नोटबंदी एक ऐतिहासिक फ़ैसला था। इस ऐतिहासिक फ़ैसले को लेकर हमने चार अलग अलग संस्करणों में नोटबंदी के पहले 50 दिन, नोटबंदी के 50 दिनों बाद की कहानियाँ, बजट के बाद तथा विधानसभा चुनावों के बाद का दौर देखा। हम आख़िरी संस्करण में नोटबंदी की आख़िरी कहानियाँ देखते हैं।
वाजिब वजहें हो तो लोग क्यों नहीं जमा करा सकते अपने नोट, आप लोगों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं रख सकते – सुप्रीम कोर्ट
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने सवाल पूछने में बहुत देर कर दी थी। क्योंकि नोट जमा कराने की समयसीमा 31 दिसंबर 2016 को ही ख़त्म हो चुकी थी और सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल 4 जुलाई 2017 को किया था। वैसे कई लोगों के लिए सुप्रीम का यह सवाल आशा की एक किरण के समान भी था। 4 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा कि, “जो लोग नोटबंदी के दौरान अपने पुराने नोट जमा नहीं करवा पाए थे उनके लिए अलग से विंडो क्यों नहीं हो सकती?” एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ़ जस्टिस जेएस खेहर ने सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि, “अगर किसी के पास वाजिब वजहें हैं तो फिर आप उन्हें पुराने नोट जमा करने से नहीं रोक सकते।”
महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि नोटबंदी के दौरान वो अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती थी, उसने बच्चे को जन्म दिया था और इसी वजह से वो तय समयसीमा में पुराने नोट जमा नहीं करवा पाई थी। ऐसी वाजिब वजहें वाली अन्य याचिकाएँ भी कोर्ट में आई थी। सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस ने कहा कि, “आप किसी को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं रख सकते। अगर कोई यह साबित करता है कि ये उसकी संपत्ति है और वैध भी है तो फिर आप उसे वंचित नहीं रख सकते।”
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जिन लोगों के पास अब भी पुराने नोट पड़े हैं, सरकार को ऐसे लोगों को एक मौक़ा देना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि, “वाजिब वजह के बावजूद लोगों को मौक़ा नहीं मिलता तो वो गंभीर विषय है।” सरकार से यहां तक पूछा गया कि, “अगर नोटबंदी के दौरान कोई जेल में बंद हो तो वो कैसे अपने पुराने नोट जमा करा पाता?” सरकार ने सुप्रीम से इस विषय में सोचने के लिए वक़्त मांगा, जिसके बाद न्यायालय ने सरकार को जवाब के लिए दो सप्ताह का वक़्त दिया।
पुराने नोट जमा कराने का दोबारा मौक़ा देने से सरकार का साफ़ इनकार, कहा - इससे नोटबंदी का मक़सद बेकार हो जाएगा
17 जुलाई 2017 के दिन केंद्र सरकार ने पुराने नोट बदलने के लिए एक और मौक़ा देने से साफ़ इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि अगर 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट जमा कराने का फिर से मौक़ा दिया गया, तो काले धन पर काबू पाने के लिए की गई नोटबंदी का मक़सद ही बेकार हो जाएगा। ऐसे में बेनामी लेनदेन और नोट जमा कराने में किसी दूसरे व्यक्ति का इस्तेमाल करने के मामले बढ़ जाएंगे और सरकारी विभागों को ये पता लगाने में दिक्कत होगी कि कौन से मामले वास्तविक हैं और कौन से फ़र्ज़ी हैं। सरकार ने कहा कि 1978 में हुई नोटबंदी में नोट जमा कराने के लिए सिर्फ़ 6 दिन दिए गए थे, जबकि इस बार सरकार ने 51 दिन दिए जो कि काफी हैं।
जमा हुए पुराने नोट की गिनती चल रही है – आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल
12 जुलाई 2017 के दिन आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने संसदीय समिति को बताया कि नोटबंदी के बाद बैंक के शाखाओं में जमा किए गए रद्द हो चुके पुराने नोट की गिनती अब भी चल रही है। गौरतलब है कि 8 नवम्बर 2016 की आधी रात से नोटबंदी लागू हुई थी और 10 नवम्बर 2016 से पुराने नोट जमा करने का काम शुरू हुआ था। वित्तिय मामलों की संसदीय समिति ने गवर्नर से पुराने जमा हुए (500 व 1000 के) नोट का आँकड़ा मांगा था, जिसके जवाब ने पटेल ने यह कहा। हालाँकि अब तक देश में नोटबंदी की चर्चा कम हो चुकी थी। 7-8 महीनों के इस लंबे समय के दौरान देश कई गलियों से गुज़र चुका था। लेकिन नोटों की गिनती अब भी चल रही है ऐसे जवाब के बाद लोगों ने तंज़ कसने का मौक़ा नहीं छोड़ा। नोटबंदी लागू हुए आधा साल से ज़्यादा बीत चुका था। लाजमी था कि डिजिटल इंडिया के अरसे पुराने नारे के बीच 8-8 महीनों से नोट गिनती की प्रक्रिया का चलना लोगों के लिए तंज़ कसने का एक और मौक़ा बनने ही वाला था।
नोटबंदी के बाद 15.28 लाख करोड़ के नोट हमने मशीन से नहीं बल्कि हाथों से गिने – आरबीआई
डिजिटल इंडिया का ये नया कमाल ही कह लीजिए कि नोटबंदी के बाद जमा हुए 15.28 लाख करोड़ के नोट मशीन से नहीं बल्कि हाथों से गिने गए थे। एक आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि इन नोटों को गिनने के लिए मशीन का इस्तेमाल नहीं किया गया था। हालाँकि आरबीआई ने ये बताने से इनकार कर दिया कि कितने आदमी नोट गिनने के लिए लगाए गए थे। आरबीआई ने कहा कि आरटीआई क़ानून की धारा 7(9) के तहत इसकी जानकारी नहीं दी जा सकती। आरटीआई में यह भी पूछा गया था कि नोटों की गिनती कब शुरू हुई थी। इसका जवाब गोल-मटोल तरीक़े से देते हुए बैंक ने कहा कि नोटों की गिनती निरंतर जारी प्रक्रिया होती है।
नोटबंदी का असर: 25 फ़ीसदी बढ़ी इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या
नोटबंदी की शुरुआत में ही इस बात के आकलन लगाए गए थे कि इसके आतंकवाद या दूसरे फ़ायदों के दावे हवा हो जाएंगे, लेकिन टैक्स क्लेक्शन तथा बैंक में जमा नक़दी के आँकड़े ज़रूर बढ़ेंगे। और हुआ भी यही। नोटबंदी और ऑपरेशन क्लीन मनी के परिणाम स्वरूप आयकर रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या में जबरदस्त इज़ाफ़ा दर्ज किया गया। 5 अगस्त 2017 तक 2,82,92,955 लोगों ने अपना आयकर रिटर्न फ़ाइल किया, जबकि पिछले वित्त वर्ष यानी 2016-17 में 2,26,97,843 लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया था। यानी रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या में 24.7 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछले वर्ष यह केवल 9.9 फ़ीसदी थी।
इससे स्पष्ट रूप से साबित होता था कि नोटबंदी के बाद बड़ी संख्या में नए करदाता टैक्स के दायरे में आए। नोटबंदी का असर अग्रिम कर संग्रह यानी एडवांस टैक्स कलेक्शन पर भी साफ़ साफ़ देखा जा सकता था। निजी आयकर के मामले में 5 अगस्त 2017 तक वित्त वर्ष 2016-17 की तुलना में एडवांस टैक्स कलेक्शन 41.79 फ़ीसदी बढ़ा।
इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या का आँकड़ा सभी की जुबान पर अलग-अलग !!!
नोटबंदी के बाद सबसे बड़ा मुद्दा यही सामने आ रहा था कि तमाम प्रकार के आँकड़ों में बहुत बड़ी ऊंचनीच थी। हमने नोटबंदी से जुड़े इससे पहले के संस्करणों में देखा कि आरबीआई से लेकर सरकार के मंत्रालयों तक के बयानों में अंतर था। इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या को लेकर भी यही मंज़र पसरा रहा। एक आकलन में कहा गया कि नोटबंदी के बाद आईटी रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या 25 फ़ीसदी बढ़ी है। उसमें क़रीबन 56 लाख नये रिटर्न फ़ाइल किए गए थे ऐसी जानकारी देश को दी गई। जबकि 2016-17 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते समय अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि 5.4 लाख नये टैक्स पेयर दर्ज हुए हैं। 56 लाख और 5.4 लाख.... अच्छा था कि किसीने यह नहीं कहा कि पहले वाले आकलन में बीच में पॉईंट लगाना भूल गए थे, या फिर अरविंदजी ने ग़लती से पॉईंट लगा दिया था!!!
लेकिन दो और बयान भी थे, जो वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के थे। एक लोकसभा में दिया गया बयान था, तो दूसरा लाल क़िले से। लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह थी कि दोनों के बयानों में अंतर था! 16 मई 2017 को वित्त मंत्री ने कहा था कि 91 लाख नये टैक्स पेयर दर्ज हुए हैं। लाल क़िले से पीएम मोदी ने 56 लाख का आँकड़ा दिया, जो एक आकलन में हमने पहले ही देखा। सोचिए, टैक्स पेयर के आँकड़े निश्चित ही नहीं थे और अब तो आपको इसमें भी बहुमत वाला टोटका ही आजमाना पड़ेगा! दो जगह 56 लाख का आँकड़ा, एक जगह 5.4 लाख का और एक जगह 91 लाख का। पीएम का आँकड़ा सच माने, देश के दस्तावेज़ आर्थिक सर्वेक्षण का आँकड़ा सच माने, देश के वित्त मंत्री का... यह आपको तय करना था। लेकिन रुकिए, अभी एक और ट्विस्ट बाकी था। सरकारी डाटा यह आँकड़ा 33 लाख का बता रहा था! ज्ञात हो कि सरकारी डाटा वाला यह आँकड़ा पहले भी सरकार के हवाले से मीडिया में छप चुका था।
कांग्रेस का आरोप - दो तरह के 500 रुपये के नोट छापकर सदी का सबसे बड़ा घोटाला किया नरेंद्र मोदी सरकार ने
अलग-अलग तरह के 500 रुपये के नोट छापे जाने के विपक्ष के आरोप को लेकर संसद में 8 अगस्त 2017 को ज़ोरदार हंगामा हुआ। कांग्रेस ने उच्च सदन राज्यसभा में 500 रुपये के दो नोटों की तस्वीर दिखाते हुए दावा किया कि उनका आकार और डिज़ाइन अलग-अलग है। कांग्रेस ने इसे सदी का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, "हमने भी शासन किया, लेकिन कभी भी दो तरह के नोट नहीं छापे।"
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर मुद्रा के बारे में ग़ैरज़िम्मेदाराना बयान देने तथा शून्यकाल का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। इसके बाद कांग्रेस के सदस्य नारे लगाते हुए सदन के बीचोंबीच एकत्र हो गए। पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, "आज हमें पता चला कि सरकार ने नोटबंदी का फ़ैसला क्यों किया था। आरबीआई दो तरह के नोट छाप रहा है, जिनके आकार और डिज़ाइन अलग-अलग हैं।" तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कांग्रेस का समर्थन करते हुए कहा, "नोटों को देखिए। सिब्बलजी ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है।"
दो अलग-अलग नोट के कांग्रेस के आरोप पर अरुण जेटली गिन्नाए, लेकिन बाद में कहा – हम जाँच करवाएंगे, नोट जरा सा बड़ा या छोटा हो जाता है!!!
कांग्रेस ने जब ये आरोप लगाए तो बदले में अरुण जेटली कांग्रेस पर खूब गिन्नाए और कांग्रेस द्वारा भारतीय मुद्रा के अपमान का बेहद ही विचित्र तर्क इस्तेमाल किया। लेकिन जब हंगामा बढ़ा तो उन्होंने कहा कि हम इन नोटों की प्रामाणिकता की जाँच करवाएंगे। एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने बड़ा अजीब बयान देते हुए कहा कि, "इतने बड़े प्रिंट ऑर्डर को ध्यान में रखें तो हो सकता है कि किसी अपवाद के रूप में कोई नोट ज़रा-सा बड़ा या छोटा हो।" बताइए, कांग्रेस नोटों के आकार या डिज़ाइन को लेकर सवाल उठाए तो भारतीय मुद्रा का अपमान और स्वयं सरकार ही अलग अलग आकार या डिज़ाइन में फर्क वाले नोट छाप दे तो महज़ एक ग़लती!!!
मीडिया के हवाले से ख़बरें तो यह भी आई थी कि नोटों के आकार या डिज़ाइन में मामूली सा अंतर होगा ये मुमकिन था। अलग-अलग प्रिटिंग प्रेस में आकार या डिज़ाइन में मामूली सा अंतर मुमकिन था। अब शायद होना यह था कि भाजपा का रिसर्च सेल कांग्रेस के जमाने की ऐसी ग़लती ढूंढ ले आता या तो फिर इसे महज़ एक मामूली ग़लती बताकर टाल देता। सोचिए, भारतीय मुद्रा में संबंधित विभाग ही नोट अलग अलग छाप भी सकते हैं यह कितना बड़ा गंभीर विषय है। लेकिन सरकार के लिए यह महज़ एक अपवाद ही है। वैसे आप नागिरकों के लिए मुद्रा संबंधित छोटी सी ग़लती माफ़ी के काबिल नहीं होगी ये याद रखिएगा। क्योंकि ऐसी छूट सरकारों को ही होती है। आप तो ऐसी ग़लती पर जाली नोट के मामले में फंस ही जाएंगे।
अक्टूबर से एटीएम मशीन से नहीं निकलेंगे 500-2000 के नोट, 100 के नोट पर आरबीआई ने जारी किया सर्कुलर
एटीएम फिर एक बार ख़बरों में छा गई थी। लग रहा था कि इस बार दिवाली की ख़रीदारी के मौक़े पर एटीएम पूरी तरह से साथ नहीं निभाएगा और 500 तथा 2000 के नोट नहीं उगलेगा। आरबीआई ने बैंकों को पत्र लिखकर के इस तरह की व्यवस्था करने को कहा। आरबीआई ने बैंकों से यह भी कहा कि अक्टूबर से कुल एटीएम के 10 फ़ीसदी एटीएम मशीन में केवल 100 रुपये का नोट डाला जाए। आरबीआई ने यह सर्कुलर नोटबंदी से पहले पिछले साल जारी किया था, लेकिन नोटबंदी के चलते लागू नहीं हो पाया था। अब आरबीआई ने बैंकों को फिर से अपने इस सर्कुलर की याद दिलाई और इसे अक्टूबर से अमली जामा पहनाने को कहा। अब इस नये नियम से कतारों वाला दौर फिर आएगा या नहीं, कैश की दिक्कत कितनी होगी, 500 और 2000 के नोट को लेकर दरअसल क्या स्थितियाँ हैं, सारे सवाल फिर से उठ खड़े हुए।
आर्थिक सर्वे पेश हुआ, नोटबंदी, किसानों की क़र्ज़माफ़ी और जीएसटी की वजहों से आर्थिक वृद्धिदर का लक्ष्यांक हासिल करना होगा मुश्किल
11 अगस्त 2017 के दिन सरकार ने लोकसभा में आर्थिक सर्वे पेश किया। सर्वे में बताया गया कि नोटबंदी, उसके बाद की चुनौतियां, किसानों की क़र्ज़माफ़ी तथा जीएसटी के बाद की परिस्थितियां, इन सब वजहों से 7.5 प्रतिशत के आर्थिक वृद्धिदर के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा। 2016-17 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते समय अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि 5.4 लाख नये टैक्स पेयर दर्ज हुए हैं।
आरबीआई ने आधा किया सरकार को दिया जाने वाला डिविडेंड, नोटबंदी भी हो सकती थी बड़ी वजह
आरबीआई ने सरकार को जून 2017 को समाप्त वित्त वर्ष में 30,659 करोड़ रुपये का लाभांश देने की घोषणा की। यह पिछले साल के मुकाबले क़रीब आधा था। विश्लेषकों के अनुसार नोटंबदी के कारण नये नोटों की छपाई समेत अन्य कारणों से लाभांश में कमी आई थी। विश्लेषकों के अनुसार, रिजर्व बैंक की आय में कमी का एक कारण नई मुद्रा की छपाई की लागत तो थी ही, साथ ही नोटबंदी के बाद चलन से हटाए गए नोटों का वापस आना भी मुख्य वजह थी। पिछले वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक ने सरकार को लाभांश के रूप में 65,876 करोड़ रुपये दिया था। बजटीय अनुमान के अनुसार सरकार ने रिजर्व बैंक से 2017-18 में 58,000 करोड़ रुपये के लाभांश मिलने का अनुमान रखा था। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक, सरकारी बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों से 74,901.25 करोड़ रुपये के लाभांश का अनुमान रखा था।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान बोले - मैं नोटबंदी की इजाज़त नहीं देता
नोटबंदी के नकारात्मक और सकारात्मक, दोनों नतीजे देखने को मिले थे। हालाँकि आरबीआई के पूर्व गर्वनर बिमल जालान का कहना था कि अगर वह देश के केंद्रीय बैंक के शीर्ष पद पर होते इसकी इजाज़त नहीं देते। उन्होंने कहा कि काले धन की समस्या से निपटने की ज़रूरत है, लेकिन इसके लिए जड़ पर प्रहार करने की ज़रूरत है। हमें देखना होगा कि करों की दरें बहुत ज़्यादा उच्च तो नहीं है। जालान ने 9 अगस्त 2017 को उनकी किताब “भारत: भविष्य की प्राथमिकता” के लोकार्पण के मौक़े पर आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “भारत सरकार रुपये की गारंटी देती है। जब तक कोई बहुत बड़ा संकट न हो, मैं नोटबंदी की इजाज़त नहीं देता।” यह पूछे जाने पर कि क्या कोई संकट था, जिसके कारण नोटबंदी की गई? उन्होंने जोर देकर कहा, “नहीं।”
जालान का कहना भी अमूमन वही रहा जो नोटबंदी की शुरुआत से ही विशेषज्ञों का कहना था। उन्होंने सीधे तौर पर आतंकवाद और काला धन को लेकर जो बड़े दावे किए गए थे उन पर सीधा निशाना तो नहीं साधा, लेकिन तार्किक रूप से उन्होंने मक़सद और कार्रवाई को नाकाम ज़रूर बताया। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि नोटबंदी से बचत, जमा, लोगों के निवेश और ज़्यादा आयकर रिटर्न दाखिल होने के सकारात्मक फ़ायदे ज़रूर हुए हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि नीतियां बनाने के हमेशा दो पहलू होते हैं। विशेष जमा योजनाओं से भी काले धन को निकाला जा सकता है। अगर रियल एस्टेट में काला धन पैदा हो रहा है, तो हमें वहां कुछ करना चाहिए। समस्या की जड़ पर वार करना चाहिए। मेरे हिसाब से नोटबंदी के कारण जनता पर नक़दी की कमी से काफी बुरा असर हुआ था।
उन्होंने कहां, “हमें संतुलित रुख रखना चाहिए। अगर काले धन से निपटना है तो हमें देखना होगा कि इसका कारण क्या है। क्या कर की दरें ज़्यादा है? क्या लोग कर चोरी कर रहे हैं?” उन्होंने कहा कि हालाँकि नोटबंदी का कोई दीर्घकालिक नुक़सान नहीं होगा।
नोटबंदी से सफलता नहीं मिली, मैंने सरकार को चेताया था - आरबीआई के पूर्व गवर्नर राजन
सितम्बर 2017 के प्रथम सप्ताह में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि मैंने सरकार को नोटबंदी से होने वाले तत्काल नुक़सान के बारे में सूचित किया था। उन्होंने कहा कि फरवरी 2016 में मैंने सरकार को मौखिक अभिप्राय दिया था और उसके बाद यदि सरकार उस दिशा में आगे बढ़ना चाहती हो तो कौन कौन से कदम उठाए जाने चाहिए तथा कितना समय लेना चाहिए उस विषय के ऊपर नोट भी भेजा था। राजन ने बताया कि, “सरकार का इरादा सही हो सकता है लेकिन नोटबंदी से नकारात्मक प्रभाव ज़्यादा हुआ है।” उन्होंने कहा कि, “अब तक कोई ये नहीं कह सकता कि नोटबंदी से आर्थिक सफलताएँ मिली हैं। वो तो वक़्त तय करेगा। लेकिन नोटबंदी के ज़रिए जो अभियान चलाए गए थे उसमें हम पिछड़े हैं, क्योंकि हमने सही तैयारियों के साथ नोटबंदी लागू नहीं की।” उन्होंने भी बिमल जालान सरीखा मत प्रकट करते हुए कहा कि, “ऐसी कोई आर्थिक वजह नहीं थी कि नोटबंदी लागू करनी पड़े।”
अब 50 का नया नोट आया ख़बरों में
अगस्त के मध्य में आख़िरकार एक दूसरे नये नोट की पुख़्ता ख़बर आई। अबकी बार 50 के नोट के नसीब में मीडिया में चमकना लिखा था। ख़बरों के मुताबिक़ आरबीआई जल्द ही 50 रुपये के नए नोट जारी करने जा रहा था, जो फ्लोरसेंट ब्लू कलर में होगा। बताया गया कि नए नोट पर एक ओर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर होगी, जबकि दूसरी ओर कर्णाटक के हम्पी के रथ की तस्वीर होगी, जो देश की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करेगी। इस नए नोट पर आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल का हस्ताक्षर होगा। इसके साथ ही आरबीआई की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि इससे पहले जारी सभी सीरीज के 50 रुपये के पुराने नोट चलन में बने रहेंगे।
नोटबंदी से माओवादी फंड की क़िल्लत झेल रहे हैं – अरुण जेटली
20 अगस्त के दिन मुंबई में एक समारोह में बोलते हुए अरुण जेटली ने कहा कि, “भारत के कई हिस्सों में माओवादी पैसे की क़िल्लत झेल रहे हैं।” उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी भी इसी परेशानी से जूझ रहे हैं। पत्थरबाजी में हिस्सा लेने वाले लोगों की तादाद कम हो चुकी हैं। नोटबंदी से पहले कश्मीर की गलियों में हज़ारों लोग पत्थरबाजी करने के लिए इकठ्ठा हो जाया करते थे, लेकिन अब उनकी तादाद 25 से ज़्यादा नहीं होती। उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि पहले जो पैसे बाहर घूमते थे, आज बाक़ायदा बैंकिग सिस्टम के भीतर है।
नोटबंदी से आतंकवादियों के होसले पस्त, आतंकी हमलों में कमी, हिंसा में कमी को लेकर पहले भी बयान आ चुके थे। हमने इससे पहले जो संस्करण देखे उसमें इसे लेकर केंद्र तथा जम्मू-कश्मीर सरकार के बयानों को देखा। उसमें कितनी साम्यता और अंतर था ये भी देखा। इन दावों में जो “विविधता” थी उसे भी हम पहले ही अलग-अलग संस्करणों में देख चुके हैं। वैसे 25 का आँकड़ा वे ले आए, जबकि सरकार सुप्रीम में कह चुकी थी कि जब सैकड़ों की तादाद में लोग अब भी पत्थरबाजी में लगे हो तो उनसे बातचीत कैसे हो सकती है। वित्तमंत्री प्लस रक्षामंत्री अरुण जेटली का बयान और केंद्र का सुप्रीम में हलफ़नामा तथा नोटबंदी के बाद अलग-अलग रिपोर्ट, सारी चीजें आपको एक और “विविधतापूर्ण” बयान की भेंट दे देती है।
नोटबंदी से आतंकी प्रवृत्तियों में कमी आई, जम्मू-कश्मीर में 10 महीनों से पत्थरबाज गायब है - अरुण जेटली
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह बयान अक्टूबर 2017 में दिया। इससे पहले भी वे ऐसे दावे कर चुके थे। हमने पूर्व संस्करणों में आतंकवाद तथा पत्थरबाजों के संदर्भ में केंद्र तथा जम्मू-कश्मीर सरकार के विभिन्न दावों को भी देखा, जिसमें दोनों अलग अलग तथ्यों का दावा कर रहे थे। पूर्व संस्करण में हमने यह भी देखा कि केंद्रीय एजेंसी फरवरी के दौरान रिपोर्ट पेश कर चुकी थी कि आतंकी प्रवृत्तियां तथा पत्थरबाजी की घटनाएँ कम हुई थी, लेकिन अब इज़ाफ़ा दर्ज किया जा रहा है। इन सब घटनाओं के बाद भी वित्तमंत्री ने अक्टूबर 2017 के दौरान यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि, “जम्मू-कश्मीर में पिछले 8-10 महीनों से पत्थरबाज देखने के लिए नहीं मिल रहे हैं, वे गायब हो चुके हैं। घुसखोरी तथा आतंकी प्रवृत्तियों में नोटबंदी के चलते कमी आई है।” अरुण जेटली का यह बयान पूर्व संस्करणों में दर्ज बयान और दावे से मिलाए जाएं तो फिर स्पष्टीकरण तो ख़ुद उन्हें ही देना बनता था।
नोटबंदी के बाद आरबीआई में 1,000 के 99 प्रतिशत पुराने नोट जमा हुए
नोटबंदी के बाद 1,000 और 500 के कितने पुराने नोट जमा हुए थे उसका कोई एक ही पुष्ट आँकड़ा अब तक नहीं मिल पाया था। वैसे ये भी ग़ज़ब ही था। तक़रीबन एक साल बाद भी यह आँकड़ा कोई बता नहीं रहा था!!! अगस्त 2017 में आरबीआई ने अपने वेबसाइट पर जानकारी देते हुए लिखा कि 1,000 के क़रीबन 99 प्रतिशत नोट जमा हो चुके हैं। इसमें “क़रीबन” लफ्ज़ था यह नोट करें। 30 अगस्त 2017 को आरबीआई ने वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 में बताया कि नोटबंदी के बाद 1000 रुपए के 8.9 करोड़ नोट वापस नहीं आए। आरबीआई ने यह भी बताया कि इस दौरान कुल 99 फ़ीसदी नोट वापस आए, जिनकी वैल्यू 15.44 लाख करोड़ थी। जिसका मतलब साफ़ था कि नोटबंदी के बाद सिस्टम का लगभग सारा पैसा बैंकों में वापस आ गया था। वहीं नोटबंदी के बाद नए नोटों की छपाई पर हुए ख़र्च के बारे में बताया कि इन्हें छापने में अब तक सरकार के 7,965 करोड़ रुपए ख़र्च हुए थे।
यानी कि काला धन जमा होगा वाला दावा धीरे धीरे आधिकारिक रूप से हवा होता जा रहा था। 500 के नोट का किस्सा अब तक बाकी था। लेकिन स्थिति यह थी कि किसी भी मुद्दे पर आँकड़े और बयानों में अबतक “भारी विविधता” रही थी। यानी कि नोटबंदी से जुड़े लगभग तमाम मुद्दों पर कोई एक ही पुष्ट जानकारी अब तक मिल नहीं पाई थी। नोटबंदी के बाद से ही सरकार पर इन आँकड़ों के खुलासे को लेकर दबाव बनाया जा रहा था। जिस पर आरबीआई की तरफ़ से कई बार बयान भी जारी कर कहा गया था कि इन आँकड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं, लेकिन आख़िरकार बैंक ने यह आँकड़े जारी कर दिए।
1000 का नया नोट जारी होगा- आरबीआई, ऐसी कोई योजना नहीं है- वित्त मंत्रालय
नोटबंदी की शुरुआत से लेकर जितने संस्करण देखे, साफ़ पता चलता था कि बयानों और दावों में अंतर हमेशा जारी रहा। इतना ही नहीं, एक ही विभाग या संस्थान या मंत्री के बारी-बारी बयानों में भी विविधता रही थी! अगस्त 2017 के दौरान यह मंज़र फिर एक बार दिखा। आरबीआई के हवाले से या आरबीआई के सूत्रों से मीडिया ने ख़बरें छापी थी कि दिसंबर 2017 तक 1000 का नया नोट आ सकता है। इन नोट का प्रिंटिंग भी जल्द शुरू होगा ऐसा दावा किया गया। मीडिया ने अपनी ख़बरों में लिखा था कि 2000 के नये नोट का प्रिन्टिंग पिछले 6 महीनों से बंद कर दिया गया है। वहीं वित्त मंत्रालय ने बताया कि 1000 के नये नोट लाने की कोई योजना है ही नहीं। अब आरबीआई, वित्त मंत्रालय और मीडिया, इन तीनों के इस दावे का पता तो दिसंबर-17 के आसपास ही पता चलने वाला था। वैसे 200 के नये नोट के भी ऐसे ही दावे हुए थे, जिसे हमने पूर्व संस्करणों में देखा।
अब 100 के नये नोट की ख़बरें सार्वजनिक होने लगी
नोटबंदी लागू होते ही सरकार ने कहा था कि इसकी भनक किसी को नहीं थी। सरकार के इस दावे की हवा-हवाई कई घटनाओं ने कर दी थी। फिर 200 के नये नोट बाज़ार में आए। हमने पूर्व संस्करण में देखा कि इस नोट के बाज़ार में आने से पहले ही इसकी ख़बर और डिज़ाइन बाज़ार में घूमने लगी थी!!! 50 के नोट की जिंदगी भी कुछ कुछ ऐसी ही रही थी! अब बारी थी 100 के नये नोट की! अक्टूबर 2017 में 100 के नये नोट की ख़बरें बाज़ार में छायी रही। बताया गया कि अप्रैल 2018 के बाद आरबीआई 100 के नये नोट जारी करेगा। इन नोटों की छपाई भी इसी माह शुरू होगी ऐसी ख़बरें थीं।
देश का विकासदर गिरा, तीन साल के सबसे निचले स्तर पर
नोटबंदी के दौरान कइयों ने जो आशंका जताई थी वो आख़िरकार सही साबित होती हुई दिखाई दी। भारत के जीडीपी के आँकड़े 31 अगस्त को सार्वजनिक किए गए। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अप्रैल-जून तिमाही के लिए यह आँकड़े पेश किए। इन आँकड़ों के मुताबिक़ जीडीपी में भारी गिरावट दर्ज की गई। भारत की विकास दर अप्रैल से जून की तिमाही में 5.7 फ़ीसदी दर्ज की गई। पिछले साल यानी 2016 की अप्रैल-जून तिमाही में 7.9% फ़ीसदी थी। वहीं जनवरी-मार्च तिमाही में यह दर 6.1 फ़ीसदी थी। आर्थिक विश्लेषकों ने जीएसटी और नोटबंदी को विकास दर में गिरावट को बड़ी वजह बताया।
गौरतलब है कि विकासदर नहीं गिरेगा का राजनीतिक दावा तो नोटबंदी के दौरान कई दफा हुआ था। जिसे हमने पूर्व संस्करणों में देखा। 31 जनवरी 2017 के दिन आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने माना था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची है। 2016-17 में उन्होंने नोटबंदी को देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाला सबसे बड़ा खतरा बताया था। जीडीपी कम नहीं होगी के दावे करने के बाद आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने ही कह दिया था कि जीडीपी 6.5 से 7.5 तक रह सकता है। इस बीच नोटबंदी के दौरान विकासदर का आँकड़ा आया था, जिसमें बताया गया था कि अक्टूबर 2016 से दिसंबर 2016 की तिमाही में जीडीपी 7 प्रतिशत रहा। लेकिन अब पिछले तीन सालों में सबसे कम विकासदर और साथ में आरबीआई द्वारा 99 प्रतिशत पुराने नोट जमा हुए हैं यह कहना, दोनों चीजें पहले से ही जो सवाल उठ रहे थे उसे सही साबित कर गई। लेकिन अब सरकार को अगली तिमाही में अच्छे आँकड़ों की उम्मीद थी। राजनीतिक रूप से राहत की बात थी कि यह चुनाव का मौसम नहीं था।
आरबीआई ने कहा- नोटबंदी से कितना काला धन हुआ ख़त्म, पुख्ता जानकारी नहीं
रिजर्व बैंक ने संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति से कहा कि उसके पास ये जानकारी नहीं है कि नोटबंदी के बाद कितना काला धन ख़त्म हुआ या कितनी अघोषित नक़दी नोट बदलवाने के दौरान वैध हो गई। रिजर्व बैंक का अनुमान था कि 15.85 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकिंग सिस्टम में लौट चुके हैं। रिजर्व बैंक का यह भी कहना था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं है कि निरंतर अंतराल के बाद नोटबंदी किए जाने की कोई योजना है अथवा नहीं।
समिति के सवालों का जवाब देते हुए आरबीआई ने कहा कि प्रमाणिकता और संख्यात्मक सटीकता के लिए सत्यापन अब भी चल रहा है, इसके साथ ही बैंकों द्वारा स्वीकार किए गए 500 और 1000 रुपये के कुछ पुराने नोट अब भी करेंसी चेस्ट में पड़े हैं। केंद्रीय बैंक ने समिति को यह भी बताया कि सत्यापन की प्रक्रिया में समय लगेगा। यह प्रक्रिया पूरी तेजी से चल रही है। आरबीआई ने कहा कि अधिकारी दो शिफ्टों में काम कर रहे हैं। इस काम में अत्याधुनिक मशीनों की मदद ली जा रही है। जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक बैंकों में आए नोटों का अनुमान ही लगाया जा सकता है।
नोटबंदी के बाद 21 हज़ार लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये के काले धन की घोषणा की - सरकार
वैसे नोटबंदी के बाद एक चीज़ स्पष्ट रूप से दिखाई दी। जब-जब आँकड़े मांगे गए तो आरबीआई ने या तो आँकड़े देने से मना किया या कहा कि जानकारी नहीं है! लेकिन मंत्रालय और नेता न जाने कहां से आँकड़े लाते रहे और देते रहे!!! फिर तो आप उस आँकड़े को सच मानते तो कहीं से दूसरा अलग ही आँकड़ा आ जाता! खैर, नोटबंदी की ये गिफ्ट ही मान लीजिए। अब कितना काला धन घोषित हुआ उसका आँकड़ा आया, जबकि आरबीआई को अब तक ये भी नहीं पता था कि कितना काला धन जमा हुआ या जाली नोट जमा हो गए हैं!!!
वैसे ये आँकड़ा बैंकों का नहीं था, बल्कि प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत जमा हुए काला धन का था। सरकार ने बताया कि 21 हज़ार लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये मूल्य के काले धन की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से हटाए जाने की घोषणा के बाद योजना का एलान किया था। सरकार ने इस योजना को कालाधन रखने वालों के लिए बेदाग होने का आख़िरी मौक़ा बताया था। आँकड़े के मुताबिक़, आयकर विभाग ने इन घोषणाओं के ज़रिए कर के रूप में अब तक 2,451 करोड़ रुपये प्राप्त किए। हालाँकि योजना शुरू करते समय उम्मीद जताई गई थी कि पचास हज़ार करोड से ज़्यादा की आय सरकारी तिजोरी में आएगी। लेकिन पीएमजीकेवाई के तहत 21 हज़ार लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये कालाधन की घोषणा की। इस साल 31 मार्च को बंद हुई इस योजना का यह अंतिम आँकड़ा था।
आयकर विभाग को शक, जाने-माने नेता ने जमा किए 264 करोड़ रुपए
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ नोटबंदी के बाद तमिलनाडु के एक नेता द्वारा 264 करोड़ की बेनामी संपत्ति पर आयकर विभाग की नज़र थी। विभाग को शक था कि नेता ने नोटबंदी के 8 नवंबर के एलान से 30 दिसंबर के बीच ही यह रकम सिंगल ट्रांजेक्शन के रूप में की थी। दावा तो यह भी हुआ कि विभाग को यह भी पता चला था कि तमिलनाडु में इस दौरान 240 करोड़ रुपए बैंक में जमा हुए, लेकिन यह रकम जिन 441 खाताधारकों से जुड़ी थी उनका बैंकों के पास कोई स्पष्ट विवरण नहीं था।
नोटबंदी और जीएसटी को लेकर मनमोहन सिंह ने साधा निशाना, बोले- जीडीपी पर पड़ेगा विपरीत असर
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार फिर चेताया कि नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी का जीडीपी पर विपरीत असर पड़ेगा। गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद ही पिछले साल मनमोहन सिंह ने जीडीपी के गिरने की बात कही थी और 2017 में उनका आकलन सही साबित हुआ। इसी लिहाज से तथा एक प्रखर अर्थशास्त्री होने की वजह से उनका बयान यहां शामिल किया जा सकता है। पहले ही नोटबंदी के कारण जीडीपी में दो फ़ीसदी की कमी आने की बात कह चुके मनमोहन ने कहा कि, “86 फ़ीसदी मुद्रा को चलन से बाहर करने और जल्दबाजी में जीएसटी लागू करने से असंगठित और छोटे उद्योगों पर असर पड़ा है। यह 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का 40 फ़ीसदी है।” एक निजी चैनल से बातचीत में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि, “भारत में 90 फ़ीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्र में हैं। 86 फ़ीसदी मुद्रा को चलन से बाहर करने और जल्दबाजी में जीएसटी के क्रियान्वयन में कई खामियां थीं, जो अब सामने आ रही हैं। इनका जीडीपी के विकास पर विपरीत असर पड़ रहा है।”
नोटबंदी मोदी सरकार का ग़ैरज़रूरी साहस था, दुनिया में कही सफल नहीं हुई है नोटबंदी- मनमोहन सिंह
यहां फिर से स्पष्ट हो कि मनमोहन सिंह की काबिलियत के बारे में जो सार्वजनिक चीजें प्रसिद्ध हैं उसी हिसाब से उनके बयानों को यहां जगह मिल पाई है। अन्यथा हमने नोटबंदी वाले तमाम संस्करणों में विरोधी पक्षों के नेताओं के बयानों या दावों को जगह नहीं दी है। कुछ दिन पहले ही नोटबंदी को लेकर बयान देनेवाले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह फिर एक बार नोटबंदी को लेकर बोले। उन्होंने कहा कि, “नोटबंदी ग़ैरज़रूरी साहस था। लैटिन अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछेक राष्ट्रों के अलावा दुनिया के किसी देश में नोटबंदी सफल नहीं हुई है।” उन्होंने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी का साहस आर्थिक व तकनीकी नज़रिये से ज़रूरी था। अगर देश का 86 फ़ीसदी पैसा सिस्टम से चला जाता है तो अर्थतंत्र का गिरना निश्चित ही होता है।” उन्होंने जीएसटी के बारे में कहा कि, “जीएसटी लागू करने में खामियां रही, उपरांत नोटबंदी की समस्याएँ पहले से ही थी। लिहाज़ा अर्थतंत्र में मंदी के बादल है।”
नोटबंदी से मारे, जीएसटी से हारे?
नोटबंदी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था चुनौतियों से जूझ रही थी। सबसे बड़े टैक्स सुधार कहे जा रहे जीएसटी ने गिरे को एक और लात मार दी। नोटबंदी के दिन से फ़ायदे गिना रही सरकार महीनों से बयान दे रही थी कि जो फ़ायदे होने थे उसके लिए वक़्त लगेगा। वैसे भी हर चीज़ के लिए वक़्त तो लगता ही है, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नोटबंदी के भाषण में सच ही कह चुके थे कि इसके फ़ायदे होंगे, लेकिन ग़रीब तबका लंबा इंतज़ार नहीं कर सकता। नोटबंदी से निकलने की कोशिशें जीएसटी ने बेकार कर दी थी। अब सबसे बड़े टैक्स सुधार का फ़ायदा तो जब होना था तब होना ही था, लेकिन नोटबंदी के बाद का इंतज़ार और लंबा हो रहा था।
पहली तिमाही में जीडीपी के 6 फ़ीसदी से नीचे आने के बाद कंपनियों के मुनाफे में गिरावट की ख़बर आई। डीज़ल के दाम बढ़ने से खेती की लागत बढ़ गई। किसान परेशान थे, नौकरियों का पता नहीं चल रहा था, बैंक संकट में घिरे थे। हालाँकि टीवी चैनल लोगों का मनोरंजन हिंदू-मुस्लिम टॉपिक से किये जा रहे थे यह एकमात्र अच्छी ख़बर थी!!! नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था पर कोई बुरा असर नहीं होगा, ये बाला बयान देने वाले वित्तमंत्री सितम्बर 2017 तक बयान देते दिखे कि, “अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देख कर हम जल्द ही कदम उठाएंगे, ताकि रफ्तार लाई जा सके।” बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी फिर एक बार मैदान में आए और कहा कि, “देश की अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ़ जा रही है।” अर्थतंत्र की सुस्ती और जीएसटी के बाद की दिक्कतें नोटबंदी के बाद नयी परेशानियां बन रही थी, जिसे लेकर सरकार बाक़ायदा बैठकें करने लगी थी।
जीएसटी को लेकर व्यापारी तबका अब अपनी परेशानियों को गिनाने में जुटने लगा था। नेटवर्क, तकनीक, विभाग, नियम, जानकारी से लेकर कई सारी अन्य चीजें भी जीएसटी को लेकर कही जा रही थी। जीएसटी रिटर्न और रिफंड का बखेड़ा नयी परेशानी बना था। वहीं कई सारी चीजों के चलते व्यापार सुस्त हो चुका था, जिसमें नोटबंदी के बाद जीएसटी सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा था। उधर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड के दाम आधे हो चुके थे, लेकिन पेट्रोल की क़ीमत 80 के पार जा पहुंची थी। डीजल भी अछूता नहीं था, जिसका असर कृषि पर हो रहा था। नोटबंदी के बाद काला धन से लेकर आतंकवाद समेत कई सरकारी दावे हवा हो चुके थे और अब त्यौहारों का सीजन फिर लौट रहा था, लेकिन बाज़ार सुस्त थे। क़रीब क़रीब एक साल गुज़र जाने के बाद अब जो चीजें सुस्त हो चुकी थी या रुक सी गई थी उसके लिए नये सरकारी प्रयासों का इंतज़ार था, ताकि चीजें पटरी पर लौट सके।
एडीबी ने 2017-18 के लिए भारत का आर्थिक वृद्धिदर घटाया
एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) ने वित्त वर्ष 2017-18 तथा 2018-19 के लिए भारत के आर्थिक वृद्धिदर को घटा दिया। इससे पहले अप्रैल में साल 2017-18 के लिए एडीबी ने 7.40 प्रतिशत का अंदाज रखा था, जिसे कम करके 7.00 कर दिया गया। वहीं 2018-19 का अंदाज 7.60 से कम होकर 7.40 रह गया।
पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा का जेटली पर हमला- नोटबंदी और गिरती अर्थव्यवस्था पर कसा तंज़, गिरती अर्थव्यवस्था पर कहा- हमने भी बहुत समय लिया, यूपीए को अब नहीं दे सकते दोष
मनमोहन सिंह की टिप्पणियां कम थी कि अब सरकार के लिए उनके ही बड़े नेता और पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने तीखी टिपपणियां कर दी। उन्होंने गिरती अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाते हुए एक लेख लिखा। इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे गए लेख में सिन्हा ने लिखा कि, “उनका यह लेख देश के बड़े तबके की तरफ़ से है जिसमें बीजेपी के वे लोग भी शामिल हैं जो कुछ भी बोलने से डरते हैं।” सिन्हा ने लिखा कि, “लोकसभा चुनाव 2014 के नतीजे आने से पहले ही तय हो गया था कि अरुण जेटली ही वित्त मंत्री होंगे ऐसे में उनका लोकसभा चुनाव हार जाना भी आड़े नहीं आया था।” सिन्हा ने लिखा कि, “वह भी वित्त मंत्री रहे हैं और जानते हैं कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है।” सिन्हा ने आगे कहा कि, “ऐसे में जेटली के कंधे पर चार मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी देना भी ठीक नहीं था।” सिन्हा ने जीएसटी को ख़राब तरीक़े से लागू किया गया प्लान बताया। सिन्हा ने लिखा, “केंद्र सरकार कहती है कि गिरती अर्थव्यवस्था के लिए जीएसटी ज़िम्मेदार नहीं है, दरअसल वह ठीक कह रही है। यह सब तो उससे काफी पहले ही शुरू हो गया था।”
यशवंत सिन्हा ने लेख के आख़िर में यह भी लिखा कि, “पीएम नरेंद्र मोदी दावा करते रहे हैं कि उन्होंने ग़रीबी काफी क़रीब से देखी है और वित्त मंत्री बाकी सभी भारतीयों को भी उतने ही क़रीब से ग़रीबी दिखाने के लिए काम कर रहे हैं।” सिन्हा ने लिखा कि, “अगर वह अब भी नहीं बोलेंगे तो यह उनकी राष्ट्र के प्रति जो ड्यूटी है उसके ख़िलाफ़ होगा।”
अपने इस लेख पर दूसरे दिन सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि, “बहुत दिनों से हम जानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ रही थी।” न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बात करते हुए सिन्हा ने कहा कि, “2014 से पहले मैं बीजेपी का प्रवक्ता था, लेकिन जब आर्थिक मामलों की बात आई तो हमने यूपीए सरकार की कार्यप्रणाली को पॉलिसी पैरालिसिस कहा था।” सिन्हा ने कहा कि, “हम इससे पहले की सरकार को दोष नहीं दे सकते क्योंकि हमें अर्थव्यवस्था को सुधारने का पूरा मौक़ा मिला।” सिन्हा ने आगे कहा कि, “आज देश की जनता चाहती है कि रोजगार मिले, पर जिससे पूछो वो यही कहता है कि रोजगार है ही नहीं।” सिन्हा ने कहा कि, “सबसे पहले जो कार्य इस सरकार के पास था वो बैंकों की हालत को सुधार करने का था। लेकिन अभी तक हम लोगों को इसके लिए इंतज़ार करना पड़ रहा है।”
यशवंत सिन्हा के लेख का जवाब सरकार में काम कर रहे उनके बेटे जयंत सिन्हा ने ही दिया। मुझे नहीं पता कि सिन्हा नाराज थे या कौन सी राजनीतिक वजहें थी, लेकिन उनके लेख और बयान को जगह मिलना लाजमी है। क्योंकि वे ख़ुद वित्तमंत्री रह चुके थे तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता भी थे। यशवंत सिन्हा ने एनडीटीवी से कहा कि, “क्या मैं धरने पर बैठ जाता? मैंने पीएम से मिलने के लिए 1 साल पहले मिलने का वक़्त मांगा था जो उन्होंने नहीं दिया। जीएसटी में कई खामिया हैं। हमारी बात कोई सुनने को तैयार नहीं। जीएसटी की खामियों की वजह से छोटे कारोबारी परेशान हैं। जीएसटी लागू करने में भी कई कमज़ोरियाँ हैं। बेटे और पिता तक सीमित सवाल नहीं है। ये सवाल अर्थव्यवस्था को लेकर हैं। इसमें मेरी कोई राजनीतिक मंशा नहीं है। बेटे ने सरकार हित में काम किया मैंने देश हित में।”
नोटबंदी एक बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग स्कीम, सारे काले धन को सफ़ेद कर दिया गया: पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी
नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार घरेलू हमलों से ही घिरी हुई थी। वैसे भी इन दिनों विपक्ष के नाम पर जो दल थे वो तो बेदम ही थे। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के तंज़ अभी ठंडे भी नहीं पड़े थे कि एक और पूर्व मंत्री ने सरकार पर हमला बोला। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने सरकार को आर्थिक मुद्दों पर कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने तो यहां तक आरोप लगाया कि, “केंद्र में ढाई लोगों की सरकार है और यह सरकार विशेषज्ञों की बात नहीं सुनती है।” एनडीटीवी के साथ एक ख़ास मुलाकात में अरुण शौरी ने नोटबंदी पर सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि, “नोटबंदी एक बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग स्कीम थी। इसके तहत बड़े पैमाने पर काले धन को सफ़ेद किया गया। इस बात का प्रमाण ख़ुद आरबीआई ने यह कहकर दिया है कि नोटबंदी के दौरान 99 फ़ीसदी पुराने नोट बैंकों में जमा किए गए।”
अरुण शौरी ने जीएसटी और उसे लागू करने की तरीक़ों पर भी ख़ासी टिप्पणियाँ कीं। नोटबंदी के असर पर पूछे जाने पर पूर्व मंत्री ने कहा कि, “नोटबंदी एक बड़ी मनी लॉन्ड्रिंग की स्कीम थी। सरकार ने सारे काले धन को सफ़ेद कर लिया। इससे भ्रष्टाचार में कमी होने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। असंगठित क्षेत्र पर नोटबंदी का असर पड़ा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की मांग घटी। इससे कंस्ट्रक्शन, टेक्सटाइल सेक्टर पर भी बुरा असर पड़ा था।”
नोटबंदी के बाद बैंकों को 3,800 करोड़ का घाटा हुआ- एसबीआई
मीडिया में छपी रिपोर्ट की माने तो, एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नोटबंदी के बाद पेमेंट सिस्टम में आए बदलावों से बैंकों को जुलाई 2017 तक 3,800 करोड़ का घाटा हुआ था। नोटबंदी के बाद कैशलेस वाला बलून अचानक ही आसमान में उड़ने लगा था। इसके लिए पीओएस मशीन खरीदे गए थे, जिनकी तादाद 28 लाख बताई गई। मार्च 2016 में इनकी संख्या 13.8 लाख थी, जो कि जुलाई 2017 में बढ़कर 28.4 लाख हो गई। बैंकों ने मशीन को लगाने पर काफी पैसा ख़र्च किया, लेकिन उसके अनुपात में प्रॉफिट नहीं आया।
बताया गया कि डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल ज़रूर बढ़ा, किंतु अन्य मूल वजहों से बैंकों को घाटा ही हुआ। अगर ये दावा सच है कि बैंकों को इतना भारी घाटा हुआ था, तब तो ये बात बैंकों से ज़्यादा नागरिकों के लिए चिंता का सबब बन सकती थी। क्योंकि ये किसानों को हुआ घाटा तो नहीं था। वर्ना किसान आंदोलन में फेफड़े फाड़ते और फिर सरकारें लोलीपोप देती। ये तो बैंकों का घाटा था। मुमकिन था कि बैंकों का घाटा उपभोक्ताओं के कंधों पर आनेवाला था। फिर चाहे बैंक इस घाटे का भरपाई करने की कोशिशें करे या फिर स्वयं सरकार।
रद्द हो चुके पुराने नोट जमा कराने के लिए एनआरआई को ज़्यादा समय नहीं दिया जाएगा- सुषमा
सितम्बर 2017 के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यह बात कही। वे अमेरिका दौरे पर थी। पीपुल्स ऑफ इंडियन ओरिजिन के सदस्यों के साथ मुलाकात के दौरान उन्होंने यह स्पष्टता की। सुषमा ने कहा कि जो लोग भारतीय नागरिक हैं, लेकिन नोन-रेसिडेंट इंडियन हैं उन्हें इससे पहले रद्द हो चुके पुराने नोट बदलने के लिए समय दिया गया था, अब उन्हें और वक़्त नहीं दिया जा सकता। गौरतलब है कि विदेशी नागरिकता धारण किये एनआरआई को पुराने नोट जमा करने का वक़्त नहीं दिया गया था।
महज़ भ्रम है भारत की आर्थिक सुस्ती: विश्व बैंक
अक्टूबर माह में विश्व बैंक का यह बयान भारत सरकार को बड़ी राहत दे गया। भारत के आर्थिक विकास में आई हालिया सुस्ती को विश्व बैंक ने महज़ भ्रम मानते हुए कहा कि यह मुख्य रूप से जीएसटी की तैयारी को लेकर अस्थायी रूप से आई रुकावट से पनपी है। लिहाज़ा आने वाले कुछ ही महीनों में आर्थिक विकास रफ्तार पकड़ लेगा। विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा कि, “जीएसटी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है।” अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की सालाना बैठक की तैयारी को लेकर पत्रकारों से बातचीत में किम ने कहा कि, “पहली तिमाही में विकास रफ्तार ज़रूर सुस्त पड़ी है लेकिन हम समझते हैं कि इसकी बड़ी वजह जीएसटी की तैयारी के लिए आने वाली अस्थायी रुकावटें ही हैं। आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर जीएसटी का बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है।” हालाँकि विश्वबैंक की यह टिप्पणी जीएसटी को लेकर थी, नोटबंदी को लेकर नहीं।
नोटबंदी में फ़र्ज़ी कंपनियों से सफ़ेद हुआ कालाधन, पकड़ में आईं हज़ारों कंपनियां
अक्टूबर 2017 के माह में नोटबंदी के दौरान फ़र्ज़ी कंपनियों के ज़रिए बड़े पैमाने पर काले धन को सफ़ेद करने के खेल का खुलासा हुआ। 13 बैंकों ने केंद्र सरकार को फ़र्ज़ी कंपनियों के बारे में जानकारी मुहैया कराई, जिन्होंने नोटबंदी के वक़्त में काले धन को सफ़ेद किया था। सरकार को दी गई जानकारी के मुताबिक़ इन फ़र्ज़ी कंपनियों में से कुछ के 100 से ज़्यादा खाते थे। इन कंपनियों ने नोटबंदी के बाद खातों में करोड़ों रुपया जमा किया था। फिलहाल कथित रूप से ऐसी 5,800 से ज़्यादा कंपनियों के आँकड़े सामने आए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एक कंपनी के 2,134 खातों की भी जानकारी मिली थी। बताया गया कि नोटबंदी से पहले इन सभी कंपनियों के खातों में 22 करोड़ रुपया मौजूद था, जो कि नोटबंदी के बाद 4,573 करोड़ रुपये हो गया था। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पहले ही कहा था कि वो फ़र्ज़ी कंपनियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करेंगे। जेटली ने अगस्त में लोकसभा में कहा था कि फ़र्ज़ी कंपनियों की पहचान नहीं की जा सकी है। वित्तमंत्री ने ये भी कहा था कि इनकी पहचान होने के बाद इन कंपनियों के ख़िलाफ़ बेनामी और इनकम टैक्स क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
अर्थतंत्र निराशावाद जोन में प्रवेश कर चुका है- रिजर्व बैंक का सर्वे
रिजर्व बैंक ने सैकड़ों सर्वे किये थे, जिससे मालूम होता था कि इन दिनों अर्थतंत्र निराशावाद जोन में प्रवेश कर चुका था। उपभोक्ताओं का भरोसा कम हो रहा था, मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में व्यापार की संवेदना कम होती जा रही थी, महंगाई में इज़ाफ़ा हो रहा था तथा विकास की रेल पटरी छोड़ रही थी। ये किसी और का नहीं बल्कि स्वयं आरबीआई का सर्वे बताता था। आरबीआई ने कहा कि देश की वर्तमान आर्थिक परिस्थिति के बारे में परिवारों की धारणाएँ निराशावादी है। आरबीआई का यह सर्वे पीएम के उस बयान के बाद मीडिया में छपा था जिसमें पीएम ने घर से उठ रही आवाज (यशवंत सिन्हा या अरुण शौरी) के बाद भाषण देते हुए कहा था कि कुछ निराशावादी लोग देश को नुक़सान पहुंचा रहे हैं। अब ख़ुद आरबीआई अपने सर्वे में निराशावाद का ज़िक्र कर रहा था, तो क्यां पीएम के साथ संमत होकर मान लिया जाए कि आरबीआई भी निराशावादी है और देश को नुक़सान पहुंचा रहा है?
फिर एक बार चुनावों का दौर आया, चुनावी सफलता से फिर निकलना था किसी योजना की सफलता-असफलता का नतीजा
ज़्यादातर तो एक चीज़ सुनी कि स्वयं पीएम 50 दिनों बाद आपके सपनों का भारत होगा जैसे कुछ अधिक उत्साही भाषण ना देते और कुछ ज़्यादा ही विवादित दावे ना करते तो नोटबंदी के बाद इतना विरोध या नाराजगी ना होती। नोटबंदी या जीएसटी से जो चीजें बदलनी थी वो तो बदलेगी ही। जब बदलनी है तभी बदलेगी। किंतु सरकार यदि ज़रूरत से ज़्यादा उत्साही ना बनती और भाषणों में अधिक ऊंचे दावे ना किये जाते तो स्थितियां कुछ और होती। वैसे नोटबंदी हो या जीएसटी हो, उसके जितने फ़ायदे हैं वो तो होंगे ही। पहले से कहा जा रहा है कि इसके परिणाम लंबे समय बाद ही मिलेंगे। किंतु फ़ायदे जितने होने हैं उतने ही होते हैं। हमने नोटबंदी से संबंधित पहले संस्करण से ही देखा है कि जितने फ़ायदे हैं उससे अधिक या बहुत ही अधिक दावे किए गए ये अप्रत्याशित राजनीति ही थी। दूसरे ही दिन से देश बदल जाएगा वाला हौवा (हउआ) और वहां से लेकर नोटबंदी से न जाने क्या क्या हल या ख़त्म होने के दावे, दरअसल सवाल दावों से ही उठे होंगे। वैसे जब सब ठीक होना है तब होगा ही। ये भी सच है कि जब सारी चीजें ठीक या ठीक के क़रीब भी होगी, भाषण और वो तमाम दावे फिर एक बार होलसेल में आसमान से उतरेंगे। रही बात नीतियाँ, मुद्दे, आर्थिक सवाल वगैरह वगैरह की... सरकार कोई भी हो, कोई नहीं चाहता कि उनसे सवाल पूछे जाए।
ज़्यादातर तो एक चीज़ सुनी कि स्वयं पीएम 50 दिनों बाद आपके सपनों का भारत होगा जैसे कुछ अधिक उत्साही भाषण ना देते और कुछ ज़्यादा ही विवादित दावे ना करते तो नोटबंदी के बाद इतना विरोध या नाराजगी ना होती। नोटबंदी या जीएसटी से जो चीजें बदलनी थी वो तो बदलेगी ही। जब बदलनी है तभी बदलेगी। किंतु सरकार यदि ज़रूरत से ज़्यादा उत्साही ना बनती और भाषणों में अधिक ऊंचे दावे ना किये जाते तो स्थितियां कुछ और होती। वैसे नोटबंदी हो या जीएसटी हो, उसके जितने फ़ायदे हैं वो तो होंगे ही। पहले से कहा जा रहा है कि इसके परिणाम लंबे समय बाद ही मिलेंगे। किंतु फ़ायदे जितने होने हैं उतने ही होते हैं। हमने नोटबंदी से संबंधित पहले संस्करण से ही देखा है कि जितने फ़ायदे हैं उससे अधिक या बहुत ही अधिक दावे किए गए ये अप्रत्याशित राजनीति ही थी। दूसरे ही दिन से देश बदल जाएगा वाला हौवा (हउआ) और वहां से लेकर नोटबंदी से न जाने क्या क्या हल या ख़त्म होने के दावे, दरअसल सवाल दावों से ही उठे होंगे। वैसे जब सब ठीक होना है तब होगा ही। ये भी सच है कि जब सारी चीजें ठीक या ठीक के क़रीब भी होगी, भाषण और वो तमाम दावे फिर एक बार होलसेल में आसमान से उतरेंगे। रही बात नीतियाँ, मुद्दे, आर्थिक सवाल वगैरह वगैरह की... सरकार कोई भी हो, कोई नहीं चाहता कि उनसे सवाल पूछे जाए।
फिर एक बार चुनावों का दौर था। हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। चुनावी सफलता से फिर एक बार किसी योजना की सफलता-असफलता का नतीजा राजनीति निकालने वाली थी!!! अर्थतंत्र के सामने राजतंत्र फिर एक बार टक्कर लेने वाला था। सत्तादल हो या विरोधी दल, अर्थतंत्र के पेचीदा सवाल-जवाब के फेरे में लोगों को घुमाना नहीं चाहते होंगे। क्या पता उस पेचीदगी से उन्हें ही परहेज़ हो या फिर वे लोगों की कुछ ज़्यादा ही फिक्र किया करते हो। अर्थतंत्र की सुस्ती या कथित कमज़ोरियाँ एक न एक दिन तो ठीक होने ही वाली थी। देखना यह था कि इसके लिए कितना वक़्त लगेगा या कितने ठोस सरकारी प्रयास होंगे। देखा तो यह भी जानेवाला था कि इस दौरान सरकार का सार्वजनिक वार्तालाप तथा सार्वजनिक दावे कितने नियंत्रित या अनियंत्रित रहने थे। क्योंकि वार्तालाप या दावों से ही धारणाएँ बंधती हैं, धारणाओं से नागरिकी सपने पनपते हैं और फिर ज़रूरी व ग़ैरज़रूरी सवाल उठ खड़े होते हैं।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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