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PM Modi and Manipur: पीएम मोदी की एक और ऐतिहासिक विफलता, एक साल से जलता मणिपुर और उधर दूसरे देशों के युद्ध बंद कराने का फूहड़ दावा

 
पूंजीपतियों के माध्यम से देश के मेनस्ट्रीम मीडिया को कथित रूप से मुठ्ठी में भीचने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भक्त गण अपने उस अवतार की मौन सहमति के चलते रूस और यूक्रेन युद्ध को भारत के पीएम मोदीजी द्वारा बंद कराने का हास्यास्पद दावा फैला चुके हैं! वे तो इज़रायल और हमास के बीच शांति स्थापित करने में भी मोदीजी को मुख्य फैक्टर के रूप में फैला चुके हैं! यह बात और है कि इस दावे के साल भर बाद भी ये चारों देश युद्ध करने में व्यस्त हैं।
 
रूस, यूक्रेन, इज़रायल, हमास इन सब वैश्विक मुद्दों के बीच स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी मुठ्ठी में बंद वो गोदी मीडिया, वो भक्त गण, कोई भी पिछले एक साल से जल रहे भारत के अपने हिस्से, अपने राज्य, मणिपुर पर गंभीरतापूर्वक तथ्यों के साथ बात नहीं कर रहे! जबकि एक साल से जल रहे मणिपुर के लिए पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को ही ज़िम्मेदार माना जा सकता है।
 
भारत का अपना एक राज्य साल भर से जल रहा है, सैकड़ों नागरिक और सुरक्षा बलों के जवान मारे जा रहे हैं, सरकारी हथियार लूटे जा रहे हैं, सरकारी और नीजि संपत्तियाँ जलाई जा रही हैं, देश को शर्मसार करने वाले महिला अपराधों की घटनाएँ थम नहीं रही, कथित रूप से रॉकेट, ड्रोन और बम इस्तेमाल हो रहे हैं और इसके लिए ज़िम्मेदार उस राज्य के मुख्यमंत्री, उस मुख्यमंत्री को वहाँ बिठाने वाली देश की दो सबसे बड़ी संवैधानिक शख़्सियतें, सब साल भर से चुप और निष्क्रिय दिख रहे हैं।
 
आज सितम्बर महीने में भी जो हिंसा शुरू है उसकी शुरुआत हुई थी साल 2023 में। मई का महीना था। यहाँ बीजेपी सरकार सत्ता में थी (और है), जिसे देश के पीएम मोदीजी डबल इंजन वाली सरकार कहते थकते नहीं थे। केंद्र में भी बीजेपी और यहाँ मणिपुर में भी बीजेपी।
 
जब मणिपुर में साल 2022 में विधानसभा चुनाव हुए तब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उस देशव्यापी मॉडल के हिसाब से यहाँ भी वही चुनाव प्रचार किया और वही आश्वासन और भरोसा मणिपुर की जनता को दिलाया। वे 2014 के बाद हर राज्य के विधानसभा चुनावी प्रचार में जैसा कहते फिरते थे, यहाँ भी वही कहा। मणिपुर को कहा कि आपके इलाक़े का प्रत्याशी कोई भी हो, बस कमल का बटन दबा देना, यह वोट मुझे ही मिलेगा। मणिपुर की जनता ने यही किया। बीजेपी जीती और एन बीरेन सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री बने।
लाज़मी था कि वह मणिपुर के चुने गए विधायकों या बीजेपी की कृपाद्दष्टि के चलते नहीं बल्कि देश और बीजेपी को चलाने वाले दो चेहरे, पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की इच्छा सहमती से ही मणिपुर के मुख्यमंत्री बने थे।
 
मणिपुर की क़रीब 35 लाख की आबादी में से आधे से अधिक मैतेई समुदाय के लोग हैं, जो ख़ास तौर पर इम्फ़ाल और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं और इनका एक बड़ा हिस्सा हिन्दू है। वहीं कुकी-ज़ो और नगा जनजातियाँ पहाड़ी ज़िलों में रहती आईं हैं। कुकी-ज़ो समुदाय के लोग मुख़्य तौर पर ईसाई हैं।

 
स्वतंत्र और पुराने विश्लेषकों के मुताबिक़ पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के आर्शीवाद से मणिपुर के बन बैठे मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा धरातल पर अपनाई गई कुछ नीतियों के चलते मणिपुर के दो मुख्य समुदाय, मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी-ज़ो (पहाड़ी बहुल समुदाय) समुदाय में गंभीर मतभेद उभरने लगे। और आख़िरकार 3 मई 2023 को भारत का एक ख़ूबसूरत राज्य मणिपुर आग में झुलस गया।
 
मार्च 2023 में हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की बात पर शीघ्रता से विचार करने को कहा था। इस आदेश के बाद 3 मई को कुकी-ज़ो छात्रों द्वारा कैंडल मार्च निकाला गया, जिसने भीषण हिंसा का रूप धारण कर लिया।
 
अभी 3 साल पहले, 2021 में, महान भारत के दो राज्य असम और मिज़ोरम सामाजिक - राजनीतिक रूप से हिंसात्मक तरीक़े से भीड़ गए थे और वहाँ रक्तचरित्र सतह पर दिखाई देने लगा था। बेचारा लक्षद्वीप शांति से जीवन यापन कर रहा था, वहाँ भी सत्ता ने काँडी लगा दी थी। अखंड भारत के नारे के बीच मेघालय, नगालैंड और दूसरे राज्यों में भी सामाजिक अशांति देखने के लिए मिली थी। और फिर 3 मई 2023 को मणिपुर हिंसा के चलते जल उठा।
इसके बाद अगले 3 दिनों में ही 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी। दिन गुज़रते गए और दोनों समुदायों के बीच यह हिंसा बढ़ती रही। इस संघर्ष में आधिकारिक रूप से 225 से ज़्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं, 1500 से अधिक लोग घायल हैं, लापता लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, सुरक्षा बलों के 16 जवानों की मौत हो चुकी है, 14 हज़ार से अधिक घर गिराए जा चुके हैं और 60 हज़ार से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। पुलिस थानों और सुरक्षा बलों से हज़ारों की संख्या में घातक हथियार लूटे जा चुके हैं।
 
पिछले क़रीब 16 महीनों से चल रही इस अभूतपूर्व हिंसा का प्राथमिक कारण था जनजातीय दर्जा पाने का लक्ष्य। कहते हैं कि कोई भी घटना या दुर्घटना यूँ ही, अचानक ही नहीं होती, किंतु उसके पीछे कई सारी वजहों का ताना-बाना होता है। वास्तव में मणिपुर में यह हिंसा तब से अंदर ही अंदर उबल रही थी जब सीएम बीरेन सिंह ने NRC को लेकर कहा था कि इसे 1961 से लागू किया जाना चाहिए। लाज़मी है कि उत्तर-पूर्व के लिए बीरेन सिंह का यह बयान आरएसएस और बीजेपी के नक़्शेक़दम पर ही दिया गया था। यहाँ भी उस प्राथमिक कारण में अन्य अनेक कारण जाकर मिलें और फिर जातीय हिंसा भड़क उठी।

 
सरकारी-नीजि संपत्तियों की आगज़नी, सरेआम अपहरण, बीच सड़क पर हत्याएँ, महिलाओं और बच्चों के साथ निर्मम अपराध से मणिपुर झुलसता रहा। रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध को रोक देने का दावा करने वाली सरकार ने इज़रायल और हमास के बीच शांति स्थायी करने को लेकर भी गोदी मीडिया के ज़रिए स्वयं को मुख्य पक्ष के रूप में पेश किया। लाज़मी था कि दो देशों के बीच युद्ध रोक देने का यह दावा निहायती हास्यास्पद था और उस फूहड़ दावे के साल भर बाद भी वे देश एक दूसरे के साथ जंग में व्यस्त थें।
 
इधर अपने ही देश भारत के राज्य मणिपुर में पिछले क़रीब 16 महीनों से अभूतपूर्व हिंसा चल रही है! इस बीच अनेक परिवारों को अपने घर छोड़ दूसरे राज्यों में शरण लेनी पड़ी है। नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित हो गए हैं जिनके कार्यकाल में भारत के एक राज्य के सैकड़ों नागरिकों को अपने जीवन, अपनी संपत्ति, अपने परिवार को बचाने के लिए अपने घर, अपने शहर, यहाँ तक कि अपना राज्य तक छोड़ना पड़ गया है!
 
साल भर से इस राज्य में दोनो समुदाय एक दूसरे पर संगठित और भयानक हमले कर रहे हैं! गाँवों के गाँव आग में झुलसे हैं। अनेक सरकारी और निजी जगहों को तोड़ा गया है, घरों को जला दिया गया है। राज्य के कई पुलिस थानों से सरेआम हथियारों की लूट की वारदातें हुई हैं! मंदिरों और चर्चों सहित 400 से अधिक धार्मिक संरचनाओं को बुरी तरह से तोड़ दिया गया है।
इन राक्षसी घटनाओं के बीच एक बेहद शर्मनाक वीडियो भी वायरल हुआ। उस वीडियो में दो महिलाओं को नग्न अवस्था में कई पुरुष लेकर घूम रहे थे और उनका वीडियो बना रहे थे। इसने सरकार के साथ साथ समग्र समाज का घिनौना चेहरा प्रकट कर दिया। मणिपुर महीनों तक जलता रहा, भाषणवीर पीएम मोदी पूरा समय चुप रहे! आख़िरकार इस शर्मनाक वीडियो के सामने आने के बाद उन्होंने थोड़ा बहुत खेद प्रकट किया। दूसरी तरफ़, शर्मसार होने में पीएचडी कर चुका समाज नये संसद भवन, चंद्रयान मिशन-3 को लॉन्च करना, जैसे विषयों पर गौरव कर रहा था!
 
राज्य की बीजेपी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार, दोनों ने इंटरनेट बैन के सिवा दूसरा कोई भी संवेदनशील प्रयास किया हो ऐसी कोई घटना दर्ज नहीं हुई है। राज्य और केंद्र सरकार की निष्क्रियता ने मणिपुर को जलाए रखा हो ऐसा मत बनने जा रहा है या बन भी चुका होगा।

 
पिछले 16-17 महीनों से भारत के प्रधानमंत्री इस संबंध में चुप्पी धारण किए हैं, मानो उनकी यह चुप्पी कोई आभूषण हो! जब अपने ही देश का एक हिस्सा महीनों से जल रहा हो, शांति और सुरक्षा विलुप्त हो चुकी हो, क़ानून और प्रशासन शब्दों का नाम भी कोई लेने वाला ना हो, तब भारत के प्रधानमंत्री का चुप रहना प्रश्न खड़े करता है।
 
3 मई 2023 से लेकर अब सितम्बर 2024 का महीना चल रहा है। क़रीब 16-17 महीने बीत चुके हैं। मणिपुर अब भी जल रहा है। इस अवधि के दौरान इस देश के प्रधानमंत्री देश में 200 से ज़्यादा दौरे कर चुके हैं, अनेक विदेश यात्राएँ कर चुके हैं, किंतु मणिपुर जाने का कर्तव्य नहीं निभा रहे! सोचिए, महान भारत, विश्वगुरु भारत के भीतर उसका अपना एक ख़ूबसूरत राज्य लगभग डेढ़ साल से जल रहा है! उस राज्य की सरकार या केंद्र की सरकार की यह केवल ऐतिहासिक विफलता नहीं है, बल्कि विराट और विकराल संवैधानिक सामाजिक क़ानूनी विफलता है। और ये विफल सरकार बेशर्म होकर दूसरे राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की वक़ालत कर रही है!
 
हिंसा के बीच 19 जुलाई 2023 को जब मणिपुर की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का एक भयावह वीडियो सामने आया तो पूरा देश हिल गया। देश के प्रधानमंत्री मोदी की निहायत घोर कर्तव्यहीनता यह रही कि वे इस घटना पर भी चुप ही रहे! ना ट्वीट किया, ना कोई बयान जारी किया! शिखर घवन के टूटे अँगुठे पर, विराट कोहली के यहाँ संतान के जन्म होने के बाद तुरंत ट्वीट करने की ज़िम्मेदारी याद रखने वाले पीएम मोदी इस भयानक घटना के बाद भी चुप रहे थे!
इस घटना के लंबे समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मॉनसून सत्र से पहले मीडिया से बातचीत में मणिपुर की इस भयावह घटना का ज़िक्र करते हुए कहा कि, "मेरा हृदय पीड़ा से भरा हुआ है।" पीएम मोदी ने कहा, "देश की बेइज़्ज़ती हो रही है और दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा।"
 
महीनों से मणिपुर की अभूतपूर्व हिंसा पर चुप रहने वाले मोदीजी इस अवधि के दौरान 1947 विभाजन के बाद हुई हिंसा के बारे में बोल चुके थे, किंतु अपने शासनकाल के दौरान चल रही इस हिंसा पर वे हिम्मत (या बेशर्मी) के साथ चुप रहे! यह पहली बार था जब प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में जारी हिंसा पर कुछ कहा हो।
 
मणिपुर पुलिस ने उस वीडियो की पुष्टि करते हुए बताया था कि ये महिलाएँ बीती 4 मई 2023 को मणिपुर के थोबल ज़िले में यौन उत्पीड़न की शिकार हुई थीं। महीनों तक चुप रहने के बाद देश के प्रधानमंत्री मोदी दो-तीन वाक्यों में मणिपुर को निपटा कर फिर चुप हो गए!

 
फिर वे अगले साल 2024 में ही मणिपुर पर बोले! विपक्ष और स्वतंत्र पत्रकार समेत सारे बुद्धिजीवी महीनों से पीएम मोदी से माँग कर रहे थे कि वे मणिपुर हिंसा पर कोई बयान दें, किसी सख़्त कदम की घोषणा करें और इस राक्षसी हिंसा को रोके। 2024 के मई महीने में जब एक साल बीत गया तब जाकर पीएम बोले!
 
असम ट्रिब्यून को मई 2024 में दिए गए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "राज्य की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।" इस इंटरव्यू में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे गृह मंत्री अमित शाह, संघर्ष के दौरान राज्य में रहे और इसे सुलझाने के लिए कई पक्षों के साथ 15 से अधिक बैठकें की।
गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी मणिपुर यात्रा के दौरान कुकी सिविल सोसाइटी समूहों से शांति की अपील की थी और उनसे हथियार सरेंडर करने के लिए कहा था। गृह मंत्री अमित शाह ने भारी हिंसा और विपक्षी माँग के बाद मणिपुर का दौरा किया था, हालाँकि हिंसा भड़कने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी राज्य का दौरा नहीं किया। इस दौरान वे अंबानी के यहाँ शादी में भी गए, लेकिन मणिपुर नहीं!
 
सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि मणिपुर में शुरुआती उथल-पुथल के सप्ताह में प्रधानमंत्री मोदी ने दो घरेलू यात्राएँ की थीं। पहली यात्रा कर्नाटक की, और दूसरी राजस्थान की। 6 मई को उन्होंने बेंगलुरु में रोड शो किया था। मई 2023 से अप्रैल 2024 के बीच उन्होंने अलग-अलग राज्यों की लगभग 160 यात्राएँ की थी, जिनमें सबसे ज़्यादा 24 बार वो राजस्थान के दौरे पर रहे। औपचारिक और ग़ैर-आधिकारिक दौरों को मिलाकर पीएम ने 22 बार मध्य प्रदेश का और 17 बार उत्तर प्रदेश का दौरा किया। पीएम मोदी पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश गए, लेकिन मणिपुर नहीं! छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना गए, लेकिन मणिपुर नहीं!
 
2014 में मैं देश नहीं बिकने दूँगा... 2024 में मैं भैंस नहीं बिकने दूँगा! रामायण में कुंभकर्ण भी छह महीने में जाग जाता था, लेकिन मोदीजी डेढ़ साल से मणिपुर जल रहा है, नहीं जाग रहे! मंदिर, मस्जिद, मुग़ल, मटन, मछली, मुसलमान, मंगलसूत्र, मुजरा, की बात करने वाले मोदी म से मणिपुर तक नहीं बोल रहे!
 
मणिपुर तो छोड़ दीजिए, पीएम मोदी मिज़ोरम विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए नहीं गए थे, जो कि मणिपुर से सटा हुआ राज्य है। अब तक क़रीब 200 या उससे भी ज़्यादा घरेलु यात्रा कर चुके पीएम मोदी ने मई 2023 से लेकर मई 2024 तक, एक साल में एशियाई और मध्य पूर्व के 14 अंतरराष्ट्रीय दौरे भी किए, लेकिन मणिपुर नहीं गए!
 
इस बीच बहुत नैतिक दबाव आया तब उन्होंने समय निकाला और एक संसदीय बहस में मणिपुर के ऊपर एक-दो वाक्य बोल दिए। देश के पीएम मोदीजी 2024 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अनेक राज्यों में अनेक जगहों, शहरों में गए, लेकिन मणिपुर नहीं गए! मणिपुर में वे लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं गए थे! जून 2024 के दिन तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद सितंबर के मध्य माह तक वे भारत में अनेक राज्यों के दौरे कर चुके हैं। वे इस दौरान विदेशों में भी जा चुके हैं और वहाँ ड्रम बजाकर वापस भी आ चुके हैं।
पिछले डेढ़ साल में मणिपुर ने बहुत कुछ खो दिया है। सीधी बात है कि इस अभूतपूर्व हिंसा में मारे गए लोगों का सही आँकड़ा कभी नहीं मिल पाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स, सरकारी आँकड़े और ज़मीनी सत्य, सब अलग अलग ही रहेंगे।
 
सैकड़ों लोग मारे गए, जिसमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं। लापता लोगों की तादाद भी अधिक है, जिनके बारे में सरकार और परिवार, किसी के पास जानकारी नहीं है। हज़ारों घर जला दिए गए, बहुत बड़ी संख्या में लोगों को बेघर होना पड़ा। नृशंस हत्याएँ हुईं, शर्मसार करने वाले महिला अपराध हुए। कारोबार और ज़िंदगियाँ ठप्प हो गए। हज़ारों घंटे के इंटरनेट बैन के सिवा यहाँ इस हिंसा और तनाव को ख़त्म करने का फॉर्मूला अब तक सरकारें नहीं निकाल सकी हैं!

 
केवल विपक्षी पार्टियाँ ही नहीं, देश और समाज की चिंता करने वाले हर नागरिक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मणिपुर से मुँह फेर लेने की आलोचना करने का अधिकार है। प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में घूमकर रूस-यूक्रेन लड़ाई रुकवाने की पहल जैसे कार्यक्रम चलाने का दावा करते रहे और इस बीच पिछले 16 महीने से आंतरिक हिंसा से जूझ रहा मणिपुर एक बार फिर से भभक उठा है।
 
पीएम मोदी की इस ऐतिहासिक विफलता का नतीजा यह है कि अब तो भारत के एक राज्य के राजभवन और मुख्यमंत्री निवास की रखवाली भी मुश्किल होने लगी है। कश्मीर के ज़रिए हिन्दू-मुसलमान की राजनीति करते करते अब मणिपुर के बच्चे खुलकर आंदोलन पर उतरे हैं और उन बच्चों की आड़ में बम और रॉकेट वाले आतंकी इरादों के लोग भी आ गए हैं। राजभवन जैसी इमारत पर घातक हथियारों के ज़रिए निशाना साधा जाने लगा है!
 
मुख्यमंत्री अपने यहाँ तैनात एजेंसियों की कमान अपने हाथ में माँग रहे हैं, उधर सरकार के लोग सुरक्षा की माँग करने लगे हैं। शासक दल के नेता और मंत्री-विधायक ख़ास तौर से गुस्से का निशाना बन रहे हैं। मणिपुर सरकार ने सारे स्कूल-कॉलेज बंद करने का आदेश दिया है, लेकिन सारे बच्चे सड़कों पर जंग लड़ रहे हैं।
अभी तक प्रधानमंत्री मोदी को हिंसा, आगज़नी, विस्थापन का बुरा दौर झेलने वाले इस अभागे राज्य में जाने का और लोगों से बात करने का वक़्त नहीं मिला है! जब बहुत हंगामा मचा तब उन्होंने एक भाषण भर दिया। इसके अलावा अब तक ऐसी कोई बड़ी पहल नहीं हुई है जिससे पूर्वोत्तर का यह राज्य शांत हो। वह महात्मा गाँधी और सरदार पटेल थे, जो उस ज़माने में बिना किसी सुरक्षा के, भारत के किसी भी हिस्से में हिंसा बंद कराने तुरंत पहुँच जाया करते थे। तभी तो वे नायक थे, महज़ चुनावी राजनीति के नेता नहीं।
 
लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्वोत्तर में भाजपा को भारी नुक़सान होने के बाद भी न केंद्र सरकार और न ही भाजपा की तरफ़ से कोई पहल हुई है। उलटा, सोशल मीडिया पर आरएसएस और मोदी समर्थकों की तरफ़ से यह अभियान चला कि अगर भाजपा सरकार ने कुकी मैतेई विवाद पर अदालत में वह विवादास्पद पोजीशन न ली होती तो पूरे पूर्वोत्तर को ईसाई बनाने का विदेशी षडयन्त्र जाने कहाँ तक पहुँच गया होता।
 
सब जानते हैं कि पिछले 16 महीनों से चल रही मणिपुर की अभूतपूर्व हिंसा पर केंद्र सरकार की तरफ़ से सही अदालती पैरवी होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई है। अपने समर्थकों के द्वारा सोशल मीडिया पर अभियान चलाना किसी प्रधानमंत्री या किसी सरकार का कर्तव्य नहीं है। अब तो मोदीजी जैसे राजनीतिक ख़िलाड़ी को समझना चाहिए कि इस तरह की राजनीति के चलते ही वे बहुमत खो चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री द्वारा अपनी तरफ़ से मसला सुलझाने के गंभीर प्रयास करना ही एकमात्र समाधान है, जो हो नहीं रहा।
 
मणिपुर के मुख्यमंत्री के हाथों में वैसे भी कुछ नहीं है। सब जानते हैं कि वहाँ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री चलते हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा भारत के लगभग तमाम बीजेपी शासित राज्यों में राज्य के मुख्यमंत्री-संत्री नहीं, बल्कि मोदी-शाह ही सब कुछ हैं, यह सारे विश्लेषक मानते-बताते हैं।
 
किंतु अल्पमत में आने के बाद भी नरेंद्र मोदी अपनी उस विवादित राजनीति को बदल नहीं रहे। उपरांत वे तीसरी पारी में कुछ ज़्यादा ही जोर-शोर से विदेश यात्रा करने में लगे हैं। सत्ता नियंत्रण, आत्मप्रशंसा, परनिंदा और ज़िद के सिवा अब भी पीएम मोदी के पास अपनी राजनीति में कुछ नहीं है।
देश के प्रधानमंत्री भारी दबाव के बाद पिछले 16 महीनों में जब दूसरी बार मणिपुर पर कुछ बोले तो इतना बोले कि राज्य की स्थिति में काफी सुघार हुआ है। और इधर हिंसा की ताजा घटनाएँ दोबारा शुरू होती दिख रही हैं! अचानक जिस तरह से हिंसा फूटी है, प्रदेश सरकार ही नहीं, वहाँ तैनात केन्द्रीय एजेंसियों के लोग भी इस हिंसा को संभ्हाल नहीं पाए हैं। राज्य से लेकर केंद्र सोते हुए पाए गए हैं।
 
दोबारा जो हिंसा मणिपुर में शुरू हुई, उसमें बड़ी संख्या में तैनात केन्द्रीय एजेंसियों के लोगों ने भी राजभवन से अपने पैर वापस खींच लिए थे! ताज़ा हिंसा में भी लोग मारे गए हैं। "सब कुछ नियंत्रण में है" जैसी भावना के साथ देश के प्रधानमंत्री ने बयान दिया था, और अब वहाँ हिंसा में रॉकेट, ड्रोन और बमों का इस्तेमाल हो गया है! केंद्र और राज्य सरकार की निष्क्रियता और नाकामी ने इस स्थिति का निर्माण कर दिया है।
 

अभी भी सेना और सुरक्षा बलों से लूटे गए हथियार पूरी तरह रिकवर नहीं हुए हैं। चिंता की ख़ास बात राजधानी के उपद्रव के साथ ही जिरीहम ज़िले का हिंसा का केंद्र बनाना है, जहाँ मैतेई, कुकी, बंगाली, नेपाली, नगा और अन्य समुदायों के लोग साथ साथ रहते हैं। यह ज़िला पहले भी काफी हिंसा देख चुका है और नई घटनाएँ बताती हैं कि 16 महीने बाद भी इन समूहों के बीच अविश्वास भाव ही नहीं, शत्रु भाव बरकरार है।
 
केंद्र और राज्य सरकार के बीच भी अविश्वास सरीखी स्थिति है। इस बार की हिंसा के बाद विधायकों और मंत्रियों की टोलियाँ मुख्यमंत्री से मिली और फिर सब मिलकर राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य के पास पहुंचे और उनसे राज्य में तैनात लगभग एक दर्जन केन्द्रीय एजेंसियों की कमान मुख्यमंत्री को सौंपने की माँग की। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का कहना था कि ऐसे अधिकार के बगैर वे प्रशासन से कुछ भी करा पाने की स्थिति में नहीं हैं।
 
सोचिए, पिछले क़रीब 16 महीनों से यह राज्य धू धू कर जल रहा है! लोगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के ख़िलाफ़ नाराज़गी है। बावजूद इसके केंद्र की मोदी सरकार बीरेन सिंह को गद्दी पर रखकर अपनी राजनीति चला रही है, जो बहुसंख्यक मैतेई को अपने पक्ष में रखने की है। परंतु ऐसा करके भी बीजेपी को कोई राजनैतिक लाभ नहीं हुआ है। उलटा भाजपा राज्य की दोनों लोकसभा सीटें हार गई।
अपने तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठे नरेंद्र मोदी के पास क्या ऐसी समस्याओं का हल निकालने का कौशल नहीं है? क्या वो हल निकालने में ख़ुद को अक्षम महसूस कर रहे हैं? या फिर मणिपुर को शांत करने की उनकी नीयत ही नहीं है? ऐसे मसलों के विशेषज्ञ बताते दिख जाते हैं कि मणिपुर की समस्या के पीछे भले ही सीएम बीरेन सिंह की कुछ कमज़ोरियाँ रही हों, लेकिन इस समस्या के असली खिलाड़ी नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं।
 
राज्य के दो प्रमुख समुदायों के बीच परस्पर अविश्वास का भाव और राज्य सरकार के प्रति अविश्वास का भाव जैसी दोहरी समस्या शुरू से सभी को समझ आ रही थी। अदालती फ़ैसले ने इसे और बढ़ाया। क़ायदे से राज्य सरकार को आगे बढ़कर अपने प्रति अविश्वास दूर करने के साथ सभी समुदायों में मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए था। ऐसा कुछ नहीं हुआ और राज्य सरकार पूरी तरह एक पक्ष में दिखाई देने लगी।
 
ऐसी स्थिति में 'बड़े भाई' अर्थात केंद्र सरकार को ऐसी कोशिश करनी चाहिए थी। लेकिन नरेंद्र मोदी की कार्यशैली ऐसी बन गई है कि वे कुछ चीज़ों पर ज़िद पाल लेते हैं। समस्या के समाधान को तो छोड़ ही दीजिए, पीएम मोदी अपनी जुबान खोलने से भी परहेज़ करते हैं।
 

उनके सहायक अमित शाह ने ज़रूर शुरू में क़ानून-व्यवस्था के नाम पर कुछ सक्रियता दिखाई। लेकिन मुश्किल यह है कि यह क़ानून-व्यवस्था भर का मसला नहीं है।
 
3 मई को हुई भीषण हिंसा के अगले ही दिन 4 मई को कुलदीप सिंह को मणिपुर सरकार का सुरक्षा सलाहकार बना दिया गया। 31 मई आते-आते राज्य की एकीकृत कमान कुलदीप सिंह को दे दी गई। एकीकृत कमान देने का यह आदेश भी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह से लिखवाया गया। अगले ही दिन 1 जून को केंद्र द्वारा राज्य का डीजीपी और मुख्य सचिव बदल दिया गया।
 
3 जून को गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में जाँच आयोग का गठन किया गया। इसे मणिपुर में विभिन्न समुदायों के सदस्यों को निशाना बनाकर की गई हिंसा और दंगों के कारणों और प्रसार के संबंध में जांच करने का काम सौंपा गया।
यह बड़ी अजीब घटना थी जहाँ बिना किसी राष्ट्रपति शासन के राज्य के मुख्यमंत्री से एकीकृत कमान ले ली जाए! साथ ही 1 साल से ऊपर हो चुका है और यह कमीशन अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं दे सका है। हाल ही में इस कमीशन को रिपोर्ट सौंपने के लिए दिए गए समय को नवम्बर 2024 के लिए बढ़ा दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट एक यौन उत्पीड़न के मामले में मात्र कुछ दिनों के लिए तथाकथित 'एक्शन मोड' में आया था, तो दूसरी तरफ़ जिस समिति को ज़ल्द से ज़ल्द जाँच सौंपनी चाहिए थी वो वक़्त बढ़ाती जा रही है।
 
16 महीनों में मणिपुर की स्थिति में रत्ती भर सुधार नहीं हुआ है। हिंसा के ताज़ा दौर में पत्रकारों के ऊपर, उनके घरों के ऊपर सौ-सौ राउंड फ़ायरिंग की जाती है! सेना के मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री के सेवानिवृत्त हवलदार और एक महिला को पीट-पीट कर मार दिया जाता है। सोते हुए लोगों को गोली से मार दिया जा रहा है! इंटरनेट बंद कर दिया गया है, कर्फ़्यू से शहर साँस नहीं ले पा रहे हैं, बच्चों और महिलाओं की दुर्दशा के बारे में शब्दों से बयान करना मुश्किल है।
 
ताज़ा हिंसा के बाद मीडिया में रिपोर्ट आईं कि मणिपुर में ड्रोन से बम गिराए जा रहे हैं और उपद्रवी रॉकेट दागकर लोगों को निशाना बना रहे हैं! मोईराँग टाउन और उसके आसपास के क्षेत्र में अगस्त के बाद से तमाम रॉकेट दागे गए हैं।

 
इस इलाक़े में ही एक शरणार्थी कैम्प भी है जिसकी सुरक्षा को लेकर ख़तरा उत्पन्न हो गया है। 6 सितंबर को दागे गए एक रॉकेट ने मोईराँग में मणिपुर के पूर्व और सबसे पहले मुख्यमंत्री कोइरांग सिंह के घर को ध्वस्त कर दिया। इस हमले में मुख्यमंत्री आवास में रहने वाले एक 70 वर्षीय वृद्ध की मौत हो गई और पूर्व सीएम की 13 वर्षीय पर-पोती घायल हो गई।
 
आपसी हिंसा, सेना के हथियारों की लूटपाट और ड्रोन बमों से होते हुए मणिपुर के हिंसक संघर्ष में अब रॉकेट भी छोड़े जा रहे हैं! यद्यपि सुरक्षा बल इन रॉकेट्स को मिलिट्री ग्रेड नहीं मान रहा लेकिन लगभग 10 फ़ीट लंबा रॉकेट जो घरों को ध्वस्त कर सकता हो, जिसकी रेंज लगभग 6 किमी हो, निश्चित रूप से ख़तरे की घंटी है। यहाँ संविधान, क़ानून और सरकार जैसी चीज़ें दिखाई नहीं दे रही।
मणिपुर समस्या के संदर्भ में पीएम मोदी की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह बात तथ्य बता रहे हैं। एक तो वे इस अभूतपूर्व स्थिति पर बोल नहीं रहे! बोलते हैं तो वे जो कहते हैं उससे बिलकुल उलटी स्थिति मणिपुर में नज़र आती है।
 
जब मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो उन्होंने अपनी सरकार के पहले 100 दिनों का कार्यक्रम बनाया। इस कार्यक्रम में मणिपुर हिंसा भी शामिल की गई थी। कहा गया कि इसे 100 दिनों के अंदर सुलझा लिया जाएगा। 100 दिनों की यह मियाद 16 सितंबर को समाप्त हो चुकी है। उलटा वहाँ हिंसा का नया दौर शुरू होता दिख रहा है।
 
हाल में जब केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मणिपुर पर सवाल पूछा गया तो बजाय इसका जवाब देने के, बजाय कोई ठोस नीति और राहत की बात बताने के उन्होंने कांग्रेस के कार्यकाल में हुए दंगों की बात करना शुरू कर दी! उनकी बातों से स्पष्ट था कि सरकार मणिपुर के मुद्दे को मीडिया से दूर रखना चाहती है और मेनस्ट्रीम मीडिया सरकार की इस चाहत को बख़ूबी निभा भी रहा है।
 
मणिपुर की सिविल सोसाइटी लगातार यह बात कह रही है कि राज्य में वास्तविक सत्ता केंद्र सरकार के पास है। यह बात तब और भी पुष्ट हो जाती है जब ऐसी ख़बरें सामने आती हैं कि सीएम बीरेन सिंह राज्यपाल से मिलकर यह कह रहे हैं कि एकीकृत कमान उन्हें वापस सौंपी जाए। मणिपुर को लेकर कहा जा रहा है कि वहाँ चाहे असम रायफ़ल्स हो या सीआरपीएफ़, कोई सीएम की बात नहीं मानते। कहा-लिखा मिल जाएगा कि मुख्यमंत्री से ज़्यादा विरोध राज्य में सुरक्षा सलाहकार का हो रहा है, जिन्हें संघर्ष शुरू होते ही कमान सौंप दी गई थी।
 
वह मणिपुर, जहाँ इरोम शर्मिला ने 16 सालों लंबा अकल्पनीय और अद्भुत आंदोलन किया, जो मणिपुर की आयरन लेडी के रूप में जानी गईं, जिसने अपनी ज़िंदगी के वो ख़ूबसूरत पल आम जनता के लिए कुर्बान किए, वह मणिपुर जातीय संघर्ष और क्रूर राजनीति के मध्य कराह रहा है।
 
वर्तमान यथार्थ यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कुशासन का जो मॉडल सामने आया है वह अप्रत्याशित है। बिना सलाह-मशविरा किए, बिना सोचे-समझे, किसी विशाल समुदाय, किसी राज्य या पूरे देश को प्रभावित करने वाले फ़ैसलों को अचानक लागू करना, ग़लती करने के बाद ज़िद पर अड़ जाना मास्टर स्ट्रोक नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक भारत पर शासन करने का निहायत ग़लत रास्ता है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)