भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदीजी ने एक महाज्ञान देश को दिया था कि कपड़ों से चरित्र की पहचान होती है। जबकि सनातन संप्रदाय के जो मूल ग्रंथ हैं उसके अनुसार कर्मों से चरित्र की पहचान होती है। लेकिन भगवान होने का भी अपना एक युग होता होगा। आज के युग के भगवान जो कहे वही ठीक, मूल ग्रंथ को समीक्षा के लिए भेज दिया जाएगा!
मैट्रिक पास एजुकेटेड आदमी इतना तो इंटेलिजेंट होता ही है कि वह एक पैरा से ही धर्म और राजनीति के सारे प्रपंच को समझ जाएँ। आज कल तो मैट्रिक से भी बहुत आगे की पढ़ाई करने वाला समाज है। लेकिन उस समाज को देखकर एक समझ यह भी आती है कि एजुकेटेड होना और इंटेलिजेंट होना, आजकल दोनों के बीच सीधा रिश्ता है नहीं।
ख़ैर, आज यहाँ बात करनी है पूजनीय श्री हनुमानजी और उनसे जुड़े एक और बड़े विवाद की। विवाद भी एक ऐसी जगह से उठ खड़ा हुआ है, जहाँ श्री हनुमानजी का और उनके धार्मिक आभामंडल और व्यापकता का खुलकर इस्तेमाल करके फ़ाइव स्टार से लेकर सेवन स्टार तक की आलिशान इमारतों में सैकड़ों धार्मिक लोग वैभवी और पृथ्वी पर ही स्वर्ग जैसा महसूस हो ऐसा जीवन जी रहे हैं। यह लिखे तो झूठ नहीं होगा कि श्री हनुमानजी की कृपा जबरन ही सही, किंतु जबरन ही लेकर इनमें से ज़्यादातर लोग दूसरों पर कृपा करने लायक रुतबा हाँसिल कर पाए हैं।
हिंदुओं के आराध्य देव श्री हनुमानजी को स्वामीनारायण संप्रदाय ने अपने स्वघोषित भगवान के सामने नतमस्तक खड़ा कर विवाद उत्पन्न किया
श्री हनुमानजी पर ताज़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है गुजरात की उस जगह से जहाँ बॉलीवुड के सितारों से लेकर आला राजनेता तक के लोग अपना मत्था टेकने जाया करते हैं। श्री कष्टभंजनदेव हनुमानजी मंदिर, सालंगपुर धाम, ज़िला बोटाद। अहमदाबाद से इस जगह की दूरी क़रीब 140 किमी की है। यहाँ स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा निर्मित और संचालित हनुमानजी का एक ऐसा मंदिर है, जो देश और विदेश में बसे भारतीयों के लिए जानी-पहचानी जगह है। यह जगह अरसे से लाखों भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है।
यहाँ हनुमानजी की एक नई और विशाल 54 फ़ीट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। प्रतिमा के नीचे, चारों तरफ़ पत्थरों में या फिर कुछ दूसरे तरीक़े से तरासकर कुछ शिल्प या पेंटिग्स बनाए गए हैं। उसमें से श्री हनुमानजी के कुछ शिल्प ऐसे हैं, जिसमें स्वयं भगवान श्री हनुमानजी इस स्वामीनारायण संप्रदाय के स्वघोषित भगवान के सामने हाथ जोड़कर नतमस्तक खड़े हैं तथा एक शिल्प में घुटनों पर बैठकर उस स्वघोषित भगवान के सामने सिर झुका रहे हैं!!! एक शिल्प में सहजानंद स्वामी आसन पर बैठे हैं और हनुमानजी हाथ जोड़े नमस्कार वाली मुद्रा में हैं!
प्रतिमा के नीचे लगी पेंटिग्स में हनुमानजी को स्वामीनारायण संप्रदाय के सहजानंद स्वामी के भक्त और दास के रूप में दिखाया गया है! किसी संप्रदाय के स्वामी को, जो स्वघोषित रूप से संप्रदाय के लिए भगवान हैं, उन्हें हिंदू धर्म के पूजनीय देव हनुमानजी से भी ऊपर दिखा दिया गया! यहाँ भी वही राजनीति! किसी व्यक्ति को भगवान से भी ऊपर बता दिया गया!
इस बीच यह विवाद बढ़ने के बाद एक ख़बर ये भी है कि ऐसी कुछ पेंटिग्स यहाँ से कुछ दूरी पर स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा संचालित कुंडल धाम में भी हैं। वहाँ स्वामीनारायण के स्वघोषित भगवान को हनुमानजी नमस्कार मुद्रा में फल दे रहे हैं!
फिर तो स्वामीनारायण संप्रदाय के ऐसे दूसरे कारनामों की ख़बरें आने लगी हैं। सालंगपुर, कुंडल धाम, सुरेंद्रनगर पाटड़ी वणींद्रा घाम, सायला लोया धाम, इन जगहों पर भी श्री हनुमानजी को स्वामीनारायण के स्वघोषित भगवान के दास के रूप में चित्रित किया गया है और उस स्वघोषित भगवान के आगे नतमस्तक होकर फल अर्पण करते हुए दिखाया गया है! क्या पता, ऐसी दूसरी तस्वीरें या रचना कहीं और भी हो सकती हैं।
कहा गया कि विवादित शिल्प के साथ साथ यहाँ हनुमानजी के ललाट पर स्वामीनारायण संप्रदाय का तिलक लगा है। इसे भी विवादित प्रक्रिया माना जा रहा है। उनके स्वघोषित भगवान के दास बताने के बाद हनुमानजी को उनका संप्रदायी तक बता दिया गया है!
बता दें कि स्वामीनारायण संप्रदाय का हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर यह पहला अतिक्रमण नहीं है। वे इससे पहले स्वयं श्री शिव, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री राम से लेकर तमाम हिंदू देवता और देवियों के बारे में भी आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं।
भगवान हनुमानजी को नीचा दिखाने के इस विवाद के बाद दूसरे हिंदू संप्रदायों, धामों और लोगों में नाराज़गी, किसने क्या कहा?
इन शिल्प के वीडियो और तस्वीरें वायरल होने के बाद लोकल प्रिंट मीडिया, लोकल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया में बवाल मचा है। यूँ तो पिछले कुछ सालों से 'हिंदू धर्म' लफ़्ज़ की जगह अब 'सनातन हिंदू धर्म' लफ़्ज़ चलन में है। गुजरात भर के दूसरे हिंदू संप्रदाय, मंदिर, धाम और संस्थाओं ने इसे सनातन धर्म का सीधा सीधा और घोर अपमान बताया है। इन शिल्पों को हटाने के लिए टाइम लिमिट भी दे दी गई है।
सालंगपुर समेत स्वामीनारायण संप्रदाय की अन्य जगहों पर भी ऐसे कारनामों की पुख़्त ख़बरें आ रही हैं। साथ ही उनके पुराने और हाल ही में हुए विवादों को भी याद किया जा रहा है। हिंदू ग्रंथों और हिंदू मान्यताओं पर स्वामीनारायण संप्रदाय की विवादित पुस्तकें, अतिक्रमण जैसी चीजें भी हिंदू समाज के भीतर चर्चा में है।
स्वामीनारायण वालों ने जमकर बवाल काट लिया है इस बार। गिरनार के साधु पूरे आक्रोश में नज़र आ रहे हैं। उधर प्रसिद्ध कथाकार और रसूख़ वाले मोरारी बापू ने सालंगपुर मंदिर के इस कारनामे की निंदा की है। जूनागढ़ से इंद्रभारती बापू, भारती आश्रम के महामंडलेश्वर हरिहरानंद महाराज, मुचकुंद गुफा के महामंडलेश्वर महेंद्रानंदगिरि महाराज समेत समग्र गुजरात के अन्य मंदिरों या धामों के साधु-संत या महंत इस कृत्य की सख़्त शब्दों में निंदा कर रहे हैं, शिल्प हटाने के लिए कह रहे हैं।
अलग अलग शहेरों के हिंदू समाज, मंदिर, क्षत्रिय समाज, चारण समाज, ब्रह्म समाज से लेकर दूसरे समाज व साधु-संतों ने सालंगपुर जाकर विरोध-प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है। भक्तजनों व साधु-संत समाज ने चित्र हटाने के लिए कहा है और आंदोलन, विरोध-प्रदर्शन, अनशन करने की चेतावनी भी दी है।
स्वामीनारायण संप्रदाय का यह ऐसा पहला कारनामा नहीं है और ऊपर से विवाद के बाद भी नौतम स्वामी के अहंकारी बयान के चलते कुछ प्रतिक्रियाएँ काफ़ी उग्र आ रही हैं। जूनागढ़ गिरनार से कहा गया कि जैसे प्रभास पाटण से महादेव की मूर्ति घेला सोमनाथ में स्थापित की गई थी वैसी स्थिति का निर्माण आप न करें। मर्यादा में रहने की चेतावनी दी जा रही है। कहा जा रहा है कि स्वामीनारायण को दिमाग में भ्रम है तो निकाल दें, आपकी रेखा लंबी दिखाने के लिए हमारी रेखा छोटी मत करें, अपनी औक़ात में रहे। लंबे नारायण आश्रम के बापू तो कह गए कि आप पादरी जैसा काम कर रहे हैं, लोगों का ब्रेनवॉश करना बंद कर दें।
साधु-संतों और भक्तजनों की जमकर नाराज़गी के बीच विश्व हिंदू परिषद भी इस विवाद में कूद पड़ा है। महामंत्री अशोक रावल भी नाराज़गी व्यक्त कर चुके हैं। उधर करणी सेना भी इसे लेकर आक्रोश व्यक्त कर रही है।
स्वामीनारायण के स्वामी नौतम के अहंकारी बयान के बाद संतों और दूसरे हिंदू भक्तजनों में गुस्सा बढ़ा है। विविध हिंदू संगठन और स्वामीनारायण के सालंगपुर मंदिर के कुछ संतों के बीच एक बैठक हो चुकी है। बैठक बेनतीजा रही। इतना ही नहीं, मीडिया रिपोर्ट की माने तो वहाँ स्वामी और हिंदू संगठनों के संतों के बीच मामला बिगड़ता नज़र आया। पुलिस ने बीच-बचाव कर मामले को आगे बढ़ने से रोक दिया।
साथ में स्वामी नौतम के विचित्र बयान के बाद स्थिति और बिगड़ी है। सालंगपुर में हनुमानजी के दर्शन के लिए आए कुछ भक्तजन और सालंगपुर के कुछ स्वामी के बीच कहासुनी भी हो चुकी है।
बोटाद के रोकड़िया हनुमानजी मंदिर के महंत परमेश्वर महाराज तो अपने दोनों हाथों में दो जानलेवा हथियार लहकार बोल उठे कि अगर ये लोग नहीं सुधरते तो मैं धर्म के रक्षण हेतु इनका वध कर दूँगा। कोई शांति से प्रार्थना कर रहा है कि चित्र हटा लीजिए, वर्ना वहाँ आकर हम अनशन पर बैठ जाएँगे।
विवाद बढ़ रहा है तो उधर स्वामीनारायण के कुछ प्रतिनिधियों का अहंकार बढ़ रहा है। मामला इससे ज़्यादा उग्र हो रहा है। इसके चलते कुछ जगहों पर स्वामीनारायण को लेकर भी नये पोस्टर बनाए गए, जिसमें उस स्वघोषित भगवान को श्री हनुमानजी की सेवा करते हुए और पैर दबाते हुए दिखाया गया है।
दिनों तक विवादित शिल्प हटाने की माँगे करने के बाद भी स्वामीनारायण संप्रदाय की तरफ़ से कोई ठोस जवाब नहीं आने पर कुछ भक्तजन अति आक्रोशित नज़र आए। एक दोपहर एक आक्रोशित भक्त फ़रसे के साथ वहाँ घुस गया और बैरिकेडिंग पार कर विवादित शिल्प और स्वामीनारायण के स्वघोषित भगवान के चित्रों पर कालिख पोत दी। उसके बाद भक्त ने गुस्से में आकर उन शिल्पों पर फ़रसा चलाना शुरू कर दिया। समय रहते पुलिस ने उसे रोक दिया और अपने साथ ले गई।
विवाद बढ़ता देख भाजपा के सांसद रामभाई मोकरिया को भी जनभावना का सम्मान करते हुए स्वामीनारायण के प्रतिनिधियों को नसीहत देनी पड़ी। कहना पड़ा कि मंदिर के पूजारी हो, पूजारी की तरह रहिए, ख़़ुद भगवान बनने के प्रयत्न न करें।
अलग अलग जगहों पर धर्म से संबंधित समितियाँ अपने क्षेत्रीय पुलिस थानों में जाकर शिकायत कर रहे हैं। क़ानून के व्यवसायी लोग स्वामीनारायण संप्रदाय के अलग अलग मंदिर ट्रस्ट को नोटिस दे रहे हैं और शिल्प हटाने के लिए कह रहे हैं। गुजरात के लगभग तमाम संत, तमाम हिंदू संगठन और आम भक्तजन इस बात को लेकर अधिक नाराज़ दिख रहे हैं और इन विवादित चित्रों को हटाने की माँग कर रहे हैं।
विरोध के बीच स्वामीनारायण संप्रदाय के राजनीति टाइप जवाब... कोई ग़लती स्वीकार कर रहा, कोई नये नये शास्त्र और अपना ख़ुद का इतिहास पैदा कर ख़ुद को सही साबित कर रहा
इस विवाद और विरोध के बाद स्वामीनारायण संप्रदाय के अलग अलग प्रतिनिधि अलग अलग जवाब दे रहे हैं। फूल टू राजनीति टाइप जवाब! एक स्वामी ग़लती स्वीकार करता है, दूसरा माफ़ी माँगने की बात करता है, तीसरा इस कारनामे को सही ठहराता है, चौथा नये नये शास्त्र और अपने घर में निर्मित नवलकथा को इतिहास बता कर ज्ञान देता है, पाँचवा हिंदू ग्रंथों में इसका ज़िक्र है यह कहकर महज़ 300 साल पुराने संप्रदाय को 3000-3500 साल पुराने संप्रदाय में मिक्स कर अचार बनाता है! वैसे भी वहाँ अचार वाले भी प्रतिनिधि हैं।
विविध हिंदू संगठन और स्वामीनारायण के सालंगपुर मंदिर के कुछ संतों के बीच एक बैठक भी हुई। बैठक बेनतीजा रही। क्योंकि बैठक में स्वामीनारायण के संतों ने हिंदू संगठनों के संतों-साधुओं को ज्ञान बाँटना शुरू कर दिया और अपने संप्रदाय के स्वलिखित ग्रंथों को सच्चा इतिहास बताकर सब कुछ सही चल रहा है वाला मत प्रकट कर दिया! वहाँ स्वामी और हिंदू संगठनों के संतों के बीच मामला बिगड़ता नज़र आया। पुलिस ने बीच-बचाव कर मामले को आगे बढ़ने से रोक दिया।
लेकिन इस बीच आणंद के खंभात शहर से एक सभा के दौरान स्वामीनाराण संप्रदाय के नौतम स्वामी ने जो कहा उसके बाद स्थिति संभलने की जगह ज़्यादा बिगड़ गई। उन्होंने तो कह दिया कि स्वामीनारायण तो स्वयं भगवान हैं, कलयुग में जन्म लेकर अघर्म का नाश किया है, हमारे ख़िलाफ़ बातें सुनकर हमारे अनुयायी डिमॉरलाइज़ न हो, किसी के दबाव में न रहें, नीडर रहे, छोटे-मोटे लोगों को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है, पुराणों में भी स्वामीनारायण भगवान हैं, शास्त्र भी यही कहते हैं, विरोध करने वालों वापस चले जाओ।
इन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि सालंगपुर वाले हनुमानजी कोई सामान्य महाराज नहीं हैं, इसे तो स्वयं गोपालानंद स्वामी ने स्थापित किया है और हमारे स्वामी ने हनुमानजी की इस मूर्ति में अपना योग और ऐश्वर्य दिया है। मतलब कि हनुमानजी को बल, शक्ति, प्रभाव इनके स्वामी ने दिया!!!
एक और स्वामी, जिनका नाम अनुपम स्वामी बताया जाता है, वे इस विवाद के बाद कहते हैं - सहजानंद स्वामी सामान्य आदमी नहीं हैं, वे स्वयं भगवान हैं और भगवान के भी माता-पिता हैं और उन्हें प्रणाम करने में हनुमानजी को किसी प्रकार की आपत्ति क्यों हो? इसके बाद वे स्वामी वेदव्यास के द्वारा लिखित स्कंद पुराण के वासुदेव माहात्मय ग्रंथ का उल्लेख कर दावा करते हैं कि स्वामीनारायण भगवान हैं।
हालाँकि थोड़ी देर बाद अनुपम स्वामी का एक और वीडियो आ जाता है, जिसमें वे अपनी भूल स्वीकार करते हैं और ख़़ुद के तथा ख़ुद के संप्रदाय के संतों के कथनों को ग़लत बताते हैं।
31 अगस्त 2023 के दिन बीबीसी गुजराती के जय शुक्ल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने स्वामीनारायण संप्रदाय के कुछ संतों से बात की तो उन संतों ने कहा कि शिल्पचित्रों में कुछ भी ग़लत नहीं है। शिल्पचित्रों का विरोध करनेवालों को शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। जय शुक्ल ने सालंगपुर मंदिर के कोठारी स्वामी विवेकसागर स्वामी से बात की। स्वामी का कहना है कि हमने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। हमारे संप्रदाय ने हनुमानजी का अपमान नहीं किया है। स्वामी बीबीसी से कह जाते हैं कि जिनके पास ज्ञान नहीं है वे ऐसे आरोप लगाते हैं, कुछ लोगों के विचार और द्द्ष्टि अलग होती है, वे लोग अपनी द्दष्टि से देखना चाहते हैं तो देखें।
बीबीसी गुजराती ने मंदिर के कुछ संचालनकर्ताओं से भी बात की, जिनका कहना था कि यह दुनिया का विशाल हनुमानजी मंदिर है, आप हमें सिखाएँगे कि हमें पूजा कैसे करनी चाहिए? एक संचालनकर्ता ने तो कह दिया कि हम इन विरोधियों के विरुद्ध कदम नहीं उठा रहे यही हमारी कृपा है।
फिर सारे के सारे संत, प्रतिनिधि, संचालनकर्ता अंत में यह भी कहते हैं कि मामला आगे भेज दिया है, शांतिपूर्ण तरीक़े से समाधान किया जाएगा।
विवाद को सुलझाने की जगह स्वामीनारायण के प्रतिनिधि गर्व और अहंकार के साथ, या फिर अपने पैसे और भक्तजनों की ताक़त के मद़ में, जिस तरह से हुंकार भर रहे हैं, ये आग में घी डालने जैसा हो रहा है। इतना ही नहीं, उन विवादित शिल्प पर कपड़ा रखा गया था उसे भी विवाद बढ़ने के बाद निकाल दिया गया है! जैसे कि जो करना है कर लो! ऊपर से यहाँ मीडिया को नो एंट्री का आदेश दे दिया गया है। मीडिया वालों को मनाही है। बिलकुल राजनीति टाइप चल रहा है।
विवादित शिल्प हटाने की जगह यहाँ पुलिस बल को उतार दिया गया है। शिल्प अब तक नहीं हटे हैं, कितु शिल्प का विरोध इस जगह पहुंचे तो विरोधियों को हटाने का बंदोबस्त हो चुका है! शिल्प की रक्षा हेतु पुलिस बल लगाया गया है, साथ ही बैरिकेडिंग कर शिल्प को सुरक्षित रखने की तैयारी भी दिख रही है।
वैसे इतने दिनों के बवाल के बाद भी इन्होंने ऐसे विवादित शिल्प को हटाने की किसी प्रकार की आधिकारिक घोषणा नहीं की है। विवाद बढ़ने के बाद प्रतिमा के नीचे विवादित शिल्प पर पीला कपड़ा लगा दिया गया था। लेकिन नौतम स्वामी की हुँकार के बाद से वहाँ पीला कपड़ा भी नहीं लगा है! कल दोपहर को एक भक्त ने फ़रसे से उन विवादित शिल्प को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तब तक तो वे शिल्प खुले ही थे। आगे अब क्या है, पता नहीं।
यह पहली बार नहीं है, लंबी अवधि से विवादों से ग़हरा रिश्ता रहा है स्वामीनारायण संप्रदाय का, स्वामीनारायण संप्रदाय का हिंदू संप्रदाय और मान्यताओं पर अतिक्रमण
स्वामीनारायण संप्रदाय दूसरों के साथ नहीं बल्कि हिंदू संप्रदाय और उनकी मान्यताओं के साथ इससे पहले भी अनेक बार उलझ चुका है। स्वयं श्री शिव, श्री ब्रह्मा, श्री नारायण, श्री राम, श्री हनुमानजी, इंद्र देव, तमाम हिंदू देवियाँ, ये संप्रदाय इन तमाम बातों में अतिविवादित रूख अपना चुका है और ग़ज़ब के दावे भी कर चुका है। स्वयं श्री शिव उनके स्वघोषित भगवान के चरण छूने आते हैं, श्री राम के बारे में आपत्तिनजक टिप्पणी, नारायण नाम से विवाद, हिंदू संप्रदाय के तमाम माताजी श्रीजी महाराज की वजह से हैं, आत्मा को लेने यम नहीं उनके स्वामी आते हैं, और न जाने क्या क्या!!!
शिव-ब्रह्मा और विष्णू के भी भगवान हैं स्वामीनारायण, ये वाला स्वामी नित्यस्वरूपदास का 2019 वाला वीडियो हो या दूसरे मामले हो, हिंदू धर्मग्रंथों को मरोड़ना, बदलना, अपने तरीक़े से प्रसंग डालना और अपनी नवलकथा सरीखी कहानियों को धार्मिक इतिहास बताना, इनकी सूची बहुत लंबी है। एक दावे की माने तो 150 बार से ज़्यादा इन्होंने हिंदू संप्रदाय और हिंदू मान्यताओं पर अतिक्रमण किया है और विवाद उत्पन्न किए हैं।
स्वामीनारायण संप्रदाय के इन कारनामों की वजह से एक मत यह भी बन रहा है कि विधर्मी लोगों ने तो केवल हिंदू मंदिरों और प्रतीकों को ही तोड़ा था, ये लोग तो हिंदू ग्रंथों, हिंदू मान्यताओं, हिंदू शास्त्रों और हिंदुओं के इतिहास तक को तोड़ रहे हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय की इस अतिक्रमण वाली प्रवृत्ति को सदियों पहले हुए अतिक्रमण से भी ख़तरनाक प्रवृत्ति मानने वाले एक वर्ग का निर्माण होने जा रहा है।
दरअसल स्वामीनारायण संप्रदाय के इस अतिक्रमण वाले स्वभाव का मूल उनके अपने ग्रंथों में है। यूँ तो हिंदू धर्म में नीलकंठ स्वयं श्री शिव हैं। किंतु यहाँ वे अपने एक संत को नीलकंठी नाम देकर अतिक्रमण की शुरुआत करते हैं! उनके संप्रदाय की कुछ पुस्तकें, सर्वोपरी स्वामीनारायण भगवान भाग 1 और भाग 2, नीलकंठ चरित्र, छपैयापुरे श्रीहरि बालचित्र, श्री भूमानंदस्वामी कृत श्री हरिलीलामृत ग्रंथ, सत्सगं विहार भाग 2, सहजानंद चरित्र जैसी पुस्तकों में ऐसी ऐसी काल्पनिक कहानियाँ हैं, जिसे पढ़ने या सुनने के बाद जिस सनातन धर्म और उसके वेद या ग्रंथों व पुराणों को समग्र भारत वर्ष का आधार बताया जाता है उस पर आघात होंगे।
इन पुस्तकों में श्री शिव, श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री विष्णु के अनेक अवतार जैसे कि श्री राम-श्री कृष्ण, श्री हनुमानजी, इंद्र देव तथा हिंदू संप्रदाय में जिनका वर्णन किया गया है वे तमाम देवियाँ तथा माताजी, तमाम के ऊपर स्वामीनारायण के एक संत या एक से अधिक संतों को दर्शाया गया है!!! ऐसी ऐसी कहानियाँ रची गई हैं, जिसमें समग्र हिंदू देवों और देवियों को इनके संतों के आगे नतमस्तक दिखाया गया है! इन शोर्ट, इन्होंने अपने लंबे काल में चुपके से ऐसे ऐसे ग्रंथ, ऐसी ऐसी कहानियाँ बना कर रखी हैं, जिसमें तमाम हिंदू मान्यताओं को चुनौती दी जा सकें। ऐसे ऐसे उदाहरण और घटनाएँ हैं, जिससे उनके संप्रदाय के एक प्रतिनिधि को समग्र ब्रह्मांड का असली अधिपति, असली नाथ, असली ईश्वर दर्शाया गया है!!! और इस बारे में गुजरात के लोकल अख़बार दिव्य भास्कर ने इन्हीं दिनों विस्तृत रिपोर्ट भी प्रकाशित की है।
यूँ तो स्वामीनारायण संप्रदाय का बहुत लंबे काल से विवादों से ग़हरा नाता रहा है। यहाँ एक से अधिक स्वघोषित भगवान भी हैं! यूपी के दिवंगत घनश्याम पाँडेयजी, जिन्होंने कथित रूप से स्वामीनारायण संप्रदाय के विस्तार और विकास में अपना जीवन बिताया और स्वामी सहजानंद नाम धारण किया। संप्रदाय के भीतर वे पहले से ही संप्रदाय के स्वधोषित भगवान हैं और उन्हें अब बाकायदा भगवान का लेबल चिटका दिया गया है। संप्रदाय के अंदर ऐसे कम से कम पाँच प्रतिनिधि हैं, जिन्हें अनुयायी अपना भगवान मानते हैं।
दरअसल, स्वामीनारायण संप्रदाय ने पैसों और लाखों-करोडों का समर्पित भक्तगण, इससे राजनीति और सत्ता में इतनी ज़बरदस्त पेठ बना ली कि राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर देश का प्रधानमंत्री तक की संवैधानिक हस्तियाँ यहाँ आती-जाती रहती हैं। ऐसे में उस लेबल को चिटकाना और फिर उसे सदैव के लिए स्थापित करना बहुत आसान काम था।
गुजरात ही नहीं, गुजरात के बाहर भी इस संप्रदाय से जुड़े प्रतिनिधि या आला ज़िम्मेदारी वाले लोग उन तमाम विवादों, अपराधों से जुड़े रहे हैं, जो यदि कोई आम आदमी कर दें तो उसे सालों तक जेल में डाल दिया जाए। लगे हाथ उस सच को भी स्वीकार कर लेते हैं कि यह केवल इसी संप्रदाय में नहीं है, इनसे भी अधिक दूसरे संप्रदायों में भी है। ठीक वैसे ही यहाँ भी संप्रदाय की संपत्ति की माथापच्ची, भ्रष्टाचार, पैसों की अनअधिकृत और गैरक़ानूनी हेरफेर, पैसों का गबन, धमकियाँ, मारपीट, प्रपंच, अप्राकृतिक संबंधों वाले गंभीर आरोप, राजनीतिक सत्ता से सांठगांठ से लेकर हत्या, हत्या के व्यक्तिगत या सामूहिक षडयंत्र, धार्मिक गद्दी और नियंत्रण तक के विवाद और आरोप अरसे से चिपकते रहे हैं।
कभी कभी लगता है कि इतने सारे विवाद, अपराध या आरोपों से उलझने से अच्छा है कि लहसुन और प्याज़ जमकर खाया जाए। वैसे भी ईश्वर ने स्वाद दिया है तो उसका लुत्फ़ उठाया जाए। ऐसे अनैतिक काम करने से तो यही अच्छा।
ऐसे विवादों के बाद
यह संप्रदाय पिछले कुछ काल से धार्मिक विवादों में ज़्यादा उलझता हुआ दिखाई दे रहा है।
किसी संप्रदाय की धार्मिक मान्यताओं को आहत करना, हिंदू समाज के जो मूल ग्रंथ माने जाते हैं उसमें अपनी मान्यता और अपने विवादित
मतों का अतिक्रमण करना। स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़े प्रतिनिधियों के मुँह से इससे
पहले भी ऐसी बातें निकल चुकी हैं, जो हिंदू संप्रदाय की मूल भावना के ख़िलाफ़
जाती रही हो। पैसा, विशाल भक्तगण और सत्ता
को उनकी ज़रूरत, तीन चक्र मिलकर उन्हें
हर चक्रव्यूह से बाहर निकाल लाते हैं।
स्वामीनारायण संप्रदाय, जो ख़ुद ही अपने आप में लंबे अरसे से, यूँ कहे कि अपने शुरुआती काल से हिंदू व्यवस्था में विवादित संप्रदाय रहा है, उसने अपने घनश्याम पाँडेयजी, जिनका संप्रदाय में सहजानंद स्वामी नाम था, को स्वयं ही भगवान घोषित कर दिया था! उन्हें इस प्रवृत्ति में राजनीति, राजनीति के पीछे चल रही भीड़ और आस्था-भावना से लबालब जनसमाज का भरपूर साथ मिला। पैसा, राजनीति, सत्ता और अतिविशाल भक्तगण। आज स्थिति यह है कि जगह जगह राजनीति में इनका प्रभाव ज़बरदस्त है।
अपने अपने अलग परिसरों में भोजन व्यवस्था में अलग अलग पंक्तियाँ, अलग अलग पंक्तियों के लिए अलग अलग प्रकार के भोजन, आदि नकारात्मक चीजें भी नोट की जाती रही हैं। दूसरे घामों में आजकल से आईपी, वीआईपी या वीवीआईपी पंक्तियों का विवाद होता होगा, यहाँ यह दर्शन से लेकर भोजन तक में कई जगहों पर अरसे से देखा जाता रहा है!
दूसरी तरफ़ निश्चित रूप से स्वामीनारायण संप्रदाय के ऐसे अनेका अनेक सेवा कार्य हैं, जिसको लिखने बैठे तो एक अलग लेख की ज़रूरत पड़ सकती है। निशुल्क भोजन से लेकर शिक्षा कार्य तथा इंसानों से लेकर जानवरों तक के लिए दूसरे सद्कार्यों की लंबी सूची बन सकती है। उनकी अपनी नियमावली है, जिसमें बहुत कुछ अच्छा है।
किंतु धर्म, सत्ता और राजनीति को भावनात्मक नहीं किंतु व्यावहारिक चश्मे से देखा जाए तभी कुछ अनसुलझे तर्क सुलझ सकते हैं। वैसे भी, एक स्थायी सत्य है कि आप एक-दो अच्छे काम कर दों, लोग आपको दस बुरे काम करने की इजाज़त दे देंगे।
मंदिरों या घार्मिक जगहों का विकास, वहाँ आम लोगों के लिए सहुलियतें, दूसरी व्यवस्था, जैसी चीजों के लिए अपने अपने तर्क हैं सबके पास। वे सारे तर्क सही भी लगते हैं। किंतु यहाँ बात जिस द्दष्टिकोण की तरफ़ है, फ़िलहाल वहीं ठहरते हैं।
अभी जो लोग सनातन और भगवान हनुमानजी के पक्ष में बोल रहें, सारे के सारे 2019 में चुप थे, जब हनुमानजी पर चित्र विचित्र और आपत्तिजनक बातें कही गई थीं
ताज़ा विवाद की बात आगे करें तो, इस विवाद के चलते जिन्होंने स्वामीनारायण संप्रदाय के इस विवादित कृत्य का विरोध किया उन सबको भी देख लें। इनमें से एक भी लोग एक भी शब्द नहीं बोले थे जब 2019 के वर्ष के दौरान श्री हनुमानजी को लेकर भारतीय राजनीति ने सारी हदें पार कर दीं, विचित्र से विचित्र और आपत्तिजनक बातें कहीं और हनुमानजी को जाति-उपजाति आदि में बाँट दिया!
हिंदू घर्म के पवित्र ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार श्री हनुमानजी रुद्रावतार थे। रुद्र, जो भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। यानी कि हनुमानजी को भगवान शिव का ही अंश माना जाता है। लेकिन उन दिनों राष्ट्रवादियों समेत दूसरे नेताओं ने हनुमानजी को दलित- आदिवासी- आर्य- चीनी- मुसलमान, सब कुछ बना दिया था! यूपी के तत्कालीन सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्वयं ही उस विवादित यज्ञ को शुरू किया था, यह बोलकर कि हनुमानजी दलित थें!
फिर तो यह मंज़र बहुत समय तक चला। अनेका अनेक बीजेपी नेताओं ने और गैरबीजेपी नेताओं ने भी, हनुमानजी को कास्ट सर्टिफिकेट देना शुरू कर दिया! हनुमानजी दलित थे, दलित से भी नीचे थे, मनुवादियों के गुलाम थे, पृथ्वी के पहले आदिवासी नेता थे, आर्य थे, मुस्लिम थे, चीनी थे, खिलाड़ी थे, जाट थे, क्षत्रिय थे, जैन थे, ठाकुर थे, यादव थे, किसान थे! न जाने क्या कुछ कहा गया था उन दिनों। एक नेता ने तो कह दिया था कि हनुमानजी थे ही नहीं!!!
लेकिन तब आये दिन अपने फेफड़े फाड़ने वाले राष्ट्रवादियों की चुप्पी कई सवालों के जवाब दे गई थी। तब किसी की भावना आहत नहीं हो रही थी! ना किसी पार्टी की, ना किसी राष्ट्रवादी की, ना किसी भक्तगण की, ना किसी साधु-संत की! कोई कुछ नहीं बोला उन दिनों! जो इक्का-दुक्का बोले होंगे उनको किसी ने गंभीरता से नहीं लिया होगा। और ये सब बहुत दिनों तक निर्विरोध चला था। किसी की भावना आहत नहीं हुई, कोई सनातन हिंदू धर्म ख़तरे में नहीं पड़ा, किसी का वेद-ग्रंथ कुछ भी दिक्कत में नहीं था उन दिनों!
साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से ही राजनीति में हनुमानजी की एंट्री स्वयं राष्ट्रवादियों ने करवा दी थी। बीजेपी ने उन दिनों हनुमानजी, हनुमान चालीसा आदि को लेकर राजनीति शुरू की। एक तरफ़ बड़े मोदी थे, दूसरी तरफ़ छोटे मोदी! हनुमानजी पर राजनीति जमकर हुई।
राजनीति में इनसाइड फ़ैक्टर नेता नहीं कहता बल्कि अधिकारी कह जाते हैं। उन दिनों जो बचा-कुचा निष्पक्ष मीडिया था, उन्होंने अधिकारियों के हवाले से अंडरलाइन में कहा था कि दिल्ली चुनावों में हनुमानजी की एंट्री को समझना है तो उस प्रसिद्ध धार्मिक पंक्ति में समझा जा सकता है कि – श्रीरामजी चले न हनुमान के बिना...।
राजनीति नहीं बल्कि लोगों की समझ ग़ज़ब है। हिंदू धर्म में शिव सर्वस्व हैं। लेकिन श्रीराम के आसपास सारा हिंदुत्व ठहर गया। सोचिए, कितनी ग़ज़ब नीति है कि हिंदूत्व श्रीराम के आसपास सिमट गया, जबकि शिव को ही सर्वस्व माना गया है वैदिक काल में। समय बीता तो समझ आया कि अब श्रीराम अकेले नहीं चल सकते, तो श्रीरामजी चले न हनुमान के बिना।
2020 से होता हुआ यह मंज़र 2023 के कर्णाटक चुनाव तक धड़ल्ले से और बेशर्मी के साथ लागू होता रहा। लोग लुत्फ़ उठाते रहे! कभी अपने नेता को भगवान से भी बड़ा बता दिया। किसी की भावना आहत नहीं हुई! राजनीति के साथ धर्म बड़ी नज़दीकी से जुड़ा हुआ है। यहाँ भी ख़ुद को भगवान से बड़ा बता दिया गया।
अभी हाल ही में हनुमानजी से जुड़े एक मंदिर के बाबा ने समूचे देश को ज़्यादातर तो एक विद्या के नाम पर गुमराह किए रखा। अंत में चुपके से बोल जाते थे कि यह चमत्कार नहीं, विद्या है। जो गाहे बगाहे बोलना था, वो चुपके से बोल लिए! अनेक राज्यों के बड़े बड़े नेता उस बाबा के सामने नतमस्तक नज़र आए, साथ ही लोकल आर्टिस्ट भी ऐसा कर रहे थे!
राहत की बात यही कि इंदिरा गाँधी के ज़माने में या फिर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के ज़माने में जैसे कोई बाबा या तांत्रिक सत्ता के शिखर के ऊपर जाकर बैठ गया था, फ़िलहाल तो वैसी स्थिति नहीं है। किंतु छगन ने जो किया उससे मगन थोड़ा कम कर रहा है, यह तर्क कितना जायज़ है यह भी सोचना है।
कभी कभी
स्वामीनारायण संप्रदाय और संघ, दोनों एकसरीखे लगते हैं। दोनों क पास अपना कोई ठोस,
सुनहरा, तार्किक और तथ्यात्मक इतिहास नहीं है, और ऐसे में दोनों दूसरों के इतिहास
के नायकों के नाम पर अपना आधार मज़बूत करते जाते हैं! दोनों अपनी रेखा लंबी बताने
हेतु दूसरों की रेखा छोटी दिखाने के कारनामे कर गुज़र जाते हैं और दोनों अपने घर
की नवलकथा को ऐसे पेश करते हैं, जैसे कि उनकी नवलकथा प्रमाणित इतिहास हो! इससे काम
नहीं बनता तो दूसरों की कथा में भी सेंध मार लेते हैं!
स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद स्वामीनारायण संप्रदाय से संबंधित ऐसी दो घटना, जो बहुत कुछ समझा सकती हैं, सरदार पटेल का तंज़ और मकरंद मेहता का वो लेख
दशकों पुरानी एक रचना है, किसकी है पता नहीं। रचना है – पंडित को पूरब भलो, ज्ञानी को पंजाब। कर्मकाँडी को दख्खन भलो, ढोंगी को गुजरात। गुजरात के जनमानस में बचपन से एक फ़िक़रा देखा है। गुजरात में लोग दशकों से धड़ल्ले से बोलते हैं कि साधु होना है तो स्वामीनारायण के हो लीजिए, वर्ना न हो।
यूँ तो नारायण यानी स्वयं श्री भगवान विष्णु। हिंदू संप्रदाय के पुराणों और घार्मिक ग्रंथों के मुताबिक़ भगवान विष्णु स्वयं, और उनके जो भी अवतार हैं, श्री राम का अवतार हो या श्री कृष्ण का, वे अपने आराध्य देव स्वयं शिव को बताते हैं। इसे लेकर एक बार इस संप्रदाय के नाम को ही विवादित बताते हुए कहा गया था कि स्वामीनारायण – स्वामी ख़ुद ही स्वयं नारायण हो नहीं सकता, और स्वयं नारायण का शिव के सिवा दूसरा कोई स्वामी है नहीं।
गुजरात के प्रसिद्ध इतिहासकार मकरंद मेहता ने वर्ष 1987 में स्वामीनारायण संप्रदाय को लेकर एक लेख लिखा था। इस लेख के चलते उन पर मामला दर्ज हुआ था, जो 2017 तक लंबित था। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश शाह के मुताबिक़ मकरंद मेहता ने जो लिखा था उसके लिए उनके पास मज़बूत और पुख़्ता आधार थे। मकरंद मेहता के उस लेख के मुताबिक़ सहजानंद स्वामी ने अपने शिष्यों से कहा था कि वे लोग उनकी अधिक से अधिक प्रशंसा करें, ताकि हर जगह उनकी महिमा स्थापित हो सके। बकौल मकरंद मेहता, स्वामी ने अपने कथित चमत्कारों का जमकर महिमामंडन हो इसके लिए अपने शिष्यों को निर्देश दिए थे।
प्रकाश शाह के एक अतिगंभीर आरोप के मुताबिक़ स्वामीनारायण संप्रदाय और अंग्रेज़ों के बीच समझौता था और उस समझौते के मुताबिक़ वे एकदूसरे की मदद किया करते थे। यह बात 7 दिसंबर 2017 के दिन बीबीसी गुजराती के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी छपी थी, जिसे बीबीसी गुजराती के संवाददाता रजनीश कुमार ने संपादित किया था। प्रकाश शाह रेफरेंस के साथ कहते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी और सरदार पटेल, दोनों का मानना था कि स्वामीनारायण संप्रदाय के लोग धर्म के नाम पर पागलपन को बढ़ावा दे रहे हैं।
इतिहास में एक पुख़्त घटना का ज़िक्र मिलता है, जिसका सीधा संबंध भारत के लौहपुरुष सरदार पटेल से है। सरदार पटेल के पिता झवेरभाई स्वामीनारायण संप्रदाय में बहुत मानते थे। राजमोहन गाँधी की एक किताब में सरदार पटेल और स्वामीनारायण संप्रदाय को लेकर एक दिलचस्प वाक़ये को लिखा गया है। सरदार वल्लभभाई पटेल भाग-1 नामक गुजराती किताब, जो नवजीवन प्रकाशन मंदिर अहमदाबाद की तरफ़ से प्रकाशित हुई है तथा नरहरी डी. परीख द्वारा लिखी गई है, उसमें भी यह घटना दर्ज है।
किताब में लिखा गया है कि उन दिनों झवेरभाई जिन्हें बहुत मानते थे उस यज्ञपुरुषदास स्वामी ने वड़ताल से अलग बोचासण में अक्षर पुरुषोत्तम नाम से एक अलग धारा को स्थापित कर दिया। इसके चलते दो अलग अलग धारा स्थापित हो गईं। इसका परिणाम यह आया कि उन दिनों जमकर बवाल मचा। मामला क़ानून तक पहुंचा। यज्ञपुरुषदास स्वामी पर वारंट निकला। ख़ुद को संसार का उद्धारक बताने वाले स्वामीजी अपने लिए कोई दूसरा उद्धारक ढूंढने लगे!!!
झवेरभाई स्वामी की मदद करने के लिए निकल पड़े। वे पहुंचे अपने बैरिस्टर बेटे वल्लभभाई के पास। बोरसद ज़िले में वल्लभभाई का बहुत बड़ा नाम हो चुका था। झवेरभाई ने बेटे से सीधे सीधे बात कह दी, “पूरे ज़िले में तेरा नाम चल रहा है और इधर महाराज पर वारंट निकल आए? यह ठीक है? तूँ हैं तो फिर पुलिस महाराज को गिरफ़्तार कैसे कर सकती हैं?”
स्वामीजी पर वारंट को लेकर पिता की बात सुनकर वल्लभभाई ने तंज़ कसा, “महाराज पर वारंट कैसा? वे तो पुरुषोत्तम भगवान का अवतार हैं। हम सभी को इस जीवन चक्र से छुड़ाने वाले भगवान। उन्हें भला कोई कैसे पकड़ सकता है?”
पिता झवेरभाई गंभीर थे। तंज़ को नज़रअंदाज़ कर बोले, “फ़िलहाल मज़ाक मत कर। मुझे पक्का पता है कि वड़ताल और बोचासण वालों के बीच मंदिर के कब्ज़े को लेकर कुछ हुआ है और इसीलिए महाराज पर वारंट निकला है। तुझे ये वारंट निरस्त कराना चाहिए। महाराज को गिरफ़्तार किया जाता है तो हमारी इज़्ज़त को धक्का पहुंचेगा।”
“हमारी इज़्ज़त को क्यों धक्का लगेगा? कोई करम ही ऐसे करेगा तो उसकी इज़्ज़त जाएगी, हमारी नहीं।” वल्लभभाई झिझक पड़े। वे आगे बोले, “वारंट निकला है तो वजह भी होगी।”
पिता मान नहीं रहे थे, वल्लभभाई की बात को अनदेखा किए जा रहे थे और अपना आग्रह किए जा रहे थे। सरदार पटेल उन्हें आश्वासन देकर बात को ख़त्म करते हुए कहते हैं, “बड़े काका, आपको अब इन साधुओं से छुटकारा पा लेना चाहिए। प्रपंच करें, एकदूसरे से झगड़ा करें, अदालतों में चले जाएँ। जो अपना भला नहीं कर सकते वे हमें इस जन्म का सागर कैसे पार कराएँगे?”
अहमदाबाद में सन 1920 में छात्रों के समक्ष सरदार पटेल ने ‘बाबा बिज़नेस’ को लेकर जो बात कही थी उसे आज की आधुनिक पीढ़ी को समझनी चाहिए। सरदार पटेल ने असहकार आंदोलन के समय सार्वजनिक रूप से छात्रों को कहा था, “इस देश के छप्पन लाख बाबा, जो भगवा पहनकर निकल पड़े हैं, सारे के सारे कोई मेहनत नहीं करते, कोई काम नहीं करते। फिर भी वे भूखे नहीं मरते। किसी ने सुना क्या कि कोई बाबा खाली पेट मर गया?”
प्रतिमा की देश व्याप्त राजनीति-घर्मनीति, विशाल और भव्य की सनक, एक ही भगवान और धामों के बीच उसी एक भगवान को लेकर भक्तों के ट्रैफ़िक को लेकर कंपटीशन
प्रतिमा वाली प्रतीकात्मक राजनीति की बात संक्षेप में कर लें तो, पुराने काल का रिसर्च ख़ुद कर लीजिएगा, ताज़ा काल में मायावती मूर्तियों की राजनीति के पीछे ले-देकर पड़ गईं। भ्रष्टाचार के मामले भी बने। जाँच वांच भी हुई। अंजाम पूछने का चलन हमारे यहाँ है नहीं। फिर स्वयं मोदीजी ने प्रतिमाओं की प्रतीकात्मक राजनीति शुरू कर दीं। और फिर प्रतिमा बनाने का चलन फिर एक बार शुरू हो गया। जगह जगह, अनेक राज्यों में यह प्रवृत्ति कम या बड़े स्तर पर निर्विरोध जारी है।
बता दें कि हमारे शहर से सालंगपुर महज़ आधे घँटे की दूरी पर है। पहले यह इलाक़ा हमारे शहर की सरकारी छतरी के नीचे ही आता था। लेकिन नये राजनीतिक सीमांकन के बाद यह दूसरे शहर की सरकारी निगरानी के भीतर चला गया है। अब से कुछ सालों पहले यहाँ हर शनिवार को जाया करते थे। तब हनुमानजी के मंदिर वाला ढाँचा सबसे बड़ा लगता था। फिर तो पैसा इतना आया कि मंदिर समेत तमाम चीजें यहाँ आलिशान बनती गईं। आज मंदिर वाला ढाँचा है तो बहुत बढ़िया, लेकिन हनुमानजी की जो जबरन कृपा यहाँ धर्म से संबंधित आकाओं पर बरसी, वें अब फ़ाइव स्टार या सेवन स्टार लेवल की सुविधाओं से लेस होकर जीवन व्यतित करते हैं। उनके लफ़्ज़ों में कहे तो सादा जीवन!!!
स्वामीनारायण संप्रदाय संचालित श्री हनुमानजी के सालंगपुर घाम के बगल में एक और धाम है। जो कथित रूप से एक ही धार्मिक प्रतिनिधि द्वारा एक ही कालखंड में स्थापित हुआ था। सालंगपुर से क़रीब 60-65 किमी पहले, अहमदाबाद से निकले तो सालंगपुर पहुंचने से पहले यह जगह आती है। जगह है कमियाला गाँव, धोलेरा तहसील। कुछ वक्त पहले यह धँधुका तहसील के भीतर था। कहते हैं कि सालंगपुर गाँव में फ़िलहाल श्री हनुमानजी की जो प्रतिमा स्थापित है, वह स्वामी गोपालानंद, जो स्वामीनारायण संप्रदाय से थें, ने स्थापित किया था। और उन्होंने ही यहाँ से आगे सालंगपुर गाँव में उसी रूप और रंग वाली हनुमानजी की दूसरी प्रतिमा को स्थापित किया था। वैसे दोनों जगहें स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ी हुई हैं, किंतु संचालन और पैसे की व्यवस्था फ़िलहाल तो अलग अलग तौर तरीक़ों से होती है।
कमियाला गाँव और सालंगपुर गाँव, दोनों जगहों पर क़रीब क़रीब एक ही रूप और रंग वाले हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित है। थोड़ा बहुत फ़र्क़ हो तो पता नहीं, वो ज्ञान धर्मधुरंधरों के पास हो सकता है। अरसे से इस इलाक़े के कुछ लोग इन दोनों जगहों के लिए बड़ा भाई और छोटा भाई की संज्ञा का इस्तेमाल किया करते हैं। कथित रूप से कमियाला वाले हनुमानजी की प्रतिमा सालंगपुर से पहले स्थापित की गई थी, इसलिए कमियाला वाले हनुमानजी को बड़ा भाई और सालंगपुर वाले हनुमानजी को छोटा भाई कहा करते हैं यहाँ के लोग!
दोनों जगहों पर स्वामी गोपालानंद द्वारा प्रतिमा स्थापित करने की कहानियाँ हैं, कथाएँ हैं। चमत्कार और दूसरे धार्मिक गुणों का इस कहानी में तड़का भी लगा हुआ है। वैसे भी भारत में धार्मिक संप्रदाय या राजघराने अपनी अपनी कहानियाँ अपने अपने तरीक़े से बनाकर और बाकायदा लिखवाकर अरसे से बैठे हुए हैं। इन कहानियों में संजिदगी से हर वो चीजें मिलायी जाती हैं, जो आम जनमानस को चिरकालीन समय तक प्रभावित कर पाएँ। तर्क, तथ्य, सत्य, असत्य, कल्पना, अतिक्रमण आदि इन कहानियों में मिल जाता है।
लगे हाथ ये भी नोट कर दें कि जब भी कमियाला और सालंगपुर की हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करने की कहानी को इतिहास के रूप में बताया जाता है तब वजन इसी बात पर होता है कि फलाने फलाने स्वामी ने प्रतिमा स्थापित की थी और स्थापित करते समय फलाना फलाना चमत्कार हुआ था। पूरे घटनाक्रम में जैसे कि हनुमानजी से ज़्यादा अहेमियत प्रतिमा स्थापित करने वाले उस प्रतिनिधि को दी जाती है! जैसे कि उस प्रतिमा में आज जो कथित दैवीय शक्ति है वह किसी धार्मिक प्रतिनिधि की देन हो!
महज़ 4-5 साल पहले कमियाला गाँव में हनुमानजी का गाँव के तालाब के किनारे जो मंदिर था उसका स्वामीनारायण के किसी संत के प्रयासों के बाद नवनिर्माण करना शुरू किया गया। नवनिर्माण अब क़रीब क़रीब ख़त्म होने के कगार पर है। नव निर्माण हुआ तभी, यानी मूल मंदिर के नवनिर्माण से पहले ही, गाँव का जो तालाब है उसके बीचोबीच हनुमानजी की एक बड़ी और विशाल प्रतिमा बनाई गई। तालाब का सौंदर्यीकरण हुआ और मंदिर परिसर के लिए ज़्यादा ज़मीन अर्जित कर मंदिर के नवनिर्माण और दूसरे विकास कार्यों का काम शुरू हुआ।
सालंगपुर में हनुमानजी मंदिर में आस्था से ज़्यादा राजनीति और अंधश्रद्धा का विकास होने लगा, उसके बाद मेरे जैसे कथित नास्तिकों ने कमियाला हनुमानजी मंदिर जाना शुरू किया। वहाँ तालाब किनारे सुंदर और छोटा सा मंदिर था हनुमानजी का। ऊपर से सालंगपुर मंदिर की चकाचौंध से प्रभावित होकर भक्तगण अपने भगवान को ढूंढने यहाँ कम ही आया करते थे! इसलिए कम भीड़ और सुंदर नैसर्गिक वातावरण में वहाँ वक्त बिताना अच्छा लगता था और परम शांति से हनुमानजी के दर्शन किया करते थे। फिर वहाँ नवनिर्माण शुरू हो गया। तालाब को रिवर फ्रंट जैसा बनाकर बीचोबीच हनुमानजी की विशाल और सुंदर प्रतिमा बनाई गई।
हनुमानजी की तस्वीरें, पुस्तकें, छोटी प्रतिमाएँ, कैलेंडर, गाने, सोशल मीडिया पेज और चैनल समेत तमाम दूसरी चीजों से प्रचार और प्रसार शुरू होने लगा। लगा कि मंदिरों को उनके पास भी एक भगवान हैं और वो भगवान काम भी कर रहे हैं, ऐसा साबित करने के लिए मार्केटिंग करना पड़ता है! मंदिर, मंदिर की जगह, मंदिर की चकाचौंध आदि से मार्केटिंग, साथ ही कुछ ऐसा वातावरण भी तैयार करना पड़ता है कि उनके वहाँ जो भगवान स्थापित हैं, वह काम कर रहे हैं! ग़ज़ब सनातन व्यवस्था! मतलब कि वही भगवान, जो दूसरी जगह स्थापित हैं, वह काम नहीं करते, फलानी फलानी जगह के ही भगवान काम करते हैं! हनुमान चालीसा छोड़ अपना एक अलग गीत तैयार करना पड़ता है, सालंगपुर वाले हनुमान दादा....।
और ये काम करते हैं या नहीं, इसके लिए पहले तो उसी राजनीति की तरह ऐ, सी और पी का मेल बिठाना पड़ता है। ऐसीपी, ऐ यानी अट्रेक्शन। विशाल और भव्य बना दो, और उस विशालता और भव्यता को मार्केट में हर तरीक़े से फैलाओ, ताकि अट्रैक्शन मिल पाएँ! सी, यानी कनेक्शन और पी यानी परसेप्शन। विशाल, भव्य, साथ ही कहानियाँ, किस्से, उसको लिखित रूप देना, और भी बहुत कुछ! बड़ा टफ़ और कॉम्पिटिटिव फ़ील्ड!
अब ज़्यादा से ज़्यादा भक्तगणों को यहाँ श्री हनुमानजी दिखने लगे! वातावरण में धीरे धीरे पैसा, राजनीति आदि की बू आने लगी। हम तब कहा करते थे कि इस मंदिर का नवनिर्माण, ऐसी प्रतिमा और ऐसा प्रस्तावित मंदिर परिसर, सालंगपुर वालों का ट्रैफ़िक यहाँ आने लगा तो फिर सालंगपुर वाले इससे भी बड़ी प्रतिमा बना लेंगे। हम यह मज़ाक में कहा करते थे। क्योंकि हम सलीक़े से समझते थे कि कमियाला हो या सालंगपुर, कम से कम हमारे लिए उस जगह का महत्व श्री हनुमानजी को लेकर है, उस विवादित संप्रदाय को लेकर नहीं।
हम जो मज़ाक में कहा करते थे, बात सच होने लगी और फिर सालंगपुर में हनुमानजी की विशाल और सुंदर और कमियाला धाम से अधिक ख़र्चीली प्रतिमा बन गई! सनातन लफ़्ज़ का चलन फिर से उबाल पर है। जिसका संबंध संस्कृति और आधुनिक काल में शुद्ध हिंदी से है। यहाँ प्रतिमा का फूल टू अंग्रेज़ी नामकरण! नाम रखा गया किंग ऑफ़ सालंगपुर!
और इसी प्रतिमा के नीचे कुछ ऐसे शिल्प बनाए गए, जिससे मोटे तौर पर ऐसा भाव बना कि जिस भगवान का मंदिर है, उससे भी आगे अपने संप्रदाय के प्रतिनिधि को बिठा देना है। लंबी प्रक्रिया है। धीरे धीरे ही सही, योजना को लागू किया हो ऐसे मत निकलने लगे। राजनीति ने सदैव यही किया है। वहाँ भी पूरा पक्ष छोटा हो जाता है और आदमी बड़ा। और ऐसा होने के बाद समूचा इतिहास, मान्यता, सत्य, सारी चीजों का आसानी से नवनिर्माण किया जा सकता है।
यूँ तो हमारा धर्म से सीधे सीधे संबंध रखने वाला यह दूसरा ही लेख है। हमने अब तक सैंकड़ों लिख लिखे हैं, लेकिन धर्म से प्रत्यक्ष रूप जुड़ा हो ऐसा लेख दूसरा ही है। अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित मानें तो तीसरा। सैकड़ों लेखों में से केवल दो धर्म से संबंधित? आप हमें नास्तिक मान सकते हैं। लेकिन एक कड़वा सत्य यह भी है कि नास्तिक ही भगवान और धर्म को ज़्यादा अच्छे से समझ सकता है और उसका अधिक सम्मान करने लायक योग्यता प्राप्त कर सकता है।
भगवान तो घर में भी वही हैं और बाहर मंदिरों में हो, वे भी वही ही हैं। मंदिर जाने के पीछे जो वैज्ञानिक व मानसिक तर्क हैं वे सबको पता है। सालंगपुर में मन को पहले जैसी परम शांति नहीं मिल रही थी, तो हम जाने लगे कमियाला। वहाँ नहीं मिल रही तो कहीं और हनुमानजी होंगे। हम वहीं चले जाएँगे। अंत में घर में तो है ही। दरअसल, कुछ मज़बूत तर्क आते हैं कि हमें तो वहाँ जो ईष्टदेव हैं उनसे मतलब है, संप्रदाय या उनकी नीति-अनीति से क्या। बात सच है, लेकिन पूरी सच नहीं। हमें मतलब हो ना हो, उन्हें संख्या से मतलब है। हम हमारे ईष्टदेव के लिए जाना चाहते हैं, उनकी संख्या या किसीकी गिनती बनकर नहीं।
वैसे एक बात नियम या क़ानून लागू कराने वालों को साफ़ कर देनी चाहिए कि घार्मिक भावना या सद्भभाव बिगाड़ने को लेकर जितने नियम, क़ानून हैं, उसकी ट्रीटमेंट ब्हाट्सएप या फ़ेसबुक पर मथ रहे बेचारे लोगों पर ही की जाएगी, बड़े लोगों को स्पेशल ट्रीटमेंट दी जाएगी।
रही बात धर्म, उसके मूल, उसकी व्यवस्थाओं की। इसके बारे में जो लिखना था, लिख चुके हैं। इतिहास में सदैव धर्म हो या राजनीति हो, सभ्यताओं को राह और गुमराह, दोनों रास्तों से गुज़रना होता है। आपको नयी नयी मान्यताओं के चक्र से गुज़ारा जाता है। शताब्दियों से जो हिंदू संप्रदाय स्थापित है, जिसे वे स्वयं ही सनातन या वैदिक काल जितना पुराना मानते हैं, ऐसे हिंदू संप्रदाय को उन्हें जब ज़रूरत आन पड़ती है तब तब ख़तरे में बता दिया जाता है। जबकि ख़तरा तो भीतर होता है, बाहर नहीं। कोई साफ़ ही घोषणा कर दें कि विधर्मी समुदाय वाले हिंदू संप्रदाय, उसके देवी-देवताओं या प्रतीकों का अपमान करें तब ही उसे अपमान या अपराध माना जाएगा, भीतर के लोगों को इसकी इजाज़त है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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