वो सिर्फ़ तीन रंगों में रंगा कापड़ का
कोई टुकड़ा मात्र नहीं है। वो देश का सर्वोच्च गौरव है, सर्वोपरि
अभिमान है। यदि आप उसका सम्मान रखना जानते हैं तभी उसे फहराएँ। सम्मान रख नहीं
सकते तो लगाते या फहराते ही क्यों हो? उसके अपमान करने का
तो सवाल ही नहीं उठता।
देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक का
जाने अनजाने में भी किया गया अनादर या अपमान स्वीकार्य नहीं हो सकता। स्वयं को
ज़्यादा आधुनिक और ज़्यादा शिक्षित बताने वाला समाज दरअसल ज़्यादा ग़ैरज़िम्मेदार
और ज़्यादा अज्ञानी समाज सरीखा है। जब से आम नागरिकों को तिरंगा फहराने और धारण
करने की संवैधानिक छूट दी गई है, तब से तिरंगे के
अनादर और अपमान के द्दश्य आसानी से देखने के लिए मिल जाते हैं।
कभी कभी लगता है कि देश के आम नागरिकों
को प्रदान की गई यह छूट वापस ले लेनी चाहिए। क्योंकि नागरिकों को अलग अलग तरीक़े
से अनेकों बार राष्ट्रीय ध्वज को फहराने-समेटने को लेकर, उसके
अनादर या अपमान को लेकर जानकारी प्रदान की गई है। किंतु आधुनिक और शिक्षित भारतीय
समाज ऐश्वर्या राय या किंजल दवे की निजी ज़िंदगी के बारे में जितना ज्ञानी है, उतना
ही इन मामलों में अज्ञानी है।
सर्वप्रथम स्पष्ट कर देते हैं कि आज कल
केवल तिरंगा ही आसमान नहीं छूता, उसके नीचे दबे मक़सद भी आसमान चीर कर आगे निकल जाते हैं। इस
तथ्य को अनेक लोग जानते और समझते हैं। मानते नहीं या स्वीकार नहीं करते यह बात अलग
है। साथ ही अनेक लोगों को ज्ञात है कि राष्ट्रीय त्योहारों और राष्ट्रीय प्रतीकों
के साथ प्लास्टिक टाइप निष्ठा ज़्यादा दिखती है, जहाँ उस निष्ठा या भावना का जीवनकाल महज़
कुछ घंटे या कुछ दिनों तक का ही होता है।
ख़ैर, मूल बात पर लौटते हैं। बिलकुल सीधा सवाल
है कि राष्ट्रीय त्योहारों की शाम से ही तिरंगे सड़कों पर बिखरे हुए क्यों मिलते
हैं? या
फिर निजी जगहों पर फहराएँ गए तिरंगे अपमानजनक स्थिति में क्यों पाए जाते हैं? जिस
तिरंगे की क़स्मे खाकर हमारे जवान सरहदों पर केसरिया रंग बिछा देते हैं, वह
तिरंगे अपमानजनक स्थिति में क्यों पाए जाते हैं?
तिरंगा फहराएँ या न फहराएँ, पर
इसका सम्मान करना ज़रूरी है। उसके अपमान का तो सवाल ही नहीं उठता। आपको इस बारे
में पूरी जानकारी नहीं है, ज्ञान नहीं है तो बेहतर है कि आप तिरंगे को ना लगाए या ना
फहराएँ। उसका अपमान या अनादर न करना ही सबसे बड़ी देशभक्ति है।
आपको देश के संविधान ने छूट दी है तो
आपका यह प्रथम कर्तव्य है कि आप उसके नियम, क़ानून, शिष्टाचार, संहिता
आदि के बारे में जान लें। और यह बहुत आसानी से आपके लिए उपलब्ध है। इसके लिए आपको
उतनी मेहनत नहीं करनी होती जितनी एकाध बॉलीवूड के गाने के लेखक को ढूंढने में करनी
होगी।
इस विषय को लेकर मूल रूप से आपको तीन
बेसिक बातें पता होनी चाहिए।
पहली -
देश का राष्ट्र गान कौन सा है और राष्ट्र गीत कौन सा है, और दोनों में से किसे
संवैधानिक अधिकार प्राप्त है?
दूसरी - गणतंत्र दिवस क्या है और स्वतंत्र दिवस क्या है?
तीसरी
- तिरंगा फहराना क्या होता है और ध्वजारोहण क्या होता है। कब इसे फहराया जाता है
और कब ध्वजारोहण किया जाता है?
हम हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की बात
पर लौटते हैं। तिरंगे का साइज़, तिरंगे को लगाने की जगह, उसकी ऊंचाई, आसपास
की स्थिति, फहराने
के नियम, तिरंगा
फहराने के बाद उसे पूरे सम्मान के साथ उतारना और समेटना, उसे
सम्मानजनक स्थिति में संभ्हाल कर रखना, तिरंगा क्षतिग्रस्त हो जाए, मसलन
फट जाए - रंग निकलने लगे - मैला हो जाए तो इस स्थिति में उसके संवैधानिक निकाल की
प्रक्रिया, आदि
का ज्ञान होना चाहिए।
तिरंगे को अपमानजनक स्थिति में लगाया
नहीं जा सकता, फहराया
भी नहीं जा सकता, तिरंगे
की गरिमा और सम्मान को चोट नहीं पहुँचनी चाहिए, संवैधानिक और क़ानूनी तरीक़े से पूरी
गरिमा के साथ उसे नष्ट करने की प्रक्रिया, यदि आप भारतीय नागरिक हैं तो आपको यह
पता होना चाहिए। जो संगठन या लोग तिरंगे को निस्वार्थ भाव से बाँटते हैं उन्हें भी
लोगों को इसकी जानकारी प्रदान करती रहनी चाहिए।
भारत के सर्वोच्च प्रतीक समान राष्ट्रीय
ध्वज को लेकर एक संहिता बनी हुई है और उसमें समय समय पर संशोधन भी किए गए हैं। कुछ
मोटी बातें यहाँ देखें तो,
ध्वज
का आकार आयताकार (rectangular) होना चाहिए, और लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होना चाहिए
सभी
नागरिकों को अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है
राष्ट्रीय
ध्वज को हमेशा सम्मान के साथ प्रदर्शित किया जाना चाहिए और इसे स्पष्ट रूप से
दिखाई देने वाली जगह पर लगाया जाना चाहिए
किसी
अन्य ध्वज, पताका या प्रतीक को
राष्ट्रीय ध्वज से ऊँचा या उसके बराबर में नहीं लगाया जाना चाहिए
ध्वज
पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए
ध्वज
जहाँ फहराया गया है वहाँ ध्वज का कोई भी हिस्सा किसी चीज़-वस्तु-निर्माण आदि को
छूने वाली स्थिति में नहीं होना चाहिए
ध्वज
किसी भी हालत में ज़मीन को छूना नहीं चाहिए
तिरंगे
को आधा झुकाकर नहीं फहराना चाहिए, सिवाय उन मौक़ों के जब सरकार द्वारा ऐसा करने का आदेश दिया गया हो
सार्वजनिक, निजी संगठन और शैक्षणिक
संस्थान सभी दिनों और अवसरों पर ध्वज को फहरा सकते हैं, बशर्ते कि वे ध्वज की
गरिमा और सम्मान का ध्यान रखें
फटा या
मैला-कुचैला ध्वज प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए
जब
ध्वज फट जाए, मैला हो जाए, क्षतिग्रस्त हो जाए तो उसे एकान्त में ध्वज संहिता में बताए गए
नियमों के अनुसार पूरे सम्मान के साथ नष्ट कर दिया जाना चाहिए
उसे
नष्ट करते समय तमाम नियम-क़ानून का पालन करना होता है और नष्ट करते समय उसकी
फ़ोटोग्राफी या वीडियोग्राफी नहीं कर सकते
कुछ नये संशोधनों को देखें तो,
पहले
तिरंगे को केवल सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच फहराने की अनुमति थी। 2022 के संशोधन के बाद इसे
रात में भी फहराया जा सकता है, बशर्ते उस पर पर्याप्त रोशनी हो
पहले
केवल हाथ से बुने और काते हुए ऊन, कपास या रेशमी खादी से बने तिरंगे को फहराने की अनुमति थी। अब मशीन
से बने कपास, ऊन या रेशमी खादी के तिरंगे के साथ-साथ पॉलिएस्टर से बने तिरंगे को
भी फहराया जा सकता है
स्वाभाविक है कि,
तिरंगे
का उपयोग किसी भी प्रकार के परिधान या सजावट के लिए नहीं किया जाना चाहिए
तिरंगे
को सम्मान के साथ फहराना और उतारना चाहिए
तिरंगे
को कभी भी अपमानित या क्षतिग्रस्त नहीं करना चाहिए
तिरंगे
को किसी भी अन्य झंडे के साथ एक ही खंभे पर नहीं फहराना चाहिए, जब तक कि वह राष्ट्रीय
ध्वज से छोटा न हो
तिरंगे
को किसी भी प्रकार की वस्तु या व्यक्ति को लपेटने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना
चाहिए
साल 2002 से पहले आम लोग केवल
गिने-चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़कर सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज नहीं
फहरा सकते थे। दिल्ली उच्च न्यायालय में इस प्रतिबंध को हटाने के लिए जनहित में एक
याचिका दायर की गई और कोर्ट में लड़ाई लड़ी गई। इसके बाद भारतीय ध्वज संहिता में 26
जनवरी 2002
को संशोधन किया गया।
इसमें आम जनता को वर्ष के सभी दिनों
झंडा फहराने की अनुमति दी गई और ध्वज की गरिमा, सम्मान की रक्षा करने को कहा गया। आम
नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने या लगाने की अनुमति प्रदान करने के पीछे मक़सद
यह था कि इससे देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक के प्रति नागरिकों में सम्मान की
भावना बढ़ेगी।
साल 2005 तक तिरंगे को पोशाक
के रूप में या वर्दी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता था। पर 5
जुलाई 2005
को भारत सरकार ने संहिता में संशोधन किया और ध्वज को एक पोशाक के रूप में या वर्दी
के रूप में प्रयोग किए जाने की अनुमति दी। हालाँकि इसका प्रयोग कमर के नीचे वाले
कपड़े के रूप में नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय ध्वज को तकिये के रूप में या
रूमाल के रूप में करने की मनाही है।
वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज लगाने के लिए
विशेषाधिकार होते हैं। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीमंडल
के सदस्य जैसे जन प्रतिनिधि, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और जल सेना, थल
सेना और नौ सेना के अधिकारिकयों को ही यह अधिकार है।
वाहनों के भीतर डैशबोर्ड पर आम नागरिक
तिरंगा लगा सकते हैं। किंतु यहाँ भी तिरंगा लगाने के लिए उन्हें सभी नियमों का
पालन करना होगा। घर की छतें या बालकनी में तिरंगे को लगाते या फहराते समय भी आपको
तमाम नियमों का पालन करना होगा, जिससे देश के इस सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक का गौरव तथा सम्मान
बरक़रार रहे।
भारतीय ध्वज संहिता 2002, उसमें
2021-22
में किया गया संशोधन तथा राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971
के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
आज कल छोटे-मोटे शहरों में तिरंगे के
बेज को अपनी छाती पर धारण करने का चलन बढ़ा है। कहीं किसी शहरों में इसे लेकर
छोटे-मोटे संगठन भी बने हैं। स्वाभाविक सी बात है कि कुछ संगठन निस्वार्थ भाव से
राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान बरक़रार रखते हुए लोगों को जोड़कर सेवा कार्य करते हैं, तो
कुछ तिरंगे की आड़ लेकर वहीं चिर-परिचित विवादित शैली धारण करके सेवा कार्य करने
का ढोंग करते हैं।
हमें यहाँ उन पर चर्चा नहीं करनी है। जो
लोग देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक की छाया के तले सेवा कार्य करते हैं, चाहे
वो निस्वार्थ भाव से की जाती हो या चालाकी या षड्यंत्रकारी तरीक़े से, उन
सभी को उस सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक तिरंगे का सम्मान कैसे किया जाता है, उसका
अनादर अनजाने में भी किस तरह से नहीं होना चाहिए, इसकी
बेसिक समझ होनी चाहिए। कम से कम उन्हें यह पता होना चाहिए कि
राष्ट्रीय ध्वज का अनजाने में भी किया गया अनादर आपराधिक और दंडनीय कृत्य है।
आज कल वे लोग भी अपनी छाती पर तिरंगे का
बेज धारण करने लगे हैं, जिन्होंने बाक़ायदा इसको अस्वीकृत किया था। सिर्फ़ आरएसएस जैसे
मिर्जापुरी लौटे जैसे संगठन ही नहीं बल्कि आम नागरिक, छोटे
मोटे व्यापारी, बड़ी
बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियाँ, राष्ट्रीय बाज़ार, कांग्रेस या बीजेपी समेत अनेक राजनीतिक दल, उनके
कार्यकर्ता समेत बहुत सारे लोग तिरंगे की आड़ में क्या क्या नहीं कर जाते कौन नहीं
जानता?
आज कल राष्ट्रीय त्योहार या कार्यक्रमों
के ख़त्म होने के बाद पूरा मैदान खाली हो जाता है, केवल तिरंगा रह जाता है। छोटे कद के
तिरंगे दूसरे दिन कहाँ कहाँ रखे हुए मिल जाते हैं, कौन नहीं जानता?
इस लेख में कुछ ऐसी तस्वीरें हैं जो
दर्द देह हैं। तमाम छोटे-मोटे गाँवों, शहरों से लेकर बड़े
बड़े शहरों तक में आपको देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक का जाने अनजाने में किया
गया अपमान या अनादर आसानी से देखने के लिए मिल जाएगा।
कहीं महीनों से लगाए गए तिरंगे अपमानजनक
स्थिति में दिख जाएँगे। जिसने अपने मूल रंग छोड़ दिए होते हैं, फट
गए होते हैं। यूँ कहे कि पूर्ण क्षतिग्रत अवस्था में तिरंगे फहराते हुए आपको
मिल जाएँगे।
कहीं तिरंगे इस तरह से लगाए जाते हैं, जो
प्रथम नज़र में ही तिरंगे का स्पष्ट अपमान करते हैं। तिरंगे का हिस्सा
किसी न किसी चीज़ को छूता मालूम पड़ता है, कहीं तिरंगे के उपर दूसरे कोई ध्वज या
प्रतीक लगाए हुए मिल जाएँगे, कहीं तिरंगा बिलकुल ज़मीन को छूता नज़र आ जाएगा।
सरकारी परिवहन की बसों पर तिरंगे
अपमानजनक स्थिति में दिख जाएँगे। वहाँ भी ध्वज का रंग, ध्वज
को लगाने की स्थिति और नियम, आदि को बिलकुल कुचला हुआ आप पाएँगे। आम नागरिकों के घरों की
छतें या बालकनी में भी यही अनादर तिरंगे को प्राप्त होता है।
बाज़ारों में लगाए गए या फहराएँ गए
तिरंगे को कौन देश का प्रधानमंत्री ठीक करने आएगा? बाज़ारों
में लगाए गए तिरंगे बिलकुल अपमानजनक स्थिति में होते हैं। दुकान वालों के सामान, प्रोडक्ट
या दुकान के मार्केटिंग बैनर या बोर्ड के बीच या उसके पीछे तिरंगा बेचारा वाली
स्थिति में मिल जाता है।
पान-तम्बाकू की दुकानों पर या ठेलों पर
देश का सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक अपमान पाता रहता है। महीने या साल गुज़र
जाने के बाद भी उसको कोई ठीक नहीं करता या क्षतिग्रस्त अवस्था के बाद उसे कोई
गौरवपूर्ण तरीक़े से नष्ट नहीं करता।
लोगों की निजी संपत्ति या उनके परिसर
में जाकर भी आप तिरंगे को ठीक अवस्था में नहीं कर सकते या क्षतिग्रस्त अवस्था में
पाए जाने पर उसे वहाँ से निकाल कर गौरवपूर्ण तरीक़े से नष्ट नहीं कर सकते। क्योंकि
किसी की निजी संपत्ति में पैर रखने को लेकर जितने भी नियम क़ानून हैं वह आप पर
लागू हो जाएँगे।
न तो वह ख़ुद तिरंगे का सम्मान रखता है
और न आप बिना उसकी इजाज़त के तिरंगे को ठीक कर सकते हैं। यह अधिकार या ऐसा करने का
संवैधानिक हक़ जिसे मिला है वह ऐसा कर सकते हैं। किंतु जब सरकारी परिवहन की बसों
पर ही ऐसे हालात हो वहाँ यह उम्मीद नहीं रखी जा सकती।
आज कल तिरंगा यात्रा का चलन बढ़ा है।
इसमें 'यात्रा' शब्द
ही अव्यवस्था और अनादर की तरफ़ ले जाने वाला तत्व है। 'यात्रा' तो
धार्मिक और राजनीतिक संगठन करते हैं। सेना और तिरंगे के रक्षक 'यात्रा' नहीं
करते, वे
तो 'मार्च' करते
हैं। 'तिरंगा
यात्रा' की
जगह 'तिरंगा
मार्च' शब्द
तिरंगे के सम्मान, गौरव
और संपूर्ण शिस्त का प्रतिबिंब है।
तिरंगे को थाम कर निकाली जाने वाली
रैलियाँ भी तिरंगे के अऩादर में कहीं पीछे नहीं हैं। ध्वज और ध्वज दंड को किस
हाथ में थामना चाहिए, किस तरह से थामना
चाहिए, शरीर
के किस हिस्से की तरफ़ ध्वज और ध्वज दंड रहना चाहिए इसकी बेसिक समझ इन रैलियों में
ग़ायब दिखती है।
साथ ही तिरंगे को थामे हुए किस तरह
से और किन अवस्था में चलना होता है, संयम और शिस्त का
पूर्ण पालन करना होता है, उस समय आपका व्यवहार, आदि
बातों को आप लगभग रैलियों में ग़ायब देखेंगे।
इस हाथ से इस तरफ़ थामते हुए थक गए तो
दूसरे हाथ में दूसरी तरफ़ ले जाएँगे ये लोग!
जो कि तिरंगे का सीधा अनादर है। बाज़ार में तिरंगे की रैली निकलती है तो रैली
में शामिल लोग मोबाइल फ़ोन पर चिपके हुए पाए जाते हैं, या
अपने किसी जान पहचान वालों को बाज़ार में हाय हेलो करते दिख जाते हैं! ऐसे में तिरंगा थामे हुए दो व्यक्तिओं
के बीच की दूरी और दोनों के बीच का अंतर, एकसमान पंक्ति जैसी
महत्वपूर्ण बातों का पालन वे कैसे करेंगे? बिलकुल नहीं होता।
तिरंगा लगाते समय, फहराते
समय या किसी और स्थिति में तिरंगे को अनादर या अपमानजनक अवस्था में रखना गंभीर
अपराध है। तिरंगा संवैधानिक रूप से राष्ट्रीय सम्मान का सर्वोच्च प्रतीक है। उसका
अनादर या अपमान भारतीय संविधान के अनुसार गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। उसके
निकाल की व्यवस्था के अनुसार ही उसका निकाल होना चाहिए, अन्यथा
वह भी आपराधिक कृत्य है। राष्ट्रीय प्रतीक का अनादर या अपमान संज्ञेय व
ग़ैरज़मानती अपराध है।
न जाने कितनी बार लोगों को समझाया गया
कि राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान कैसे किया जाना चाहिए। न जाने कितनी बार लोगों को
बतलाया गया कि कौन कौन सी स्थितियाँ उसका अनादर या अपमान समझी जाएगी। सोशल मीडिया
से लेकर इंटरनेट पर मुफ़्त में इसे लेकर जानकारियाँ दी गई हैं। लेकिन ख़ुद को
आधुनिक और ज्ञानी बताने वाला समाज बार बार अज्ञानी और ग़ैरज़िम्मेदार साबित हो रहा
है।
यूँ तो राष्ट्रीय त्योहारों की सुबह जो
देशप्रेम और जो जोश लोगों में दिखता है वह शाम होते होते गोलगप्पे के ठेलों पर
तीखी पानीपुरी खाने के बाद आँख से निकले आँसुओं संग उतर जाता है। ऐ मेरे वतन के
लोगों, जरा
आँख में भर लो पानी... सुबह इस देशभक्ति गीत का जो भाव था वह शाम होते होते चटपटी
और तीखी पानीपुरी खाने के बाद बदला सा नज़र आता है।
लगता है कि देश आज सुबह ही स्वतंत्र या
प्रजासत्ताक बना था, शाम होते होते फिर से
लापरवाह हो गया!
बॉर्डर मूवी देख पाकिस्तानी शाम का खाना दिल्ली में नहीं खा पाए वाले भाव में छाती
फुलाते हुए रात का खाना खाकर दिन की छुट्टी को पूरा कर लेते हैं।
ऐश्वर्या राय या किंजल दवे की निजी
ज़िंदगी का सबको पता है, जबकि उसकी जानकारी न
सरकार देती है ना ग़ैरसरकारी सेवा संगठन। उसके लिए तो लोग अपने ज़रूरी काम छोड़
कहीं न कहीं से जानकारी जुटा लेते हैं। किस अभिनेता ने, अभिनेत्री
ने, क्रिकेटर
ने, लोक
सांस्कृतिक गायक या गायिका ने, क्या किया, कब
किया, कैसे
किया, इसकी
जानकारी रातभर उल्लू की तरह जगकर ढूंढने वाला समाज देश के सर्वोच्च राष्ट्रीय
प्रतीक के बारे में बेसिक जानकारी न रखता हो तो वो समाज आधुनिक और ज्ञानी किस
द्दष्टिकोण से हुआ?
इन स्थितियों के मध्य पीसता जा रहा है
देश का सर्वोच्च राष्ट्रीय प्रतीक।
"चिह्न गौरव का स्वयं
शुभ नाम तू,
एक पट में सिमटता निज धाम तू,
सिद्धि साधन योग बल कल्याण है,
ध्वज नहीं तू, राष्ट्र
का सम्मान है"
- एक योगी ने देश के इस सर्वोच्च प्रतीक
के बारे में यहीं कहा था।
और आज स्वयं को आधुनिक और शिक्षित
बतलाने वाला भारतीय समाज अपने सर्वोच्च गौरव और सर्वोपरि अभिमान का प्रतिदिन अनादर
करता जा रहा है, अपमान करता जा रहा है। दरअसल,
"देशभक्ति कोई भावना
नहीं है,
वो तो संस्कार है।
भावना बहक सकती है,
संस्कार नहीं।"
और इसीकी कमी इस आधुनिक और शिक्षित समाज
में दिखती है, जिसकी सज़ा देश के सर्वोच्च प्रतीक को
भुगतनी पड़ रही है।
(इनसाइड इंडिया, एम
वाला)