कबीर दास जी का यह दोहा इंसान के प्रथम कर्तव्य को समझाता है। लेकिन हमारे
नेताओं की वाणी ही ऐसी है कि मन का आपा नागरिक खोने लगते हैं और सब शीतल होने की
जगह गर्म होने लगता है। इनकी वाणी से सुख की अनुभूति नहीं, विवादों और दंगों तक की
उपाधि देश को मिल जाती है।
पार्ट 6
संस्कृति के रक्षक
बन बैठे नेता कभी कभी संस्कृति को ही शर्मसार कर देते हैं। इसी कड़ी में 10 जनवरी 2018 को मध्य प्रदेश में
भाजपा सरकार के बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने कवि वाल्मीकि को डकैत ही कह दिया।
अखिल भारतीय वाल्मीकि समाज के 13वें अधिवेशन में संबोधन के दौरान अर्चना ने कहा, “वाल्मीकि रामायण का प्रारंभ राम से नहीं होता। डकैत रत्नाकर
स्नान करके बहार आते हैं तब सारस पक्षी की एक जोड़ी प्रेममग्न होकर नृत्य कर रही थी।
उन्हें देखकर डकैत रत्नाकर भावुक हो गए।” हंगामा इतना बढ़ा कि कार्यक्रम तक स्थगित
करना पड़ गया। बाद में मंत्रीजी ने माफ़ी भी मांग ली।
अगस्त 2021 के दौरान मशहूर कवि
मुनव्वर राना ने तो महर्षि वाल्मिकी की तुलना तालिबानियों से कर दी थी! इन्होंने कहा था, “वाल्मीकि रामायण लिखने के बाद भगवान बन गए, लेकिन इससे पहले वह डकैत थे। व्यक्ति का चरित्र
बदल सकता है। इसी तरह, तालिबान, अभी के लिए आतंकवादी हैं, लेकिन लोगों का चरित्र कभी भी बदल सकता है।
तालिबानी लड़ाकों ने किसी मुल्क पर हमला नहीं किया, बल्कि उन्होंने तो अपने मुल्क को
आज़ाद कराया है।”
जनवरी 2018 के मध्यकाल में केंद्रीय
मंत्री सत्यपाल सिंह ने ग़ज़ब दावा कर दिया कि, “मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से ग़लत है।” उन्होंने तो स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में इसमें बदलाव की
भी हिमायत कर दी!
मानव संसाधन विकास
राज्यमंत्री के मुताबिक़, “हमारे पूर्वजों ने कहीं भी लिखित रूप से या मौखिक तौर पर यह ज़िक्र नहीं किया है
कि उन्होंने किसी बंदर को मानव में बदलते देखा। जब से धरती पर मानव को देखा गया, वह हमेंशा से ही मानव था।” आईपीएस से राजनेता बने सत्यपाल सिंह अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन में हिस्सा लेने
यहाँ पहुंचे थे। उन्होंने कहा, “हमने जो भी किताबें पढ़ी हैं, या अपने दादा-नाना से कहानियाँ सुनी हैं, उनमें कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है।”
मंत्रीजी की ये टिप्पणी
और डार्विन के सिद्धांत पर उनका आधारहिन दावा उनकी किरकिरी की वजह बना। हालात को भाँपते
हुए उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मानव संशाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को उन्हें
नसीहत देते हुए कहना पड़ा कि ऐसी टिप्पणी करने से बचिए।
जावड़ेकर को कहना पड़ा
कि, “मेंने अपने राज्य मंत्री को सलाह दी कि हमें विज्ञान को कमतर करने का प्रयास नहीं
करना चाहिए। डार्विन के सिद्धांत को ग़लत साबित करने के लिए हमारी ओर से कोई कार्यक्रम
आयोजित करने की कोई योजना नहीं है। यह वैज्ञानिकों के अधिकार क्षेत्र का विषय है, और
उन्हें देश की प्रगति के लिए काम करने की पूरी छूट होनी चाहिए।”
मार्च 2021 के दौरान उत्तराखंड
के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत एक से ज़्यादा बार महिलाओं के कपड़ों पर टिप्पणी
कर गए। ‘फटी जींस’ और ‘शॉर्ट्स’ पहनने पर वे महिलाओं पर टिप्पणी करते नज़र
आए! विवाद हुआ तो कह दिया कि ग्रामीण परिवेश से आया हूँ, माफ़ी मांगता हूँ।
उधर बंगाल में सत्ताधारी
पार्टी टीएमसी के विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती महिलाओं के कपड़ों पर बोल गए। उत्तराखंड
पर चुप्पी साधने वाली बीजेपी यहाँ हंगामा करने लगी, तो तीरथ सिंह रावत के समय हंगामा करने वाली टीएमसी चुप सी रहती दिखी!
फटी जींस और शॉर्ट्स
से फ़ेमस हुए सीएम तीरथ सिंह रावत इसके बाद एक कार्यक्रम में कुछ ऐसा बोल गए कि लोग
हैरान थे। कोविड पर सरकार की प्रशंसा करते हुए इन्होंने कहा, “अन्य देशों के मुक़ाबले भारत ने इस बीमारी से बेहतर तरीक़े से निपटा। अमेरिका ने
हम पर 200 से ज़्यादा सालों तक राज किया और इस समय वह संघर्ष कर रहा है।”
लेकिन तीरथ सिंह रावत
को ब्रिटेन की जगह अमेरिका कहना माफ़ किया जा सकता है। क्योंकि पीएम मोदी ऐसे ब्लफ़
अनेकों बार कर चुके हैं।
इन दिनों राहुल गांधी
अपनी छवि बदलने में लगे हुए थे। वे बार-बार स्कूल-कॉलेज जैसी जगहों पर जाकर युवाओं
से बात करते थे। इस मुद्दे पर केरल के पूर्व सांसद जॉयस जॉर्ज ने कह दिया कि, “राहुल गांधी सिर्फ़ लड़कियों के कॉलेज इसलिए जाते हैं, क्योंकि वह अविवाहित हैं।”
अप्रैल 2021 के दौरान यूपी के
तत्कालीन सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर मामला गर्म होने लगा। योगी न्यूज़ एजेंसी एएनआई
को किसी विषय पर बाइट दे रहे थे, इसी दौरान उनके मुँह से एक अभद्र शब्द निकल पड़ा। योगी एएनआई से बातचीत में कह
रहे थे, मैं देश के वैज्ञानिकों का अभिनंदन करता हूँ। इसी दौरान शायद कैमरामैन का हाथ
हिल गया और योगी के मुँह से ये अभद्र शब्द निकला।
समर्थकों ने वीडियो
को एडिट किया हुआ बताया और योगी का बचाव किया। किंतु फैक्ट चेक पोर्टल और कुछेक न्यूज़
चैनलों के वीडियो के आधार पर एक तथ्य यह भी सामने आया कि वीडियो एडिट किया हुआ नहीं
था।
उधर सर्वोच्च अदालत
आदेश दे चुकी थी कि धर्म के नाम पर वोट मांगना असंवैधानिक व ग़ैरक़ानूनी है। लेकिन नेता
लोग ख़ुद को संविधान या क़ानून से भी उपर समझते हैं। विशेषत: सत्ता दल के नेताओं में
यह बीमारी ज़्यादा देखी जाती है।
इसी कड़ी में कर्नाटक
में बंटवाल सीट के लिए चुनावी जंग के दौरान 24 जनवरी 2018 को भाजपा विधायक सुनिल कुमार ने विवादित बयान देते हुए कहा कि, “यह हिंदुत्व का सवाल है। बंटवाल का चुनाव राम और अल्लाह के बीच जंग सरीखा है।”
बयान विवादित तो था
ही, साथ ही ग़ैरक़ानूनी भी था, लिहाज़ा इन पर धाराएं लगाकर मामला दर्ज करना
पड़ा। वैसे ऐसे मामलों से नेता लोग घबराते नहीं हैं। बल्कि वे लोग इन्हें मेडल मानते
होंगे।
गोहत्या को लेकर काफ़ी कुछ होता रहता है। राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने जनवरी 2018 के अंतकाल में एक
दफा इस मुद्दे को लेकर पत्रकारों से कह दिया कि, “हमारे पास इतनी पावर
नहीं होती है कि हर चीज़ समय से पहले कंट्रोल कर लें। कई बार हमें जानकारी मिलती है
उसके आधार पर कार्रवाई करते हैं। कई बार पुलिस गश्त में है, तो नाकाबंदी में कुछ पकड़
में आता है, तो उसमें हो जाता है।”
सोचिए, एक राज्य का गृह मंत्री
पतली गली से निकलने के लिए कह देता है कि हमारे पास इतनी पावर नहीं होती। पावर के लिए
न जाने क्या क्या होता है, और फिर पल्ला झाड़ने के लिए ये होता है!
उधर 27 जनवरी 2018 को केंद्रीय ऊर्जा
राज्य मंत्री आरके सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र आरा से विवादित बयान दे डाला। उन्होंने
कहा कि, “अगर किसी ठेकेदार ने उनके सांसद निधि के काम में धांधली की तो उसका गला काट लेंगे, गिरफ़्तार कर जेल भेज देंगे।”
बताइए, एक मंत्री कह रहे थे
कि हमारे पास इतनी पावर नहीं होती कि छोटी सी चीज़ भी कंट्रोल हो सके, और इधर दूसरा
गला काटने के पावर तक पहुंचा था! एक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री महाराष्ट्र जाकर डॉक्टरों को गोली मारने की धमकी
दे रहा था! कोई हुक्का-पानी बंद कराने की धमकी दे रहा होता है, कोई गला काटने की बात करता है, कोई गोली मारने की, कोई सिर काटने की!
लव जिहाद का भूत बार
बार इनके सिर चढ़ता-उतरता रहता है। और इसी क्रम में यूपी से युवा वाहिनी संस्था के
प्रदेश मंत्री नागेन्द्र प्रताप को अचानक से लव जिहाद वाला भूत चढ़ गया।
इन्होंने गणतंत्र दिन
के मौक़े पर कह दिया कि, “देश का युवा लव जिहाद को जवाब देने के लिए तैयार बैठे हैं। पाकिस्तानी लड़कियों
के साथ इनकी शादी करवा दो, और दूसरे मुस्लिमों की घरवापसी करवा दो।” वे यहीं नहीं रुके और कहा, “पाकिस्तान में लड़कियों
की तादाद ज़्यादा है। हमारे यहाँ शादी योग्य लड़के तैयार हैं। उन तमाम को पचा जाएँगे।
बस पाचन शक्ति मज़बूत होनी चाहिए।”
वैसे नागेन्द्र प्रताप
को पहले तो पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर, उन्हें लव जिहाद क्या है ये
बता देना चाहिए था। क्योंकि लव जिहाद की राजनीति के बीच बतौर गृह मंत्री राजनाथ कह
चुके थे कि ये लव जिहाद क्या है मैं नहीं जानता। उस जवाब को भी सुन लेना चाहिए था, जिसमें
कहा गया था कि अब तक लव जिहाद का एक भी मामला साबित नहीं हो पाया है। हर शादी लव जिहाद
नहीं होती वाला बयान देने वाले भाजपाई नेता को नागेन्द्र प्रताप से मिलकर बात कर लेनी
चाहिए थी।
अगर नेताजी सचमुच गंभीर
ही थे, तो फिर उन्हें अपनी इस नायाब पारिवारिक योजना
के बारे में देश को लगे हाथ यह भी बता देना चाहिए था कि क्या उनके परिवार के लड़के
ऐसा करेंगे या नहीं? या फिर सनक के नाम पर अन्य युवाओं को ही शामिल
किया जाएगा।
भाजपा नेता सुब्रमण्यम
स्वामी ज़्यादा देर तक विवादों से दूर नहीं रह सकते। जनवरी 2018 के दौरान एएनआई से
बातचीत करते हुए इन्होंने भारत रत्न से सम्मानित अमर्त्य सेन को गद्दार तक कह दिया! इन्होंने कहा, “एनडीए ने सेन को भारत रत्न दिया, लेकिन सेन तो गद्दार हैं।”
इन्होंने कहा कि सोनिया
गांधी के दबाव के चलते पुरस्कार दिया गया था। ग़ज़ब था कि उनकी सरकार ने सम्मान दिया
था और वो भी विपक्षी नेता के दबाव के चलते!!!
इधर यूपी सरकार में
भाजपा की सह्योगी पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने 27 जनवरी 2018 को अपने ही सह्योगी
भाजपा को ‘चमचों की पार्टी’ बता डाला। दबाव की राजनीति ने राजभर को इस
कदर मजबूर किया कि उन्होंने भाजपा के लिये इन लफ़्ज़ों का इस्तेमाल कर लिया, जबकि वो स्वयं उस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
26 जनवरी 2018 के दिन कासगंज हत्याकांड हुआ, जिसके चलते 5 फ़रवरी 2018 के दिन हिंदू महासभा
के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक चौबे ने विवादित बयान देते हुए कहा, “राष्ट्रीय हित के हेतु शस्त्रपूजन होना चाहिए। हिंदू अगर 100 रुपये कमाता है, तो
उसे 20 रुपये के हथियार ख़रीदने चाहिए।”
क्या खाना है, क्या पीना है, क्या पहनना है, शादी कहाँ करनी है, कौन सी लड़की-लड़के से करनी है, कौन से देश में करनी है, कितने बच्चे पैदा करने
हैं, फिर उन बच्चों को कहाँ
कहाँ अर्पण करना है, उसके बाद अपनी पसीने
की कमाई से क्या ख़रीदना है, नेता लोग अपने मौलिक
अधिकारों का दायरा बढ़ाते जा रहे थे!
हिंदू-मुस्लिम वो टॉपिक
है, जो राजनेताओं का सदैव प्रिय रहा है। अमित शाह सरीखे नेता तो चुनावी समर में सरेआम
इसका इस्तेमाल करते हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू तुष्टिकरण के आधार पर ही चुनाव
लड़े गए और लड़े जाएँगे। देश के दो मुख्य राष्ट्रीय दलों को देखने की मूल अवधारणा यही
तो है!
फ़रवरी 2018 के प्रथम सप्ताह के
दौरान एआईएमआईएम अध्यक्ष ओवैसी ने लोकसभा में कहा कि, “भारतीय मुस्लिमों को पाकिस्तानी कहने वालों को सज़ा के तौर पर कम से कम तीन साल
की सज़ा का प्रावधान बनाने की ज़रूरत है।”
ओवैसी ने राग छेड़ा
तो विनय कटियार कूद पड़े। विनय कटियार ने कहा, “जब मुसलमानों ने जनसंख्या के आधार पर देश का बंटवारा कर दिया है, तो फिर यहाँ रहने
की क्या ज़रूरत है। मुस्लिमों को अलग से भू-भाग दे दिया गया है, तो वे बांग्लादेश या
फिर पाकिस्तान जाएं, इस देश में उनका क्या काम है।”
फिर जम्मू-कश्मीर के
पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला की पारी आई। उन्होंने कहा, “क्या ये देश कटियार के बाप का है? कोई भी धर्म नफ़रत करना
नहीं सिखाता। सभी धर्म केवल प्रेम की शिक्षा देते हैं। ये हम सब का देश है। ये किसी
एक व्यक्ति की बात नहीं है। विनय कटियार जैसे लोग नफ़रत फैलाते हैं।” फारूकजी को ओवैसी की शुरुआत कहाँ से याद रहती, क्योंकि इन्हें भी योगदान तो देना ही था।
राजस्थान की मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे ने 12 फ़रवरी 2018 के दौरान एक पत्रकार को बजट घोषणाओं के बारे में ग़ज़ब का जवाब दे दिया था। बजट
पेश करने के बाद मुख्यमंत्री राजे से एक पत्रकार ने पूछा कि इसकी क्या गारंटी है कि
जो घोषणा की गई हैं वे चुनाव आने तक पूरी कर ली जाएगी। जवाब में मुख्यमंत्री बोल पड़ी
कि, “इसकी कोई गारंटी नहीं है।” हालाँकि मुख्यमंत्रीजी संभल गईं और कहा कि हम पूरी कोशिश करेंगे कि उन्हें पूरा
किया जा सकें।
कांग्रेस से निलंबित
नेता मणिशंकर अय्यर अब भी बाज़ नहीं आ रहे थे। फ़रवरी 2018 के मध्यकाल के दौरान
पाकिस्तान कराची साहित्य महोत्सव में अय्यर ने भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करते
करते पाकिस्तान पर प्यार जता दिया और कह दिया कि, “इस्लामाबाद ने द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत
का रास्ता स्वीकार किया है, जबकि नई दिल्ली ने नहीं किया।”
लगे हाथ नोट करें कि
नवंबर 2015 में मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि, “भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत में मोदीजी को हटा देना चाहिए।” अय्यर ने ये बयान पाकिस्तानी टेलीविज़न को दिए साक्षात्कार में
दिया था!
फ़रवरी 2018 के दौरान जम्मू-कश्मीर
स्थित सुंजवां कैंप पर बड़ा आतंकी हमला हुआ। हमले में सेना के क़रीब 7 जवान मारे गए।
सेना के जवानों के
इस बलिदान पर असदुद्दीन ओवैसी ने निम्न स्तर पकड़ते हुए कहा, “सुंजवां की घटना में पाँच कश्मीरी मुसलमानों ने अपना बलिदान दिया है। आप इस बारे
में बात क्यों नहीं कर रहे?” वे बोले, “रात नौ बजे प्राइम टाइम बहस में शामिल होने वाले तथाकथित राष्ट्रवादी
लोग मुसलमानों और कश्मीरी मुसलमानों के राष्ट्रवाद पर सवाल करते हैं, लेकिन यह नहीं देखते।”
ओवैसी का राजनीतिक
लोगों पर आरोप सही हो सकता है, लेकिन कहने का समय और तरीक़ा ग़लत ही था। आख़िरकार
सेना ने इस पर जवाब दिया। सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अंबू
ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि, “हम अपने बलिदानी सैनिकों को धर्म से नहीं जोड़ते। जो लोग सेना की कार्यशैली नहीं
जानते, वह लोग इस तरह का बयान देते हैं।”
फ़रवरी 2018 के दौरान मध्य प्रदेश
उपचुनाव प्रचार के वक़्त कोलारस में राज्य बीजेपी सरकार की मंत्री यशोधरा राजे ने आपत्तिजनक
बयान दे दिया। इन्होंने कहा कि हमें वोट नहीं दिया तो उज्जवला योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
मंत्रीजी ने कहा कि, “सरकारी योजना का फ़ायदा कमल पर बटन दबाने वालों को ही मिलेगा, पंजे पर नहीं।”
विवाद हुआ तो बीजेपी
ने सफ़ाई देते हुए कहा कि यशोधरा का मतलब धमकाना नहीं समझाना था कि बीजेपी विधायक के
चुने जाने से तालमेल बेहतर होगा। बयान कोई दे और मतलब कोई दूसरा ही समझाने लगे, यह पुराना राजनीतिक हथियार है।
एक बात ज़रूर नोट करें कि हमारे यहाँ उद्योगपतियों
के बारे में ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणियाँ सरकार या उनके मंत्री नहीं देते! विपक्ष वाले उद्योगपतियों व सरकार के रिश्तों को लेकर बोलते रहते हैं, लेकिन स्वयं सरकार
या उनके मंत्री कभी उद्योगपतियों पर विवादित बयान नहीं देते। वे इन्हें छोड़कर बाकी
सबको पकड़ते हैं! एक को सत्ता छोड़ देती है, लेकिन जवान, किसान, विज्ञान, भगवान, संविधान, किसीको ये लोग नहीं छोड़ते!
मध्य प्रदेश के पंचायती
राज मंत्री गोपाल भार्गव से जब किसानों की आत्महत्या को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने
जवाब दिया कि, “विधायक की भी मृत्यु होती है। 10 विधायक मर गए पिछले 4 साल में, अब क्या मृत्यु पर किसी का जोर है? विधायक अमर हैं? हम लोगों को भी टेंशन होता है। किसानों के
साथ हमारी सहानुभूति है।”
है न कमाल! सवाल क्या पूछा जाता है, जवाब क्या दिया जाता है! व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के विद्यार्थी तो हर जगह व्याप्त हैं।
केजरीवाल के आवास पर मुख्य सचिव से हाथापाई मामले में फ़ज़ीहत झेल रही आम आदमी पार्टी अपने एक विधायक के विवादित
बयान से ज़्यादा मुश्किल में फंसती नज़र आई। आप विधायक नरेश बाल्यान ने 23 फ़रवरी 2018 को, दिल्ली के उत्तम
नगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि, “जो मुख्य सचिव के साथ हुआ, जो इन्होंने झूठा आरोप लगाया, मैं तो कह रहा हूँ कि ऐसे अधिकारियों को ठोकना
चाहिए।” बाल्यान ने आगे कहा कि, “जो आम आदमी के काम रोक के बैठे हैं, ऐसे अधिकारियों के साथ यही सुलूक होना चाहिए।”
भाजपा सरकार में मंत्री
सत्यपाल सिंह कुछ अलग ही ज्ञान पेश किए जा रहे थे। डार्विन की थ्योरी को ग़लत बताकर
और एक स्वास्थ्य मंत्री कैंसर को इंसान का पाप बताकर समूची सरकार को व्हाट्सएप गैंग
साबित करते जा रहे थे।
25 अक्टूबर 2018 को मंत्री सत्यपाल सिंह ने आतंकवाद का समाधान वेदों को बता दिया! केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह का कहना था
कि, “जितने भी अपराध, आतंकवाद, समस्याएं हैं, उन सबका निदान अगर कोई कर सकता है तो वो वेदों
के विचार, ऋषि ज्ञान ही कर सकते हैं। अगर इस देश के
गौरव को पुन: लौटाना है तो हमें पुन: वेदों की तरफ़ जाना पड़ेगा।” इन्होंने तो आगे यह भी कहा कि, “राष्ट्रपति को भी इसकी शपथ लेते देखने का सपना है।”
सोचिए, आतंकवाद, अपराध और दूसरी समस्याओं
के लिए क़ानून, उससे जुड़ी हुई संस्थाएँ,
विभाग,
जाँच,
फोरेंसिक,
अन्वेषण आदि चीज़ें बेहतर की जानी चाहिए। किंतु मंत्रीजी समाधान
यह दे रहे थे कि सब ग़लत है, बस वेदों की तरफ़ लौट
जाओ, जाँच-वाच, फोरेंसिक-वोरेसिंक
वगैरह तो जुमले हैं! नोट करें कि सत्यपाल सिंह मुंबई शहर के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं। जजों और पुलिस
कमिश्नरों के अजब-ग़ज़ब बयानों के दौर को देख लगता है कि क्लास-1 या क्लास-2 लोगों के क्लास इतने
भी क्लासलेस होने लगे हैं आज कल!
कांग्रेसी नेता शशि
थरूर भी प्रतियोगिता में शामिल हैं। 27 अक्टूबर 2018 को बेंगलुरु में इन्होंने संघ के हवाले से पीएम मोदी को ‘शिवलिंग पर बैठे बिच्छू
जैसा’ तक बता दिया! अपनी किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम
मिनिस्टर’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “एक बार आरएसएस के एक
अज्ञात व्यक्ति ने पीएम मोदी को एक नई उपमा देते हुए कहा था कि मोदी शिवलिंग पर बैठे
बिच्छू की तरह हैं, जिसे आप ना तो अपने हाथों से और ना ही चप्पल
मारकर हटा सकते हैं।"
नेत्रियाँ भी पीछे
क्यों रहे? कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख दिव्या स्पंदना
ने नवंबर 2018 में स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के पैरों के पास खड़े प्रधानमंत्री मोदी की एक तस्वीर
के साथ एक टिप्पणी पोस्ट की, जिसमें उन्होंने लिखा कि, “क्या यह किसी पक्षी
की बीट है?” भाजपा प्रवक्ताओं ने विरोध किया तो स्पंदना
ने कह दिया कि मेरे विचार मेरे हैं, मैंने क्या कहा या क्या नहीं कहा, इस बारे में मैं स्पष्टीकरण देने नहीं जा रही हूँ, क्योंकि आप इस लायक नहीं हैं।
नेत्री के बाद नेताजी
भी संभल नहीं पाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी की तुलना
हिटलर से कर दी। खड़गे ने कहा कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के साथ वही करना चाहते हैं, जो तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर
ने जर्मनी के साथ किया था।”
उधर आंध्र प्रदेश में
सत्ताधारी तेलगु देशम पार्टी के सदस्य और राज्य के वित्त मंत्री यनामाला रामकृष्नुदु
ने कहा कि, “क्या मोदी से बड़ा कोई एनाकोंडा है? वह (मोदी) सीबीआई, आरबीआई और उन जैसी दूसरी संस्थाओं को निगल रहे हैं। वह रक्षक कैसे हो सकते हैं?”
कुत्ते, गधे, चूहे, बिच्छू के बाद एनाकोंडा भी अब राजनीति में
अवतरित हो चुका था! उधर शशि थरूर रुकने
के मूड में नहीं थे। इन्होंने कोलकाता से बोलते हुए पीएम मोदी को ‘एक सफ़ेद घोड़े पर हाथ में तलवार लेकर बैठा हीरो’ कह दिया।
बीजेपी सांसद और अभिनेता
मनोज तिवारी भी अपनी फिसलती जुबान को लेकर चर्चा में रहते हैं। नवंबर 12, 2018 को इन्होंने सोनिया
गांधी के लिए बयान दे दिया। उनका एक वीडियो न्यूज चैनलों पर चला, जिसमें वे बोल रहे थे कि, “परेशानी यह है कि सोनिया गांधी ने कभी छठ पूजा नहीं की। अगर
सोनिया गांधी ने पूजा की होती, तो उनका पुत्र बहुत बुद्धिमान होता। छठ पूजा करने से
बुद्धिमान बालक जन्म लेता है, भ्रष्ट नहीं।” एक दफा वो कांग्रेस
को कह चुके थे कि, “आप डकैत हैं, आप चोर हैं, आपके परिवार ने देश को लूटा है।”
दिसंबर 2021 को मध्य प्रदेश बीजेपी
के विधायक जनार्दन मिश्रा ने कहा कि, “लोग आकर कहते हैं कि सरपंच लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं, तो मैं कहता हूँ कि अगर 15 लाख तक का भ्रष्टाचार
किया तो भाई मुझसे बात मत करो।”
मध्य प्रदेश में कोरोना
से हुई मौतों पर राज्य के मंत्री प्रेम सिंह पटेल ने कह दिया था, “उम्र बढ़ती है तो फिर
मरना तो पड़ता ही है।”
आरएसएस के मुखिया मोहन
भागवत कोरोना से हुई मौतों पर बोल गए थे कि,
“जो कोरोना से मर गए, वे मुक्त हो गए।”
अप्रैल 2021 में बुलढाणा से शिवसेना
विधायक गायकवाड़ ने कहा, “यदि मुझे कोरोना वायरस मिल जाता, तो मैं उसे देवेंद्र फडणवीस के मुँह में डाल देता।”
वाणी से ही चरित्र की पहचान होती है। भारत वर्ष की संस्कृति में यह संस्कार वाक्य
सदियों से व्याप्त है। इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो, नंबर दो वाले अमित शाह हो, सोनिया गांधी हो, राहुल गांधी हो, प्रियंका गांधी हो, अरविंद केजरीवाल हो या ऐसे अनगिनत नेता हो, जिन्हें लाखों करोड़ों लोग अपना सब कुछ मानते हैं, उनकी वाणी देखे तब सारे चश्मे झूठे लगते हैं।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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