मोदी सरकार ने हाथ बाँध कर रखे थे इसलिए
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने हमारे लड़ाकू विमान खो दिए - एक
तरह से कुछ इस प्रकार का चौंकाने वाला दावा वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी के
द्वारा। यह उस सफ़ेद झूठ का पर्दाफ़ाश भी है, जिसमें दावा किया
जाता था कि पीएम मोदी ने सेना को खूली छूट दी है।
यूँ तो किसी भी सैन्य क्रिया, प्रतिक्रिया
या कार्रवाई में सेना को हुए किसी भी प्रकार के नुक़सान की चर्चा कम ही होनी चाहिए
और होती भी रही है। क्योंकि ऐसे समय में इस प्रकार के नुक़सान को टाला नहीं जा
सकता। यह स्वाभाविक है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायु सेना को हुए कथित
नुक़सान की बात को बड़ा विवाद बनाने में स्वयं मोदी शासित सरकार ही जवाबदेह है।
पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद संभावित
सैन्य प्रतिक्रिया को लेकर मोदी शासित सरकार ने जिस प्रकार का वातावरण देश में
तैयार किया, स्वयं पीएम मोदी, गृह
मंत्री और रक्षा मंत्री समेत तमाम ने जिस प्रकार अतिरेक की सीमा को छूआ, मेनस्ट्रीम
मीडिया ने जिस तरह बिलकुल निराधार और अपुष्ट रिपोर्ट पेश किए, उधर
ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुश्मन ने जिस बड़े स्तर पर सैन्य संघर्ष को चलाया और
ज़बरदस्त युद्धोन्माद के बीच अचानक तीसरे देश ने सीजफायर की घोषणा कर दी।
इन तमाम घटनाक्रम के बीच हर कोण तथा हर
मामले में अपुष्ट बातें तथा अतिरेक के चलते आज भारतीय वायु सेना को हुए कथित
नुक़सान के मामले को, भारत की तत्कालीन
मोदी शासित सरकार के बड़बोलेपन और ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनके द्वारा विशुद्ध
राजनीति करने की क्रिया ने बड़े विवाद के स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है।
वैसे सेना के लिए हर छोटा नुक़सान, फिर
वो चाहे सैनिक की जान हो या संसाधनों की क्षति, अपने आप में गंभीर होता है। किंतु वह
सार्वजनिक स्तर पर इस कदर चर्चा के लायक नहीं माना जाता। क्योंकि सेना सरकारों
जैसी नहीं होती, जो
समीक्षा से दूर भागे। वहाँ अंदरूनी समीक्षा होती है, समाधान किया जाता है। ऐसे मामले
राष्ट्रीय स्तर पर इतने ज़्यादा गंभीर नहीं माने जाते। किंतु पीएम मोदी और उनके 'अति प्रचार-प्रसार' के कारण यह राष्ट्रीय विवाद के रूप में
चर्चा में है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने
भारत के जिन लड़ाकू विमानों को कथित रूप से मार गिराया, उनमें
रफ़ाल, सुखोई, मिग और हेरॉन
ड्रोन का ज़िक्र है, जो भारतीय सेना के अत्याधुनिक और मुख्य मारक हथियार के रूप में
जाने जाते हैं।
रफ़ाल जब भारत लाया जा रहा था तब
रिलायंस डिफेंस, एचएएल, रफ़ाल
का सौदा इन सब बातों को लेकर ख़ूब विवाद हुआ। मेनस्ट्रीम मीडिया सरकार की मुठ्ठी
में था, वर्ना
इस प्रकार के विवाद पूर्व सरकारों के दौरान रक्षा सौदे के बड़े घोटाले के रूप में
देश में फैला करते थे।
तब मूल विवाद को पीछे छोड़ने हेतु रफ़ाल
के गुणगान में इतना अतिरेक सरकारी और मीडिया स्तर पर हुआ, उसे
इतना शक्तिशाली, आधुनिक, ऐतिहासिक
सा बता दिया गया कि आज जब भारत ने अपना रफ़ाल कथित रूप से सैन्य संघर्ष के बीच
गँवा दिया है, तो
यह बात ऐसे सैन्य संघर्षों के दौरान किसी भी सेना के लिए भले ही बहुत बड़ा विवाद न
हो, किंतु
यह मामला सरकारी और राजनीतिक द्दष्टिकोण से बड़ा विवाद बन चुका है।
यूँ कहे कि सेना के लिए जो बात बहुत
ज़्यादा गंभीर नहीं मानी जा सकती, वह बात राजनीति और सरकारी अतिरेक के कारण ऐसा मुद्दा बन चुकी
है, जिसकी
सड़क को नापते हुए उसे तत्कालीन सरकार की शैली, विफलता आदि विशेषणों से सजाया जा रहा
है।
और इसके लिए स्वयं पीएम मोदी और उनकी
सरकार ही ज़िम्मेदार है, जिन्होंने हर चीज़ में, हर छोटी मोटी बातों में इतना ज़्यादा
अतिरेक, इतना
ज़्यादा प्रचार-प्रसार कर दिया, कि आज एक गंभीर किंतु सदैव बनने वाली घटना उस सरकार के उन अति
दावों के ख़िलाफ़ खड़ी हो रही है।
घटनाक्रम को देखे तो, भारतीय
वायु सेना को हुए नुक़सान का दावा सबसे पहले स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान की तरफ़
से किया गया था। 7 मई 2025
को पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने 5 भारतीय लड़ाकू विमान
और 1
हेरॉन मार गिराए हैं। तब भारत की ओर से पाकिस्तान के इस दावे
पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी।
22 अप्रैल 2025 के दिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद 6 मई की देर रात को (7 मई सुबह 1-05 से 1-30
बजे तक) भारतीय सेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर सैन्य प्रतिक्रिया की थी। भारत ने
अपनी इस सैन्य कार्रवाई को 'ऑपरेशन
सिंदूर' नाम दिया था।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के शेयर किए गए वीडियो में पाकिस्तानी सेना
के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने कहा था, "अब तक, मैं आपको पुष्टि कर सकता हूँ कि पाँच भारतीय विमान - जिनमें तीन
रफ़ाल, एक एसयू-30 और एक मिग-29 शामिल है - और एक हेरॉन
ड्रोन भी मार गिराए गए हैं।"
बीबीसी उर्दू के मुताबिक़ तब जम्मू
कश्मीर के पोम्पोर में एक अज्ञात विमान का मलबा मिला था। कौन सा विमान क्रैश हुआ
था और यह किसका था, इस बारे में तब कोई बयान नहीं आया था।
8 मई 2025
के दिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने शाम 5-30 बजे लगातार दूसरे
दिन प्रेस वार्ता आयोजित की। अगले दिन की तरह इस दिन भी प्रेस
वार्ता में विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर
व्योमिका सिंह मौजूद थे।
इस प्रेस वार्ता में कर्नल सोफ़िया ने
बताया कि भारत के द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में 9
जगहों पर सैन्य कार्रवाई के बदले में पाकिस्तान ने उस रात भारत के 15
सैन्य ठिकानों पर हमले किए। जिसे भारतीय सेना ने विफल कर दिया और लाहौर में
पाकिस्तान एयर डिफेंस सिस्टम को नष्ट किया गया।
रफ़ाल के मार गिराए जाने के सवाल को इस प्रेस वार्ता में न तो
स्वीकार किया गया और न ही नकारा गया। प्रेस वार्ता में सवाल किया गया कि, "पाकिस्तान दावा कर रहा है कि उसने भारत के लड़ाकू विमानों को मार
गिराया है। हक़ीक़त क्या है?" जवाब में मिसरी ने कहा, "जब समय आएगा तब आधिकारिक
रूप से जानकारी दी जाएगी। पाकिस्तान के जन्म के साथ ही उसके झूठ शुरू हो चुके
थे।"
यूँ तो भारत सरकार द्वारा यह जवाब एक
तरह से यह छिपा हुआ इक़रार था कि हाँ, हमारे कुछ विमान
दुश्मन ने मार गिराए हैं। सवाल बिलकुल सीधा था कि पाकिस्तान भारत
के लड़ाकू विमानों को मार गिराने का दावा कर रहा है, तो सच क्या है? अगर
पाकिस्तान का दावा ग़लत होता तो प्रेस वार्ता में सरकार सीधा जवाब देती कि यह सच
नहीं है। किंतु जवाब यह दिया गया कि समय आने पर जानकारी दी जाएगी।
10 मई 2025 के दिन अचानक
युद्धविराम की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा घोषणा होने के बाद अगले दिन, 11
मई को भारतीय सेना द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में फिर एक बार रफ़ाल विमान को
पाकिस्तान द्वारा कथित रूप से गिराए जाने को लेकर सवाल पूछा गया।
अब की बार जो जवाब दिया गया वो पहले जवाब से कहीं ज़्यादा स्पष्ट था और स्वीकृति
थी कि हाँ, हमारे
कुछ विमान नष्ट हुए हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेना की तरफ़ से
डीजीएमओ लेफ़्टिनेंट जनरल राजीव घई, एयर फ़ोर्स की तरफ़ से डीजीएओ (एयर ऑपरेशन्स) एयर मार्शल एके
भारती और नौसेना के डीजीएनओ (नेवल ऑपरेशन्स) वाइस एडमिरल एएन प्रमोद और मेजर जनरल
एसएस शारदा मौजूद थे।
इस प्रेस वार्ता में फिर एक बार पाकिस्तान द्वारा भारत के रफ़ाल और
अन्य फ़ाइटर जेट के कथित रूप से नष्ट किए जाने पर सवाल पूछा गया। इस सवाल पर एयर
फ़ोर्स की तरफ़ से एयर मार्शल एके भारती ने जवाब में कहा, "हम कॉम्बैट की स्थिति में हैं और नुक़सान इसका एक हिस्सा है। आपको
जो सवाल पूछना चाहिए वह यह है कि क्या हमने अपने उद्देश्य हासिल कर लिए हैं? क्या हमने आतंकवादी
शिविरों को नष्ट करने के अपने उद्देश्य को हासिल कर लिया है? और इसका जवाब हां
है।"
एयर मार्शल एके भारती ने कहा, "इसका
परिणाम पूरी दुनिया को देखना चाहिए। जहाँ तक इसकी डीटेल्स की बात है कि क्या हो
सकता था, कितनी
संख्या, हमने
कौन-सा प्लेटफॉर्म खो दिया। इस समय मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहूँगा। क्योंकि
हम अभी भी कॉम्बैट की स्थिति में हैं और अगर हम किसी भी चीज़ पर टिप्पणी करते हैं
तो यह केवल विरोधी के लिए फ़ायदेमंद होगा।"
उन्होंने कहा, "इसलिए
हम इस समय उसे कोई फ़ायदा नहीं देना चाहते हैं। मैं सिर्फ़ इतना कह सकता हूँ कि
हमने अपने चुने हुए उद्देश्य हासिल कर लिए हैं और हमारे सभी पायलट वापस घर लौट आए
हैं।"
इस जवाब में 'हम
कॉम्बैट की स्थिति में हैं और नुक़सान इसका एक हिस्सा है', यह
अप्रत्यक्ष स्वीकृति थी। लगातार दो बार आधिकारिक ढंग से
अप्रत्यक्ष स्वीकृति के बाद पीएम मोदी और उनके मंत्री तथा उनके प्रशंसकों को एक
दायरे के भीतर रहकर राजनीतिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए था। किंतु इसके बाद भी
ये लोग रूकते नहीं दिखे और मेनस्ट्रीम मीडिया और मोदी सरकार, दोनों
अति करते रहे।
31 मई 2025
के दिन भारत सरकार ने पहली बार माना कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कुछ लड़ाकू
विमान नष्ट हुए थे। अब तक जो बात अप्रत्यक्ष रूप से
स्वीकार की जा रही थी उसे आख़िरकार आधिकारिक ढंग से स्वीकृत कर लिया गया। यह बात
भारतीय सशस्त्र बलों के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ अनिल चौहान के ज़रिए सामने आई।
सीडीएस चौहान ने इस दिन ब्लूमबर्ग टीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कितने विमान नष्ट हुए, बल्कि यह है कि वे क्यों
नष्ट हुए?" सीडीएस का बयान ऐसे समय
आया जब पीएम मोदी अपने उसी बड़बोले अंदाज़ में इस दिन भोपाल में कह चुके थे कि
ऑपरेशन सिंदूर इतिहास का सबसे सफल सैन्य ऑपरेशन है।
सीडीएस चौहान की वो नसीहत कि 'कितने विमान नष्ट हुए वह महत्वपूर्ण
नहीं है बल्कि वे क्यों नष्ट हुए यह देखना चाहिए' – शायद यह बात किस शिकायत के साथ कही
गई थी वो आगे जाकर स्पष्ट होने वाली थी। क्योंकि कुछ ही
दिनों बाद वरिष्ठ सैन्य अधिकारी बताने वाले थे कि क्यों नष्ट हुए।
सर्जिकल स्ट्राइक जैसी सैन्य
क्रिया-प्रतिक्रिया का एक अलिखित नियम है कि जान-माल का नुक़सान ऑपरेशन को सौ
फ़ीसदी सफल की श्रेणी में नहीं ले जाता। सैन्य संघर्ष या पूर्ण युद्ध में यह
महत्वपूर्ण नहीं है, किंतु जब बात सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अभियानों की हो तब यह मसला
तीख़ी नज़र से देखा जाता है।
सीडीएस चौहान सिंगापुर में शांगरी-ला
डायलॉग में भाग लेने गए थे। वहीं पर उन्होंने यह बयान दिया था। विशेष रूप से पीएम
मोदी के द्वारा फिर एक बार उस अति और विशुद्ध राजनीतिक दावे के तुरंत बाद।
स्पष्ट था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान
भारत के आधुनिक और महत्वपूर्ण विमानों के गिराए जाने का मसला ख़ूब उठ रहा था। 8
मई और 11
मई को अप्रत्यक्ष इक़रार किया जा चुका था कि यह दावा झूठा नहीं है। 31
मई को स्पष्ट स्वीकृति आ गई। किंतु फिर भी मोदी सरकार की अति ने आख़िरकार उनकी गति
पर सवाल उठा दिए।
हालाँकि सीडीएस चौहान ने
पाकिस्तान के उस दावे को बिलकुल ग़लत बताया कि भारत के 6
लड़ाकू विमान गिराए गए थे। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट करने से इनकार कर दिया कि
भारत ने कितने विमान खोए। उन्होंने सीधे सीधे देश को बता दिया कि देश की सरकार
चाहे जो भी कहे, हमारे विमान दुश्मन ने मार गिराए थे।
चौहान ने गिराए गए विमानों की संख्या के मसले को छोड़ दूसरी बातों पर ध्यान देने
के लिए कहा।
इसके बाद जून 2025
का आख़िरी सप्ताह आया। 10 जून 2025
को जकार्ता में एक सेमिनार में भारतीय नौ सेना के उच्च अधिकारी के द्वारा जो बातें
कही गई थी वो 29 जून 2025
के आसपास भारत पहुँची और ज़्यादा पुख़्त रूप से साबित हो गया कि मोदी सरकार ने देश
को गुमराह किया था।
यह दुर्भाग्य था कि भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष और
युद्धोन्माद के वातावरण के बीच सीजफायर की घोषणा तीसरे देश अमेरिका की तरफ़ से हुई
थी! भारत
ने सीजफायर स्वीकार कर लिया है इसकी जानकारी भारतीय जनता को पीएम मोदी या उनकी
सरकार से नहीं बल्कि पाकिस्तान के पुराने मित्र अमेरिका से मिली थी! अब एक
और दुर्भाग्यपूर्ण घटना यह थी कि हमारी वायु सेना को
हुए नुक़सान की जानकारी विदेश से भारत पहुँच रही थी!
29 जून 2025 के दिन जकार्ता में
भारतीय दूतावास में तैनात नौ सेना के अफ़सर कैप्टन शिव कुमार का एक कथित वीडियो
भारत में चर्चा में आया। और यह वीडियो 10 जून 2025
के दिन आयोजित एक सेमिनार का था। यानी भारत की जनता को जो बात पहले जाननी होती
है वह बात 19 दिन पहले विदेश में आधिकारिक ढंग से
कही गई थी! मीडिया के माध्यम से यह जानकारी भारत
तक पहुँची।
10 जून 2025 को जकार्ता के एक
विश्वविद्यालय के सेमिनार हुआ था, जिसका विषय 'भारत-पाकिस्तान हवाई जंग का विश्लेषण और
वायु शक्ति के मामले में इंडोनेशिया की पूर्वानुमान रणनीतियाँ' था।
और इस सेमिनार में जकार्ता में भारतीय दूतावास में तैनात नौ सेना के अफ़सर कैप्टन
शिव कुमार मौजूद थे।
इस सेमिनार में अपनी प्रेज़ेंटेशन के दौरान भारत के डिफ़ेंस अताशे ने कथित तौर पर कहा कि 'राजनीतिक नेतृत्व' के आदेश के कारण कुछ 'बाधाओं' के मद्देनज़र, भारतीय वायु सेना प्रारंभिक चरण के अभियान में पाकिस्तानी सैन्य
प्रतिष्ठानों पर हमला नहीं कर सकी। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ उन्होंने कहा
कि, "हमने कुछ विमान खो दिए और
ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि सैन्य प्रतिष्ठान या उनकी वायु रक्षा प्रणाली पर हमला
न करने को लेकर राजनीतिक नेतृत्व की ओर से बाधाएँ खड़ी की गई थीं।"
अपने इस कथित बयान में वे आगे कहते हैं
कि हमने हमारे लड़ाकू विमान खो दिए और फिर जाकर हमने अपनी रणनीति को बदला और हम
सैन्य प्रतिष्ठानों की ओर गए। इसके बाद वे कहते हैं कि रणनीति बदलने के बाद हमने
दुश्मन के एयर डिफ़ेंस का दमन और विनाश किया।
अब जाकर सीडीएस चौहान का वो बयान और वो
नसीहत, दोनों देश के सामने स्पष्ट हो चुके थे। 31 मई
2025 के दिन सीडीएस का बयान था - "महत्वपूर्ण
यह नहीं है कि कितने विमान नष्ट हुए,
बल्कि यह है कि वे क्यों नष्ट हुए?"
– इसकी पूर्ति हो चुकी थी। 10
जून 2025 को विदेश से भारतीय सेना का
उच्चाधिकारी बता चुका था कि सरकार ने हाथ बाँध रखे थे इसलिए विमान नष्ट हुए। और
भारत में यह ख़बर 29 जून
2025 को मीडिया के माध्यम से पहुँची!
ऑपरेशन सिंदूर से पहले और बाद में यदि
स्वयं पीएम मोदी और उनके मंत्री और समर्थक बड़बोलापन छोड़ कर एक सीमा के भीतर रह
कर बात करते, सैन्य
संघर्ष पर विशुद्ध राजनीति करने की फूहड़ता न करते, तो फिर इस नुक़सान और नुक़सान के बाद
भरपाई को स्वाभाविक माना जाता। किंतु बड़बोलापन और विशुद्ध राजनीति ने बेड़ा गर्क
किया।
स्पष्ट है कि पीएम मोदी और उनकी
सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के अनेक सवालों को टाल दिया था और मेनस्ट्रीम मीडिया
की मदद से पूरी बहस को घुमाने में कामयाब हुए थे। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी
जायज़ सवालों और देश को सही जानकारी देने के मामले में पीएम और उनकी सरकार पीछे
हटती दिखी।
ऑपरेशन सिंदूर से पहले सर्वदलीय बैठक में पीएम मोदी नहीं पहुँचे थे! ऐसा
नहीं था कि उनके पास समय नहीं था। उन दिनों वे बिहार के मधुबनी में रैली कर चुके
थे। मुंबई जाकर बॉलीवूड कलाकारों के साथ घंटों तक बतिया चुके थे। किंतु राष्ट्रीय
सुरक्षा के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक में वे नहीं गए! जबकि
उन्हें हर हाल में वहाँ पहुँचना चाहिए था।
इतना ही नहीं, पहलगाम
आतंकी हमले के बाद संसद के विशेष सत्र बुलाने की माँग को भी पीएम मोदी ने बेशर्मी
के साथ अनसुना कर दिया। जबकि पूर्व में ऐसे समय में तमाम सरकारें यह ज़रूरी
प्रक्रिया करती रही हैं। जीएसटी जैसे स्वाभाविक टैक्स सुधार के मुद्दे पर आधी रात
को संसद का सत्र बुलाकर तामझाम करने वाले उत्सव प्रिय पीएम मोदी ने इस संवेदनशील
मुद्दे पर संसद के विशेष सत्र की लगातार माँग को ध्यान में नहीं लिया।
पहलगाम हमले के तुरंत बाद, यानि
ऑपरेशन सिंदूर से पहले, फिर ऑपरेशन सिंदूर के बाद, सीजफायर से पहले और सीजफायर के बाद, लगातार
देश की जनता को विश्वास में लेने के लिए पहली पारंपरिक प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक
की पीएम द्वारा अध्यक्षता को बेशर्मी से नज़रअंदाज़ कर दिया गया! विशेष सत्र की माँग को ध्यान में नहीं
लिया गया।
पीएम मोदी जिस नेहरू के बारे में अपुष्ट
बातें ज़्यादा करते हैं उसी नेहरू ने चीन के साथ युद्ध के बीच संसद का विशेष सत्र
बुलाया था। युद्ध के बाद समिति भी गठित की गई थी और नेहरू जब प्रधानमंत्री थे उसी
दौरान नेहरू सरकार और नेहरू की आलोचना से लबालब वह रिपोर्ट संसद में पेश भी हुई
थी। वाजपेयी सरकार ने भी कारगिल संघर्ष के बाद कमेटी बनाई थी।
नेहरू से लेकर इंदिरा और वाजपेयी तथा
मनमोहन सरकार तक में इस प्रकार के संवेदनशील मसलों पर संसद का विशेष सत्र बुलाया
जा चुका है। समितियाँ गठित की जा चुकी हैं और उनकी रपटें संसद में पेश की जा चुकी
हैं। वाजपेयी सरकार के दौरान कारगिल संघर्ष की समाप्ति के महज़ तीन दिन बाद ही कमेटी
गठित की गई थी। और इसकी रिपोर्ट दोनों सदनों में रखी गई थी।
तमाम सैन्य संघर्षों के बाद रिव्यू
कमिटी बनती है। संसद का विशेष सत्र बुलाया जाता है। पीएम मोदी ने सैन्य संघर्ष के
बाद भी यह नहीं किया। बार बार सरकार से पूछा गया कि भारत को
हुए सैन्य नुक़सान पर स्पष्टता करें। किंतु सदैव की तरह ज़िम्मेदारी लेने से पीएम
मोदी हटते दिखे।
दरअसल पीएम मोदी और उनके मंत्री तथा
समर्थक लोग पहलगाम हमले से लेकर सीजफायर तक इतना अति कर चुके थे कि अब उनके अतिशयोक्ति
वाले दावों के विपरित ज़मीनी हक़ीक़त मुँह फाड़े खड़ी थी। 2002
से ही ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से भागने वाले अपने राजनीतिक स्वभाव को सार्वजनिक
कर चुके मोदी यही करते दिखे। क्योंकि जो सवाल थे उस पर वे बात करते तो फिर उनके
दावे और देश को दिए गए आश्वासनों में वे झूठे साबित हो जाते।
सीधी बात है कि यदि मेनस्ट्रीम मीडिया
मोदी सरकार की मुठ्ठी में नहीं होता तो यह मसला सीधे सीधे देश को गुमराह करने का
मसला बन जाता। सेना को खुली छूट दे दी है वाला दावा पहले से ही झूठा साबित हो
जाता। वैसे यह कहीं न कहीं दर्ज़ तो हो ही चुका है और आने वाले काल में जब भी इनके
पास सत्ता नहीं होगी और मीडिया इनकी मुठ्ठी से निकल कर किसी दूसरे की मुठ्ठी में
चला गया होगा तब यह बात इनकी राजनीतिक राह में आती रहेगी।
(इनसाइड इंडिया, एम
वाला)