3,500 एकड़ में फैला हुआ इलाक़ा और देश तथा विदेश से लाकर बसाया गया 2,000 से भी ज़्यादा प्रजातियों
वाला वन्यजीवन। रिपोर्ट्स की माने तो, 1.5 लाख से अधिक बचाए गए, लुप्तप्राय और संकटग्रस्त जानवरों का घर। सैकड़ों हाथी, तेंदुए, मगरमच्छ, बाध, शेर, हिप्पो, गैंडा, मैकॉ या काकाटू जैसे
विदेशी पक्षी, समेत विविध प्रजातियों के पक्षी और प्राणी। अनेक शाकाहारी और मांसाहारी जीव और
1200 के आसपास सरिसृप।
इतने सारे जानवरों
का अधिग्रहण वन्यजीवन क़ानून के अनुसार है या नहीं, इन वन्यजीवों के साथ
ठीक से व्यवहार किया जा रहा है या नहीं, किसी प्रकार की आर्थिक गड़बड़ी हुई है या नहीं, मनी लॉन्डरींग के
आरोपों में कितनी सच्चाई है, इन सब विवादों की जाँच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (सीट) का गठन और सीट द्वारा
जाँच शुरू करना और जाँच का ख़त्म होना, अदालत में जाँच रिपोर्ट सबमिट करना और आरोपी को मामले में क्लीन चिट मिलना।
और यह सब सिर्फ़ और
सिर्फ़ 20 दिनों में हो गया! इस अद्भुत क़ानूनी
प्रक्रिया के बाद एक और अद्भुत बात यह हुई कि उस जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने
का भी फ़ैसला ले लिया गया!
हाल के दिनों में ऐसी
ग़ज़ब तेज़ी जानवरों को ही नसीब हो रही है! सालों तक तारीख़ के लिए तड़पने वाले नागरिक देखते रह गए जब कुत्ते सुप्रीम कोर्ट
की चौखट से अंतिम फ़ैसला 7 दिनों में ले आए! इसके बाद यहाँ तमाम
वन्यजीवों ने देखा कि उनका सामूहिक फ़ैसला 20 दिनों में आ गया!
इस मामले में,
·
25 अगस्त 2025 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने सीट के माध्यम से जाँच के आदेश दिए
· 12 सितंबर 2025, यानी 18 दिनों के भीतर, सीट ने अपनी जाँच पूरी करके रिपोर्ट को अदालत के सामने रख दिया
·
15 सितंबर 2025, यानी 2 दिनों के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फ़ैसला दे दिया
कुत्ते तो ख़ुश होंगे
कि उनका अपना मामला अदालत में था और महज़ 7 दिनों में वे अंतिम फ़ैसला लेकर वापस लौटे थे। इस मामले में जो सैकड़ों वन्यजीव
हैं, वे कह सकते हैं कि यह मामला उनका अपना था भी और नहीं भी था। क्योंकि मामले में
एक उद्योगपति और एक कंपनी या एक संस्था भी जुड़ी हुई थी। जो भी हो, लेकिन इतने सारे वन्यजीवों
को अंतिम फ़ैसला 20 दिनों में ही मिल गया। साथ ही उस उद्योगपति, कंपनी या संस्था को भी।
ऐसी तेज़ी, ऐसी गति देश के नागरिकों
को मिल सकती है क्या? शायद मिल सकती है। किंतु बशर्ते। जैसे कि अर्नब गोस्वामी की व्यक्तिगत आज़ादी
और ज़मानत का अधिकार हो, अडानी के नाम लेने भर से उत्पन्न होने वाली रहस्यमयी समस्या हो, या फिर जवाबदेही की
बात आए तब चुनाव आयोग द्वारा माताओं और बहनों के निजता के अधिकार का रोना हो।
व्यापक, विस्तृत और हाई प्रोफाइल मामले में सीट का गठन, जाँच, उसकी
रिपोर्ट और अंतिम फ़ैसले की अद्भुत तेज़ी
महज़ 20 दिनों के भीतर इतनी
व्यापक जाँच का पूरा होना और अंतिम फ़ैसला आ जाना! यह 'अद्भुत' श्रेणी में इसलिए भी आ रहा है, क्योंकि ऐसी तेज़ी हमारे यहाँ देखी नहीं जाती। अनगिनत सामाजिक कार्यकर्ताओं- आलोचकों-
पत्रकारों- छात्रों पर अनाप शनाप मामले हो, उनके ज़मानत के फ़ैसले हो, जम्मू कश्मीर का मामला हो, पेगासस हो, रफ़ाल हो, कृषि क़ानून हो, चुनावी बॉन्ड हो, आधार के मामले हो, एसआईआर हो, या ऐसे अनेक राष्ट्रीय मामले हो, अदालतों में धीमी प्रक्रिया सबने देखी है।
ऐसे में महज़ 20 दिनों में सीट ने
सैकड़ों वन्यजीवों की फ़ाइलें देख लीं, उन तमाम जीवों के आवागमन से संबंधित दस्तावेज़ देखें और देश तथा विदेश से जुड़े
अनुबंध और काग़ज़ी प्रक्रिया देख लीं, उसे भारत के वन्यजीवन क़ानून, आर्थिक क़ानून आदि से परख लिया!
स्वाभाविक है कि वन्यजीवों
से जुड़ी फ़ाइलें, जिसमें उसे जहाँ से लाकर यहाँ बसाया गया है, वह एकाध पन्ने की तो होगी नहीं। उसे भारत के जिस राज्य से लाया
गया है, या फिर भारत के बाहर जिस देश से यहाँ लाया गया है, उसका विधिवत और विस्तृत
ब्यौरा होगा, वजहें होगी, उसे लेकर की गई उस देश की और हमारे देश की सरकारी प्रक्रिया दर्ज होगी, वन्यजीवन क़ानून का
विवरण और पालन अनुपालन होगा, उन वन्यजीवों की हेरफेर से संबंधित लंबे चौड़े दस्तावेज़ होंगे, लंबे लंबे अनुबंध
और बहुत सारी दूसरी काग़ज़ी प्रक्रिया होगी।
इन तमाम वस्तुओं को
जाँचना, यानी उसे पढ़ना, उसे देखना, और वह सब भारतीय क़ानून के मुताबिक़ सही है या नहीं इसकी परख करना। साथ ही तमाम
फ़ाइलों को आर्थिक क़ानून के नज़रिए से भी देखते रहना। और अंत में यह सब ज़मीनी रूप
से उस हिसाब से सचमुच है या नहीं, इस तथ्य को परखने की कोशिश करना।
वनतारा को लेकर विदेश
से और भारत से अनेक आरोप सामने आए थे, अनेक रपटें छपी थीं। हालाँकि इसमें भारत का वो मीडिया शामिल नहीं था, जिसे गोदी मीडिया
के नाम से जाना जाता है। उसका शामिल नहीं होना स्वाभाविक था, क्योंकि सभी को पता
है कि बाक़ायदा प्रमुख मीडिया संस्थानों को उद्योगपतियों द्वारा ख़रीदा गया है, संचालित किया जा रहा
है।
जो भी आरोप लगे, रपटें छपीं, स्टोरी की गईं, विवाद हुए, उस हिसाब से वनतारा
में वन्यजीवों को अनधिकृत तरीक़े से ले आना और मनी लॉन्डरींग, यह दो मुख्य विवाद
थे। और इसके लिए कुछ उदाहरण पेश किए जा रहे थे।
इस हिसाब से देखें
तो जाँच उसी दो मुख्य विवादों के आसपास ठहरनी चाहिए थी। यानी, ऐसा नहीं हो सकता
कि कुछेक उदाहरण पेश किए गए तो उन्हीं कुछेक मामलों की जाँच हो। यूँ तो यहाँ हज़ारों
वन्यजीव हैं, जिसकी तादाद बहुत अधिक है। लेकिन कम से कम, यानी 2,000 से कुछ अधिक प्रकार के वन्यजीवों के जत्थों की फ़ाइलें जाँच कर सीट ने दूसरे हज़ारों
वन्यजीवों के बारे में अंदाज़ा लगा लिया होगा यह मान कर चलते हैं।
मोटे तौर पर मान लें
कि सीट ने प्रति दिन 111 जत्थों की देश और विदेश से संबंधित विस्तृत जाँच को पूरा किया, यानी प्रति घंटा क़रीब
5 जीवों की विस्तृत
जाँच। यूँ कहे कि क़रीब 10-12 मिनट में एक जीव की जाँच। यानी महज़ 10 मिनट में सीट एक वन्यजीव से जुड़ी इतनी लंबी चौड़ी और विस्तृत जाँच को पूरा करती
रही।
अंत में इतने बड़े
स्तर के मामले की जाँच की रिपोर्ट भी कुछेक पन्नों की तो होगी नहीं। उसे टाइप किया
गया होगा, साथ ही टाइप की गई रिपोर्ट को जाँच अधिकारियों द्वारा देखा पढ़ा गया होगा, ज़रूरी समीक्षाएँ
करके रिपोर्ट को अंतिम रूप के साथ तैयार किया गया होगा। यह सब करने से पहले उसके पूरे
फॉर्मेट पर भी तो काम हुआ होगा। और यह सब भी उसी 20 दिनों के भीतर ही तो हुआ होगा।
लोगों के मन में ये
सवाल आया कि महज़ 10 मिनट में एक वन्यजीव की ऐसी विस्तृत जाँच? जबकि यहाँ 10 सालों में एक मानव जीव की संक्षिप्त जाँच पूरी नहीं होती। ऐसे में नागरिक यह उम्मीद
तो करेंगे ही कि ऐसी तेज़ी, ऐसी तत्परता, मानव जीवों को भी नसीब हो। ताकि जो लाखों-करोड़ों मामले पेंडिंग हैं, उसे भी अपना अंजाम
मिले।
वनतारा
मामला, विवाद
का शुरुआती परिचय
इस मामले की प्रमुख
बात यह थी कि यह मामला भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति अंबानी परिवार से जुड़ा हुआ था।
वह उद्योगपति परिवार, जो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के शीर्ष धनी परिवारों में शामिल
है। मामला मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा संचालित और देश के प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी द्वारा जिसका उद्घाटन किया गया था, उस 'वनतारा' का था।
वनतारा सेंटर गुजरात
में स्थित जामनगर रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स के ग्रीन बेल्ट के भीतर 3,000 एकड़ में फैला है।
'वनतारा' को 'वन्यजीव बचाव, संरक्षण और पुनर्वास
केंद्र' के रूप में पेश किया गया है, जो रिलायंस फाउंडेशन द्वारा चलाया जाता है। एक तरह से कहे तो दुनिया का सबसे बड़ा
एनीमल रेस्क्यू सेंटर।
रिलायंस फाउंडेशन का
दावा है कि यहाँ जानवरों की देखभाल के लिए आधुनिक सुविधाएँ और विशेषज्ञों की मदद ली
जाती हैं और फाउंडेशन के दावे के अनुसार इस केंद्र का मकसद उन जानवरों को बचाना और
उनकी देखभाल करना है, जो मुश्किल परिस्थितियों में हैं।
हालाँकि इस मामले में
सबसे बड़ा विवाद फाउंडेशन के इसी दावे को लेकर था। पशु बचाव और पुनर्वास केंद्र, यानी ऐसे जीव जो किसी
भी प्रकार की दिक्कत में हैं उन्हें देश-विदेश के मानकों का पालन करते हुए यहाँ लाना
और उन्हें बचाना या उनकी देखभाल करना और फिर उनका पुनर्वसन करना। विदेश से और भारत
में भी ऐसी अनेक रिपोर्ट्स छपी, जिसमें फाउंडेशन के इस दावे को लेकर अनेक सवाल उठाए गए, रिपोर्टींग की गईं।
वनतारा
चिड़ियाघर नहीं बल्कि वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र
मार्च 2025 के महीने में पीएम
मोदी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आ रही थीं। अनंत अंबानी के निजी कथित चिड़ियाघर में
देश के पीएम नरेंद्र मोदी शेरों से आँख मिचौली करते हुए नज़र आ रहे थे, उनकी गोद में रैकून
और ऑरंगुटान जैसे जानवरों के बच्चे उधम मचा रहे थे। भारत का मुख्यधारा का मीडिया और
सोशल मीडिया इसे वनतारा का चिड़ियाघर बताते हुए लिख बोल रहे थे।
किंतु वनतारा चिड़ियाघर
नहीं बल्कि 'वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र' है, जैसा कि वनतारा के साइट पर स्पष्ट लिखा हुआ है। जिसे चिड़ियाघर के रूप में मीडिया
पर बताया गया उसे ना वनतारा चिड़ियाघर मानता है और ना ही भारत सरकार।
आरटीआई ऐक्टिविस्ट
कुणाल शुक्ला ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से रिलायंस इंडस्ट्री के जामनगर स्थित परिसर में
मौजूद निजी चिड़ियाघर वनतारा में जानवरों से जुड़ी सूचना माँगी थी। इस आरटीआई अपील का
जवाब देते हुए मंत्रालय ने कहा कि ऐसा कोई चिड़ियाघर मंत्रालय की नज़र में नहीं है जिसका
नाम वनतारा हो।
स्पष्टीकरण तो हो गया, किंतु कुछेक बेसिक
सवालों के जवाब माँगे जाने लगे। जैसे कि,
- वनतारा के लिए इस्तेमाल
की जा रही 3000 एकड़ जमीन किस काम के लिए और कब एलॉट की गई थी?
- ग्रीन बेल्ट के लिए
जहाँ पौधे और पेड़ लगाने थे वहाँ वन्यजीवों का बसेरा कैसे किया गया?
- पास में रिफ़ाइनरी
होते हुए वन्यजीवों को कैसे बसाया जा सकता है?
- वन्यजीवों को निजी
अभ्यारण में रखे जाने हेतु केंद्र और राज्य सरकार की अनुमति से संबंधित दस्तावेज कहाँ
हैं?
- दूसरे प्रदेशों से
लाए जा रहे जंगली जानवरों के ट्रांसपोर्टेशन की अनुमति कब और किससे ली जा रही है?
पीएम
मोदी ने किया था उद्घाटन, नीले
मैकॉ को लेकर वनतारा और पीएम पर ब्राज़ील से उठे सवाल, जर्मनी का नाम भी हुआ शामिल
इसी साल 4 मार्च के दिन पीएम
नरेंद्र मोदी ने 'वनतारा' का उद्घाटन किया था। पीएम मोदी ने ट्विटर पर 'वनतारा' यात्रा की तस्वीरें भी साझा की थीं। पीएम ने लिखा था, "वनतारा नामक एक अनूठी
वन्यजीव संरक्षण, बचाव और पुनर्वास पहल का उद्घाटन किया, जो पारिस्थितिकी स्थिरता और वन्यजीव कल्याण को बढ़ावा देते हुए जीव-जन्तुओं के
लिए एक सुरक्षित पर्यावास प्रदान करती है। मैं इस अत्यंत सहानुभूतिशील प्रयास के लिए
श्री अनंत अंबानी और उनकी पूरी टीम की सराहना करता हूँ।"
पीएम मोदी की नीले
मैकॉ नामक दुर्लभ और विलुप्त घोषित हो चुके पक्षी के साथ वनतारा में खींची गई फ़ोटो
दुनिया भर में पहुँची। उस देश में भी पहुँची, जहाँ का वह मूल निवासी था, यानी ब्राज़ील। वनतारा को लेकर हुए विवादों में यह
सबसे बड़ा विवाद था।
नीले मैकॉ, (स्पिक्स मैकॉ,
सायनोप्सिटा स्पिक्सी), यानी कि नीले तौते। बड़ा विवाद इन्हीं नीले तोतों को लेकर रहा।
इसे लेकर ब्राज़ील के एक प्रकाशन में सुज़ाना कैमरगो का एक लेख छपा। इसमें अनेक संगीन
और गंभीर बातें लिखी गईँ। यह लेख अनुवादित होकर भारत पहुँचा और 10 अप्रैल 2025 के दिन पत्रकार और
लेखक परंजॉय गुहाठाकुर्ता ने अक्षरश: अनुवाद लेख शेयर किया।
वर्ष 2000 के बाद से ग़ायब हो
जाने के बाद साल 2019 में द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर ने चमकीले नीले रंग के तोतों मैकॉ
को विलुप्त घोषित कर दिया था। यह तोता दक्षिण अमेरिका के ब्राज़ील के जंगलों में पाया
जाता था। सवाल उठा कि ब्राज़ील के जंगलों में रहने वाले ये विलुप्त तोते फिर 2023 में भारत में कैसे
आ पहुँचे?
बताया गया कि ये पक्षी
जर्मनी की एक संस्था एसीटीपी (एसोसिएशन फॉर द कन्वर्सेशन ऑफ थ्रेटेड पेरट्स) से वनतारा
पहुँचे। ब्राज़ील का आरोप है कि उनकी अनुमति के बिना यह स्थानांतरण हुआ। ब्राज़ील की
सरकारी संस्था चिको मेंडेस संस्थान ने कहा कि ना ही भारत और ना ही वनतारा उनके स्पिक्स
मैकॉ जनसंख्या प्रबंधन कार्यक्रम से जुड़ा है और ना ही एसीटीपी को ब्राज़ील ने यह अधिकार
दिया है कि वह इन तोतों को भारत भेजे।
नीले मैकॉ के संरक्षण
प्रयास में भागीदारी की मूल शर्त उस कार्यक्रम से जुड़ना है। उधर वनतारा का जवाब था
कि तोतों का स्थानांतरण पूरी तरह क़ानूनी था और यह एसीटीपी के साथ संरक्षण प्रजनन व्यवस्था
के तहत किया गया था।
एसीटीपी, जो जर्मनी की संस्था
है, उस पर तो सवाल उठे
ही, रिलायंस से संबंधित
वनतारा भी विवादों में आया। बताया गया कि जर्मनी ने 2023 में इन तोतों को भारत
भेजने की अनुमति 'सद्भावना' में दी ज़रूर थी, लेकिन बाद में जब ब्राज़ील से बात की गई तो उन्होंने उसकी इजाज़त नहीं दी थी।
ब्राज़ील ने यह भी बताया कि पिछली बार भी उनसे बगैर पूछे यह स्थानांतरण हुआ था।
फ़िलहाल नीले मैकॉ
सिर्फ़ संरक्षण केंद्रों और प्रजनन प्रोग्रामों में पाए जाते हैं। इन्हें दोबारा ब्राज़ील
के जंगलों में बसाने की कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन 26 नीले मैकॉ भारत पहुँच
गए, और वो भी वनतारा में।
इसने विवाद खड़ा कर दिया।
वेनेजुएला
की पत्रिका की रिपोर्ट, रिफाइनरी
परिसर के भीतर वन्यजीवों के बसेरे पर चिंता और कईं प्रजातियों के लिए गर्म और शुष्क
मौसम के ख़तरे को अनदेखा करने की बातें लिखीं
वेनेजुएला की एक पत्रिका
में छपी रिपोर्ट में दावा किया गया कि मुकेश अंबानी को वेनेजुएला की सरकारी तेल
कंपनी PDVSA का सबसे प्रमुख ग्राहक होने का एक अनोखा बोनस मिलता है। यह बोनस है वेनेजुएला
से हज़ारों जानवरों का उनके जामनगर वाले चिड़ियाघर भेजा जाना। रिपोर्ट में बताया गया
था कि कंपनी वेनेजुएला की सरकारी तेल कंपनी PDVSA से भारी मात्रा में कच्चा तेल ख़रीदती है।
इस रिपोर्ट में यह
भी लिखा था कि मुकेश अंबानी और वेनेजुएला के बीच यह व्यापार प्राइवेट संस्थाओं के माध्यम
से होता है, जिसे दोनों देशों के बीच हुए एक समझौते का संरक्षण मिला हुआ है। इस समझौते को
वेनेजुएला के इकोसिस्टम मंत्रालय की स्वीकृति भी मिली हुई है।
इस रिपोर्ट में यह
बात हाइलाईट की गई थी कि वनतारा जिस जगह पर मौजूद है वह चिंताजनक है। यह रिलायंस इंडस्ट्रीज
के पेट्रोकेमिकल रिफाइनिंग परिसर के भीतर स्थित है, जो दुनिया का सबसे बड़ा रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स है। लिखा गया
कि जिस ज़मीन पर पौधे लगाने थे, वहाँ अब चिड़ियाघर बना दिया गया है।
यह रिपोर्ट वेनेजुएला
की अरमांडो इन्फ़ो और जर्मनी की सूडॉयचे ज़ाइटुंग नामक पत्रिकाओं ने मिलकर तैयार की
थी, जिसे भारत में कुछेक
मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर जगह मिली। हालाँकि रिपोर्ट में किसी वन्यजीव की वनतारा ने अवैध
हेरफेर की हो ऐसी कोई बात नहीं थी।
सूडॉयचे ज़ाइटुंग के
अनुसार, वनतारा में मौजूद कई जानवर, जैसे शेर, चीते, जगुआर और विदेशी प्रजातियाँ, जंगल से पकड़े गए हो सकते हैं। इनमें से कुछ को कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय जानवर
व्यापारियों के ज़रिए लाया गया हो सकता है। और फिर इन्हें मुनाफ़ा कमाने हेतु किसी
को बेच दिया गया हो, जहाँ से वे यहाँ पहुँचे हो।
रिपोर्ट में दक्षिण
अफ्रीका के वन्यजीव संरक्षण संगठन, वाइल्डलाइफ एनिमल प्रोटेक्शन फोरम ऑफ़ साउथ अफ्रीका के हवाले से कहा गया कि वहाँ
से बड़ी संख्या में जानवरों का निर्यात भारत के इस निजी चिड़ियाघर में हुआ, जिसकी जाँच की माँग
की जा रही है। डाउन टू अर्थ ने इस बारे में ख़बर रिपोर्ट की थी।
पत्रिका ने यह भी लिखा
कि वनतारा को भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन के बावजूद, विशेषज्ञों का कहना
है कि यह सुविधा गुजरात के गर्म और शुष्क मौसम में कई प्रजातियों के लिए ख़तरनाक हो
सकती है। क्योंकि दक्षिण अफ्रीका के जानवरों को गुजरात का गर्म वातावरण पसंद नहीं आएगा।
रिपोर्ट में यह सवाल
उठाया गया कि क्या वनतारा वास्तव में एक संरक्षण केंद्र है या फिर जानवरों के प्रजनन
और व्यापार का एक छिपा हुआ अड्डा। वाइल्डलाइफ एनिमल प्रोटेक्शन फोरम ऑफ़ साउथ अफ्रीका
ने आरोप लगाया कि ये जानवर प्रजनन सुविधाओं से ख़रीदे गए और अब इनका इस्तेमाल प्रजनन
मशीनों के रूप में किया जा रहा है।
वनतारा के अधिकारियों
ने इन आरोपों को खारिज़ करते हुए कहा कि यह केंद्र पूरी तरह से संरक्षण के लिए समर्पित
है और सभी आयात वैधानिक रूप से कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंजर्ड स्पीशीज़
के नियमों के तहत हुए हैं। वनतारा ने दावा किया कि पहले उठाए गए सभी मुद्दों को हल
किया जा चुका है और कोई जाँच लंबित नहीं है।
महादेवी
उर्फ़ माधुरी नाम की हथिनी को लेकर बड़ा बवाल, महाराष्ट्र
में वनतारा और जियो के ख़िलाफ़ लोगों का गुस्सा भड़का
सुप्रीम कोर्ट ने जिस
महीने वनतारा विवाद मामले मे एसआईटी का गठन किया उसी महीने, यानी अगस्त 2025 की शुरुआत में ही
वनतारा और रिलायंस जियो के ख़िलाफ़ लोग महाराष्ट्र के कोल्हापुर में सड़कों पर उतर
आए थे। स्थानीय लोगों ने एक बड़ी मौन रैली निकाली थी।
यह सब एक हथिनी, जिसका नाम महादेवी
उर्फ़ माधुरी है, उसके लिए हुआ। महादेवी को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर वनतारा पुनर्वास केंद्र
में ट्रांसफर किया गया था। महादेवी को वनतारा रास नहीं आया। वो बीमार हो गई। लोगों
को जब पता चला तो वो गुस्से में आ गए। क्योंकि महादेवी को कोल्हापुर में लोग बहुत मानते
थे।
महादेवी को वापस कोल्हापुर
लाने के लिए आंदोलन छिड़ गया। आंदोलन के दौरान ही विरोध जताने के लिए कोल्हापुर के
क़रीब 1.5 लाख लोगों ने अपना नंबर जियो से दूसरी कंपनी पर पोर्ट कर लिया।
ग़ौरतलब है कि महादेवी
उर्फ़ माधुरी नाम की इस हथिनी को गंभीर शारीरिक घाव, पशु विशेषज्ञों के मुताबिक़ मनोवैज्ञानिक आघात, आदि के चलते पेटा, एचपीसी और अदालती
कार्रवाई के बाद वनतारा भेजा गया था। वनतारा ने हथिनी मामले में अपने बयान में कहा
भी कि वे जनभावनाओं का सम्मान करते हैं और उन्होंने यह कदम ख़ुद नहीं उठाया था, बल्कि अदालत के आदेश
का पालन किया है।
7 अगस्त 2025 के दिन वनतारा ने माधुरी की सकुशल घर वापसी का एलान किया और लिखा कि इंस्टाग्राम
और अन्य माध्यमों पर जनता की भावना देखकर वनतारा ने एक बड़ा निर्णय लिया है और अगर
सरकार और अदालत अनुमति दें, तो वे ख़ुद माधुरी को कोल्हापुर वापस लाने में पूरी मदद करेंगे।
भारतीय
मीडिया पर लगे आरोप
वन्यजीव और पर्यावरण
का मामला और इस मामले में किसी उद्योगपति का सीधे सीधे जुड़ना। स्वाभाविक है कि मामला
हाई प्रोफाइल होना ही था। बात पर्यावरण और वन्यजीवों की करें तो इस मामले में सभी की
अपनी अपनी सोच, पसंद, नापसंद होती है। व्यक्तिगत मान्यताओं के अनुसार भी लोग किसी मामले को समझते या
सोचते हैं।
इस हिसाब से हो सकता
है कि मामले में राई का पहाड़ बनाया गया हो। या ये भी हो सकता है कि सचमुच पहाड़ ही
हो लेकिन उसे राई के रूप में दिखाया जा रहा हो। इस उधेड़बुन के बीच जब मुख्य मीडिया
संस्थान उद्योगपतियों के हाथों क़ानूनी तौर पर ख़रीद कर बाक़ायदा चलाए जा रहे हो तब
किसी भी अंतिम नतीजे पर पहुँचना मुश्किल हो जाता है।
ब्राज़ील, जर्मनी, वेनेजुएला और दूसरे
देशों से वनतारा को लेकर जो रपटें छपने लगीं उसके बाद भारत में भी कुछ मीडिया संस्थानों
में ख़बरें प्रकाशित हुईं। लेकिन फिर अचानक से भारतीय मीडिया में कुछ रहस्यमयी हलचल
को दर्ज किया जाने लगा।
दावा किया गया कि डेक्कन
हेराल्ड, फाइनेंशियल एक्सप्रेस और टेलीग्राफ़ जैसे प्रमुख समाचार आउटलेट्स ने वनतारा के
संचालन पर सवाल उठाने वाली संबंधित रिपोर्ट्स हटा दीं या उसमें फेरबदल कर दिया। आरोप
लगाए जाने लगे कि वनतारा को लेकर जब सोशल मीडिया पर अंबानी की बदनामी होने लगी तो एक्स
पर जमकर ट्वीट कराए गए, जिसमें कुछ बड़ी हस्तियों ने एंडोर्स किया। ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी पड़ताल की और
अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि उन दिनों हर 5 सेकंड में फर्ज़ी एक्स अकाउंट से लगातार ट्वीट किए गए थे।
सुप्रीम
कोर्ट ने वनतारा मामले में जाँच का आदेश दिया, सीट
का गठन
विवाद गहराते गए। इस
बीच एक चौंकाने वाला घटनाक्रम हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने अंबानी परिवार के स्वामित्व वाले
'वनतारा' के इन मामलों को लेकर
जाँच का आदेश दिया। तारीख़ थी - 25 अगस्त 2025। अदालत ने आरोपों की जाँच के लिए एक एसआईटी का गठन किया। साथ ही उसी दिन स्पष्ट
कह दिया कि आरोपो के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने जाँच
का आदेश देते हुए कहा, "आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है, लेकिन जाँच का आदेश इस आरोप के कारण दिया गया कि अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन
करने में विफल रहे।" अदालत ने साथ ही कहा, "ऐसे आरोपों के बाद कि क़ानूनी प्राधिकारी या न्यायालय अपने कर्तव्यों का पालन करने
में अनिच्छुक या असमर्थ हैं... हम न्याय के दृष्टिकोण से स्वतंत्र तथ्यात्मक मूल्यांकन
की माँग करना उचित समझते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "याचिका के साथ कोई
सबूत नहीं दिया गया है, सिर्फ़ आरोप लगाए गए हैं। आमतौर पर ऐसी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।"
अदालत ने कहा, "हालाँकि, इन आरोपों के मद्देनज़र अदालत अपनी तौर पर कोई जाँच नहीं कर सकता क्योंकि तथ्यात्मक
स्थिति की सत्यता जाँचनी होगी। इसलिए एक स्वतंत्र तथ्यात्मक मूल्यांकन ज़रूरी है। इसलिए
हम बेदाग़, निष्ठा और उच्च प्रतिष्ठा वाले सम्मानित व्यक्तियों के नेतृत्व में एक विशेष जाँच
दल (एसआईटी) के गठन का निर्देश देना उचित समझते हैं।"
'वनतारा' पर अपने उद्देश्यों के लिए अवैध रूप से वन्यजीवों को प्राप्त करने यानी ग़ैरक़ानूनी
अधिग्रहण और रखे गए वन्यजीवों के साथ अनुचित व्यवहार करने के आरोप लगे थे। आरोप थे
कि वनतारा ने वन्यजीव क़ानूनों का उल्लंघन किया। उपरांत, वित्तीय अनियमितताओं
और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप भी शामिल थे। इस मामले में पर्यावरण और पशु कल्याण से जुड़े
संगठनों ने भी चिंता जताई थीं। भारत में कुछेक और विदेशों में इसे लेकर अनेक मीडिया
रिपोर्ट प्रकाशित हुई थीं।
जाँच के लिए गठित सीट
की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने की। इस एसआईटी के सदस्यों
में जस्टिस राघवेंद्र चौहान (उत्तराखंड और तेलंगाना उच्च न्यायालय के पूर्व चीफ़ जस्टिस), हेमंत नागराले आईपीएस
(पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त), अनीश गुप्ता आईआरएस (अतिरिक्त आयुक्त सीमा शुल्क) थे। जाँच का आदेश जस्टिस पंकज
मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने एडवोकेट सीआर जया सुकिन की एक जनहित
याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को 12 सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा। एसआईटी को,
·
जाँच
अवैध पशु अधिग्रहण, विशेष रूप से हाथियों का अधिग्रहण
·
वन्यजीव
संरक्षण अधिनियम 1972 और जू के नियमों का पालन
·
सीआईटीईएस
और अन्य आयात निर्यात नियमों का पालन
·
वित्तीय
अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों
·
पशुपालन, पशु
चिकित्सा, जानवरों की देखभाल के मानदंड, मृत्यु
दर और उसके कारण
·
जलवायु
परिस्थितियों से संबंधित शिकायतों और
·
औद्योगिक
क्षेत्रों से निकटता के आरोपों की भी जाँच
·
निजी
संग्रह, शौक के लिए जानवरों का इस्तेमाल, संरक्षण
·
जैव
विविधता से जुड़े आरोप
·
पानी
और कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग की शिकायतें
·
वन्यजीवों
की तस्करी, जानवरों और उनके अंगों का व्यापार
·
संबंधित
क़ानूनों के उल्लंघन से जुड़ी शिकायतें और
·
याचिकाओं
में दिए गए अन्य सभी मुद्दे
·
वनतारा
सेंटर का भौतिक निरीक्षण
की जाँच
एसआईटी को करनी थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह केवल तथ्य जाँच के लिए है, ताकि
आगे उचित आदेश दिया जा सके।
कोर्ट ने अपने आदेश
में कहा था कि एसआईटी को भारत और विदेशों से पशुओं, विशेष रूप से हाथियों, के अधिग्रहण की जाँच करनी होगी। इसके अलावा, वन्यजीव तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित शिकायतों की भी
गहन जाँच करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को निर्देश दिया था कि वह
इन सभी आरोपों की तह तक जाए और ज़ल्द से ज़ल्द अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र
सरकार, गुजरात सरकार, पर्यावरण मंत्रालय, सेंट्रल जू अथॉरिटी और सीआईटीईएस प्रबंधन प्राधिकरण को सीट को पूरा सहयोग देने
का आदेश दिया।
25 अगस्त के दिन वनतारा जाँच का आदेश देते समय ही अदालत ने माना था कि याचिकाएँ मीडिया
रिपोर्टों और शिकायतों पर आधारित थीं, और उनमें निर्णायक साक्ष्य का अभाव था। अदालत ने स्पष्ट किया था कि एसआईटी का
काम एक तथ्यान्वेषी मिशन है, न कि वनतारा के कार्यों या किसी अन्य प्राधिकरण पर निर्णय देना। एक तरह से अदालत
ने कहा कि वे जाँच इसलिए करा रहे हैं, क्योंकि जाँच नहीं कराने के आरोप अदालत पर लगे हैं।
जाँच
के आदेश के समय देश में जारी था भारी वाद-विवाद का दौर, ख़ूब गर्म रहा अटकलों का बाज़ार
अदालत ने जब जाँच का
आदेश दिया उन दिनों भारत के भीतर अनेक मामलों को लेकर बहुत भारी उथल पुथल हो रही थी।
पहगलाम, ऑपरेशन सिंदूर, भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों का सीमित किंतु तीव्र हवाई संघर्ष, जंग के आसार के बीच
अचानक सीज़फायर, अमेरिका से उसका एलान, एक दर्ज़न से अधिक बार अमेरिकी राष्ट्रपति का दावा कि उन्होंने व्यापार और सौदे
का डर दिखाकर सीज़फायर कराया, मोदी सत्ता की किरकिरी, भारतीय वायुसेना को हुए कथित नुक़सान के दावे का विवाद, मतदाता सूचियों का
विशेष गहन पुनरीक्षण का मामला, उससे संबंधित विवाद और अदालती लड़ाई, इस बीच वोट चोरी और चुनाव चोरी के संगीन आरोप, पीएम मोदी की 75 की हो रही आयु सीमा और मार्गदर्शक मंडल वाली लागू की गई वो परंपरा, बीजेपी और आरएसएस
की अंदरूनी खींचतान, अमेरिका द्वारा टेरिफ़ बम का भारत पर गिराना, सामने आने वाले आर्थिक संकट का ख़तरा, इत्यादि इत्यादि।
इसी दौरान कुछ मीडिया
संस्थानों में कहा जा रहा था कि कुछ उद्योगपति मोदी सत्ता की कार्यशैली से नाराज़ चल
रहे हैं। मोदी सत्ता की विफल होती जा रही विदेश नीति, कमज़ोर पड़ोसी नीति, इसमें प्रमुख बताई
जाने लगी थीं।
अमेरिका, चीन, टेरिफ़ बम, वाले घटनाक्रम के
बीच कुछ मीडिया संस्थानों में अमेरिका में स्थित भारतीय उद्योगपति की वो विवादित लॉबी
जिसका नेतृत्व कथित रूप से अंबानी के हाथों में था और चीन में चल रही भारतीय उद्योगपति
की वो विवादित लॉबी जिसकी बागडोर कथित रूप से अडानी के हाथों में थी, का ज़िक्र हो रहा
था।
ऊपर से 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार
में स्वयं पीएम मोदी ने वो अति विवादित और अति ग़ैर ज़िम्मेदार बयान दिया था कि, "राहुल गांधीजी ने अडानी-अंबानी
का नाम लेना बंद कर दिया है, क्योंकि कांग्रेस के पास टेम्पो में पैसा जा रहा है। कांग्रेस और अडानी-अंबानी
के बीच क्या डील है? काले धन की कितनी बोरियाँ पार्टी तक पहुँची है?"
इसके बाद अब जो स्थितियाँ
थीं, कुछ विश्लेषक बताने लगे थे कि अडानी और अंबानी में प्रतिस्पर्धा के साथ साथ उनका
व्यापार जिन देशों में हैं वहाँ दिक्कतें होने लगी हैं। तरह तरह की अटकलों से बाज़ार
गर्म था। ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट ने वनतारा की जाँच कराने का आदेश दिया तो बाज़ार
और गर्म हो गया।
लोग कहने, सुनने और सुनाने लग
गए कि अंबानी पर सिकंजा कसने का यह प्रयास है। लेकिन ऐसा कहने, सुनने या सुनाने वालों
ने यह नहीं देखा कि अदालत ने जाँच का आदेश देते समय ही टिप्पणी कर दी थी कि कोई सबूत
नहीं है। ऐसे लोगों को यह भी सोचना चाहिए था कि यदि उद्योगपति इतने स्तर तक नाराज़
होते तो गोदी मीडिया कबका अपना रंग ढंग बदल चुका होता।
जाँच
के आदेश पर वनतारा की प्रतिक्रिया, कहा
- हम पूरा सह्योग करेंगे
ख़ैर, इन मिथकों, कहानियों के बीच, सुप्रीम कोर्ट के
द्वारा जाँच के आदेश के बाद वनतारा ने जाँच में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। आरोपों
पर सीधे टिप्पणी किए बिना, वनतारा ने कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अत्यंत सम्मान के साथ स्वागत करते हैं। वनतारा पारदर्शिता, करुणा और क़ानून के
पूर्ण अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध है। जानवरों को बचाने, पुनर्वास करने और
उनकी देखभाल करने का हमारा मिशन और लक्ष्य अपरिवर्तित है।"
वनतारा ने कहा, "हम विशेष जाँच दल को
पूरा सहयोग देंगे और अपना काम ईमानदारी से जारी रखेंगे, हमेशा जानवरों के
कल्याण को अपने सभी प्रयासों के केंद्र में रखेंगे। हम अनुरोध करते हैं कि इस प्रक्रिया
को बिना किसी अटकलबाज़ी के और जिन जानवरों की हम सेवा करते हैं, उनके सर्वोत्तम हित
में होने दिया जाए।"
अद्भुत
तेज़ी के साथ आया अंतिम फ़ैसला, वनतारा
को मिली क्लीन चिट
25 अगस्त 2025 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने सीट का गठन कर उसे अनेक बिंदुओं, अनेक आरोपों पर गहन
और विस्तृत जाँच का आदेश दिया था और 12 सितंबर तक, यानी महज़ 18 दिनों में यह सब निपटाने के लिए कहा था। सीट ने अद्भुत तेज़ी दिखाते हुए इतनी
विशाल और गहन जाँच को दी गई समयसीमा में निपटा दिया और 12 सितंबर को अपनी जाँच
रिपोर्ट सबमिट कर दी।
इसके दो दिनों बाद, 15 सितंबर 2025 के दिन सुप्रीम कोर्ट
ने इस मामले में अपना अंतिम फ़ैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वनतारा को बड़ी राहत
दी और सीट की जाँच में वनतारा को क्लीन चिट मिली, तथा वन्यजीवों का अधिग्रहण पूरी तरह क़ानूनी पाया गया। साथ
ही किसी भी विवाद, आरोप, आदि से वनतारा को बाइज्ज़त बरी किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस अद्भुत और अकल्पनीय तेज़ी के साथ पूरी की
गई जाँच मामले में अपने अंतिम आदेश में कहा,
·
हम रिपोर्ट
को स्वीकार कर रहे हैं
·
हाथियों
सहित सभी जानवरों का अधिग्रहण पूरी तरह से क़ानूनी और नियामक दायरे में हुआ है
·
जस्टिस
मिथल ने मौखिक रूप से कहा कि पहली नज़र में यह अधिग्रहण नियमों के अनुसार हुआ है
·
सीट
ने अपनी जाँच में किसी गड़बड़ी को नहीं देखा है
·
सीट
ने बहुत अच्छे से और जल्दी अपनी जाँच पूरी की
·
सीट
के सदस्यों को उनके काम के लिए सम्मानजनक मानदेय दिया जा सकता है
मीडिया रिपोर्ट्स की
माने तो जाँच के दौरान एसआईटी ने वनतारा का 3 दिनों तक भौतिक निरीक्षण किया, वित्तीय लेन-देन, अंतरराज्यीय जानवरों के स्थानांतरण और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुपालन पर प्रश्नावली
बाँटी गई। इसमें वन्यजीव, वन और वित्तीय विभाग जैसी 16 विभिन्न एजेंसियों का सहयोग लिया गया। वन और वन्यजीव विभागों के अधिकारियों को
हाथियों और अन्य जानवरों के जामनगर स्थानांतरण पर सफ़ाई के लिए बुलाया गया।
बताया गया कि सीट ने
कई एजेंसियों के साथ जाँच के बाद राय दी कि वनतारा में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, चिड़ियाघर मान्यता
नियम 2009, CZA दिशानिर्देश, सीमा शुल्क अधिनियम 1962, विदेशी व्यापार (विनियमन और विकास) अधिनियम 1992, FEMA 1999, मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम 2002, भारतीय दंड संहिता (BNS) 2023, या CITES (वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर संधि)
का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस पी.बी. वराले की सुप्रीम कोर्ट की
बेंच ने कहा,
·
वनतारा
में जानवरों की ख़रीद नियमों के दायरे में है और कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई
·
अगर
कोई व्यक्ति सभी नियमों का पालन करते हुए हाथी रखना चाहता है, तो
इसमें क्या ग़लत है?
·
वनतारा
को किसी भी भ्रामक प्रकाशन या मानहानि के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की छूट है
·
अब हमारे
पास एक स्वतंत्र समिति की रिपोर्ट है
·
समिति
ने हर चीज़ का अध्ययन किया है, विशेषज्ञों की मदद ली है
·
समिति
ने जो रिपोर्ट दी है हम उसी के अनुसार चलेंगे
·
हमें
इन सब मुद्दों को बेवजह उछाल कर शोरशराबा नहीं करना चाहिए
·
देश
में कुछ अच्छी चीज़ें होने दीजिए, हमें इन अच्छी चीज़ों पर ख़ुश होना चाहिए
इतना ही नहीं, अदालत ने वनतारा के
पशु चिकित्सा देखभाल, कल्याण और पशुपालन मानकों को ऊँच दर्जे का पाया, जो अंतरराष्ट्रीय
बेंचमार्क से बेहतर हैं। साथ ही, अदालत ने भविष्य में इन आरोपों पर कोई शिकायत या कार्यवाही को प्रतिबंधित कर दिया, ताकि 'अनावश्यक विवाद' न हो।
सीलबंद
लिफ़ाफ़े का विवाद, सीट
की जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया, अदालत
ने मामले को बंद घोषित किया
यह मामला शुरू से कोई
अनावश्यक विवाद था, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का कोई गंदा खेल था, या कुछ और था, कुछ भी कहा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इतना स्पष्ट कर दिया कि जो भी आरोप
लगे उसमें कोई दम था ही नहीं और नसीहत दी कि अच्छा काम है उसका गौरव करें।
अद्भुत तेज़ी हो या
अकल्पनीय गति, किंतु अंत में,
·
सीट की जाँच रिपोर्ट
को सीलबंद लिफ़ाफ़े में पेश करना
·
उस जाँच रिपोर्ट को
सार्वजनिक नहीं करने का फ़ैसला
·
इस मामले को बंद घोषित
कर देना और
·
मानहानि या भ्रामक
प्रकाशनों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कदम उठाने के लिए वनतारा को खुली छूट देना
अनावश्यक विवाद न हो
इस कारण से उठाए गए यह कदम दरअसल शांत हो चुके मामले को चौक चौराहों पर और ज़्यादा
संदिग्ध बनाने के लिए पर्याप्त कारक बनते हुए नज़र आए।
फ़ैसला देते समय जस्टिस
मिथल ने मौखिक रूप से कहा कि कोर्ट इस रिपोर्ट को अपने आदेश का हिस्सा बनाएगा। हालाँकि, सॉलिसिटर जनरल और
हरीश साल्वे ने इसका विरोध किया। हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि, "एक विशेष नैरेटिव चल
रहा है और रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से अनावश्यक अटकलबाजियाँ बढ़ेंगी।"
साल्वे ने कहा, "मेरी एकमात्र चिंता
यह है कि जब कमेटी आई थी, वनतारा का पूरा स्टाफ़ उपलब्ध कराया गया था, सब कुछ दिखाया गया था। जानवरों की देखभाल और उनके रखरखाव से
संबंधित कुछ गोपनीयता के मुद्दे हैं। इसके लिए विशेषज्ञों की मदद से बड़ी राशि ख़र्च
की गई है और इसमें कुछ व्यावसायिक गोपनीयता भी शामिल है। माईलॉर्ड्स समझ सकते हैं, यह सुविधा विश्व स्तर
पर बेजोड़ है। एक नैरेटिव चल रहा है जो इसे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। यदि पूरी
रिपोर्ट सार्वजनिक की गई, तो हम नहीं चाहते कि बाकी दुनिया को यह पता चले, क्योंकि हो सकता है
कि कल न्यूयॉर्क टाइम्स या टाइम्स मैगजीन में कोई और लेख छप जाए।"
जस्टिस मिथल ने कहा, "नहीं, हम इसे अनुमति नहीं
देंगे। हम इस मामले को बंद कर रहे हैं और हम रिपोर्ट को स्वीकार कर रहे हैं। हम किसी
को भी इस तरह की आपत्तियाँ उठाने नहीं देंगे... हम कमेटी की रिपोर्ट से संतुष्ट हैं...
जो कुछ भी उन्होंने पेश किया है, हम उसी के आधार पर आगे बढ़ेंगे। आप भी बाध्य हैं, हम किसी को बार-बार
सवाल उठाने नहीं देंगे।"
जब एक वकील ने मामले
में हस्तक्षेप करने की अनुमति माँगी और कहा कि उनकी याचिका वनतारा में लाए जा रहे एक
हाथी से संबंधित है तो पीठ ने उस पर विचार करने से इन्कार कर दिया।
जयराम रमेश ने लिखा, "लंबे विलंब के लिए
जाने जानी वाली भारतीय न्यायिक व्यवस्था जब चाहे तब अत्यंत तीव्र गति से कार्य करती
है। 25 अगस्त 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने... एक विशेष जाँच दल द्वारा जाँच का आदेश दिया... एसआईटी
को 12 सितंबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट एक
'सीलबंद लिफ़ाफ़े' में प्रस्तुत की और
15 सितंबर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय
ने उसकी सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 2025 को दायर एक जनहित याचिका से शुरू हुए मामले को बंद कर दिया। काश, सभी मामलों को इतनी
तेज़ी और सफाई से निपटाया जाता - बेशक इस रहस्यमय 'सीलबंद लिफ़ाफ़े' के चक्कर के बिना!"
एक्स पर अनुमा आचार्य
ने लिखा, "अंबानी के वनतारा की जाँच के लिए एसआईटी बनी: 25 अगस्त को। एसआईटी की रिपोर्ट आयी: 12 सितंबर को। सुप्रीम
कोर्ट की क्लीन चिट: 15 सितंबर को। और इस तरह 20 दिनों के अंदर बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से जाँच, फ़ैसला सब कुछ आ गया। और हां! सरकार ने कोर्ट में कहा कि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए।"
संवैधानिक मामलों के
जानकार गौतम भाटिया ने कोर्ट के फ़ैसले को साझा करते हुए लिखा, "वनतारा एसआईटी मामले
में सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों, विशेष रूप से (vi) पर मैं अपनी आँखें मल रहा हूँ।"
एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज
ने एक्स पर लिखा, "यह बेहद चौंकाने वाला और निराशाजनक है कि जस्टिस चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली एसआईटी
ने वनतारा पर अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफ़ाफ़े में सौंपी! ये वही जज हैं जिन्होंने पारदर्शिता की कमी के चलते सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम
की बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया था।"
हज़ारों वन्यजीव, संरक्षित या विलुप्त
घोषित हो चुके पक्षी और प्राणी, उनसे संबंधित गहन, विस्तृत और व्यापक जाँच, जिसमें वन्यजीव क़ानून, अधिग्रहण, आयात निर्यात, संरक्षण और देखभाल, मनी लॉन्ड्रिंग, मान्यता नियम, सीमा शुल्क, विदेशी व्यापार, भारतीय दंड संहिता, वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर संधि, पशुपालन, पशु चिकित्सा, जलवायु और पर्यावरण, संबंधित क़ानून नियम
या अधिनियम थे, तमाम गलियों से 18 दिनों के भीतर निकल जाना, तुरंत अंतिम फ़ैसला और आदेश!
और इसके बाद रिपोर्ट
सार्वजनिक नहीं करने को लेकर पेश की गई वो दलील कि इससे अनावश्यक विवाद वाली मीडिया
रिपोर्टींग होगी, बहस होगी, इस दलील को स्वीकार कर रिपोर्ट को गोपनीय रखने का फ़ैसला! चौक चौराहों पर आमजन बात करते दिखे कि बुलेट ट्रेन शहरों के बीच कब दौड़ेगी पता
नहीं लेकिन ऐसी बुलेट ट्रेन जैसी गति वाली अदालती प्रक्रिया आम जनता के लिए भी कभी
नसीब होगी या नहीं?
इस मामले ने भारत के
चौक चौराहों पर अंत में सिर्फ़ दो शिकायतें, दो आशाएँ या फिर दो सवाल फिर ज़िंदा किए।
पहला - जाँच और न्याय
की ऐसी तेज़ी, ऐसी तीव्र और अद्भुत गति अंबानी को ही नहीं, लेकिन समस्त जनता
को चाहिए। कुत्तों को, अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकारों को, अडानी को या अंबानी को ही जाँच और न्याय की तेज़ गति क्यों मिले? क्या आम जनता इसकी
हक़दार नहीं है? कभी कभी अदालत किसी मामले में कहती है कि शांति रखिए, ज़ल्दबाजी क्यों कर
रहे हैं, कुछ देर होगी तो आसमान टूट नहीं पड़ेगा, वगैरह। न्याय तो दूर, ज़मानत का अधिकार तक आम जनता को नसीब नहीं होता। ऐसे में इतनी
तेज़ी दूसरों को क्यों नहीं? यह सवाल या यह भाव चौक चौराहों पर फैलने ही थे।
दूसरा - अदालत ने सबूत
नहीं होते हुए भी जाँच यह कहते हुई कराई कि अदालत पर जाँच नहीं कराने के आरोप लग रहे
हैं। अदालत को अपनी साख की और जनता के उसके ऊपर भरोसे की इतनी ही चिंता थी तो फिर वह
जाँच, जो उस द्दष्टिकोण से कराई गई थी, उसे उसी जनता के सामने सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? सीट की जाँच रिपोर्ट
को अनावश्यक विवाद होने की संभावना भर से किस आधार पर सीलबंद किया गया, जबकि जाँच कथित रूप
से अनावश्यक विवाद के बाद ही कराई गई थी। अनावश्यक विवाद को टालना ही लक्ष्य था तो
फिर अंत में रिपोर्ट को सीलबंद लिफ़ाफ़े में रख कर विवाद को अनावश्यक रूप से बढ़ जाए
ऐसा निर्णय क्यों लिया गया?
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)