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Medicines Fraud and India: दवाओं में विश्वगुरु भारत को ठगते स्वदेशी लोग, भावुक भारत को झाँसा देना आसान हो चुका है?

 
इन दिनों तीन घटनाएँ साथ चल रही हैं। एक है बाबा रामदेव का अपने झूठे दावों और फ़र्ज़ी दवाओं को लेकर माफ़ी माँगना, दूसरा है कोविशील्ड वैक्सीन उत्पाद करने वाली कंपनी का इक़रार नामा, और तीसरा है दवा टेस्ट में फ़ेल वो फ़ार्मा कंपनियाँ, जिन्होंने करोड़ो के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे। जिन दवाओं को लेकर बार बार और लगातार सवाल उठाए गए थे, संदेह प्रकट किए गए थे, उन्हें हम एजुकेटेड नागरिकों ने गाहे बगाहे स्वीकारा और अपनाया। अब हम ठगे गए हैं, तो हम इतने चालाक हैं कि इसकी बात ही नहीं कर रहें।
 
जिस बाबाजी को एक ज़माने में दिल्ली पुलिस ने लाठी योग सिखाया था, वही काले धन वाले बाबाजी को अब देश का सुप्रीम कोर्ट माफ़ी योग सिखा रहा है। दूसरी तरफ़ जिस कोविशील्ड को मोदीजी ने अपनी फ़ोटू के साथ प्रचारित किया, उसको उत्पाद करने वाली कंपनी विदेश में अदालती कार्रवाई के बाद स्वीकार कर रही है कि जी हाँ, उस वैक्सीन के गंभीर दुष्प्रभाव हैं। तीसरी तरफ़ जिनकी दवा फ़ेल हुई, उन्होंने बॉन्ड ख़रीद लिए।
 
एलोपैथी हो या होम्योपैथी, बेसिक सेंस यही कहता है कि दवा कोई भी हो, वह अच्छी, बुरी या औसत हो नहीं सकती। अलग अलग परिस्थितियों में अच्छे-बुरे-औसत आदि का तमगा बदल सकता है। दरअसल, एलोपैथी या होम्योपैथी, दोनों में दवा नहीं, किंतु उसे बनाने और बेचने वाले प्लेयर अच्छे या बुरे हो सकते हैं।
 
दवा को विकसित करने से लेकर उसे बाज़ार में लाने और बेचने में ही नहीं, मेडिकल कॉलेजों में एडमीशन, पढ़ाई, चयन में ही नहीं, वहाँ तो सिलेबस और चैप्टर के भीतर तक भ्रष्टता का बोलबाला है। लेकिन फ़िलहाल तो बात इन दिनों चल रहे माफ़ीनामे और इक़रारनामे की करनी है।
 
सारी घटनाएँ कोविड19 के उस दर्दनाक दौर से कहीं न कहीं जुड़ती हैं। याद करिए वो दौर। लगता था कि कोरोना के पेशेंट कम हैं, एक्सपर्ट ज़्यादा हैं। विश्वगुरु भारत ने तो पापड़, अंग्रेज़ी नारे, मशाल, साउंड वाइब्रेशन, साबुन, चूरन, काढ़ा, बाबाजी की टैबलेट, थाली, ताली, आदि से कोरोना को हरा दिया! हम इन चीज़ों से कोरोना को मार रहे थे और बेचारी दुनिया वैक्सीन ढूंढ रही थी!
फिर वैक्सीन मिली तो चालाक सरकार ने मूल रूप से विदेशी वैक्सीनों को स्वदेशी वैक्सीन के तौर पर प्रस्तुत किया, जबकि वो विदेशी थीं। एजुकेटेड और आधुनिक भारत ने मान भी लिया कि वैक्सीन स्वदेशी हैं। कोविशील्ड और कोवैक्सीन के नाम चमकने लगे। उस ज़माने में इन दोनों कंपनियों ने बाक़ायदा एक दूसरे की दवा को पानी कहा था! लेकिन विश्वगुरु भारत के गुरु नागरिक बेचारे झाँसे में आ ही गए।
 
इस बीच 23 जून 2020 के दिन व्यापारी बाबा, काले धन वाले महाराज, पेट्रोल डीज़ल वाले अर्थशास्त्री सन्यासी, बाबा रामदेव की एंट्री हुई। वे अकेले नहीं आए, साथ में ले आए अपनी तथाकथित आयुर्वेदिक कोरोना मारक दवा! इनकी दवा बनाने वाली पतंजलि समेत दूसरी कंपनियाँ अनेकों बार स्वास्थ्य और दवा संबंधित नियमों को भंग कर चुकी थी, और वोही बाबाजी अब की बार कोरोना की दवा लेकर मैदान में आ गए! दावा यह कि उनकी कोरोनिल दवा 7 दिनों के भीतर कोरोना का इलाज कर देगी।
 
बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की शैक्षणिक या चिकित्सकिय योग्यता के बारे में हम क्या, बहुतेरे लोग बहुत नहीं जानते। इस समय देश में कई आयुर्वेदिक कॉलेज हैं, मगर इन दोनों के पास शायद आयुर्वेद की कोई डिग्री नहीं है। अयोग्यता और अज्ञानता से बचकर धंधा जमाने के लिए रामदेव ने देशभक्ति का लबादा ओढ़ लिया और कहते रहे कि वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मुक़ाबला कर रहे हैं। इन्हें अलग अलग समय पर सत्ता का साथ मिलता रहा। किसी सत्ता ने कम साथ दिया, किसी ने बहुत ज़्यादा।
 
बाबा रामदेव के पास फ़ायदा यह है कि दूसरी कंपनियों के पास ग्राहक होते होंगे, इनके पास 'समर्पित ग्राहक' हैं। स्वदेशी वाली भावनात्मक सड़क को नापकर इन्होंने अपना बिज़नेस जमाया है। जब दुनिया और देश किसी दवा की बात कर रहे हो और ऐसे में पतंजलि वाले बाबा चुप बैठते यह मुमकिन नहीं! न जाने क्या किया इन्होंने, फटाक से एक टैबलेट ले आए! कह दिया कि कोरोना की दवा आ गई! पतंजलि ने ढूंढ लिया समाधान!
 
दुनियाभर के वैज्ञानिक डाटा इक्ठ्ठा कर रहे थे, वायरस को लेकर अलग अलग शोध कर रहे थे, सिक्वेंसिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग पर माथा पीट रहे थे। इधर अर्थशास्त्री बाबा कूद पड़े! कह दिया कि मेरी कंपनी ने दवा ढूंढ ली है कोरोना की! पता नहीं कहाँ से इन्होंने डाटा इक्ठ्ठा किया, पता नहीं कहाँ से मरीज़ों पर टेस्ट किया, पता नहीं वायरस की वैज्ञानिक जानकारी को लेकर क्या माथा पीटा बाबा ने! किसी को पता नहीं! बस, बाबा टैबलेट लेकर कूद गए! कह दिया कि कोरोना का सौ फ़ीसदी इलाज इससे संभव है।
इन्होंने कोरोनिल टैबलेट और श्वासारि वटी दवा पेश की। दावा किया कि इससे कोरोना का सौ फ़ीसदी इलाज संभव है। पतंजलि ने दावा किया कि इसका क्लीनिकल ट्रायल हुआ है और मरीज़ों पर सौ फ़ीसदी सकारात्मक असर देखने को मिला है।
 
किंतु दवा की लॉन्चिंग के साथ ही इस पर गंभीर सवाल उठने लगे! इनके समर्पित ग्राहकों ने तो सवाल नहीं उठाए, किंतु दुनिया इससे इतर भी तो है। मूल और तार्किक सवाल उठे। आख़िरकार कुछ घंटे बाद ही आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार प्रसार और बिक्री पर रोक लगा दी!!! कहा कि मंत्रालय को इस दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से दवा को लेकर पूरी प्रक्रिया और जानकारी साझा करने के लिए कहा।
 
यूँ तो बाबाजी का बिज़नेस स्टाइल राष्ट्रवादी है। वे अपनी दवा में कुछ मिलाते हो या ना हो, किंतु राष्ट्र-देश-स्वदेश-भारतीय इतिहास-आयुर्वेद-योग-संस्कृति आदि तत्वों को ज़रूर मिलाते हैं! इनकी दवा में क्या कंटेट हैं यह कौन देखता है भला, बस उन भावनात्मक कंटेट के सहारे बाबाजी बाज़ार में कूद जाते हैं! इनके अनेक उत्पादों ने विवाद जगाया है, जुर्माने भरे हैं, नियमों को तोड़ा है, लेकिन उन भावनात्मक तत्वों की मिलावट के कारण इन्हें अब तक परेशानी नहीं हुई है।
 
इनके पास जो समर्पित ग्राहक हैं, इनमें पढ़ा-लिखा शिक्षक समुदाय भी है। बाबाजी की अपनी आँख भले ठीक नहीं हो पाईं, वे हर बीमारी का इलाज ढूंढ ही लेते हैं! और फँसते हैं तो शरारतें करके बाहर भी निकल आते हैं।
 
बाबा रामदेव की कोरोना की इस कथित दवा को लेकर उन दिनों जमकर विवाद हुए। जिस दवा को पतंजलि ने कोरोना की दवा कहकर बाज़ार में उतारा था, उस पर विवाद होने के कुछ दिनों के बाद बालकृष्ण ने ट्वीट कर कह दिया कि पतंजलि ने कोरोनिल टैबलेट को चिकित्सकीय या क़ानूनी रूप से कभी भी कोरोना की दवा नहीं कहा।
पतंजलि ने दावा किया था कि इस दवा का ट्रायल जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस (निम्स) अस्पताल में किया गया था। अस्पताल के चेयरमैन बीएस तोमर ने पतंजलि और रामदेव के दावे को ग़लत बताया। तोमर ने कहा कि उन्होंने इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी का प्रयोग किया था, लेकिन यह कोई इलाज या दवा नहीं थी। तोमर ने यह भी कहा कि उनके संस्थान ने कोरोनिल बनाने में पतंजलि का कोई सहयोग नहीं किया।
 
इसके बाद बाबा रामदेव, बालकृष्ण, वैज्ञानिक अनुराग वार्ष्णेय, एनआईएमएस के अध्यक्ष बलबीर सिंह तोमर और निदेशक अनुराग तोमर के ख़िलाफ़ जयपुर के ज्योति नगर थाने में एफ़आईआर दर्ज कराई गई।

 
केंद्रीय मंत्रालय की ओर से दवा के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने और उत्तराखंड सरकार से इस संबंध में जवाब तलब करने के बाद राज्य सरकार ने भी पल्ला झाड़ लिया। प्रदेश के आयुष विभाग ने कहा कि पतंजलि को इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का लाइसेंस दिया गया था। कोरोना की दवा कैसे बना ली और दवा की किट का विज्ञापन क्यों किया गया इसका पता लगाया जाएगा। राज्य के आयुष विभाग ने पतंजलि को नोटिस जारी कर दिया।
 
मिला था इम्यूनिटी बूस्टर का लाइसेंस, बना दी कोरोना की दवा!!! इम्यूनिटी बूस्टर को पतंजलि और रामदेव बाक़ायदा कोरोना का सौ फ़ीसदी इलाज बताने लगे थे!!! विवाद हुआ तो अलग अलग सरकारी विभागों ने पतंजलि और बाबा रामदेव को नोटिस जारी किए, जाँच का एलान किया और इसके बाद अब तक, यानी मई 2024 तक पतंजलि और रामदेव के उस गंभीर कृत्य के ख़िलाफ़ किसी गंभीर प्रकार की जाँच या सज़ा नहीं हुई है।
 
भारत में किसी दवा को विकसित करने, आवेदन करने, उसके क्लीनिकल ट्रायल को पूरा करने, अनुमति प्रक्रिया, बाज़ार में लाने और बेचने को लेकर लंबे चौड़े क़ानून हैं, नियम हैं। आम तौर पर इन प्रक्रिया को पूरा करने में कम से कम 1 से 3 साल तक का समय लगता है। लेकिन बाबाजी की कोरोना की कथित दवा चंद महीनों में लॉन्च हो चुकी थी!
विवाद हुआ तो शरारती बाबाजी ने शरारतपूर्ण ढंग से कह दिया कि हमने इसे कोरोना की दवा के रूप में लॉन्च किया ही नहीं है। बाबाजी की दवा का मामला और ज़्यादा गंभीर हुआ तो इन्होंने बाक़ायदा सारा दोष भारतीय मीडिया पर मड़ दिया। कह दिया कि मीडिया ने तथ्यों को ग़लत तरीक़े से पेश किया था।
 
पता नहीं चला कि जब दवा मार्केट में आ रही थी तब प्रचार प्रसार मीडिया कर रहा था या बाबा? पतंजलि ग्रुप पर इस 'दवा के नाम पर फ़्रॉड' करने के आरोप में चंद एफ़आईआर भी दर्ज हुईं। कंपनी के विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, फिर विवाद और उसके बाद कन्नी काटने वाले जवाब, एक ऐतिहासिक महामारी को लेकर भारत में इन दिनों आसानी से आपराधिक कृत्य एक आसान शरारत के रूप में चलता रहा।
 
95 कोरोना मरीज़ों पर क्लीनिकल ट्रायल को लेकर दस्तावेज़ सामने आए, और इस प्रक्रिया को लेकर न सिर्फ़ पतंजलि और रामदेव, बल्कि सरकारी विभागों और सरकार, सभी पर सवाल उठे।
 
उसके बाद कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आया। एक घटना अदालत के भीतर हुई। पता चला कि रामदेव की दवा जो भी हो, महज़ बूस्टर हो या कुछ और, किंतु उसका नाम उसका है ही नहीं!!! पता चला कि कोरोनिल नाम तो रामदेव ने किसी से चुरा लिया है! कोरोनिल नाम चुराने को लेकर बाबा की कंपनी पर अदालत ने 7 अगस्त 2020 के दिन 10 लाख का जुर्माना लगाया।
 
दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट में चेन्नई की अरुद्रा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से याचिका दायर की गई थी। कंपनी की ओर से कहा गया था कि कोरोनिल 92बी नाम से उनका ट्रेडमार्क प्रोडक्ट रजिस्टर्ड है और वह लगभग तीन दशक से औद्योगिक रसायन की सफ़ाई के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है।
इससे पहले 2015 में बाबा ने बिना लाइसेंस के मैगी को लॉन्च कर दिया था! बीच में एएससीआई ने कहा था कि पतंजलि के केश और दंत कांति ब्रांड के एड गुमराह करने वाले हैं। साल 2018 में भी रामदेव अपने एक टेक उत्पाद को लेकर विवादों में फँसे थे। इन्होंने अमेरिकी ऐप किम्भो को पतंजलि का ऐप बनाकर पेश कर दिया था! साथ में स्वदेशी वाला तड़का भी लगाया था। बाद में विवाद बढ़ा तो प्ले स्टोर से इसे हटा लिया गया था।
 
साल 2020 में जीएसटी कटौती के बावजूद पतंजलि अपने वॉशिंग पाउडर उत्पाद ऊंचे दामों पर बेच रही थी! जिसके चलते राष्ट्रीय मुनाफ़ाखोरी नियंत्रण क़ानून के तहत उस पर 75.10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इससे पहले 2016 में हरिद्वार की एक अदालत ने ग़लत प्रचार और भ्रामक विज्ञापन देने के लिए पतंजलि की पाँच इकाइयों पर 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

 
सन 2017 में पतंजलि के आंवला जूस को लेकर विवाद हुआ था। इस जूस के नमूनों का परीक्षण कोलकाता की एक लैब में किया गया और उसके बाद आर्मी कैंटीन, यानी सीएसडी ने पतंजलि के इस जूस को उपभोग के लिए अयोग्य घोषित कर दिया और अपनी सभी स्टोर्स पर इसकी बिक्री को प्रतिबंधित किया था।
 
2019 में पतंजलि के शरबत को लेकर भी सवाल उठे थे। सवाल यूएसएफडीए ने निरीक्षण के बाद उठाए थे। 2015 में पतंजलि ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च करने से पहले FSSAI से लाइसेंस ही नहीं लिया था! इसके बाद पतंजलि को खाद्य सुरक्षा नियमों के उल्लंघन के लिए कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। 2015 में ही हरिद्वार के लोगों ने पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियों की शिकायत की थी।
 
2018 में एफएसएसएआई ने औषधीय उत्पाद गिलोय घनवटी पर निर्माण तिथि एक महीने आगे लिखने पर पतंजलि को फटकार लगाई थी। कैंसर या एड्स जैसी बिमारियों को मिटाने के अप्रमाणित दावों को लेकर भी रामदेव विवादों में रह चुके हैं।
दिसंबर 2020 के दौरान सेंटर फ़ोर साइंस एनवायरमेंट, यानी सीएसई ने पतंजलि और डाबर जैसी कंपनियों के शहद पर सवाल उठाए थे। सीएसई ने कहा था कि इन प्रमुख ब्रांडों के शहद में शुगर सिरप मिलाया हुआ पाया गया है। 3 दिसंबर 2020 के दिन सीएसई ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर खुलासा किया था कि जाँच किए गए 13 ब्रांडों में से 10 ब्रांड के सैंपल न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजनेंस, यानी एनएमआर टेस्ट में फ़ेल हो गए थे।
 
आगे कहा गया था कि जो 10 ब्रांड फ़ेल हुए, उनमें से 3 तो भारतीय गुणवत्ता के स्टैंडर्ड भी पास नहीं कर सके थे! सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया कि जर्मनी की लैब ने पाया कि डाबर के सभी 3 सैंपल एनएमआर टेस्ट में फ़ेल हुए, 1 सैंपल टीएमआर टेस्ट में फ़ेल हुआ, जबकि पतंजलि के 2 सैंपल टीएमआर और एनएमआर, दोनों टेस्ट में फ़ेल हुए थे।

 
पतंजलि और डाबर, दोनों ने इन रिपोर्ट को खारिज़ किया और कहा कि यह भारत के प्राकृतिक शहद उद्योग को बदनाम करने की साज़िश है। भारत के ख़िलाफ़ साज़िश वाला यह हथियार राजनीति ने कंपनियों से लिया, या कंपनियों ने राजनीति से, यह आप पता कर लें।
 
पतंजलि और रामदेव की जिस कथित कोरोना दवा को लेकर काफ़ी विवाद हुआ था, उसी पतंजलि और उसी रामदेव ने अगले साल, यानी 19 फ़रवरी 2021 के दिन उसी दवा को कोरोना का इलाज बताकर दोबारा लॉन्च किया। पतंजलि ने ट्वीट कर कहा, "गौरव का क्षण! कोरोना की दवा बनाने की पतंजलि के वैज्ञानिकों की कोशिशें आज कामयाब हो गईं।"
 
उस विवादित दवा को, जिस पर जुर्माना लगा था, विवाद हुए थे, फटकार पड़ी थी, जिसे अदालत ने देश के नागरिकों को छलने की कोशिश कहा था, उस दवा को बाक़ायदा दोबारा लॉन्च किया गया! ग़ज़ब द्दश्य यह था कि अब की बार विवादित कंपनी और इस विवादित महाराज ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में अपनी इस दवा को लॉन्च किया।
रामदेव ने दावा किया कोरोना पर कंपनी के 25 रिसर्च पेपर हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस दवा को सीओपीपी-डब्लूएचओ-जीएमपी सर्टिफ़िकेट मिला हुआ है यानी, विश्व स्वास्थ्य संगठन से सर्टिफ़िकेट मिला है। रामदेव के साथी बालकृष्ण ने प्रेस कॉन्फ़्रेस में यह भी दावा किया कि इस कथित दवा को 158 देशों में निर्यात की अनुमति मिल गई है। पतंजलि ने यह भी दावा किया कि आयुष मंत्रालय से इस दवा को इस्तेमाल करने की मंजूरी मिल गई है।
 
उस समय केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा,  "पतंजलि के अनुसंधान का देश को फ़ायदा तो होगा ही, पर वैज्ञानिक रूप से यह काम करने के लिए बाबा रामदेव और आचार्य बाल कृष्ण का धन्यवाद करता हूँ, जो अब वैज्ञानिक आधार लेकर फिर जनता के सामने आए हैं। तो निश्चित तौर पर लोगों का विश्वास इस पर और बढ़ेगा।"
 
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ट्वीट कर लिखा, "आयुर्वेद को लेकर जो सपना बाबा रामदेव का है, वही भारत सरकार का सपना है।" इसके साथ ही ट्वीट के ज़रिए इन्होंने कोरोना की दवा को लेकर रामदेव और बालकृष्ण को बधाई भी दी।
 
इतना ही नहीं, देश का वो गोदी मीडिया और उसके वो बदनाम पत्रकार और एंकर, बाबा रामदेव और उनकी कथित कोरोना की दवा का गुणगान गाने लगे और इसे देश की सफलता, आत्मनिर्भरता, राष्ट्रवाद और अंत में नरेंद्र मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बताकर फेफड़े फाड़ने लगे!
 
किंतु कंपनी ने जो ट्वीट किया और उसके साथ दवा के पैकेट की जो तसवीर लगाई, उस पर दवा नहीं लिखा था, बल्कि स्पष्ट रूप से 'सपोर्टिंग मेज़र' लिखा हुआ था! यानी, किसी और मुख्य दवा के साथ सहायक के तौर पर लिया जाने वाला सप्लीमेंट।
सोचिए, जिस कंपनी और जिस बाबा पर दवा और स्वास्थ्य संबंधित अनेकों विवाद चले हो, जिसने कोविड19 जैसी महामारी के दौर में कोरोनिल जैसा आपराधिक कृत्य कुछ ही महीनों पहले किया हो, उस कंपनी और उस व्यक्ति के साथ सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्री बैठते हैं और अगली दवा को कोरोना का इलाज बताकर लॉन्च करते हैं। जबकि कंपनी की इस दवा के पैकेट के ऊपर कुछ और ही कहानी बयाँ की होती है।
 
देश के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और देश के केंद्रीय परिवहन मंत्री की उपस्थिति के बीच बाबाजी ने अपना एक और शरारती नुस्खा पेश किया था, यह अपने आप में विश्वगुरु देश के ग़ज़ब गुरु ही कह लीजिए।
 
उपरांत, आज जिस कोविशील्ड ने अपनी वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट को स्वीकार किया है उसने उस दौर में 42 हज़ार से ज़्यादा लोगों पर अपनी वैक्सीन के परीक्षण के दस्तावेज़ पेश किए थे, किंतु बाबाजी और उनकी कंपनी ने ऐसा कोई परीक्षण डाटा पेश ही नहीं किया! और फिर भी इनके साथ सरकार के दो-दो केंद्रीय मंत्री बैठे हुए थे! अब इसे मोदीजी की खटारा कार कहें या सरकार?
 
अब की बार रामदेव ने केंद्र सरकार के दो अति वरिष्ठ मंत्रियों की उपस्थिति में दावा किया था कि उनकी इस नयी कोरोना की दवा को डब्ल्यूएचओ ने सर्टिफ़िकेट दिया है। किंतु दो दिनों के भीतर डब्ल्यूएचओ ने आधिकारिक रूप से पतंजलि के इस दावे को नकार दिया! डब्ल्यूएचओ साउथ ईस्ट एशिया ने ट्वीट कर कहा कि उसने पतंजलि की कोविड19 की रोकथाम या इलाज से जुड़ी किसी पारंपरिक दवा की न तो समीक्षा की है, और न ही उसे सर्टिफ़ाइड़ किया है।
 
स्वदेश, राष्ट्रवाद और इसके ज़रिए आयुर्वेद की तरफ़ लोगों को भावनात्मक तरीक़े से जोड़ना, और किसी भी अनाप-शनाप दवा को महामारी की दवा बता कर देश के साथ छल करना, बाबा के इस आपराधिक बिज़नेस स्टाइल में बाक़ायदा केंद्र सरकार के दो मंत्री, जिसमें एक तो स्वयं स्वास्थ्य मंत्री थे, उपस्थित थे यह 'अच्छे दिन' ही मान लीजिए!
लाज़िमी है कि विवाद बढ़ना था। दरअसल, यह पूरा घटनाक्रम देश के नागरिकों के साथ ही नहीं, देश की व्यवस्थाओं के साथ, समुचे देश के साथ छल था। यह सीधे सीधे अतिगंभीर भ्रष्ट आचार और आपराधिक स्वास्थ्य प्रवृत्ति थी, जो देश के साथ की गई थी।
 
किंतु पढ़ा-लिखा और आधुनिक समाज राष्ट्रवाद, आयुर्वेद ही नहीं, नरेंद्र मोदी के नाम पर इतना अँधा-बेहरा और गुँगा हो चुका था कि इतना बड़ा मसला, देश के साथ खुला छल, कोई बड़ी घटना बन नहीं पाया। देश का मीडिया गोदी मीडिया बना था, सो उसने इस मसले को लेकर सरकार या नरेंद्र मोदी या पतंजलि तथा बाबा रामदेव पर कोई सवाल नहीं किए।

 
हालाँकि IMA ने ज़रूर पूछा कि, "स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ग़लत तरीक़े से गढ़े हुए, अवैज्ञानिक उत्पाद को देश के सामने कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?" इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इस प्रवृत्ति की जमकर निंदा की। सोशल मीडिया पर सवाल उठे कि देश के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में बाबा रामदेव और उनकी कंपनी ने डब्ल्यूएचओ तक का नाम लेकर देश के सामने झूठा दावा क्यों किया?
 
ग़ज़ब था कि देश के स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में ही एक अप्रमाणित उत्पाद को महामारी का इलाज बताकर पेश किया जा रहा था! सिंपल सी बात है कि सरकार की हाजिरी के बीच ही कंपनी अनैतिक, अप्रमाणिक, ग़लत और झूठे उत्पाद को पेश करने की हिम्मत दिखा रही थी और फिर सवाल उठे तो कुछ ही दिनों में एक और बड़ा विवाद रामदेव बाबा ने खड़ा कर दिया और इस विवाद में भी केंद्र सरकार आँखें मुँद बैठी रही।
 
फिर तो कुछ ही दिनों के भीतर बाबा रामदेव ने अपनी दवा और अपने विज्ञान को छोड़ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और एलोपैथी उद्योग को ही निशाने पर ले लिया और देश की स्थापित स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य ढाँचे को हद के पार जाकर अमर्यादित भाषा में संबोधित करने लगे।
ख़ुद पर सवाल उठे तो शरारती बाबा ने अब की बार सारी हदें पार कर दी। करते भी क्यों नहीं? सत्ता उनके साथ पूरी तरह से खड़ी थी। रामदेव ने अपनी दवा के ऊपर उठे सवालों और देश के साथ किए गए छल का जवाब नहीं दिया, बल्कि इन्होंने तो एलोपैथी और देश के सारे डॉकटर्स के बारे में अति विवादित टिप्पणियाँ कर दी। स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में डॉकटर्स को हत्यारा कहा, एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस कह दिया! जो डॉकटर्स उन दिनों अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना के मरीज़ों के इलाज में जुटे थे, उन पर अनर्गल बयानबाजी रामदेव करने लगे।
 
जिन चिकित्सकों को प्रधानमंत्री कोरोना योद्धा कह रहे थे, जिन पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसा रहे थे, उनको रामदेव ने हत्यारा-स्टुपिड और दिवालिया कह दिया! अपनी अप्रमाणित-संदिग्ध दवा तथा ख़ुद के संगीन-आपराधिक कृत्यों पर सफ़ाई देने की जगह रामदेव ने बिना प्रमाण या बिना किसी दस्तावेज़ के कह दिया कि कोरोना में जितनी मौतें हुई हैं, वो तमाम मौतें एलोपैथी दवा खाने से हुई है।
 
रामदेव तो कोविड19 के उपचार के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए प्रोटोकॉल तक को चुनौती देने लगे! बाबा रामदेव ने सीमाएँ लाँधते हुए एक वीडियो के ज़रिए दावा यह भी कर दिया कि वैक्सीन की दोनों ख़ुराक लेने के बाद भी 10,000 डॉक्टरों की मौत हो गयी और एलोपैथिक दवाएँ लेने के कारण लाखों लोगों की मौत हो गयी। इन्होंने कह दिया कि एलोपैथी से इलाज दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। बाबाजी ने कहा कि कोरोना के 90 फ़ीसदी मरीज़ योग और आयुर्वेद से ठीक हुए हैं।
 
रामदेव अपनी कंपनी और अपनी दवा को बेहतर बताने के लिए हर सीमा को लाँध गए। आईएमए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की कि दुष्प्रचार वाला अभियान चलाने के लिए रामदेव पर तत्काल राजद्रोह के आरोपों के तहत मामला दर्ज होना चाहिए।
 
डॉकटर्स को कोरोना योद्धा बताने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएमए के इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया और ना ही सार्वजनिक रूप से कोई भी प्रतिक्रिया दी।
अपना धंधा बढ़ाने के लिए एलोपैथी की बेवकूफ़ी और दिवालिया विज्ञान कहने वाले बाबा रामदेव के बारे में यह याद होना चाहिए कि रामदेव ने जब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल की थी, तब उन्होंने यह दावा किया था कि योग के कारण उनका शरीर इतना मज़बूत हो गया है कि वे लंबे समय तक बिना भोजन के रह सकते हैं। मगर उपवास प्रारंभ करने के कुछ ही दिनों के बाद उनकी हालत इतनी पतली हो गई कि उन्हें एक एलोपैथिक अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसी तरह उन्हीं दिनो जब आचार्य बालकृष्ण बीमार पड़े, तो वे एक एलोपैथिक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हो गए।
 
दरअसल, जो बाबा चमत्कार करके सबकी पीड़ा हरता है, वह ख़ुद बवासीर होने पर डॉक्टर के पास दौड़ता है! जैसे ऊपर देखा वैसे, रामदेव और बालकृष्ण, दोनों जब जब बीमार हुए, अपनी दवा छोड़ एलोपैथिक इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुए!
 
उन दिनों यह मामला अदालत पहुंचा तब भी रामदेव का अहंकार और अभिमान सातवें आसमान पर था। सोशल मीडिया पर रामदेव की गिरफ़्तारी की माँग उठी तो 26 मई 2021 के दिन रामदेव ने कहा, "अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता बाबा रामदेव को।"
 
नरेंद्र मोदी सरकार का हाथ उन पर था, और इसी वजह से बाबा रामदेव का अहंकारी, अभिमानी और निहायत अज्ञानी रूप देश के सामने खुल कर आ गया। अपनी अनाप-शनाप दवा बेचने के लिए रामदेव ने जमकर झूठ फैलाया। अनेक अख़बारों में कंपनी की दवाओं के बड़े बड़े इस्तेहार दिए और ऐसे ऐसे दावे किए, जैसे कि उनकी दवा को छूने भर से हर रोग दूर हो जाएँगे। इतना ही नहीं, अपने उन इस्तेहारों में रामदेव ने बाक़ायदा दूसरी कंपनियों और दूसरी तमाम दवाओं का लिखित में ख़ूब मख़ौल उड़ाया और पतंजलि के सिवा दूसरी तमाम कंपनियों की दवाइयों को झूठ कह दिया।
 
साफ़ लिखा जाए तो एक झोलाछाप व्यक्ति अपने झोलाछाप तरीक़ों से सरकार का खुला साथ लेकर झूठे दावे कर अपनी दवा बेचने की सार्वजनिक और लिखित कोशिशे करने लगा और इस चक्कर में दूसरे तमाम उत्पादों को झूठा और अपने अप्रमाणित और संदिग्ध उत्पादों को दुनिया का एकमात्र इलाज बताने लगा। केंद्र सरकार और उनके मंत्री आँखें मुँद इस ग़ज़ब सीन को देखते रहे।
पतंजलि और रामदेव की कथित और अप्रमाणिक कोरोना की दवा और उसके बारे में चौंकाने वाले खुलासों के बाद रामदेव ने जिस सड़क को नापा, इससे उनकी उस दवा को लेकर सवाल पीछे छूट गए और पूरा मामला इंडियन हेल्थ सिस्टम, हेल्थ डिपार्टमेंट, एलोपैथी साइंस और आयुर्वेद की लड़ाई में बदल गया! इस पूरी लड़ाई में रामदेव ने अनैतिक, असभ्य, अहंकारी, अवैज्ञानिक और अज्ञानी बातें ही की। ना अपनी दवा को लेकर कोई तथ्य दिए, ना अपने इन आरोपों को लेकर कोई तथ्य दिए।
 
मामला हद से आगे जा पहुंचा तब जाकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने रामदेव को चिठ्ठी लिख इस विवाद पर माफ़ी मांगने के लिए कहा। वो चीठ्ठी देश के सामने आई तो लगा कि रामदेव को स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई विनंती पत्र लिखा हो! रामदेव ने अगर-मगर लगाते हुए अपने बयान के लिए खेद जताने की खानापूर्ति कर दी।
 
लाज़िमी था कि दोनों तरफ़ मूल कहानियाँ एकसरीखी ही थीं। और इसी वजह से वक़्त रहते सारा मामला हवा हो गया। दोनों पक्ष अपने अपने धंधें में व्यस्त हो गए और इस पूरे मामले में जिसे सबसे ज़्यादा मुखर होकर सवाल करने चाहिए थे, वह नागरिक प्रजा बनकर चुप ही रहे।
 
एलोपैथी और वैक्सीन को दुनिया का सबसे बड़ा झूठ बताने वाले रामदेव बाबा ने बाद में वैक्सीन भी लगवा ली!!! फिर तो डॉकटर्स को देवदूत भी बता दिया! पता नहीं चला कि यह सारा विवाद योजनाबद्ध तरीक़े से हुआ था, या फिर कुछ दूसरी वजहें थीं?
 
प्रधानमंत्री ने नहीं सुना तो आईएमए ने इस मामले को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की, जो टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं के ख़िलाफ़ पतंजलि और बाबा रामदेव के अपमानजनक अभियान और नकारात्मक विज्ञापनों को नियंत्रित करने की मांग से संबंध रखती थी।
अब साल 2024 के फ़रवरी महीने से पतंजलि और बाबा रामदेव, दोनों फिर से सुर्खियों में हैं। मामला है पतंजलि के कथित भ्रामक और झूठे विज्ञापनों का, जो 2022 से चल रहा है। किंतु इस बार चौखट किसी राज्य का हाईकोर्ट नहीं है, बल्कि मामला देश के सर्वोच्च अदालत के सामने हैं। और सुप्रीम कोर्ट रामदेव को जमकर माफ़ी योग की शिक्षा दे रहा है।
 
अगस्त 2022 में सीजेआई रमना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड सहित अधिकारियों को नोटिस जारी किया। 21 नवंबर 2023 को कोर्ट ने आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के ख़िलाफ़ भ्रामक दावे और विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विज्ञापन जारी रखने पर प्रति उत्पाद 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की सख़्त चेतावनी भी दी।

 
लेकिन बाबा रामदेव सुप्रीम कोर्ट को भी ठेंगा दिखाने लगे! 21 नवंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश पारित करने के अगले दिन, 22 नवंबर 2023 को बाबा रामदेव और पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और फिर से भ्रामक दावे किए! इतना ही नहीं, फिर से देश के प्रमुख अख़बारों में बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित किए गए, जिसमें दावा किया गया था कि पतंजलि आयुर्वेद के पास मधुमेह, रक्तचाप, अस्थमा, गठिया, ग्लूकोमा आदि का स्थायी इलाज है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने अब की बार बाबा रामदेव और पतंजलि को जमकर घेरा। अदालत ने कहा, "आपने शीर्ष न्यायालय के आदेश के बाद भी इस विज्ञापन को लाने का साहस दिखाया। स्थायी राहत, आप स्थायी राहत से क्या समझते हैं? क्या यह कोई इलाज है? हम एक बहुत ही सख़्त आदेश पारित करने जा रहे हैं।"
 
शीर्ष अदालत ने कहा, "आपने हर सीमा तोड़ दी है। यह पूरी तरह अवमानना है। सिर्फ़ सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, देश भर की अदालतों द्वारा पारित हर आदेश का सम्मान किया जाना चाहिए।"
 
सर्वोच्च न्यायालय ने पतंजलि के एमडी को अवमानना नोटिस जारी किया। साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को भी जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा, "देश के साथ घोखा हो रहा है और केंद्र सरकार आँखें बंद करके बैठी है। आयुष मंत्रालय ने तब अपनी आँखें बंद क्यों रखीं, जब पतंजलि यह कहते हुए शहर दर शहर जा रही थी कि एलोपैथी में कोविड का कोई इलाज नहीं है। इस तरह के विज्ञापन के ज़रिए पूरे देश को गुमराह किया जा रहा है। केंद्र सरकार को तत्काल कुछ कार्रवाई करनी होगी।"
सुप्रीम कोर्ट ने इस बार काफ़ी सख़्ती दिखाई। शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को अपने उत्पादों का विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से भी रोक दिया। साथ ही अदालत ने आगाह किया कि पतंजलि चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के विरोध में कोई भी बयान न दे, जब तक मामला विचाराधीन है। कंपनी के एमडी को अवमानना नोटिस के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण, दोनों को नोटिस जारी किए।
 
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब सही समय पर रामदेव ने नहीं दिया। रामदेव बाबा के द्वारा समय पर नोटिस का जवाब नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने तेवर ज़्यादा सख़्त किए और आदेश पारित किया कि अब रामदेव और बालकृष्ण, दोनों को हमारे सामने उपस्थित होना पड़ेगा और यदि वे दी गई तारीख़ पर उपस्थित नहीं होते हैं तो फिर हम उनकी गिरफ़्तारी का आदेश जारी कर देंगे।
 

शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार के रवैए पर सख़्त रुख़ अपनाते हुए कहा, "वो (उत्तराखंड सरकार) अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं कर पाई।" अदालत ने उत्तराखंड शासन को इस मामले में अगली सुनवाई के दिन हाज़िर रहने का हुक्म सुनाया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने आँखें दिखाई तो रामदेव और बालकृष्ण दौड़ने लगे। दोनों को सुप्रीम कोर्ट के सामने हाज़िर होना पड़ा। पतंजलि ने अपने भ्रामक विज्ञापन के लिए माफ़ी मांगी और बिना शर्त माफ़ीनामा भी प्रस्तुत किया, जिसमें कंपनी ने अदालत को भरोसा दिलाया कि इस तरह के विज्ञापन को वे कभी प्रस्तुत नहीं करेंगे।
 
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि की माफ़ी तक को अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा, "हम आपकी माफ़ी से ख़ुश नहीं हैं। आपकी माफ़ी इस अदालत को राज़ी नहीं कर रही है। यह सिर्फ़ दिखावटी बयानबाज़ी है।"
 
अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता बाबा रामदेव को, 2020 में यह कहने वाले बाबा अब की बार गिड़गिड़ाते हुए माफ़ी मांगने लगे! मगर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी माफ़ी को मंजूर करने से इनकार कर दिया। अगली सुनवाई में रामदेव और पतंजलि ने फिर एक बार लिखित माफ़ी मांगी। किंतु शीर्ष अदालत ने इस बार भी उस माफ़ी को मंजूर नहीं किया।
अदालत ने कहा कि उन्हें (रामदेव और पतंजलि को) अदालत से नहीं बल्कि देश से माफ़ी मांगनी होगी। अदालत ने रामदेव और उनकी कंपनी को आदेश दिया कि, "जिस तरह आपने वह विज्ञापन दिए थे, उसी तरह अख़बारों के ज़रिए आपको माफ़ी मांगनी होगी।"
 
2024 के अप्रैल महीने में पतंजलि ने देश के 67 न्यूज़पेपर्स में विज्ञापन देकर माफ़ी मांगी। लेकिन शायद शीर्ष अदालत अब भी ख़ुश नहीं थी। पतंजलि और रामदेव के द्वारा पूर्व में की गई शरारतों और कंपनी के विवादित इतिहास ने भी इस मामले में बड़ी भूमिका निभाई। पतंजलि की तरफ़ से अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत को 67 न्यूज़पेपर्स में विज्ञापनों के ज़रिए मांगी गई माफ़ी के बारे में जानकारी दी।
 
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब की बार भी पतंजलि और रामदेव को नहीं छोड़ा। अदालत ने न्यूज़ पेपर्स में माफ़ी वाले विज्ञापनों का साइज़ पूछा और उसकी सोफ़्ट कोपियाँ मांगी। जब अदालत ने देखा कि अख़बारों में माफ़ी के जो विज्ञापन दिए गए थे उनकी साइज़ छोटी थी और वो भीतरी पन्नों पर दिए गए थे, तो अदालत ने फिर एक बार आँखें लाल करते हुए कहा, "क्या हम इन विज्ञापनों को माइक्रोस्कॉप से देखें? आपने ग़लती की है। आप जान लें कि आपको बड़े साइज़ में विज्ञापन देकर माफ़ी मांगनी होगी। हमारा वह आदेश आप दोबारा पढ़ लें।"
 
इस बीच सुप्रीम कोर्ट की फटकार खाने के बाद उत्तराखंड सरकार ने रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फ़ार्मेसी के लगभग 14 प्रोडक्ट्स के मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस को सस्पेंड कर दिया। यह जानकारी उत्तराखंड सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 29 अप्रैल 2024 के दिन दायर हलफ़नामे में दी गई। राज्य की लाइसेंस अथॉरिटी ने प्रोडक्ट्स पर बैन का आदेश भी जारी किया, जिसमें कहा गया कि, "पतंजलि आयुर्वेद के प्रोडक्ट्स के बारे में बार-बार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के कारण कंपनी के लाइसेंस को रोका गया है।"
 
यूँ तो उत्तराखंड सरकार का यह कदम खानापूर्ति, या यूँ कहे कि फिर एक बार देश के साथ छल जैसा ही कदम था। जिस मामले में कंपनी के उन उत्पादों के लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए था, वहाँ सरकार ने लाइसेंस को सिर्फ़ रोकने का आदेश दिया।
 
सिर्फ़ पतंजलि या रामदेव ही नहीं, कोरोना काल में कोविशील्ड और कोवैक्सीन को लेकर भी कुछ कुछ ऐसे ही तरीक़ों से लोगों को छला गया। 16 जनवरी 2021 से भारत में आधिकारिक रूप से वैक्सीनेशन शुरू हुआ। तब 2 वैक्सीन को सरकार की तरफ़ से इजाज़त मिली थी। एक थी कोविशील्ड, दूसरी थी कोवैक्सीन।
कोविशील्ड ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनेका कंपनी की वैक्सीन थी, यानी विदेशी। लेकिन उसका भारत में एक और साझेदार था। उस कंपनी का काम इतना था कि उसे उस वैक्सीन का उत्पादन भर ही करना था। उस भारतीय कंपनी का नाम था सीरम इंस्टीट्यूट, जो अदार पूनावाला की कंपनी है। कोविशील्ड, जिसका संशोधन, परीक्षण आदि विदेशी कंपनी ने विदेश में किया, उसे सीरम इंस्टीट्यूट की मौजूदगी की वजह से भारतीय वैक्सीन माना जाने लगा, जबकि वो विदेशी वैक्सीन थी।
 
कोवैक्सीन ऑक्यूजन नाम की एक विदेशी कंपनी की वैक्सीन थी, यानी विदेशी। ऑक्यूजन की एक भारतीय साझेदार कंपनी थी, जिसका नाम था भारत बायोटेक। यहाँ भी कहानी उस पहली वैक्सीन जैसी ही थी।
 
दोनों में से पता नहीं क्यों, किंतु केंद्र सरकार को कोविशील्ड ज़्यादा पसंद आ गई। इसके पीछे केंद्र सरकार ने आज तक कोई भी वैज्ञानिक, प्रमाणिक या तथ्यात्मक रिपोर्ट नहीं दी है कि उसने कोविशील्ड को ही ज़्यादा तवज्जो क्यों दी थी? बस यूँ ही भारत सरकार ने एलान कर दिया कि कोविशील्ड प्रमुख वैक्सीन होगी, जबकि कोवैक्सीन बैक-अप के रूप में इस्तेमाल की जाएगी।
 
इस विवादित पसंदगी के बारे में जब बहुत ज़्यादा सवाल उठे, रिपोर्ट छपे, तो केंद्र सरकार ने कह दिया कि कोवैक्सीन ने पूरी प्रक्रिया और मानकों को अब तक पूरा नहीं किया है। बिलकुल रामदेव बाबा वाला झोलाछाप जवाब था यह! यदि मानकों और प्रक्रिया को पूरा नहीं किया है, तो फिर वह बैक-अप के रूप में है ही क्यों, किस आधार पर है? यह सवाल गोदी मीडिया क्यों करता भला?
 
नोट करें कि कोविशील्ड लोगों को लगना शुरू हो इससे पहले उस वैक्सीन के ट्रायल में कथित दुष्परिणाम के दावे के बाद उन दिनों सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया पर केस किया गया था। दिसंबर 2020 के महीने में चेन्नई के एक वॉलिंटियर ने सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया पर केस किया था और 5 करोड़ रुपये के मुआवज़े की माँग की थी। भारत बायोटेक को लेकर भोपाल में भी वॉलिंटियर ने आरोप लगाए थे।
इन सब विवादों के बीच उन दिनों कोविशील्ड वाले अदार पूनावाला ने रामदेव बाबा टाइप दावा ही कर दिया। पूनावाला ने कोविशील्ड को ज़्यादा अच्छी वैक्सीन बताने के चक्कर में कह दिया कि, "हमारी वैक्सीन प्रभावी है, बाकी सब पानी जैसी हैं।"
 
हम हम हैं, बाकी सब पानी कम है। कोविशील्ड वालों में बाबा रामदेव और बॉलीवुड, दोनों घुस चुके थे। पूनावाला ने कहा, "इस समय दुनिया में सिर्फ़ तीन वैक्सीन हैं जिन्होंने अपनी प्रभावकारिता सिद्ध की है... फ़िलहाल सिर्फ़ तीन वैक्सीन फ़ाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्रोज़ेनेका ऑक्सफ़ोर्ड हैं, जिन्होंने साबित किया है कि ये काम करती हैं। इसके अलावा कोई भी चीज़ जिसने ये साबित किया है कि वह सुरक्षित है, वह पानी जैसी है। जैसे पानी सुरक्षित होता है।"
 
ग़नीमत है कि भारत बायोटेक के एमडी कृष्णा एल्ला ने इस हास्यास्पद बयान का जवाब संयम के साथ दिया। किंतु उन दिनों दो वैक्सीन कंपनियों द्वारा एकदूसरे पर रामदेव बाबा सरीखी शरारतें करने को लेकर बहुत बवाल काटा गया। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र उस अभूतपूर्व महामारी के दौरान, अपनों को गँवाने के बाद, बड़ी गंभीरता से वैक्सीन का इंतज़ार कर रहा था। किंतु वैक्सीन बनाने वाली कंपनियाँ एक दूसरे की वैक्सीन को पानी जैसा बता रही थीं!!!

 
कोविशील्ड, जो मूल रूप से विदेशी कंपनी की थी, उसके स्वदेशी साझेदार ने अपना धंधा बढ़ाने हेतु दूसरी भारतीय कंपनियों की साझेदारी वाली वैक्सीन को पानी कह दिया! बाबा रामदेव से लेकर अदार पूनावाला, सारे बिज़नेसमैन स्वदेशी नागरिकों के दम पर अपने धंधे को विस्तार देने की कोशिश कर रहे थे।
 
इन दिनों मामला उस रफ़ाल विवाद जैसा हुआ, जिसमें स्वदेशी कंपनी एचएएल को विदेशी कंपनी डासो एविएशन और रिलायंस डिफेंस की साझेदारी के सामने घुटने टेकने पड़े थे। यहाँ भी स्वेदशी और विदेशी के चक्कर में अंत में तो जो कुछ हुआ, नागरिकों की ही साँसे अटकी। जिन वैक्सीन का लोगों ने मसीहा के रूप में इंतज़ार किया, वे अपने व्यापारी होने का सरैआम एलान करती रहीं। जिस वैक्सीन में लोगों को भरोसा जगाने का काम सरकार को करना था, वह सरकार इस बवाल को मौन होकर देखती रही और अंज़ाम यह कि शुरू से ही लोगों का भरोसा टूटने लगा।
जिन दो कंपनियों की वैक्सीन को मंजूरी मिली थी उनका सार्वजनिक व्यवहार बिलकुल निराशाजनक रहा था उन दिनों। कोविशील्ड और सीरम इंस्टिट्यूट को लेकर ज़्यादा कहा जा सकता है। कंपनियों के बीच विवाद हो सकता है, बिज़नेस को लेकर प्रतिस्पर्धा भी तत्व है, किंतु सार्वनजिक रवैया इस तरह हदें पार करता हुआ नहीं दिखना चाहिए था।
 
जिस कोविशील्ड को सरकारी आर्शीवाद प्राप्त हुआ था वह कंपनी कोवैक्सीन को पानी कह रह थी और उसी कोवैक्सीन को सरकार ने बैक-अप के तौर पर रखा भी हुआ था! समझ नहीं आया कि पानी को बैक-अप में रखना मज़ाक था, या रामदेव बाबा टाइप अदार बाबा को प्रथम स्थान पर रखना मज़ाक था।
 
सालों बीत गए। फिर वैक्सीनेशन के बाद फंगस बीमारी और दूसरे अनेक दुष्प्रभावों को लेकर हल्ला मचता रहा। किसीने किसीकी नहीं सुनी और अंत में सब भुला दिया गया। कोविशील्ड को लेकर विश्वगुरु भारत देश में सरकार ने नागरिकों की नहीं सुनी, किंतु दूसरे देश में सरकार नागरिकों की सुन रही थी। और वहीं से फँसने के बाद कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी ने बाक़ायदा स्वीकार किया कि जी हाँ, हमारी वैक्सीन के कुछ गंभीर दुष्प्रभाव ज़रूर हैं।
 
नोट करें कि कंपनी ने अपने इक़रार नामे में 'गंभीर दुष्प्रभाव' शब्द इस्तेमाल किया था। उसने स्वीकार किया कि इससे ख़ून जम जाना, प्लेटलेट काउंट कम होना, समेत कुछ दूसरे गंभीर दुष्प्रभाव देखे गए हैं। लेकिन भारत में दुष्प्रभाव के कम प्रतिशत को आगे कर लोग चुनाव-चुनाव खेलने लगे! जिस एलोपैथी को रामदेव स्टुपिड कह रहे थे, उन्होंने ही वैक्सीन के दोनों डोज़ ले लिए थे!
 
इस बीच दवाओं को लेकर एक और खुलासा हुआ। मामला था इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद का, जिसे प्राथमिक तौर पर वसूली और भ्रष्टाचार की उस्तादी योजना के रूप में देखा जाने लगा। 26 मार्च 2024 के दिन बीबीसी हिंदी में छपी चौकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक़, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, मलेरिया, कोविड या दिल की बीमारियों का इलाज करने वाली कई प्रचलित दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल होते रहे और जिन कंपनियों की दवाओं के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपयों के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के तौर पर दिए।
नोट करें कि ड्रग टेस्ट फ़ेल होना, इसका यहाँ अर्थ यह है कि इन कंपनियों की दवा बाज़ार में बिक रही थी और अलग अलग ज़गहों से नमूने एकत्रित कर जाँच की गई। इस रिपोर्ट में उन कंपनियों के नाम समेत कई अचंभित करने वाली जानकारियाँ पेश की गई थीं।
 
इनमें टोरेंट फ़ार्मास्यूटिकल लिमिटेड की डेप्लेट ए 150-निकोरन आईवी2 और लोपामाइड, सिप्ला लिमिटेड की आरसी कफ़ सिरप-लिपवास टैबलेट-ओन्डेनसेट्रॉन और सिपरेमी इंजेक्शन, सन फ़ार्मा लेबोरेटरीज़ लिमिटेड की कार्डीवास-लैटोप्रोस्ट आई ड्रॉप्स और फ़्लेक्सुरा डी, ज़ाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड की रेमडेसिविर, हेटेरो ड्रग्स लिमिटेड और हेटेरो लैब्स लिमिटेड की रेमडेसिविर इंजेक्शन-मेटफॉरमिन और कोविफोर, इंटास फ़ार्मास्युटिकल्स लिमिटेड की एनाप्रिल, आईपीसीए लैबोरेट्रीज़ लिमिटेड की लारियागो टेबलेट, ग्लेनमार्क फ़ार्मास्युटिकल्स लिमिटेड की टेल्मा एएम-टेल्मा एच और ज़िटेन टेबलेट, के ड्रग टेस्ट फ़ेल हुए थे, और इन सभी कंपनियों ने अलग-अलग समय पर (2019 से 2023 के बीच) करोड़ो के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे और राजनीतिक दलों को चंदा दिया।
 
अब तक पता नहीं चल पाया है कि इन फ़ार्मा कंपनियों की दवाओं का परीक्षण में फ़ेल होने के बाद क्या हुआ? क्या उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई शुरू की गई? क्या उन पर आरोपपत्र दायर किया गया था?

 
वैसे भी हमारे यहाँ, पनामा पैपर्स काँड, पैराडाइज़ पैपर्स काँड और फिर पेगागस जासूसी काँड भी हुआ। जिस तरह दुनिया में बड़े बड़े नाम कटघरे में खड़े नज़र आए, उसी तरह भारत में भी बड़े बड़े राजनेता, उद्योगपति, अभिनेता, क्रिकेटर, खिलाड़ी आदि के नाम सामने आए। इन सारे काँडों में भारत के सिवा दूसरे देशों में काफ़ी हलचल हुई, क़ानूनी कार्रवाईयाँ हुई, कुछेक बड़े राजनेताओं को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। लेकिन भारत में उन दिनों देश के केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली न कह दिया कि भारत के पास अपने क़ानून हैं और उसीके मुताबिक़ कार्रवाई होगी। अब तक कौन सी कार्रवाई हुई है यह सबको पता है।
 
इन मामलों को लेकर कम से कम भारत में तो कुछ ज़्यादा नहीं होगा इतना तो तय है। बाहरी देशों में वैक्सीन या दूसरे विषयों पर बहुत कुछ हो चुका है और होगा भी। अप्रैल 2024 में हांगकांग और सिंगापोर में एमडीएच और एवरेस्ट के मसालों में केंसर पैदा करने वाले पदार्थ मिलने का मामला सामने आया था। विक्स, कफ सिरप से लेकर अनेक देशी और विदेशी स्वास्थ्य उत्पादों पर जमकर सवाल उठते रहे हैं।
हमारे यहाँ कोरोना के आगमन के बाद साबुन, हैंड वॉश, टूथपेस्ट, एयर कंडीशनर, बच्चों को सुबह शाम पिलाए जाने वाले पेय पदार्थ, सारे के सारे कोरोना वायरस के विषाणुओं को मार गिराने का दावा टेलीविज़न पर करते रहे हैं! पापड़ खाने से भी कोरोना छू मंतर हो जाता है! वैज्ञानिकों को बोल देना चाहिए था कि भाई वैक्सीन के लिए माथा पीटना छोड़ दो, हमारे यहाँ साबुन भी कोरोना को मार देता है! साबुन से न मरता कोरोना, तो बाबा का टैबलेट था ही!
 
संस्कृति और इतिहास के नाम पर जो बीमारी फैली है कि प्राचीन भारत में ही सब था और दुनिया में जो कुछ था वह प्राचीन भारत के बूते ही था, यह बीमारी दूर होनी चाहिए। हर महानता को कसौटी पर कसना ही चाहिए। मिथकों और मान्यताओं को वह स्थान नहीं दिया जा सकता।
 
इस पूरे चैप्टर का नतीजा चाहे जो हो, तथ्य यह है कि आधुनिक और पढ़े-लिखे भारत को अब आसानी से भावुक बनाकर झाँसा दिया जा सकता है। यह मानने से इनकार नहीं है कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में ही नहीं, बल्कि दादी माँ के नुस्खों में भी कुछ ज्ञान हो सकता है। मगर हर दवा, हर चिकित्सा, हर पद्धति को जाँच, समीक्षा, स्थायी प्रक्रिया, नियमों, सवाल और आलोचना से गुज़रना ही पड़ता है। किसी दवा, किसी चिकित्सा या किसी पद्धति को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह इन प्रक्रियाओं से अछूते रहे।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)