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Pegasus Snooping : भारतीय पत्रकारों व नेताओं की डिजिटल जासूसी का सनसनीखेज़ मामला, मोदी सत्ता पर उठे सवाल


काले हिरण को किसी ने नहीं मारा था, उसने तो ख़ुदकुशी कर ली थी! टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ तो था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! आरुषि का क़त्ल हुआ था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! भारत में भी पनामा पेपर्स और पैराडाइज़ पेपर्स स्कैम हुआ था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! हर चुनाव से पहले और चुनाव के बाद नेता लोगों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती तो है, फिर भी उन्हें कोई नहीं ख़रीदता! ये सब इसलिए होता है, क्योंकि क़ानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, बस टांगे छोटी पड़ जाती हैं!
 
ऊपर के पैरा से यह क़तई ना माने कि हमने शुरुआत से यह कह दिया कि पेगासस जासूसी मामला हुआ ही है। हम ऐसा नहीं कह रहे। हम कह रहे हैं कि कुछ अपराध अगर हुए भी होते हैं, तब भी उसे साबित करना कितना मुश्किल होता है। एक दूसरी चीज़ भी है इन अपराधों को लेकर। स्कैम, घोटाले, गड़बड़ी, अपराध... जो भी कह लें, इन सबको लेकर हमारी सामाजिक व्यवस्था में एक ट्रेंड अरसे से क़ायम है। ट्रेंड यह कि इसे साबित करने की ज़रूरत ही नहीं होती! क्योंकि समर्थकों को यक़ीन होता है कि नहीं हुआ है, विरोधियों को भरोसा होता है कि हुआ है!
 
दुनिया की कहानियाँ आप ख़ुद ही पढ़ लीजिएगा। भारत की बात करें तो भारत में राजनीतिक जासूसी का जिन्न दशकों पुराना है। भाजपा और आरएसएस वाले बिना सबूत के भी यह मानते हैं कि कांग्रेस वालों ने कई दफा राजनीतिक जासूसी की है। कांग्रेस वाले भी भाजपा आरएसएस के बारे में बिना सबूत के यही मानते हैं। रही बात जासूसी के सबूतों की, जासूसी डिजिटल तरीक़े से हो तो फिर उसके सबूत, तथ्य, जाँच, अपराध साबित करना, ये सब टेढ़ी खीर है।
 
पेगासस जासूसी (Pegasus Snoopgate) मामले को समझने से पहले राजनीति को एक पैरा में ही समझा जा सकता है। अगर कांग्रेस काल में यह हुआ होता तो बीजेपी और आरएसएस के लोग बिना सबूत के ही आज देशभर में हल्ला मचा रहे होते। बिना क़ानूनी जाँच के मीडिया जाँच को अंतिम नतीजा मानकर अपना कर्तव्य निभा रहे होते। तब कांग्रेस वाले वही बोल रहे होते, जो आज बीजेपी वाले बोल रहे हैं। आज यह कथित अपराध बीजेपी के दौर में हुआ है, सो दलीले और तर्क वहीं रखिएगा, बस किरदार को बदल लीजिएगा।
यहाँ क़ायदे से आपके खाते से कोई पैसा उड़ा ले जाए तब भी सात समंदर पार करने जैसी मुश्किल प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है, तो फिर डिजिटल, या यूँ कहे कि तकनीकी तरीक़े से की गई राजनीतिक जासूसी को लेकर प्रक्रियाएँ कितनी मुश्किल होगी यह सोच कर ही दिल चाहता है कि सोचना ही बंद कर लें।
 
ग़ज़ब यह कि रिपोर्ट आने के पहले बीजेपी के पुराने जासूस नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे लेकर ट्वीट किया था! उन्होंने लिखा था कि इस तरह की अफ़वाह है कि वॉशिंग्टन पोस्ट और लंदन गार्जियन एक रिपोर्ट छापने जा रहे हैं, जिसमें इज़रायल की फर्म पेगासस को मोदी कैबिनेट के मंत्री, आरएसएस के नेता, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और पत्रकारों के फ़ोन टैप करने के लिए हायर किए जाने का भंडाफोड़ होगा। स्वामी के इस ट्वीट पर कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह समेत कई लोगों ने प्रतिक्रिया भी दी थी।

स्वामी के ट्वीट के मुताबिक़ रिपोर्ट प्रकाशित होती है और नाम सामने आते हैं! स्वामी की टाइमिंग ग़ज़ब कहे या रिपोर्ट प्रकाशित करने के समय को, दोनों वाक़ई ग़ज़ब हैं। वो द्दश्य याद आ गया जब एयर स्ट्राइक से पहले 25 फ़रवरी 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अफ़ग़ान रिफ्यूजी को लेकर ट्वीट करते हैं। पाकिस्तानी पीएम के इस ट्वीट के नीचे द स्किन डॉकटर नाम का एक यूज़र लिखता है कि कोई फ़ायदा नहीं इमरान भाई, आज रात वैसे भी अटैक होने वाला है, टेक केयर। भारत ने उसी सुबह, 26 फ़रवरी को तड़के एयर स्ट्राइक किया था पाकिस्तान के ऊपर। नोटबंदी होने वाली थी और उससे पहले एक-दो अख़बारों ने पहले ही छाप दिया था कि नोटबंदी होने वाली है। संयोग से योग या योग से संयोग? जासूसी की दुनिया में योग, संयोग, भोग, सब कुछ सुदर्शन चक्र सरीखा घूमने लगता है।
 
पेगासस का प्रेत 2019 के बाद 2021 में फिर एक बार रास्ते पर नज़र आ गया है। दो साल बाद फिर से यह प्रेत रास्ते पर आ गया, इसके पीछे कुछ तो वजहें रही होगी। राजनीतिक वजहें होने की संभावना ज़्यादा दिखती है। बहरहाल, वजहें राजनीतिक हो तब भी कथित अपराध को आसानी से नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता। यह कथित अपराध 2023 में फिर से आए तब भी वजहें राजनीतिक होगी, क्योंकि अगर अपराध हुआ है तो अपराध भी राजनीतिक ही तो है।
 
18 जुलाई 2021 के दिन इसे लेकर, क़रीब दो साल बाद, फिर एक बार ख़बर आई। ख़बर यह कि दुनियाभर की कई सरकारों ने 50,000 से अधिक नंबरों को ट्रैक करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया था। द गार्जियन और वॉशिंग्टन पोस्ट ने अपने रिपोर्ट में यह दावा किया। 50 हज़ार से अधिक नंबरों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया था। यह दावा इन रिपोर्ट के ज़रिए किया गया। नोट करें कि पड़ताल के बाद दावा फ़ोन हैकिंग और फ़ोन टैपिंग का भी है।
  
दरअसल फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था फ़ोरबिडेन स्टोरीज़ (Forbidden Stories) और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और कई समाचार एजेंसियों और संस्थाओं के साथ साझा किया। इसका नाम रखा गया Pegasus Project, पेगासस प्रोजेक्ट। ख़बरों के मुताबिक़ इस प्रोजेक्ट में दुनिया के 16 मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट की पड़ताल व विश्लेषण में सह्योग दिया है।
फ्रांस की डासो एविएशन और भारत की रिलायंस डिफेंस का रिश्ता कितना भी अच्छा हो, लेकिन वहाँ की ग़ैरसरकारी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ भारत की मोदी सरकार का रिश्ता अच्छा नहीं रहा। एमनेस्टी इंटरनेशनल सामाजिक और सरकारी मुद्दों पर अपने रिपोर्ट तैयार करती है। मानवाधिकार, भ्रष्टाचार, मीडिया स्वतंत्रता आदि को लेकर उसके अनेक रिपोर्ट सालों से आते रहे हैं। 2014 से पहले मोदीजी और बीजेपी के लोगों ने कई बार इसी संस्था के रिपोर्ट्स को आधार बनाकर कांग्रेस शासित मनमोहन सरकार को घेरने का कर्तव्य निभाया था। तब एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत की अस्मिता से खेलती नहीं थी। जब से इस ग़ैरसरकारी संस्था ने मोदी सरकार के दौर में उसी प्रकार के रिपोर्ट जारी रखे, भारत की अस्मिता जाग उठी! ग़ैरसरकारी संस्था नहीं सुधरी तो मोदी सरकार ने एनजीओ वाले क़ानून के ज़रिए इसे भारत में प्रतिबंधित कर दिया।
 
रिपोर्ट में नाम उसी पेगासस का है, जो नाम 2019 में चमका था। इजरायली कंपनी एनएसओ पेगासस सॉफ़्टवेयर बना कर बेचती है। दावा यह है कि इसी सॉफ़्टवेयर के ज़रिए मोबाइल फ़ोन के डेटा चुरा लिए गए, उन्हें हैक कर लिया गया या उन्हें टैप किया गया। यूँ तो 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की जासूसी की बात है। इधर द गार्जियन, वॉशिंग्टन पोस्ट, ला मोंद ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था।
 
यहीं से फूले मुँह आने वाले भूतपूर्व मंत्री रविशंकर प्रसादजी की वह दलील अंडरग्राउंड गटर में चली जाती है, जिसमें उन्होंने यह कहते हुए बचाव किया कि यह भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश है। 50 हज़ार से अधिक नंबरों को दुनियाभर में कई सरकारों ने ट्रैक किया, दावा यह है। इसमें कई देश हैं, कई नंबर हैं, कई राष्ट्रों के लोग हैं। तो फिर रविशंकर प्रसादजी को उन सभी देशों का नाम लेकर कहना चाहिए था कि यह उन सभी देशों के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश है। प्रसाद बाबू कहेंगे कि मैं दूसरे देशों की बात क्यों करूं, मैं तो मेरे देश की ही बात करूंगा न। बस ऐसे ही, सीधी सी बात है कि भारत के लोग भारत की ही बात करेंगे न, दूसरे देशों की बात दूसरे देश वाले कर लेंगे। जब दुनियाभर की सरकारों ने यह किया है तो फिर यह महज़ भारत के ख़िलाफ़ ही साज़िश कैसे हो सकती है? व्हाट्सएप सरीखी दलीलें ऐसे दिग्गज नेता करेंगे तो फिर दलील को किस दायरे में रखें।
 
रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के समय को लेकर सवाल उठाया वह कुछ हद तक ठीक है। मानसून सत्र के महज़ एक दिन पहले का समय। किंतु केवल समय के चयन की दलील के चलते सारी बातें बेकार साबित नहीं होती। प्रसाद ने दलील दी कि जब 45 देश पेगासस का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर भारत पर ही सवाल क्यों? अब इतनी सिंपल सी बात इस भूतपूर्व मंत्री को नहीं पता यह वाक़ई ग़ज़ब स्तर ही कह लीजिए! अरे प्रसादजी, भारत के नागरिक आपसे क्या अज़रबैजान के बारे में सवाल पूछेंगे? भारत की ही बात करेंगे न भारत के लोग, अज़रबैजान की क्यों करेंगे?
 
दूसरी बात यह कि पेगासस वाली कंपनी कहती है कि कौन सा देश और कौन सी सरकार को हमने पेगासस बेचा यह गोपनीय मामला है। बताइए, इतने गोपनीय मामले का पता है प्रसादजी को! कह रहे हैं कि 45 देश इस्तेमाल कर रहे हैं। स्वामी से भी बड़े जासूस निकले प्रसादजी!
रविशंकर प्रसाद ने एनएसओ के हवाले से कहा कि कंपनी कह रही है कि ज़्यादातर पश्चिमी देश उसके उपभोक्ता हैं, तो फिर भारत को इस मामले में क्यों निशाना बनाया जा रहा है? बताइए, इनसे पत्रकार सवाल पूछते हैं तो बदले में ये पत्रकारों से सवाल पूछते हैं!!! पत्रकार पूछते हैं कि भारत सरकार पेगासस की उपभोक्ता है क्या? तो ये कहते हैं कि यह गोपनीय मामला है। यह कहकर प्रसादजी पूछते हैं कि भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? अरे प्रसादजी, इतने सारे लोग अज़रबैजान या जिम्बाब्वे के होते तो कोई आपसे सवाल नहीं पूछता। भारत के लोगों के नाम कथित रूप से हैं तो फिर सवाल तो पूछेंगे ही न?
 
प्रसादजी सीधा सीधा कह देते हैं कि भारत सरकार या भाजपा, दोनों में से किसी को जोड़ने का अंशमात्र सबूत नहीं है। जबकि जाँच तो हुई ही नहीं है!!! पहले से तय हो गया कि सबूत नहीं है!!! सरकार की छवि ख़राब करने की कोशिश, भारत के विरुद्ध एजेंडा, आदि आदि सदाबहार दलीलों से रविशंकर प्रसादजी ने आँखें दिखाते हुए अपनी बात ख़त्म कर दी!
 
उधर फ्राँस ने इस मामले के सामने आने के बाद जाँच के आदेश दे दिए हैं। भारत सरकार ने बिना जाँच के एलान कर दिया है कि कुछ नहीं हुआ है! जाँच करने में क्या जाता है? जाँच का अंजाम तो हमारे यहाँ सबको पता ही होता है। कम से कम जाँच के बाद सबके मुँह इतनी आसानी से तो नहीं खुलेंगे न।
  
रफ़ाल जैसा द्दश्य दोहराया जा रहा है! रफ़ाल को लेकर मीडिया रिपोर्ट के बाद फ्राँस ने हाल ही में जाँच की शुरुआत की है। भारत में अदालत ने बहुत पहले कह दिया है कि यह संसद तय करें। संसद में बहुमत जिसके पास है वह जाँच की बात मान नहीं रहे!

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लिस्ट में नाम हैं तो उसका मतलब यह नहीं कि उनकी जासूसी हुई है। जासूसी हुई है या नहीं यह तो फ़ोरेंसिक जाँच के बाद पता चलेगा। द वायर ने यह कहा तो रविशंकर बाबू यही बात पकड़कर बैठ गए! कहने लगे कि रिपोर्ट ही कह रही है कि नाम हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि जासूसी हुई है।
 
अरे महाराज, वाक्य का एक हिस्सा आपने पकड़ लिया, जाँच के बाद पता चलेगा वाला हिस्सा क्यों छोड़ दिया? दूसरी बात यह कि किसी की जासूसी नहीं हुई तो इसका मतलब यह नहीं निकल सकता कि सब कुछ सही है। इस कथित जासूसी कांड में लिस्ट में नाम होने का मतलब है शिकार की सूची में नाम होना। शिकार कभी न कभी तो होना ही था उस नाम का। किसीने क़त्ल नहीं किया, लेकिन क़त्ल का इरादा रखता है, क़त्ल की साज़िश में शामिल है, तो क्या भारत का क़ानून उसे बाइज्ज़त बरी करता है? सूची में नाम हैं, जासूसी नहीं हुई, लेकिन षडयंत्र तो हुआ होगा न? क़ानूनविद रविशंकरजी ऐसी बेतुकी बातें करने लगे तो फिर क्या कहें? शायद वकील कहना चाहिए। वकील ऐसे ही बातों को उलझाते हैं न?
भारत के ख़िलाफ़ साज़िश, देश के ख़िलाफ़ साज़िश, देशद्रोह, राष्ट्रद्रोह, भारत का गौरव, भारत की अस्मिता... इन्हीं भावनात्मक सड़कों से हर चीज़ को हैंडल नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी दलीले दागने से पहले प्रसाद बाबू को बता ही देना चाहिए कि हमारे बच्चों की वैक्सीन दूसरे देशों में क्यों भेज दी, वाला बैनर दीवार पर लगाना राष्ट्रद्रोह कैसे हो सकता है? प्रसाद बाबू को बताना चाहिए कि फ़ेसबुक पर मणिपुर के सामाजिक कार्यकर्ता ने एक वैज्ञानिक सच लिखा कि गोबर से कोरोना का इलाज नहीं हो सकता, तो फिर वह सच राष्ट्रद्रोह कैसे हो सकता है? राष्ट्र की चुनी हुई सरकार पर सवाल उठाने वालों को आप सरकार के बजाए देश के ऊपर सवाल बताकर आप ख़ुद ही राष्ट्र के साथ एक प्रकार का द्रोह किए जा रहे हैं, यह फूले मुँह से प्रसाद बाबू को बता देना चाहिए। वैसे प्रसाद बाबू को देखकर लगता है कि कपिल सिब्बल ने अपना शरीर बदल लिया हो!
 
नये आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव, जिनका नाम इस सूची में है, ने भी ज़्यादातर वही बातें कही, जो पुराने आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कही। वैष्णव ने नया यह कहा कि ऐसी सेवाएँ कहीं पर भी, किसी के लिए भी, खुले तौर पर उपलब्ध हैं, सरकारी एंजेंसियों के साथ साथ निजी कंपनियाँ भी ऐसी चीज़ें इस्तेमाल करती हैं।
 
विश्वगुरु बनने के लगभग आउटर पर खड़े भारत के आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जो कहा वह दोबारा पढ़ना समझना चाहिए। बतौर एक राष्ट्र के मंत्री, वो बहुत आसानी से जानकारी देते हैं कि ऐसी सेवाएँ किसी के लिए भी, कहीं पर भी उपलब्ध हैं। वे कहते हैं कि निजी कंपनियाँ भी इस्तेमाल करती हैं। दूसरी तरफ़ देश को बताया जाता है कि भारत में सख़्त क़ानून है और ऐसा करना ग़ैरक़ानूनी है। एक ही बयान के दो अलग अलग हिस्सों में कितना जबर्दस्त अंतर है। वे इसे ग़ैरक़ानूनी कहते हैं, साथ में इसे बहुत स्वाभाविक अंदाज़ में सेवाएँ कहते हैं। वे कहते हैं कि भारत में सख़्त क़ानून है, फिर कहते हैं कि कहीं पर भी कोई भी इस्तेमाल करता रहता है। जैसे कि सिंपल सी बात हो!
  
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने बयान तो नहीं दिया, किंतु ट्वीट ज़रूर किए। देश के गृहमंत्री के ट्वीट में कुछ विशेष नहीं था। वही घिसी पिटी बातें दिखी। देश के विकास में रोड़े डाले जा रहे हैं, देश विरोधी ताक़तों को सफल नहीं होने दिया जाएगा, विधटनकारी शक्तियाँ भारत को विकास पथ से विचलित नहीं कर सकतीं, भारत को अपमानित करने का प्रयास है, वगैरह वगैरह। अमित शाह के ट्वीट में कुछ ख़ास चीज़ें नहीं थीं। देश के गृह मंत्री अमित शाह के इस संवेदनशील मामले पर ऐसे ट्वीट देख यही लगा, जैसे कि व्हाट्सएप से कॉपी करके पेस्ट कर दिया हो!
 
भारत की सरकार जो दलीलें दे रही है, सवाल पूछा जा सकता है कि क्या क़रीब एक दर्जन देशों के सैकड़ों अख़बार और अस्सी से भी ज़्यादा नामचीन पत्रकार भारत को बदनाम करने के लिए दूसरे एक दर्जन देशों के नाम और उन देशों के सैंकड़ो नागरिकों के नाम इस कथित जासूसी कांड मे इसलिए डालेंगे, ताकि भारत को बदनाम किया जा सके? कोई भारत को बदनाम करने के लिए दुनियाभर के 50 हज़ार से भी ज़्यादा मोबाइल नंबरों को क्यों खँगालेगा भला? कोई मोदीजी को बदनाम करने के लिए एक दर्जन देशों में जाकर क्यों माथा पीटेगा? पेगासस प्रोजेक्ट अनेक देशों की सरकारों का पर्दाफ़ाश करता है, केवल भारत की सरकार का नहीं।
दुनियाभर की सरकारों ने यह काम किया था। दावा तो यह है। हज़ारों नंबरों की बात है। हम बात भारत की करे तो, फ़िलहाल दावा यह सामने आता है कि भारत में देश के 40 पत्रकारों की जासूसी पेगासस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई है! इसमें हिन्दुस्तान टाइम्स, द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, न्यूज़ 18 और द वायर के पत्रकार शामिल हैं। द वायर ने एक ख़बर में यह दावा किया है। एनडीटीवी ने एक ख़बर में कहा है कि इसके अलावा संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति और विपक्ष के तीन नेताओं की जासूसी भी स्पाइवेयर से की गई है।
 
पेगागस प्रोजेक्ट की पड़ताल में भारत की बात करे तो, भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के फ़ोन नंबर उस लीक डाटाबेस में पाए गए हैं! इसके अलावा लीगल कम्यूनिटी मेंबर्स, बिज़नेसमैन, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं और अन्यों के नंबर इस लिस्ट में शामिल हैं! प्राथमिक जानकारी के अनुसार इस लिस्ट में 300 से ज़्यादा भारतीय मोबाइल नंबर हैं।
 
हमारे यहाँ द वायर ने विश्लेषण रिपोर्टींग की है पेगासस प्रोजेक्ट को लेकर। इसका मतलब यह नहीं है कि उसने भारत या दुनिया को लेकर पड़ताल की हो। द वायर ने तो पेगासस प्रोजेक्ट की मीडिया रिपोर्ट का विश्लेषण ही किया है। शुरुआती जानकारी तो यही है। नये नाम व नयी जानकारियाँ आना बाकी है।
 
द वायर के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा आम चुनावों से पहले 2018 और 2019 के बीच ज़्यादातर को निशाना बनाया गया।
 
पेगासस ने भारतीय लोगों की जासूसी की थी। यह सच तो फ़ेसबुक से जुड़ा हुआ व्हाट्सएप सन 2019 में ही स्वीकार कर चुका है! जब व्हाट्सएप ने स्वीकार कर लिया था, तो फिर सरकार काहे अड़ी हुई है?
 
पेगासस बनाने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ कह रही है कि उसने कोई जासूसी नहीं की है। भारत की सरकार साफ़ साफ़ तो नहीं लेकिन गोलमोल जवाब दे रही है कि भारत में जासूसी वासूसी जैसा कुछ नहीं हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों में राजनीतिक जासूसी पेगासस के ज़रिए हुई है उसकी जाँच रिपोर्ट सामने रख रहा है। वे बाक़ायदा जिन लोगों की जासूसी हुई है उनके नाम सार्वजनिक कर रहे हैं। भारत में कुछेक मीडिया वाले उन अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट को लेकर पूरी रिपोर्ट छाप रहे हैं, कुछ नहीं छाप रहे। जिस प्लेटफॉर्म के ज़रिए जासूसी होने की बात है, वह व्हाट्सएप कंपनी के प्रमुख जासूसी की बात को स्वीकार करते हुए इसे रोकने के लिए दुनिया भर की सरकारों को अपील कर रहे हैं। इधर भारत की सरकार जासूसी से इनकार कर रही है।
  
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कौन क्या कह रहा था और क्या कह रहा है उसे संक्षेप में देख लेते हैं। द गार्जियन और वॉशिंग्टन पोस्ट ने क्या रिपोर्ट किया, वह ऊपर देखा। इन्हीं रिपोर्टों के बाद व्हाट्सएप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने कहा कि एनएसओ के ख़तरनाक स्पाइवेयर का इस्तेमाल दुनिया भर में मानवाधिकारों के घोर हनन के लिए किया जाता है और इसे रोका जाना चाहिए। पेगासस के बारे में रिपोर्ट आने के बाद विल कैथकार्ट ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये। कैथकार्ट ने कहा कि मानवाधिकार के रक्षकों, तकनीकी कंपनियों व सरकारों को सुरक्षा बढ़ाने व स्पाइवेयर का दुरुपयोग करने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
विल कैथकार्ट ने कहा कि उस समय हमने सिटिज़न लैब के साथ काम किया था, जिसने 20 से ज़्यादा देशों में मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों को ग़लत तरीक़े से 100 से ज़्यादा मामलों में टार्गेट किए जाने की पहचान की थी, लेकिन आज की रिपोर्टिंग से पता चलता है कि दुरुपयोग का वास्तविक पैमाना और भी बड़ा है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भयानक निहितार्थ हैं।
 
उन्होंने अपने एक ट्वीट में वॉशिंग्टन पोस्ट की एक ख़बर का ज़िक्र करते हुए लिखा कि 2019 में व्हाट्सएप ने एनएसओ के एक हमले को नाकाम किया था। उन्होंने कहा कि और अधिक कंपनियों और सरकारों के सहयोग से ऐसे क़दम उठाए जाने चाहिए ताकि एनएसओ ग्रुप को ज़िम्मेदार ठहराया जा सके। उन्होंने ग़ैर ज़िम्मेदार निगरानी तकनीक के ख़िलाफ़ वैश्विक एकजुटता की अपील भी की।
 
उन्होंने कहा कि यह इंटरनेट पर सुरक्षा के लिए एक सचेत होने वाला समय है, मोबाइल फ़ोन अरबों लोगों के लिए प्राथमिक कंप्यूटर है। वे कह गए कि सरकारों और कंपनियों को इसे यथासंभव सुरक्षित बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, हमारी सुरक्षा और स्वतंत्रता इस पर निर्भर करती है।
 
पेगासस ने जिस प्लेटफॉर्म का कथित रूप से सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया उसी प्लेटफॉर्म के प्रमुख जासूसी को एक तरीक़े से स्वीकार करते हैं! कहते हैं कि सचेत होने का वक़्त है। सरकारों से सह्योग की अपील करते हैं।
 
वैसे व्हाट्सएप वाले ख़ुद ही आम नागरिकों की निजी ज़िंदगी में झांकने के कथित अपराधों के चलते विवादों में रहते हैं! अब वे ख़ुद ही सरकारों से डिजिटल जासूसी रोकने के लिए सह्योग की अपील कर रहे हैं! जिन सरकारों का नाम इस कथित अपराध में हैं, वे कहेंगे कि रिपोर्ट झूठी है, निराधार है। भारत में यह कहा भी जा रहा है! ट्विटर, फ़ेसबुक, व्हाट्एसप जैसी कंपनियाँ अपना धंधा करती हैं, कथित रूप से कभी कभी नीति नियमों से परे जाकर धंधा करती हैं यह कंपनियाँ। उधर दुनिया की सरकारों के कारनामे सार्वजनिक हैं। भारत समेत दुनिया भर की सरकारें भी नीति नियमों से ऊपर जाकर काम करने के लिए बदनाम हो चुकी हैं। सोचिए, दोनों एक दूसरे से सह्योग की अपील कर रहे हैं! अबे बॉलीवुड वालों, तुम लोग ही कलाकार हो सकते हो क्या? तुमसे भी बड़े बड़े कलाकार दुनिया की राजनीति में मौजूद हैं।
  
पेगासस तैयार करने वाली कंपनी एनएसओ ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए तमाम आरोपों से इनकार किया है। कंपनी ने दावा किया है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य आतंकवाद और अपराध के ख़िलाफ़ लड़ना है। समाचार एजेंसी एनएनआई से एनएसओ ने कहा है कि फॉरिबेडन स्टोरीज़ की रिपोर्ट पूरी तरह से ग़लत और निराधार है।
 
एनएसओ का बयान यह नहीं है कि किसी देश की सरकारों ने अपने यहाँ डिजिटल तरीक़े से जासूसी नहीं की है। बल्कि एनएसओ साफ़ साफ़ यह कहता है कि हमारे सॉफ़्टवेयर पेगासस के ज़रिए निगरानी करने का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है, यह रिपोर्ट वास्तविकता से दूर है। एनएसओ ने भारत सरकार के साथ पेगासस की डील करने के मुद्दे पर कहा कि यह जानकारी गोपनीय है और हम यह साझा नहीं कर सकते।
बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक़ फॉरिबेडन स्टोरीज़ के संस्थापक लॉरें रिचर्ड ने बीबीसी के शशांक चौहान से फ़ोन पर बातचीत में कहा है कि दुनिया भर के सैकड़ों पत्रकार और मानवाधिकारों के हामी इस सर्विलेंस के शिकार हुए हैं। बीबीसी लॉरें रिचर्ड के हवाले से लिखता है कि उन्हें बहुत सारे टेलीफ़ोन नंबरों की सूची मिली थी, वे ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि यह सूची आख़िर कहाँ से निकाली गई हैं, इस लिस्ट में जितने नंबर हैं उनका ये मतलब नहीं है कि वे सभी नंबर हैक किए गए हैं, हमें एमेनेस्टी इंटरनेशनल की मदद से पता लगा कि इनमें से कुछ नंबरों की निगरानी एनएसओ कर रहा था।
 
रिचर्ड ने बीबीसी से कहा कि वे भविष्य में और नामों की सूची जारी करेंगे। उनका कहना था कि 50 से ज़्यादा देशों में चलाए गए इस सर्विलेंस अभियान का दायरा बहुत बड़ा है। वे बीबीसी को बताते हैं कि आने वाले हफ़्तों में बहुत सारी दमदार रिपोर्टें और कई तरह के लोगों के नाम सामने आएँगे।
 
पैराडाइज़ पेपर्स की तरह पेगासस प्रोजेक्ट भी दुनियाभर की सरकारों के काले कारनामे को संजोता है। एक दर्जन से ज़्यादा मीडिया संस्थानों ने इसकी पड़ताल की। व्हाट्सएप 2019 में भी स्वीकार कर चुका था, आज भी कर रहा है। उघर निष्पक्ष व स्वतंत्र एजेंसी ने डिजिटल फ़ोरेंसिक जाँच कर कहा है कि दस्तावेज़ में जिनके नाम हैं, उनकी जासूसी की गई है या कम से ऐसा करने की कोशिश की गई है।
 
इधर भारत की सरकार कहती है कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। इस मामले पर भारत सरकार ने हैकिंग में शामिल होने से इनकार किया है। कहा है कि विशेष लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार या इससे जुड़ी सच्चाई नहीं है। यहाँ यह बता दे कि भारत सरकार ने पेगासस स्पाइवेयर की ख़रीद या उपयोग के बारे में कोई जवाब नहीं दिया है।
 
मीडिया के सवालों के जवाब में आईटी मंत्रालय ने कहा कि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है जो अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार के बयान में कहा गया है कि इसको आगे बढ़ाते हुए सरकार की ओर से डाटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 लाया गया, ताकि व्यक्तिगत डेटा की रक्षा की जा सके और सोशल मीडिया यूज़र्स को सशक्त बनाया जा सके।

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भारत सरकार ने पेगासस मामले में कहा है कि उसने 'अनधिकृत जासूसी' नहीं की है। यूँ तो ये गोलमोल जवाब है। पेगासस ख़रीद के मामले में सरकार ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया है।
 
भारत सरकार ने कहा है कि न्यूज़ आर्टिकल से कुछ भी साबित नहीं होता। जी, बात तो सच है। टूजी स्कैम को लेकर न जाने क्या क्या रिपोर्टींग हुई, कितने आँकड़े आए। साबित कुछ नहीं हुआ। न्यूज़ रिपोर्टींग तो क्या, कैग रिपोर्ट भी साबित नहीं हुई! सीबीआई जाँच भी साबित नहीं हुई! यहाँ कुछ साबित होता कहाँ है? वैसे इतने बड़े बड़े मीडिया हाउस जो भी रिपोर्ट बना लें, अगर किसी छोटे से राज्य का छोटा सा न्यूज़ पेपर कहीं कोने में किसी बड़े विपक्षी नेता को लेकर कुछ सिरियस टाइप लिख दें, तो फिर यही मंत्री और यही नेता वहाँ रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन कर देंगे। भारत में आसानी से छोटी कविता पर बड़े बड़े महाभारत हो सकते हैं, और बड़े बड़े महाभारत को आसानी से छोटी सी कविता में भी बदला जा सकता है!
  
दुनिया भर के पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी नेताओं सरीखे नाम हैं सूची में! भारत में द वायर ने इस सूची का विश्लेषण कर भारत से संबंधित नाम सामने रखे हैं। द वायर के संस्थापक सदस्य, डिप्लोमैटिक एडिटर और कंट्रीब्यूटर का भी नाम है। द वायर कई मामलों पर सनसनीखेज़ रिपोर्टींग कर चुका है। द वायर की रोहिणी सिंह का भी नाम है। वही पत्रकार, जिन्होंने अमित शाह के बेटे जय शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक़ समझे जाने वाले व्यवसायी निखिल मर्चेंट पर ख़बरें की थीं।
पत्रकार सुशांत सिंह का भी नाम है। वे 2018 में इंडियन एक्सप्रेस के लिए काम किया करते थे। तब उन्होंने रफ़ाल मामले को लेकर रिपोर्टींग की थी। उन्होंने रफ़ाल सौदे को लेकर कई ख़बरें की थीं, जिससे कथित अनियमितताओं का पता चला।
 
फ़िलहाल जो सूची बाहर आई है, जिन पर कथित रूप से डिजिटल जासूसी की गई या वे निशाने पर थे, वह इस प्रकार है। आगे इनमें दूसरे नाम जुड़ सकते हैं।
 
1.         द वायर के संस्थापक सदस्य सिद्धार्थ वरदराजन
2.         द वायर के एम के वेणु
3.         रोहिणी सिंह
4.         देवीरूपा मित्रा
5.         प्रेम शंकर झा
6.         स्वाति चतुर्वेदी
7.         सुशांत सिंह
8.         हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता
9.         हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादकीय पेज के प्रभारी प्रशांत झा
10.       रक्षा मामलों के रिपोर्टर राहुल सिंह
11.       कांग्रेस के मामलों को कवर करने वाले औरंगज़ेब नक्शबंदी
12.       चुनाव आयोग कवर करने वाली ऋतिका चोपड़ा
13.       जम्मू-कश्मीर कवर करने वाले मुजम्मल जमील
14.       इंडियन एक्सप्रेस के संदीप उन्नीथन
15.       इंडिया टुडे के मनोज गुप्ता
16.       द हिन्दू की विजेयता सिंह
17.       द पायनियर के जे गोपीकृष्णन
18.       ईपीडब्लू के सैकत दत्त
19.       परंजॉय गुहा ठाकुरता
20.       स्मिता शर्मा
21.       एस एन एम आब्दी
22.       इफ़्तिख़ार गिलानी
23.       कई व्यापारी व उद्योगपति
24.       कई प्रशासनिक अफ़सर
25.       संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति
26.       एक जज
27.       विपक्ष के तीन नेता
 
द वायर ने इस सूची के बारे में लिखा है कि डेटाबेस में इनका नाम होना इस बात की ओर इशारा करता है कि ये जासूसी का टार्गेट थे, लेकिन इनका फ़ोन वास्तव में हैक हुआ या नहीं, ये फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच के बाद ही पता चल सकता है। बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट में लिखा है कि एआई ने पाया कि इनमें से सुशांत, परंजॉय, आबिदी, सिद्धार्थ और वेणु के फ़ोन में पेगासस से छेड़छाड़ की गई थी।
 
द वायर के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट में लिखा गया कि एक चौंकाने वाला नाम उस महिला का भी है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। दावा किया गया कि महिला और उसके परिजनों के फ़ोन नंबर (कुल 11 नंबर) उस सूची में पाए गए हैं। द वायर ने यह ज़रूर लिखा कि यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इन 11 लोगों की जासूसी की गई थी या नहीं, यह फोरेसिंक जाँच के बाद पता चलेगा। कहा गया कि उस महिला ने जब ये आरोप रंजन गोगोई पर लगाए उसके ठीक बाद से ही यह नंबर सूची में दर्ज हो गए थे।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद पटेल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा जैसे नामों का ज़िक्र भी कुछ मीडिया रिपोर्टों में हुआ। हालाँकि यह नाम उन प्रथम मीडिया रिपोर्ट के भीतर नहीं थे, किंतु दूसरे दिन के रिपोर्ट में ज़रूर थे। 
 
भारत में 2019 में पेगासस के ज़रिए जासूसी का मामला सामने आया था। उस समय व्हाट्सएप ने स्वीकार किया था कि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान दो हफ़्ते के लिये भारत में कई पत्रकारों, शिक्षाविदों, वकीलों, मानवाधिकार और दलित कार्यकर्ताओं पर नज़र रखी गई थी। 2019 में फ़ेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप ने कहा था कि इजरायली एनएसओ समूह ने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर 1400 व्हाट्सएप यूज़र्स की निगरानी की थी। किसके कहने पर की, किसने करवाई, कभी सामने नहीं आया।
  
और आज भारत सरकार बिना जाँच के कह रही हैं कि भारत में जासूसी वासूसी जैसी कोई चीज़ नहीं हुई!!! जबकि आज जो बात सामने आई है वह 2019 से ही तो संबंधित है। उस वक़्त यह हैरान करने वाली जानकारी सैन फ़्रांसिस्को की एक अमेरिकी संघीय अदालत में एक मुक़दमे की सुनवाई के दौरान सामने आई थी। इस मुक़दमे में व्हाट्सएप ने इजरायली एनएसओ समूह और पेगासस पर ही आरोप लगाया था।
 
2019 में जब यह सच अदालत के भीतर खुला तो मानवाधिकार कार्यकर्ता जो आरोप लगाया करते थे उसको मजबूत आधार मिल गया। एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने 2019 में कहा था कि अंत में सच सामने आ ही गया, मैंने यह मुद्दा कई बार उठाया, कई बार कहा कि मेरे व्हाट्सएप पर हमला हुआ है, मैं अपना जवाब 4-5 बार टाइप करती थी, वह गायब हो जाता था। उन दिनों वरिष्ठ पत्रकारों ने कहा था कि यह तो डराने वाली बात है, चलिए हम पहले की तरह कॉफ़ी शॉप में लोगों से मिलना शुरू करें।
 
नवंबर 2019 में पहली दफा उछला था पेगासस का यह कथित जासूसी कांड। लोकसभा और विधानसभा में हंगामा भी हुआ था। उस वक़्त सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद थे। उन्होंने कहा था कि मेरी जानकारी के हिसाब से किसी भी ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से जासूसी नहीं की गई। उन्होंने भी वही बयान दिया था, जो आज के नये मंत्रीजी ने दिया है। अनधिकृत तरीक़े से जासूसी नहीं की गई, वाला बयान। मेरी जानकारी के हिसाब से, यह वाला हिस्सा भी प्रसाद के जवाब में था।
2019 में यह ख़बर पूरी दुनिया में छा गई थी। 2021 में, क़रीब दो सालों बाद, पेगासस का प्रेत फिर एक बार आ धमका है।
 
2016 का पनामा पेपर्स (Panama Papers) और 2017 का पैराडाइज़ पेपर्स (Paradise Papers) वाला सनसनीखेज़ मामला याद कर लीजिए। दुनिया के नामी खोजी पत्रकारों ने सनसनीखेज़ रिपोर्ट छापी थी। कुल 180 देशों के नामचीन नेताओं और नागरिकों के नाम थे इसमें। इस मामले में भी भारत से कई बड़े बड़े नाम सामने आये थे। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन का भी नाम था टैक्स चोरी के इस कथित अंतरराष्ट्रीय घोटाले में! केंद्रीय मंत्री, बीजेपी के नेता, कांग्रेस के नेता, उद्योगपति, कलाकार, समेत 500 से ज़्यादा ख्यातिप्राप्त नाम थे! बवाल हुआ तो जाँच की बात की गई। जाँच का अंजाम पूछने का रिवाज हमारे यहाँ नहीं है! इस मामले में पाकिस्तान में जाँच हुई और नवाज़ शरीफ़ दोषी साबित हुए। हमारे यहाँ लोकसभा में सरकार ने कह दिया कि पाकिस्तान जो करेगा ज़रूरी नहीं कि भारत उसी प्रकार से अपनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाए!
  
इस साल पेगासस का मामला फिर एक बार उठा तो गुजरात के लोकल अख़बार दिव्य भास्कर ने एक पुराना जासूसी कांड याद दिलाया है। 19 जुलाई 2021 के दिन दिव्य भास्कर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि फ़ोन टैपिंग का विवाद मोदी-शाह के लिए नया नहीं है। यह लिखकर आज से 15 साल पहले का वो कथित जासूसी कांड ताजा किया गया, जिसे गुजरात कोबरा पोस्ट स्नूपगेट (Cobrapost Snoopgate) के नाम से आज भी याद किया जाता है।

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2009 का कोबरा पोस्ट और गुलेल स्नूपगेट सीएम नरेंद्र मोदी और उनके साथी अमित शाह से संबंधित था। यह ज़्यादा चौंकाने वाला और सनसनीखेज़ इसलिए था, क्योंकि इसमें दावा एक लड़की की जासूसी का था! इससे पहले 2005 में गुजरात के बीजेपी के ही नेता गोरधन झड़फिया ने सनसनीखेज़ आरोप लगाते हुए कहा था कि सीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह उनके फ़ोन टैप कराते हैं! नोट करें कि गोरधन झड़फिया गुजरात के गृह मंत्री रह चुके हैं और 2018 में इन्हें उत्तर प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई थी। 2005 में टैपिंग का आरोप लगाते समय झड़फिया फफक कर रो पड़े थे। आरोप लगाया था कि नरेंद्र भाई उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं।
 
दिव्य भास्कर इस रिपोर्ट में लिखता है कि गुजरात में जब नरेंद्र मोदी सीएम थे तब अनेक राजनेता और अधिकारियों के फ़ोन टैपिंग के आरोप लगे थे! गुजरात बीजेपी के कदावर नेता गोरधन झड़फिया के अलावा राज्य के दूसरे कदावर विपक्षी नेताओं ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे और जाँच की मांग की थी। गुजरात के पूर्व गृह मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता स्व. हरेन पांडया की जासूसी का मामला भी बवाल मचा गया था।
 
इन सबमें सनसनीखेज़ मामला था कोबरा पोस्ट और गुलेल का स्नूपगेट कांड। 2013 में यह कथित जासूसी कांड बाहर आया। संबंध था साल 2009 से। किंतु सनसनीखेज़ चीज़ यह थी कि इसमें एक लड़की की जासूसी की बात थी! प्रेस कॉन्फरन्स हुई थी कोबरा पोस्ट और गुलेल की। वहाँ अमित शाह और अहमदाबाद एटीएस के तत्कालीन एसपी जीएल सिंघल के बीच 4 अगस्त 2009 से 6 दिसंबर 2009 की बातचीत पेश की गई। पूरी कथित बातचीत आज भी कई जगहों पर मौजूद है। यह मामला ख़ूब विवाद पैदा कर गया था।
कथित जासूसी कांड से पूरी तरह इनकार किया गया। तत्कालीन कांग्रेस शासित केंद्र सरकार ने जाँच समिति बना दी। उधर गुजरात सरकार ने भी दो सदस्यीय जाँच आयोग का गठन किया। ट्विस्ट तब आया जब जिस महिला की गतिविधियों पर कथित तौर पर गुजरात सरकार के कहने पर नज़र रखी जा रही थी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी कि मामले की जाँच रोकी जाए क्योंकि उनके पिता के कहने पर गुजरात सरकार उन पर नज़र रख रही थी और उनके फ़ोन टैप किए जा रहे थे। उधर 2014 में गुजरात हाईकोर्ट ने जाँच आयोग को रद्द कर दिया।
 
महिला ने जो अर्जी दी उसमें एक तरीक़े से जासूसी और टैपिंग की बात सही साबित हो रही थी! यह मामला इधर उधर जाता रहा। फिर नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बने और अमित शाह भारत के दो नंबर के ताक़तवर शख़्स बन गए। इसके बाद इस स्नूपगेट कांड को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग को जाँच कराने के लिए पत्र आते रहे, किंतु मामला अब बर्फ़ के नीचे है।
 
2019 में जब पेगासस जासूसी का मामला सामने आया तब मध्य प्रदेश हनीट्रैप की भी कहानी खुली थी। तब कहा गया था कि बेंगलुरु की एक कंपनी नेताओं और अफ़सरों के फ़ोन टैप करती थी, पेगासस के ज़रिए। मध्य प्रदेश का यह हनीट्रैप कांग्रेस की कमलनाथ सरकार से जुड़ा तो बीजेपी के नेताओं के मुँह खुलकर खुले थे। जबकि यह मामला मुख्य रूप से भारत के सैकड़ों पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की कथित जासूसी की कहानी से जुड़ा था।
 
रही बात ऐसे स्नूपगेट की, जासूसी के विवादों की, यह भारत का दशकों पुराना फेविकोल है! जासूसी के आरोप के चलते यहाँ चन्द्रशेखर की सरकार गिर गई थी! स्व. राजीव गाँधी पर उस समय जासूसी कराने के आरोप लगे थे! इससे पहले भी तथा इसके बाद भी हमारे यहाँ केंद्र हो या राज्य सरकारें हो, ऐसे आरोप लगते रहे हैं। 2014 से पहले की मनमोहन सरकार शासित यूपीए सरकार पर अपने ही दिग्गज मंत्री स्व. प्रणब मुखर्जी समेत अन्य नेताओं की जासूसी के आरोप लगे थे! यूपीए सरकार के ही दौरान जनरल वीके सिंह की कथित जासूसी का मामला सामने आया था।
 
2015 में पेट्रोलियम मंत्रालय में जासूसी का मामला सामने आया था! 2018 में ममता बनर्जी, नरेंद्र मोदी और सीबीआई वाले बहुचर्चित विवाद के दौरान दिल्ली में दो आईबी अधिकारियों को छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की निगरानी के आरोप में उठा लिया गया था! अभी इसी महीने आर्सेनल लैब की ही रिपोर्ट छपी थी। आर्सेनल ने फोरेंसिक जाँच के बाद बताया था कि स्टेन स्वामी, आनंद तेलतुंबडे, सुरेंद्र गाडलिंग जैसे लोगों के कंप्यूटर को हैक कर लिया गया, उसमें फ़र्ज़ी दस्तावेज़ डाले गए! ये ज़रूर है कि पेगासस प्रोजेक्ट की तर्ज पर ऐसे होलसेल स्नूपिंग के आरोप दूसरी कहानियों से बहुत अलग है।
कोई भी राज्य हो, राज्य के लिए नहीं बल्कि राजनीति के लिए, विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के पीछे स्थानिक पुलिस या स्टेट आईबी को लगाने के कथित मामले चलते फिरते ही मिल जाएँगे आपको। मगन को उसकी कहानी सुनाओ तो वह छगन के हिस्से की गाथा सुनाने लगेगा! मगन के लिए छगन है, छगन के लिए मगन! मगन और छगन, दोनों क्या करेंगे जब गन ख़ुद ही तैयार हो रही है अपनी केंद्रीय पारी के लिए! ख़ैर, किंतु जासूसी की कहानियाँ भारतीय राजनीति में आपको मिल ही जाएगी। कहानियाँ मिलेगी, अंतिम नतीजे कभी नहीं मिलेंगे!
 
वैसे भारतीय राजनीति का एक पैटर्न भी आपको यहाँ समझ लेना चाहिए। भारतीय राजनीति मानती है कि विरोधियों को अदालत में गुनहगार साबित करने से ज़्यादा फ़ायदा तो उसे अदालत तक पहुंचा देने से ही मिल जाता है। सबूतों से ज़्यादा नैरेटिव काम आता है!
 
बेचारे 007 वाले बंदे की तो कोई साख़ ही नहीं रही अब! बड़ा आया जेम्स बॉन्ड! तुम जैसों को तो दुनिया की सरकारें मामूली नौकरी पर रखने लगी है अब! मान लीजिए कि मामला साबित हो गया। अरे भाई, पता है कि यह अकल्पनीय है। किंतु थोड़ी देर के लिये मान लीजिए कि साबित हो गया। तब भी क्या? क्या होगा इससे? नैरेटिव यह तैयार हो जाएगा कि सरकार ने तो राष्ट्रहित के लिए जासूसी की थी। आईटी मंडल के ज़रिए वातावरण बन जाएगा कि जो लोग राष्ट्रविरोधी प्रवृत्ति कर रहे थे उन पर निगरानी रखना राष्ट्रहित है।
 
ये 007 वाला ऊपर का पूरा पैरा तो कल्पना थी। अरे भाई, बात ही पेगासस की है, तो थोड़ा बहुत पेगासस कर लिया एक पैरा में! पेगासस को छोड़ रियलिटी की बात करें तो...। अरे वह बात तो इस लेख के सबसे पहले पैरा में कर तो दी।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)