कतार में खड़ा कर रहे हैं! ठीक उसी तरह जैसे महंगाई के आँकड़े के समय पाकिस्तान के साथ, अधिकारों के मुद्दे
पर सीरिया के साथ भारत को खड़ा कर दिया जाता है!
दरअसल देशप्रेमी नागरिक और
ज़िम्मेदार मीडिया, दोनों को यह ज़रूर देखना-समझना चाहिए कि कोलंबिया के राष्ट्रपति
गुस्तावो पेट्रो को जब पता चला कि उसके नागरिकों को इस तरह फेंकने के लिए अमेरिका का
सैन्य विमान आ रहा है तो उन्होंने अमेरिकी विमान को अपनी ज़मीन पर उतरने की अनुमति
नहीं दी। पेट्रो ने कहा और लिखा कि प्रवासियों के हाथों में हथकड़ियाँ डालना उनके साथ
अपराधियों जैसा बर्ताव करना है, यह
उनकी गरिमा का हनन है और सेना की यह कार्रवाई प्रॉटोकोल का उल्लंघन है।
जब ट्रंप ने टैरिफ
लगाने की धमकी दी तब कोलंबिया के राष्ट्रपति को पीछे हटना पड़ा। मगर तब भी उन्होंने
अपने नागरिकों को देश वापस लाने के लिए अमेरिका तक अपने देश से विमान भेजा। उन्होंने
अमेरिकी सैन्य विमान का अपनी ज़मीन पर उतरना स्वीकार नहीं किया।
कोलंबिया की सरकार ने अपने नागरिकों की गरिमापूर्ण वापसी के लिए बाक़ायदा एक कमेटी
बनाई। भारत के नागरिकों को जब भारत भेजा गया तब भारत के प्रधानमंत्री क्या कर रहे थे?
वे प्रयागराज में उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ गंगा की सेर कर रहे थे, स्नान कर रहे थे, पूजा-अर्चना कर रहे
थे! उस दिन दिल्ली में
विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहा था और घोर चुनावजीवी पीएम मोदी हर चुनावी मौक़े
की तरह इस बार भी वही सांप्रदायिक सड़क नाप रहे थे!
उस दिन मीडिया और गौरव
सेना में बस वही तस्वीरें, स्नान, पूजा-अर्चना का उबाल था और दूसरी तरफ़ अमेरिका का सैन्य विमान चुपके से भारत की
ज़मीन पर उतरकर हमारे नागरिकों को फेंक कर चला गया! कोलंबिया के राष्ट्रपति ने गरिमापूर्ण व्यवहार का पक्ष लिया
और उसका अमल भी किया। हमारे यहाँ गरिमा वाला नारा किसी की साख बचाने हेतु इस बार नज़रअंदाज़
कर दिया गया।
भारत के प्रधानमंत्री
मोदी वह साहस नहीं दिखा सकें, जो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने दिखाया। गुस्तावो पेट्रो ने वापसी
की तरीक़े, हथकड़ियाँ आदि पर एतराज़ जताया। इतना ही नहीं, अमेरिका के सैन्य विमान को अपने देश में लैंड करने की अनुमति
भी नहीं दी। बल्कि अपना नागरिक विमान भेज कर अपने नागरिकों को वापस ले आए।
हमारे प्रधानमंत्री मोदी वह साहस नहीं दिखा सकें, ना एतराज़ जता सकें! उन्होंने अमेरिका के सैन्य विमान को भारत की ज़मीन पर उतरने दिया और इस शर्म से
स्वयं को बचाने के लिए मीडिया को विमान के आसपास भटकने की अनुमति नहीं दी।
आप ख़ुद ही यह फ़र्क़ देख लीजिए।
कोलंबिया के राष्ट्रपति पेट्रो ने अमेरिकी सैन्य विमान को लैंडिंग की अनुमति नहीं दी, जबकि भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मीडिया को विमान लैंडिग
की तस्वीर लेने की अनुमति नहीं दी।
कोलंबिया के राष्ट्रपति
के फ़ेसबुक हैंडल पर उस विमान के भीतर की तस्वीरें हैं, जिस पर वे अपने नागरिकों
को सम्मान के साथ वापस ले आए थे। बताया जाता है कि कोलंबिया की सरकार की तरफ़ से कोई
उन नागरिकों को लेने गया था। वे नागरिक जब विमान से अपने देश में उतरे तो वहाँ मीडिया
को तमाम तस्वीरें लेने की अनुमति थी, वीडियो बनाने की इजाज़त थी। कोलंबियन नागरिक जब विमान से उतरे तो उसकी तस्वीरें
भी हैं, बस उनके चेहरे मास्क से ढके हुए थे।
भारत में ठीक इससे
उलटा हुआ। अमेरिका का सैन्य विमान चुपचाप उतर गया, हमारे नागरिकों को फेंक कर चला गया। मीडिया को अनुमति नहीं
दी गई। उल्टा मेनस्ट्रीम मीडिया को पीएम मोदी के गंगा स्नान, पूजा-अर्चना में लगा
दिया गया।
हर छोटी-मोटी बात पर बड़े बड़े
शो करने वाले मोदी इस पर मौन रहे। जबकि कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपने पोस्ट में लिखा
है, "अमेरिका से आने वाले हमारे साथी आज़ाद हैं। उनके हाथों में हथकड़ियाँ
नहीं हैं और वे सम्मान के साथ उस ज़मीन पर वापस आ गए हैं जहाँ उन्हें प्यार किया जाता
है। हम उनके लिए आसान क्रेडिट प्लान तैयार करेंगे। प्रवासी अपराधी नहीं हैं, वे स्वतंत्र हैं। वे काम करना चाहते हैं और जीवन में तरक्की
करना चाहते हैं।"
किसी भी देश के राष्ट्रपति
को या प्रधानमंत्री को, जिसे अपने देश पर अभिमान है, उसे यही करना चाहिए, जो कोलंबिया के राष्ट्रपति ने किया।
भारत के नागरिक अवैध
तरीक़े से अमेरिका में घुसने का प्रयास कर रहे थे या घुस चुके थे। वे पकड़ कर भेजे
जाए यह स्वाभाविक है। किंतु इस मामले में गुस्तावो पेट्रो का उदाहरण, उनकी कथनी और करनी, अनेक मामले में भारतीय
प्रधानमंत्री से बेहतर रही।
भारत ने अपने नागरिकों की गरिमापूर्ण वापसी के लिए कुछ भी नहीं किया। किसी दूसरे
देश के सैन्य विमान को उतरने दिया गया। उन नागरिकों के भविष्य
के लिए कोलंबिया के राष्ट्रपति ने जो भरोसा दिलाया, हमारे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
जब भी भारत सरकार बाहर
से भारतीयों को ले आती है तो मीडिया को बुला बुला कर दिखाया जाता है, शो किए जाते हैं, गौरव किया जाता है।
लेकिन इस मामले में माहौल बिलकुल भिन्न दिखाई दिया।
अमेरिका का सैन्य विमान
अमृतसर में लैंड हुआ उस समय मीडिया को दूर रखने का मजबूत प्रबंधन किया गया। एक भी
तस्वीर, एक भी वीडियो मीडिया के नसीब ना आए इसका पूरा ख़याल रखा गया। सिंपल सवाल है कि
क्यों? वर्ना पीएम मोदी कैमेरा प्रेमी हैं। वे राई का पहाड़ बनाने के
लिए कुछ भी कर जाते हैं। तो फिर इस मामले में क्यों मीडिया को अनुमति नहीं थी?
और इसका जवाब सभी को
पता है। क्योंकि यह घटना गौरव करने लायक नहीं थी, बल्कि शर्मदेह थी। और बाक़ायदा इस घटना को ख़बरों से दूर करने
के तमाम प्रयास होते हुए दिखे भी। किंतु ये तो सबको पता था कि भारत के अवैध प्रवासियों
को अमेरिका वापस भेज रहा है।
कुछ घंटे बाद पीएम
मोदी अमेरिका जाने वाले हैं। वे अमेरिका जाएँगे तब यही मीडिया दिन भर अमेरिका में बजा
मोदी का डंका वाली डंकी चलाएगा। जिन्हें कूटनीति की थोड़ी सी भी समझ है उनके मन के
भीतर यह सवाल भी कौंधेगा कि चंद दिनों बाद भारत के पीएम का अमेरिका दौरा है और अमेरिका
भारतीय नागरिकों की ऐसी वापसी कर अपने मेहमान को क्या संदेश देना चाहता है?
वापस किए गए लोगों
में से 33 गुजराती लोग थे। हम गुजरात से हैं और इसलिए हम अरसे से सवाल करते हैं कि इतने
विकसित राज्य से क्यों ढेरों लोग अवैध तरीक़े से भारत के बाहर बसने हेतु जा रहे हैं? ऐसा भी नहीं है कि
सारे सुखी-संपन्न लोग होते हैं। कोई ज़मीन बेचकर, कोई गहने बेचकर, कोई लोन लेकर
जाता है। हर तरह के लोग होते हैं ऐसा दावा गुजरात के मीडिया में अरसे से चलता है।
ट्रंप गुजरात आए तब पीएम मोदी ने गुजरात की हक़ीक़त को छिपाने के लिए न केवल हरे
कपड़े इस्तेमाल किए थे, बल्कि बाक़ायदा पक्की दीवार चुनवा दी थी! ताकि विदेशी मीडिया और देश का मीडिया तस्वीरें लें, वीडियो बनाए तब गुजरात
की सच्चाई छिप जाए! आज देश के नागरिकों को ही चोरी-छिपे उतारा जा रहा है!
गुजरात के मीडिया में
अनेकों बार पढ़ा है कि कैसे यहाँ के लोग अमेरिका जाने के लिए अवैध और ख़तरनाक रास्ता
चुनते हैं, कैसे ठंड से ठिठूर कर मर जाते हैं। मोदी सीएम थे तब भी ऐसी ख़बरें पढ़ने के लिए
मिलती थीं। आज वे पीएम हैं। लेकिन फिर भी इस देश के लोग अपनी तथा अपने परिवार की जान
जोख़िम में डालकर बाहर बसने के लिए मजबूर हैं।
पीएम मोदी के कार्यकाल
में ऐसी घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि इज़ाफ़ा ही हुआ है। उधर पीएम 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त अनाज देकर दावा करते हैं कि भारत का
डंका बज रहा है!
पीएम मोदी और व्हाट्सएप
यूनिवर्सिटी को पता होना चाहिए कि अमेरिका से ऐसी वापसी के दौरान सिर्फ़ कोलंबिया
ने ही हिम्मत नहीं दिखाई, दूसरे देशों ने भी आपत्ति जताई थी, सिवा भारत के।
ब्राज़ील के नागरिकों को वापसी
के दौरान हथकड़ियाँ पहनाई गईं तो वहाँ की सरकार ने इसकी निंदा की। ब्राज़ील की सरकार
ने ट्रंप प्रशासन से स्पष्टीकरण माँगा कि उनके 88 अवैध प्रवासियों के मूल अधिकारों का अपमान क्यों किया गया?
एक सप्ताह पहले मैक्सिको ने एक अमेरिकी सैन्य विमान को अपने यहाँ लैंड करने से
रोक दिया था। बताया जाता है कि इस विमान में 80 मैक्सिकन नागरिक मौजूद
थे।
स्वाभाविक है कि भारत
ने कोलंबिया, ब्राज़ील या मैक्सिको जैसा किया होता तो दिनों तक मीडिया में चलता, लंबे लंबे मीडिया
प्रोग्राम होते, नरेंद्र मोदी का सम्मान समारोह तक हो जाता।
किंतु हालात तो देखिए।
भारत के नागरिक इस पर ख़बरें ना देखे इसीके प्रबंधन में प्रशासन को लगाया गया! और इसीलिए इन बेचारे
नागरिकों को यह तक पता नहीं है कि ट्रंप ने हार्ले डेविडसन नाम की मोटरसाइकिल की आयात
पर ज़्यादा शुल्क का मुद्दा उठाया था। भारत ने इस बार के बजट में 20 प्रतिशत आयात शुल्क
घटा दिया! आप स्वयं पता कीजिए
कि इस मोटरसाइकिल के अलावा और कोई दूसरा आइटम नहीं है जिस पर इतना ज़्यादा शुल्क कम
किया गया हो। ट्रंप ने टैरिफ को लेकर पहले ही चेतावनी जारी की थी, भारत ने तो पहले ही
सौगात दे दी।
भारत में मोदी सरकार ने भले
ही मीडिया को रोक दिया हो, लेकिन
अमेरिका से आने वाली तस्वीरें कहानी को स्पष्ट कर रही हैं। 24 जनवरी 2025 को
राष्ट्रपति ट्रंप की प्रेस सेक्रेटरी ने कुछ तस्वीरें ट्वीट की थीं। तस्वीरों में एक
कतार में लड़कों को सेना के जहाज़ में ले जाया जा रहा है, इनकी कमर में ज़जीरें थीं, हाथों में हथकड़ियाँ थी, पाँवों में बेड़ियाँ!
ट्रंप की प्रेस सेक्रेटरी
द्वारा ट्वीट की गई तस्वीरें भारतीयों की नहीं थी। लेकिन जब अमेरिका तमाम देशों
के अवैध प्रवासियों को इस तरह से भेज रहा है तो इसने भारतीयों को गरिमा के साथ भेजा
होगा? भेजा होता तो मीडिया को दूर रखा नहीं जाता, विमान के भीतर की
तस्वीरें आ रही होती। हमारे विदेश मंत्री ने भी राज्यसभा में जो बयान दिया है उसमें
'प्रतिबंध' और 'बंधन' शब्दों का इस्तेमाल किया है।
बात केवल गरिमा के साथ वापसी
की नहीं है, चर्चा तो यह भी हो रही है कि सेना के विमान में भेजने का अर्थ
क्या होता है?
भारत की ज़मीन पर अमेरिका के सैन्य विमान का उतरना
भी कम शर्मदेह नहीं है। जबकि कोलंबिया और मैक्सिको जैसे देश इसे रोकने में सफल हो चुके
हैं।
अमेरिका अपने सैन्य
विमानों का इस काम में इस्तेमाल कर रहा है, उसे दूसरे देशों की ज़मीन पर उतार रहा है। कूटनीति के रास्ते चेतावनी दे रहा है
कि हमारा प्रभुत्व स्वीकार कर लें।
इससे पहले बाइडन प्रशासन
ने 1000 से अधिक भारतीयों को वापस भेज दिया था। गरिमा के साथ भेजा था या बिना गरिमा के, इसकी ख़बर किसी को
नहीं है।
20 जनवरी 2025 को डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और उसके बाद ख़बरें आनी लगीं कि
20 हज़ार भारतीयों की
सूची तैयार है जिन्हें भारत वापस भेज दिया जाएगा। इसके बाद 31 जनवरी 2025 के दिन भारत के विदेश
मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था,
"अमेरिका कितने भारतीयों को वापस कर रहा है इसकी संख्या को लेकर
अलग अलग बातें हो रही हैं। इससे पहले कि इन लोगों को भारत भेजा जाएगा, भारत जाँच करेगा कि
वे भारत के नागरिक हैं भी या नहीं। इसलिए अभी संख्या की बात ठीक नहीं है।"
अब भारत सरकार को बताना चाहिए कि क्या 5 दिनों के अंदर क़रीब 100 लोगों की जाँच हो
गई थी, जिन्हें वापस किया गया है?
कोलंबिया के राष्ट्रपति ने
अपने नागरिकों की न केवल गरिमापूर्ण वापसी सुनिश्चित की, बल्कि उनके भविष्य को लेकर भी उन सभी को आश्वस्त किया। जबकि
हमारे यहाँ यूक्रेन से वापस लाए गए छात्र अपनी बाकी की पढ़ाई के लिए आंदोलन करने को
मजबूर हैं!
ऑपरेशन गंगा की याद
इसलिए क्योंकि उन दिनों पीएम मोदी अपने इस अभियान का यूपी चुनाव में ख़ूब मार्केटिंग
किया करते थे, कहते थे कि उनकी सरकार कितनी प्रतापी है, भारतीयों को बचाने
के लिए सरकार कुछ भी कर सकती है। लेकिन उसी भारत के नागरिक इस हाल में जब वापस किए
गए तो पूरी कोशिश की गई कि कवरेज ही ना हो!
गोदी मीडिया को किसी दूसरे काम में लगा दिया गया। कुंभ का कवरेज, पीएम के स्नान का
कवरेज। कोशिश यही कि पाँव में चोट लगी है लेकिन पाँव की जगह पगड़ी का रंग दिखाते रहो!
इसी महीने की एक ख़बर
को भी नष्ट हो चुका भारतीय मीडिया कहाँ से दिखाता? ख़बर यह थी कि कनाडा में पढ़ने गए 50 हज़ार अंतरराष्ट्रीय
छात्र अपने कॉलेज और यूनिवर्सिटी में रिपोर्ट करने नहीं पहुँचे! 2024 के मार्च महीने में जब इतनी बड़ी संख्या में छात्र रिपोर्ट करने नहीं पहुँचे तो
इसकी जाँच शुरू हो गई।
इसी महीने की ख़बर है कि इनमें से 20 हज़ार भारतीय छात्र बताए जाते हैं! कनाडा में पढ़ रहे कुल भारतीयों का 6 फ़ीसदी के आसपास हिस्सा लापता बताया जा रहा है और प्रतापी सरकार
को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा! कनाडा में इसकी जाँच चल रही है कि कहीं वहाँ कॉलेज और भारत के अवैध माइग्रेशन
नेटवर्क में कोई साँठगाँठ तो नहीं है।
नवम्बर 2024 की एक रिपोर्ट है कि कनाडा में 10 हज़ार से अधिक फ़र्ज़ी छात्र वीजा का पता चला। इनमें से 80 फ़ीसदी गुजरात और पंजाब के छात्र निकले। क्या यह सामान्य बात
है कि हज़ारों भारतीय छात्र लापता है और इन्हें लेकर शक किया जा रहा है?
अफ़ग़ानिस्तान में
तालिबान के कब्ज़े के दौरान भारतीयों को वापस लाने के लिए तालिबानी ट्रैफ़िक कंट्रोलर्स
की दया पर निर्भर रहना पड़ा था! अमेरिकी जा रहे थे, हम पीछे छूट रहे थे! सोचिए कि भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका के नागरिक पहले निकल पा
रहे थे, किंतु हमारे बहुत पास सटे हुए देश से हम हमारे नागरिकों को निकालने में किसी ट्रैफ़िक
कंट्रोलर की दया पर निर्भर दिख रहे थे!
कथित महानायक मोदी चाहे चुप
रहे, विदेश मंत्री चाहे मूल विषय को टालने वाले बयान दें, किंतु जो वापस किए गए उनमें से कुछ कह रहे हैं। 11 फ़रवरी 2025 के
दिन बीबीसी हिंदी के लिए जुगल पुरोहित की रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में अमेरिका से भारत
वापस भेजे गए भारतीयों में से एक जसपाल सिंह के शब्द हैं, "प्लेन
में चढ़ने के बाद मेरे हाथों और पैरों को बाँध दिया गया। सफ़र के दौरान हमारा विमान
कई जगहों पर रुका लेकिन मेरे हाथ और पैर सिर्फ़ तब खोले गए जब विमान अमृतसर पहुँचा।"
इस रिपोर्ट में लिखा
गया है कि यह पता करने के लिए कि क्या भारतीय लोगों को अमेरिका से निर्वासित किए जाने
की प्रक्रिया में कभी सैन्य विमान का इस्तेमाल हुआ है, बीबीसी ने पुरानी
मीडिया रिपोर्ट खंगाले, इससे पता चला कि सैन्य विमान का इस्तेमाल शायद ही कभी हुआ हो। इस संबंध में भारत
के विदेश मंत्रालय से भी बीबीसी की टीम ने जानकारी लेने की कोशिश की पर कोई जवाब नहीं
मिला।
भारत के पूर्व राजदूत राजीव डोगरा कहते हैं, "कूटनीति को नज़दीक़
से देखने का मेरा लगभग 50 वर्षों का अनुभव है। मैं कह सकता हूँ कि निर्वासन के लिए ऐसी सैन्य उड़ान की कोई
मिसाल नहीं है, जहाँ लोगों को घंटों तक बेड़ियों और जंज़ीरों में रखा गया।"
7 फ़रवरी 2025 के दिन बीबीसी हिंदी के लिए अंशुल सिंह की रिपोर्ट में एक और प्रवासी ख़ुशप्रीत
सिंह बताते हैं, "उन्होंने हमें हथकड़ी पहनाई। हमें बताया गया कि वो हमें वेलकम सेंटर ले जा रहे
हैं। लेकिन कुछ देर बाद हमारे सामने सेना का विमान खड़ा था।"
जुगल की रिपोर्ट में
दर्ज है कि अमृतसर वाली उड़़ान का हवाला देते हुए अमेरिका के बॉर्डर पेट्रोल संस्था
के अध्यक्ष माइकल बैंक्स ने एक वीडियो जारी किया। इसमें भारतीय नागरिक ज़जीरों में, मुश्किल से चलते हुए
विमान के अंदर जाते दिख रहे हैं।
बैंक्स ने वीडियो के साथ अपने
पोस्ट में यह भी लिखा, "हमने
सैन्य परिवहन का इस्तेमाल करते हुए अवैध 'एलियंस' को सफलतापूर्वक
भारत लौटा दिया…
निर्वासन के लिए यह अब तक की सबसे दूर की उड़ान
है। यह मिशन आव्रजन क़ानूनों को लागू करने और तेज़ी से निष्कासन सुनिश्चित करने की हमारी
प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।"
सैन्य विमान का इस्तेमाल कर दूसरे देशों को अमेरिकी प्रभुत्व के स्वीकार का आग्रह
करने की कूटनीति तो है ही, साथ ही अवैध प्रवासियों को किसी आतंकवादी या युद्ध कैदी की तरह वापस लौटाने का
यह द्दश्य दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की अंदरूनी राजनीति का प्रतिबिंब भी हो सकता
है। जिस तरह भारत के भीतर नरेंद्र मोदी घोर राजनीति के वाहक हैं, ट्रंप भी अमेरिका
में वही करने जा रहे हैं, यह भी एक संभावना है।
विदेश मंत्री ने राज्यसभा
से देश को जो जवाब दिया है वह उन सवालों का जवाब तो नहीं है। बेड़ियों में, ज़ंजीरों में कैद
भारतीय प्रवासियों का वीडियो अमेरिका से आता है तब भी वह स्वीकार करते नहीं दिखते कि
भारतीयों को आतंकवादी या युद्ध कैदी की भाँति लाया गया था। वे प्रतिबंध और बंधन जैसे
शब्द का एकाध बार इस्तेमाल कर बच निकलते हैं!
विदेश मंत्री बतलाते
हैं कि डिपोर्ट की प्रक्रिया नयी नहीं है, लंबे अरसे से चली आ रही है। विदेश मंत्री को सवाल यह नहीं था कि डिपोर्ट की प्रक्रिया
कब से चल रही थी। उनसे सवाल आतंकवादी और युद्ध कैदी की तरह भारतीय प्रवासियों को वापस
करने के संबंध में था, सवाल अमेरिकी सैन्य विमान का भारतीय धरती पर उतरने को लेकर था।
विदेश मंत्री को स्पष्ट
करना चाहिए था कि निर्वासन की प्रक्रिया नयी नहीं है तो फिर कोलंबिया ने क्यों साहस
दिखाया? उसने कैसे इस प्रक्रिया को नकार दिया? उसने अपने नागरिकों की गरिमापूर्ण वापसी की व्यवस्था की तो भारत ने क्यों नहीं
की? विदेश मंत्री को बताना
चाहिए था कि यदि यह मान्य और सामान्य प्रक्रिया थी तो मैक्सिको और ब्राज़ील ने निंदा
क्यों की थी?
भारत की सरकार ने इस
विवादित वापसी पर दूसरे छोटे से देशों की तरह साहस दिखाकर आपत्ति तक नहीं जताई है, ना ही निंदा की है! भारत सरकार ने अमेरिका को तो छोड़ दीजिए, अपने देश के भीतर अपने लोगों के सामने भी निंदा का एक शब्द भी नहीं बोला है!
बात कितनी सिंपल है। कोलंबिया ने जो किया, वह भारत नहीं कर सका।
ब्राज़ील और मैक्सिको ने जो कहा, भारत वह अमेरिका को कह नहीं सका। जबकि ट्रंप और मोदी की दोस्ती के चर्चे मीडिया
में बहुत चलते हैं। दोस्ती न हो या हो, किंतु छोटे छोटे देश जो कर गए, कह गए, भारत कर भी नहीं पाया, कह भी नहीं पाया!
आज के भारत की बातें बहुत होती हैं, नारे भी ख़ूब लगाए जाते हैं। अगर यह भारत 60, 70 या 80 के दशक वाला भारत
नहीं बल्कि आधुनिक और शक्तिशाली भारत है तो फिर यह नया भारत उन पुराने दशकों के दौरान
जो साहस अमेरिका के ख़िलाफ़ दिखाया जाता था उसके थोड़े से हिस्से का साहस भी क्यों
नहीं दिखा पाता? सवाल उठ जाता है कि भारत का डंका बज ही रहा है तो फिर डंकी क्यों चल रही है और
उसमें बढ़ोतरी क्यों हो रही है?
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)