वैसे हमारे नेताओं ने बिगड़े बयान को लेकर एक नया तरीक़ा भी ढूंढ रखा है। तरीक़ा है कि बयान वापस भी लिया जा सकता है! कमाल की चीज़ है यह। संसद में बयान दो, सड़क पर दो, मीडिया में दो, रैली में दो। फिर
उसे वापस भी लिया जा सकता है! इस प्रकार की अन-डू व्यवस्था उनके लिए ही है। आम नागरिकों
के लिए यह व्यवस्था नहीं है। वर्ना फ़ेसबुक पर कुछेक मामलों को लेकर या कार्टून बनाने
को लेकर गिरफ़्तार हुए नागरिक अन-डू कह कर मामला ख़त्म कर लेते।
पार्ट 5
गुजरात में ऊना शहर
में दलितों के साथ कथित गौरक्षकों ने मारपीट की थी। जिसके बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया
था। 2017 के मध्य में हुई इस घटना के बारे में नवंबर 2017 में प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान
ने कह दिया कि, “दलितों पर हुए अत्याचार की मैं निंदा करता हूँ। ऊना कांड जैसी छोटी-मोटी घटनाएँ
होती रहती हैं। सरकार ने कार्रवाई की है। हमारे बिहार में तो यह रोजाना होता रहता है
और कोई इसे देखता भी नहीं है।”
हर संवेदनशील विषय
को छोटी-मोटी घटना के रूप में पेश करने का कांग्रेसी इतिहास एनडीए सरकार के इस मंत्रीजी
ने ख़ूब निभाया। बिहार में एनडीए गठबंधन सरकार ही थी। बिहार में ऐसी चीज़ें रोजाना होना
और इसकी अनदेखी होना, ये हिस्सा प्रशंसा थी या शिकायत, ये तो पासवान साहब ही बता सकते थे।
इसी माह में बिहार
में हुए एक कार्यक्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा सांसद नित्यानंद राय ने
विवादित बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि, “मोदी की ओर उठने वाली उंगली को, उठने वाले हाथ को हम सब मिलकर तोड़ देंगे, ज़रूरत पड़ी तो काट भी देंगे।” उस वक्त बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी स्टेज पर ही मौजूद थे। जब विवाद हुआ
तो इन्होंने बयान का ग़लत मतलब निकाला गया है वाली परंपरा अपना ली।
उधर असम के एक मंत्रीजी
ने तो कैंसर की वजह भी ढूंढ ली थी और वे स्वयं स्वास्थ्य मंत्री थे। असम के स्वास्थ्य
मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने नवंबर 21 को कहा कि, “कुछ लोग कैंसर जैसी घातक बीमारियों से इसलिए ग्रस्त हैं, क्योंकि उन्होंने अतीत
में पाप किये हैं और यह ईश्वर का न्याय है।” ऐसे स्वास्थ्य मंत्री किस के पाप के कारण
अवतरित होते होंगे ये भी सोचने का विषय है।
फ़रवरी 2021 में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री
बिप्लब देब ने कहा, “हमारी पार्टी (बीजेपी) कई राज्यों में सत्ता पर आ चुकी है। नेपाल और श्रीलंका अभी
भी बचे हुए हैं। हमें पार्टी को नेपाल और श्रीलंका तक फैलाना है। हमें वहाँ भी जीतना
है।” देब के इस बयान पर नेपाल सरकार ने आपत्ति
दर्ज़ कराई थी।
यूपी के विधायक रमेश
दिवाकर भी कम पीछे नहीं। इन्होंने हरियाणवी डांसर सपना चौधरी की तुलना कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी से की थी और राहुल गांधी को सलाह दी थी कि वे सपना को अपना बना लें और
यह अच्छा होगा कि सास और बहू दोनों ही एक ही कल्चर और एक ही पेशे से रहेंगी। इससे पहले
सुरेंद्र सिंह प्रियंका गांधी वाड्रा को सूपर्णखा और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तुलना
भैंस से कर चुके हैं।
नेत्री साधना सिंह
ने 2019 में मायावती को किन्नर से भी ज़्यादा बदतर बताया था। उन्होंने कहा था कि, “मायावती न तो नर है और न ही महिला।”
दिसंबर 2017 के दौरान गुजरात में
विधानसभा चुनाव हो रहे थे। तत्कालीन पीएम मोदी के गढ़ में भाजपा और कांग्रेस, दोनों
एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी मंदिरों
के चक्कर काट रहे थे। इस बारे में जब गुजरात के तत्कालीन सीएम विजय रूपाणी को पूछा
गया तो उनकी जुबां भी बेकाबू होती दिखी और 2 दिसंबर 2017 को एक प्रेसवार्ता के दौरान बोल दिया कि, “गधे को चाहे साबुन से नहलाओ या शैंपू से, वह घोड़ा कभी नहीं बन सकता।”
इस बीच 5 दिसंबर 2017 को अयोध्या मामले
को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने मांग की कि इस मामले
की सुनवाई 2019 के बाद होनी चाहिए, क्योंकि अभी राजनीति हो सकती है। कपिल सिब्बल की मांग को लेकर
राजनीतिक विवाद भी हुआ।
इस विवाद के बीच भाजपा
के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को 'बाबर भक्त' और 'खिलजी का रिश्तेदार' बता दिया। नरसिम्हा
राव ने लिखा कि, “अयोध्या में राम मंदिर का विरोध करने के लिए राहुल गांधी ने ओवैसिस, जिलानिस से हाथ मिला लिया है। राहुल गांधी निश्चित रूप से एक
बाबर भक्त और खिलजी के रिश्तेदार हैं। बाबर ने राम मंदिर को नष्ट कर दिया और खिलजी
ने सोमनाथ को लूट लिया। नेहरू वंश दोनों इस्लामी आक्रमणकारियों के पक्ष में!”
इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर
ने उस भ्रम को तोड़ दिया, जिसमें कहा जाता था कि कांग्रेस के नेता अपनी भाषा को ज़्यादा संयमित रखते हैं। 7 दिसंबर 2017 के दिन मणिशंकर अय्यर ने वही ग़लती कर दी, जो सालों पहले सोनिया गांधी ने गुजरात
के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहकर कर दी थी।
पीएम मोदी के राहुल
परिवार के लिए औरंगज़ेब वाले बयान पर प्रतिक्रिया देने के चक्कर में मणिशंकर बोल गये
कि, “अंबेडकरजी की जो सबसे बड़ी ख़्वाहिश थी, उसे साकार करने में एक ही आदमी का सबसे
बड़ा योगदान था, उनका नाम था जवाहर लाल नेहरू। अब इस परिवार के बारे में ऐसी गंदी बातें
करें, वो भी जबकि अंबेडकरजी की याद में एक बहुत बड़ी इमारत का उद्घाटन यहाँ हो रहा है, तब ऐसी बात की जाए, मुझे लगता है ये आदमी बहुत नीच क़िस्म का आदमी
है। इसमें कोई सभ्यता नहीं है। ऐसे मौक़े पर ऐसी गंदी राजनीति की क्या आवश्यकता है।”
प्रधानमंत्री मोदी
की आलोचना करते हुए अय्यर ने उन्हें ‘नीच आदमी’ तक कह डाला। अय्यर यहीं नहीं रुके और कहा, “उस आदमी को कोई सभ्यता नहीं है।” मोदी की आलोचना करते हुए मणिशंकर इतना आगे
निकल गए कि उन्हें ये भी भान नहीं रहा कि प्रधानमंत्री के प्रति वह कैसे शब्दों का
इस्तेमाल कर रहे हैं।
मणिशंकर अय्यर के इस
बयान पर पीएम मोदी ने तुरंत पलटवार किया तथा कांग्रेस को मुग़लों से जोड़ दिया। उधर
भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा मीडिया के सामने रोने लगे!
इस आपाधापी के बीच
राहुल गांधी ने मणिशंकर अय्यर की आलोचना की और उन्हें पीएम की माफ़ी मांगने के लिये
कहा। उसके बाद अय्यर ने अपने शब्दों के लिये पीएम से माफ़ी मांगी और बचाव करते हुए फिर
वही राजनीतिक बहाना आगे कर कहा कि, “मैंने अंग्रेज़ी के शब्द LOW का हिंदी अनुवाद किया था अगर नीच का मतलब LOW
BORN होता है तो मैं माफ़ी मांगता हूँ।” कांग्रेस ने तुरंत
प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बयान से किनारा कर लिया। अय्यर ने बेहद बचकाना बचाव करते हुए कहा, “मुझे अच्छे से हिंदी नहीं आती। अगर इसका मतलब हिंदी में ये होता है, तो मैं माफ़ी
मांगता हूँ।” मणिशंकर को तत्काल पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से हटा दिया गया।
लेकिन इस मामले में
पीएम के लिए “नीच” लफ़्ज़ इस्तेमाल करने के बाद पीएम ने भी पलटवार किए। राजनीति और स्वंय नरेंद्र मोदी
के हिसाब से तो पलटवार लाज़िम ही था। उधर हार्दिक पटेल ने कह दिया कि, “पीएम ने ख़ुद ही एक
महिला को बार गर्ल कह दिया था। क्या उन्हें माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए थी?”
उधर छत्तीसगढ़ में
भाजपा सरकार के कृषि मंत्री व्रजमोहन अग्रवाल ने लोगों को यक़ीन दिलाया कि चुनाव ना
हो तब भी नेता अपने स्तर को गिरा सकते हैं। गुजरात चुनाव के एग्जिट पोल सामने आने के
बाद मंत्रीजी ने कह दिया कि, “पप्पू को अप्रगेड होने में अभी देर लगेगी।”
अब वो पप्पू कहेंगे तो सामने वाले फेकू या दूसरा कुछ कहेगा।
और हुआ भी यही।
लोगों को क्या खाना है, क्या पीना है, क्या पहनना है, कितने बच्चे करने हैं, वहाँ से आगे अब अपनी शादी कहाँ करनी है, यह भी तय करना नेताओं का मौलिक अधिकार बन
चुका है।
मध्य प्रदेश भाजपा
के एक विधायकजी एसे थे, जिन्हें विराट कोहली का इटली में जाकर शादी करने का निर्णय जरा भी रास नहीं आया।
मंत्री महोदय ने तो इस बात को लेकर विराट कोहली को क़रीब क़रीब देशद्रोही ही क़रार दे
दिया!!!
19 दिसंबर 2017 के दौरान एक कार्यक्रम में विधायक पन्नालाल शाक्य ने कहा, “विराट ने पैसा भारत
में कमाया, लेकिन विवाह संस्कार करवाने के लिए उन्हें
हिन्दुस्तान में कहीं जगह नहीं मिली। हिन्दुस्तान इतना अछूत है?”
उन्होंने आगे कहा, “भगवान राम, भगवान कृष्ण, विक्रमादित्य, युधिष्ठिर का विवाह इसी भूमि पर हुआ है। आप सबके भी हुए होंगे
या होने वाले होंगे। मगर हममें से विवाह करने के लिए कोई विदेश नहीं जाता। (कोहली)
उन्होंने पैसा यहाँ कमाया और विवाह में अरबों रुपये वहाँ (इटली) ख़र्च किए।” विधायकजी ने तो यहाँ तक कह दिया कि, “भारत की भूमि को लेकर
उनके (विराट) लिए कोई मान नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि वह राष्ट्रभक्त नहीं हैं।”
इसी कार्यक्रम में
विधायक पन्नालाल ने किसी का नाम ना लेते हुए एक बयान यह भी दे दिया कि, “यदि आप थोड़ा भी सोचेंगे
तो पाएंगे कि इटली के नाचने वाले यहाँ (भारत में) करोड़पति-अरबपति बन गए और तुम अपने देश
की पूंजी को वहाँ लेकर जा रहे हो। वहाँ जाकर उनको धन देकर आ रहे हो। ऐसा व्यक्ति हमारा
आदर्श नहीं होगा। हमारा आदर्श वह व्यक्ति होगा, जो कड़ी मेहनत से धन अर्जित करेगा और
देश के प्रति ईमानदार रहेगा।” अब इसमें नाचने वाले और इटली का इशारा किसकी
तरफ़ था ये तो मैट्रिक पास भी समझ सकता था।
दिसंबर 2017 के आख़िरी सप्ताह में
एआईएमआईएम के मुखिया अससुद्दीन औवेसी फिर एक बार चर्चा में थे। लाज़िम था कि इसके पीछे
उनके बिगड़े बोल ही वजह थे। क्योंकि इसके सिवा वो कभी किसी दूसरे मुद्दे को लेकर चमकते
नहीं हैं।
ओवैसी ने बीजेपी और
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए लोकतंत्र का बड़ा मीठा सा भाषण दिया और आख़िर में कह दिया, “जब हम हरा रंग पहनेंगे तो सब कुछ हरा हो जाएगा और हमारे हरे रंग के सामने कोई रंग
नहीं टिकेगा। केवल हमारा हरा रंग ही रहेगा, न मोदी का रंग रहेगा और न ही कांग्रेस का
रंग रहेगा।”
दूसरी तरफ़ जम्मू-कश्मीर
से नेका के विधायकजी की आत्मा में आतंकवाद का पक्ष लेने की भावना जा घुसी। नेका विधायक
अब्दुल मज़ीद लारमी ने हिजबुल के मारे गए आतंकी बुरहान वानी को शहीद बताया। लारमी कहा, “बुरहान वानी के शहीद होने के बाद से अब तक 250 बच्चे शहीद हुए, लेकिन कभी भी महबूबा ने इस पर कुछ नहीं कहा।”
उधर गुजरात में हाल
ही में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे। नतीजों के बाद जिग्नेश मेवाणी नाम के एक युवा
नेता विधायक का चुनाव जीत गए। 22 दिसंबर 2017 के दिन उन्होंने पीएम मोदी के विरोध के चक्कर में कह दिया, “मोदीजी को अब अपनी
बाकी की ज़िंदगी हिमालय जाकर हड्डियाँ गलाने में लगा देनी चाहिए।” महज़ 4 दिन पहले विधायक बने मेवाणी गंदगी फैलाने का नेतागीरी का काम ज़ल्द शुरू करते दिखे।
जिग्नेश मेवाणी ने
बिगड़े बोल बोले, तो सामने उज्जैन से भाजपाई सांसद चिंतामणि
मालवीय ने उसी भाषा में कहा कि, “राहुल ने गंदगी खाने वाले और फैलाने वाले तीन जानवरों को ख़रीदा था। लेकिन उनमें
संस्कार कब आएँगे।”
विवादित बयानों का
ट्रेंड जमकर चल रहा था। इसी कड़ी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने 25 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के
चंद्रपुर में एक अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान कह दिया कि, “मैं लोकतांत्रिक तरीक़े से चुना गया मंत्री हूँ। मैं यहाँ आ रहा हूँ,
यह जानते हुए भी डॉक्टर्स छुट्टी पर क्यों चले गए? अगर वे लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते, तो उन्हें नक्सलियों
के साथ जुड़ जाना चाहिए, हम ऐसे डॉक्टर्स को
गोली मार देंगे।”
उधर गौरक्षा के नाम
पर हिंसा के बीच पीएम मोदी ने सभी को नसीहत दी थी कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा नहीं
होनी चाहिए, किसी को क़ानून हाथ में लेने की इजाज़त नहीं
है। लेकिन पीएम मोदी की नसीहत उनके ही नेता सुनने को तैयार नहीं थे।
25 दिसंबर 2017 के दिन राजस्थान के रामगढ़ से आने वाले बीजेपी एमएलए ज्ञानदेव आहूजा ने कथित गौ
तस्करों को निशाने में लेते हुए कह दिया, “गोतस्करी करोगे, गोकशी करोगे, तो यूँ ही पीट-पीट कर मरोगे।”
उधर पीएम इससे पहले
एक बयान यह भी दे चुके थे कि, “मेरे दलित भाइयों को मत मारो, मारना है तो मुझे मारो।” वैसे, इसको मत मारो और उसको मारने के बजाय मुझको
मारो, ये फ़िल्मी तरीक़ा राजनीति में बतौर पीएम इस्तेमाल
किया जाना भी कम हैरान करने वाला नहीं था।
उधर कांग्रेस के कुछ
नेता भी चुप बैठने को तैयार नहीं थे। 25 दिसंबर 2017 के दिन क्रिसमस के मौक़े पर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने पीएम मोदी पर टिप्पणी
करते हुए कह दिया कि, “पूरी दुनिया में इस समय एक सफ़ेद दाढ़ी वाला बूढ़ा आदमी चिमनियों के ज़रिए लोगों
के घरों में जा रहा है, और उनके मोजों में पैसा भर रहा है, वहीं भारत में एक सफ़ेद दाढ़ी वाला आदमी टीवी के ज़रिए लोगों
के घरों में घुसता है, और उनकी जेबों और लॉकर्स से उनके पैसे ग़ायब कर देता है।”
यूपी में योगी सरकार
के मंत्री ओमप्रकाश राजभर 25 दिसंबर 2017 के दिन बलरामपुर से फिर उठ खड़े हुए। उन्होंने कह दिया, “सारे ग़रीब शराब पीते
हैं, मुर्गी खाकर वोट करते हैं। दिल्ली या लखनऊ
जाने वाले नेता उन्हें ही पाँच साल तक मुर्गा बनाकर एश करते हैं।” इन्होंने ग़रीबों और
नेताओं, दोनों को लपेटे में ले लिया था।
वैसे आमतौर पर सत्तादल
वाले कम विवादित बयान देते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी उस थ्योरी में यक़ीन नहीं रखते। केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार
हेगड़े ने 26 दिसंबर 2017 के दिन कह दिया कि, “यदि आप धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, तो यह संदेह पैदा होता है कि आप कौन हैं?”
उधर पीएम मोदी भाषणों
में छाती फूलाकर कहते थे कि हमें गर्व है कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, जबकि उनके ही मंत्री ऐसे बयान दे रहे थे।
हेगड़े यही नहीं रुके, दूसरे दिन उन्होंने कह दिया कि, “वह संविधान का सम्मान
करते हैं, लेकिन आने वाले दिनों में इसे बदलना पड़ेगा।”
ये भी पीएम मोदी के
बयान को काटने वाला बयान ही था। पीएम मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले संसदीय भाषण
में कह चुके थे कि संविधान ही उनका धर्मग्रंथ है और ये बात उन्होंने उसके बाद भी कई
दफा बोली थी। लेकिन अनंत हेगड़े थे कि वो पीएम मोदी को झूठा साबित करने पर जैसे कि
आमादा ही थे।
उधर हेगड़े के धर्मनिरपेक्षता
वाले बयान पर एआईएमआईएम के नेता गुरुसंत पट्टेदार ने कहा कि, “हेगड़े के बयान से
दलितों, मुसलमानों, पिछड़ी जातियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों को तकलीफ़ पहुंची है। जो उनकी जुबान काट
के लाएगा उसे 1 करोड़ का इनाम दिया जाएगा।”
संविधान को बदलने के
बेतुके बयान में फँसने के बाद हेगड़े नहीं संभले। जनवरी 2018 के दौरान कथित रूप
से उन पर दलितों के प्रति अपमानजनक टिप्पणी का आरोप लगा। बेल्लारी में आयोजित एक कार्यक्रम
में कथित रूप से उन्होंने कहा, “हम जिद्दी लोग हैं। सड़क पर कुत्ते भोंकते रहते हैं, हम इसकी परवाह नहीं करते।” बाद में जब विवाद बढ़ा तो इन्होंने बयान को तोड़-मरोड़ पेश करने
वाली परंपरागत सफ़ाई दे दी।
उघर सपा के नेता नरेश
अग्रवाल ने कुलभूषण जाधव को लेकर ग़लत बयानबाजी कर दी थी। उन्होंने मीडिया से बातचीत
करते हुए कहा, “अगर पाकिस्तान ने कुलभूषण को आतंकवादी माना है, तो उसके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे
जैसा वो कर रहे हैं। हमारे देश में भी आतंकवादियों के साथ ऐसा ही कड़ा व्यवहार करना
चाहिए, जैसा कि पाकिस्तानी जेलों में भारतीयों के साथ किया जा रहा है।” जब विवाद हुआ तो महाशय
ने माफ़ी तो नहीं मांगी, उल्टा तत्कालीन सरकार की कमियाँ गिनाते गिनाते
दूसरे मुद्दे खड़े कर गए।
उन नेताओं की भी कोई
कमी नहीं, जो अपने आलाकमान का गुणगान इतना ज़्यादा करते
हैं कि हमें लगता है कि हम स्वयं आलाकमान से इनकी सिफ़ारिश कर इनकी तड़प की पूर्ति कर
दे।
अलवर के रामगढ़ से भाजपा के विधायक ज्ञानदेव
आहूजा ने एक इंटरव्यू में कुछ ज़्यादा ही जोश में आकर कह दिया कि, “नरेंद्र मोदी भगवान कृष्ण के अवतार हैं। वे अनूठे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं।
लोग नरेंद्र मोदी को अभी पहचान नहीं पा रहे हैं, लेकिन समय के साथ ही चीज़ें स्पष्ट होगीं और उसके बाद सब साफ़ हो जाएगा।”
उधर अभिनेत्री हेमा
मालिनी भी पीछे नहीं रहीं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के कमला मिल कंपाउंड स्थित
मोजोस ब्रिस्ट्रो पब में आग लग गई, जिसमें कई परिवार की ख़ुशियाँ जलकर राख हो
गई। इस हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 11 महिलाएं और 3 पुरुष शामिल थे। पूर्व अभिनेत्री और सांसद हेमा मालिनी ने इस पूरे हादसे के लिए
भारत की आबादी को ज़िम्मेदार बता दिया!!! संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने
कहा, “ऐसा नहीं है कि पुलिस अपना काम नहीं कर रही। लेकिन असल समस्या हमारी जनसंख्या है।
ऐसे में हर शहर की जनसंख्या निर्धारित होनी चाहिए।”
जहाँ सभी अपनी मौजूदगी
दर्ज़ करवा रहे थे, ऐसे में नरेन्द्र सिंह तोमर भला कैसे पीछे
रहते? उस समय वे बीजेपी सरकार में केंद्रीय पंचायत
एवं ग्रामीण विकास मंत्री थे। मध्यप्रदेश के शिवपुरी ज़िले के कोलारस से तोमर ने उत्साहित
होकर कह दिया, “पीएम मोदी और कांग्रेस नेता में वही अंतर है, जोकि मूंछ के बाल और पूंछ के बाल में
होता है।”
तमिलनाडु के सुपरस्टार
रजनीकांत ने राजनीति में प्रवेश की घोषणा के दिन ही भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने
टिप्पणी करते हुए कह दिया कि, “वह राजनीति में आ रहे हैं। उनके पास कोई जानकारी या दस्तावेज़ नहीं हैं। वह अनपढ़
हैं। यह केवल मीडिया द्वारा हाइप किया गया है, तमिलनाडु के लोग समझदार हैं।”
11 जनवरी 2018 के दिन जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक ऐजाज़ अहमद मीर ने
कश्मीर में सुरक्षा बलों के हाथों मारे जा रहे आतंकियों को लेकर एक विवादित बयान दिया।
ऐजाज़ ने कहा, “कश्मीर में जो आतंकी शहीद हो रहे हैं, वे हमारे भाई हैं। उनमें से कुछ नाबालिग हैं, और जिन्हें यह भी नहीं पता है कि वह
क्या कर रहे हैं। हमें आतंकवादियों के मारे जाने का जश्न नहीं मनाना चाहिए, यह हमारी सामूहिक विफलता का प्रमाण है, जब हमारे सुरक्षा बल भी शहीद हो, हम दुखी महसूस करते हैं, हमें सुरक्षा जवानों के माता-पिता और आतंकियों
के माता-पिता दोनों के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए।”
नोट करें कि इन दिनों
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार सत्ता में थी।
उसी शाम एक निजी चैनल
पर भाजपा की नेता ने पीडीपी नेता के बयान पर विचित्र तर्क का इस्तेमाल करते हुए कहा
कि, “हमारी पार्टी की विचारधारा अलग है और पीडीपी वालों की अलग है। हम पीडीपी को, या
उनके नेताओं को हर दिन सीख नहीं दे सकते।” उन्होंने तो आगे यह भी कहा कि, “हमारा गठबंधन सरकार चलाने को लेकर है, विचारधारा को लेकर नहीं है।”
इस बीच राजस्थान के
कैबिनेट मंत्री जसवंत यादव की एक वीडियो क्लिप ने विवाद जगाया। इस क्लिप में वे धर्म
के आधार पर वोटिंग करने की वकालत करते हुए कह रहे थे, “आप अगर हिंदू हैं तो भाजपा को वोट दीजिए और अगर आप मुस्लिम हैं तो कांग्रेस से
जुड़िए।” सुप्रीम कोर्ट धर्म के नाम पर वोट मांगना असंवैधानिक बता चुका था, लेकिन नेता लोग जता रहे थे कि संविधान, क़ानून आदि लोगों के लिए होते हैं, नेताओं के लिए नहीं।
कभी कभी लगता है कि इस देश में जितने भी नियम व क़ानून हैं, उसका सख़्ती से
पालन नेताओं पर कराया जाए तो अच्छे दिन तो यूँ ही आ जाएँगे।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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