एक प्रचलित कथन है - फर्स्ट क्लास कंट्री विद थर्ड क्लास लीडर्स। हमारे पॉलिटिकल
लीडर्स की करनी ही ऐसी है कि उनकी वजह से यह कथन अवतरित हुआ। जय जवान जय किसान जय विज्ञान
का नारा देने वाली राजनेताओं की जमात लुप्त हो चुकी है। अब तो नारों से चुनाव जीतने
वाली जमात अस्तित्व में है। वे इन सबका इस्तेमाल कर चुनाव जीत लेते हैं, और फिर ज़रूरत
पड़ने पर इनके साथ किसी ग़ैर की तरह पेश भी आते हैं।
सेना के नाम पर, वीर सैनिकों के नाम पर और राष्ट्र के नाम पर फेफड़े फाड़ने वाले नेता सिर्फ़ चुनावजीवी
हैं। सेना के साथ वैचारिक या नीतिगत मतभेद अलग मामले हैं, किंतु उनकी अस्मिता
और भावना को प्रताड़ित करना, ये सब मामले अलग हैं।
स्वयं को घोर राष्ट्रवादी
कहने वाली नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान ही जंतर मंतर पर वो द्दश्य सामने आया था, जब अपना हक़ माँगने
बैठे पूर्व भारतीय सैनिकों के साथ पुलिस ने धक्कामुक्की की। वो मेडल, जिन पर हम नाज़ किया
करते हैं, वे उस दिन सड़कों पर बिख़र गए थे। कुछ पूर्व सैनिकों के कपड़े तक फट गए थे। भाजपा
के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी राजनेताओं का काम सरहदों पर सैनिकों का
जो काम होता है उससे भी ज़्यादा जोखिम वाला काम है, ऐसा बोलकर फँस चुके हैं।
मुंबई में 2008 हमले के बाद वीर संदीप
उन्नीकृष्णन के घर पहुंचे केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने सारी हदें
पार कर दी थीं। दरअसल, मुख्यमंत्री के पहुंचने के पहले उनके कुत्ते वहाँ पहुंच गए और सुरक्षा हेतु अधिकारी
कुत्तों के साथ वीर जवान के घर पर जम गए। इस पर वीर सैनिक के परिवार द्वारा आपत्ति
जताई गई। बाद में सीएम ने बोल दिया कि, “अगर शहीद का घर नहीं होता, तो उनके यहाँ एक कुत्ता भी नहीं जाता।” विवाद बढ़ता देख सीएम
ने माफ़ी भी माँग ली थी।
बिहार में तत्कालीन
नीतीश सरकार में मंत्री भीम सिंह ने पुंछ में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के बारे
में काफी शर्मनाक बयान देते हुए कह दिया था कि, “लोग सेना और पुलिस में मरने के लिए ही आते हैं। शहीदों के अंतिम संस्कार के बारे
में ऐसा क्या ख़ास हो गया है?” हालाँकि इस बयान को लेकर विवाद बढ़ने पर नीतीश कुमार ने अपने मंत्री से माफ़ी माँगने
को कहा और मंत्री ने माफ़ी माँग ली।
2016 में उरी आतंकी हमले के बाद वीर गति को प्राप्त हुए निंब सिंह रावत के शव का अंतिम
संस्कार उनके पैतृक गाँव राजसमंद के राजवा में राजनीतिक व सैन्य सम्मान के साथ किया
गया। बलिदानी सैनिक को अंतिम विदाई देने जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस दौरान सीएम या बड़े
नेता के नहीं पहुंचने को लेकर राजस्थान के तत्कालीन शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ ने ग़लतबयानी कर दी।
दरअसल, राजस्थान की मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे या सरकार की तरफ़ से कोई बड़ा नेता जवान को श्रद्धांजलि देने नहीं पहुंचा।
इसी सवाल पर राजस्थान के शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ उखड़ पड़े। सराफ से जब सीएम के
नहीं आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, “मुख्यमंत्री फ्री नहीं हैं, प्रतिनिधि को भेज दिया।” जब ये कहा गया कि कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट श्रद्धांजलि देने गए, तब सराफ ने जवाब
दिया कि, “सचिन पायलट के पास अभी काम क्या है, वह फ्री हैं। वह सरकार में नहीं हैं, इसलिए उनको तो जाना ही चाहिए। लेकिन हम सरकार में हैं, मुख्यमंत्री के पास
कई काम हैं।”
वहीं भाजपा के सांसद
नेपाल सिंह ने 1 जनवरी 2018 को सेना के बारे में बेहद ही घटिया और निचले स्तर का बयान दे दिया। पुलवामा सीआरपीएफ
कैंप आतंकी हमले पर बोलते हुए इन्होंने कहा कि, “सेना में लोग रोज मरेंगे ही, ऐसा कोई देश नहीं है जहाँ झगड़े में सेना का जवान नहीं मरता हो। गाँव में भी जब
झगड़ा होता है तो आदमी मरता ही है। कोई ऐसी डिवाइस बताओ जिससे आदमी न मरे, कोई ऐसी चीज़ बनाओ
जिससे गोली का कोई असर ही न हो।” इस घटिया बयान के बाद जब नेताजी घिर गए तो उन्होंने उसी दिन माफ़ी माँग ली।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का उत्साह 11 फ़रवरी 2018 को कुछ ज़्यादा ही हो गया। अतिउत्साह में इन्होंने आरएसएस की तुलना महान भारतीय
सेना से कर दी! अतिउत्साह इतना कि संघ की सेना को भारतीय सेना से भी ज़्यादा तत्पर बता
दिया! मोहन भागवत की ये तुलना और उनका अति उत्साह दिनों तक उनकी किरकिरी करवाता रहा।
मोहन भागवत ने कहा था कि, “सेना को सैन्य कर्मियों को तैयार करने में छह-सात महीने लग जाएँगे, लेकिन संघ के स्वयंसेवकों
को लेकर यह तीन दिन में तैयार हो जाएगी। अगर कभी देश को ज़रूरत हो और संविधान इजाज़त
दे तो स्वयंसेवक मोर्चा संभाल लेंगे।”
साल 2017 की एक घटना को ही
देख लीजिए। मई महीने के पहले ही दिन एलओसी पर पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग की और पाकिस्तानी
सेना का एक दस्ता भारतीय इलाक़े में घुस आया। उसने भारतीय सेना और बीएसएफ की पेट्रोलिंग
टीम पर हमला कर दिया। इस हमले में हेड कॉन्स्टेबल प्रेम सागर और एक नायब सूबेदार परमजीत
सिंह का निधन हो गया। उनके शव के साथ पाकिस्तानी सैनिकों ने बर्बरता भी की। प्रेम सागर
उत्तर प्रदेश देवरिया इलाक़े से थे।
इस घटना के बाद जब
प्रेम सागर का शव उनके गाँव भाटपार रानी के टीकमपार लाया गया, तब लोगों में गुस्सा था।
देश के जवानों की इस तरह से नृशंस हत्या और उनके मृत शरीरों के साथ बर्बरता से लोग
नाराज़ थे। गाँव वालों ने तथा वीर जवान के परिवार ने सीएम को बुलाने की माँग की। परिवार
ने कहा कि जब तक सीएम नहीं आएँगे तब तक शव का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा। राज्य
के कृषि मंत्री ने परिवार की बात राज्य के सीएम से कराई और 12 दिनों के भीतर मुलाक़ात
का आश्वासन दिया। जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार हुआ।
इस घटना के क़रीब एक
सप्ताह के बाद जाकर सीएम को वक़्त मिला! देश के लिए प्राण न्यौच्छावर करने वाले जवान
के घर उनके परिजनों को मिलने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ 12 मई को पहुंचे। सीएम
के आने की ख़बर मिलते ही स्थानीय प्रशासन ने वीर प्रेम सागर के घर को हाईटेक बना दिया।
वीर जवान के घर के जिस कमरे में मुख्यमंत्री उनके परिजनों से मिलने वाले थे वहाँ एसी, नए पर्दे, सोफा और कारपेट बिछाया
गया! इस तरह के तामझाम के साथ सीएम उस परिवार से मिले, जहाँ उन्होंने परिवार
को चैक और एफडी अर्पण किया। जैसे ही सीएम गोरखपुर के लिए रवाना हुए, सिर्फ़ आधे घंटे बाद
ही घर से सब कुछ हटा लिया गया!
सीएम के देवरिया पहुंचने
से पहले ही स्थानीय अफ़सरों ने गाँव में डेरा डाल दिया था। प्रेम सागर के बेटे ईश्वर
चंद्र ने मीडिया को कहा कि जिस कमरे में हमें मुख्यमंत्री से मिलना था, वहाँ सुबह ही
बांस-बल्लियों के सहारे एसी लगा दिया गया था! घर में नया सोफा और नई कालीन भी बिछाई
गई! घर के तौलिए तक बदल दिए गए! रात को ही मजदूरों को बुलाकर घर के अंदर पेंट भी करा
दिया!
परिवार अपने लाड़ले
बेटे की इस तरीक़े की मौत और उसके शव के साथ बर्बरता के चलते अपना दुख और अपनी शिकायत
सीएम से करना चाहते थे। जो नेता वोट के लिए मिनटों में यहाँ वहाँ पहुंच जाया करते हैं, उन्हें दिनों बाद समय
मिलता है! फिर पूरे तामझाम के साथ मिलते हैं! बर्बरता पूर्ण मौत के बदले जैसे कि ख़ैरात
बाँटते हैं और फ़ोटू खिंचाते हैं! सैनिक सीमा पर अपने प्राण देते हैं और हमारे नेता
हरक़तें ऐसी कर जाते हैं कि वह कथन फिर याद आ जाता है।
विवाद हुआ तो यूपी
सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि वहाँ परिवार के साथ
स्थानीय प्रशासन की तरफ़ से कुछ चूक होने की बात है जिसकी जाँच कराई जाएगी। जाँच का
अंजाम यह हुआ कि इसके बाद फिर एक बार ऐसी ही विवादित घटना से सीएम का नाम फिर से जुड़ा
था!
एक जगह तो वीर जवान
के शव साथ नेताजी फ़ोटो खींचने लगे, लोगों ने देखा तो भड़क उठे और गो बैक के नारे भी लगे।
छत्तीसगढ़ के बीजपुर
में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में भदोही ज़िले के बैरा गाँव निवासी एसटीएफ जवान सुलभ
उपाध्याय ने अपने प्राण गँवाए। बड़ी संख्या में लोग भदोही पुलिस लाइन पहुंचे, जहाँ वीर जवान का
शव आना था। मौक़े पर भदोही के सांसद वीरेंद्र सिंह, आला पुलिस अधिकारियों और ज़िले के अन्य नेताओं के साथ पहुंचे।
जवान का शव आने के बाद कुछ नेता मीडिया में अपनी फ़ोटो खिंचाने में मशगूल हो गए। तस्वीर
इस तरह ले रहे थे कि वीर का शव तस्वीर में आ जाए!
उसी दौरान दिवंगत जवान
के चचेरे भाई और ग्रामीण उग्र हो गए। वापस जाओ-गो बैक की आवाज़ चहुँओर से आने लगी। लोग
कहने लगे कि परिवार के ऊपर दुखों का पहाड़ टूटा है और कुछ लोग एअर कंडिशनर से निकलकर
सीधे फ़ोटो खिंचाने चले आते हैं। घर के लोग फ़ोटो खींचना बंद करने और नेताओं को वापस
जाने को कह रहे थे।
सीएम योगी वीर जवान के घर जाते हैं तो पहले
वहाँ एसी लगता है, लाल कालीन बिछती है और फिर सीएम साहब एंट्री लेते हैं! वीर जवान के शव के साथ
एक सांसद तस्वीर खिंचाते हैं! लोग ये देख नाराज़ होते हैं और गो बैक के नारे लगते हैं।
उधर सीएम अपनी आदत नहीं छोड़ते। फिर एक बार कूलर और लाल कालीन बिछाकर वीर जवान के परिजनों
से मिलते हैं!
वीर जवान के घर सोफा
लेकर जाना, लाल कालीन बिछा एंट्री लेना, समेत कुछ लोगों को साबुन और पाउडर लगाकर मिलने के लिए निर्देश देना, जैसी अजीब सी चीज़ों से अपनी सीएम पारी की शुरुआत करने वाले योगी आदित्यनाथ फिर ऐसी वजह से घिर गए। सवाल
फिर उठे कि इससे पहले ऐसी विवादित घटना के बाद भी अधिकारी ग़लती करते होंगे या मामला
कुछ और है?
जुलाई 2017 के दौरान कश्मीर में
आतंकी हमले में जान गँवाने वाले जवान साहब शुक्ला के परिजनों को मिलने सीएम उनके घर
पहुंचे। दिन था 8 जुलाई। सीएम वहाँ पहुंचे उससे पहले अधिकारियों ने वीर के घर लाल कालीन बिछा दी!
इतना ही नहीं, भगवा रंग के महंगे सोफा भी लगा दिए गए! इस बार एसी की जगह कूलर था।
लाल कालीन, भगवा रंग का महंगा
सोफा और कूलर! वीर जवानों के के घर जाकर उनकी वीरता का सम्मान करने के चक्कर में सीएम
उनकी बेइज़्ज़ती कर रहे थे। साथ ही सीएम की छवि भी धूमिल हो रही थी। बार बार हो रही
ऐसी घटनाओं से लगता नहीं था कि इसमें अधिकारियों का दोष होगा। वर्ना अधिकारी पहले जो
विवाद हुआ उसके बाद संभल जाते। वैसे भी सीएम योगी उन दिनों जहाँ भी जाते, कुछ ऐसे ही विवाद
करके वापस आते थे! फिर चाहे वह वीर जवान का घर हो, अस्पताल हो या स्कूल हो।
यूँ तो नेता चुनावजीवी
ही होते हैं। किंतु तिरंगा, सेना, सैनिक के नाम पर वोट बटौरने वाले नेता अब हद से ज़्यादा चुनावजीवी हो चले हैं।
लोगों की भूलने की बीमारी उनके लिए आर्शीवाद समान है। वैसे भी राजनीति ग़लती करती नहीं, ग़लती दोहराती है!
किसी क्रिकेटर की शादी
हो, किसी अभिनेता या अभिनेत्री
के वहाँ कोई मौक़ा हो, किसी उद्योगपति की पत्नी के जन्मदिन की पार्टी हो, हमारे नेता अपनी मौजूदगी
दर्ज कराना नहीं भूलते। देश के पीएम सरीखे शख़्स शिखर धवन के टूटे अंगूठे को लेकर ट्वीट
करते हैं, लेकिन महीनों तक उनसे गुहार लगाने वाले लोगों की तरफ़ वो देखते तक नहीं! यहाँ देश
का नाम रोशन करने वाली हमारी बहनों को सड़कों पर गिराकर उनके मुँह पर सरकारी जूता रगड़ा
जाता है और फिर महिला आरक्षण क़ानून पास कर न जाने क्या क्या दिखाया जाता है!
यहाँ सभी को ज्ञात
है कि दाऊद जैसे गुंडों की पार्टियाँ बड़े बड़े नेता और अभिनेता से चमकती रहीं। वहाँ
पहुंच जाने वाले नेताओं के पास किसी वीर जवान को आख़िरी विदाई देने का समय नहीं होता!
किसी सेलेब के घर बच्चा पैदा हो तो ये नेता लोग ट्वीट करना नहीं भूलते, किंतु वीर जवानों
को ये सब नसीब नहीं होता!
पाकिस्तान में तिरंगा
फहराने वाले पूर्व आईजीपी ओमप्रकाश चतुर्वेदी का मामला ही देख लीजिए। इन्होंने अपनी ज़िंदगी के क़रीब 30 साल देश की सरहदों पर ही बिताए। वे स्पेशल सर्विस ब्यूरो में तथा कुछ समय तक रॉ
में अपनी सेवाएँ दे चुके थे। जानकारी के लिए बता दें कि गुजरात के कच्छ, बनासकांठा, पाटण, जामनगर और जूनागढ़
में एसएसबी की नींव इन्होंने ही रखी थी। ये वही अधिकारी थे, जिन्होंने पाकिस्तान के
ख़िलाफ़ काउंटर इंटेलिजेंस सिस्टम की नींव रखी।
वे अपनी देश सेवा के
लिए पूर्व सरकारों के दौरान सम्मान प्राप्त अधिकारी थे। वही अधिकारी, जिन्होंने पाकिस्तान
में तिरंगा फहराया था। इतने बड़े ओहदे से सेवानिवृत्त होने वाले इस अधिकारी के पास
अपनी एक कार तक नहीं थी! 24 जुलाई 2017 के दिन 78 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। वे गुजरात के अहमदाबाद में रहा करते थे।
लेकिन उन्हें आख़िरी
विदाई देने न कोई नेता आया, न कोई मंत्री, ना कोई दूसरा महानुभाव! देशभक्ति के नारों के साथ आम नागरिकों को अपना लठैत बनाने
की क़ाबिलियत रखने वाले नेताओं को इसीलिए तो नेता कहा जाता होगा। किसी सेलेब या उद्योगपति
के वहाँ कुछ होता ते चले जाते, चुनाव होता तो दौड़ लगाते, किंतु यहाँ वे नहीं पहुंचे।
कुछ समय पहले भारत
के सबसे ज़्यादा मेडल वाले वॉर हीरो लेफ्टिनेंट जनरल ज़ोरावर चंद बख्शी का निधन हुआ।
न फूल चढ़े, न 'ट्वीट' हुआ। सूची बनाने बैठेंगे तो अनगिनत मामले हैं।
तिरंगा और सेना के नाम पर देश के नागरिकों
को नागरिक से अपना लठैत बनाने वाले नेता लोग पाकिस्तान में तिरंगा फहराने वाले हीरो
को आख़िरी बिदाई देने नहीं पहुंचते। देश को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले वैज्ञानिकों
को अंतिम विदाई देने नहीं जाते, लेकिन जब वो वैज्ञानिक देश को गौरवान्वित करता है तो उसके गले लग फ़ोटो ज़रूर खिंचाते
हैं और फिर मीडिया में घुमा देते हैं। जैसे कि वैज्ञानिक शिक्षा उन्हीं से लेकर वहाँ
पहुंचे हो!
अभी महज़ कुछ साल
पहले भारत के दो जाने माने वैज्ञानिक यू आर राव (इसरो के पूर्व चेयरमैन, जिन्होंने भारत के
प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट तथा मार्स ओर्बिटर मिशन में अपना योगदान दिया) तथा प्रो. यशपाल
(वैज्ञानिक व शिक्षाविद, कॉस्मिक रे पर विशेष अध्ययन से दुनियाभर में प्रसिद्ध) का निधन हो गया। इन दोनों
जानीमानी शख़्सियतों की अंतिम बिदाई भी कुछ कुछ ऐसी ही रही। जब सैनिकों को उपेक्षा का
सामना करना पड़ता हो, तब शायद विज्ञान की दुनिया के सितारों को भी धरती के बजाए आसमान में जाकर ख़ुद ही चमकना अच्छा लगता होगा।
देश के लिए जान न्यौच्छावर
करने वाले जवान की बेटी को गुजरात सीएम की रैली से घसीट कर बाहर निकालने के द्दश्य
भी नेता देश को प्रदान कर चुके हैं!
यह घटना 1 दिसम्बर 2017 की थी। गुजरात विधानसभा
चुनाव प्रचार के दौरान एक वीडियो सामने आया, जिसमें एक लड़की को सीएम विजय रुपाणी की रैली से घसीटकर बाहर निकाला जा रहा था।
वीडियो में जो लड़की दिख रही थीं, उसका नाम रूपल तड़वी था। वह बीएसएफ के दिवंगत जवान अशोक तड़वी की बेटी थीं, जो प्रशासन की वादाख़िलाफ़ी
से नाराज़ होकर वहाँ पहुंची थीं।
रूपल का दावा था कि
उनके पिता बीएसएफ में रहते हुए देश के लिए प्राण गँवा चुके हैं। लड़की का आरोप था कि
सरकार ने उन्हें ज़मीन देने का वादा किया था, लेकिन आज तक उन्हें वो ज़मीन नहीं मिली थी। इस दिन जब सीएम रैली कर रहे थे तब वो
वहाँ पहुंचकर सीएम से मिलने के लिये मिन्नतें करने लगीं। अधिकारियों ने उसे जबरन रैली
से बाहर कर दिया। वीडियो में वो चिल्लाती नज़र आ रही थीं कि मुझे सीएम से मिलना है।
महिला पुलिस उसे घसीटते हुए वहाँ से दूर ले गई।
वीडियो वायरल होने
के बाद विवाद उठा तो सीएम ने लड़की के परिवार के लिए विभिन्न तरह की सुविधाओं की घोषणा
की। पता नहीं कि वह घोषणा पूरी हुई थी या नहीं। या फिर उस वादे की तरह अधूरी रह गई
थीं।
पुलवामा घटना हुई
तब सरकारों ने कितने वादे किए थे, कितने भरोसे दिलाए थे। उस घटना के दम पर चुनाव
जीता गया, फिर वादे हवा हो गए! पुलवामा सैनिक की
विधवाओं को राजस्थान में अपने हक़ न मिलने पर प्रदर्शन करना पड़ा!
इसी साल मार्च
2023 की घटना देख लीजिए। पुलवामा के इतने सालों बाद जब किसी ने नहीं सुनी तो वीर
सैनिकों की पत्नियाँ सड़कों पर आने को मजबूर हो गईं। किंतु पुलिस ने उनके साथ
बदसलूकी की! देश के लिए कुर्बानी देने का यही उपहार मिलता
होगा! सैनिकों की विधवा पत्नियाँ सरकार की
वादाख़िलाफ़ी से निराश होकर धरने पर बैठीं थीं। किंतु पुलिस ने उन विधवाओं को सड़क
पर घसीटा और उन्हें वहाँ से हटा दिया! सीएम अशोक गहलोत से मिलने की माँग कर रही वीर की विधवाओं को जबरन खींच कर
शांतिपूर्ण प्रदर्शन बंद करा दिया गया। इस दौरान उनमें से कुछ महिलाओं की तबीयत भी
बिगड़ गई।
2021 के अगस्त महीने में उत्तर प्रदेश में तो पुलवामा सैनिक की विधवा को 10 घंटे तक हिरासत में
रखा गया था। याद कीजिए पुलवामा घटना, जिसके बाद पूरे देश में देशभक्ति उफ़ान पर थी। सेना के लिए पूरा देश अपना सब कुछ
जैसे कि कुर्बान करने के लिए तैयार बैठा था। और उसी घटना में, 14 फ़रवरी 2019 को सैनिक कौशल कुमार
रावत मारे गए थे।
8 अगस्त 2021 को सीएम योगी आदित्यनाथ आगरा में कोरोना वॉरियर्स डॉक्टरों को सम्मानित करने आए
थे। उनके इस कार्यक्रम के दौरान वीर कौशल कुमार रावत की विधवा अपने बेटे के साथ कुछ
माँगों को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने पहुँचीं। परिवार के मुताबिक़ वे लोग मृतक सैनिकों
को दी जाने वाली आर्थिक सुविधाएँ अब तक नहीं मिलने की शिकायत के साथ अपनी कुछ माँगें
सीएम के सामने रखना चाहते थे।
मृतक सैनिक की पत्नी
और बेटे को सीएम से मुलाक़ात तो नसीब नहीं हुई, बल्कि उन्हें कार्यक्रम की जगह से दूर क़रीब सौ मीटर पहले ही रोक लिया गया। सुरक्षा
के मद्देनज़र ऐसा किया गया होगा वह स्वाभाविक है। किंतु हमें याद रखना चाहिए कि यही
नेता सेना और सैनिकों के नाम पर वोट बटोरते हैं, और जब उन सैनिकों को उनसे मिलना होता है, तब ऐसे द्दश्य सामने
आते हैं!
शहीद की विधवा और उसके बेटे को न सिर्फ़ रोका
गया, बल्कि इसके बाद लगभग 10 घंटों तक उन लोगों को हिरासत में रखा गया! इसके अगले दिन, यानी 9 अगस्त को ज़िला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर स्थित कहरई गाँव स्थित अपने घर पर
ममता रावत लगातार रोती हुई मिलीं। वे कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थीं।
मृतक सैनिक के बेटे
अभिषेक रावत ने मीडिया के सामने दावा किया कि उन्हें जबरदस्ती पुलिस की गाड़ियों में
बिठाकर थाना हरि पर्वत ले जाया गया, जबकि वीर की विधवा को महिला थाना रक़ाबगंज ले गए। बकौल अभिषेक, उसे फिर वहाँ से सिकंदरा
थाने ले गए, जहाँ उन्हें घंटों बिठाए रखा। उनकी माँ को भी दोपहर तक थाने में रखा गया। फिर
दोनों को सर्किट हाउस ले जाया गया।
बकौल अभिषेक, इतने घंटों तक क़रीब
हिरासत वाली स्थिति में रखते हुए अधिकारी उनकी सीएम से मुलाक़ात कराने के वादे भी करते
रहे! उन्हें कहा गया कि एयरपोर्ट पर उनकी मुलाक़ात करा दी जाएगी।
हालाँकि वह नहीं हुआ। अभिषेक ने कहा कि उन्हें एयरपोर्ट पर पुलिस की गाड़ियों में ले
जाया गया, लेकिन पुलिस के जवानों के साथ गाड़ी में ही लॉक रखा गया। पाँच बजे के क़रीब मुख्यमंत्री
जब चले गए तब पुलिस ने दो घंटे तक वैसे ही हिरासत में रखा और रात के आठ बजे उन्हें
घर छोड़ा। दोनों के साथ किसी अपराधी जैसा व्यवहार किया गया।
मृत सैनिक को जो मिलना
चाहिए वह नहीं मिला, तो उसकी माँग करना कोई देशद्रोह तो नहीं था। उनकी जो दूसरी माँगे
थीं, हो सकता है कि वो सही हो या न भी हो। किंतु जिस घटना के दम पर चुनाव जीता गया
हो, उस घटना में मारे
गए सैनिक की विधवा के साथ ये सब होने देना, यह किसी तरीक़े से उचित नहीं था। वे लोग किसी ने नहीं सुना होगा तभी तो वहाँ जा
रहे होंगे।
याद करिए गुरमेहर कौर
का मामला। देश के लिए अपनी जान देने वाले पिता (कैप्टन मनदीप सिंह, जो सेना की
रक्षक नाम की आतंकरोधी टीम का हिस्सा थे और अगस्त 1999 में आतंकी हमले के दौरान
उनकी मृत्यु हुई थी) की बेटी गुरमेहर ने केवल अपनी भावना प्रक्ट की, तो नेताओं और उनके
लठैतों ने उस बेटी को सार्वजनिक रूप से मानसिक व सामाजिक तौर पर प्रताड़ित किया। गुरमेहर
कौर ने युद्ध की विभीषिका को समझाना चाहा, युद्ध में मारे जाने वाले सैनिकों के परिजनों पर क्या बीतती है वह दर्शाना चाहा, तो बदले में राष्ट्रवादी
सरकार के नेताओं व लठैतों ने जो किया वह माफ़ी के लायक बिलकुल नहीं था।
यूँ तो देश को भावनाओं
में डुबोकर नेता लोग चुनाव जीत आते हैं। किंतु जब गुरमेहर कौर ने अपनी भावनात्मक बात
की, तब राजनीति ने उसके
एक हिस्से को कुछ यूँ पेश किया कि हमें अपने नेताओं और उन नेताओं के गटरछाप लठैतों
पर घिन आती है।
गुरमेहर कौर ने एक
साल पहले एक वीडियो ट्वीट किया था। उस वीडियो के अनेक हिस्से थे, उसमें से एक ख़ास
हिस्से को राजनीति ने एक साल के बाद आहुति में डाल दिया! गुरमेहर ने अलग अलग पोस्टर के ज़रिए जो वीडियो एक साल पहले बनाया था उसमें 35 से ज़्यादा स्लाइड
थे। गुरमेहर ने अपनी बात और अपनी भावना अलग अलग प्लेकार्ड के ज़रिए वीडियो में पेश की
थी। पूरा वीडियो किसी प्रकार से बुरा या आपत्तिजनक बिलकुल नहीं था।
गुरमेहर ने वोही बात
कही थी, जो दशकों से हमारे नेता, हमारे अनेक सैनिक, हमारे कवि, हमारे शायर, हमारे लेखक, जंग के बाद कहते आए हैं। जो बात वीडियो के ज़रिए कही गई थी, ठीक वैसी ही बातें
तमाम सरकारें कह चुकी हैं। नेहरू के युग से लेकर वाजपेयी के दौर तक, मनमोहन से लेकर नरेंद्र
मोदी तक, अनेक बड़े लोग जो कह चुके थे, वही गुरमेहर ने कहा था। राजनाथ सिंह, नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत तो बाक़ायदा पाकिस्तान को भाई कह चुके हैं, उसके साथ अमन और चेन
का राग छेड़ चुके हैं। जंग के ज़ख़्मों से आहत होकर ऐसी बातें दशकों से सबने कही हैं। किंतु यह मामला कथनी और करनी में अंतर से भी आगे जाकर इंसान और राक्षस के बीच फ़र्क़ सरीखा था।
35 से ज़्यादा स्लाइड, वोही बात जो दशकों से अनेक बड़े लोगों ने कही हो, वही बात गुरमेहर कह
रही थीं। किंतु उसमें से एक हिस्सा – मेरे पापा को पाकिस्तान ने नहीं मारा, उन्हें तो जंग ने मारा है, इस हिस्से को राजनीति ने कुछ इस तरीक़े से पेश कर दिया कि फिर इन नेताओं के लठैत
हर सीमा पार कर गए। वीरेंद्र सेहवाग जैसे क्रिकेटर जैसे सेलेब ने भी अपना दिमाग़ बेच
दिया और बिना समझे वे भी सोशल मीडिया पर उल्टियाँ करने लगे! केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू तक कूद पड़े और गुरमेहर को लेकर ब्रेन वॉश की गई
लड़की जैसे लफ्ज़ इस्तेमाल करने लगे! दूसरे केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली भी गुरमेहर को नसीहत देने लगे!
गुरमेहर को हद से ज़्यादा ट्रोल किया गया। उन्हें सार्वजनिक रूप से मानसिक व सामाजिक तौर पर प्रताड़ित किया गया! उन्हें देशद्रोही कहा गया और उनके साथ दुष्कर्म करने की घमकियाँ भी दी गईं! इतना ही नहीं, दुष्कर्म कैसे किया जाएगा वह भी लिखा जाने लगा! महान देश के गटरछाप नागरिक राक्षस बन गए थे उन दिनों!
ऐसे अनेका अनेक मामले हैं इस देश में। महान देश की महान सेना के सैनिकों के साथ
या उनके परिजनों के साथ ऐसे मंज़र, ऐसे द्दश्य। शुभम श्याम की एक रचना की पंक्तियाँ हैं- उस स्वर्णिम युग का कौन
सा अंश बाकी है तुम में, किस धुन में रम कर फूले नहीं समाते हो, तुम स्वयं को श्रेष्ठ बताते हो!!!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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