नेता लोग संस्कृति, अस्मिता आदि की बातें
बहुत करते हैं, लेकिन इनकी वाणी संस्कृति
व अस्मिता के विरुद्ध ही होती है। राजनीति की छतरी ऐसी कि बात हिंदुस्तान की, लेकिन जुबां हिंदुस्तानी नहीं रहती। तभी तो इन्हें नेता कहा
जाता है, वर्ना राजपुरुष न कहा
करते। अब तो हालात यह है कि हर नये बिगड़े बोल पुराने बोलों को अच्छा साबित कर देते
हैं।
पार्ट 3
जो लोग सार्वजनिक जीवन
में हैं, सार्वजनिक मंचों पर हैं, उन्हें इस मर्यादा का विशेष ध्यान रखना होता है। यूँ तो ध्यान
सभी को रखना होता है यह नोट करें। हम पिछली दफा ऐसे कई पुराने बिगड़े बोल को नोट कर
चुके हैं। वहीं से आगे बढ़ते हैं।
पंजाब विधानसभा चुनाव
2017 के दौरान जनवरी में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल का गुस्सा उनके
नेता पर जूता फेंके जाने के बाद फूट पड़ा और उन्होंने कहा कि, “अगर सीएम बादल अपने
कार्यकताओं को हिंसक होने की छूट दे दें तो विरोधी जिंदा नहीं रहेंगे।” उधर पश्चिम बंगाल में
ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के खिलाफ राजनीतिक युद्ध छिड़ा हुआ था। ममता ने यहाँ तक
बोल दिया कि, “नरेंद्र मोदी रावण सरीखे हैं और आतंकी संगठन चला रहे हैं।”
जनवरी 2017 में खादी कैलेंडर
के विवाद के बाद हरियाणा से भाजपा के बड़े नेता अनिल विज ने विवादास्पद बयान दिया।
खादी ग्रामोद्योग कैलेंडर विवाद पर उन्होंने कहा कि, “गाँधीजी की वजह से
खादी की बिक्री कम हुई है। जब से खादी के साथ गाँधी का नाम जुड़ा तब से खादी डूबने
लगी थी। सरकार द्वारा उन्हें नोट से भी हटाया जाएगा।” चंद घंटों में अनिल विज के इस बयान का इतना उग्र विरोध हुआ कि
उन्हें तत्काल माफी मांगनी पड़ी और सरकार ने भी अनिल विज के बयान से किनारा करते हुए
माफी मांग ली।
मार्च 2021 में राजस्थान बीजेपी
के विधायक मदन दिलावर ने कहा कि, “पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चंद्रशेखर आज़ाद की योजनापूर्वक हत्या करवाई
थी।”
अपने बयान में दिलावरजी
ने एक कहानी सुना दी कि चंद्रशेखर को 1200 रूपये की ज़रूरत आन पड़ी, वे इसके लिए नेहरू के पास गए। वैसे दिलावरजी
को बताना चाहिए था कि क्रांतिकारी आज़ाद पैसों के लिए क्या नेहरू के पास आते-जाते रहते
थे? फिर कहानी में दिलावर आगे कहते हैं कि नेहरू ने पैसे देने के
लिए तैयारी दिखाई और चंद्रशेखर को पार्क में राह देखने के लिए कहा। फिर नेहरू ने अंग्रेज
सरकार को ख़बर कर दी और फिर अंग्रेज पार्क में जा पहुंचे। इतिहास भी सोच रहा होगा कि
मैं इतिहास हूँ या आलू, छीलता ही जा रहा हूँ!
अगस्त 2021 के दौरान केंद्रीय
मंत्री सुभाष सरकार ने कहा कि, “रवींद्रनाथ टैगोर की माँ ने उन्हें अपनी गोद में लेने से इनकार कर दिया था क्योंकि
वह काले थे।”
चुनाव ऐसा मौसम है
जब नेताओं की वाणी कड़वे करेले सरीखी हो जाती है। जनवरी 2017 में विधानसभा चुनावों
में प्रचार के दौरान शरद यादव ने अजीब बयान देते हुए कहा कि, “बेटियों की इज्जत से
ज्यादा महत्वपूर्ण वोट की इज्जत है। इसलिए उसे बनाए रखिएगा।” फिर क्या था। नेताजी
ने अपने बयान के लिए माफी मांग ली और उनकी पार्टी ने बयान से किनारा भी कर लिया।
इन दिनों विनय कटियार
भी पीछे नहीं हटे। एक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या यूपी में प्रियंका
गांधी के प्रचार करने से भाजपा पर कुछ फर्क पड़ सकता है? तो कटियार बोले कि,
“वो इतनी भी सुंदर नहीं हैं जितना दावा किया जा रहा है।”
आम आदमी पार्टी के
नेता और दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शायद इस रेस में उतरना
चाहते थे। वो भी भाजपा नेता नितिन गडकरी के रास्ते चल पड़े। गोवा में एक चुनावी सभा
में उन्होंने कहा कि, “आप मतदार दूसरे पक्षों से पैसा ले लीजिए, लेकिन वोट आम आदमी पार्टी को ही कीजिए।” उनके इस बयान के बाद
चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ एफआईआर दायर करने के लिए कहा। आम आदमी पार्टी फंडीग विवाद
में जब आयकर विभाग ने चुनाव आयोग का पार्टी का पंजीकरण रद्द करने को कहा तब केजरीवाल
ने तत्कालीन पीएम के लिए “बेशर्म तानाशाह” का विशेषण भी इस्तेमाल किया था।
तत्कालीन रक्षा मंत्री
मनोहर पर्रिकर को शायद नागवार गुजरा होगा कि गडकरी से प्रेरणा केजरीवाल कैसे ले सकते
हैं। सो उन्होंने केजरीवाल के बयान के बाद ऐसा ही बयान दे दिया। गोवा में मनोहर पर्रिकर
ने एक बैठक में कहा कि, “मैं समझता हूं कि किसी रैली का आयोजन हो और उस रैली में हिस्सा लेने के लिए आप
पांच सौ रुपये लो तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन फिर वोट तो भाजपा को ही करना।” उन्होंने अपने भाषण
में पूरा गणित भी समझाया। तत्कालीन रक्षा मंत्री पर चुनाव आयोग ने कोई आदेश दिया था
या नहीं इसकी जानकारी नहीं है।
कुछ नेता ऐसे भी होते
हैं जो साल भर कुछ नहीं बोलते, लेकिन चुनावी गहमागहमी में बिगड़े बोल प्रतियोगिता
में हिस्सा लेना कभी नहीं चुकते। जनवरी 2017 में भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान फिर विवादों में आए। बालियान
ने मुलायम सिंह यादव पर पुछे गए सवाल के जवाब में कहा कि, “हमेंशा सांप्रदायिकता की राजनीति मुलायम सिंह ने की। अब मैं उनसे कहना चाहूंगा
कि उनके मरने का समय आ गया है।”
वहीं बीजेपी के ही
एक और नेता और यूपी के थाना भवन सीट से पार्टी के उम्मीदवार सुरेश राणा ने एक रैली
के दौरान कहा कि, “अगर वह जीत गए तो कैराना, देवबंद और मुरादाबाद में कर्फ़्यू लगा देंगे।"
इसी दौर में केंद्रीय
कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने तो मीडिया को पिशाच कह दिया और सरेआम मीडिया को धमकाते
हुए कहा कि, “जहाँ हमारा भविष्य होता है वहाँ कोई आंखें दिखाता है तो उसकी आंखें निकाल ली जाएगी।
फिर वो मीडिया ही क्यों न हो।”
भाषा में सदैव बदनाम
रहे आजम खान ने इस चुनावी दौर में (फरवरी 2017) तत्कालीन प्रधानमंत्री के बारे में कह दिया
कि, “सबसे बड़ा रावण तो दिल्ली में रहता है।”
इसी महीने इलाहाबाद (प्रयागराज) रैली से आजम खान ने कह दिया
था कि, “मुसलमान बेरोजगार होते हैं, उन्हें सरकार कम काम देती है और इसीलिए ज्यादा
बच्चे पैदा हो जाते हैं। मुसलमान खाली बैठेंगे तो बच्चे ही पैदा करेंगे।” इन्हीं दिनों समाजवादी
पार्टी के नेता राजेंद्र चौधरी ने तो तत्कालीन पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय
अध्यक्ष अमित शाह को आतंकवादी तक कह दिया था।
इसी महीने में संसद
सत्र के दौरान विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों ने संसद को ही सड़क की रैली जैसा बना
दिया। विपक्ष से मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक दफा संसद में बोल दिया था कि, “'इंदिरा गांधी ने देश
के लिए अपनी जान दे दी थी। प्रधानमंत्री देशभक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं। क्योंकि
उनकी तरफ से किसी कुत्ते ने भी देश के लिए ऐसा नहीं किया।”
इसका उत्तर देते हुए
तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भी कह दिया कि,
“'हर युग में इतिहास को जानने का और इतिहास को जीने का प्रयास
आवश्यक होता है। उस समय हम थे या नहीं थे, हमारे कुत्ते थे भी या नहीं थे, औरों के कुत्ते हो सकते हैं। हम कुत्तों वाली परंपरा से पले-बढ़े
नहीं हैं।” उन दिनों संसद में ‘कुत्ते’ लफ्ज़ का आगमन हो गया, जिसमें विपक्ष ने शुरू किया और सत्ता पक्ष
ने अंत किया।
यूपी विधानसभा चुनाव
2017 के दौरान यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी पर निशाना साधने के चक्कर में गुजरात टूरिज्म पर टिप्पणी करते हुए कह दिया कि, “'मैं सदी के महानायक से कहूँगा कि वो गुजरात के गदहों का प्रचार करना बंद करें।” फिर क्या था, पूरा प्रचार गधे के आसपास ठहर गया! सारे नेता एक दूसरे को गधा गिनाने लगे, तो कुछ गधे की खूबियाँ गिनाने लगे!
वैसे ये दौर चुनावी
दौर था, जिसमें तत्कालीन पीएम भी शालीनता का लिहाज करते नहीं दिखे। फतेहपुर से उन्होंने
कहा कि, “हर गाँव में कब्रिस्तान होता है वैसे श्मशान भी होना चाहिए। बिजली रमजान में दी
जाती है तो दिवाली में भी दी जानी चाहिए।” यानी कि बिजली भी अब धार्मिक हो चली थी! इससे पहले यूपी के गोद लिए बेटे वाले मामले पर उन्हें नोटिस भी दिया जा चुका था।
साक्षी महाराज भी इस
रेस में कब तक पीछे रहते। अपने काम के बजाए अपने बयानों से ज्यादा चर्चित बीजेपी सांसद
साक्षी महाराज ने 28 फरवरी 2017 के दिन एटा से कहा कि, “कब्रिस्तान हो या श्मशान, तमाम शवों का अग्निसंस्कार ही होना चाहिए।
शवों को दफनाने की परंपरा खत्म कर देनी चाहिए।”
अब बवाल तो होना ही
था। कांग्रेस के प्रवक्ता जीशान हैदर ने भी सीमा लांध दी और कहा कि, “जो साक्षी महाराज के
दिमाग का इलाज कराएगा उसको खर्चा मैं दूँगा।”
इसी कड़ी में साक्षी
महाराज ने लालू प्रसाद यादव को भी याद किया और कहा कि, “लालू यादव भारतीय राजनीति
के जोकर हैं। मुझे तो उनकी राष्ट्रीयता पर संदेह है। अगर वो बेहूदी हरकतें बंद नहीं
करेंगे तो जेल जाएँगे।”
केरल में संघ के कार्यकर्ताओं
की कथित हत्याओं के मामले में मध्य प्रदेश संघ के प्रचार प्रमुख कुंदन चंद्रावत 2 मार्च 2017 के दिन इतने ज्यादा
आगबबूला हो गए कि उन्होंने तो केरल के सीएम का सिर काटने का इनाम घोषित कर दिया! उन्होंने कहा कि, “केरल के सीएम का सिर काट के लाने वाले को 1 करोड़ का इनाम दिया जाएगा।”
किसी राज्य के सीएम
के लिए ऐसा बयान इन दिनों पहली दफा दिया गया था। स्वाभाविक था कि संघ ने अपने प्रचार
प्रमुख के बयान से अंतर बना लिया और बयान को उनका निजी बयान बताया। बाद में विरोध बढता
देख चंद्रावत ने भी इसे खुद का निजी विचार बता दिया और खेद भी व्यक्त कर दिया। हालाँकि
बाद में संघ ने कार्रवाई करते हुए चंद्रावत को उनके तमाम पदों से छुट्टी दे दी।
अप्रैल 2017 में गुजरात के अहमदाबाद
में स्कूल फिस को लेकर बवाल मचा था। स्कूलों के मनमानी फिस को लेकर छात्र तथा उनके
माता-पिता नाराज चल रहे थे। गुजरात सरकार इसे लेकर क़ानून लाने की तैयारी में भी थी।
इसी बीच राज्य मंत्री नानु वानाणी ने उनसे मिलने पहुंचे लोगों को ये कहकर चौंका दिया
कि, “पांच रुपये की चाय पीनी हो तो चाय की केतली पर जाना पड़ता है और पांच सौ वाली चाय
पीनी हो तो फाइव स्टार होटल में जाना पड़ता है।”
जून 2021 के दौरान मध्य प्रदेश
के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने फीस कम करने की अभिभावकों की मांग पर कह
दिया कि, “मरना है तो मर जाइए, जो करना है कीजिए।”
इसी दौर में भाजपा
के नेता तरुण विजय ने एक मीडिया हाउस के प्रोग्राम में बातचीत के दौरान कहा कि, “भारतीयों को नस्लीय
कहना गलत होगा। ऐसा होता तो हम दक्षिण भारतीयों के साथ कैसे रह पाते।” उनके इस बयान पर हंगामा मचा और बाद में उन्होंने अपने बयान पर
माफी मांग ली।
संघ के नेता किसी राज्य
के सीएम का सिर काटने की घोषणा कर फँस चुके थे,
लेकिन भाजपा तो स्वयं सरकार थी, उनके नेता भला कैसे फँस सकते थे? सो, पश्चिम बंगाल भाजपा के नेता योगेश वरशनी ने
धार्मिक मुद्दे को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सिर के लिए 11 लाख इनाम की घोषणा
कर दी!
दरअसल इन दिनों पश्चिम
बंगाल में टीएमसी और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा के बीच राजनीतिक दुश्मनी का
समय उग्रता पर था। बिगड़े बोल से लेकर एकदूसरे के साथ हिंसक व्यवहार तक में दोनों दल
पूरा योगदान दे रहे थे। इन्हीं दिनों बीजेपी पश्चिम बंगाल के एक नेता ने मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी पर अश्लील टिप्पणी की। बीजेपी नेता श्यामपद मोंडल ने ममता पर तुष्टिकरण
की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए उन्हें अपशब्द कह दिए। वेस्ट मिदनापुर जिले के चंद्रकोना
में पार्टी की एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने ठहाको के बीच कहा कि, “हम समझ नहीं सकते कि
ममता बनर्जी पुरूष हैं या महिला हैं। मैं तो कहूंगा कि वह किन्नर बन गई हैं जिन्हें
आप ट्रेनों और बसों में देखते हैं।”
मई 2017 के दौरान एक नक्सली
हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए जन अधिकार पार्टी के संयोजक और सांसद पप्पू यादव ने कहा
था कि, “नक्सली नेताओं की हत्या करें, न कि जवानों की।” पप्पू यादव ने बिहार के हाजीपुर से कहा कि,
“नेता देश को लूट रहे हैं इसलिए नक्सली को पहले उन नेताओं की
हत्या करनी चाहिए।”
वैसे इनके इस बयान
पर कोई बवाल नहीं मचा था। पता नहीं, उनकी बात दूसरे नेता या पार्टियों को सच लगी
थी या फिर सुनी नहीं गई थी।
10 मई 2017 के दिन यूपी के झांसी में पत्रकारों के साथ बाचचीत करते हुए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव ने बड़ा ही विचित्र बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि, “यूपी, एमपी, दक्षिण भारत, बिहार जैसे राज्यों से जवान शहीद हुए हैं। गुजरात के जवान क्यों
शहीद नहीं होते ये कोई नहीं बताता। वे (भाजपा) शहीद और वंदे मातरम् के नाम पर राजनीति
ही करते हैं।”
10 मई के दिन कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद नूर उल रहमान बरकती
ने आपत्तिजनक बयान दे दिया। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि, “मेरे यहाँ भाजपा से
कोई आया तो मैं मार मार के उसका चूरमा बना दूँगा।”
उन्होंने तो लाल बत्ती
और तीन तलाक गैरकानूनी है वाले क़ानून को भी मानने से इनकार कर दिया और कहा कि वे लाल
बत्ती या तीन तलाक जैसे कोई नियमों को मानने वाले नहीं हैं। लाल बत्ती पर उन्होंने
कहा कि, “ये अधिकार मुझे ब्रिटिश शासन द्वारा दिया गया था। अगर ब्रिटिश सरकार कहती है तभी
मैं मेरी गाड़ी से लाल बत्ती दूर करूंगा।”
कभी कभी लगता है कि
बिगड़े बोल की कोई प्रतियोगिता चल रही है। कोई एक दूसरे से पीछे रहना नहीं चाहता।
जैसे कि इसी दौर में
महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे का बयान
भी बिगड़े बोल वाली सूची में चला गया। अपने विधायक बेटे के शाही शादी समारोह के कारण
विवादों में रहे दानवे ने मराठवाड़ा के जालना में एक समारोह के दौरान अरहर खरीद को लेकर
पूछे गए सवाल के जवाब में कह दिया कि, “इतनी अरहर खरीद ली फिर भी रो रहे हैं।”
इस वाक्य के बाद उनके मुँह से अपशब्द निकल गया, जिसे यहाँ लिखा नहीं जा सकता। इन्होंने इसी साल किसानों की कर्जमाफ़ी
को लेकर बयान दिया था कि, “कर्जमाफ़ी के बाद किसान आत्महत्याएं नहीं होंगी, इसकी लिखित गारंटी विपक्ष को देनी चाहिए।”
वहीं जून 2017 के शुरुआती दौर में
केंद्र की मवेशियों के बारे में अधिसूचना को लेकर बवाल मचा। गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित
करने के विषय पर टिप्पणियों का सैलाब उमड़ रहा था। इसी बवाल के बीच आप पार्टी नेता
संजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि, “राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने बकरी के दूध को स्वास्थ्यवर्धक, ज्ञानवर्धक बताया था, बकरी को राष्ट्रीय बहन घोषित करो।”
संजयसिंह के कुतर्कों
को भाजपाई नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने अंजाम तक पहुंचा दिया और ट्वीट करते हुए
लिख दिया कि, “माफ करना संजय भाई, लेकिन बहन का दूध नहीं पीते। आपके संस्कारों
में खोट है।” पशुओं के साथ साथ इंसानी रिश्ते भी नेताओं की राजनीति के चलते बदनाम होते दिखे।
अमित शाह जून 2017 के दौरान फिर एक बार
विवादित बोल को लेकर सुर्खियों में आए। 9 जून को छत्तीसगढ़ में लोगों को संबोधित करते समय कांग्रेस के इतिहास को बुरा कहने
के चक्कर में वे थोड़ा भटक गए। उन्होंने कहा कि, “कांग्रेस कभी सिद्धान्तों पर काम करने वाली पार्टी थी ही नहीं, बल्कि वह एक स्पेशल गाड़ी के समान है, जिसे आजादी के लिए इस्तेमाल किया गया था। महात्मा गाँधी एक ‘चतुर बनिया’ थे और उन्हे कांग्रेस
के भविष्य के बारे में पता था।” कांग्रेस को भला-बुरा कहने के चक्कर में वे राष्ट्रपिता गाँधी को ‘चतुर बनिया’ बोलकर विवाद खड़ा कर
गए।
उधर कांग्रेस के नेता
संदीप दीक्षित से जब मीडिया ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा की सीमा पर
बयानबाजी के संदर्भ में सवाल किए, तो उन्होंने भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल रावत
को 'सड़क का गुंडा' कह दिया! 'टाइम्स नाउ' के मुताबिक संदीप ने कहा कि, “पाकिस्तान एक ही चीज़ कर सकता है और वो है अनाप-शनाप बयानबाजी देना। खराब तो तब
लगता है जब हमारे थल सेना प्रमुख सड़क के गुंडे की तरह बयान देते हैं। पाकिस्तान कैसा
है, ये जगजाहिर है। लेकिन, हमारे सेना अध्यक्ष भी इसी तरह का बयान क्यों
देते हैं।”
अमित शाह राष्ट्रपिता
महात्मा गाँधी को ‘चतुर बनिया’ बोल गए, तो संदिप दीक्षित तत्कालीन सेनाध्यक्ष को
'सड़क का गुंडा'। बिगड़े बोल का कोई
पारितोषिक होता तो यकीनन पारितोषिक के लिये कड़ी टक्कर थी।
लेकिन पारितोषिक का
वितरण आपको रोकना पड़ेगा। क्योंकि इसी दौर में,
जब महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में किसान
आंदोलन उठ खड़ा हुआ था, बीजेपी के बड़े नेता कैलास विजयवर्गीय ने
किसानों को लेकर बेतुका बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि, “किसान निजी कारणों
से आत्महत्या करते हैं, कर्ज की वजह से कोई भी किसान आत्महत्या नहीं
करता है।” उन्होंने आगे यह भी दावा किया कि एमपी पे हाल के दिनों में जिन 3 किसानों ने आत्महत्या
की है उनके निजी कारण थे, कर्ज वाला एंगल नहीं था।
किसान को लेकर नारों
में भले भारत खूबसूरत दिखता हो, लेकिन जब ज़रूरत आन पड़ती है तब बयानों से
दर्पण दिख जाता है।
जून 2017 में केंद्रीय मंत्री
वेंकैया नायडू ने कह दिया कि, “राज्य सरकारों द्वारा किसानों की कर्जमाफ़ी आजकल फैशन बनता जा रहा है। किसानों
की कर्जमाफ़ी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है।” नायडू को ये बयान यूपी विधानसभा चुनाव तथा
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देना चाहिए था, जब नरेंद्र मोदी से लेकर हर बड़ा भाजपाई नेता
कर्जमाफ़ी को लेकर किसानों को सपने दिखाने पर आमादा थे।
नोट करें कि किसी मंत्री ने यह नहीं कहा कि
उद्योगपतियों की कर्जमाफ़ी एक फैशन बन चुका है। किसानों के बारे में ये ज़रूर कहा गया।
वैसे भी जंतर मंतर पर आपने किसान- जवान- विज्ञान से लेकर तमाम को अपनी मांगों के लिए लड़ते देखा होगा। क्या कभी किसी
उद्योगपति को देखा है? नहीं न?
चुनाव के बाद दंगा
वो विषय है जो हमारे नेताओं का पसंदीदा विषय है। पता नहीं चलता कि नेताओं के बिगड़े
बोल दंगे को भड़काते हैं या दंगे की वजह से नेता भड़के हुए होते हैं। वैसे बहुत सिंपल
है इसका उत्तर। मैट्रिक पास भी ढूंढ लेंगे उत्तर।
जुलाई 2017 के दौरान पश्चिम बंगाल
सांप्रदायिक हिंसा तथा विरोध-प्रदर्शनों का दौर देख रहा था। इसी दौरान हैदराबाद भाजपा
विधायक एच राजा सिंह ने कहा कि, “पश्चिम बंगाल के दंगों में वहाँ के हिंदू गुजरात जैसा ही जवाब दें।”
इस दौर में तो किसी
भोजपुरी फिल्म की एक तस्वीर इन दंगों से जोड़कर सोशल मीडिया तक में घुमाई जा रही थी! वहीं दिल्ली भाजपा की नेत्री ने तो गुजरात के दंगों की तस्वीर इन दंगों के साथ
जोड़कर सोशल मीडिया में प्रसारित कर दी थी!
उधर इन दिनों लालू
यादव के बुरे दिन चल रहे थे। उनके पुराने कुकर्मों को लेकर सीबीआई और ईडी उनके पीछे
पड़े हुए थे। बिहार के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव
का नाम जब इस जाँच के दौरान उछला तब वे इस्तीफ़ा नहीं देने पर अड़ गए और कहने लगे कि
जिस घोटाले की बात की जा रही है वो तब हुआ था जब उनकी मूंछ तक नहीं थी। व्हाट्सएप वाले
कुतर्क राजनीति में घडल्ले से इस्तेमाल किए जा रहे थे।
महिला नेत्रियाँ भी
बिगड़े बोल प्रतियोगिता में पीछे नहीं रहना चाहती थीं। जुलाई 2017 के दौरान पश्चिम बंगाल
में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बीच भाजपा सांसद रूपा गांगुली ने कहा कि, “मैं तमाम पार्टियां
तथा ममता सरकार को कहूंगी कि आपकी बहन-बेटियों को ममता के समर्थन के बिना पंद्रह दिनों
के लिए पश्चिम बंगाल में भेजिए। वे जो रेप के बिना वापस आती हैं तो मुझे कहना।” रूपा गांगुली का ये
बयान आपत्तिजनक तो था ही, लेकिन फिर टीएमसी ने सामने वही बिगड़े बोल इस्तेमाल कर कहा कि, “आप का पश्चिम बंगाल
में कितनी बार रेप हुआ ये तो बताइए।”
इस कदर छा गये हम पर पॉलिटिक्स के साये कि अपनी जुबां तक हिंदुस्तानी ना रही। यहाँ
जिस स्तर के बिगड़े बोल की सूची है, हो सकता है कि आगे
जाकर आपको यह बोल उतने भी बिगड़े हुए ना लगे, क्योंकि तब हमारे नेता लोग अपने स्तर को और गिरा हो चुके होंगे।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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