नये साल की शुरुआत में ही ऐसी नकारात्मक बात वाला लेख। अच्छा नहीं लगेगा। हैरानी होगी। बेतुका भी लगेगा। यूँ कहे कि काल्पनिक और अतिरेक वाला तत्व दिखेगा। खैर, लगना है तो लगे फिलहाल, किंतु अंत में किसी की भी जिंदगी को गहरे जख्म ना लगे यही कामना करता है यह लेख।
यूँ तो इस साल की शुरुआत में भारत और दूसरे राष्ट्र कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर बात कर रहे हैं। कुछ देशों में वैक्सीन आ चुकी है, लग रही है, कहीं आने वाली है, लगने वाली है। और इधर हम कुछ दूसरी बात कर रहे हैं। इसलिए फिलहाल तो आप इसे महज अतिरेक कल्पना से लबालब लेख मानकर नजरअंदाज कर देंगे यह भी पता है। क्योंकि जब देश में और देश के आसपास जो दूसरे देश हैं वहाँ भी कोरोना वायरस को लेकर चिंता कम है, तो फिर ऐसे लेख बेतुके और काल्पनिक ही लग सकते हैं।
हम बार बार कह रहे हैं, साल की शुरुआत में
फिर एक बार कहते हैं। दो चीजें महत्वपूर्ण हैं। पहली, कोरोना वायरस एक महामारी
है और इसका इलाज विज्ञान के पास है, धर्म के पास नहीं है। दूसरी बात, नारों से चुनाव जीते
जा सकते हैं, वायरस को नहीं।
कुल मिलाकर, एक तबका यह मानता
है कि सबूत नहीं है, लिहाजा रोग नहीं है। दूसरा तबका यह मानता है कि सबूत नहीं भी हो, रोग तो है ही। एक
तबका लॉकडाउन को बेहतर उपाय मानता है, दूसरा तबका मानता है कि लॉकडाउन अस्थायी
और सर्वप्रथम तरीका मात्र है, उपाय नहीं है। एक तबका मानता है कि लोगों को अलग थलग किया जाएगा तो वायरस का प्रभाव
कम होगा। दूसरा तबका मानता है कि बिना संपूर्ण और सही टेस्टिंग के अलग थलग करेंगे कैसे? एक तबका मानता है कि
दो गज की दूरी से हम वायरस को हरा देंगे, दूसरा तबका मानता
है कि एक ही उपाय है, और वो है ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग, सही इलाज और जल्दी
से जल्दी वैक्सीनेशन कर के सुरक्षा चक्र को थोड़ा और सख्त बनाना।
वैज्ञानिकों का समूह चिंता जता रहा है, लेकिन उनकी चिंताओं
पर कोई चिंतित ही नहीं है। फालतू व्हाट्सएप मैसेज को गंभीरता से लेने वाले लोग वैज्ञानिक
क्या कह रहे हैं वह पिछले करीब एक साल से सुन ही कहाँ रहे हैं! रही बात सरकार की, वह अपनी ही सुन रही
है, किसी और की नहीं!
ज्यादातर विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की राय
यही आ रही है कि कोराना वायरस यूँ ही नहीं जाएगा, वह लंबे समय तक मानव
सभ्यता के बीच किसी न किसी रूप में मौजूद रह सकता है। लेकिन इससे घबराने की भी ज़रूरत
नहीं है। बहुत सारे वायरस अब भी हमारे बीच मौजूद हैं, जिनके साथ हम जी रहे
हैं। यूँ तो कुछ शोध की माने तो कोरोना वायरस पुराना है, नया नहीं है। किंतु
उसने जिस तरह से अपने नये रंग और रूप के साथ हमले किए, उसे समझने में मानव
सभ्यता को कुछ तो वक्त लगेगा। आज की स्थिति में लापरवाही भारी पड़ सकती है। क्योंकि
आज की स्थिति में वह अब भी अबूझ पहेली है। यह मौसमी बीमारी बनकर रह जाएगा, कुछ अध्ययन यह भी
कहते हैं। यानी, पैनडेमिक की स्थिति से एनडेमिक तक पहुंचना।
Social Plugin