डिजिटल आधुनिक नारा है और ख़ुद को सर्वज्ञानी मानने वाले हम नागरिक डिजिटलपंति की समस्या से ग्रसित हैं। इस नारे
की ख़ुशक़िस्मती यही है कि डाटा हैकिंग से लेकर डिजिटल क्रैश तक, सायबर हमलों से लेकर
ऑनलाइन थ्रेट्स तक, हम इन चीज़ों को गंभीरता से नहीं लेते।
डिजिटल, कैशलेस, प्लास्टिक करेंसी, इलेक्ट्रॉनिक इंडिया,
डाटा हैकिंग, बैंकिंग वगैरह को लेकर हम श्रृंखला को आगे बढ़ाते हैं। कुछ विवादास्पद
मामलों को देखते हैं, जिसके बारे में कुछ लोग कह सकते हैं कि बड़े बड़े देशों में ऐसी
छोटी छोटी बातें होती रहती हैं! सरकारें आती और जाती
रहती हैं, किंतु समस्याएँ अपना रूप नहीं बदलती। क्योंकि हर दौर में ऐसे लोग होते हैं, जो
बड़े देशों की छोटी बातें देखा नहीं करते।
हमारे यहाँ डिजिटल
इंडिया आज से नहीं लेकिन बरसों से चला आ रहा नारा और प्रयास है। इन नारों या प्रयासों
के बाद ज़मीनी तौर पर जो दिक्कतें या चौंकाने वाली हक़ीक़तें दिखती हैं, वो सरकारी
दावों का सिरे से छेद उड़ाती हैं। इसे केवल तत्कालीन सरकार से जोड़ कर ना देखें। सरकारी
कामकाज को डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से करने के प्रयास या इससे संबंधित योजनाएँ
बहुत अरसे से चली आ रही हैं। सालों पुरानी इस प्रक्रिया के बावजूद जब कई जगहों पर बेसिक्स
ही कमज़ोर दिखे, तब उसे समझने में बुराई नहीं हैं।
जिनसे सबसे ज़्यादा
जोखिम है, जो ब्लैक लिस्टेड हैं, उन्हीं को भारत का बाज़ार देने में सरकारों
को कौन सा देशहित दिखाई देता होगा?
जो प्लेटफॉर्म, संगठन या कंपनियाँ
जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं, जो ब्लैक लिस्टेड हैं, उन्हीं को हमारी सरकारें भारत का बाज़ार क्यों दे देती
होगी? सरकारों को इसमें कौन सा देशहित दिखाई देता होगा? कांग्रेस हो या बीजेपी, सबने यही किया है।
जो कहते थे कि हम नहीं करेंगे, उन्होंने तो ज़्यादा ही किया है!
स्वदेशी के नारों में
भारत को उलझाकर विदेशियों के हाथों में बागडोर दे देने की परंपरा ग्लोबलाइजेशन की देन
है, जिससे बचने का किसी
सरकार ने प्रयास नहीं किया। भारत का आधा से ज़्यादा एटीएम बाज़ार विदेशी कंपनी के हाथों
में है। आधार में भी कुछ जगहों पर यही कहानी है। भारत की सैकड़ों सरकारी सेवाएँ, सैकड़ों सार्वजनिक
कार्यक्रम, सैकड़ों सरकारी संसाधन, सरकारी उपकरण विदेशी कंपनियों के हाथों में हैं। जियो के पीछे भी चीनी कंपनी थी
और है। टूजी के घोटाले की बात करते करते हम मुफ़्त में 3जी और 4जी लुटा चुके हैं।
टेलीकॉम सेक्टर में जिस पारदर्शिता की या नीति-नियमों की बातें 2जी के समय होती थीं, वो सारी बातें अब
नहीं होती।
कुछ ख़बरें बताती हैं
कि अब देश में 5जी आने वाला है, जिसका ज़िम्मा Huwai कंपनी को दिया जाएगा। यह वही कंपनी है जो पश्चिमी देशों में प्रतिबंधित है! अपने काम से बदनाम इस चीनी कंपनी को यह काम दिया जाएगा, लेकिन झालर और पटाखे
पर चीन का विरोध जारी रहेगा! चीन के साथ वैसे
भी पंगा चल रहा है, ऐसे में यह जानकारी बाहर आएगी तब कंपनी को हटा दिया जाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि अभी ये क्यों शामिल है?
आगे जब सरहद पर कुछ
मसला होगा तब ऐसी चाइनीज़ कंपनियों को हटाकर देशभक्ति का प्रदर्शन भी किया जाएगा और
फिर समय बीतने के बाद ऐसी कंपनियाँ चुपके चुपके लौट भी आएगी। चीन के रॉ-मटेरियल का
भारत में जो आयात है उसका 20 से 25 फ़ीसदी अकेला गुजरात के हिस्से आता है यह गौर करने लायक तथ्य नहीं है क्या? कांग्रेस से लेकर
बीजेपी तक, सभी की सरकारें विदेशी कंपनियों को क्यों हार पहनाती हैं इस सवाल से गंभीर सवाल
यही है कि बदनाम या ब्लैक लिस्टेड कंपनियों को ही क्यों चुना जाता है?
2016 का वो डाटा हैकिंग...
जिसमें लाखों लोगों के कार्ड कर लिए गए थे हैक
क़रीब 32 लाख लोगों के डेबिट
कार्ड की जानकारियाँ बैंकिंग सिस्टम से हैक करके चुरा ली गई! कहा गया कि चीन के हैकरों ने ये काम किया था। एसबीआई, आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, यस और एक्सिस बैंक
के एटीएम डाटा हैक कर लिए गए।
अजीब तो यह था कि यह
डाटा चोरी मई 2016 से लेकर जुलाई 2016 तक हुई थी, लेकिन इसकी ख़बर ग्राहकों को अक्टूबर 2016 में लगी!!! उन्हें पता ही नहीं
था कि उनके डाटा चुरा लिए गए हैं!!! इसके बाद बैंकों ने
पीन नंबर बदलने के और कार्ड ब्लॉक करने के अपने कदम उठाए। सवाल तो यह भी उठना चाहिए
था कि जब डाटा लीक महीनों पहले हो चुका था तो अक्टूबर माह में कदम क्यों उठाए गए? वो भी तब जब ग्राहकों
तक यह बात पहुंची। सवाल यह भी उठा कि यह ख़बर ग्राहकों तक दूसरे सूत्रों से क्यों पहुंची? जी हां, उपभोक्ताओं के डाटा
हैक हो चुके हैं यह ख़बर बैंक ने नहीं दी थी, बल्कि किसी दूसरे मंच से आई थी और फिर
बैंक ने स्वीकार किया कि जी ऐसा हुआ था!
यह मामला ज़्यादा गंभीर
हो सकता था, लेकिन 'डिजिटलपंति की दीवानगी' के आगे हैकिंग के ख़तरे दम तोड़ते नजर आए। बैंकिंग सेक्टर और सरकार ने ये माना
भी कि 32 लाख कार्ड हैक कर के डाटा चुराये गए हैं। मास्टर कार्ड और रुपे कार्ड के आँकड़े
बताए गए और समय बीता तो भारत का अब तक का सबसे बड़ा डाटा हैकिंग मामला बारिश में धुल
गया!
2019 में तो एसबीआई अपने एक सर्वर में पासवर्ड लगाना ही भूल गया था!!! भगवान जाने कितने उपभोक्ताओं के डाटा किसीने उड़ा लिए होंगे।
लाखों लोगों के कार्ड
हैक कर लिये जाते हैं तो दिनों तक कुछ नहीं, वहीं एक डिजिटल कंपनी उपभोक्ताओं के विरुद्ध शिकायत करती है और मामले
में सीबीआई तक का नाम आ जाता है
अक्टूबर 2016 में क़रीब 32 लाख लोगों के डेबिट
कार्ड हैक करने का मामला सामने आया। मामला अक्टूबर माह में सामने आया, जबकि हैकिंग मई 2016 से जुलाई 2016 के दौरान हुआ था! यानी कि उपभोक्ताओं को उनके डाटा हैक हो चुके हैं उसका पता महीनों बाद चला! उपरांत यह जानकारी उपभोक्ताओं को किसी दूसरे सूत्रों से पता चली, बैंकिंग सिस्टम से
नहीं! वहीं दिसम्बर 2016 में ऐसा ही एक मामला
सामने आया। लेकिन इस बार मामला थोड़ा उलट गया। इस बार डिजिटल सेवा प्रदान करने वाली
एक कंपनी ने शिकायत की। शिकायत में कंपनी ने कहा कि उसके साथ कुछ उपभोक्ताओं ने घोखाखड़ी
की हैं। शिकायत करने वाली कंपनी थी पेटीएम।
अब तक उपभोक्ता शिकायत
किया करते थे, किंतु अब की बार कंपनी ने शिकायत की। किंतु दोनों मामलों में प्रक्रिया
का फर्क देख लीजिए। इस बार मामला बिलकुल उलट गया। पेटीएम कंपनी ने 48 ग्राहकों के ख़िलाफ़
घोखाखड़ी की शिकायत की। चौंकाने वाली बात यह नहीं थी। बात तो यह थी कि सरकार ने त्वरीत
कार्रवाई करते हुए दूसरे दिन ही पेटीएम की शिकायत पर जाँच सीबीआई तक को सोंपने की हिलचाल
तेज़ कर दी।
यानी कि इसी साल एक
तरफ़ भारत का सबसे बड़ा बैंकिंग फ्रॉड हुआ था। लाखों उपभोक्ताओं के डाटा चुरा लिए गए
थे। किंतु उस मामले में जाँच का कोई कदम उठाया गया हो ऐसी कोई ख़बर दिसम्बर तक नहीं
थी। लेकिन यहाँ दूसरे दिन ही 48 ग्राहकों वाली शिकायत सीबीआई को दे दी गई!
इस मामले को किस नजरिए
से देखना है यह आप पर निर्भर है। लोग कहेंगे कि कौन से नजरिए से देखे, जबकि उनका सब कुछ
किसी और पर निर्भर है। वे सरकार बना कर सरकार पर निर्भर है, सरकार नागरिकों को
सेवाएँ देने के लिए कंपनियों पर निर्भर है। निर्भर-निर्भर बहुत हो चुका। इसीलिए तो
कहा कि किस नजरिए से देखना है यह आप पर... सॉरी... निर्भर है। हो सकता है कि उन लाखों
लोगों से ज़्यादा ये 48 लोग महत्वपूर्ण हो!
एक करोड़ बैंक खातों
का डाटा लीक, 20 पैसे प्रति कस्टमर के हिसाब से बेचा?
14 अप्रैल 2017 के दिन यह ख़बर कई वेबसाइट पर दौड़ती रही। टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क ने लिखा कि देश
के एक करोड़ लोगों के बैंक खातों की जानकारी 'ऑन सेल' है। बैंक अकाउंट्स से जुड़ी सभी जानकारी सेल वाले रेट से भी सस्ते में उपलब्ध
है। पुलिस जाँच में पता चला कि 10 या 20 पैसे में आपके बैंक खाते से जुड़ी जानकारियाँ बेची जा रही हैं। कई प्रमुख न्यूज़
साइट में ऐसी रपटें छपी थीं।
मीडिया ख़बरों की माने
तो, दिल्ली के ग्रेटर
कैलाश में रहने वाली 80 साल की एक महिला के मामले की जाँच करते हुए पुलिस को यह जानकारी मिली थी। महिला
के क्रेडिट कार्ड से 1.46 लाख रुपये उड़ा लिए गए थे। इसी केस की जाँच करते हुए पुलिस ने बैंक अकाउंट्स की
जानकारी बेचने वाले मॉड्यूल का पर्दाफाश किया। पुलिस को पता चला कि इस मॉड्यूल में
बैंक में काम करने वालों और कॉल सेंटर्स से जानकारी निकलवाई जाती थी और फिर उसे बेच
दिया जाता था।
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली
के डीसीपी ने दावा किया कि मॉड्यूल के मास्टरमाइंड को गिरफ़्तार करने के बाद पुलिस
ने एक करोड़ लोगों के बैंक अकाउंट्स की जानकारी रिकवर की थी। सस्ते रेट में बेची जाने
वाली जानकारी में कार्ड नंबर, कार्ड धारक का नाम, जन्म तिथि और मोबाइल नंबर भी थे। यह सारा डाटा कई कैटेगरीज़ में बँटा हुआ था, जिसका कुल साइज़ 20 जीबी से ज़्यादा था।
दावा तो यहाँ तक हुआ
कि गिरफ़्तार किया गया शख़्स वह डाटा बल्क में बेचता था। 50 हज़ार लोगों का डाटा
बेचने के वह 10 से 20 हज़ार लेता था। बताया गया कि आरोपी ने डाटा मुंबई के एक सप्लायर से ख़रीदा था।
डाटा ख़रीदने वाले इसकी मदद से बैंक के कर्मचारी बन लोगों को फ़ोन करते थे और उनको
सीवीवी नंबर और ओटीपी शेयर करने को कहते थे। जिसकी मदद से वह बैंक अकाउंट से पैसे निकालने
में सफल हो जाते थे। किसी भी बैंक अकाउंट धारक की सारी डिटेल्स होने के कारण लोग इस
जाल में फँस जाते थे। इसके अलावा वह रिवॉर्ड पॉइंट्स, कार्ड ब्लॉक जैसे
बहाने बना कर पासवर्ड निकलवा लेते थे।
स्मार्ट परिवहन सेवा
में कुछ ज़्यादा ही स्मार्ट तरीक़े आजमाए जाते हैं?
यह मामला है अहमदाबाद
नगर निगम (एएमसी) से जुड़ी शहरी बस परिवहन सेवा एएमटीएस तथा बीआरटीएस का। स्थानिक अख़बार
में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार नगर निगम ने बीआरटीएस-एएमटीएस को स्मार्ट बनाने हेतु
आईटीएमएस (इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम) प्रोजेक्ट को लागू करने तैयारियाँ
दिसम्बर 2016 के दौरान शुरू कर दी। मुसाफ़िरों के लिए कॉमन कार्ड पेमेंट सिस्टम के साथ मोबाइल
ऐप लॉन्च करने की बातें सामने आई। मुसाफ़िर को बीआरटीएस तथा एएमटीएस दोनों में टिकट
के लिए स्मार्ट कार्ड या मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करना था। इस मोबाइल ऐप में ई-वोलेट
का लिंक पेटीएम से जोड़ा जाना था ऐसी ख़बरें छपी।
लगा कि भारत में शायद
पेटीएम ही एकमात्र विकल्प होगा और इसीसे आत्मनिर्भर बना जाता होगा! एसबीआई तथा भारत के तमाम राष्ट्रीय बैंकों में जो ई-वोलेट सेवाएँ दी जाती हैं
उस पर स्वयं सरकार को ही भरोसा नहीं होगा। या फिर शायद ऐसा कोई नियम होगा कि राष्ट्रीय
बैंकों के ई-वोलेट वाले विकल्प सरकार इस्तेमाल नहीं कर सकती। जैसे बीएसएनल को निजी
कंपनियों के सामने बौना सा कर दिया गया है, वैसी स्थिति राष्ट्रीय बैंकों के ई-वोलेट की हो जाए तो एकसमान नजरों वाला कॉन्सेप्ट
फलीभूत हो जाए ऐसी कोई योजना होगी!
रिपोर्ट के अनुसार
एएमटीएस व बीआरटीएस, इन दोनों की सेवा इस्तेमाल करने वाले मुसाफ़िरों की संख्या क़रीब 8 लाख थी। यह रोजाना
आँकड़ा था। इन 8 लाख उपभोक्ताओं में से जो भी स्मार्ट नागरिक स्मार्ट सेवाएँ इस्तेमाल करेगा उन्हें
पेटीएम संबंधित ई-वोलेट रखना ज़रूरी था। भारत के सैम पित्रोदाजी ने ई-वोलेट का कॉन्सेप्ट
दुनिया को दिया। किंतु उनके ही देश में नागरिकों को दूसरे देशों की कंपनी का ई-वोलेट
रखना पड़ रहा हो उस बात से स्वदेश वाला संस्कार या आत्मनिर्भरता वाला नारा चर्चा में
आना चाहिए था।
रिपोर्ट की माने तो
नगर निगम इसके लिए 225 करोड़ का ख़र्च करने वाला था। ख़र्च किसके पैसे से होना था वो सभी जानते ही होंगे।
और इससे पेटीएम लाखों का मुनाफ़ा कमाने वाली थी। हमारे ही बैंकों के ई-वोलेट मुँह तकते
रह गए! इसे लेकर आप भारत माता की जय एकाध बार बोल
ही सकते हैं। पेटीएम जैसी निजी कंपनी को, सरकारी बैंकों के ई-वोलेट होने के बाद कौन सी पारदर्शी प्रक्रिया के बाद जोड़ा
गया होगा इसके लिए तो हम सबको विशेष ज्ञान और विशेष राजनीतिक स्पष्टीकरणों का सामना
करना पड़ेगा।
प्रोपर्टी टैक्स के
नाम पर पेटीएम को मुनाफ़ा करवाने के प्रयास?
गुजरात के स्थानिक
अख़बार में 28 दिसम्बर के दिन छपी एक ख़बर की माने तो, अहमदाबाद नगर निगम को कैशलेस करने के नाम पर प्रोपर्टी टैक्स तथा अन्य टैक्स के
भुगतान में पेटीएम को मुनाफ़ा कराने का खेल चल रहा था।
रिपोर्ट की माने तो, एएमसी (अहमदाबाद नगर
निगम) में पेटीएम ने अपनी और से प्रस्ताव भेजा था। जिसमें प्रोपर्टी टैक्स अगर पेटीएम
से भुगतान किया जाता है तो पेटीएम को डेढ़ फ़ीसदी कमीशन देने का प्रस्ताव रखा गया।
कंपनी के इस प्रस्ताव को संबंधित विभाग के पास भेज दिया गया। लिखा गया कि पेटीएम को
सेट करने के लिए कुछ अधिकारी प्रयास कर रहे थे और इन प्रयासों के सामने एएमसी के बड़े
लोग चुप थे। सरकारी संस्थान में निजी कंपनी के प्रस्ताव का आना ही संदिग्ध माना जाना
चाहिए था, जबकि अन्य सरकारी ई-वोलेट उपलब्ध थे। अगर पेटीएम जैसी निजी कंपनी का प्रस्ताव
आया भी था, तो उसे विचार के लिए आगे बढ़ाना संदेह को और ज़्यादा गहरा बना गया।
कश्मीर के पहले कैशलेस
गाँव की ज़मीनी हक़ीक़त
15 दिसंबर 2016 को बडगाम के सरकारी वेबसाइट पर "लोनउरा गाँव को पहला 'कैशलेस' गाँव" घोषित
करने की ख़बर दी गई। इसमें यह भी कहा गया कि गाँव के 13 व्यापारियों को ईपीएस
(इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट सिस्टम) के तहत लाया गया, जबकि 150 परिवारों को ईपीएस की ट्रेनिंग दी गई। ज़िला बडगाम के लोनउरा गाँव को जम्मू-कश्मीर
का पहला 'कैशलेस' गाँव क़रार दिया गया। लोनउरा श्रीनगर से क़रीब 35 किलोमीटर दूर है।
बीबीसी इंडिया मेंप्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ये सरकारी घोषणा खोखली थी। बीबीसी ने जब गाँव के दुकानदारों
से पूछा कि आपके गाँव को कैशलेस का दर्ज मिला है, तो वे हँसने लगे। फिर कहा, "हमारे यहाँ तो एटीएम ही नहीं है। पेटीएम हम जानते नहीं कि वह क्या होता है। बैंक
नहीं है। बिजली दो-तीन घंटे के लिए ही आती है।"
हालाँकि दुकानदारों
ने यह ज़रूर बताया कि पेटीएम चलाने की ट्रेनिंग देने कुछ लोग आए थे। वैसे यह चीज़ भी
विवादित रही। पेटीएम एक निजी कंपनी थी, जिसके लिए सरकारी ट्रेनिंग देना संदिग्ध सा बना। जबकि अन्य सरकारी ऐप या ई-वोलेट
उपलब्ध हैं। 23 वर्षीया अनीस आफ़रीन का कहना था वह तो आज सुन रही हैं कि पेटीएम जैसी कोई चीज़
है। लिहाजा गाँव के लोगों को तो ये पता ही नहीं था की पेटीएम निजी कंपनी है। उन्हें
शायद यह भी मालूम नहीं होगा कि इसके सामने सरकारी ऐप या ई-वोलेट भी होते हैं और सरकार
अपने स्तर पर पेटीएम के लिए तालीमी कार्यक्रम करे वो चीज़ विवादास्पद होती है।
लोनउरा गाँव के दुकानदार
ने कहा कि उन्हें पेटीएम की ट्रेनिंग देने कुछ लोग आए थे। हालाँकि ट्रेनिंग भी नाम
की ही, या फिर खानापूर्ति के समान ही थी। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक़ गाँव के लोगों
ने बताया, "कुछ लोग आए थे जिन्होंने कहा कि पेटीएम का बटन दबाओ और फ़ोटो पर क्लिक करो। बस
इतना ही हुआ। कइयों को मोबाइल चलाना नहीं आता है।"
गाँव के पूर्व सरपंच
ग़ुलाम हसन के अनुसार, कुछ दिन पहले यहाँ कई लोगों को जमा किया गया था। उन्होंने बताया, "जो आए थे वे तो टीवी
वाले थे। मैं भी वहाँ गया था। यहाँ कोई सहूलियत नहीं हैं। उन्होंने शायद इसीलिए इस
गाँव को चुना क्योंकि उन्हें लगा होगा कि उनके बाद फिर यहाँ कोई नहीं पहुँचेगा।"
रिपोर्ट के मुताबिक़
1000 के क़रीब आबादी वाले इस गाँव की कुल पढ़ी-लिखी आबादी 10 से 15 फ़ीसदी है। गाँव में
कुल सात दुकानें हैं। किसी दुकान पर स्वाइप मशीन नहीं। 50 फ़ीसदी माल ग़्राहक
उधार लेते हैं। डिजिटल ख़रीदारी यहाँ के लोगों को पता नहीं। क्रेडिट कार्ड तो दूर की
बात, यहाँ तो एटीएम चलाना भी लोगों के लिए टेढ़ी खीर जैसा है। लोनउरा गाँव से क़रीब
पांच किलोमीटर दूर बैंक और एटीएम है।
राजस्थान का नया गाँव
कैशलेस घोषित, किंतु ना ही इंटरनेट था और ना ही पीओएस मशीन
कश्मीर के लोनउरा के
बाद राजस्थान का नया गाँव भी उसी राजनीतिक दास्तान का एक और पन्ना है। ये वो दिन थे
जब राजस्थान के नया गाँव को कागजों में कैशलेस घोषित किया जा चुका था। किंतु वहाँ हालात
कुछ और ही थे।
नया गाँव अजमेर के
पास पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के मुताबिक़ कागजों में कहा गया कि गाँव में
पांच पीओएस मशीन लगाई गई हैं और सभी स्मार्ट फोन्स में बैंकों के ऐप डाल दिए गए हैं।
जहाँ कागजों पर यह सब ठीक लगता है, वहीं असल स्थिति यह थी कि गाँव में इंटरनेट की कनेक्टिविटी ही नहीं थी! इसके अलावा गाँव को मिली पीओएस मशीनें भी काम नहीं कर रही थीं। गाँव को लगभग दिसम्बर
2016 में डिजिटल घोषित किया गया था, लेकिन गाँव के लोगों को पैसे निकालने के लिए तीन किलोमीटर दूर हरमारा शहर जाना
पड़ता था!!!
हैरान करने वाली बात
यह थी कि गाँव में कैशलेस हो जाने के बड़े-बड़े पोस्टर लगा दिए गए थे! पोस्टरों पर लिखा था कि यहाँ के लोग कैशलेस हो गए हैं! गाँव में क़रीब 250 घर हैं, जिनमें लगभग 1600 लोग रहते हैं। ज़्यादातर लोग खेती करते हैं। किसानों को भी रोजमर्रा की ज़रूरतों
के लिए जितने पैसों की ज़रूरत होती है उतने निकालने के लिए तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ता
है।
गाँव वालों का कहना
था कि बैंक वालों ने 17 दिसंबर को वादा किया था कि ज़ल्द ही उनके गाँव में एटीएम लग जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
गाँव वालों के पास एटीएम, रूपे कार्ड तो हैं, किंतु उनका कोई इस्तेमाल नहीं होता। लगा कि राज्यों की सरकारें
कैशलेस होने की होड़ में अपना सीना ठोकना चाहती थी। कागजों पर सब कुछ किया जा रहा था, ज़मीनी हक़ीक़तों
से क्या लेना-देना?
राजस्थान के कोटरा
गाँव की परेशानी - राशन के लिए ज़रूरी है इंटरनेट, नेटवर्क के लिए चढ़ना
पड़ेगा पेड़ पर!
बात है राजस्थान के
उदयपुर से क़रीब 125 किमी दूर बसे कोटरा गाँव की। जैसे हर गाँवों में होता है वैसे राशन लेने के लिए
इन्हें लंबी लाइन में तो लगना ही पड़ता है, साथ में पेड़ पर भी चढ़ना पड़ता है! पीओएस (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन से फिंगर प्रिंट और बायोमेट्रिक्स सत्यापित कराने
के लिए उन्हें पेड़ पर चढ़ना पड़ता है। पहले सत्यापन के लिए पेड़ पर चढ़ो और फिर राशन
का सामान लेने के लिए कई मील चलकर राशन की दुकान पर पहुंचो! वहाँ लंबी लाइन में खड़े रहो। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को डिजिटिलाइट
करने के इस सरकारी प्रयासों ने इनकी मुश्किलियाँ और बढ़ा दी थीं।
टाइम्स ऑफ इंडिया कीख़बर के अनुसार, लोगों के घर से कई मील की दूरी पर सिर्फ़ एक राशन की दुकान है, लेकिन पहाड़ी की चोटी
पर राशन डीलर कैंप और दूर है। कभी-कभी तो इंटरनेट नेटवर्क के लिए लोगों को 4 से 5 घंटे तक इंतज़ार करना
पड़ता है, तब कहीं जाकर मशीन काम करती हैं! कोटरा गाँव वाले परेशान होकर बोल देते हैं कि इससे बेहतर सिस्टम तो पहले वाला
ही था। एक स्कूल टीचर का कहना था कि कई घरों में यहाँ बिजली के कनेक्शन नहीं हैं। सड़क
और उचित स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं हैं।
बताइए, जिस इलाके में मूल
सुविधाएँ नहीं हैं, जहाँ बेसिक्स ही कमी है, जहाँ लोगों के लिए बुनियादी ढाँचा ही सुनिश्चित नहीं किया गया, वहाँ ऐसी योजनाएँ
लागू करने का क्या मतलब? जहाँ सड़कें और उचित स्वास्थ्य सेवाएँ ही ना हो, वहाँ संचार और इंटरनेट
के हालात कैसे होंगे इसका अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है। क्या कागज़ पर किसी एक योजना
के लक्ष्यांकों को हासिल करने की चाहत में कई बुनियादी बातों को हमारी सरकारें दरकिनार
करती हैं?
पेटीएम समेत अन्य कंपनियों
के ई-वालेट्स को स्टेट बैंक ने कर दिया ब्लॉक
4 जनवरी 2017 के दिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने निजी कंपनी पेटीएम के ई-वालेट ब्लॉक कर दिए। पेटीएम
के साथ मोबिक्विक और एयरटेल मनी समेत कई निजी कंपनियों पर एसबीआई ने सख़्ती दिखाई।
वैसे यह कदम अस्थायी रूप से लिया गया था। बैंक ने आरबीआई को सुरक्षा तथा व्यवसायिक
हितों को वजह बताया।
पेटीएम के मामले में
एसबीआई ने सुरक्षा उल्लंघन का ज़िक्र किया। कहा गया कि बैंक को कई शिकायतें मिली थीं।
अस्थायी रूप से ये कदम उठाए गए थे। बैंक के अनुसार समीक्षा करने के पश्चात इस प्रतिबंघ
पर आगे का फ़ैसला लिया जाएगा। लेकिन कहानी आगे और भी है। जिसके ई-वालेट ब्लॉक कर दिए
गए हो उसे आगे बैंक का ख़िताब भी मिला था!!! पेटीएम को अनब्लॉक करने की कहानियाँ ख़ुद ही ढूंढ लें।
पेटीएम को बैंक का
तमग़ा दिया गया
पेटीएम के ई-वालेट्स
को ब्लॉक करना दूसरे सिरे से विवादास्पद भी बना रहा। स्वयं आरबीआई ने कहा कि पेटीएम
से संबंधित सुरक्षा की शिकायतें आई थीं। अगर सुरक्षा संबंधित खामियाँ थीं, तो फिर पेटीएम को
बैंक का तमग़ा कैसे दिया जा सकता है? क्योंकि ख़बर के अनुसार पेटीएम को बैंक बनाने की अनुमति दी जा सकती है या फिर
दे दी गई थी।
एक तरफ़ कहा जाता है
कि पेटीएम बैंकों के लिए ख़तरा है, वही उसे बैंक बनाने के लिए इजाज़त दे दी जाती हैं! कुछ मीडिया रिपोर्ट की माने तो, वास्तव में सरकार ने यूपीआई यानि Unified Payments Interface से पेटीएम को जोड़ने के लिए ग्रीन सिग्नल दिया था। यह सिस्टम मूलतः National Payments Corporation of India (NPCI) ने डेवलप किया हुआ
है, जो बैंक अकाउंट से
मोबाइल बैंकिंग को सरल बनाने के लिए बनाया गया था।
किसी निजी कंपनी को, विशेषत: जब उसे ख़तरा
माना जाता हो, उसे इस सिस्टम से क्यों जोड़ा गया होगा ये सवाल उठा। पेटीएम के वरिष्ठ
उपाध्यक्ष नितिन मिश्रा ने कहा, "हमने अपनी भुगतान प्रणाली और यूपीआई के बीच गहरा एकीकरण लागू किया है। इससे सिर्फ़
उपभोक्ताओं को सिर्फ़ अपने पेटीएम वॉलेट में पैसे डालने में ही नहीं, बल्कि यह हमारे आगामी
बैंक भुगतान के लिए एक मजबूत नींव के रूप में कार्य करेगा।"
हालाँकि इसमें जो प्रणाली
थी वो एसबीआई को नागवार गुजरी थी यह भी बातें सामने आई थीं। पेटीएम का चीन कनेक्शन, चीन के साथ तत्कालीन
सरकार संबंधित समर्थकों या संस्थाओं की बहिष्कार नीति तथा उसे इस कदर सरकारी माहौल
प्रदान करना, आदि चीजें भी चर्चा का विषय बनी रही।
सरकार की मुहिम कैशलेस
की, किंतु सरकारी कचहरियों में चेक स्वीकार नहीं किए जाते थे, सचिवालय कैंटीन ही
नक़दी प्रथा से चल रहा था
2016 के अंत में अचानक ही केंद्र सरकार ने कैशलेस की मुहिम शुरू कर दी। ये मुहिम बुरी
नहीं थी। बुरा था इसे ज़बरन लागू करना। बुरा था इसे आनन फ़ानन में अलग अलग बाज़ारू
तरीकों से लागू कराने की चेष्टा। आवाम के ऊपर कैशलेस वाला मिसाइल छोड़ने से पहले सरकार
को अपने विभागों के ऊपर भी एकाध राउंड फायर कर देना चाहिए था।
दरअसल, सरकार के अलग अलग
विभागों या कचहरियों में ऐसे कई वाक़ये सामने आए, जहाँ कार्ड वगैरह तो ठीक, चेक भी स्वीकार नहीं किए जाते थे! कई सब-रजिस्ट्रार कचहरियाँ ऐसी थीं, जहाँ चेक या डिमांड ड्राफ्ट से प्रक्रिया थोड़ी लंबी हो जाया करती थी। आप जान
कर हैरान हो जाएँगे कि देश के कई राज्यों के सचिवालय ऐसे थे, जहाँ कैंटीन में कैशलेस
मुहिम का एक प्रतिशत भी प्रभाव नहीं था। यहाँ नक़द में ही व्यवहार होता था! देश के अलग अलग स्थानिक अख़बारों में ऐसे कई रिपोर्ट छपे मिल जाएँगे, जहाँ अलग अलग राज्यों
की अलग अलग सरकारी कचहरियों में बिना नक़द व्यवहार करने में लोगों को ऐसी परेशानियाँ
हुई, जैसे अग्नि मिसाइल के साथ सरहद पार जाना हो।
हैकरों का दावा, 1.7 मिलियन स्नैपचैट यूज़र्स
का डाटाबेस किया लीक
जब ईवीएम हैकिंग का
मामला ख़ूब गर्माया हुआ था, इसी दौर में यह ख़बर आई। अज्ञात भारतीय हैकरों ने ये दावा किया कि उन्होंने 1.7 मिलियन स्नैपचैट यूजर्स
के डाटाबेस को लीक कर दिया था, जो उन्होंने एक साल पहले हैक किया था।
स्नैपचैट के सीईओ इवान
स्पीगल का एक विवादास्पद बयान इन्हीं दिनों आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि स्नैपचैट भारत जैसे ग़रीब देश के
लिए नहीं है। उन्होंने कहा था, "ये ऐप केवल अमीरों
के लिए है। मैं इसे भारत और स्पेन जैसे ग़रीब देश में नहीं फ़ैलाना चाहता।" ये खुलासा स्नैपचैट के पुराने कर्मचारी एंटोनियो पोमपिआनो ने किया था। उनकी माने
तो कंपनी के सीईओ इवान स्पीगल ने दो साल पहले 15 सितंबर को उनसे यह कहा था। इसके बाद से भारतीयों ने स्नैपचैट का बहिष्कार करना
शुरू कर दिया। ट्विटर पर लोग #BoycottSnapchat हैशटैग के साथ इसका विरोध कर रहे थे।
भारतीय हैकरों की तरफ
से आया ये बयान भी स्नैपचैट के सीईओ के भारत को ग़रीब देश कहने का विरोध था। भारतीय
हैकरों के अनुसार उन्हें स्नैपचैट के सुरक्षा में कमी का पता पिछले साल लगा था और उन्होंने
1.7 मिलियन यूजर्स का
ब्यौरा भी निकाल लिया था। अब हैकरों ने इस डाटाबेस को डार्कनेट पर लीक कर दिया। हैकरों
ने कहा कि जब तक स्नैपचैट के सीईओ माफ़ी नहीं मांग लेते तब तक वे ऐसे ही हमले करते
रहेंगे। हालाँकि स्नैपचैट ने किसी भी तरह की हैकिंग की पुष्टि नहीं की।
CERT-In का दावा - स्मार्ट
फ़ोन भी हो सकते हैं रैनसमवेयर का शिकार
2017 के मई महीने में रैनसमवेयर ने दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों की सांसें रोक रखी थीं। इसके बाद Indian
Computer Emergency Response Team (CERT-In) के निदेशक जनरल संजय
बहल ने सावधान करते हुए कहा कि अब लोगों का स्मार्ट फ़ोन भी रैनसमवेयर का शिकार हो
सकता है।
उन्होंने कहा कि वॉनाक्राय
रैनसमवेयर का प्रभाव भले ही भारत पर बहुत ज़्यादा ना हुआ हो, लेकिन उसके दूसरे
मॉड्यूल सामने आ रहे हैं। उन्होंने जो कहा उसका एक मतलब यह भी था कि विन्डोज़ आधारित
मशीनों को दिन में तारे दिखाने के बाद अब ये लोग एंड्रॉइड आधारित उपकरणों को चपैट में
ले सकते हैं।
सिग्नल नहीं मिला तो
पेड़ पर चढ़ गए मोदी सरकार के मंत्री
डिजिटल इंडिया का नारा
लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ पर छाया हुआ है, लेकिन असलियत क्या है इसका आईना केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने
अपनी ही सरकार को दिखा दिया।
हुआ यूँ कि मंत्रीजी
बीकानेर के धोलिया गाँव के दौरे पर थे। वहाँ लोगों ने शिकायत की कि उनके अस्पताल में
नर्स नहीं है। इसके बाद मंत्रीजी ने फ़ोन लगाया तो सिग्नल नहीं मिला। वे बीकानेर के
मुख्य चिकित्सा अधिकारी से बात करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मोबाइल का सिग्नल
ही गुल था। गाँव वालों ने कहा कि पेड़ पर चढ़ने से सिग्नल मिल सकता है इसलिए मंत्रीजी
के लिए सीढ़ी मंगाई गई! सीढ़ी को पेड़ के सहारे
रखा गया और उस पर चढ़ कर अर्जुन मेघवाल ने निर्देश दिए कि अस्पताल में नर्स नियुक्त
की जाए।
लगा कि जितना ऊंचा
नारा डिजिटल इंडिया का है, उसे पाने के लिए उतना ही ऊंचा चढ़ना पड़ता होगा! वैसे मंत्रीजी ने शिकायत को तो निबटा लिया, किंतु नारों के ज़मीनी चेहरे से रूबरू ज़रूर हो गए।
भीम ऐप ने भी अपनी
असमर्थता ज़ाहिर कर दी, वाराणसी में जालसाजी कर खाते से उड़ाए 11 लाख
भीम ऐप की सुरक्षा
के बारे में काफी कुछ कहा गया था, किंतु मैट्रीक पास तक को पता होता है कि इन दावों पर कितना भरोसा किया जाए।
भीम ऐप ने इसका सबूत
जून 2017 में ही दे दिया। बैंक में दर्ज खाता धारकों के मोबाइल नंबर को बदल कर रुपये उड़ा
देने वाले चार जालसाजों को पुलिस ने 14 जून 2017 को फूलपुर क्षेत्र की खालिसपुर रेलवे क्रॉसिंग के समीप से गिरफ़्तार किया। चारों
फूलपुर थाने में राकेश मिश्रा द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमे में वांछित थे। राकेश का
आरोप था कि उनके खाते से भीम ऐप के माध्यम से बैंक में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर को बदलकर
11 लाख रुपया निकाल लिया
गया था। अब इस मामले में आप राकेश को नियमों और तकनीक का हवाला देकर गलत साबित कर सकते
हैं, लेकिन तब तो राकेश को सुरक्षा का भरोसा देते वक्त "भरोसा-Terms & Conditions Applied" वाला स्पष्टीकरण भी दे देना चाहिए।
रिलायंस जियो के 12 करोड़ उपभोक्ताओं
के डाटा कथित रूप से लीक हुए
हालाँकि ये आधिकारिक
रूप से पुष्ट ख़बर नहीं थी, लेकिन दर्ज यह भी हो कि ये आधिकारिक तौर पर पूरी तरह से ख़ारिज ख़बर भी नहीं थी। जुलाई 2017 के मध्य में यह ख़बरें छपीं।
ख़बरों की माने तो
रिलायंस जियो के 12 करोड़ उपभोक्ताओं के डाटा वेबसाइट पर लीक हो गए थे। दावा हुआ कि उपभोक्ताओं के
नाम, मोबाइल नंबर, ई मेल, आधार नंबर तथा सीएम एक्टिवेशन की जानकारियाँ लीक हो गई थीं। जियो के प्रवक्ता
ने अपने बयान में कहा कि जो डाटा लीक हुआ है वो सही डाटा नहीं है, उनके उपभोक्ता के
डाटा सुरक्षित है।
स्मार्टफ़ोन के जरिए
भारतीयों की जासूसी कर रही हैं अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ - पूर्व गृह सचिव का दावा
पूर्व गृह सचिव राजीव
महर्षि ने संसद की एक समिति को जानकारी देते हुए कहा था कि देश में इस वक्त 40 फ़ीसदी लोग स्मार्टफ़ोन
का इस्तेमाल करते हैं। इन सभी व्यक्तियों का डाटा सीआईए समेत सभी अमेरिकी एजेंसियों
के पास पहुंच रहा है।
महर्षि ने 21 जुलाई 2017 को संसदीय समिति से
कहा था कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा मोबाइल डाटा को शेयर करना काफी गलत है। इंडियन
एक्सप्रेस के मुताबिक़ महर्षि ने कहा कि मोबाइल कंपनियाँ लोगों के फिंगर प्रिंट्स और
बायोमेट्रिक डाटा को भी स्मार्टफ़ोन के जरिए कैप्चर कर रही हैं। महर्षि ने कहा कि,
"ऐसा होने से मोबाइल पर उपलब्ध डाटा की ऐप के माध्यम से चोरी
हो सकती है। इससे लोगों के आने-जाने पर भी आसानी से निगरानी रखी जा रही है। अगर प्रत्येक
भारतीय स्मार्टफ़ोन का प्रयोग करने लगे, तो सभी की पर्सनल जानकारी आसानी से अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी के पास पहुंच सकती
है। इसलिए सभी स्मार्टफ़ोन रखने वालों को ऐप के इस्तेमाल में सावधानी बरतनी होगी।"
जाँच के दायरे में
आए ट्रुकोलर, वीचैट समेत कई चाइनीज़ ऐप
इस ख़तरे को देखते
हुए भारतीय सेना तक ने अपने जवानों के लिए चेतावनी जारी की थी। सरकार ने नागरिकों को
ख़तरे से चेताया था। आमतौर पर ज़्यादा इस्तेमाल हो रहे मोबाइल एप्लीकेशन वीचैट, यूसी न्यूज़, न्यूज़ डॉग और ट्रू
कॉलर जाँच के दायरे में आ गई थीं।
मीडिया रिपोर्ट के
मुताबिक़ चाइनीज़ बॉर्डर पर तैनात भारतीय सैनिकों को ऐसे 40 मोबाइल एप्लीकेशन
डिलीट करने के लिए कहा गया था, जिनके चाइनीज़ लिंक हो सकते थे। मीडिया रिपोर्टस की
माने तो, भेजे गए निर्देश के मुताबिक़ चाइना बॉर्डर पर तैनात भारतीय सैनिकों को उनका
स्मार्टफ़ोन फॉर्मेट करने के लिए कहा गया था और ऐसे एप्लीकेशन डिलीट करने के लिए कहा
था, जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा
के लिए ख़तरा बन सकते थे। निर्देशों में कहा गया था कि कुछ एंड्रॉइड और आईओएस एप्लीकेशन
चीन की कंपनियों के द्वारा बनाए गए हैं और इनके लिंक चाइनीज़ हैं और भारतीय सेना के
द्वारा इन एप्लीकेशन का प्रयोग करना देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है।
वीचैट एक मैसेजिंग
प्लेटफॉर्म है। जबकि यूसी न्यूज़ अलीबाबा ग्रुप का बनाया हुआ एप्लीकेशन है। लिस्ट में
माइक्रो ब्लॉगिंग साइट बीइवो, फ़ाइल ट्रांसफर ऐप शेयर इट और न्यूज़ डॉग का नाम शामिल था। न्यूज़ डॉग एक मीडिया
एप्लीकेशन था, जो हिंदी और अंग्रेजी में बाकी पब्लिशर के न्यूज़ उपलब्ध कराता था। मोबाइल
कम्युनिकेशन ऐप ट्रू कॉलर का कहना था कि उसका कोई चाइनीज़ लिंक नहीं है। वह एक स्वीडन
कंपनी का हिस्सा है। इकोनॉमिक टाइम्स को दिए बयान के मुताबिक़ ऐप कंपनी ने कहा कि हम
नहीं जानते कि हमारी कंपनी का नाम इस लिस्ट में क्यों है। कंपनी ने कहा कि हमारे सारे
फ़ीचर परमिशन लेकर दिए गए हैं।
राम भरोसे है डिजिटल
लेनदेन की सुरक्षा, संसदीय समिति ने जताई चिंता
कैशलेस अर्थव्यवस्था
की कल्पना को साकार करने के लिए देश को बेशक डिजिटल इंडिया बनाने की वकालत हो रही हो, मगर संसदीय समिति
की माने तो डिजिटल लेनदेन की सुरक्षा 'राम भरोसे' ही है!
जनवरी 2018 के दौरान संसद की
वित्त संबंधी स्थाई समिति ने डिजिटल इंडिया को लेकर सरकार के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त
की। कहा गया कि डिजिटल इंडिया पर साइबर हमले का ख़तरा मंडरा रहा है और सरकार के पास
साइबर हमले से निपटने के लिए प्रशिक्षित पेशेवरों का भारी अभाव है। समिति का कहना था, "राष्ट्रीय और वैश्विक
दोनों ही स्तर पर साइबर चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। साइबर हमलावरों द्वारा पेश की जाने
वाली चुनौतियों से निपटने में प्रशिक्षित पेशेवरों का अभाव है।" समिति ने सरकार से मिशन मोड में जुटकर प्रशिक्षित साइबर पेशेवरों की भर्ती करने
की अनुशंसा की। साथ ही राज्य की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा गृह मंत्रालय के समन्वय से
विशेष निगरानी पर ज़ोर दिया।
संसदीय समिति ने डिजिटल
इंडिया की सुरक्षा के लिए सरकार से एक व्यापक साइबर संकट प्रबंधन व्यवस्था बनाने पर
बल दिया। जिसके मुताबिक़ साइबर संकट की स्थिति में सुनिर्धारित कार्रवाई योजना तैयार
हो तथा संबंधित विभाग एवं एजेंसियों को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई हो।
ग्राहक की निजता और
डाटा सुरक्षा पर सरकार को सचेत करते हुए संसदीय समिति ने कहा, "देश को अब तत्काल एक डाटा न्यूनीकरण, डाटा निजता तथा डाटा स्थान विधि की आवश्यक्ता है। ताकि सार्वजनिक और निजी डाटा
की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकें। सरकार से एक डाटा बचाव विधान लाने का आग्रह किया है।"
एटीएम धोखाधड़ी, क्लोनिंग और फिशिंग
के बढ़ते मामलों को देखते हुए संसदीय समिति ने सरकार से एक हेल्पलाइन (एसओएस) नंबर
मुहैया कराने को कहा, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उस नंबर का उपयोग ग्राहक आसानी से कर सकें। डिजिटल उपयोगकर्ता
को आने वाली समस्याओं के निदान के लिए संसदीय समिति ने एक विवाद निपटान तंत्र बनाने
के लिए सरकार से आग्रह किया। जहाँ धोखाधड़ी आदि की ज़िम्मेदारी को स्पष्ट रूप से निर्धारित
किया जा सके और समयबद्ध तरीके से समाधान मुहैया कराया जा सके।
गुजरात में 1.27 करोड़ राशन धारकों
का डाटा लीक हुआ
गुजरात में जाली राशनकार्ड
की समस्या ख़त्म करने के लिए प्रदेश सरकार ने सन 2012 में फूलप्रूफ सिस्टम के तहत बायोमेट्रिक राशनकार्ड सिस्टम शुरू
किया था। इसके तहत करोड़ों राशनकार्ड धारकों के फिंगरप्रिंट समेत कई निजी जानकारियाँ
इकठ्ठा की गई। थंब इंप्रेशन मशीन राशन की दुकानों में बिठाया गया।
किंतु जनवरी 2018 के दौरान फिंगरप्रिंट
समेत अन्य डाटा लीक होने का दावा सामने आया। दावा तो यह हुआ कि सरकारी सर्वर से ही
डाटा लीक हुआ था! 1.27 करोड़ राशन धारकों का डाटा लीक होने की बातें कही गई। मीडिया रिपोर्ट की माने
तो राशन के कुछ संगठित दुकान वालें या उनके साथी पायरेटेड सॉफ्टवेयर के जरिए ये खेल
कर गए। इसमें राशनधारक की गैरमौजूदगी में ही पायरेटेड सॉफ्टवेयर के जरिए किसी उपभोक्ता
का फिंगरप्रिंट अपलोड करके उसका राशन घपले के तहत उड़ा लिया जाता था।
मीडिया रिपोर्ट में
दावा किया गया कि सरकार का यह गोपनीय डाटा लीक करके राशन उड़ाने का करोड़ों का घोटाला
राज्य स्तर पर चल रहा था। इसे लेकर सूरत शहर में पाँच मामले भी दर्ज किए गए। नतीजा
क्या हुआ यह पूछने की परंपरा हमारे भारत में नहीं है।
भारत की 49 फ़ीसदी कंपनियों का
क्लाउड डाटा सुरक्षित नहीं
वैश्विक डिजिटल सुरक्षा
कंपनी Gemalto ने अपने सर्वे में
दावा किया था कि, "क्लाउड सेवा का इस्तेमाल करने वाली भारत की आधी कंपनियों का संवेदनशील डाटा सुरक्षित
नहीं है।" रिपोर्ट के मुताबिक़
दुनियाभर की सिर्फ़ 40 फ़ीसदी कंपनियों का क्लाउड में स्टोर डाटा सुरक्षित है। ज़्यादातर कंपनियाँ जानती
ही नहीं कि इस सेवा का इस्तेमाल कैसे करना है! सिर्फ़ 25 फ़ीसदी आईटी कंपनियों ने माना कि उन्हें ख़ुद पर भरोसा है कि वह अपने व्यापार में
इस्तेमाल हो रही सभी तरह की क्लाउड सेवा के बारे में जानती हैं।
जेमाल्टो की रिपोर्ट
की मानें तो 49 फ़ीसदी भारतीय कंपनियाँ तीसरे पक्ष से साझा करते समय संवेदनशील डाटा को सुरक्षित
नहीं रख पाती हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया की 43 प्रतिशत, जापान की 31 फ़ीसदी, अमेरिका की 51 फ़ीसदी और जर्मनी की 61 फ़ीसदी कंपनियाँ डाटा साझा करते समय सतर्क रहती हैं। जेमाल्टो के सीटीओ डाटा प्रोटेक्शन
जॉनसन हर्ट ने कहा कि जर्मनी की कंपनियाँ क्लाउड सेवा का अच्छा इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन बाकी देशों
की स्थिति चिंताजनक है।
रिपोर्ट के मुताबिक़
दुनिया की 62 प्रतिशत कंपनियों का मानना था उनकी क्लाउड डाटा की गोपनीयता भंग हो सकती है। इस
सर्वे में 3285 आईटी कंपनियों से बातचीत की गई थी। इसमें अमेरिका की 575, ब्रिटेन की 405, जर्मनी की 492, फ्रांस की 293, जापान की 424, भारत की 497 और ब्राजील की 355 कंपनियाँ शामिल थीं।
नक़दी का इस्तेमाल
सामान्य हुआ, डिजिटल अभियान का असर नहीं - एनसीआर
नोट करें कि नक़दी
का इस्तेमाल दोबारा नोटबंदी के पहले के स्तर को छू रहा है - यह रिपोर्ट कई भारतीय-गैरभारतीय
संस्थाएँ या विशेषज्ञों के विश्लेषण में, यहाँ तक कि आरबीआई के "कोनों में छपे आकलन" तक में दर्शाई गई
हैं।
नोटबंदी पहले 50 दिनों के भीतर ही
विफल होती दिखी तो कैशलेस और डिजिटल का नारा बाज़ार में उतरा। कैशलेस और डिजिटल के
नारे के पीछे करोड़ों फूँक दिए गए, जिसकी ख़बरें भी प्रकाशित हुई। नतीजा यह हुआ कि कैशलेस और डिजिटल का नारा इस कदर
पीटा कि हाल ही में प्रकाशित रपटें बताने लगी कि नक़द व्यवहार का स्तर पहले के स्तर
को दोबारा छू रहा है। हम यहाँ उन ढेरों रिपोर्ट में से एक रिपोर्ट का ज़िक्र करते हैं।
जिस संस्थान का रिपोर्ट है वो गैरभारतीय है, किंतु नोट करे कि भारत के एटीएम बाज़ार में आधे से ज़्यादा साम्राज्य पर उसीका
राज है। स्वदेशी नारे के साथ विदेशी कंपनियों का दबदबा वाला एंगल ख़ुद ही समझ लें।
अमेरिकी मुख्यालय वाली
कंपनी एनसीआर कॉर्पोरेशन ने कहा, "भारतीय अर्थव्यवस्था में नक़दी का इस्तेमाल अब फिर से सामान्य हो गया है। डिजिटलीकरण
अभियान से इसे कोई ख़तरा नहीं दिखता है।" देश के एटीएम बाज़ार में 50 प्रतिशत से अधिक पर एनसीआर कॉर्पोरेशन काबिज़ है।
कंपनी के प्रबंध निदेशक
नवरोज़ दस्तर ने संवाददाताओं से कहा, "अर्थव्यवस्था में नक़दी का स्तर 18 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर है, जो नोटबंदी से पहले का स्तर है। नक़दी उपलब्ध होने के साथ एटीएम के जरिए निकासी
बढ़ रही है।" उन्होंने कहा, "नक़दी वापस लौट रही है। उपभोक्ता एटीएम की ओर वापस लौट रहे हैं।" दस्तर ने कहा, "नक़दी की मांग कृत्रिम रूप से कम हुई थी।"
रिजर्व बैंक के आँकड़ों
का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "प्रति एटीएम प्रतिदिन और मासिक आधार पर एटीएम से लेनदेन नोटबंदी से पहले के स्तर
पर आ रहा है।" उन्होंने कहा, "ढाँचे, प्रौद्योगिकी तथा
एप्लिकेशन की उपलब्धता की कमी की वजह से भारत नक़दीरहित अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता, ज़्यादा से ज़्यादा
यह कम नक़दी वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है।"
व्हाट्सएप मामला, कई प्रमुख लोगों के
फ़ोन में लगी सेंघ
2019 में सोशल इंस्टैंट मल्टीमीडिया मैसेजिंग ऐप व्हाट्सएप की जासूसी को लेकर बड़ा
खुलासा हुआ। व्हाट्सएप ने ख़ुद इस बात की पुष्टि की कि भारत के कुछ पत्रकारों और सामाजिक
कार्यकर्ताओं के व्हाट्सएप चैट की जासूसी हुई थी। व्हाट्सएप ने इसकी जानकारी अमेरिकी
कोर्ट में दी थी।
मुक़दमे में दी गई
जानकारी के मुताबिक़ एक इज़रायली फर्म ने एक स्पाइवेयर (जासूसी वाले सॉफ्टवेयर) के
जरिए भारतीय यूजर्स की जासूसी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक़ जिन लोगों के व्हाट्सएप की
हैकिंग या जासूसी हुई, उनमें मुख्य रूप से मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पत्रकार थे, जो आदिवासियों और
दलितों के लिए अदालत में सरकार से लड़ रहे थे या उनकी बात कर रहे थे।
इस मामले को लेकर कंपनी
ने कहा कि उन्होंने पहले ही भारत सरकार को आगाह कर दिया था। सरकार ने कहा कि कंपनी
ने आगाह नहीं किया था। फिर कंपनी ने कागज़ सार्वजनिक किए। सरकारी जासूसी का मामला हो
या कुछ और, लेकिन व्हाट्सएप सुरक्षित है वाला भ्रम भी टूट ही गया। बड़ी आसानी से लोगों के
फ़ोन में सेंघ लगाई गई थी।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
Social Plugin