मौतों के तांडव के बीच निर्मम चुनावी स्नान। एक तरफ राज्यों में लोग बिना
एम्बुलेंस के, बिना ऑक्सीजन के, बिना बेड के, बिना इलाज के, बिना दवा के जानवरों
की तरह एक के बाद एक मर रहे थे, उधर मोदी-शाह की अगुवाई में नेता चुनावों में एक
दूसरे के साथ मिलकर लाशों के बीच अठखेलियाँ कर रहे थे। ये लोग चुनाव में आगे बढ़ते
गए, पीछे लाशें छोड़ते गए। इतना निर्मम, बेशर्म, निठल्ला, कर्मविहीन, कर्तव्यविहीन,
नकारा, ढीठ नेतृत्व आजाद हिंदुस्तान में शायद ही देखने के लिए मिला हो। लोग मरते
रहे, वे चुनाव लड़ते रहे!!! नारों के शौकीन मिजाजी प्रधानमंत्री जान है तो जहान है का नारा देकर खुद ही
साबित करते रहे कि जान है तो जहान है, लेकिन चुनाव में ही तो बसी मेरी जान है!!!
पढ़ना रुक सकता है, काम पर जाना रुक सकता है, संसद रुक सकती है, लेकिन चुनाव
नहीं!!! किसानों को आंदोलनजीवी कहने वाले पीएम मोदी भारत के सबसे बड़े चुनावजीवी
प्रधानमंत्री साबित हो चुके हैं। लोगों को बोला जा रहा था कि स्वैच्छिक लॉकडाउन
कीजिए, लेकिन खुद चुनावी रैलियां करना नहीं छोड़ रहे थे!!! ख़ुद ही हजारों
लाखों की भीड़ इक्ठ्ठा करो, बिना मास्क के मंच पर दिखो और फिर शाम को टीवी पर आकर
देश के सामने उपदेश की बकैती करो!!! गजब के चुनावजीवी प्रधानमंत्री मिले हैं!!!
हमें वोट दे दो, हम मुफ्त वैक्सीन देंगे!!! महामारी के बीच बिहार से इस तरह की निहायती ओछी राजनीति की
घोषणा महानायक मोदी ने की थी! फिर अंत में पश्चिम बंगाल में भी इस तरह की ओछी हरकत को अंजाम दिया! मुफ्त वैक्सीन
देंगे...। हालात यह कि दो बूँद ऑक्सीजन नहीं दे सके!!! रही बात वैक्सीन की, वैक्सीन की किल्लत से पूरा देश जूझ
रहा है। मुफ्त वैक्सीन देने का जुमला देनेवाली मोदी सरकार को आज हर रोज किसी न
किसी राज्य की अदालत ऑक्सीजन नहीं दे पाने को लेकर कटघरे में खड़ा कर रही हैं!!!
पुलवामा जैसे आतंकी हमले के बाद भी जिन्होंने चुनावी रैलियों का मोह नहीं
छोड़ा हो वे, यानी मोदी-शाह
समेत उनके जैसे दूसरे नेता अपनी चुनावजीवी प्रवृत्ति को कैसे अलविदा कह देते भला? स्कूल बंद, कॉलेज बंद, एग्जाम कैंसिल, शिक्षा का काम रुका हुआ, लेकिन इनके चुनाव प्रचार की भूख नहीं रुकी! जान है तो जहान है... लेकिन चुनाव में ही तो बसी मेरी जान
है!!!
लोगों ने इन दिनों करोड़ों का जुर्माना भरा होगा मास्क नहीं पहनने को लेकर। लेकिन
मोदी हो या अमित शाह, बिना मास्क के भीड़ के बीच जाते रहे! वैसे मास्क के
साथ इनके फोटू मिल जाएँगे, लेकिन बिना मास्क की जिंदगी इन्होंने ज्यादा बिताई थी। 2020
में अपने ही टैरेस पर पकोड़े बना रहे लोगों को पुलिस ड्रोन की मदद से पकड़ कर जेल
भेज रही थी! 2021 में बीच शादी से दूल्हे को उठाकर जेल भेज रही है, थप्पड़ जड़ रही है! मोदी-शाह समेत
नेता लोग बिना मास्क के चुनावी रैलियां कर रहे थे, उनके राज्यों के पार्टी प्रमुख
तक बिना मास्क के दिनभर प्रचार के लिए घूमते रहते थे और उधर लोगों को कार के अंदर
अकेले हो तब भी मास्क लगाना अनिवार्य किया जा रहा था! यूपी में तो पहली
बार मास्क के बिना पकड़े गए तो एक हज़ार और दूसरी बार धरे गए तो दस हज़ार का
जुर्माना! इधर देश का नायक, जो 2020 के लॉकडाउन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी मास्क
पहनकर करता था, वो उसके बाद से लेकर अब तक, बिना मास्क के हजारों की भीड़ के सामने
जुमलों की कलाएँ बिखेर रहा हैं!!!
जगह-जगह चुनाव हुए, उपचुनाव हुए, हजारों-लाखों की भीड़ इक्ठ्ठा हुई। वो दिन भी आया जब लोग जानवरों की तरह मर
रहे थे और देश के नायक मोदी ने चुनावी सभा में भारी भीड़ देखकर कहा था कि आपने तो
मुझे गदगद कर दिया, इतनी भारी संख्या
में आने के लिए धन्यवाद!!! ये वो दिन थे जब 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के बीच लोग जानवरों की तरह मर
रहे थे। ऐसी ऐतिहासिक त्रासदी के बीच देश का नायक हजारों की भीड़ देखकर खुश होता
है, कहता है कि जहां देखूं वहां तक भीड़ ही भीड़ है, ऐसी भीड़ तो मेरी किसी रैली
में नहीं रही है। और वही नायक शाम को दिल्ली पहुंचकर देश को उपदेश देता है कि बिना
काम बाहर ना निकले, भीड़ ना करे, दूरी रखे वगैरह वगैरह!!!
लोगों का भी अजीब फंडा रहा, जैसा इन नेताओं का रहा। तभी तो कहा गया कि चुनाव घोषित कर दो, कोरोना भाग जाएगा। इस तंज में नेताओं के साथ साथ हम नागरिकों की गधापंति पर भी
निशाना है। लेकिन हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यह भी एक सच ही है।
सीआर पाटील, जो गुजरात भाजपा
के प्रदेश अध्यक्ष हैं, महीनों से लॉकडाउन
की धज्जियाँ उड़ा रहे थे, नियमों को कुचल
रहे थे, शहर-शहर जाकर भीड़
इक्ठ्ठा कर रहे थे, गांव-गांव जाकर
चुनावी जीत का मंथन कर रहे थे, फोटो सेशन कर रहे थे और अंत में इंजेक्शन वाले कथित घोटाले में लिप्त पाए गए।
इन दिनों कोई मोदी सत्ता की इस सामाजिक गुनाहखोरी-अपराध पर कुछ नहीं बोला है
तो इसका मतलब यह नहीं है कि लोग मरते रहे और वे चुनाव लड़ते रहे वाला काम बैकुंठ
उत्थान जैसा था। जिनको बोलना चाहिए वे क्यों नहीं बोले यह सबको पता है। सरकार की
रचना है यह मौत का तांडव। कुछ चिताएँ जलती हैं तो जलने दो...। बढ़ाने थे
अस्पताल... बढ़ा ली दाढ़ी। जान है तो जहान है... लेकिन चुनाव में ही तो बसी मेरी
जान है।
भारत में कई बार चुनाव टाले गए हैं। आपदा की स्थितियों में अनेकों बार चुनाव
स्थगित हो चुके हैं। यहां तक कि किसी उम्मीदवार की असमय मौत के बाद भी चुनाव टाले
जा चुके हैं। भारतीय संविधान में इस तरह की व्यवस्थाएँ हैं। समय से पहले या समय के
बाद, चुनाव कराए जा चुके हैं भारत में। लेकिन इस बार मोदी के मुँह से बस प्रचार की
आवाज निकलती है, और कुछ नहीं! चुनाव चाहिए, भले सैकड़ों लोगों को मौत के मुँह में धकेलने की नौबत आए! लोग नहीं समझते
ये दलील काम की नहीं है, क्योंकि नायक खुद
ही आंखें मूंद कर समूचे देश को जोख़िम में डालने का नैतिक-सामाजिक अपराध किए जा
रहा था!
मध्यप्रदेश में दमोह सीट पर कोरोना की दूसरी सुनामी के बीच चुनाव की सनक सिर
पर सवार थी। एक सीट का उपचुनाव था। एकाध महीने देर से होता तो आसमान नहीं टूटने
वाला था और ना ही भारत का लोकतंत्र ख़तरे में आनेवाला था। जब गैरकानूनी तरीके से
महीनों तक किसी जगह राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है तो फिर एक सीट का उपचुनाव
क्यों रोका नहीं जा सकता? केवल पश्चिम बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी जैसे राज्य ही नहीं,
गुजरात-राजस्थान-मध्यप्रदेश से लेकर अनेक राज्यों में नगर निगम, पंचायत से लेकर ऐसे उपचुनाव साल भर से होते गए और तमाम नियमों को बिना ऑक्सीजन
के मारा गया।
जब दुनिया ने कोरोना से लड़ना शुरू कर दिया था तब हम लाखों की भीड़ इक्ठ्ठा
करके विदेशी नायक का चुनाव प्रचार हमारे यहां कर रहे थे! तब हम कहीं सरकार
गिरा रहे थे, कहीं सरकार बना रहे थे! 2020 में देश ने फिर एक बार सब कुछ सह कर, सिसकते सिसकते हुए इन्हें तीन महीने दिए थे, लेकिन इन्होंने उस समय दिया-बाती-थाली-नारों के सिवा कुछ नहीं किया! करीब करीब एक साल
मिला इन्हें, लेकिन ये लोग
आत्ममुग्ध वाली स्थिति को घारण करके चुनाव प्रचार-प्रसार, सरकार बनाना-गिराना में जुटे रहे!
यूपी पंचायत चुनाव में कथित रूप से जिन 700 शिक्षकों की कोरोना संक्रमण के
चलते मौतें हुई वह घटना उस सोच को आईना दिखाती है, जिसे हम सालों से पाल रहे हैं, जिसके लिए हम दिन-रात पागल हुए जा रहे हैं। और 700 का आंकड़ा तो शिक्षकों का
है। पंचायत चुनाव में धकेले गए दूसरे सरकारी कर्मचारियों का आंकड़ा भी इसमें
जोड़ना चाहिए, जो शायद इस सात सौ वाले आंकड़े से बड़ा ही होगा। जिस तरह मद्रास
हाईकोर्ट ने कहा था कि जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां मौतों के लिए चुनाव आयोग
जिम्मेदार है, इन पर तो हत्या का
मामला चलना चाहिए, वैसे ही हमें यह
भी लगता है कि 700 शिक्षकों की कथित मौत केवल मौतें नहीं है, बल्कि सैकड़ों शिक्षकों का एक तरीके से हत्याकांड है। अंत सभी को पता है कि
किसी न किसी बहाने से, तरीके से, दलीलों से और जांच-वांच और रिपोर्ट के जुमले से इस हत्याकांड को हैंडल किया
जाएगा।
जब पिछले साल ये लोग
कोरोना पर विजय की मूर्ख प्रक्रियाएँ निभा रहे थे, जश्न मना रहे थे, तब भी विशेषज्ञ देश
को चेता रहे थे, सरकार को चेता रहे थे, बतला रहे थे कि असली
इम्तेहान अभी आनेवाला ही है। मेरे जैसे ब्लॉगर भी लंबा-चौड़ा लिखकर अगली लहर के
बारे में बता रहे थे। जब ये जानलेवा संकट आ रहा था या आने की आशंका थी, तब ये कहाँ थे? तब ये सो रहे थे, कुंभकर्ण की तरह। नहीं, शायद हम ग़लत कह रहे
हैं। ये सो नहीं रहे थे। ये अपने अंहकार में डूबे थे, आत्म मुग्धता के
समुद्र में डुबकियाँ लगा रहे थे,
अपनी
बेवक़ूफ़ी के दलदल में हँस रहे थे। और चुनाव लड़ रहे थे, कहीं पर सरकार बना
रहे थे,
कहीं
पर गिरा रहे थे। कोई बेवकूफ ही यह कह सकता है कि उसने कोरोना पर विजय पा ली है।
मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो किसी की नहीं सुनते। पीएम को सुनकर काम करना
होता है। लेकिन मोदी खुद को सर्वज्ञानी मानते हैं! देश में कोई भी चीज़ हो, मोदी हर चीज़ में खुद को ज्ञानी
मानते हैं। अलग अलग मंत्रालय होते हैं, अलग अलग विभाग होते हैं, समितियाँ होती हैं,
विशेषज्ञ होते हैं, बहुत बहुत बहुत कुछ होता है। ये सब इसलिए होता है कि इनके
सहारे प्रधानमंत्री प्रभावी ढंग से काम कर सकें। लेकिन ये तो किसी की नहीं सुनते! मोदी सत्ता ने
कोरोना पर विजय की घोषणा पिछले साल ही कर दी थी। ठीक उसी समय इसी मोदी सत्ता को
चीख कर, लिख कर बताया जा
रहा था कि संभल जाइए, संसाधन बढ़ाइए, तैयारियां फिर से शुरू कीजिए, अगली लहर ज़रूर आएगी, जिसका संक्रमण दर
अधिक होगा। संसद की स्टैंडिंग कमिटी की उस सलाह को भी नज़रअंदाज़ कर दिया जिसमें
तैयारी बनाए रखने की बात कही गई थी। पिछले साल संसदीय समिति ने सरकार से मेडिकल
ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने को कहा था। सरकार ने उस पर कान नहीं दिया! वैज्ञानिकों के
समूहों की चेतावनी को घोल कर पी गए ये लोग!!!
मन की बात... राष्ट्र के नाम संबोधन के जरिए अनर्गल प्रलाप... और चुनावी
जिंदगी। इनके लिए यह चीजें ही मायने रखती है। पंचायत स्तर के चुनाव तक में चले
जाने वाले प्रधानमंत्री पुलवामा हमले के दिन भी रैलियां कर लेते हैं! कोरोना की वजह से
पिछले करीब 1 साल से देश लगभग लगभग रुका हुआ है। इस 1 साल में मोदीजी ने
रैलियां-चुनावी प्रचार-जुमले-भीड़ इक्ठ्ठा करना इन चीजों के सिवा देश को कुछ नहीं
दिया है।
जब कोरोना की दूसरी लहर सुनामी बनकर टूटी तो मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री
कहने लगे कि लोग लापरवाह हो गए थे। बताइए, महानायक और उनका सेनापति खुद लापरवाह
होकर महीनों से राज्यों की खाक छान रहे हैं चुनावी जीत के लिए, इनका पूरा
मंत्रीमंडल-राज्यों के मंत्री विधानसभा चुनावों में भीड़ इक्ठ्ठा कर के नियमों की
धज्जियाँ उड़ा रहे हैं, इनके गृहराज्य गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष राज्य के शहर-शहर,
गाँव-गाँव जाकर लोगों को बाहर बुलाकर चुनावी सभाएँ कर रहा है... लेकिन लापरवाह तो
लोग हैं!!! देखा जाए तो है भी। तभी तो लापरवाह को भी वाह वाह कहते हुए नहीं थकते। खैर,
लेकिन स्वास्थ्य मंत्री को एकाध दिया इस बात पर भी जलाना चाहिए था कि कुंभ मेला,
चुनावी रैलियां ये सब कोरोना भगाता है क्या? लोग लापरवाह हो चुके थे, लेकिन सरकार तो गुनहगार साबित हो
चुकी है।
दिसंबर 2019 से विशेषज्ञ भारत समेत कई देशों को चेता रहे थे, फरवरी 2020 में
डब्ल्यूएचओ ने चेताया, लेकिन इन्होंने
मार्च तक उत्सवों की अपनी सनक को नहीं छोड़ा!!! पेट्रोल पंप, सॉरी, डोनाल्ड ट्रंप
वाला जश्न सबको याद होगा। उन दिनों कहीं पर सरकार गिराने का काम जारी था, कहीं पर सरकार बनाने का!!! ये वो दिन थे जब दुनिया के कई देश खुद को बंद कर रहे थे और तब मोदी सत्ता लाखों
की भीड़ इक्ठ्ठा करके जश्न की दुनिया में डूबी हुई थी!!! और मोदी सत्ता के
अपराध बदस्तूर जारी रहे। अवतार और अलगारी ने जमकर वाट लगा दी।
बहुत ही लंबे और ज्यादातर तो बेकार लॉकडाउन के पश्चात अगस्त 2020 के दौरान
मध्य प्रदेश में कोरोना के कहर के बीच अफ़सर लोग बीजेपी और सिंधिया, दोनों के मेगा
शो से परेशान हो रहे थे। इन दिनों राज्य में कोरोना का कहर जारी था और इधर सिंधिया के अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव
कैलाश विजयवर्गीय के बेहद करीबी इंदौर के बीजेपी विधायक रमेश मैंदोला भी गणेश
पंडाल के लिए ‘जिद’ पर अड़े थे।
सदस्यता अभियान जोरो-शोरो से शुरू किया जा रहा था इन दिनों!!! मेगा शो में केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी
प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा समेत प्रदेश के कई बड़े नेता शामिल हुए। लाजमी है कि
स्वयंभू महानायक मोदी और बूथ मैनेजर शाह, दोनों की इजाज़त से ही हो रहा होगा।
क्योंकि सभी कहते हैं कि मोदी-शाह की इच्छा के बिना बीजेपी तो क्या, अब तो संघ में
भी कुछ हो नहीं पाता। उन सभी 16 इलाकों में चुनाव प्रचार हेतु भीड़ लेकर बीजेपी
नेता चले गए, जहाँ उपचुनाव होना था! देश
का महानायक इन दिनों कोरोना संक्रमितों के आंकड़े की चिंता करने के बजाय कितने
कांग्रेसी को तोड़ा गया, कितने सदस्य बने, इसी आंकड़ों के साथ खेल रहा था!!!
दूसरों से सवाल ना करें, क्योंकि कोरोना के
मौत के तांडव के बीच, जब समूचा भारत
ऐतिहासिक त्रासदी की उच्चतम पीड़ा को झेल रहा था, अपनों को मरते देख
रहा था,
पूरे
के पूरे परिवार खत्म हुए जा रहे थे, देश के महानायक मोदी
ने 18 अप्रैल 2021 को पश्चिम बंगाल आसनसोल रैली में भारी भीड़ के सामने कहा था कि
मैं पहली बार ऐसी अभूतपूर्व भीड़ देख रहा हूं, आप उत्साह बढ़ा रहे
हैं,
मैं
अभिभूत हूं। भारी हुजुम देख गदगद हुए पीएम शाम को दो गज की दूरी वाला उपदेश देने
में किसी प्रकार का संकोच नहीं रखते।
हम जो बात चल रही थी उस
पर लौटते हैं। सिंधिया समेत एमपी बीजेपी के दिग्गज जब उज्जैन पहुंचे तो पाबंदियों के बावजूद
समर्थकों का हुजूम उमड़ पड़ा और कोरोना के प्रोटोकॉल की फिर एक बार हत्या कर दी गई।
सोशल डिस्टेंसिंग की भी जमकर धज्जियाँ उड़ी। एमपी के अफ़सर और वहां का स्वास्थ्य
विभाग इसी परेशानी में रहा कि जहां जहां बीजेपी का चुनावी रथ पहुंच रहा है वहां
वहां प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ रही है उसका क्या करे? नोट यह भी कर ले कि इन दिनों एमपी की जनता ही नहीं
बल्कि एमपी के छह मंत्री भी कोरोना से संक्रमित हो चुके थे। मंत्रियों के अलावा
दर्जन भर विधायकों को कोराना हुआ था। अफ़सर भी काफी संख्या में संक्रमित हो चुके
थे। किंतु महानायक मोदी के चुनावी उत्साह से निबटने का साहस किसी में कैसे आता भला?
एमपी के कदावर नेता और
मंत्री नरोत्तम मिश्रा तो बाकायदा एलान कर चुके थे कि वह मास्क नहीं लगाएँगे!!! उधर दिनभर भीड़ इक्ठ्ठा करके शाम को टेलीविजन पर आकर
महानायक मोदी जनता को मास्क लगाने का उपदेश बाँट रहे थे!!! विवादों का पिटारा खुलने के बाद मिश्राजी ने मास्क
का स्वीकार किया था।
एमपी में मोदी की मंडली
ने जिस तरह से कोरोना नियमों का उल्लंघन किया उसका विरोध करने के लिए वहां
कांग्रेस सड़कों पर उतरी। और उसने भी विरोध करते करते कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन
किया!!! मोदी-शाह की रहम नजरों
के तले एमपी में कोरोना के कहर के बीच यह चुनावी खेल 2021 की कोरोना सुनामी के बीच
भी दमोह उपचुनाव तक जा पहुंचा।
कोरोना की दूसरी सुनामी
के बीच मध्य प्रदेश में भी सब कुछ बंद था, लेकिन दमोह उपचुनाव और चुनाव में
प्रचार-प्रसार धड़ल्ले से, बेरोकटोक हुआ। केवल एक सीट का उपचुनाव था, रोक देते तो
लोकतंत्र पर बिजली नहीं गिरने वाली थी, आसमान टूटनेवाला नहीं था। लेकिन सब कुछ बंद
हो सकता है, एक सीट का चुनाव रुक नहीं सकता!
अभी तो चुनाव लड़ना है, कोरोना से बाद में लड़ लेंगे!!! सीएम शिवराज सिंह ने ट्वीट कर कार्यकर्ताओं से कहा
था कि चुनाव में अब केवल आठ दिन बचे हैं, पूरी ताकत बीजेपी को जिताने में लगा दो, घरों
से बाहर निकल जाओ, यह चुनाव आपको ही लड़ना है, जिस बूथ पर बीजेपी सबसे अधिक
वोट से जीतेगी, वहां सबसे पहले मैं आऊंगा। सोचिए, सीएम का यह
ट्वीट... पीएम का राष्ट्र के नाम संदेश वाला टाइम पास... उनकी और शाह की राज्यों
में तामझाम वाली चुनावी रैलियां... बिना इलाज के तड़पते-भटकते-मरते लोग।
एमपी की बात है तो यह ना
माने कि एमपी में ही यह हो रहा था। जहां जहां इस साल चुनाव थे और अगले साल, यानी
2021 में, चुनाव होने वाले थे, तमाम जगहों पर चुनावजीवी प्रधानमंत्री मोदी और बूथ
मैनेजर शाह की अप्रत्यक्ष रजामंदी से इसी तरह बीजेपी और उनके नेता कोरोना के सुपर
स्प्रेडर बने हुए थे। गुजरात में भी इन दिनों यही चल रहा था। गुजरात में भी चुनाव
के चलते बीजेपी के नेता रैलियां कर रहे थे, भीड़ इक्ठ्ठा कर रहे थे! यहां बीजेपी के नेता सोशल डिस्टेसिंग को तोड़ने के
साथ साथ भीड़ में गरबा खेलते भी नजर आए!
गुजरात प्रदेश अध्यक्ष
सीआर पाटील ने पिछले साल 2020 से इस साल 2021 तक जो किया वो वाकई चौंकाता है। अगर
कोरोना नियमों को रोंदने वाले नेताओं-राज्यों की सूची बनाई जाए तो गुजरात बीजेपी और
प्रदेश अध्यक्ष सबको पीछे छोड़ सकते हैं। सीआर पाटील ने सारी हदें पार कर दी थी। ऐसा
व्यक्ति अगर प्रदेश अध्यक्ष हो सकता है और वो एक ही दिन में अनेक शहरों में जाकर
बार-बार और लगातार कोरोना नियमों का उल्लंघन बेखौफ होकर करता रहता है, तो इसके
पीछे मोदी-शाह की चुनावी लालसा की ही कृपा हो सकती है। इन दिनों सीआर पाटील ने
गुजरात भर में चुनावी प्रचार किया, रैलियां की, समारोह किए। वो गुजरात के शहर-शहर,
गाँव-गाँव चुनावी प्रचार हेतु घूमते रहे। हर जगह जाकर कोरोना नियमों की धज्जियाँ
उड़ाते रहे। सोशल डिस्टेसिंग जैसी कोई चीज़ होती भी है या नहीं, इन दिनों सीआर
पाटील ने देखा ही नहीं!!! शहर-शहर, गाँव-गाँव
जाकर भीड़ इक्ठ्ठा करते रहे, चुनावी रैलियां, रोड शो, सारे पैंतरे चले!!! बेरोकटोक-बेखौफ चले!!!
मोदी-शाह की नजर उनके उत्तरदायित्व पर हो ना हो, किंतु चुनावी प्रक्रिया पर नजर
ज़रूर रहती है। सो इन्हें पता ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। बल्कि माइक्रो
मैनेजमेंट तो वहीं से हो रहा होगा!
केवल रैलियों वाले
इलाकों में ही नहीं बल्कि गुजरात बीजेपी के केंद्र कमलम में भी हर दिन कोरोना
नियमों को प्रताड़ित होना पड़ रहा था!!!
लोकल चुनावों के दिन थे। प्रदेश अध्यक्ष अपने साथ दिग्गजों को लेकर भीड़ इक्ठ्ठा
करते रहे, इधर कमलम में दिनभर भीड़ जमा रहती!!! दिनभर
कार्यकर्ता-नेता कमलम के भीतर और बाहर भीड़ के रूप में नजर आते रहे! कोरोना गाइडलाइन, सरकारी निर्देश, नियम, जुर्माना
जैसी चीजें आम जनता के लिए होती है, यहां ऐसा कुछ दिख ही नहीं रहा था! इन दिनों एक अख़बार में न्यूज़ हेडलाइन कुछ यूं थी –
ये कमलम है या कोरोना केंद्र?
इनकी रैलियों के बाद
कोरोना संक्रमण जनता में यकीनन बढ़ा होगा। आंकड़ों का मायाजाल तो पिछले साल से चल
रहा है, इसलिए इसका सही डाटा मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। लेकिन पाटील की
रैलियों के बाद नेताओं, नेताओं के परिवार, कार्यकर्ता, पार्टी पदाधिकारियों के
संक्रमित होने की खबरों से लोकल अखबारों के पन्ने लबालब रहे। चुनाव खत्म होने के
बाद विजयोत्सव के नाम पर जो हुआ वह मर रहे इंसान को एक और धक्का देने के बराबर था।
कोरोना के 2021 वाले
समय के दौरान कुछ लोग सोशल मीडिया पर लिखने लगे कि प्रधानमंत्री जैसा ज़रूरी काम
हो तभी बाहर निकले, अन्यथा घर में ही रहे। अरे भाई, सीधा ही बोल दो न कि
चुनावी प्रचार के लिए ही बाहर निकले, वर्ना ना निकले। लोग
लापरवाह हो चुके थे, लेकिन सरकार तो नैतिक
रूप से गुनहगार साबित हो चुकी है। चुनाव की अपनी सनक और सत्ता के खेल की आदत को
तृप्त करने के लिए लोगों के बीच यह झूठा भ्रम फैलाया गया कि भारत में कुछ तो ऐसा
है कि दूसरे देशों की तरह हम प्रताड़ित नहीं होंगे।
जब किसी हिम्मती मीडियाकर्मी ने इसे लेकर बीजेपी के नेता से सवाल पूछा तो उस नेता ने, जिनका नाम
गोविंद पटेल था, कह दिया कि चुनावों में हमारे कार्यकर्ताओं ने पसीना बहाया,
मजदूरी की और पसीना बहाने वालों को, काली मजदूरी करने वालों को कोरोना नहीं होता।
गुजरात बीजेपी के इस नेता के ऐसे ज्ञान का इस्तेमाल फिलहाल महानायक मोदी को कर
लेना चाहिए। वैक्सीन से सस्ता, अच्छा ऊपाय है यह।
दिल्ली के सीएम केजरीवाल
भी गुजरात आकर विजयोत्सव के नाम पर कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने में अपना
योगदान दे गए! यहां
सूरत में आम आदमी पार्टी ने लोकल चुनावों में सीटें जीती तो फिर केजरीवाल दिल्ली
से गुजरात जा पहुंचे! बाकायदा लंबा रोड शो
किया गया!!! जमकर भीड़ इक्ठ्ठा की
और कोरोना नियमों को कुचलने में महानायक मोदी को चैलेंज देते नजर आने लगे!
कोरोना की दूसरी लहर, जो
सुनामी बनकर देश पर टूटी थी, तब गुजरात में स्वयंभू लॉकडाउन
के जुमले की मदद से सब कुछ बंद कराया जा रहा था। पर्दे के पीछे से धक्का देकर
गुजरात सरकार राज्य को बंद किए जा रही थी। 25 से ज्यादा शहरों में सरकारी आदेश के
तले और बाकी के इलाकों में सरकारी दबाव की पर्दे के पीछे की मजबूरी वाली राजनीति
की चाल चलते हुए सब कुछ बंद किया गया था। और इस बीच 20 अप्रैल 2021 को यहां शिक्षा
मंत्री और राज्यपाल भाषण देने वाले थे। फिर क्या था?
सरकारी परिपत्र आ गया। दिव्य भास्कर ने इस दिन दावा किया कि राज्यपाल का भाषण
सूनने के लिए स्कूलों में भीड़ इक्ठ्ठा करने का आदेश दिया गया था!!! स्टाफ को भी आदेश दिया गया था कि तमाम कर्मचारी लोग
आ जाए!!!
महानायक मोदी नेशनल टेलीविजन
पर आकर मास्क, दो गज की दूरी, कोरोना को हराना है, जैसा उपदेश दे रहे थे और इधर
इनके ही नेता, और रैलियों में खुद मोदी-शाह, इन उपदेशों की खिल्लियाँ उड़ा रहे थे! गुजरात में सीआर पाटील के चुनावी स्टंट के बाद 100
के करीब नेता संक्रमित हो चुके थे। नेता के परिजनों में भी संक्रमण की तादाद बढ़
चुकी थी। भीड़ में से संक्रमितों का अंदाजा खुद लगा लीजिएगा।
बिहार में भी मोदी-शाह
की चुनावी सनक ऐसे ही नजारे पेश कर रही थी। यहां भी कोरोना के हर खतरे को नजरअंदाज
किया गया! अक्टूबर 2020 में गया
के गाँधी मैदान की रैली का एक प्रपंच देख लीजिए। मीडिया में दिखाने के लिए कुछ देर
के लिए सैनिटाइज़र, मास्क, स्कैनिंग आदि चीजें की गई। फिर मीडिया को वहां से हटा
दिया गया और फिर उसी तरह नियमों को जला दिया गया, जैसे दूसरे राज्यों में किया जा
रहा था!!! यहां भी रैली में सोशल डिस्टेसिंग
का मखौल उड़ा। बिना मास्क के नेता और बिना मास्क की भीड़। एक दूसरे से चिपकी हुई
भीड़। महानायक के नजर के नीचे हो रही चुनावी रैली में महानायक के दो गज की दूरी
वाले नारे को जुमला साबित करने में किसी तरह की कसर छोड़ी नहीं गई थी।
फिर तो बिहार की हर
चुनावी रैलियों में, हर चुनावी सभाओं में, पार्टी ऑफिस में कोरोना नियमों का
उल्लंघन होता रहा। बिहार में भी लोग मर रहे थे, इधर सीएम नीतीश हो, महानायक मोदी
हो या उनके दूसरे दिग्गज हो, चुनावी रैलियां जमकर किये जा रहे थे।
चुनाव आयोग जैसी कोई
चीज़ होती नहीं थी इन दिनों! इन दिनों बिहार में भी
कोरोना से हर रोज मौतें दर्ज हो रही थी, लेकिन रैलियों में कोई सावधानी नहीं थी। बिहार
तो गुजरात से भी आगे निकल जाने के लिए उतावला दिख रहा था इन दिनों!
भारत के महानायक, नायक और देवदूतों पर
रिसर्च होना चाहिए। 2021 में जब कोरोना सुनामी बनकर आया तब भी हाल नहीं बदला। यूं
कहे कि पिछले साल से इस साल कोरोना और ख़तरनाक बनकर आया तो मोदी-शाह और उनसे
प्रेरणा लिए घूम रहे दूसरे नेताओं की चुनावी सनक का स्तर भी पिछले साल से ज्यादा
ख़तरनाक बनने लगा। आम जनता कर्फ्यू में बंद, कहीं स्वयंभू लॉकडाउन
के जुमले में बंद, इधर नेता लोग चुनावों में मस्त थे इन
दिनों। कोरोना सुनामी बनकर देश पर टूटने लगा था, स्कूल फिर से बंद, कॉलेज फिर से बंद, काम-काज फिर से बंद, लेकिन चुनाव की सनक
पिछले साल से भी ज्यादा बड़ी थी। जैसे जैसे कोरोना का कहर बढ़ा, इनकी चुनावी लालच भी
बढ़ती चली गई। जैसे जैसे कोरोना दैत्याकार और विकराल रूप धारण करने लगा, केंद्र के शीर्ष
नेतृत्व से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी चुनावी सनक को और विकराल बनाने लगे।
कोरोना की ये तस्वीरें
वाकई गजब तस्वीरें ही कह लीजिए। तस्वीर तो देखिए। दिल्ली में प्रधानमंत्री कोविड के
हालात को लेकर बैठक कर रहे हैं, कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर चिन्तित हैं, लेकिन
उन्हीं प्रधानमंत्री की रैली की तस्वीर देखकर कोई भी बोल सकता है कि रैली में आए लोगों
ने कोविड के नियमों का पालन किया नहीं है। किसी ने मास्क नही पहना है। प्रधानमंत्री
चिन्तित होने का दिखावा कर लेते हैं कि इन्हें कोरोना हो गया तो? लेकिन
चुनाव में भीड़ को देखकर देश का महानायक सरेआम कह देता है कि इतनी बड़ी भीड़ देखकर
मैं भावुक होने लगा हूं!!! वही महानायक बाकायदा
भीड़ के लिए धन्यवाद कर देता है!!! हर दल के नेता भीड़ की तस्वीरों
को ट्वीट करने लगते हैं और अपनी-अपनी लोकप्रियता की ताकत दिखाने लगते हैं!!! मोदी और शाह ने तो ट्वीटर पर चुनावी रैलियों में
भीड़ की तस्वीरें तक लगाई है!!! कोरोना जाए भाड़ में,
चुनावजीवी प्रधानमंत्री की ये सनक लोगों की जानें ले रही हैं।
नियम तो बहुत सारे थे, लेकिन
जब पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह की रैलियों में ही नियम की लाज शरम नहीं रखी गई तो
फिर दूसरे देवदूतों पर क्या लिखे? प्रेरणा या शुरुआत ऊपर
से होनी चाहिए। लेकिन जब ऊपर से शुरुआत ही चुनावी सनक को बढ़ावा देती हो तो
फिर...। मोदी और शाह की रैलियों में ही नियमों की धज्जियाँ अनेकों बार उड़ चुकी हैं।
जैसे जैसे कोरोना दैत्याकार और विकराल रूप धारण करने लगा, शीर्ष नेतृत्व से लेकर
राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी चुनावी सनक को और विकराल बनाने लगे!!!
नरेंद्र मोदी और अमित
शाह तो एक अलग ही देश बने हुए थे, जिन पर भारत का कोई नियम ही लागूं नहीं होता!!! कोरोना की मार्गदर्शिका, कोरोना के नियम, मास्क,
सोशल डिस्टेसिंग, सैनिटाइज़र, स्कैनिंग से लेकर चुनाव आयोग के कोरोना से जुड़े
निर्देश-नियम, किसी चीज़ का पालन इनकी रैलियों में कभी नहीं दिखा। फोटू के लिए या
मीडिया रिपोर्ट के लिए थोड़ी देर होता था, फिर नहीं होता था।
राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति
के लिए हज़ारों-लाखों लोगों की चुनावी रैलियाँ और रोड शो कर रहे थे, जनता
चुनाव के पवित्र स्नानों में जुटी थी और बाक़ी देश को महामारी से लड़ने के लिए आत्म-निर्भर
कर दिया गया था!!! सब कुछ खत्म होने को
आया तब मोदी-शाह समेत दूसरे नेताओं ने और चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय छल-प्रपंच करते
हो वैसे प्रचार रोकने की कृपा की!!! लेकिन नतीजों के दिन
फिर एक बार कृपा कहर बनकर टूटेगी उसका भी सबको पता है।
ऑफलाइन शिक्षा फिर से
बंद कर दी गई थी, एग्ज़ाम कैंसिल हो रहे थे, लेकिन चुनाव का काम पहले से भी ज्यादा
जोश में चल रहा था! पश्चिम बंगाल, केरल,
तमिलनाडु, असम, पुडुचेरी जैसे राज्यों के चुनावी मंजर ताजा इतिहास ही है। ताज़ा
इतिहास के साथ साथ पिछले साल का चुनावी इतिहास ना भूले। मोदी और शाह तो पिछले साल
से भी ज्यादा बेखौफ नजर आने लगे! इनकी पिछले साल की सनक
विकराल रुप धारण कर चुकी थी! ममता हो या दूसरे
पार्टियों के नेता हो, सारे के सारे इस ऐतिहासिक सामाजिक अपराध में व्यस्त थे। लोग
मरते रहे, वे चुनाव लड़ते रहे!!!
7 अप्रैल 2021 को ही डॉक्टरों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा
जताते हुए कहा कि जब मोदी और ममता को कोरोना की परवाह ही नहीं है तो ऐसे में हम
क्या कर सकते हैं? सोचिए, देश के महानायक और राज्यों के नायकों के लिए डॉक्टरों को ऐसा क्यों
लिखना पड़ रहा है। भारत के हेल्थ सिस्टम के ऊपर जितना दबाव इन दिनों है, उसका बहुत
ज्यादा हिस्सा नेताओं की बदौलत भी है। बीबीसी हिंदी के पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी
अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि जब उन्होंने एक वरिष्ठ राजनेता से चुनावी रैलियों
के बारे में पूछा तो उस वरिष्ठ देवदूत ने बताया कि अभी तो हमें एक दूसरी लड़ाई
लड़नी है, कोरोना से तो बाद में लड़ लेंगे।
भारत के अनेक राज्यों
में इन दिनों अलग अलग स्तर के चुनाव हुए। हर जगह कोरोना नियमों का जमकर उल्लंघन
करने में केंद्रीय सत्ता से जुड़े नेता आगे रहे। राष्ट्र का महानायक, नायक और उनके
देवदूतों ने कोरोना प्रोटोकॉल के साथ जो किया उसे लफ्ज़ों में बयां नहीं किया जा
सकता। जहां जहां ये सब उन दिनों हो रहा था वहां वहां कोरोना संक्रमितों के आंकड़े
और मौतों के आंकड़े कंट्रोल में थे। वहां सब खत्म हुआ फिर आंकड़ों को पिंजरे से
छोड़ा गया। ग्लोबल रिसर्च होना चाहिए कि आखिर भारत में ऐसा क्या था कि जहां जहां
चुनाव था वहां वहा कोरोना नहीं था!!!
जैसे हमारे यहां कोरोना
वायरस से संक्रमितों का और मारे गए लोगों का सही आंकड़ा नहीं मिल सकता, ठीक वैसे
ही आंकड़ों के मायाजाल से यह भी साबित किया जा सकता है कि चुनाव से कोरोना नहीं
फैला। बूथ मैनेजर के अलावा केंद्रीय गृह मंत्रालय का भार संभाल रहे अमित शाह तो
बिना आंकड़े के ही ऐसा कह चुके हैं!
शीर्ष नेतृत्व संदेश दे रहा था कि फिलहाल तो चुनाव लड़ना है, कोरोना से तो बाद
में लड़ लेंगे। हमारे नेता ही वायरस के सुपर स्प्रेडर बने हुए थे। उधर चुनाव आयोग
तो तब्लीग़ी जमात से भी गया गुजरा साबित हो चुका है। हमारे नेताओं ने इन दिनों जो
किया वह एक तरीके से कोरोना प्रोटोकॉल के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसा था। कहा गया
कि दुनिया में भारत ही एक ऐसी जगह है जहाँ आपको कोरोना के नियमों की धज्जियाँ
उड़ाते हुए नेता आसानी से नजर आ जाएँगे।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)