विशेष खयाल यह रहे कि यह सवाल सरकार के लिए है, सेना से संबंधित कतई और कतई
नहीं है। 27 फरवरी 2019 के दिन भारतीय सेना के ऊपर पाकिस्तानी एयर फोर्स ने जिस तरह
से हमला किया, भारत के एयर स्ट्राइक के 24 घंटे भी नहीं बीते थे और पाकिस्तानी सेना
ने जिस तरह भारत के घर में घुसकर भारत पर हमला किया, उसके बाद दिन भर जिस तरह की
गतिविधियां दिखी, जिस तरह से भारत सोता हुआ पकड़ा गया, सवाल तो उठना ही था कि जैसे
नोटबंदी बिना तैयारी के लागू कर दी थी, क्या जैश के आतंकी कैंप पर की गई एयर
स्ट्राइक भी बिना आगे-पीछे सोचे, बिना तैयारी के कर दिया गया था? सेना के पराक्रम का राजनीतिक खोखलेपन ने इतना बड़ा तमाशा बना दिया कि दुश्मन
70 साल में पहली बार इस तरह से घर में घुस कर हमारा गाल लाल कर चुका है।
नोट – जैसे किसी आतंकी हमले के दिनों बाद सेना सोच-समझकर कार्रवाई करती है, इस
प्रकार दुश्मन हमारे घर में घुसकर सीधा सीधा वार कर चुका है तो इस घटना के बाद पूरी
संभावना है कि भारत सरकार कोई कार्रवाई करने के लिए सेना को इजाज़त दे। अगर संभावना
गलत साबित होती है तो इतनी ज्यादा शर्म है उसमें थोड़े किलो की शर्म का वजन ज्यादा
होगा। लेकिन मोदी सरकार से गुजारिश है कि आप राजनीति की ऐसी-तैसी करते रहिए लेकिन
सेना के साथ राजनीति ना करे। आप की छवि ऐसी हो गई है कि आप तो रफाल का एकाध नट-बोल्ट भी देश में आएगा तब भी जश्न मना लेंगे। आपको 'विज्ञापनों की सरकार' या
'जश्नबाजों का गैंग' कहा जाने लगा है। उसके पीछे विपक्ष नहीं बल्कि आप ही के कारनामे
जिम्मेदार है। पिछली सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उसी स्ट्राइक के हिस्सेदार अफसर ने
कहा था कि काम बढ़िया हुआ था, लेकिन सरकार ने कुछ ज्यादा ही उत्सव मना लिया। आप
आतंकी घटना के बाद रिएक्शन देने में देर करे तो ये जायज और मान्य प्रक्रिया है।
लेकिन जवाब दे देने के बाद जब आप खुद कह रहे थे कि हम पूरी तरह से तैयार है, ईंट
से ईंट बजा देंगे... और आपके इस फिल्मी संवाद के बीच दुश्मन एक दिन के भीतर ही पलट
वार कर जाए और फिर आप नये सिरे से सारी चीजें करने पर मजबूर हो जाए। ईंट से ईंट
बजाने की तैयारी कर रहे थे या झुनझुना बजाने की तैयारियां की थी आपने? अब आप कोई कार्रवाई करेंगे, दिनों बाद करेंगे तो फिर इसका कोई अच्छा सा मतलब
तो नहीं निकलेगा। मोदी सरकार से विनती है कि हमारे शर्म का वजन मत बढाइएगा, कुछ
लिहाज करिएगा और सचमुच जवाब दीजिएगा। ना दे पाए या सीमित रूप से जवाब देने की
मजबूरी आन पड़े तब भी उतने ही दावे कीजिएगा जितने करने चाहिए। ताकि दोबारा ऐसी
ज़िल्लत से रुबरु ना होना पड़े।
इस पूरे लेख में भारतीय सेना, सैन्य कार्रवाई, मरने वाले दुश्मनों का आंकड़ा, आदि
विषयों के संबंध में दूर दूर तक कोई सवाल नहीं है, कोई टिप्पणी नहीं है। सवाल राजनीतिक
गलियारों पर है। इस संभावना से इनकार नहीं है कि एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने
जो दुस्साहस दिखाया उसके सामने हमारी सेना तैयार थी और इसीलिए बड़ा नुकसान होते
होते रह गया। तैयारी में कमी का विषय राजनीति को लेकर है। उपरांत ऐसे मौकों पर हमारे
महान मीडिया की महान कार्यशैली पर भी आईना फेंकना ज़रूरी बनता है।
यह घटनाक्रम वाकई चौंकानेवाला है। जिस भारतीय सेना का लंबा गौरवान्वित इतिहास रहा था उसी सेना को सरकार
की “पुरानी” और “ताज़ा कमजोरियों” ने राजनीति के
अखाड़े में लाकर खड़ा कर दिया है। जिस पाकिस्तान का नकशा मिटाने की हवाबाजी भारत के
एयर स्ट्राइक के बाद हो रही थी वह पाकिस्तान 24 घंटे खत्म हो उससे पहले तो हमारे
घर में घुसकर हमें ही थप्पड़ मारकर चला जाता है। ये तो वाकई अप्रत्याशित है। भारत ने इतना बड़ा स्ट्राइक किया था तो सभी ने सोचा कि कुछ तो सोचकर किया होगा, रणनीतियां
तैयार होगी, दूसरी तैयारियां होगी। एक्शन किया है तो रिएक्शन का ब्लू प्रिंट तो
तैयार होगा ही। और ऐसा दावा खुद सरकार ही कर रही थी। पाकिस्तान तुम हज़ार बार
सोचना, ये नई सरकार है, वो सरकार नहीं है, अबकी बार पूरा हिसाब होगा, हम तैयार है,
ईंट से ईंट बजा देंगे, सर नहीं झुकने दूंगा... ये सारे सरकारी भाषण ही थे। सोचा कि इतना बड़ा एयर स्ट्राइक किया है भारत ने, तब तो सरकार ने आगे-पीछे का सोचकर ही किया
होगा। पाकिस्तान क्या क्या कर सकता है ये सोचकर ही किया होगा। पाकिस्तान कुछ करना
चाहे तब भी तैयारियां पूरी होगी। लेकिन 27 फरवरी 2019 की सुबह देश नींद से उठता है
तो ऐसी खबर आती है कि नींद टूट ही जाती है। देश को लगता है कि सचमुच हम नींद में ही
थे इतने दिनों तक।
मैत्री-करार वाले
भारतीय मीडिया (गोदी मीडिया) ने जिस तरह से इसका सरकारी प्रचार-प्रसार किया उसकी चर्चा तो है ही।
सवाल ढेरों हैं, लेकिन लोग धबराते हैं, यह सोचकर कि उन्हें पाकिस्तान भेज ना दिया जाए! मीडिया पत्रकारिता की नियंत्रण रेखा पार कर चुका है। पत्रकारिता के नाम पर भड़काया
जाता है। नेता और हमारा मीडिया, इन दोनों में रेस लगी है। तय कर पाना मुश्किल है कि दोनों में से ज्यादा बड़बोला कौन है। टेलीविजन डिबेट में राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं से
ज्यादा तो एंकर लोग चीखते हैं, चिल्लाते हैं! मीडिया सवाल करना भूल गया है। जिस दौर
में किसी सरकार के कार्यकाल का लेखा-जोखा देश के सामने मीडिया को रखना चाहिए, उसी
दौर में मीडिया प्यासे भेडियों की तरह दिखाई देने लगा है।
अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर भारतीय मीडिया की खिल्लियां उड़ाई गई है। मीडिया ने झूठ और अधकचरेपन का नया रिकॉर्ड बना दिया है। एकतरफा और फर्जी कवरेज का नया किर्तीमान स्थापित कर दिया है
मीडिया ने। कई निष्पक्ष जगहों से और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता के हिन्दी मंचों से
लिखा गया है कि मीडिया ने सत्ता के पक्ष में काम किया है। मीडिया ने सवाल करने का
मूल कर्तव्य दफना दिया है। तथ्यों की बात करते हुए कोई मीडिया रिपोर्ट देखना
मुश्किल काम हो चुका है। पुलवामा हमले के सुलगते सवालों पर ठंडा पानी डाल दिया गया।
उपरांत सच तो यह है कि पाकिस्तान की त्वरित और इतने बड़े पैमाने पर प्रतिक्रिया
तत्कालीन मोदी सरकार के लिए अचंभा और झटका थी। लेकिन मीडिया से मैत्री-करारों ने
मामला राजनीतिक स्तर पर बिगड़ने नहीं दिया था। सरकार से सवाल करना देशद्रोह बन चुका
है। बेवकूफ लोग फिर से देशद्रोह और देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटने में बिजी है।
लेकिन ऐसे उच्चस्तरीय बेवकूफों की वजह से चुप रहना भी एक प्रकार का देशद्रोह ही है।
भारत ने 1971 के
बाद का सबसे बड़ा एयर स्ट्राइक किया था। (सार्वजनिक कार्रवाईयों की बात देखे तो, गुप्त
रखी गई अपुष्ट कार्रवाईयों का ज़िक्र छोड़ देते हैं) जश्न तो सड़कों पर अब भी मन रहा था।
लेकिन महज कुछ ही घटों के बाद दुश्मन ने जिस तरह से रिएक्ट किया... सचमुच ये 1971
के बाद ही नहीं बल्कि 1947 के बाद का पहला मौका था जब पाकिस्तानी सेना हमारे घर में
घुसकर हमें थप्पड़ मार देती है। यह अप्रत्याशित ही था कि दुश्मन पर हमने इतना बड़ा कदम उठाया है और बदले में दुश्मन हमें जन्नाटेदार थप्पड़ मार कर चला जाता है। बेहोशी
की हालत में हम जश्न मना रहे थे और पाकिस्तान की सेना ने आकर हमारी बेहोशी तोड़ दी।
यकीन करने लायक घटनाक्रम नहीं है यह। वाकई यकीन नहीं हो रहा कि ऐसा कैसे हो सकता है
कि इतने बड़े एयर स्ट्राइक के बाद जिस देश की कमर तोड़ने के, जिसे बर्बाद करने के दावे
किए जा रहे थे वो आकर हमारे गाल पर तमाचा जड़ देता है।
27 फरवरी 2019 के
दिन की सुबह... यह सुबह और यह दिन वाकई भारतीय राजनीति की कार्यशैली पर कुठाराधात
समान था। हमारी महान भारतीय सेना पर सवाल ना तो पूर्व सरकारों के दौरान था और ना ही
आज की सरकार के दौरान है। सवाल सरकार से है... और सरकार तथा सरकार के इश्कबाज ये
कभी नहीं समझ पाएंगे कि सरकार स्वयं सेना नहीं है, सरकार देश नहीं है, सरकार राष्ट्र
नहीं है। सवाल सरकार से है और सरकार को सवालों से बचना है इसलिए सेना को आगे कर
देती है। ये बोलकर कि सवाल सेना से कर रहे हैं लोग! जबकि सवाल तो सरकार से हो रहा
है। एक सैनिक और एक नेता, इन दोनों में इतना ही तो अंतर है। नेता फंसता है तो खुद को बचाने
के लिए अपनी माँ या भारत माँ तक को आगे कर देता है, जबकि सैनिक भारत माँ को बचाने
के लिए खुद को ही आगे करता है।
14 फरवरी 2019 को
भारत के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर पिछले 40 सालों का सबसे बड़ा हमला होता है।
करीब 40 जवान वीर गति को प्राप्त हो जाते हैं। उसके 12 दिन बाद, 26 फरवरी 2019 की सुबह भारतीय
सेना पलटवार करती है। 1971 के बाद पहली बार इंडियन एयरफोर्स सीमा पार घुसकर पीओके
स्थित जैश के आतंकी कैंप का कथित रूप से सफाया कर देती है। दर्जनों फाइटर जेट,
दूसरे संसाधनों से लैस भारतीय सेना इस अभियान को अंजाम देती है। कथित रूप से सैकड़ों आतंकी मार गिराये जाते हैं। समूचा देश झूम उठता है सेना पर। राजनीति तो पागल ही हो जाती
है। सत्ता दल और उनके संगठन पाकिस्तान का नकशा मिट गया से लेकर न जाने क्या क्या
हवाबाजी कर देते हैं। माहौल ऐसा हो जाता है जैसे कि 1947 के बाद का सबसे बड़ा हमला
भारत ने किया हो और पाकिस्तान नकशे से गायब हो गया हो।
पुलवामा हमले के
बाद चुनावी रैलियों में व्यस्त पीएम एयर स्ट्राइक के बाद फिर चुनावी रैली करने में
व्यस्त हो जाते हैं। रैली से माईक पर फिल्मी तरीके से बोलते हैं कि सौगंध मुझे इस
मिट्टी की... मैं सर झुकने नहीं दूंगा। कहते हैं कि भारत अब सुरक्षित हाथों में है।
सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक लाभ उठाने का शुभारंभ पीएम ने किया तो उनकी मातृसंस्था
के मुखिया भी कूदे। मोहन भागवत कह गए कि हमने हमारे वीरों की तेरहवीं की क्रिया संपन्न कर ली है। कहने
लगे कि अब पाकिस्तान की हिम्मत नहीं होगी। आतंकी हज़ार बार सोचेंगे। पीएम और उनके
गुरु, दोनों के बाद चेले भी चुप नहीं रहे। वैसै मौका भी जश्न मनाने का ही था। वो तो
क्या, हम भी चुप नहीं रहे। छाती हमारी भी फूलने लगी।
इस घटना को हुए एक
दिन भी नहीं बीता था, 24 घंटे भी नहीं हुए थे और जिसका नकशा मिटाने का दावा कर दिया
गया था उसी पाकिस्तान की एयर फोर्स भारत के ऊपर एयर स्ट्राइक कर देती है। भारतीय
सीमा में घुसकर पाकिस्तान के फाइटर जेट भारत के सैन्य ठिकानों के बिल्कुल पास बम गिरा
देते हैं। हमने तो आतंकी कैंप पर कार्रवाई की थी, बदले में वो देश हमारी सेना के ऊपर
खुला हमला ही बोल देता है। ये तो युद्ध की घोषणा ही थी। भारत पर सीधा हमला था। उसी
देश का, जिसका नकशा मिटाने के दावे उसी सुबह तक सोशल मीडिया में राजनीतिक आईटी सेल कॉपी-पेस्ट
कर रहे थे, वही देश पाकिस्तान भारत पर एयर स्ट्राइक कर देता है!!! भारत के एक फाइटर
जेट तक को मार गिराया जाता है। भारत के फौजी अफसर को युद्ध बंदी बना लिया जाता है।
उधर सरहद की हर चौकी पर गोलाबारी होती रहती है। कई भारतीय नागरिक भी मारे गए और
साथ में कुछेक भारतीय जवान भी वीर गति को प्राप्त हो गए। भारतीय सैन्य ठिकानों पर पाकिस्तान खुला
हमला करके युद्ध की घोषणा ही तो कर गया था। लेकिन बदले में भारत दिन भर उच्चस्तरीय
बैठकों में बिजी रहता है!!! 1971 के बाद का सबसे बड़ा एयर स्ट्राइक क्या बिना तैयारी के
किया गया था कि पाकिस्तान 24 घंटे खत्म हो उससे पहले तो भारत पर ही सीधा हमला बोल
देता है और हम सोते हुए पकड़े जाते हैं। उसका विमान गिराने का जश्न मनाने के अलावा
कुछ नहीं कर पाते हम। बालाकोट में भारत ने एयर स्ट्राइक जैसा बड़ा कदम उठाया था तो
क्या किसीने सोचा तक नहीं कि पाकिस्तान पलट वार कर सकता है। सेना ने तो यकीनन सोचा
होगा, लेकिन ऐसी “बेवकूफी” सरकार ने ही की होगी इसमें कोई शक नहीं हो सकता। कई जगहों पर लिखा गया है कि
पाकिस्तान की ये प्रतिक्रिया तत्कालीन मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका थी, हैरानी थी।
लेकिन मैत्री-करारों वाले मीडिया ने राजनीतिक स्तर पर मामला संभालने में मदद करने का
ही काम किया।
और उस घटनाक्रम के
बाद जो हुआ वो राजनीतिक कमजोरियों, राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक तैयारियों पर
सवाल उठा गया। पता नहीं इन्हें चुनावी प्रचार से क्या मुहब्बत थी। हमारा पायलट
पाकिस्तान में बंदी था और और हमारे देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री चुनावी प्रचार
में बिजी थे!!! हमले से पहले और हमले के बाद... इन्हें चुनावी प्रचार का कितना शौक था यह देश ने देखा ही है। मुझे याद है कि पुलवामा के
हमले के बाद विपक्षों ने अपने बड़े बड़े कार्यक्रम रोक दिए थे। पाकिस्तान ने हमला
किया उसके बाद भी ज्यादातर विपक्षों के बड़े बड़े नेताओं ने अपने कार्यक्रम रद्द किए
थे। लेकिन इन्हें तो प्रचार और प्रसार ही करना था!!! शायद दूसरे जो मुद्दे थे वो हवा हो चुके थे और इस ताज़ा हालात का नफा-नुकसान
इन्हें भरपाई करना होगा। गुजरात से भाजपा के एक नेता ने कहा था कि चुनाव रोक दो
पहले पाकिस्तान को ठोक दो। लेकिन इन दिनों एक ही ऐसा नेता था जो चुनावी रैलियों में
बिजी था!!! रैलियों पे
रैलियां, भाषण पर भाषण, बलिदानियों की तस्वीरों के साथ प्रचार-प्रसार... वो सब कुछ हुआ
जो कमतर राजनीति के दौर में होता है। लोगों ने सोशल मीडिया में जो तंजपूर्ण लिखा वो सच
ही था कि बात सेना के नायक विंग कमांडर की थी, लेकिन देश का नायक बूथ कमांडर बना
हुआ था!!!
भारत ने एयर
स्ट्राइक किया उसी दिन पोस्ट किए गए लेख में लिखा था कि दुश्मन रिएक्ट तो करेगा,
पता नहीं कब करेगा, कैसे करेगा। हम जैसे लोग इतना सोच सकते हैं तो इन्हें तो बहुत आगे
जाकर सोचना चाहिए था। या फिर शायद यह मान ले कि इन्हें पता होगा कि दुश्मन ऐसे
रिएक्ट करेगा, लेकिन राजनीतिक इच्छा इसी जगह रुक जाने की होगी। अब इनकी इच्छा यही
पर रुक जाने की थी तब तो बीच सड़कों पर माईक पकड़कर पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने की
इनकी हवाबाजी वाली हिम्मत को एकाध सलाम तो बनता है।
नोट करे कि भारत ने 12 फाइटर जेट का इस्तेमाल किया था ऐसी अपुष्ट खबरें हैं। लेकिन उसमें से एक अपुष्ट खबर यह भी है कि 12 जेट के आसपास की तादाद रही होगी अभियान में, लेकिन सरहद पार करनेवाले जेट्स की तादाद कम थी। अन्य संसाधन बैक अप के लिए एलओसी के पास थे, एलओसी के पार नहीं। और फिर जिस देश को बर्बाद कर देने का दावा करके हम जश्न में डूबे थे उस दुश्मन देश ने एक दिन खत्म हो उससे पहले तो करीब 24 फाइटर जेट का इस्तेमाल करके पलट वार किया!!! 10 किलोमीटर तक अंदर घुस आये वो!!! उसके भी तमाम जेट भारतीय सीमा में नहीं आये होंगे। लेकिन हमसे दोगुना ज्यादा ताकत से इन्होंने वार किया था। वो भी 24 घँटे खत्म होने से पहले!!! हमने पहले ही नोट किया है कि भारतीय सेना तैयार थी इसीलिए शायद बड़ा या बहुत बड़ा नुकसान होने से हम रोक पाए। लेकिन यह पूरा घटनाक्रम, पाकिस्तान द्वारा हमला हुआ उससे पहले तथा उसके बाद का घटनाक्रम, कई सवाल उठाने को पर्याप्त था।
नोट करे कि भारत ने 12 फाइटर जेट का इस्तेमाल किया था ऐसी अपुष्ट खबरें हैं। लेकिन उसमें से एक अपुष्ट खबर यह भी है कि 12 जेट के आसपास की तादाद रही होगी अभियान में, लेकिन सरहद पार करनेवाले जेट्स की तादाद कम थी। अन्य संसाधन बैक अप के लिए एलओसी के पास थे, एलओसी के पार नहीं। और फिर जिस देश को बर्बाद कर देने का दावा करके हम जश्न में डूबे थे उस दुश्मन देश ने एक दिन खत्म हो उससे पहले तो करीब 24 फाइटर जेट का इस्तेमाल करके पलट वार किया!!! 10 किलोमीटर तक अंदर घुस आये वो!!! उसके भी तमाम जेट भारतीय सीमा में नहीं आये होंगे। लेकिन हमसे दोगुना ज्यादा ताकत से इन्होंने वार किया था। वो भी 24 घँटे खत्म होने से पहले!!! हमने पहले ही नोट किया है कि भारतीय सेना तैयार थी इसीलिए शायद बड़ा या बहुत बड़ा नुकसान होने से हम रोक पाए। लेकिन यह पूरा घटनाक्रम, पाकिस्तान द्वारा हमला हुआ उससे पहले तथा उसके बाद का घटनाक्रम, कई सवाल उठाने को पर्याप्त था।
इस घटनाक्रम के
बाद तल्खी से लिखना पड़ रहा है कि देश को 56 इंच छाती वाले हुक्मरान की ज़रूरत नहीं है, बल्कि 250 ग्राम दिमाग वाले लीडर की ज़रूरत है। सेना पर कोई सवाल हो ही नहीं सकता। क्योंकि पहले ही लिखा कि दुश्मन क्या क्या कर सकता है यह सेना की गणना में तो
रहा ही होगा। लेकिन “बेवकूफी” तो सरकार ने ही की होगी। जो हुक्मरान इतनी सीधी-सादी गणना नहीं कर पाया, जो
हुक्मरान रैलियों में सर नहीं झुकने दूंगा वाली हवाबाजी कर रहा था, उसका दिमाग इतना
भी नहीं चला होगा? ये तो वाकई गज़ब का स्तर ही कह लीजिए! 56 इंच की छाती से तो अच्छा है कि 250 ग्राम दिमाग वाला कोई नेता हो। इंदिरा
के साथ इनकी तुलना वाकई बेइमानी है। आपने एयर स्ट्राइक किया है, इतना बड़ा एयर
स्ट्राइक किया है और उसके 24 घंटे के बाद ही दुश्मन आपके घर में घुसकर आपकी सेना पर
ही हमला कर देता है। ये तो सीधे सीधे युद्ध शुरू होने की अप्रत्यक्ष घोषणा ही थी।
बदले में आप दिन भर बैठकें करते रहते हो! जबकि आप कह रहे थे कि हम पूरी तरह तैयार है!
ऊपर हमने तल्ख
टिप्पणी की है कि आप की (तत्कालीन सरकार की) छवि ऐसी हो गई है कि आप तो रफाल का
एकाध नट-बोल्ट भी देश में आएगा तब भी जश्न मना लेंगे!!! आपको विज्ञापनों की सरकार या जश्नबाजों का गैंग कहा जाने लगा है। उसके पीछे
विपक्ष नहीं बल्कि आप ही के कारनामे जिम्मेदार है। पिछली सर्जिकल स्ट्राइक के बाद
उसी स्ट्राइक के हिस्सेदार अफसर ने कहा था कि काम बढ़िया हुआ था, लेकिन सरकार ने
कुछ ज्यादा ही उत्सव मना लिया।
वैसे पीएम का वो
गीत गाता हुआ भाषण कि देश नहीं झुकने दूंगा... देश नहीं झुकने दूंगा। पता नहीं यह
भारत देश पहले कब झुका था कि पीएम देश नहीं झुकने दूंगा वाली लाइन चिटका रहे थे!!! पहले भी तो यह देश नहीं झुका था। थोड़ा-बहुत हल्का हल्का सा याद है कि कंधार के
समय शायद थोड़ा सा झुका था। किसी गृहमंत्री की बेटी के लिए आतंकियों के साथ सौदा करते
समय झुका था। पता नहीं फिर कब झुका था। गज़ब ही है कि पीएम कहते रहे कि देश सुरक्षित
हाथों में है और पाकिस्तान हमारे इलाके में घुस कर वार कर गया!!! गज़ब ही है कि पीएम कहते रहे कि देश सुरक्षित हाथों में है और रफाल के सौदे से
जुड़ी महत्वपूर्ण फाइलें चोरी हो गई!!!
पुलवामा हमला,
जिसमें सुरक्षा में चूक हुई थी, तय नियमों का पालन नहीं हुआ था, इन सवालों को गायब करने
का मतलब और मकसद देशभक्ति है या दिवालियापन? मूल सवालों को दफनाकर दकियानूसी चर्चा करना मीडिया की आदत है या आदेश? ट्रेंड चल पड़ा था कि चुनाव रोक दो, पहले पाकिस्तान को ठोक दो... लेकिन एक ही
आदमी था उन दिनों, जो रैलियों पे रैलियां किए जा रहा था!!! पुलवामा हमले के बाद पीएम से संपर्क हो नहीं पाया ये बात मजाकिया नहीं बल्कि
गटरछाप तर्क है।
कितने आतंकवादी
मारे गए, समूचा देश आज इस बात पर डूब चुका है, जबकि यह विषय कोई मुद्दा है ही नहीं।
मैं तो कहता हूं कि चलो मान लेते हैं कि एक भी नहीं मारा गया, तब भी यह कोई मुद्दा है
ही नहीं। जो संदेश सेना को देना था वो तो उन्होंने दे दिया। कितने मारे गए यह विषय
हो ही नहीं सकता था। लेकिन इस विषय को, यानी कि राई को पहाड़ बनाने के इस कार्य का
शुभारंभ स्वयं सरकार के ही लोगों ने कर दिया था। पहली बात तो यह कि सैन्य कार्रवाई
जैसी चीजें पहले भी होती थी, लेकिन उसका राजनीतिक प्रचार करने का चलन नहीं था। उसके
प्रचार के लिए सड़कों पर बैनर नहीं लगते थे। इस कार्य का शुभारंभ मोदी सरकार ने किया
था। अब की बार उसी कमतर राजनीति को दोहराया गया है। कितने आतंकवादी मारे गए ये तय
हो ही नहीं सकता ये सरकार के मंत्रियों को पता होना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ही
400-350-325-250 जैसे आंकड़े दिए। फिर सवाल उठा तो वो खुद कहने लगे कि ऐसी
कार्रवाईयों में गिनती नहीं हो सकती!!! जब ये पता था कि गिनती नहीं हो सकती तो 350 या 325 या 250 जैसे निश्चित अंकों को सड़कों पर उछालने की ज़रूरत ही क्या थी??? फिर विपक्ष का भी क्या दोष निकाले, जबकि सत्तापक्ष ने ही आंकड़ों की राजनीति
शुरू कर दी थी। कमतर राजनीति को और कमतर करने का काम विपक्षी दलों ने भी कर दिया।
एक सच बात यह भी
है कि मोदी सरकार के साथ जुमलेबाजी, फेक न्यूज़, प्रोपेगेंडा, हवाबाजी, यू-टर्न
जैसे लफ्ज़ जुड़ चुके हैं। और इसके पीछे स्वयं सरकार तथा उनके प्रमुख नेताओं के
सार्वजनिक बयान जिम्मेदार है। 2014 के पहले के वादों से पलटना हो, अपने वादों को जुमलेबाजी बताने की बेशर्मी हो, गृह मंत्रालय या रेल मंत्रालय या सड़क परिवहन
मंत्रालय जैसे मंत्रालयों के द्वारा झूठी तस्वीरों वाले इश्तेहार हो, या फिर नोटबंदी
के बाद एक ही आंकड़ों में पीएमओ, संबंधित मंत्रालय, संबंधित मंत्री तथा संबंधित
संस्थानों के अलग-अलग सूर हो, जीएसटी पर ऊंच-नीच हो या ऐसे सैकड़ों अन्य मसले हो...
आंकड़ों में हेरफेर, जानकारियों को छुपा देना ये सब काले टिके सरकार पर लग चुके हैं। ऐसे में जो चीज़ तय नहीं हो सकती थी ऐसे आकंड़ों की निश्चित संख्या बता देना वाकई सरकारी गलती थी या फिर सरकार की कोई सोची-समझी चाल भी होगी। बहरहाल, जो भी हो,
लेकिन कितने दुश्मन मारे गए... इसी सवाल के कुएं में सब उतर चुके हैं और दूसरे तमाम
महत्वपूर्ण सवाल गायब कर दिये जा चुके हैं।
सभी को पता है कि
आजकल सवाल करना, तर्क और तथ्यों के साथ बात करना बहुत मुश्किल काम हो चुका है।
क्योंकि सत्तादल ने सरकार-सवाल-सेना-देशभक्ति का ऐसा कोकटेल तैयार किया है जो
सरकार के लिए बुलेटप्रूफ रेनकोट समान है। आप सरकार से सवाल करने लगे तो बहुत ही
आयोजित और योजनाबद्ध तरीके से यह वातावरण तैयार किया गया कि आप सरकार से नहीं सेना
और देश से सवाल कर रहे हैं! जबकि सवाल तो सरकार से ही होते थे। सरकार से असहमति को
देशद्रोह का नाम देने में सरकार ने सफलता हासिल कर ली। तथ्यों और तर्कों से बात
करने वालों में खौफ है।
कुछ सवाल है जो
सवाल है, राष्ट्रद्रोह नहीं है। सवाल सरकार से पूछा जाता है, सरकार को जवाब नहीं देने इसलिए वे लोग सवालों को सेना और देशभक्ति से जोड़ देते हैं। नोटबंदी पर सवाल
उठ रहे थे तब खुद पीएम मोदी कह गए थे कि विपक्ष चोर है, आतंकवादी समान है, देश का
बुरा चाहता है वगैरह वगैरह!!! पीएम जैसा शख्स वाट्सएप यूनिवर्सिटी स्टाइल में दलीले
देने लगता है। यह कमतर से कमतर नेतृत्व ही है। आज तो कमतर होने का वो स्तर ज्यादा
गिर चुका है। यह बिल्कुल साफ है कि सेना को लेकर जमकर राजनीति विपक्ष ने नहीं बल्कि
सत्तापक्ष ने ही की है। राष्ट्रभक्ति का दांव सत्ता पक्ष ने कुछ ऐसे चला है कि
विपक्ष के साथ साथ अपक्ष समान समूह भी बेबस नजर आने लगा है।
रक्षा विशेषज्ञ
अजय साहनी ने बीबीसी हिन्दी के लिए लिखा है कि इस बार हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने बिना
सोचे-समझे जो कदम उठाए हैं उसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव इस हद तक बढ़ गया है।
उनके लेख के कुछ हिस्से यहां नोट करना ज़रूरी है। वो लिखते हैं कि एक ज़माने में एक बहुत
ही पुरानी व्यवस्था मान्य थी जिसके मुताबिक़ ऐसी लड़ाईयां सेनाओं के बीच हुआ करती थीं
और उसका पूरी दुनिया और देश के बीच तमाशा नहीं बनाया जाता था। इस वजह से अगर दो मुल्कों
के रिश्तों में तनाव को कम या ज़्यादा करना होता था तो सेनाएँ गुप्त ढंग से उचित कदम
उठाती थीं। अंग्रेजी में इसे एस्केलेशन लैडर कहते है, जिसके आधार पर दो देशों के बीच
जंगी हालातों का जायजा लिया जाता है। लेकिन जब आप इस पूरी व्यवस्था को राजनीतिक स्तर
पर पूरे देश और दुनिया में एक अभियान बना देते हैं तो तनाव कम या ज़्यादा करने के लिए
जो कदम गुप्त ढंग से उठाए जाते हैं, वह नहीं हो सकते हैं।
अजय आगे लिखते है
कि अब पाकिस्तान में भी शीर्ष पर बड़बोले नेता हैं, यहां पर भी नेतृत्व
बड़बोला है तो दोनों तरफ़ से तनाव में बढ़ोतरी होती रहेगी। भारतीय नेतृत्व को भी अपनी
इज्जत रखनी है और पाकिस्तानी नेतृत्व को भी अपनी इज्जत रखनी है। उन्होंने लिखा कि भारत
और पाकिस्तान के बीच वर्तमान रिश्तों को समझने के लिए एस्केलेशन लैडर को समझना ज़रूरी
है। सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है कि कोई मुल्क आपके दो जवानों को मार दे तो इसके
बदले में दूसरा देश पलटवार करते हुए पहले हमला करने वाले देश के दो लाख सैनिकों को
मार दे। ऐसा नहीं होता है। इसकी जगह तनाव एस्केलेशन लैडर के स्तरों के मुताबिक़ तय
किया जाता है। ऐसे में अगर कोई मुल्क किसी का एक सैनिक मारता है तो जवाब में दूसरा
मुल्क दो या तीन जवान मार सकता है। फिर इसके बाद पहले हमला करने वाला मुल्क जवाबी कार्रवाई
करता है। लेकिन एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की प्रक्रिया एक स्पेक्ट्रम में होती है।
ऐसा नहीं होता है कि आपने क्रॉस बॉर्डर फायरिंग में मेरे दो जवान मार दिए तो इसके बदले
में हमने जंग शुरू कर दी। अजय लेख में आगे लिखते हैं कि सरल शब्दों में कहें तो इसके
कुछ चरण होते हैं और फौजियों के बीच में एक प्राइवेट लैंग्वेज़ होती है, जो कि दोनों
तरफ के सैनिक समझते हैं और कोई एक दम से चार से पांच चरण ऊपर की कार्रवाई नहीं करता
है। अब अगर भारत और पाकिस्तान के वर्तमान रिश्तों की बात करें तो बात कोई बहुत ज़्यादा
आगे नहीं गई है। लेकिन मुश्किल ये है कि अब तनाव को कम करना सेनाओं के हाथ में नहीं
है।
वो नोट करते हैं कि
ये कहना ज़्यादा सही होगा कि साल 2016 के बाद से एस्केलेशन लैडर सेनाओं के हाथ से बाहर
निकल गया है। 2016 से पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक जैसे क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशन होते थे।
इनकी मंजूरी राजनीतिक नेतृत्व ही देता था। लेकिन सार्वजनिक रूप से उनका प्रचार नहीं
किया जाता था। ऐसे अभियानों के आधार पर चुनावी अभियान नहीं चलाए जाते थे। अब समस्या
ये है कि आमने-सामने खड़े सैनिकों के आधार पर तार्किक विश्लेषण नहीं किया जा रहा है
कि कोई कदम उठाने से क्या नुकसान या फ़ायदा होगा। अब हानि-लाभ का पैमाना चुनाव जीतने-हारने
पर आधारित है। वो साफ लिखते हैं कि अब कोशिश बस ये है कि क्या करें कि ये चुनाव हमारे
हाथ आ सके।
इमरानखान की शांति
की अपील के विषय पर उन्होंने इशारों में लिखा है कि इमरान ने अपने दर्जनों विमान भारत
की ओर भेजें, अपना तो नुकसान किया लेकिन साथ में भारत का भी नुकसान किया, फिर भारतीय
पायलट को हिरासत में लिया और उसके बाद शांति का राग छेड़ा। इससे पहले तो इमरान ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। ये सब रक्षा विशेषज्ञ अजय साहनी के लेख में है।
एक अन्य रिपोर्ट
थी, जिसमें पुलवामा के बलिदानियों के परिजनों से बात की गई और उनकी राय पूछी गई थी। पुलवामा
हमले के दिवंगत नायक अजीत कुमार गौतम के बड़े भाई रंजीत कुमार गौतम कह गए कि उनका पूरा
परिवार पुलवामा हमले की जांच पूरी होने का इंतज़ार कर रहा है। वो कह गए कि जांच
होनी चाहिए और किसी राजनीतिक दल को श्रेय लेने की कोशिशें नहीं करनी चाहिए। कहते हैं कि चुनाव से पहले इसकी जांच हो जानी चाहिए, वरना कोई एक राजनीतिक दल इसका सियासी
फायदा उठाने की कोशिशें करेगा और किसी एक व्यक्ति को श्रेय मिल जाएगा। रंजीत कुमार
कहते हैं कि हमारा पूरा परिवार इस हमले की जांच चाहता है, सबको पता है कि पहले से अलर्ट था, सुनने में आ रहा है कि उस दिन जम्मू भी बंद था, मतलब पहले से प्लान था कि
वहां कुछ होने वाला है, फिर बिना सुरक्षा के वहां इतनी सारी गाड़ियां क्यों भेज दी
गई। ये आप बीबीसी की रिपोर्ट में पढ़ सकते हैं। इसी रिपोर्ट में पुलवामा के दिवंगत नायक सुखविंदर सिंह का परिवार भी हमले की जांच की मांग करता है। अन्य कई सारे सवाल, आशाएँ और आशंकाएँ भी थी इस रिपोर्ट में, जो इन परिजनों ने व्यक्त की थी। 7 मार्च 2019 की एक
अन्य रिपोर्ट में पुलवामा हमले के बलिदानी जवानों के शामली और मैनपुरी के दोनों परिवारों
ने सरकार से कहा कि हमले में मारे गए आतंकवादियों के शवों को सबूत के रूप में दिखाए
और हमले के प्रभाव की पुष्टि करे। परिजनो ने कहा कि सरकार खुद ही आंकड़े दे रही है
तो सबूत भी सरकार को देना होगा।
सोशल मीडिया पर एक
तंज घूम रहा था उन दिनों। तंज यह था कि दूधवाले से हमने कहा कि आजकल दूध कुछ पतला
सा आ रहा है। दूघवाला भड़क गया और कहने लगा कि देखिए, आप गोमाता का मनोबल तोड़ रहे
हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सेना के नाम पर राजनीति हो रही है। इसमें भी कोई शक नहीं कि
विपक्ष से ज्यादा सत्ता पक्ष इस राजनीति में खुद को झोंक रहा है। मेरे आने के बाद
देश मजबूत हुआ है यहां तक तो ठीक है, लेकिन मेरे आने के बाद सेना मजबूत हुई है, सेना
का मनोबल बढ़ा है, ऐसी चीजें तो हंसकर नजरअंदाज करने लायक भाषण है। क्योंकि 1949,
1965, 1971 की जंग सेना ने अपनी मजबूती, अपने मनोबल, अपनी रणनीतियां और बहादुरी से
ही जीती थी, डकवर्थ लुईस के नियम को लागू नहीं किया गया था!!! मोदी की सेना, मनमोहन की सेना, इंदिरा की सेना... जो भी यह बोलता है वो भक्त
होता है, देशभक्त नहीं।
दरअसल, दोनों देशों की
सरकारों को अपनी अपनी जनता के आगे राजनीतिक रूप से जीतना है। इसके लिए अब दोनों के
पास अपने अपने लोगों के सामने कहने को बहुत कुछ है। भारत के पास भी है और पाकिस्तान
के पास भी। दोनों सरकारें ऐसी परिस्थितियां पैदा कर चुकी है जिससे दोनों अपने अपने
मुल्क में अपनी अपनी जीत का ढिंढोरा पीट सके। शायद गलत नहीं है ढिंढोरा पीटना। लेकिन
इतनी बड़ी माथापच्ची का मकसद क्या था या क्या रह गया है यह ज़रूर सोचनीय पहलू है। सेना
का इस्तेमाल पाकिस्तान अपनी राजनीति के लिए करता है, तो क्या अब भारत में भी यह
ट्रेंड शुरू हो जाना जायज है? क्योंकि कई
विशेषज्ञों ने इशारों इशारों में लिखा है कि राजनीति ने अपने नफे-नुकसान को लेकर चालें
चली हैं। भारत में नेता कह रहे हैं कि हमने पुलवामा का बदला लिया। पाकिस्तान में नेता
कह रहे हैं कि हमने भारत के दुस्साहस का बदला ले लिया। भारत में नेता कह रहे हैं कि
पाकिस्तान को झुका दिया, विंग कमांडर को लौटाना पड़ा। पाकिस्तान में नेता कह रहे हैं
कि विंग कमांडर को छुड़ाने के लिए भारत ने घुंटने टेक दिये। दोनों अपनी अपनी
कार्रवाई को लेकर अपनी अपनी आवाम के आगे ढिंढोरा पीट रहे हैं।
मुझे पता है और मैं खुद ही लिख चुका हूं कि ये सैन्य कार्रवाई है, बॉक्सिंग मैच नहीं है। मैं खुद उन
उतावले देशभक्तों को नसीहतें दे चुका हूं कि थोड़ा धैर्य रखिए, सेना अपना काम करेगी,
यह बॉक्सिंग मैच नहीं है कि एक मुक्का उसने मारा तो सामने हम भी मार दे। लेकिन वो
स्थितियां शांतिकाल की होती थी। खास नोट करे कि वो स्थितियां आतंकी हमलों के बाद के
दौर की थी। लेकिन हमने तो बदला लिया और उसके बाद उनकी सेना आकर हमारी सेना पर सीधा
हमला कर देती है। यह शांतिकाल नहीं, युद्ध की घोषणा ही थी। आपने दुश्मन ने इलाके में
घुसकर आतंकियों पर हमला किया, बदले में कुछ घंटों के बाद ही दुश्मन ने आपके इलाके में
घुसकर आपकी सेना पर हमला किया। यह युद्ध की घोषणा नहीं है तो फिर क्या है?
अब भी कई लठैत
होंगे, जो सेनाभक्त या देशभक्त तो कभी नहीं थे, बस गधापंती करके किसी और के भक्त
ज़रूर बनते थे, ये सारे लठैत कहेंगे कि हमें कोई नुकसान पहुंचा नहीं पाया दुश्मन...
हमने उन्हें खदेड़ दिया। अबे इश्कबाजों... भारत ने एयर स्ट्राइक किया उसके बाद
पाकिस्तानी इश्कबाज भी यही चीजें उनके सोशल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ऊपर
कहा करते थे। उन इश्कबाजों को छोड़ ही दीजिए, पहले इन इश्कबाजों को कोई पूछो कि अबे इश्कबाजों,
नुकसान नहीं पहुंचा पाया वाला गाना छोड़ दो... दुश्मन घर में घुसकर वार कर गया उसका
कोई तुक ही नहीं बनता क्या? इन इश्कबाजों की
आवाज एक ही होगी कि पाकिस्तान झूठ बोल रहा है, हमारी सरकार ने कहा है कि ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ। तब तो हमारी सरकार ने कभी भी यह नहीं कहा है कि एयर स्ट्राइक किया
तब 12 फाइटर जेट हमने इस्तेमाल किए थे, सरकार कह रही है कि हमने नहीं कहा कि 300-400
हमने मारे थे, इतने कैंप उड़ाए थे, इसके साले को उड़ाया था, उसको मार दिया था। सरकार
ने तब भी कुछ नहीं कहा था और अबकी बार भी कुछ नहीं कहा है। हमारी सरकार ने जो कहा वो
सच है तो पहले का सच और इस बार का सच, दोनों ही सच होने चाहिए न। कहने का मतलब यह
है कि किसी नेता के गधे बनने से अच्छा है कि उस नेता को कटघरे में खड़ा करके सवाल
पूछे जाए कि आपने जो किया था वो कैसे किया था कि बदले में दुश्मन इतनी हिम्मत दिखाकर
चला भी गया और आप सर नहीं झुकने दूंगा वाला फिल्मी संवाद चिटकाते रह गए।
जब पाकिस्तान ने
भारत पर चेतावनी देने के लिए बिना जान-माल के नुकसानवाली एयर स्ट्राइक की तो दोपहर
तक यही चलता है कि इतने एयरपोर्ट बंद, यहां के एयरस्पेस ब्लॉक किए गए। फिर खबर आती
है कि एयरपोर्ट बंद वाली रोक हटा दी गई है!!! सवाल उठता है कि चल क्या रहा है यह? तो फिर लठैत उतर आते हैं मेदान में और कहते हैं कि सरकार ने यह नहीं कहा था,
मीडिया ने सूत्रों से खबरें चलाई थी। अबे इश्कबाजों... तो फिर 12 या 300-325-350-400
वाला आंकड़ा भी सरकार ने नहीं कहा था, मीडिया ने ही सूत्रों से चलाया था।
गज़ब की गधापंती में
फंसा था यह देश इन दिनों। देखिए न, बेहोश होकर हम जश्न मना रहे थे। जश्न का खुमार
उतरने का तो छोड़ दो, खुमार तो अभी ठीक से चढ़ा भी नहीं था और दुश्मन ने सारी बेहोशी
तोड़ दी। सेना के पराक्रम का राजनीतिक खोखलेपन ने इतना बड़ा तमाशा बना दिया कि
दुश्मन 70 साल में पहली बार इस तरह से घर में घुस कर हमारा गाल लाल कर चुका है और हम
तमाशबीन उसी खोखले खुमार को जिंदा रखने की गधापंती में लगे हुए हैं।
यह ज़िल्लत ही है
कि बदला ले लिया वाले जश्न में बेहोश है और दुश्मन ने पीठ पीछे नहीं बल्कि सीधे घर
में घुसकर छाती पर वार कर दिया। फिर हम जैसा करते हैं वैसे ही उन्होंने बातचीत का प्रपोजल रख
दिया। एक जवान को बंदी भी बना लिया, ताकि हाथ ऊपर रहे। ज़िल्लत तो यह भी है कि जश्न
में डूबे भारत को दुश्मन देश झटका दे गया और उस देश का प्रधानमंत्री कहने लगा कि
हमने भी स्ट्राइक कर ली, लेकिन हम जश्न मनाने जैसी चीजें नहीं करेंगे। इस तंज का
मतलब क्या है इसका मतलब समझाने की ज़रूरत है क्या?
हमने एयर स्ट्राइक
किस तरह से किया उसकी जानकारी अभी तो मिली ही नहीं थी, ऐसे में झटका मिल गया कि
दुश्मन के विमानों ने हमारे ठिकानों के आसपास बम बरसा दिए। कुछ लठैत कहते हैं कि
पाकिस्तान की हिम्मत नहीं चली कि हमारे ठिकानों को निशाना बना पाए, इसलिए उसने ठिकानों के आसपास खाली जगहों पर पटाखे फोड़ दिए। अबे इश्कबाजों... गधापंती की भी सीमा होती है!!! हमारे बम बम है तो उनके बम भी बम ही होते हैं। पटाखे ही समझते हो तो कुछ दिन
तो गुजारो सेना में, पता चल जाएगा। खोखली गौरव सेनाएँ बनाकर रखी है तो इसका मतलब यह
ना समझे कि आपकी खोखली लठैत सेना भारत की महान सेना के समान है। दरअसल, पाकिस्तान
ने 56 इंच की छाती वाली (सोरी, कथित रूप से 56 इंच की छाती वाली) सरकार को खुल्ली
चेतावनी दी है कि अब की बार ठिकानों के आसपास हमारे बम गिराए है। दुश्मन ने सीधा
संदेश दिया है कि आपकी जो भी मजबूरियां है वही हमारे यहां भी है!!! ये मानना गधापंती है कि पाकिस्तानी जेट का निशाना चुक गया होगा। हमारी सेना
का शुक्रिया कि नुकसान होते होते रह गया। लेकिन दो संदेश दे गया दुश्मन। पहला यह
कि हम भी कर सकते हैं और दूसरा यह कि हम करना नहीं चाहते। यानी कि उन्होंने भी कह दिया
कि हम भी युद्ध कर सकते हैं और हम भी युद्ध पसंद नहीं करेंगे। जो हमारे राजनेता कहते
हैं, उन्होंने भी वही कहा! हमने भी
प्रैक्टिकली करके कहा, उन्होंने भी वही किया!
भारत और
पाकिस्तान, दोनों में बहुत अंतर है। लेकिन दोनों के मीडिया में शायद बहुत कम अंतर है।
दोनों देशों में युद्धोन्माद ही सारी समस्याओं की चाबी है। कभी कभी लगता है कि भले
भारत और पाकिस्तान अलग देश हो, लेकिन दोनों देशों का मीडिया खुद को अलग नहीं समझता
होगा!!! जब भारत एयर स्ट्राइक करता है तो भारत
का मीडिया “दुश्मन का सर्वनाश”, “ले लिया बदला”, “दुश्मन की कमर तोड़ दी”, “अब पानी नहीं मागेगा पाकिस्तान”, “भारत ने किया करारा वार”, “पाकिस्तान सकते में”, “इमरान रोये खून के आंसू”... यही लाइनें चलाता है। उधर पाकिस्तानी मीडिया “झूठ बोल रहा है भारत”, “बौखलाहट में भारत ने किया हमला”, “पाकिस्तानी सेना ने खदेड़ा”, “दुश्मन को दिया गया मुंहतोड़ जवाब”... वगैरह वगैरह लाइनों में घुस जाता है। उधर पाकिस्तान कुछ करता है तो भारत का
मीडिया पाकिस्तान के मीडिया से लाइनें उधार ले लेता है और पाकिस्तानी मीडिया भारत
के मीडिया से कॉपी-पेस्ट किए देता है!!! भारत की कार्रवाई भारत के लिए गौरव होती है और पाकिस्तान के लिए भारत की
बौखलाहट। पाकिस्तान की कार्रवाई के समय उनके लिए वो गौरव होता है और भारत के लिए
पाकिस्तान की बौखलाहट।
जब भी कोई आतंकी हमला होता है तो भारतीय मीडिया एक ही लाइन डाल देता है – आतंकियों की नापाक करतूत, पाकिस्तान की कायराना हरकत। अबे मीडिया वालों, ये पाकिस्तान की कायरता थी या भारतीय नेतृत्व की? भारत हमला करता है तो भारत का मीडिया पता नहीं कहां से हमले का वीडियो और हमले की तस्वीरें ले आता है, गौरवगान के कार्यक्रम चलते हैं। उधर पाकिस्तानी मीडिया में चलता है कि भारत फेक तस्वीरें पेश कर रहा है, यह रहा भारत के झूठ का पर्दाफाश। पाकिस्तान कोई हमला करता है तो पाकिस्तानी मीडिया भी हमले का वीडियो और तस्वीरें ढूंढ लाता है, उनकी सेना का गौरवगान होता है। इधर भारत का मीडिया पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश करने के दावे करता है। दोनों देशों के मीडिया एक दूसरे से उधार लेकर अपनी दुकानें चला रहे हैं। सोचिए, आज तक और एबीपी न्यूज़ जैसे बड़े बड़े चैनल फेक वीडियो और फेक खबरें चलाते हैं (भारत की ही किरपान और पिम्पल चौकी को भारतीय सेना द्वारा तबाह करने की खबरें, दो साल पुराने वीडियो को दो साल बाद लाइव प्रसारण करके दिखा देना, या राष्ट्रीय राइफल्स पर बड़ा आतंकी हमला जैसी दो-पांच मिनट की जिंदगी वाली खबरें चला देना, जैसी मीडियाई कृपा याद होगी आपको)। और वही लोग वायरल सच के नाम पर सच-झूठ का प्रसारण करने की गधापंती करते हैं या फिर झूठ का पर्दाफाश वाले नारे के साथ टाइम पास टाइप कार्यक्रम कर लेते हैं!!!
पाकिस्तान ने हम
पर हवाई हमला किया था यह सीधा और कड़वा सच है। विदेश मंत्रालय ने नपीतुली भाषा में कहा कि पाकिस्तान ने भारत के फौजी संसाधनों पर हवाई हमले की नाकाम कोशिश की है। यही
चीज़ पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय बालाकोट स्ट्राइक के बाद बोल रहा था। इसमें सेना,
सेना के प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय आदि का कोई दोष नहीं है। युद्ध या युद्ध जैसे
हालातों में ऐसी ही नपीतुली प्रतिक्रियाएँ होती है। लेकिन इसका सहारा लेकर टंगड़ी ऊंची रखने का मतलब नहीं है, जब दुश्मन को
नेस्तनाबूद कर देने की हवाईबाजी के बाद चंद घंटों में दुश्मन चेतावनी देने के लिए
आप पर ही एयर स्ट्राइक कर जाए। हमने, यानी भारत सरकार ने, आधिकारिक रूप से कहा कि
हमने दुश्मन का एफ16 मार गिराया और हमारे एक विमान को क्षति पहुंची है या नष्ट हो
गया है। पाकिस्तान कह रहा है कि हमने दुश्मन के मिग विमान को मार गिराया और हमारे
एक विमान को क्षति पहुंची है या नष्ट हो गया है। इन भाषाओं को दोनों देशों का मीडिया
और दोनों देशों के हुक्मरान अपने अपने सियासी फायदे के लिए बढ़ा-चढ़ा कर या छुपा कर पेश
कर रहे हैं यह भी तो एक सच ही है।
हम पर हवाई हमला
हुआ, या यूं कहे कि हवाई हमले की नाकाम कोशिश हुई उस दिन की दोपहर तक मीडिया यही
बोलता रहा कि पाकिस्तान का झूठ, हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ, पाकिस्तानी फाइटर जेट
दुम दबाकर भागे वगैरह वगैरह...। कुछेक मीडिया हाउस ने तो पाकिस्तान के झूठ का
पर्दाफाश वाले कार्यक्रम भी घंटेभर तक चला दिए। जिस दुश्मन की कमर तोड़ने का दावा
सुबह तक हो रहा था वह दुश्मन हवाई हमला कर चुका है, लेकिन प्रेजेंटेशन कुछ और ही
था!!! पाकिस्तान ने युद्ध शुरू कर दिया था, लेकिन हमने बदले में बैठकें शुरू की, जबकि हम पूरी तरह से तैयार है वाला भाषण बार-बार देख चुके थे!!! दोपहर को विदेश मंत्रालय ने स्वीकारा कि हमने एक फाइटर जेट खो दिया है। दोपहर
तक मीडिया यही साबित करने में लगा हुआ था कि हमारा कोई विमान इस कार्रवाई में नहीं गिरा। दोपहर को विदेश मंत्रालय ने मीडिया का मजाक बना दिया। लेकिन मीडिया था कि
झुकने को तैयार नहीं था! फिर मीडिया के
सूर बदले और कहने लगे कि यह इतिहास में पहली बार है कि किसी मिग ने एक16 को गिराया
हो, बदले में मिग को कुछ नुकसान हुआ है!!! अब पायलट के बंदी बनाने की बातों पर
पाकिस्तान का पोल-खोल का अभियान चल पड़ा। एक विषय पर खुद का मजाक बना तो दूसरे विषय
को थाम लिया! उधर बीबीसी ने सुबह या दोपहर से न्यूज़ ब्रेक कर दिया था कि उस पायलट का नाम क्या है, जो बंदी बना लिए गये है। लेकिन
हमारा मीडिया झुकने को तैयार नहीं था! शाम होते होते भारत के विदेश मंत्रालय ने
दोबारा मीडिया का मजाक बना दिया और स्वीकार कर लिया कि दुश्मन के पास हमारा एक
पायलट बंदी है। जबकि बीबीसी ने तो सुबह या दोपहर से ही नाम के साथ न्यूज़ ब्रेक कर
दी थी। और इधर हमारा मीडिया इसे पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा बतलाकर गौरव शो वाले कार्यक्रम चला रहा था! लेकिन अब तो सरकार ने ही कह दिया था कि बंदी वाली बात प्रोपेगेंडा नहीं बल्कि सच है।
विदेश मंत्रालय ने
कहा कि पाकिस्तान जल्द से जल्द उस बंदी पायलट को वापस लौटाए और पायलट को नुकसान न
पहुंचे इसका खयाल रखा जाए। मीडिया का दिन में दोबारा मजाक बना, लेकिन मीडिया झुकने
को तैयार नहीं था। उसने नया श्रृंगार कार्यक्रम चला दिया कि भारत की पाकिस्तान को
चेतावनी, अगर हमारे पायलट को कुछ हुआ तो ईंट से ईंट बजा देंगे...। बताइए, जो सरकार
ने नहीं कहा था वो हमारा मीडिया पाकिस्तान को कहने लगा!!! अरे भाई, ईंट से ईंट बजा देंगे वाले फिल्मी संवादों के बीच ही तो इतना कुछ हो
गया है, अब तो बाज आओ। कुछ महान लोग यह सलाह देने से नहीं चुके कि धैर्य रखो,
युद्धोन्माद मत जगाओ। अब ऐसे महान लोगों को कान के नीचे जोरों से मारे या फिर मुंह
मोड़ कर चले जाए? क्योंकि युद्धोन्माद किसने जगाया था ये
कौन नहीं जानता?
मुझे याद नहीं है
कि किसी भी आतंकी हमले के बाद खुलकर और इतने ज्यादा जोरों से यह कहा जाने लगा हो कि
सरकार ने आतंकी हमला करवाया है। यह आप के ही नसीब में क्यों हुआ? पता है कि कहनेवाले नफरत की वजह से कह रहे हैं। लेकिन किसी दूसरी सरकारों पर इस
तरह से सवाल नहीं उठते थे जैसे आप पर उठे। नोटबंदी में दावा किया गया था कि महज कुछ
लोगों को पता था कि नोटबंदी होने वाली है। लेकिन एक-दो अखबारों ने तो पहले ही छाप
दिया था कि नोटबंदी होने वाली है! फिर कह दिया कि यह तो महज एक संयोग था। बालाकोट एयर
स्ट्राइक के बाद भी ऐसे ही संजोग उत्पन्न हो गए। 25 फरवरी को पीएम इमरान अफगान रिफ्यूजी
को लेकर एक ट्वीट करते हैं और द स्किन डॉकटर नामका यूजर लिखता है कि कोई फायदा नहीं इमरानभाई, आज रात वैसे भी अटैक होने वाला है, टेक केयर। अटैक हुआ और लिखने वाले ने
कहा कि महज एक संयोग था। चलो संयोग वाले योग को छोड़ ही देते हैं। कई मीडिया रिपोर्ट
में, बीबीसी हिन्दी जैसे मीडिया हाउस में खुलकर छपा है कि पुलवामा हमले के पहले मोदी
का जीतना बहुत मुश्किल था, अब निश्चित है। बीबीसी हिन्दी और अन्य मंचों पर रिपोर्ट
हैं कि पुलवामा हमले में वीर गति को प्राप्त हुए जवानों के परिजन चाहते हैं कि हमले की जांच हो और
तथ्य बाहर आए। वो चाहते हैं कि इसकी जांच जल्द हो, ताकि कोई एक पार्टी इसका
राजनीतिक लाभ उठा न पाए। बलिदानियों के परिजन इस घटिया राजनीति से आहत है ऐसे रिपोर्ट
भी छपे हैं। अंतरराष्ट्रीय पत्रकार क्रिस्टीन फेयर लिखती है कि मैं बार बार कहती हूं कि इन हमलों का भारत के आम चुनावों से भी संबंध है। स्पष्ट हो कि अपने लेख में उन्होंने कहा है कि इसका मतलब यह नहीं है कि इसका संबंध मोदी से है, बल्कि पाकिस्तान
से है। लेकिन आप पुलवामा हमले के दिन, हमले के बाद, रैलियां करते रहे, भाषणों में बिजी रहे, जबकि पूरा देश गम में था!!! सब कुछ ठहरा था, सिवा आपके चुनावी प्रचार के!!! राजनीति नहीं करनी है यह नसीहत आपने दी, जबकि हमले का राजनीतिकरण आपने ही शुरू किया यह कहकर कि यह नई सरकार है, नया भारत है, पुराना दौर चला गया। अभी कल ही भारत
पर पाकिस्तान ने हवाई हमला कर दिया है, हमारा फाइटर जेट उन्होंने गिराया है या गिर
गया, हमारा पायलट उनके कब्जे में है और पता चलता है कि आप भाजपा कार्यकर्ताओं को
संबोधित करने का चुनावी कार्यक्रम जारी रखे हुए है!!!
एक पुराना प्रसंग
है, जिसमें एक पीएम ने कहा था कि मैं जंग नहीं चाहती, लेकिन अगर जंग होती है तो फिर
जंग ही सही। लेकिन यहां कुछ और ही हो गया। मैं जंग नहीं चाहता, सिर्फ सीमित बदला
चाहता हूं, अगर जंग के हालात बनते हैं तो फिर बातचीत ही सही! अब भी कहा जा रहा है कि सेना को खुली छूट है। पता नहीं छूट है या होलसेल की
दुकान?
इमरानखान ने
बातचीत की पेशकश की इस चीज़ को लेकर वाट्सएप की उन टंगड़ी ऊंची रखनेवाली कोशिशों को क्यों
सच मान ले जो यह कहने लगे कि डर गए इमरान। डर ही गए होते तो सुबह जो किया वो नहीं करते। यहां जो मजबूरियां है, वहां भी वही मजबूरियां है यह बहुत पहले से सैकड़ों बार लिखा
और कहा गया है। इमरान ने कहा कि जंग हुई तो किसी के काबू में नहीं रहेगी। दूसरी तरफ
पाकिस्तान के रेल मंत्री राशिद अहमद ने कह दिया कि अब की बार काफी भयानक युद्ध
होगा, पाकिस्तान पूरी तरह तैयार है, अगर भारत से युद्ध होता है तो दूसरे विश्व
युद्ध से भी बड़ा युद्ध होगा, यह आखिरी युद्ध होगा, अगले 72 घंटे अहम है। उनका एक
मंत्री चेतावनी देता है, दूसरा बातचीत की पेशकश करता है!!! पाकिस्तान ने जो किया वह कूटनीति ही तो थी। वो सुबह भारत को सरप्राइज कर देते
हैं, हवाई हमला करते हैं हम पर, हमारा फाइटर जेट नष्ट होता है, हमारा पायलट उनके
हाथों में है, फिर उनका मंत्री कहता है कि हम पूरी तरह से तैयार है, इस बार काफी
भयानक युद्ध होगा... फिर पीएम इमरान बातचीत की चाल चल देते हैं!!! कूटनीति तो थी ही इसमें। पता है कि कुछ लठैत फिर से पाकिस्तान भेज
दो इसे (मुझे), देशद्रोह जैसे घटियापन पे उतारू हो जाएंगे। इश्कबाजों का भौंकना छोड़ देते
हैं, क्योंकि इन्हें कमतर स्तर के कुतर्क करने की आदत नहीं बल्कि आदेश है।
उधर हमारे पीएम और
उनके मंत्री तो यह बोला करते थे कि अबकी बार हिसाब बराबर होगा, कुछ भी करना मत
वरना ईंट से ईंट बजा देंगे। देश को बताया गया था कि अब पाकिस्तान की हिम्मत नहीं है
कि वो कुछ भी कर पाए। लेकिन उल्टा पाकिस्तान ने तो एक दिन के भीतर हमारे इलाके में
आकर हमारे पर बम बरसा दिए! भारत ने एयर
स्ट्राइक कर लिया और आक्रोश को ठंडा कर दिया, पाकिस्तान में आक्रोश जगा तो
पाकिस्तान ने भी ऐसा कर लिया! अब आओ बैठते हैं
मेज पर!!! लेकिन हालात तो
देखिए। जिस पाकिस्तान के बारे में कहा जाता था कि अब उसकी हिम्मत नहीं होगी कि वो कुछ
भी कर पाए, वो हमारे इलाके में घुसकर हमारे पर बम बरसा गया, हमारा एक फाइटर जेट
गिरा गया, हमारे फौजी को बंदी बना लिया! अब मेज पर दोनों बातचीत के लिए बैठेंगे! क्या पता हमारा नुकसान कितना हो गया है, क्योंकि इन हालातों में पाकिस्तान ना
अपने लोगों को सच बताता है और ना ही भारत अपने लोगों को। जानकारियां गुप्त रखना आम
बात है इन हालातों में। और अब आओ मेज पर बैठे और समझौता कर ले!
भारत ने जब
बालाकोट पर एयर स्ट्राइक किया तो पाकिस्तानी सरकार का बयान था कि अंधेरा था इसलिए
हमें पता नहीं चल पाया। किसी सेना के लिए, 21वीं सदी में किसी सेना के लिए इस तर्क का
मतलब क्या निकालेंगे आप? पाकिस्तान की
सेना, पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान का मीडिया हमारे मीडिया की तरह ही कार्यक्रम
चलाता है और दावा करता है आ गए फलांना फलांना फौजी सामान, अब सेकेंड के सौवें हिस्से में ये हो जाएगा, वो हो जाएगा। इतने सारे एटम बम बनाने वाला पाकिस्तान 21वीं सदी में अंधेरे में काम नहीं कर पाता!!! क्या गज़ब का गटरछाप तर्क था पाकिस्तान का! हंसे या पाकिस्तान को पीट पीट कर हंसे? दरअसल, अपने नागरिकों को बेवकूफ बनाने के लिए उनके पास कोई और कुतर्क नहीं होगा। लेकिन घबराए नहीं। पाकिस्तानी सरकार ने जिस गटरछाप कुतर्क का इस्तेमाल किया
था, शायद उन्होंने भारत सरकार से तर्क उधार ले लिया होगा। क्योंकि पुलवामा हमला हुआ
और उसके बाद पीएम मोदी के भाषणों, रैलियों को लेकर सवाल उठे तो भारत सरकार ने ही
कहा था कि सिग्नल नहीं मिल रहे थे इसलिए पीएम को सूचना देरी से मिली!!! सोचिए, 21वीं सदी के दौरान किसी देश के, भारत जैसे बड़े देश के पीएम काफिले के
साथ कहीं पर निकलते हैं, जिस काफिले में संचार व्यवस्था के लिए अलग से उपकरण वाली
गाड़ियां और सहूलियते होती है, देश का सबसे आधुनिक कम्युनिकेशन सिस्टम लेकर चलता
है भारत के पीएम का काफिला, और उन्हें ही सिग्नल नहीं मिले!!! यह भी तो गटरछाप कुतर्क ही था।
दरअसल हमें आदत हो
चुकी है गधापंती की। उनकी सेना जो करती है वह उनके लिए गौरव है, हमारे लिए हमारी सेना
की कार्रवाई गौरव है। बौखलाया पाकिस्तान वाली लाइन हमारा मीडिया कहता है, उधर बौखलाया
भारत वाली लाइन उनका मीडिया कहता है। हमने बालाकोट पर स्ट्राइक कर कहा कि यह
असैनिक कार्रवाई थी। भारत के इस दावे पर कोई दो राय नहीं हो सकती। हमने आतंकी अड्डों पर कार्रवाई की, सेना का इस्तेमाल करके। मतलब कि सेना की मदद से दुश्मन देश की
सेना पर नहीं बल्कि दूसरे खतरोंं पर हमने वार किया था। उधर पाकिस्तान ने भारत पर
स्ट्राइक किया तो पाकिस्तान ने भी यही कहा कि हमने असैनिक कार्रवाई की है। लेकिन
क्या उनकी कार्रवाई असैनिक थी? क्योंकि उनकी
सेना ने हमारे सैन्य ठिकानों के आसपास और हमारे सैनिक संसाधनों पर हमला किया था।
उनकी सेना ने हमारी सेना पर हमला किया था, जबकि हमारी सेना ने उनके आतंकियों पर
हमला किया था। हमें शर्मिंदगी से स्वीकार करना होगा कि उनकी सेना ने हमारी सेना के
खिलाफ सैन्य कार्रवाई की थी। बस खयाल यह रखा कि जानी नुकसान ना हो, क्योंकि उसके
अपने डर तो होंगे ही। लेकिन फिर भी हम सर ऊंचा रखकर झूठे गौरव को जिंदा रखने की
कोशिशों में लगे हैं! उनकी सेना ने हमारी सेना पर हमला किया
था, पाकिस्तान ने भारत पर सीधा युद्ध किया था... ये दो चीजें इसलिए हम स्वीकार नहीं कर पाते, क्योंकि हमें हमारा झूठा भ्रम टूटने से दर्द होगा। और इसीलिए हमले में नुकसान नहीं हुआ वाला छोर हमें ज्यादा पसंद आता है, हमला हो गया वाले सच से दूर
भागते हैं।
दरअसल मोदी सरकार
और स्वयं पीएम मोदी की कार्यशैली यही रही है कि वे लोग राई का पहाड़ बना देते हैं। किसी नीति, घटना यो योजना को लेकर हद से बहुत बहुत ही ज्यादा हवाबाजी करते हैं। फिर
लोग सवाल पूछते हैं तो इसे सरकार के बदले देश के साथ जोड़ देते हैं। नोटबंदी के बाद
इतने ज्यादा हवा-हवाई दावे नहीं किये होते तो नोटबंदी एक फेल पॉलिसी नहीं रही होती।
जीएसटी को लेकर इतना ताम-झाम नहीं किया होता तो उसके सवाल भी इतने बड़े नहीं होते। हर
चीजों पर, हर मसलों पर अतिशयोक्ति, आत्ममुग्धता और आसमानी दावे करने की वजह से ही
सवाल उठ खड़े हुए। सरकार बनने से पहले जो सपने-वादे-दावे किए थे उसमें थोड़ा कंट्रोल
रखा होता तो यूं मजाक नहीं उड़ता। प्रतीकों की राजनीति भाजपा से जुड़ी है, बुराई नहीं है इसमें। लेकिन अतिरेक और आत्ममुग्धता के चलते कुछ नाम जो इन्हें मिल चुके हैं इसमें
इनकी वही कार्यशैली जिम्मेदार है।
यह सच है कि हमारी
सेना ने या हमने जितना करना था कर लिया है। युद्ध को कई लोग पसंद करते होंगे,
लेकिन मैं नहीं करता। युद्ध को टालना जितना ज्यादा मुमकिन हो, किया जाना चाहिए।
क्योंकि युद्ध कोई शौकिया चीज़ नहीं है। एक देश का मतलब क्या समझेंगे आप? यदि देश का मतलब समझेंगे तभी युद्ध का मतलब समझेंगे। इस लिहाज से हमने जो
करना था किया। पाकिस्तान ने भी जितना करना था कर लिया। दोनों अपनी अपनी आवाम के
सामने अपनी जीत का ढिंढोरा पीट सकते हैं अब। दोनों देशों ने जितना पाना था पा लिया।
लेकिन आतंक का खात्मा या आतंकवादियों को कड़ा संदेश, या आतंक के पनाहगारों को कड़ी चेतावनी, इन सबमें क्या खोया क्या पाया ये राजनीति की बिसात पर इघर से उधर जा रही
गोटियों से पूछे तब भी शायद ही पता चल पाए।
आप एयर स्ट्राइक
कर चुके हैं और उसके बाद चंद घंटों में दुश्मन आप पर ही एयर स्ट्राइक कर देता है! इस घटनाक्रम से सवाल उठना लाजमी है कि आपके सारे काम बिना तैयारी के ही होते
है क्या? नोटबंदी बिना तैयारी के, जीएसटी बिना
तैयारी के...। इतने तक तो ठीक था, लेकिन सैन्य कार्रवाई के लिए भी आपने आगे-पीछे
की कोई तैयारी नहीं की थी? यकीनन नहीं ही की
थी, तभी तो चंद घंटों में दुश्मन आपके घर में घुसकर आपको थप्पड़ जड़ देता है। आपने ही
तो तैयारियों का ढोल पीटा था, बहुत पीटा था। लेकिन दुश्मन पीट कर चला जाता है और
आप दिनों तक बैठक करते रहते हो। अर्थ तो यही होता है कि कुछ तो जल्दबाजी थी, तभी तो
नोटबंदी और जीएसटी की तरह एयर स्ट्राइक भी बिना आगे-पीछे सोचकर कर दिया था।
(इंडिया इनसाइड, मार्च
2019, एम वाला)