यह सवाल इसलिए नहीं है कि हमारे आकलन में हमने बीजेपी को 230-240 सीटें दी हैं, और लगभग तमाम एग्जिट
पोल में बीजेपी-एनडीए को 300-325-350-375 से लेकर 400 पार सीटें दी गई हैं, और इसलिए हम इसे उस्तादी और किसी स्कैम की नज़र से देख रहे हैं, ऐसा दूरदूर तक नहीं
है। दरअसल, इस एग्जिट पोल को देखने-समझने के बाद यह पहली नज़र में मीडिया द्वारा देश और देश
के नागरिकों के साथ की गई उस्तादी, और आख़िर में किसी बड़े स्कैम की तरह लगता है।
हमने अब तक चार बार चुनावी नतीजों को लेकर पूर्वानुमान लेख लिखे हैं और एक बार
भी किसी मतभेद या सांख्यिकी भेद को लेकर कोई भी लेख इस तरह नहीं लिखा। किंतु इस बार
लिख रहे हैं। इसलिए नहीं लिख रहे कि आकलन में भेद है। इसलिए नहीं लिख रहे कि लगभग तमाम
एग्जिट पोल बीजेपी को मसमोटा बहुमत दे रहे हैं। बल्कि इसलिए लिख रहे हैं कि महज़ कुछ
मिनटों के विश्लेषण के बाद लगभग तमाम एग्जिट पोल अपने एक ख़ास पैटर्न की वजह से संदेह
के घेरे में आ रहे हैं।
सबसे पहली बात तो यह
कि एग्जिट पोल की ज़रूरत ही क्या होती होगी? महज़ कुछ घंटों में अंतिम और आधिकारिक परिणाम आने ही वाला है, तो फिर एग्जिट पोल
क्यों? इससे किसका फ़ायदा होता होगा? एक देश एक चुनाव का गुब्बारे जैसा नारा देने वाला चुनाव आयोग ख़ुद ही एक चुनाव
एक साथ तमाम राज्यों में करवा नहीं पाता! इतनी भीषण ग़र्मी में महीने-डेढ़ महीने तक लंबा चुनाव कराता है! 50-60 दिनों तक इंतज़ार किया तो अब 20-40 घंटे में क्या फ़र्क़ पड़ जाता है सिस्टम और समाज को, की उसे एग्जिट पोल
चाहिए?
ख़ैर, लेख के मूल मुद्दे
की बात करें तो, अनेक एग्जिट पोल ऐसे हैं, जिसने सीटें दिखाई हैं, लेकिन वोट प्रतिशत नहीं दिखाया! एग्जिट पोल कोई हम लोग करते हैं वैसे सर्वे तो है नहीं, या कोई आकलन या विश्लेषण
तो है नहीं। बड़ी बड़ी कंपनियाँ, बड़े बड़े सैंपल के दावे कर सर्वे करती हैं। ढेर सारे पैसे लगते होंगे, आदमी और दूसरे संसाधन
तथा समय लगता होगा, वैज्ञानिक और गणितीय आधार होते होंगे, दूसरी जानकारियाँ होती होगी। ऐसा होना ज़रूरी है, नहीं होता तो हम क्या
करें? लेकिन एग्जिट पोल में यह नियत की गई प्रक्रिया
है।
अब सोचिए कि कोई एग्जिट
पोल सीटें दिखा दें और वोट प्रतिशत ना दिखाए तो फिर बिना वोट प्रतिशत के सीटों की अनुमानित
संख्या पर अंतिम विश्वास कैसे होगा? इससे अच्छा है कि इतने सारे पैसे बर्बाद किए बगैर दूसरे लोग करते हैं वैसे अपना
आकलन और विश्लेषण सीधे सीधे पेश कर दें और उसे एग्जिट पोल जैसा महाकाय और विशिष्ट नाम
न दें।
हालाँकि कुछ एग्जिट
पोल ऐसे हैं, जिन्होंने वोट प्रतिशत दिया है। अब कमाल यह कि जिन्होंने वोट प्रतिशत नहीं दिया, और जिन्होंने दिया, दोनों के आकलन लगभग
लगभग एक सरीखे और एक ही पैटर्न के दिख रहे हैं!
हल्की आलोचना करें
तो मीडिया पर जो एग्जिट पोल हैं, उन भविष्यवाणियों में गंभीर त्रुटियाँ हैं। 1 जून 2024 को घोषित अधिकांश एग्जिट पोल नतीजों में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली
एनडीए सरकार के लिए तीसरे कार्यकाल की भविष्यवाणी की गई है। कम से कम दस एग्जिट पोल
के अनुसार, एनडीए को 350 से अधिक सीटें जीतने का अनुमान है। तीन प्रमुख एग्जिट पोल - इंडिया टुडे-माय एक्सिस
इंडिया, इंडिया टीवी-सीएनएक्स, और न्यूज24-टुडेज चाणक्य - ने एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटों की भविष्यवाणी की है। और इन तमाम पोल में विपक्षी इंडिया गुट के
लिए 200 से कम सीटों की भविष्यवाणी की गई है।
डीबी के एक एग्जिट
पोल को छोड़ दें तो, लगभग तमाम एग्जिट पोल में एक ख़ास प्रकार का पैटर्न नज़र आ रहा है, एक विशेष प्रकार की
उस्तादी दिखाई दे रही है। यूँ कहे कि देश का मीडिया, जो पूंजीपतियों के हाथ में है, उसने किसी विशेष मक़सद
से, जैसे कि योजनाबद्ध
तरीक़े से इन एग्जिट पोल को तैयार किया हो, इस तरह का संदेहात्मक पैटर्न दिखाई दे रहा है।
हम बहुत पहले सर्वे, ओपिनियन पोल और एग्जिट
पोल को लेकर लिख चुके हैं। उस लेख में हमने इन सारी प्रक्रियाओं की पद्धति, मक़सद, बिज़नेस, सफलता, असफलता की बातें की
थीं। सेफोलॉजी से लेकर दूसरे तमाम वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक तर्कों और तथ्यों, सुपर ईगो, आदि को हम विस्तार
से देख चुके हैं। यहाँ बात यह भी नहीं है कि एग्जिट पोल कब सच हुए, कब ग़लत। बात 2024 के इन एग्जिट पोल
की है।
इससे पहले जितने भी
एग्जिट पोल आए, इनमें से 2024 के एग्जिट पोल हास्यास्पद हैं। इसमें तमाम बेसिक्स को जबरन मार दिया गया है। पूर्व
के किसी भी एग्जिट पोल की आलोचना करने के लिए बहुत सारे तर्कों पर जाना पड़ता था, लेकिन यह एग्जिट पोल
सरलता से आलोचना के दायरे में आते हैं।
लगभग तमाम एग्जिट पोल
में बीजेपी और एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता दिखाई दे रहा है। मसला यह नहीं है, किंतु लगभग तमाम के
आकलन में सत्ताधारी दल की अनुमानित सीट संख्या एक सरीखी दिख रही है। ऐसा आम तौर पर
होता नहीं है। ऐसा होता नहीं कि तमाम पोल एक सरीखी संख्या देने लगे। जीतता हुआ, बहुमत मिलता हुआ, दिखाई देना स्वाभाविक
है, लेकिन तमाम पोल में
सीटों की संख्या को एक ख़ास आँकड़े तक पहुंचाने का पैटर्न दिखाई दे रहा है।
एक अजीब सा पैटर्न, एक अजीब सी समानता
दिखाई देती है इन एग्जिट पोल में, जैसे कि तय किया हो कि 350 ले जाना है! वैसे एकाध-दो ने 400 पार भी पहुंचा दिया
है! जैसे तैसे 400 तक पहुंचा दिया गया है!
बीच चुनाव एक मीडिया
इंटरव्यू में ख़ुद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 400 पार का नारा तो विपक्ष को फँसाने के लिए कहा था। अमित शाह की भाषा में कहे तो
वह एक जुमला था। लेकिन एग्जिट पोल वाले मानने को तैयार नहीं! वे तो कहते हैं कि हम तो अब भी फँसाएँगे विपक्ष को!
हमने ऊपर लिखा कि कुछेक
पोल ने वोट प्रतिशत नहीं दिए, किंतु जिन्होंने दिए हैं, उनमें तमाम के वोट प्रतिशत क़रीब क़रीब एक जैसा है! उपरांत वोट प्रतिशत के आधार पर सीटों का गुणाभाग करने का पैटर्न भी लगभग लगभग
सब में एक सरीखा है! यह एक अजीब प्रकार
का संयोग है! यह संयोग है या प्रयोग? ऐसा अजीब संयोग आमतौर पर होता नहीं। या तो वोट प्रतिशत अलग अलग रहेंगे, या फिर सीटों का गुणाभाग
और उसका पैटर्न अलग अलग होगा।
वोट प्रतिशत के आधार
पर सीटों का आकलन जटिल गणितीय प्रक्रिया है, जिसमें भिन्नता आनी ही आनी है। किंतु यहाँ अजीब तरह से एक समान नज़र आती है!
दूसरी बात यह कि इस
बार हर चरण में 2019 के मुक़ाबले वोट कम पड़ा। भले हर चरण में अलग अलग प्रतिशत रहा हो, लेकिन चरण दर चरण, पिछले लोकसभा चुनाव
के मुक़ाबले वोटिंग परसेंटेज कम रहा। हालाँकि एक करोड़ वोटर बढ़ गए यह पहेली है।
किंतु हर चरण में वोट
कम पड़ा। लेकिन एग्जिट पोल की माने तो, तमाम एक सूर में दर्शा रहे हैं कि बीजेपी का वोटर बाहर निकला और वोट कर आया, विपक्ष वालों का नहीं
निकला और इसलिए विपक्ष को वोट मिल नहीं रहा! ऐसा कैसे हो सकता है कि सारे के सारे एक ही तर्क पर चल पड़े कि बीजेपी का वोटर
निकला, लेकिन विपक्ष का नहीं निकला। और एग्जिट पोल में यह तर्क हर इलाक़े के लिए है, यह नोट करें।
ऐसा कैसे मुमकिन है
कि वोटिंग परसेंटेज कम होता है, लेकिन सारे के सारे इलाक़े में लगभग तमाम एग्जिट पोल वालों के मुताबिक़, बीजेपी का वोटर बड़ी
संख्या में बूथ तक पहुंचता है और वोट डाल आता है, और तमाम जगहों पर विपक्ष वालों का वोटर नहीं निकलता?
एग्जिट पोल के मुताबिक़
बहुत सारे राज्यों में बीजेपी 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा वोट प्रतिशत ले रही है, जबकि उन राज्यों में आज भी ज़मीनी जानकारी रखने वाले लोग चिल्ला
चिल्ला कर कह रहे हैं कि एग्जिट पोल वाले जिस वोट प्रतिशत की बात कर रहे हैं वो किसी
भी हालत में मुमकिन नहीं है, क्योंकि उन्होंने ज़मीन पर सब देखा है। जिन राज्यों में बीजेपी 50 फ़ीसदी से ज़्यादा
वोट शेयर हासिल करती हुई दिखाई जा रही है, मसलन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में, तथा दूसरे राज्य में भी, वहाँ अनेक जानकार सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि बीजेपी वहाँ 40 फ़ीसदी से ज़्यादा
वोट नहीं ले पाएगी।
उपरांत बीजेपी और विपक्षी
दलों के बीच अनेक जगहों पर अंतर 6 से लेकर 12-15 प्रतिशत का है। पूरा चित्र देखे तो इन एग्जिट पोल वालों का दावा है कि वोट भले
ही कम पड़ा हो, लेकिन बीजेपी के पक्ष में ज़्यादा पड़ा है, विपक्ष के पक्ष में कम! इतना ज़्यादा पड़ा कि बीजेपी विपक्ष के मुक़ाबले 6 से 15 प्रतिशत आगे हो गई! ऐसा हर राज्य में हो ऐसा कैसे मुमकिन है?
चलिए मान लेते हैं
कि वोट कम पड़ने के बाद भी बीजेपी के वोटर निकले और वोट दे आए, मान लेते हैं कि विपक्ष
के वोटर नहीं निकले, मान लेते हैं कि दोनों के बीच 6 से 15 फ़ीसदी का अंतर है।
यह सब मान लेते हैं।
तब भी एक सवाल उठता है। दरअसल, 5 से 7 या 8-9 प्रतिशत का अंतर विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ़ कर देता है। हर चुनाव में यह देखा
गया है कि इतना अंतर विपक्ष की बहुत ज़्यादा सीटे कम कर देता है। लेकिन इतना होने के
बाद भी इंडिया गठबंधन का सूपड़ा साफ़ नहीं हो रहा! उसे लगभग तमाम पोल वाले 150 से 200 सीटें दे रहे हैं! ऐसा कैसे मुमकिन है
कि 6 से 15 प्रतिशत के अंतर पर भी विपक्षी गठबंधन इतनी ज़्यादा सीटें ले आए? उसका सूपड़ा साफ़ न हो?
बिना किसी मुद्दे के, बिना किसी लहर के
चुनाव में एग्जिट पोल वालों ने एक पार्टी को 400 तक पहुंचा दिया, लेकिन वे दूसरी पार्टी को भी 200 तक पहुंचा रहे हैं! या तो 400 वाले में गड़बड़ है, या 200 वाले में गड़बड़ है।
दो-चार क़िस्म के दुर्लभ
संयोग हैं, जो इस बार हो गए हैं! ऐसा होता नहीं, लेकिन एग्जिट पोल
वालों ने इस असंभव संयोग का प्रयोग करके दिखा दिया है!
कल 1 जून की शाम से एग्जिट
पोल आए हैं और आज शेयर बाज़ार शुरू होने के पहले एकाध घंटे में खेल कोई कर चुका है।
उसके बाद पूरा दिन तेज़ी है। बाज़ार बूम बूम हो रहा है। यह सब तब तक चलेगा, जब तक 4 जून की सुबह गिनती
शुरू होगी। लेकिन तब पैसे निकालने के लिए किसी के पास कोई समय नहीं बचेगा। क्योंकि
शेयर बाज़ार के प्लेयर्स आज सुबह एक घंटे में अपना खेल खेल चुके हैं। आज बाज़ार ऊपर
जा रहा है, एग्जिट पोल को देखते हुए सबको बाज़ार और ऊपर जाता दिख रहा है। लेकिन 4 जून को असली परिणाम
आएँगे तब किसी भी सामान्य निवेशक के पास इतना समय नहीं बचेगा कि वह अपना निवेश निकाल
सके। एग्जिट पोल अपनी विसंगतियों, अपने त्रूटिपूर्ण आकलन के ज़रिए निवेशकों को चेता रहा है, लेकिन गोदी मीडिया
निवेशकों को कंगाल करके रहेगा, क्योंकि वहाँ आँकड़े और अनुमान देख निवेशक किसी दूसरी दुनिया में है।
एक एग्जिट पोल है, जिसमें तमिलनाडु में
कांग्रेस पार्टी को 13 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी, जबकि वह सत्तारूढ़ द्रमुक के साथ गठबंधन में 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है! पोलस्टर ने तमिलनाडु में कांग्रेस+ के लिए 13-15 सीटों की भविष्यवाणी की। डीएमके को 20-22, बीजेपी को 2-4 और अन्य को 0 सीटों का अनुमान दर्शाया
गया। जब जोथीमनी नामक एक सोशल मीडिया यूज़र ने इसे लेकर स्क्रीनशॉट ट्वीट किया तो कुछ
देर बाद इसमें सुधार किया गया और कांग्रेस+ के लिए 6-8 सीटें लिखी गईं! इतना ही नहीं, पहले बीजेपी को 2-4 सीटें दी गई थी, जो बाद में 1-3 की गई! अन्य को 0 सीटें थीं, जिसे 0-2 किया गया!
एग्जिट पोल जैसे महत्वपूर्ण
आँकड़ों में इसे उस्तादी कहे या ग़लती, राजस्थान में 25 सीटों में से एनडीए को 33 सीटें जीतते हुए दर्शाया गया! बिहार में एलजेपी, जो 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, उसके बारे में दावा किया गया कि वह 4-6 सीटें जीत सकती हैं!
ऐसे ही एक अन्य उदाहरण
में एक एग्जिट पोल में महाराष्ट्र में एसएचएस (एकनाथ शिंदे) को 8-10 सीटें और एसएचएस
(उद्धव ठाकरे) को 9-11 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई। मजेदार बात यह कि एसएचएस (ईएस) कुल 15 सीटों पर लड़ रही
है, जिनमें से 13 एसएचएस (यूबीटी) के
ख़िलाफ़ है, जो कुल 21 सीटों पर लड़ रही है। इसलिए तार्किक रूप से, उनमें से किसी एक की संख्या लगभग समान होने के बजाय कम होनी
चाहिए।
केरल में एक एग्जिट
पोल ने बीजेपी का वोट प्रतिशत वामपंथी पार्टी से भी ज़्यादा दर्शाया गया है! ये अनुमान है कि बीजेपी केरल में खाता खोल सकती है, किंतु उसका वोट प्रतिशत
वामपंथी पार्टी से भी ज़्यादा हो जाएगा यह अनुमान विश्लेषकों के मुताबिक़ हास्यास्पद
है।
पूरे चुनाव के दौरान
ज़मीन पर काम करने वाले जानकारों, पत्रकारों की एक सूर में राय है कि एग्जिट पोल में अनेक राज्यों में बीजेपी के
वोट प्रतिशत और सीटों का आकलन गंभीर रूप से त्रूटिपूर्ण है, जिस पर भरोसा करने
के लिए कोई भी तर्क मौजूद नहीं है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत अनेक राज्यों में बीजेपी के वोट प्रतिशत को जितना दर्शाया गया है, ज़मीन पर घूमने वाला
कोई भी विश्लेषक इसे सही मानने के लिए तैयार नहीं है।
उपरांत लगभग तमाम एग्जिट
पोल में वोट प्रतिशत और सीटों की गिनती का सिस्टम हास्यास्पद लग रहा है। ऐसा प्रतीत
हो रहा है, मानो तमाम ने बीजेपी और एनडीए को 350 के पार पहुंचाने की ठानी हो और इस आपाधापी में एग्जिट पोल की वैज्ञानिक और सांख्यिकी
पद्धति को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया हो! अनेक राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी और दूसरे नंबर पर आ रही पार्टी के वोट प्रतिशत
और सीटों की अनुमानित संख्या का कोई तार्किक व गणितीय आधार बन नहीं रहा।
अगर एग्जिट पोल को
सही मानें और यक़ीन करें कि एनडीए और बीजेपी 350 से 400 तक पहुंच सकते हैं, तो फिर विपक्षी दलों को 150 से 200 के बीच सीटें मिलने का कोई आधार नहीं मिलता। 2019 के चुनावों में जितनी सीटें और जितना वोट प्रतिशत बीजेपी और
एनडीए ने पाया था, यदि एग्जिट पोल के मुताबिक़ इस बार उतना या उससे भी अधिक है, तो फिर विपक्ष की
सीटों का अनुमान ठीक नहीं बैठता।
जो एग्जिट पोल एनडीए
को 350 से 400 के पार तक पहुंचा रहे हैं, उन्हें सही मान ले तो, जो ज़मीन पर थे, अनुभवी भी थे, और इनकी तादाद बहुत अधिक थी, इनमें से किसी को भी यह क्यों नहीं दिखाई दिया होगा? 350 से 400 पार, यानी 2019 से भी ज़्यादा या उसके बराबर। अब यदि 2019 में लहर की जगह सुनामी आई थी, तो इस बार किसी को भी ज़मीन पर वह लहर, वह सुनामी, क्यों नहीं दिखाई दी? अगर लहर या सुनामी
थी, तो किसी न किसी को
तो दिखनी चाहिए थी।
विपक्ष के साथ अंडरकरंट
होता है, सत्ता दल के साथ जो होता है उसे आमतौर पर लहर कहते हैं। कमाल यह कि अंडरकरंट अनेक
जगहों पर दर्ज होता गया, यह लहर किसी को नहीं दिखी। बस एग्जिट पोल वालों को दिख गई! किसी भी चरण के बाद लहर नहीं दिखी, उल्टा अंडरकरंट ऊपर आने लगा। क्या वह सारे ज़मीनी विश्लेषक ग़लत? और इतने सारे संदिग्ध
संयोगों वाले एग्जिट पोल सही?
आख़िरी और महत्वपूर्ण
बात यह कि जो जो बीजेपी नेताओं ने कहा, जैसा जैसा कहा, जितना जितना कहा, जिस जिस राज्य ने कहा, वैसा वैसा एग्जिट पोल में दिखा! सीटें, सीटों की संख्या, सीटों का दावा, सब कुछ एग्जिट पोल में वैसा, जैसा बीजेपी नेताओं ने कहा! अंतिम समय में मोदीजी
ने कहा कि पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा परिवर्तन होगा, एग्जिट पोल में वह
भी हो गया! बीजेपी यहाँ 30-32 की बात कर रही थी, एग्जिट पोल में वह
हो गया! जहाँ जहाँ दमदार तरीक़े से जीतेंगे यह कहा, वहाँ एग्जिट पोल वही
हो गया! जहाँ जहाँ बीजेपी ने कहा कि कम नुक़सान होगा, एग्जिट पोल में भी
वही हो गया! इतने सारे संयोग कैसे हो सकते है? इतने सारे एकसरीखे पैटर्न कैसे मिल सकते हैं?
यह ज़रूर है कि वोट शेयर ज़्यादा होने के बाद भी सीटें घट सकती हैं। ऐसा पहले भी
हो चुका है और यह स्वाभाविक है। इसके विभिन्न तार्किक और ठोस कारण होते हैं। किंतु
चुनावी अनुमानों में इस तरह का विशेष पैटर्न, त्रूटिपूर्ण गणित, ज़मीनी तर्क से परे आकलन, यह सब एकाध-दो पोल
में हो सकता है, सारे पोल में नहीं। हर समय विभिन्न अनुमानों में अंतर रहता है, विभिन्नता दिखती है।
यहाँ जिस प्रकार की एकरूपता दिखती है, वह इतनी सीधी और स्पष्ट नहीं है कि उसे स्वीकारा जा सके।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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