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Women Wrestlers Protest: सरकारें वोटर चाहती हैं, नागरिक नहीं... देश के गौरव को सड़क पर घसीटकर उन पर सरकारी जूता रगड़ती पुलिस

 
जब इन महिला पहलवानों ने दुनिया में भारत को गौरवान्वित किया तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें चाय पर बुलाया था। इनका सम्मान किया था। इनके साथ फोटू सोटू खींची गई थी। उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट तो ऐसे किया था, जैसे उन पहलवानों को ट्रेनिंग उन्होंने दी हो! जब इन्हीं महिला खिलाड़ियों ने उनकी पार्टी के साथ जुड़े दबंग नेता के ख़िलाफ़ अति गंभीर शिकायतें कीं, महीनों तक आंदोलन किया, प्रधानमंत्री एक लफ़्ज़ तक नहीं बोले! उल्टा इन महिला खिलाड़ियों को दिल्ली पुलिस ने एक दिन सड़क पर गिराकर उन पर सरकारी जूता तक रगड़ दिया!
 
यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि महिला पहलवानों की शिकायत को लेकर पुलिस एफ़आईआर दर्ज करें, यह आदेश देश के सर्वोच्च न्यायालय को देना पड़ा था!!! उसके बाद मामला दर्ज हो पाया! यानी कि न्याय की बात तो दूर है, न्याय के सबसे पहले चरण के लिए भी आंदोलन करना पड़ा!
 
ये मसला था भारत को पदक जीताकर पूरे देश को गौरवान्वित करने वाली हमारी महिला पहलवानों की शिकायत का, उनकी न्याय के लिए माँग का, जो उन्होंने भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ की थी।
 
इस मसले पर कौन सच बोल रहा था, कौन झूठ, यह अब तक साबित नहीं हो पाया है। मसला यह भी नहीं है कि कौन सच्चा था, कौन झूठा। मसला यह था कि ऐसे मामलों में क़ानून के मुताबिक़, नैतिकता के मुताबिक़ जो होना चाहिए था, वैसा बिलकुल नहीं हुआ। यहाँ तक कि इन महिला पहलवानों की शिकायत पुलिस दर्ज तक नहीं कर रही थी! सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एफ़आईआर हुई!
 
उपरांत जिन घाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया, अमूमन दूसरे आरोपियों के साथ जो होता है, उनमें से कुछ भी इस दबंग आरोपी के ख़िलाफ़ नहीं हुआ। उल्टा हुआ यह कि एक दिन देश ने वो शर्मनाक मंज़र देखा, जब इन महिला पहलवानों को जबरन खींच कर आंदोलन की जगह से हटा दिया गया। उन्हें सड़क पर गिरा दिया गया। उन पर पुलिस के जूते रखे गए। दिनों बीत गए और आख़िरकार जिस महिला के बयान के आधार पर उस अति गंभीर घारा को लगाया गया था, उसने अपना बयान वापस ले लिया।
 
बिना भावना में बहे, सवाल तो यह भी उठाया जा सकता है कि इन सारे आंदोलनों के दौरान, क्या किसी ने एक दूसरे के आंदोलन में बाहर से भी आंदोलन की आवाज़ बनने की कोशिश की थी? नागरिकों के समुदाय अपने हिस्से का शोर मचाते रहते हैं, दूसरों की आवाज़ का हिस्सा नहीं बनते! तभी तो सरकारें इनको इस तरह सड़कों पर घसीटती खींचती रहती हैं।
स्वाभाविक सी बात है कि इन महिला पहलवानों ने संबंधित विभाग से, संबंधित अधिकारियों से शिकायत की होगी। वहाँ नहीं सुना गया उसके बाद 18 जनवरी 2023 के दिन भारतीय महिला पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच कराने के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया। महिला पहलवान शिकायतकर्ताओं ने भूषण पर सहमति के बिना स्तनों और नाभि को छूने, पीछा करने, डराने-धमकाने और पेशेवर मदद के बदले में यौन सहायता की माँग करने का आरोप लगाए।
 
नोट यह भी करें कि इस बाबत शिकायत केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय को भी की गई थी। यानी कि जनवरी 2023 के आंदोलन से पहले।
 
महिला पहलवानों को कहीं पर सुना नहीं गया। आख़िरकार जनवरी 2023 में भूषण के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोपों को सार्वजनिक करते हुए जंतर-मंतर, नई दिल्ली में धरना-प्रदर्शन आयोजित किया गया। ओलंपिक पदक विजेता विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, अंशु मलिक, बजरंग पुनिया सहित तीस भारतीय पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह और उसके कोचों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए धरना दिया।
 
इस आश्वासन के बाद कि केंद्र सरकार आरोपों की जाँच के लिए एक समिति बनाएगी, जनवरी 2023 में विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया गया। मैरी कॉम के नेतृत्व में समिति का गठन हुआ। समिति ने 5 अप्रैल को युवा मामले और खेल मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति की सदस्या बबीता फोगाट ने आरोप लगाया कि गवाहों के बयानों की पुष्टि नहीं की गई और उनकी आपत्तियों को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया। समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, लेकिन सार्वजनिक नहीं की गई। बस यही ख़बर बाहर आई कि भूषण ने समिति के सामने सभी आरोपों से इनकार किया है।

 
महिला सुरक्षा, महिला सम्मान के अनेक ख़ूबसूरत नारों के बीच इस दौरान पता तो यह भी चला कि डब्ल्यूएफआई के पास यौन उत्पीड़न की शिकायतों को संबोधित करने के लिए यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) अधिनियम 2013 के तहत अनिवार्य कोई आंतरिक शिकायत समिति-आईसीसी नहीं थी! यौन उत्पीड़न समिति, जो अस्तित्व में थी, उसमें चार पुरुष और एक महिला थी, जो भारतीय क़ानून का उल्लंघन करती थी! क़ानून के मुताबिक़ सभी आईसीसी का नेतृत्व एक महिला द्वारा किया जाना चाहिए और समिति के आधे से अधिक सदस्य महिलाएं होनी चाहिए। क़ानून-नियम वगैरह चौराहों पर आम लोगों के लिए होते होंगे, यहाँ नहीं!
 
महिला प्रदर्शनकारियों ने अधिकारियों की निष्क्रियता और समिति द्वारा आरोपियों के पक्ष में पक्षपात का हवाला देते हुए 23 अप्रैल 2023 को अपना विरोध फिर से शुरू किया। भूषण के ख़िलाफ़ सात अलग अलग पहलवानों की शिकायतें फिर एक बार सुनी नहीं गई! दिल्ली पुलिस पर निष्क्रियता और एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार करने का आरोप लगाया गया। पहलवानों ने समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की माँग की।
 
जवान हो, किसान हो या बेटियाँ हो, नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान इन तीनों के साथ यह द्दश्य दोहराए गए। याद करिए आज़ादी की पूर्व संध्या के दिन का वो द्दश्य। वो ओरोप आंदोलन, जब देश के पूर्व सैनिकों को इसी तरह जबरन खींच कर, घसीटकर बाहर किया गया। वो मेडल, जिन पर हम नाज़ किया करते हैं, वह उस दिन सड़कों पर बिखर गए थे। आज़ाद भारत का सबसे लंबा किसान आंदोलन भी हुआ, जिसमें सैकड़ों किसानों ने जान गँवाईं। साथ ही उनके साथ बुरे से बुरा सुलूक तक किया गया। अब बारी महिला खिलाड़ियों की थी, देश की बेटियों की थी।
 
क़ानून का जो प्रथम चरण है उसीका पालन नहीं हो रहा था! एफ़आईआर दर्ज करने के संबंध में कितनी सारी अच्छी अच्छी बातें कही जाती हैं। किंतु यहाँ पुलिस एफ़आईआर दर्ज करने को तैयार ही नहीं थी! देश को गौरवान्वित करने वाले प्रसिद्ध महिला खिलाड़ियों के जनवरी से लेकर अप्रैल तक के ऐसे प्रयासों के बाद भी एफ़आईआर दर्ज नहीं हो पाती! सोचिए, आम और ग़रीब जनता का तो क्या हाल होता होगा?
आख़़िरकार महिला प्रदर्शनकारी सर्वोच्च न्यायालय जाने को मज़बूर हुए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को एफ़आईआर दर्ज करने के लिए आदेश दिया। एक एफ़आईआर के लिए देश के नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा, यही 21वीं शताब्दी का विश्वगुरु भारत हैं, तो फिर क्या कहें? सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा, उसके बाद ही एफ़आईआर दर्ज की गईं! जबकि भारतीय क़ानून यौन उत्पीड़न जैसे संज्ञेय अपराधों के लिए तत्काल एफ़आईआर दर्ज करना अनिवार्य है। भूषण पर पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें सभी अपराध संज्ञेय माने जाते हैं।
 
न्याय की बात तो दूर है, जाँच की बात भी दूर है, एक एफ़आईआर के लिए महीनों तक प्रदर्शन करना पड़े, सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़े, यही बात पूरे मसले को अति संदिग्ध बनाने के लिए पर्याप्त थी। लाज़मी था कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर अपने दल के सदस्य भूषण को बचाने की कोशिश के आरोप लगने ही थे। महिला पहलवानों ने भी आरोप लगाया कि बड़े बड़े लोग भूषण के ख़िलाफ़ मामला वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
 
जनवरी से अप्रैल तक का समय गुज़र चुका था! शिखर धवन के टूटे अँगूठे पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अब तक चुप थे! महिला पहलवानों में से एक साक्षी मलिक ने कहा, वह प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी के कारण आहत है।

 
देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली पुलिस को एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश दिया, किंतु जाँच की निगरानी के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति की याचिका ख़ारिज कर दी। 28 अप्रैल को दिल्ली पुलिस ने दो एफ़आईआर दर्ज की। एक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम पॉक्सो के तहत और दूसरी शील भंग करने के लिए। पॉक्सो अधिनियम के अलावा  भूषण पर एफ़आईआर में ख़बरों के मुताबिक़ आईपीसी की धारा 354, 354A, 354D और 34 भी लगाई गई।
 
पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध संज्ञेय, ग़ैर-जमानती होता है और अदालत के वारंट के बिना तत्काल गिरफ़्तारी की आवश्यकता होती है। लेकिन पुलिस ने भूषण को गिरफ़्तार नहीं किया! महीनों के आंदोलन के बाद एफ़आईआर दर्ज हुई थी। किंतु जिन धाराओं के तहत एफ़आईआर दर्ज हुई थी, उन धाराओं का पालन भी नहीं हो रहा था! पॉक्सो एक्ट के तहत तुरंत गिरफ़्तारी होनी चाहिए थी, लेकिन यहाँ भूषण को छुना तो दूर, उससे पूछताछ तक नहीं हुई!
 
एफ़आईआर को लेकर प्रमाणित ख़बरों की माने तो इस मामले में सात शिकायतकर्ता थे। जिनमें एक नाबालिग भी शामिल थीं। मामले की एफ़आईआर में भूषण और डब्ल्यूएफआई सचिव विनोद तोमर के ख़िलाफ़ आरोपों का ज़िक्र था। आरोपों में कम से कम दो मामलों में पेशेवर सहायता के लिए यौन संबंधों की माँग करना, यौन उत्पीड़न की कम से कम 15 घटनाएँ शामिल थीं, जिनमें छूना, स्तनों, नाभि, नितंबों पर हाथ चलाकर अनुचित स्पर्श करना और पीछा करने सहित डराने-धमकाने के कई मामले शामिल थें। एफ़आईआर में कथित रूप से उल्लेख किया गया कि महिला पहलवान अकेले भूषण से मिलने से बचने के लिए भोजन करने के लिए समूहों में ही बाहर जाती थीं। शिकायतकर्ताओं में से एक ने कहा कि भूषण ने उसे आगामी टूर्नामेंट ट्रायल में परिणाम भुगतने की धमकी दी, क्योंकि उसने उसके साथ शारीरिक संपर्क बनाने के प्रयासों का विरोध किया था। इन आरोपों के अलावा दूसरे अनेक आरोप भी थे।
विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कई पदक जीतने वाली विनेश फोगाट ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से उनके ख़िलाफ़ शिकायत करने के लिए भूषण ने उन्हें मानसिक रूप से परेशान किया, यातना दी और जान से मारने की धमकी दी।
 
एक तरफ़ महिला पहलवान जंतर-मंतर पर बैठकर धरना प्रदर्शन कर रही थीं, दूसरी तरफ़ बृजभूषण सिंह कविता गा रहा था। इसी दौर में बृजभूषण ने शिलाजीत वाला बयान दिया और कहा कि मुझ पर सैकड़ों लड़कियों के यौन शोषण के आरोप हैं, क्या मैं शिलाजीत वाली रोटियाँ खाता हूँ?
 
आंदोलनकारियों के दावे की माने तो, महिला पहलवानों के साथ ये घटनाएँ पिछले कुछ सालों से अलग-अलग स्थानों पर रेस्तरां, डब्ल्यूएफआई कार्यालय, टूर्नामेंट और वार्म-अप में हुई थीं। कथित तौर पर घरेलू और साथ ही विदेशों में अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों के दौरान घटनाएं हुईं। एक महिला पहलवान ने भूषण पर उसके परिवार को धमकाने के लिए गुंडे भेजने का आरोप लगाया और कहा कि भूषण द्वारा उसे धमकी दी गई कि अगर उसने डब्ल्यूएफआई द्वारा गठित समिति को घटनाओं के बारे में बताया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
 
बकौल विनेश फोगाट, 2021 में टोक्यो ओलंपिक में पदक से चूकने की आड़ में उन्हें व्यापक मीडिया जाँच का सामना करना पड़ा। विनेश फोगाट ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि उन्होंने भूषण की शिकायत (यौन शोषण के सिवा दूसरी शिकायतें) पीएम मोदी से की थी, जिसके बाद पीएम ने उन्हें आश्वासन दिया था। बकौल विनेश, उन्होंने इसके बाद खेल मंत्री को और थोड़ा खुलकर बातें बताई थीं।
 
देश का गोदी मीडिया, जो पहले से सार्वजनिक रूप से सरकार के साथ है, वह इस आंदोलन की ख़बरें कम ही दिखाता था। उपरांत, जब भी दिखाता तब सवाल सरकार, भूषण या पुलिस से नहीं, आंदोलनकारियों से ही होते! किसान आंदोलन के दौरान जो हुआ था, गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर वही होने लगा। बिना जाँच वाच के आंदोलनकारियों को ही कटघरे में खड़ा कर उन्हें तोड़ने के अभियान चलने लगे।
 
पहलवानों ने आरोप लगाया कि सरकार ने विरोध स्थल पर बिजली, पानी और खाद्य आपूर्ति तक को काट दिया। उधर दिल्ली पुलिस ने विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को भी हिरासत में लिया! केंद्र सरकार फिर एक बार एक और आंदोलन को अलोकतांत्रिक और तानाशाही तरीक़े से कुचलने के आमादा दिख रही थी।
 
18 मई 2023 को, आरोपी भूषण ने यहाँ तक कह दिया कि पहलवानों के ओलंपिक पदकों की क़ीमत 15 रुपये थी। ख़ुद को विश्व के नेता बताने वाले नरेंद्र मोदी तब भी नहीं बोले, जब देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के पदकों की क़ीमत बताकर उन्हें सार्वजनिक रूप से आरोपी द्वारा ही अपमानित किया जा रहा था! प्रधानमंत्री मोदी चुप रहे! 
विपक्षी नेता आग में घी डालने आते जाते रहे। लेकिन उनसे क्या हो पाता? उलटा राजनीति हावि होने लगी। कुछ प्रमुख एथलीटों ने अपना समर्थन दिया। कृषि संघों ने विरोध प्रदर्शन को समर्थन दिया, किंतु राज्यवाद और ज्ञातिवाद को राजनीति ऊपर ले आई।
 
मुख्य आरोपी बृज भूषण से किसी ने इस्तीफ़ा तक नहीं माँगा। आरोपी मीडिया के सामने पहलवानों का राज्य, पहलवानों का समूह, जाति जैसी बातें करता रहा। भूषण ने एक दिन यह भी कह दिया कि वह सरकार को पॉक्सो अधिनियम को कमज़ोर करने के लिए कहेंगे। जिस मामले की एफ़आईआर तक देश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश बाद हुई, उस मामले का आरोपी बृज भूषण कहने लगा कि अगर उसके ख़िलाफ़ एक भी आरोप साबित हो गया तो वह फाँसी लगा लेगा। मुझे फाँसी पर लटका देना, जूते मारना, सरीखे भाषण प्रधानमंत्री मोदी से होते हुए इस आरोपी के मुँह तक आ गए!
 
आख़िरकार वह दिन आ गया। तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के पूर्व सैनिकों और उन किसानों के साथ जो ज़बरदस्ती और दुर्व्यवहार इससे पहले किया था, वही इन महिला खिलाड़ियों के साथ दोहराया गया! दिन था 28 मई 2023। देश की नयी संसद का लोकार्पण था। महिला पहलवानों ने सोचा कि नयी संसद तक कूच की जाए तो उनकी कोई तो सुनेगा। सुरक्षा और नियमों के बहाने फिर उन महिला पहलवानों के साथ जो हुआ, नरेंद्र मोदी सरकार ने फिर एक बार एक और शर्मसार घटना की भेंट देश को दे दी।

 
भारी बैरिकेडिंग कर दी गई। गिरफ़्तारियाँ शुरू हो गईं। हरियाणा के कई गाँवों में भारी पुलिस उपस्थिति देखी गई। पहलवानों के समर्थन मे जा रहे लोगों व समूहों को दिल्ली जाने से रोका गया, हिरासत में लिया गया। इधर शांतिपूर्वक जा रहे आंदोलनकारियों पर ज़बरदस्ती की जाने लगी। उनके साथ धक्कामुक्की होने लगी, ज़बरदस्ती घसीटा जाने लगा, हिरासत में लिया जाने लगा। जैसे कि सरकार पुलिस की बर्बरता के सहारे आंदोलनकारियों को चुप करा रही थी।
 
इस दिन इन महिला पहलवानों के साथ दिल्ली पुलिस ने जमकर दुर्व्यवहार किया। उन्हें सड़कों पर खींचा गया, घसीटा गया! गिरफ़्तार कर अस्थायी रूप से हिरासत में डाल दिया गया। जंतर मंतर पर उनका जो सामान था उसे फेंक दिया गया! उनके टेंट उखाड़ दिए गए! आंदोलन को ख़त्म करा दिया गया! सड़क पर महिला पहलवानों को गिराकर उन पर सरकारी जूता रगड़ा गया! यह तस्वीर 21वीं शताब्दी की शर्मसार करने वाली तस्वीरों में शामिल हो गई। विश्वगुरु भारत के गुरु घंटाल सरीखे नेताओं के असली चेहरे को उजागर करने वाली तस्वीरें थी यह।
 
जब भूषण से उसके इस्तीफ़े को लेकर पूछा गया था, तो उसने कहा था कि मैं इस्तीफ़ा नहीं दूँगा, क्योंकि मैं बेकसूर हूँ। हां, अगर पीएम मोदी मुझसे ऐसा करने को कहते हैं तो मैं इस्तीफ़ा दे दूँगा। नोट करें कि पीएम मोदी ने उससे ऐसा कभी कहा भी नहीं! क़ानून और नियमों का पालन नहीं होने पर महिला पहलवानों ने आंदोलन किया था। लेकिन फिर ढेर सारे नियमों और क़ानूनों को आगे रखकर उस आंदोलन को कुचल दिया गया!
 
विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे बजरंग पुनिया ने दावा किया कि उनके, विनेश, संगीता, दुष्यंत फोगाट और राहुल यादव के साथ पुलिस ने मारपीट और दुर्व्यवहार किया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि नशे में धुत पुलिसकर्मी ने विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और संगीता फोगाट के साथ दुर्व्यवहार और गाली-गलौज की। इन झड़पों के परिणामस्वरूप विनेश को घुटने में और राहुल यादव को सिर में चोट लगी। कथित तौर पर नशे में धुत एक अन्य पुलिसकर्मी ने दुष्यंत फोगाट को मारा, जिससे उनके सिर में चोट लग गई। दिल्ली पुलिस ने विरोध प्रदर्शन को कवर कर रही एक महिला पत्रकार के साथ भी दुर्व्यवहार किया।
महिला खिलाड़ियों के साथ इस प्रकार दुर्व्यवहार का, उन तस्वीरों का अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी प्रकाशन हुआ। अंतर्राष्ट्रीय खेल निकाय यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग और इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने इस व्यवहार की निंदा की। अंतरराष्ट्रीय कमेटि ने कहा कि अधिकारियों को भूषण के ख़िलाफ़ आरोपों की जाँच करनी चाहिए, अन्यथा भारतीय एथलीटों को तटस्थ ध्वज के तहत भाग लेने के लिए मज़बूर किया जाएगा।
 
महिला पहलवानों के साथ जो हुआ उससे वे सारे लोग आहत थे, जो संवेदनशील थे। ऐसी घटनाएँ दिखा रही थीं कि नरेंद्र मोदी दूसरे नेताओं से इतने भी अलग नहीं हैं। पहले जवान, फिर किसान और अब महिला पहलवान।
 
30 मई 2023 को वो दिन भी आ गया जब नरेंद्र मोदी सरकार और उनकी पुलिस के अविरत प्रयत्नों का अंतिम परिणाम सामने आया। इस दिन बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट ने दुखी होकर एलान किया कि वे अपने पदक गंगा नदी में फेंक देंगे और इंडिया गेट पर अनिश्चित काल तक अनशन करेंगे। मेडल का महत्व क्या होता है उसका अंदाज़ा असंवेदनशील लोग नहीं लगा सकते।

 
आज़ाद भारत में नरेंद्र मोदी सरकार और उनकी पुलिस ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर थी, जो इससे पहले कभी नहीं हुई थी। महिला खिलाड़ी जब मेडल लेकर आए तब यही मोदीजी उनके साथ फोटू-सोटू खींचा रहे थे। लेकिन वही मोदीजी कॉमन सेंस वाले लोगों को दर्शा रहे थे कि वे दूसरे नेताओं सरीखे ही हैं, उनमें वैसा कुछ भी नहीं है, जैसा स्क्रिप्टेड शोज़ में दिखाया जा रहा है।
 
रोते-विलपते खिलाड़ी अपने मेडल बहाने पहुंचे। वहाँ भी इनके साथ घाट को संभाल रहे प्रशासन ने नियम सियम वगैरह का भोंपू बजाया! कहा कि यहाँ वे इसकी इजाज़त नहीं दे सकते! फिर किसान नेताओं के वहाँ पहुंचने के बाद पहलवानों ने उन किसान नेताओं के आश्वासन पर सारे मेडल उन्हें दे दिए और वहाँ से उन्हें लौटना पड़ा।
 
नरेश टिकैत जैसे किसान नेता, जो काफी पहले से किसान कम बल्कि राजनीति के खिलाड़ी ज़्यादा माने जाते हैं, उन्होंने भी देखा जाए तो उन महिला पहलवानों के साथ कम धोखा नहीं किया। राकेश टिकैत और नरेश टिकैत पर अनेक आरोप लगे। उनके ही किसान साथियों ने और अनेक किसान नेताओं ने उन दोनों भाइयों पर आंदोलन को बेचने के आरोप लगाए।
जंतर मंतर पर उन्हे बलपूर्वक हटाने के बाद गोदी मीडिया और सोशल मीडिया के गैंग, महिला पहलवानों की माँगें और उनके आंदोलन को कटघरे में खड़ा करने के प्रयासों में जुट गए। महिला खिलाड़ियों को मानसिक और सामाजिक रूप से काफी प्रताडित किया गया। उनमें विवाद, मतभेद पैदा करने के लिए अनेक कहानियाँ चलीं। व्हाट्सएपिये तर्क फ़ायर हुए। बहुत कुछ हुआ।

बाद में मामले की जाँच के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया। मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत भूषण के बयान और महिला पहलवानों के बयान दर्ज किए गए। जाँच के दौरान एक शिकायतकर्ता के कोच, एक ओलंपियन पहलवान, एक राष्ट्रमंडल पदक विजेता पहलवान और एक रेफरी ने यौन उत्पीड़न के कथित मामलों की जानकारी होने की पुष्टि की। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता अनीता श्योराण ने भी शिकायतकर्ता के एक बयान की पुष्टि की।
 
उधर पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपी की गिरफ़्तारी होनी चाहिए थी, वह अब तक नहीं हुई थी! देश के एक संवेदनशील क़ानून का सार्वजनिक रूप से दोहन हो रहा था! मामला अतिसंगीन बनता तब दिखा, जब अनेक क़ानून विशेषज्ञों ने स्वतंत्र रूप से मीडिया के समक्ष एक और एंगल सामने रखा।

 
पॉक्सो अधिनियम को परिभाषित करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि आरोपी की तुरंत गिरफ़्तारी होनी चाहिए, वह नहीं हो रही। इतना ही नहीं, अधिनियम तो यह भी कहता है कि पीड़ित ने जिन जिन लोगों के समक्ष अपनी बात रखी है या शिकायत की है, उन सभी की पॉक्सो अधिनियम के तहत ज़िम्मेदारी बनती है कि वे सारे लोग इस विषय को लेकर पुलिस को सूचित करें। अधिनियम के मुताबिक़, अगर किसी भी नाबालिग ने यह बात किसी को भी बताई है और उसने इस बाबत पुलिस को सूचित नहीं किया, तो वह भी दोषी है। यहाँ पेंच फँसा। क्योंकि पीड़ित महिला आंदोलनकारी ने यह शिकायत खेल मंत्रालय से की थी। लेकिन अब तक कोई भी उचित कदम नहीं उठाया था! और इस बात को महीनों गुज़र चुके थे।
 
क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना था कि यौन उत्पीड़न के मामलों में एक महिला की गवाही प्राथमिक सबूत होती है, क्योंकि आमतौर पर यौन उत्पीड़न के कृत्यों का कोई फ़ोटो या वीडियो नहीं होता है। पुलिस घटना की तस्वीरें या वीडियो माँग सकती है, लेकिन शिकायतकर्ता के लिए यह सबूत उपलब्ध कराना ज़रूरी नहीं है। क़ानूनी विशेषज्ञों ने भी दिल्ली पुलिस द्वारा मामले की जाँच के तरीक़े पर चिंता जताई।
दूसरी तरफ़ पहलवानों के आरोपों के मुताबिक़ सरकार उन पर भूषण के ख़िलाफ़ मामले वापस लेने का दबाव बना रही थी। देश का गोदी मीडिया, सोशल मीडिया के गैंग, सभी जगहों पर इस मामले को एकपक्षीय तरीक़े से प्रचारित किया जा रहा था!
 
महिला पहलवानों के इस आंदोलन में 1983 विश्व कप विजेता क्रिकेट टीम, रोजर बिन्नी को छोड़कर, ने विरोध प्रदर्शन के समर्थन में एक संयुक्त बयान जारी किया। कुछ इक्का दुक्का खिलाड़ियों ने डरते डरते थोड़ा बहुत बोला। इक्का दुक्का एथलीट पहलवानों का समर्थन करते दिखे। दूसरी तरफ़, इतने गंभीर और शर्मनाक मामले में एक दबंग नेता और आरोपी को अयोध्या के संतों का साथ मिलना भी ऐतिहासिक था!!!
 
सबको अपने हिस्से की लड़ाई ख़ुद ही लड़नी है, अकेले लड़नी है। विश्वगुरु बनने के लगभग आऊटर पर खड़े भारत देश में यही सत्य इन दिनों सतह पर था। जिसका अपना दुखड़ा है, वह ख़ुद उसे रोए। तमाम आंदोलनों से यही नतीजा निकल रहा था।
 
पूर्व भारतीय एथलीट और भारतीय ओलंपिक संघ की प्रमुख पीटी उषा ने तो आलोचना करते हुए, विरोध प्रदर्शन को अनुशासनहीनता के समान और भारत की छवि ख़राब करने वाला बता दिया! पीटी उषा जनवरी से अब तक कुछ नहीं बोली थी। तब भी नहीं, जब महिला पहलवानों को घसीटा गया, उन पर जूता रखा गया। लेकिन अब जाकर बोली। लगा कि इससे अच्छा यह होता कि वह चुप रहती। इस बयान से उनकी अपनी साफ़-सुथरी प्रतिष्ठा को नुकसान ज़रूर पहुंचा।


बीच में प्रदर्शनकारी पहलवानों और खेल मंत्री की मुलाक़ात हुई। एक दूसरे को आश्वासन दिए गए। मुलाक़ात को लेकर भी सोशल मीडिया गैंग काम करने लगे। 4 जून को गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाक़ात हुई। और उसके दूसरे दिन से मीडिया पर ख़बरें दौड़ने लगी कि नाबालिग अपने पुराने बयान से पलट गई हैं। कुछ दिनों के भीतर यह ख़बर सच साबित हो गई।
 
और आख़िरकार इस आंदोलन का एक मज़बूत आधार टूट ही गया। इस मामले में जिस नाबालिग का बयान 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किया गया था, वह अपने बयान से पलट गई।
 
सालों से शिकायतें, फिर महीनों तक आंदोलन, एफ़आईआर तक दर्ज कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की नौबत, तब जाकर शिकायत का दर्ज होना, फिर लीपापौती, क़ानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन, पॉक्सो एक्ट का सरैआम दोहन, मीडिया पर तरह तरह की बातें, सोशल मीडिया गैंग का आक्रमण। आख़िरकार एक नाबालिग और उसका परिवार कितना झेल पाता?
उपरांत उस नाबालिग लड़की की पहचान उजागर करने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जो पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए के तहत अपराध है। लेकिन केवल ये एक नहीं, बल्कि मामले से जुड़े लगभग तमाम अपराध भूला दिए गए! न्याय माँगना ही एक अपराध है, यही द्दश्य पटल पर छाने लगा!
 
उस नाबालिग के इस मामले से हटने के तुरंत बाद ही आंदोलन का मुख्य आधार जैसे कि गिर गया। बहुत कुछ बदल गया। एक और आंदोलन को सख़्ती से कुचल दिया गया। सरकार को पता था कि महज़ कुछ दिनों की बाद है, फिर तो देश इसे भूल जाएगा। और सरकार सच साबित हुई। देश भूल गया। आख़िरकार 25 जून 2023 को प्रदर्शनकारी पहलवानों ने अपना आंदोलन समाप्त करने की घोषणा की। सार्वजनिक प्रदर्शनों के बजाय क़ानूनी तरीक़ों से लड़ाई को आगे बढ़ाने का इरादा व्यक्त किया गया।
 
क़ानूनी तरीक़ों से तो वे जनवरी से ही जुटे थे, और उससे क्या हासिल हुआ, वह तो जगज़ाहिर था। यही समझा गया कि क़ानूनी तरीक़ों से लड़ाई को आगे बढ़ाना, यानी अब बाक़ायदा आंदोलनकारियों की तरफ़ से आंदोलन की समाप्ति की घोषणा।
 
भारत के वे महिला पहलवान 6 महीनों तक सड़कों पर आकर अपनी लड़ाई लड़ती रहीं। लेकिन एक एफ़आईआर के सिवा उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ! वह भी सर्वोच्च अदालत की चौखट पर पहुंचने के बाद! हासिल तो कुछ नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने एक खिलाड़ी, एक नागरिक, एक संवेदनशील इंसान के रूप में बहुत कुछ गँवा दिया। उन्हें पता चल गया कि देश क्या होता है, नागरिक क्या होते हैं। उन्हें समझ आ गया कि सरकार सचमुच कैसी होती है।
 
हमने ऊपर हमारी एक नागरिकी कमी को लेकर लिखा वह भी ज़रूरी है। आंदोलन होते हैं। सभी अपने अपने हिस्से के आंदोलन करते हैं। ज़्यादातर तो कोई एक दूसरे के आंदोलन में बाहर से भी उस आंदोलन की आवाज़ बनने की कोशिश नहीं करता। सारे अपने अपने हिस्से का शोर मचाते रहते हैं। कोई भी किसी दूसरे की आवाज़ का हिस्सा नहीं बनते। तभी तो सरकारें इनको इस तरह सड़कों पर घसीटती खींचती रहती हैं।
 
न्याय-व्याय, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला सम्मान, महिला सुरक्षा, वीरांगना... बहुत सारे नारे घरे के घरे रह गए। कौन सच था, कौन झूठ, यह जानने के कोई बेसिक प्रयास ही नहीं हुए। एक दबंग नेता और उसके पीछे देश की लोकप्रिय सरकार! यही सरकार महिला आरक्षण विघेयक पारित करा चुकी है। आगे जाकर लागू होगा और सारे पाप धूल जाएँगे! वैसे भी यहाँ एकाध अच्छा काम कर दो तो जनता दस बुरे काम करने की इजाज़त दे ही देती है।
 
रही बात आंदोलनकारियों की, जब सत्ता की मुठ्ठी में देश का मीडिया हो तब सब कुछ बहुत आसान हो जाता है। किसी न किसी आंदोलनकारी ने अपने जीवन काल में कुछ न कुछ छोटी-मोटी ग़लती की होती है। बस उस छोटी सी ग़लती को भूषण के कुकर्मों से भी बड़ा अपराध बता कर पूरे विषय को घुमाया जा सकता है। वैसे भी देश में एजुकेटेड लोग ज़्यादा हैं, कॉमन सेंस वाले कम।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)