काले हिरण को किसी ने नहीं मारा था, उसने तो ख़ुदकुशी कर ली थी! टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ तो था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! आरुषि का क़त्ल हुआ था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! भारत में भी पनामा पेपर्स और पैराडाइज़
पेपर्स स्कैम हुआ था, लेकिन किसी ने नहीं किया था! हर चुनाव से पहले और चुनाव के बाद
नेता लोगों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती तो है, फिर भी उन्हें कोई नहीं ख़रीदता! ये सब इसलिए होता है, क्योंकि क़ानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, बस टांगे छोटी पड़ जाती हैं!
ऊपर के पैरा से यह क़तई ना माने कि हमने शुरुआत से यह कह दिया
कि पेगासस जासूसी मामला हुआ ही है। हम ऐसा नहीं कह रहे। हम कह रहे हैं कि कुछ अपराध
अगर हुए भी होते हैं, तब भी उसे साबित करना कितना मुश्किल होता है। एक दूसरी चीज़
भी है इन अपराधों को लेकर। स्कैम, घोटाले, गड़बड़ी, अपराध... जो भी कह लें, इन सबको लेकर हमारी सामाजिक व्यवस्था में एक
ट्रेंड अरसे से क़ायम है। ट्रेंड यह कि इसे साबित करने की ज़रूरत ही नहीं होती! क्योंकि
समर्थकों को यक़ीन होता है कि नहीं हुआ है, विरोधियों को भरोसा होता है कि हुआ है!
दुनिया की कहानियाँ आप ख़ुद ही पढ़ लीजिएगा। भारत की बात करें तो भारत में राजनीतिक जासूसी का जिन्न दशकों पुराना है। भाजपा और आरएसएस वाले बिना
सबूत के भी यह मानते हैं कि कांग्रेस वालों ने कई दफा राजनीतिक जासूसी की है। कांग्रेस
वाले भी भाजपा आरएसएस के बारे में बिना सबूत के यही मानते हैं। रही बात जासूसी के सबूतों
की, जासूसी डिजिटल तरीक़े से हो तो फिर उसके सबूत, तथ्य, जाँच, अपराध साबित करना, ये सब टेढ़ी खीर है।
पेगासस जासूसी (Pegasus
Snoopgate) मामले को समझने से पहले राजनीति को एक पैरा
में ही समझा जा सकता है। अगर कांग्रेस काल में यह हुआ होता तो बीजेपी और आरएसएस के
लोग बिना सबूत के ही आज देशभर में हल्ला मचा रहे होते। बिना क़ानूनी जाँच के मीडिया
जाँच को अंतिम नतीजा मानकर अपना कर्तव्य निभा रहे होते। तब कांग्रेस वाले वही बोल रहे
होते, जो आज बीजेपी वाले बोल रहे हैं। आज यह कथित अपराध बीजेपी के दौर में हुआ है, सो दलीले और तर्क वहीं रखिएगा, बस किरदार को बदल लीजिएगा।
यहाँ क़ायदे से आपके खाते से कोई पैसा उड़ा ले जाए तब भी सात समंदर पार करने जैसी
मुश्किल प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है, तो फिर डिजिटल, या यूँ कहे कि तकनीकी तरीक़े से की गई राजनीतिक जासूसी को लेकर प्रक्रियाएँ कितनी मुश्किल होगी यह सोच कर ही दिल
चाहता है कि सोचना ही बंद कर लें।
ग़ज़ब यह कि रिपोर्ट आने के पहले बीजेपी के पुराने जासूस नेता सुब्रमण्यम स्वामी
ने इसे लेकर ट्वीट किया था! उन्होंने लिखा था कि इस तरह की अफ़वाह है कि वॉशिंग्टन पोस्ट
और लंदन गार्जियन एक रिपोर्ट छापने जा रहे हैं, जिसमें इज़रायल की फर्म
पेगासस को मोदी कैबिनेट के मंत्री, आरएसएस के नेता, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और पत्रकारों के फ़ोन टैप करने
के लिए हायर किए जाने का भंडाफोड़ होगा। स्वामी के इस ट्वीट पर कांग्रेसी नेता दिग्विजय
सिंह समेत कई लोगों ने प्रतिक्रिया भी दी थी।
स्वामी के ट्वीट के मुताबिक़ रिपोर्ट प्रकाशित
होती है और नाम सामने आते हैं! स्वामी की टाइमिंग ग़ज़ब कहे या रिपोर्ट प्रकाशित करने के
समय को, दोनों वाक़ई ग़ज़ब हैं। वो द्दश्य याद आ गया जब एयर स्ट्राइक
से पहले 25 फ़रवरी 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अफ़ग़ान रिफ्यूजी को लेकर
ट्वीट करते हैं। पाकिस्तानी पीएम के इस ट्वीट के नीचे द स्किन डॉकटर नाम का एक यूज़र
लिखता है कि कोई फ़ायदा नहीं इमरान भाई, आज रात वैसे भी अटैक होने
वाला है, टेक केयर। भारत ने उसी सुबह, 26 फ़रवरी को तड़के एयर स्ट्राइक किया था पाकिस्तान के ऊपर। नोटबंदी होने वाली
थी और उससे पहले एक-दो अख़बारों ने पहले ही छाप दिया था कि नोटबंदी होने वाली है। संयोग
से योग या योग से संयोग? जासूसी की दुनिया में योग, संयोग, भोग, सब कुछ सुदर्शन चक्र सरीखा घूमने लगता है।
पेगासस का प्रेत 2019 के बाद 2021 में फिर एक बार रास्ते पर नज़र आ गया है। दो साल बाद फिर से यह प्रेत रास्ते पर आ गया, इसके पीछे कुछ तो वजहें रही होगी। राजनीतिक वजहें होने की संभावना ज़्यादा दिखती है। बहरहाल, वजहें राजनीतिक हो तब भी कथित अपराध को आसानी से नज़रअंदाज़ भी
नहीं किया जा सकता। यह कथित अपराध 2023 में फिर से आए तब भी वजहें राजनीतिक होगी, क्योंकि अगर अपराध हुआ है तो अपराध भी राजनीतिक ही तो है।
दरअसल फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था फ़ोरबिडेन स्टोरीज़ (Forbidden Stories) और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और कई समाचार एजेंसियों
और संस्थाओं के साथ साझा किया। इसका नाम रखा गया Pegasus
Project, पेगासस प्रोजेक्ट। ख़बरों के मुताबिक़ इस प्रोजेक्ट
में दुनिया के 16 मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट की पड़ताल व विश्लेषण में सह्योग दिया
है।
फ्रांस की डासो एविएशन और भारत की रिलायंस डिफेंस का रिश्ता कितना भी अच्छा हो, लेकिन वहाँ की ग़ैरसरकारी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ
भारत की मोदी सरकार का रिश्ता अच्छा नहीं रहा। एमनेस्टी इंटरनेशनल सामाजिक और सरकारी
मुद्दों पर अपने रिपोर्ट तैयार करती है। मानवाधिकार, भ्रष्टाचार, मीडिया स्वतंत्रता आदि को लेकर उसके अनेक रिपोर्ट सालों से
आते रहे हैं। 2014 से पहले मोदीजी और बीजेपी के लोगों ने कई बार इसी संस्था के रिपोर्ट्स
को आधार बनाकर कांग्रेस शासित मनमोहन सरकार को घेरने का कर्तव्य निभाया था। तब एमनेस्टी
इंटरनेशनल भारत की अस्मिता से खेलती नहीं थी। जब से इस ग़ैरसरकारी संस्था ने मोदी सरकार
के दौर में उसी प्रकार के रिपोर्ट जारी रखे, भारत की अस्मिता जाग उठी! ग़ैरसरकारी संस्था नहीं
सुधरी तो मोदी सरकार ने एनजीओ वाले क़ानून के ज़रिए इसे भारत में प्रतिबंधित कर दिया।
रिपोर्ट में नाम उसी पेगासस का है, जो नाम 2019 में चमका था।
इजरायली कंपनी एनएसओ पेगासस सॉफ़्टवेयर बना कर बेचती है। दावा यह है कि इसी सॉफ़्टवेयर
के ज़रिए मोबाइल फ़ोन के डेटा चुरा लिए गए, उन्हें हैक कर लिया गया
या उन्हें टैप किया गया। यूँ तो 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों की जासूसी की बात है। इधर
द गार्जियन, वॉशिंग्टन पोस्ट, ला मोंद ने 10 देशों के
1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की
फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल
किया गया था।
यहीं से फूले मुँह आने वाले भूतपूर्व मंत्री रविशंकर प्रसादजी की वह दलील अंडरग्राउंड
गटर में चली जाती है, जिसमें उन्होंने यह कहते हुए बचाव किया कि यह भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश है। 50 हज़ार से अधिक नंबरों को दुनियाभर में कई सरकारों ने ट्रैक
किया, दावा यह है। इसमें कई देश हैं, कई नंबर हैं, कई राष्ट्रों के लोग हैं।
तो फिर रविशंकर प्रसादजी को उन सभी देशों का नाम लेकर कहना चाहिए था कि यह उन सभी देशों
के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश है। प्रसाद बाबू कहेंगे कि मैं दूसरे देशों की बात क्यों
करूं, मैं तो मेरे देश की ही बात करूंगा न। बस ऐसे ही, सीधी सी बात है कि भारत के लोग भारत की ही बात करेंगे न, दूसरे देशों की बात दूसरे देश वाले कर लेंगे। जब दुनियाभर की
सरकारों ने यह किया है तो फिर यह महज़ भारत के ख़िलाफ़ ही साज़िश कैसे हो सकती है? व्हाट्सएप सरीखी दलीलें
ऐसे दिग्गज नेता करेंगे तो फिर दलील को किस दायरे में रखें।
रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के समय को लेकर सवाल उठाया वह कुछ हद तक ठीक है। मानसून
सत्र के महज़ एक दिन पहले का समय। किंतु केवल समय के चयन की दलील के चलते सारी बातें
बेकार साबित नहीं होती। प्रसाद ने दलील दी कि जब 45 देश पेगासस का इस्तेमाल कर रहे
हैं तो फिर भारत पर ही सवाल क्यों? अब इतनी सिंपल सी बात इस
भूतपूर्व मंत्री को नहीं पता यह वाक़ई ग़ज़ब स्तर ही कह लीजिए! अरे प्रसादजी, भारत के नागरिक आपसे क्या अज़रबैजान के बारे में सवाल पूछेंगे? भारत की ही बात करेंगे
न भारत के लोग, अज़रबैजान की क्यों करेंगे?
दूसरी बात यह कि पेगासस वाली कंपनी कहती है कि कौन सा देश और कौन सी सरकार को हमने
पेगासस बेचा यह गोपनीय मामला है। बताइए, इतने गोपनीय मामले का पता
है प्रसादजी को! कह रहे हैं कि 45 देश इस्तेमाल कर रहे हैं। स्वामी से भी बड़े जासूस निकले प्रसादजी!
रविशंकर प्रसाद ने एनएसओ के हवाले से कहा कि कंपनी कह रही है कि ज़्यादातर पश्चिमी
देश उसके उपभोक्ता हैं, तो फिर भारत को इस मामले में क्यों निशाना बनाया जा रहा है? बताइए, इनसे पत्रकार सवाल पूछते हैं तो बदले में ये पत्रकारों से सवाल
पूछते हैं!!! पत्रकार पूछते हैं कि भारत सरकार पेगासस की उपभोक्ता है क्या? तो ये कहते हैं कि यह गोपनीय
मामला है। यह कहकर प्रसादजी पूछते हैं कि भारत को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? अरे प्रसादजी, इतने सारे लोग अज़रबैजान या जिम्बाब्वे के होते तो कोई आपसे
सवाल नहीं पूछता। भारत के लोगों के नाम कथित रूप से हैं तो फिर सवाल तो पूछेंगे ही
न?
प्रसादजी सीधा सीधा कह देते हैं कि भारत सरकार या भाजपा, दोनों में से किसी को जोड़ने का अंशमात्र सबूत नहीं है। जबकि जाँच तो हुई ही नहीं
है!!! पहले से तय हो गया कि सबूत नहीं है!!! सरकार की छवि ख़राब करने की कोशिश, भारत के विरुद्ध एजेंडा, आदि आदि सदाबहार दलीलों से रविशंकर प्रसादजी ने आँखें दिखाते हुए अपनी बात ख़त्म कर दी!
रफ़ाल जैसा द्दश्य दोहराया जा रहा है! रफ़ाल को लेकर मीडिया रिपोर्ट के बाद फ्राँस ने हाल ही में
जाँच की शुरुआत की है। भारत में अदालत ने बहुत पहले कह दिया है कि यह संसद तय करें।
संसद में बहुमत जिसके पास है वह जाँच की बात मान नहीं रहे!
18 जुलाई 2021 के दिन इसे
लेकर, क़रीब दो साल बाद, फिर एक बार ख़बर आई। ख़बर यह कि दुनियाभर की कई सरकारों ने
50,000 से अधिक नंबरों को ट्रैक करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया था।
द गार्जियन और वॉशिंग्टन पोस्ट ने अपने रिपोर्ट में यह दावा किया। 50 हज़ार से अधिक
नंबरों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया था। यह दावा इन रिपोर्ट के ज़रिए
किया गया। नोट करें कि पड़ताल के बाद दावा फ़ोन हैकिंग और फ़ोन टैपिंग का भी है।
उधर फ्राँस ने इस मामले
के सामने आने के बाद जाँच के आदेश दे दिए हैं। भारत सरकार ने बिना जाँच के एलान कर
दिया है कि कुछ नहीं हुआ है! जाँच करने में क्या जाता है? जाँच का अंजाम तो हमारे यहाँ सबको पता ही होता है। कम से कम जाँच के बाद सबके
मुँह इतनी आसानी से तो नहीं खुलेंगे न।
विश्वगुरु बनने के लगभग
आउटर पर खड़े भारत के आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जो कहा वह दोबारा पढ़ना समझना
चाहिए। बतौर एक राष्ट्र के मंत्री, वो बहुत आसानी से जानकारी देते हैं कि ऐसी सेवाएँ किसी के लिए भी, कहीं पर भी उपलब्ध हैं। वे कहते हैं कि निजी कंपनियाँ भी इस्तेमाल
करती हैं। दूसरी तरफ़ देश को बताया जाता है कि भारत में सख़्त क़ानून है और ऐसा करना
ग़ैरक़ानूनी है। एक ही बयान के दो अलग अलग हिस्सों में कितना जबर्दस्त अंतर है। वे इसे
ग़ैरक़ानूनी कहते हैं, साथ में इसे बहुत स्वाभाविक अंदाज़ में सेवाएँ कहते हैं। वे कहते हैं कि भारत में सख़्त क़ानून है, फिर कहते हैं कि कहीं पर
भी कोई भी इस्तेमाल करता रहता है। जैसे कि सिंपल सी बात हो!
पेगासस बनाने वाली इजरायली
कंपनी एनएसओ कह रही है कि उसने कोई जासूसी नहीं की है। भारत की सरकार साफ़ साफ़ तो नहीं
लेकिन गोलमोल जवाब दे रही है कि भारत में जासूसी वासूसी जैसा कुछ नहीं हुआ है। अंतरराष्ट्रीय
मीडिया भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों में राजनीतिक जासूसी पेगासस के ज़रिए हुई है
उसकी जाँच रिपोर्ट सामने रख रहा है। वे बाक़ायदा जिन लोगों की जासूसी हुई है उनके नाम
सार्वजनिक कर रहे हैं। भारत में कुछेक मीडिया वाले उन अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट
को लेकर पूरी रिपोर्ट छाप रहे हैं, कुछ नहीं छाप रहे। जिस प्लेटफॉर्म के ज़रिए जासूसी होने की बात है, वह व्हाट्सएप कंपनी के प्रमुख जासूसी की बात को स्वीकार करते
हुए इसे रोकने के लिए दुनिया भर की सरकारों को अपील कर रहे हैं। इधर भारत की सरकार
जासूसी से इनकार कर रही है।
वैसे व्हाट्सएप वाले ख़ुद
ही आम नागरिकों की निजी ज़िंदगी में झांकने के कथित अपराधों के चलते विवादों में रहते
हैं! अब वे ख़ुद ही सरकारों से डिजिटल जासूसी रोकने के लिए सह्योग
की अपील कर रहे हैं! जिन सरकारों का नाम इस कथित अपराध में हैं, वे कहेंगे कि रिपोर्ट झूठी है, निराधार है। भारत में यह कहा भी जा रहा है! ट्विटर, फ़ेसबुक, व्हाट्एसप जैसी कंपनियाँ अपना धंधा करती हैं, कथित रूप से कभी कभी नीति नियमों से परे जाकर धंधा करती हैं
यह कंपनियाँ। उधर दुनिया की सरकारों के कारनामे सार्वजनिक हैं। भारत समेत दुनिया भर
की सरकारें भी नीति नियमों से ऊपर जाकर काम करने के लिए बदनाम हो चुकी हैं। सोचिए, दोनों एक दूसरे से सह्योग की अपील कर रहे हैं! अबे बॉलीवुड वालों, तुम लोग ही कलाकार हो सकते हो क्या? तुमसे भी बड़े बड़े कलाकार दुनिया की राजनीति में मौजूद हैं।
भारत सरकार ने कहा है कि
न्यूज़ आर्टिकल से कुछ भी साबित नहीं होता। जी, बात तो सच है। टूजी स्कैम को लेकर न
जाने क्या क्या रिपोर्टींग हुई, कितने आँकड़े आए। साबित कुछ नहीं हुआ। न्यूज़ रिपोर्टींग तो
क्या, कैग रिपोर्ट भी साबित नहीं हुई! सीबीआई जाँच भी साबित नहीं हुई! यहाँ कुछ साबित होता कहाँ है? वैसे इतने बड़े बड़े मीडिया हाउस जो भी रिपोर्ट बना लें, अगर किसी छोटे से राज्य का छोटा सा न्यूज़ पेपर कहीं कोने में
किसी बड़े विपक्षी नेता को लेकर कुछ सिरियस टाइप लिख दें, तो फिर यही मंत्री और यही नेता वहाँ रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन
कर देंगे। भारत में आसानी से छोटी कविता पर बड़े बड़े महाभारत हो सकते हैं, और बड़े बड़े महाभारत को आसानी से छोटी सी कविता में भी बदला
जा सकता है!
2. द वायर के एम के वेणु
3. रोहिणी सिंह
4. देवीरूपा मित्रा
5. प्रेम शंकर झा
6. स्वाति चतुर्वेदी
7. सुशांत सिंह
8. हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता
9. हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादकीय पेज के प्रभारी प्रशांत झा
10. रक्षा मामलों के रिपोर्टर राहुल सिंह
11. कांग्रेस के मामलों को कवर करने वाले औरंगज़ेब नक्शबंदी
12. चुनाव आयोग कवर करने वाली ऋतिका चोपड़ा
13. जम्मू-कश्मीर कवर करने वाले मुजम्मल जमील
14. इंडियन एक्सप्रेस के संदीप उन्नीथन
15. इंडिया टुडे के मनोज गुप्ता
16. द हिन्दू की विजेयता सिंह
17. द पायनियर के जे गोपीकृष्णन
18. ईपीडब्लू के सैकत दत्त
19. परंजॉय गुहा ठाकुरता
20. स्मिता शर्मा
21. एस एन एम आब्दी
22. इफ़्तिख़ार गिलानी
23. कई व्यापारी व उद्योगपति
24. कई प्रशासनिक अफ़सर
25. संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति
26. एक जज
27. विपक्ष के तीन नेता
भारत में 2019 में पेगासस के ज़रिए जासूसी का मामला सामने आया था। उस समय व्हाट्सएप
ने स्वीकार किया था कि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान दो हफ़्ते के लिये भारत में कई पत्रकारों, शिक्षाविदों, वकीलों, मानवाधिकार और दलित कार्यकर्ताओं पर नज़र रखी गई थी। 2019 में फ़ेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप ने कहा था कि इजरायली
एनएसओ समूह ने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर 1400 व्हाट्सएप यूज़र्स की निगरानी की थी। किसके कहने पर की, किसने करवाई, कभी सामने नहीं आया।
2016 का पनामा पेपर्स (Panama Papers) और 2017 का पैराडाइज़ पेपर्स (Paradise Papers) वाला सनसनीखेज़ मामला याद कर लीजिए। दुनिया के नामी खोजी पत्रकारों
ने सनसनीखेज़ रिपोर्ट छापी थी। कुल 180 देशों के नामचीन नेताओं और नागरिकों के नाम थे इसमें। इस मामले
में भी भारत से कई बड़े बड़े नाम सामने आये थे। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और
उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन का भी नाम था टैक्स चोरी के इस कथित अंतरराष्ट्रीय घोटाले
में! केंद्रीय मंत्री, बीजेपी के नेता, कांग्रेस के नेता, उद्योगपति, कलाकार, समेत 500 से ज़्यादा ख्यातिप्राप्त नाम थे! बवाल हुआ तो जाँच की बात की गई। जाँच का अंजाम पूछने का रिवाज हमारे यहाँ नहीं
है! इस मामले में पाकिस्तान में जाँच हुई और नवाज़ शरीफ़ दोषी साबित
हुए। हमारे यहाँ लोकसभा में सरकार ने कह दिया कि पाकिस्तान जो करेगा ज़रूरी नहीं कि
भारत उसी प्रकार से अपनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाए!
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