जीएसटी की दिक्कतों को समझने में मोदीजी और उनकी सरकार को पूरे 8 साल लग गए! तो फिर 8 साल पहले ही राहुल गांधी इन दिक्कतों को कैसे समझ गए थे? इस घटनाक्रम के बीच यह तथ्य बिलकुल भूलना नहीं चाहिए कि बतौर
गुजरात मुख्यमंत्री, नरेंद्र मोदी जीएसटी
को 'देश को बर्बाद करने वाली टैक्स प्रथा' बता चुके थे और इसी प्रथा को उन्होंने बतौर देश के प्रधानमंत्री आधी रात को संसद
खोलकर तामझाम के साथ लागू किया था!
एक बार पत्रकार-लेखक अनिल जैन ने लिखा था - यदि राहुल गांधी पप्पू
हैं तो फिर पीएम मोदी और उनकी सरकार वहीं क्यों करते हैं जो राहुल गांधी कहते हैं? नोटबंदी, जीएसटी, कृषि क़ानून, कोविड19 महामारी, लॉकडाउन, वैक्सीनेशन, रोजगार समेत अनेक देशव्यापी मुद्दों पर राहुल गांधी ने जो कहा, कुछ वक़्त बाद मोदी सरकार ने वही किया!
अनिल जैन के उस लेख में अनेक ऐसे विषय दर्ज़ थे जिस पर राहुल गांधी ने मोदी सरकार
को सलाह दी, चेतावनी दी, आगाह किया, लेकिन तब मोदी सरकार
ने उनका मज़ाक उड़ाया। अनेक ऐसे मौक़े हैं, जब सरकार ने राहुल गांधी की बातों का मख़ौल उड़ाया तो आख़िरकार राहुल गांधी ने
वह बातें देश के सामने रखी। महीने या कुछ साल बीते और मोदी सरकार ने वही किया जो राहुल
गांधी ने कहा था!
बात जीएसटी की करते
हैं, जिस पर हालिया दिनों में पीएम मोदी ने उसी
रास्ते पर चलने की घोषणा की है, जिस रास्ते को आज से 8 साल पहले राहुल गांधी
सुझा चुके थे।
राहुल गांधी ने 2016 में जीएसटी पर एक
ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने कहा था - "अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) के रूप में GST अमीर और ग़रीब दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। मैं GST Council से आग्रह करता हूँ कि इसकी दर 18% या उससे कम रखी जाए,
ताकि ग़रीबों पर अनावश्यक बोझ न पड़े।"
इसके बाद राहुल गांधी
ने अनेक बार मोदी सरकार को सलाह दी, आग्रह किया कि आप जीएसटी की दर 18 फ़ीसदी या उससे कम
ले आइए। लेकिन तब मोदी सरकार ने, उनके मंत्रियों ने, बीजेपी सांसदों ने और उनकी सोशल मीडिया सेना ने योजनाबद्ध तरीक़े
से राहुल गांधी का ख़ूब मज़ाक उड़ाया था। तब राहुल गांधी को अपमानजनक शब्दों और टिप्पणियों
से घेरा गया था। राहुल गांधी के ऊपर मीम्स बनाकर, उन्हें पप्पू कहकर तथा सोनिया टैक्स कहकर ट्रोल किया गया था।
और अब 15 अगस्त 2025 के दिन लाल क़िले
की प्राचीर से पीएम मोदी ने घोषणा की है - "दिवाली तक अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार
सिर्फ़ दो दरें: 5% और 18% होंगी। अक्टूबर में दिवाली से पहले जीएसटी व्यवस्था में अगली पीढ़ी के सुधारों
को आगे बढ़ाने के लक्ष्य के साथ, कम टैक्स बोझ आम आदमी, छोटे उद्यमियों और एमएसएमई के लिए दिवाली का उपहार होगा।"
मोदी सरकार के जीएसटी
सिस्टम को, जिसे घीरे घीरे 'गब्बर सिंह टैक्स' का नाम मिल चुका था, इस टैक्स प्रथा के भीतर ऊँची दरें ही नहीं
बल्कि पूरे सिस्टम के भीतर अनेक गड़बड़ियों को लेकर प्रतिपक्ष और राहुल गांधी अनेक
बार केंद्र सरकार को बतला चुके थे।
इसी साल 1 जुलाई 2025 के दिन नेता प्रतिपक्ष
के तौर पर राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा था - "8 साल बाद भी मोदी सरकार का जीएसटी टैक्स सुधार नहीं। ये ग़रीबों
के साथ अन्याय और अमीर दोस्तों को फ़ायदा पहुँचाने का तरीक़ा बन गया है।"
राहुल गांधी ने इस
दिन आगे लिखा था - "जीएसटी को ऐसा बनाया गया था कि यह ग़रीबों को सज़ा दे, छोटे व्यापारियों (MSME) को ख़त्म करे, राज्यों की ताक़त कम करे, और प्रधानमंत्री के कुछ अरबपति दोस्तों को फ़ायदा पहुँचाए। सरकार ने कहा था कि
GST - Good and Simple Tax (अच्छा और आसान टैक्स) होगा। लेकिन असल में यह बहुत ही जटिल हो गया है, जिसमें 5 अलग-अलग टैक्स स्लैब हैं और अब तक इसे 900 बार बदला जा चुका है। यहाँ तक कि कारमेल पॉपकॉर्न और क्रीम बन जैसे सामान भी इसके
उलझन भरे नियमों में फँसे हैं।"
राहुल गांधी का एक
लिखित बयान था - "जीएसटी का सिस्टम बड़े कारोबारियों को फ़ायदा देता है क्योंकि
उनके पास अकाउंटेंट की पूरी टीम होती है। लेकिन छोटे दुकानदार, व्यापारी और MSMEs इस सिस्टम की पेचीदगियों में उलझकर परेशान
हो जाते हैं। जीएसटी पोर्टल भी रोज़ाना की टेंशन बन गया है।"
राहुल गांधी ने जीएसटी
के बारे में इसी साल एक्स पर लिखा था - "MSME, जो भारत में सबसे ज़्यादा नौकरियाँ देते हैं, उन्हें सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ है। पिछले 8 साल में 18 लाख से ज़्यादा छोटे
उद्योग बंद हो चुके हैं।"
नेता विपक्ष ने 1 जुलाई को लिखा था
- "आज आम आदमी को चाय से लेकर हेल्थ इंश्योरेंस तक हर चीज़ पर जीएसटी देना पड़ता
है, जबकि बड़ी कंपनियों को हर साल 1 लाख करोड़ से ज़्यादा की टैक्स छूट मिलती है।"
राहुल गांधी ने एक्स
पर उसी पोस्ट में लिखा - "सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल को जानबूझकर जीएसटी से बाहर
रखा है, जिससे किसान, ट्रांसपोर्टर और आम लोग परेशान हो रहे हैं। साथ ही, जीएसटी के बकाये पैसे देकर ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों को सज़ा
दी जा रही है, यह मोदी सरकार के संघीय ढांचे को कमजोर करने
का सबूत है।"
उन्होंने कहा था -
"जीएसटी की सोच सबसे पहले यूपीए सरकार ने दी थी ताकि पूरे भारत में एक जैसा टैक्स
सिस्टम हो और कारोबार आसान बने। लेकिन मोदी सरकार ने इस सोच को ग़लत तरीके से लागू
किया है, जिससे लोगों को नुक़सान, और कुछ को फ़ायदा हो रहा है। अब ज़रूरत है एक ऐसे जीएसटी की
जो आम लोगों के हित में हो, कारोबारियों के लिए आसान हो, और सभी राज्यों को बराबरी से अधिकार दे।"
पीएम मोदी ने 15 अगस्त
के दिन लाल क़िले से जीएसटी दरों में कमी की जो घोषणा की है, यूँ तो वर्तमान काल में सबको पता है कि इसके पीछे आम जनता की
चिंता या राहुल गांधी फैक्टर जवाबदेह नहीं है। संभवत: ज़िम्मेदार है अमेरिका के राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप की भारत संबंधी टैरिफ नीति। जिस विचित्र और अमेरिकन मीडिया के मुताबिक़
झूठे डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत के कम अनुभवी पीएम मोदी गहरी दोस्ती का हास्यास्पद
दावा कर रहे थे, उस ट्रंप की नीति के बाद जीएसटी की दरें कम करना प्रथम उपाय
रह गया है।
बहरहाल, राहुल गांधी ने मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए जीएसटी को 'गब्बर सिंह टैक्स' कहा था। उन्होंने लगातार आरोप लगाए कि इस सिस्टम ने छोटे व्यापारियों
की कमर तोड़ दी है। उन्होंने बार बार महंगाई, असमान और उँची टैक्स दरें, भीतरी पेचीदगी, उलझनें, इसकी जटिलता, जनता की परेशानी, समेत अनेक दिक्कतों को सामने रखा था।
पिछले 8 सालों में जीएसटी
सिस्टम ने देश को जो माहौल प्रदान किया वह राहुल गांधी के इस दावे की पुष्टि ही करता
है। महंगाई, अधिक संपत्ति वालों का बोलबाला, कम आय वालों को नुक़सान, छोटे व्यापारियों की परेशानी, राज्यों और केंद्र के अधिकारों का झगड़ा, साथ ही टैक्स सिस्टम की जटिलता।
लेकिन सरकार ने इन
आपत्तियों पर ध्यान देने में 8 साल लगा दिए! 15 अगस्त 2025 के दिन लाल क़िले से भाषण देते हुए पीएम मोदी ने घोषणा की, "अब जीएसटी को और बेहतर करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई जाएगी, जो टैक्स स्लैब्स को कम करने और नियमों को सरल बनाने पर काम
करेगी।"
आख़िरकार देर से ही
सही, किंतु दिक्कतों को समझते हुए पीएम ने वादा
किया कि, "दीवाली तक ये सुधार लागू हो जाएँगे जिससे छोटे व्यापारियों और उद्योगों को राहत
मिलेगी, और आम आदमी को सस्ता सामान उपलब्ध होगा।"
ख़बरों के मुताबिक़
पीएम के ऐलान के बाद वित्त मंत्रालय ने जीएसटी परिषद को एक प्रस्ताव भेजा है। अभी जीएसटी
में चार टैक्स स्लैब हैं: 5%, 12%, 18%, और 28%। नए प्रस्ताव में इन्हें घटाकर सिर्फ़ दो स्लैब करने की बात है: एक मानक और दूसरा
मेरिट।
ख़बरों की माने तो
भेजे गए प्रस्ताव के अनुसार 12% स्लैब की 99% वस्तुएं 5% स्लैब में आएगी। 28% स्लैब की 90% वस्तुएं 18% स्लैब में आएगी। तंबाकू
जैसी हानिकारक और विलासिता की वस्तुओं पर 40% का विशेष टैक्स लगेगा।
जिन दिक्कतों को राहुल गांधी 8 साल पहले समझ गए थे, मोदी
सरकार को उसकी समझ 8 साल बाद आई। लेकिन इस समयावधि के दौरान केंद्र सरकार के अड़ियल
रवैये ने वह सब दिखाया, जिसका दावा राहुल गांधी ने लगातार किया था।
व्यापारी कभी सरकार
के ख़िलाफ़ नहीं बोलते, किंतु बाज़ार में छोटे दुकानदार, छोटे व्यापारी, यूँ कहे कि MSMEs सेक्टर में वहीं हाल था, जो राहुल गांधी ने लिखा था। और यह रोज़ाना
परेशानी थी, रोज़ाना उलझन थी। छोटे दुकानदारों को सालाना
अकाउंट और टैक्स संबंधी सर्विस के लिए जो चार्ज चुकाने पड़ते थे, जीएसटी लागू होते ही उसमें 5 से 15 गुना बढ़ोतरी हुई थी।
जीएसटी का पूरा सिस्टम, भीतरी पेचीदगी, उलझन, जटिलता और साथ ही उँची दरें, दरअसल टैक्स चोरी के लिए व्यापारियों को प्रेरित करने के तमाम
तत्व इसमें मौजूद थे।
जीएसटी लागू होने के तुरंत बाद जिस प्रकार का असमंजस, अज्ञानता, जानकारी का अभाव, देश में फैला हुआ था, यह दर्शाता था कि तत्कालीन सरकार ने इसे बहुत ज़ल्दबाजी में और बिना पूर्व तैयारी
के लागू किया है। सरल कही जाने वाली यह टैक्स प्रथा दरअसल
उसी दिन से बहुत जटिल साबित हुई थी। उपरांत यह बिना संपूर्ण तैयारी के लागू किया था।
प्रति दिन सरकार को इसके नियम को लेकर स्पष्टता करनी पड़ रही थी। अधिकारियों और व्यवसायिओं
को ट्रेनिंग और जानकारी क़ानून पारित होने के बाद दी गई थी, पहले नहीं!
नेता प्रतिपक्ष ने
1 जुलाई 2025 को अपनी एक एक्स पोस्ट
में कई चीज़ों का दावा किया था। इसमें से एक दावा कि जीएसटी लागू करने के बाद अब तक
मोदी सरकार 900 बार बदलाव कर चुकी है - यह केंद्र सरकार की फूहड़ कही जाए ऐसी कार्यशैली को दर्शाता
है।
हमें नहीं पता कि यह
900 बदलाव कौन से थे।
किंतु ऐसे सैकड़ों बदलाव बार बार और लगातार देश ने देखे और फिर मोदी सरकार ने जीएसटी
में इतने सारे बदलाव किए कि आख़िरकार बदलाव की संख्या की गिनती करना लोगों ने छोड़
दिया। जीएसटी लागू करने के बाद पूरे जीएसटी सिस्टम में सैकड़ों बदलाव हो चुके हैं, जो कि किसी सरकार की अनुभवहीनता या बिना पूर्व तैयारी की कमी
को स्पष्ट करता है।
पिछले 8 सालों में इस टैक्स
प्रथा ने महंगाई बढ़ाने में योगदान दिया, ग़रीबों को परेशानी दी, छोटे व्यापारियों का क़ारोबार ख़त्म होता गया, अधिक संपत्ति वालों का बोलबाला बढ़ने लगा। इतना ही नहीं एक समय
वह भी आया जब राज्यों और केंद्र के अधिकारों का संवैधानिक संकट भी इस सिस्टम के साथ
जुड़ गया।
आँकड़े बताते हैं कि
जीएसटी लागू होने के बाद 18 लाख से ज़्यादा छोटे उद्यम बंद हो गए। छोटे व्यापारियों को जटिल नियमों और जीएसटी
पोर्टल की तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, अगर कोई सप्लायर जीएसटी रिटर्न नहीं भरता, तो ख़रीदार को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता, जिससे उसका नुक़सान होता है।
पेट्रोल और डीज़ल को
जीएसटी के दायरे से बाहर रखने पर भी पिछले 8 सालों में बहुत विवाद हुआ है। उपरांत ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों को जीएसटी का
बकाया समय पर नहीं मिलने का विवाद भी लंबा चलता रहा।
जीएसटी की बात करते समय यह बात बिलकुल भूलनी नहीं चाहिए कि बीजेपी
और मोदी सरकार के प्रसिद्ध यू टर्न की जो सूची है, उसमें जीएसटी का मुद्दा अग्रीम पंक्ति में है। गुजरात के मुख्यमंत्री
के तौर पर नरेंद्र मोदी ने जीएसटी को 'ग़ैरज़रूरी' और 'देश को बर्बाद करने वाली टैक्स
प्रथा' बताया था। और इसी टैक्स प्रथा को इन्होंने पीएम बनने के बाद
आधी रात को संसद खोलकर तामझाम के साथ लागू किया था!
2014 से पहले बीजेपी ने जीएसटी का विरोध किया था। तब विपक्ष में बैठी बीजेपी ने जीएसटी
के मुद्दे पर कईं बार संसद को बाधित किया था। नरेंद्र मोदी और बीजेपी के जीएसटी के
बारे में तब दिए गए बयान जगज़ाहिर हैं। बीजेपी तब जीएसटी के विरोध को संसद से बाहर
सड़क तक ले गई थी। 'भारत में जीएसटी कभी सफल नहीं हो सकता' - यह मोदीजी का तब एक
और बयान था।
और फिर पीएम बनने के
बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार ने उसी टैक्स प्रथा को तामझाम के साथ लागू किया! आधी रात को संसद खोलकर लागू किया! इतना ही नहीं, जिस टैक्स प्रथा का वे विरोध किया करते थे उस प्रथा में टैक्स
के स्लेब इतने अधिक-ऊँचे रखे गए, जितने पूर्व सरकार
ने कहे भी नहीं थे।
आधी रात को संसद खोलकर
पूरे तामझाम और उत्सव के साथ एक टैक्स बदलाव को लागू करने की पीएम मोदी की वह शैली
आवेशी व्यक्ति की थी। देश में अनेक बार टैक्स प्रथा बदली जा चुकी है। वैट सिस्टम, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स आदि बहुत कुछ।
जब ग्लोबलाइजेशन नीति
लागू हुई, जो अब तक का भारत का सबसे बड़ा आर्थिक बदलाव
था, उसने भारत का अर्थतंत्र, सामाजिक ढाँचा, संस्कृति, राजनीति, गाँव, शहर, सब कुछ बदल कर रख दिया, तब भी तत्कालीन सरकार ने इसे दिन में लागू ही किया था और वो
भी बिना किसी भी प्रकार के तामझाम के। इससे पहले और इसके बाद भी अनेक बड़े और महत्वपूर्ण
आर्थिक बदलाव इस देश में किए जा चुके हैं।
किंतु अर्थतंत्र
के एक छोटे से बदलाव को, ख़ासकर उस बदलाव को
जिसके वे स्वयं विरोधी रहे हो, इतने तामझाम के साथ
लागू करना, इतनी ज़ल्दबाजी में
और बिना पूर्वतैयारी के लागू करना, यह पीएम मोदी के आवेशी, आत्ममुग्ध और उत्सव प्रिय चरित्र का दर्शन था।
पीएम मोदी की राहुल
गांधी की लगातार 8 साल तक चली माँग की तरफ़ जाने की घोषणा के बाद जीएसटी काउंसिल को भेजे गए वित्त
मंत्रालय के प्रस्ताव के तहत भोजन, दवाइयाँ, शिक्षा, और रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों को 0 या 5% टैक्स स्लैब में रखा
जा सकता है। टीवी, रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन जैसे सामानों
पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% हो सकता है। स्प्रिंकलर और फार्म मशीनरी पर टैक्स 12% से घटाकर 5%, और बीमा सेवाओं पर 18% से घटाकर 5% या 0 करने का प्रस्ताव है। दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर भी टैक्स कम करने की योजना
है ताकि वे किफायती बनें। हालाँकि ऑनलाइन गेमिंग को डीमेरिट गतिविधि मानकर 40% टैक्स स्लैब में रखा जाएगा ऐसी संभावना है।
लगे हाथ जीएसटी काउंसिल
क्या है उसकी संक्षेप में चर्चा कर लेते हैं।
जीएसटी काउंसिल भारत में जीएसटी से जुड़े सभी फ़ैसलों का शीर्ष निकाय है। इसे
2016 में संविधान के 101वें संशोधन के तहत स्थापित किया गया था। इसका मुख्य काम है जीएसटी के नियम, टैक्स दरें और बँटवारे का फॉर्मूला तय करना।
सिर्फ़ जीएसटी पर ही नहीं, इसके अलावा भी अनेक ऐसे विषय हैं, जिस पर पीएम मोदी और उनकी सरकार ने वही किया, जो राहुल गांधी ने कहा! कई मामलों में देखा गया है कि राहुल गांधी जो
कहते हैं, उसे देरी से ही सही मगर सरकार को मानना पड़ता है!
भारत के राजनेताओं
में राहुल गांधी वह पहले भारतीय नेता थे जिन्होंने कोरोना महामारी को लेकर केंद्र सरकार
और देश की जनता को आगाह किया था। वह जनवरी महीना था और तब भारत में कोविड19 की ख़बरें बहुत बहुत
ही कम थी। उसके बाद पीएम मोदी अपने उस मित्र, जिसने आज कल भारत के अर्थतंत्र को ही नहीं
बल्कि स्वयं पीएम मोदी को भी परेशान कर रखा है, डोनाल्ड ट्रंप के साथ अहमदाबाद में तमाशेबाजी
में जुटे हुए थे!
राहुल गांधी ने कोविड19 को गंभीरता और संवेदनशीलता
से ध्यान में लेने की सलाह दी थी। कहा था कि दुनिया में इसे महामारी माना गया है। किंतु
तब बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने और बीजेपी
की समस्त ट्रोल आर्मी ने राहुल गांधी का बहुत मज़ाक उड़ाया था। पीएम मोदी ने कहा था
कि भारत को कोविड19 से डरने की ज़रूरत नहीं है। तब राहुल गांधी पर सरकार ने देश को गुमराह करने का
और डराने का आरोप लगाया था।
और इसके चंद दिनों
बाद इसी सरकार को, उन्हीं मंत्रियों को कोविड19 की महामारी, इसकी गंभीरता आदि की आधिकारिक घोषणा करनी पड़ी और कुछ दिनों
के लिए समग्र देश में कर्फ़यू लगाया गया। जो राहुल गांधी ने कहा था, मोदी सरकार ने वही किया।
जब देश में तीन दिन
के कफ़र्यू की घोषणा हुई तब राहुल गांधी ने संपूर्ण लॉकडाउन की माँग की थी और उनकी
इस माँग के बाद फिर एक बार उनका मख़ौल उड़ाया गया। फिर वही हुआ जो राहुल गांधी ने कहा! भारत में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हो गई
और फिर इतिहास ताज़ा और जगज़ाहिर है।
जब कोविड19 की दूसरी लहर के बाद
पीएम मोदी और उनकी सरकार ने कोरोना पर महाविजय की घोषणा कर दी तब 7 मई को राहुल गांधी
ने पीएम मोदी को पत्र लिख विनती की थी भारत को ज़ल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और कोविड19 म्यूटेशन को देखते हुए आगे जो भयानक ख़तरा है उसे गंभीरता से
लिया जाए।
उन्होंने उसी साल जून
महीने में श्वेत पत्र जारी किया था और कहा था कि दुनिया जानती है कि तीसरी लहर आ रही
है, हमें अपनी तैयारियों को छोड़ना नहीं चाहिए और लापरवाह बनकर विजय
की घोषणा नहीं करनी चाहिए। हालाँकि सरकार ने अब की बार नहीं माना और फिर नुक़सान जगज़ाहिर
है।
नोटबंदी, जीएसटी, कृषि क़ानून, कोविड19 महामारी का आगमन और
उसकी घोषणा, लॉकडाउन की ज़रूरत, वैक्सीनेशन, रोजगार, छोटे व्यापारियों की दिक्कतें, दूसरे देशों में बनी कोरोना वैक्सीन को भारत में आपातकालीन स्थिति
में मंजूरी देने का मामला, 45 साल से ज़्यादा उम्र के सभी नागरिकों को कोरोना की वैक्सीन लगाने का मामला, सीबीएससी की परीक्षाएँ टालने की बात, सबकी माँग सबसे पहले राहुल गांधी ने ही की थी।
शुरू में सरकार की ओर से इन मांगों को लेकर नाक-भौं सिकोड़ी गई, लेकिन थोड़े दिनों के बाद आख़िरकार सरकार को उनकी सभी मांगें
माननी पड़ीं! अब आख़िरकार जीएसटी
के विषय में राहुल गांधी जो सुझाव दे चुके थे, जिसका आग्रह अनेक बार कर चुके थे, पीएम मोदी ने लाल क़िले से उस रास्ते लौटने की घोषणा कर दी है।
सवाल उठता है कि पीएम मोदी और उनकी सरकार लगातार देश को ही पप्पू बनाने की राजनीतिक
चेष्टा करती रही? क्योंकि जिन्हें वे
पप्पू कहा करते थे, उनके द्वारा कहे गए
रास्ते पर ही मोदी और उनकी सरकार, दोनों लौटते थे और
आज भी लौटे हैं!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)