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Ceasefire Controversy: भारत-पाक के बीच युद्धविराम की घोषणा तीसरे देश से, ट्रंप के दावे और भारतीय प्रतिक्रिया का विवाद

 
भारत-पाकिस्तान के बीच जारी सैन्य संघर्ष के दौरान अचानक ही युद्धविराम की घोषणा, उपरांत वह घोषणा किसी तीसरे देश के द्वारा, झूठ बोलने के लिए अपनी पहली पारी से ही बदनाम हो चुके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उसमें स्वघोषित भूमिका, असंदिग्ध और अपुष्ट भाषणों के आदि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तुरंत मौन। अमेरिकी राष्ट्रपति के लगातार दावे और हल्की फुल्की भारतीय प्रतिक्रिया।
 
इस बात में कोई दो राय नहीं कि अद्भुत हुँकार भरने के बाद, देश को पूर्ण युद्धोन्माद में झोंकने के बाद, नागरिकों को एक ख़ास उम्मीद वाली स्थिति प्रदान करने के पश्चात, अचानक ही सीज़फायर की घोषणा, वो भी तीसरे देश के द्वारा! इस घटना ने बीजेपी, आरएसएस और मोदी सरकार, तीनों को हास्यास्पद स्थिति में ज़रूर रखा।
 
इतना ज़्यादा विवाद न होता अगर आतंकी हमले के पश्चात सैन्य प्रतिक्रिया देने से पहले पीएम मोदी और उनके मंत्री सैन्य प्रतिक्रिया को संभावित युद्ध के रूप में दर्शाकर पहले से ही प्रचार-प्रसार में अति न करते। सैन्य प्रतिक्रिया करने से पहले कहाँ रुकना है यह यक़ीनन तय कर लिया गया होगा। यदि रुकने की जगह तय थी तो शेखचिल्ली वाले दावे न किए होते तो रुकने पर इतनी किरकिरी नहीं होती।
 
22 अप्रैल 2025 के दिन कश्मीर घाटी के मशहूर पर्यटन स्थल पहलगाम बाज़ार से क़रीब छह किलोमीटर दूर बेसरन धाटी में पर्यटकों के ऊपर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ। 26 लोग मारे गए, जिनमें 25 भारतीय नागरिक थे और 1 नेपाली नागरिक। इनमें से कईं पर्यटकों को उनके घर के सदस्यों के सामने सिर में गोली दाग कर मार दिया गया। बीते तीन दशक में जम्मू-कश्मीर में यह पहला इतना बड़ा हमला था, जिसमें पर्यटकों को निशाना बनाया गया हो।
 
भारत प्रतिक्रिया के रूप में सैन्य कार्रवाई करेगा यह तय माना जा रहा था। उपरांत अब की बार वो सैन्य प्रतिक्रिया बड़े स्तर पर होगी यह भी माना जा रहा था। चर्चा भारत की सैन्य प्रतिक्रिया के बाद पाकिस्तान की तरफ़ से उत्पन्न वाली संभावित स्थितियों की भी हो रही थी।
सैन्य प्रतिक्रिया से पहले भारत ने कूटनीतिक और रणनीतिक कदम उठाए, जैसे कि 1960 के सिंधु जल समझौते को तुरंत प्रभाव से निलंबित करना, अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को तत्काल प्रभाव से निलंबित करना, पाकिस्तान के साथ सभी तरह की आयात को प्रतिबंधित करना, पाकिस्तान से आने वाले विमानों के लिए अपना एयरस्पेस बंद करना, आदि।
 
आतंकी हमले के लगभग 14-15 दिनों के बाद 6 मई 2025 की देर रात को (7 मई 2025 सुबह 1-05 से 1-30 बजे तक) भारतीय सेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर सैन्य प्रतिक्रिया की। भारत ने अपनी इस सैन्य कार्रवाई को 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया। भारतीय सेना ने रात 1:51 मिनट पर एक्स पर इस ऑपरेशन की जानकारी दी।
 
7 मई 2025 को विदेश सचिव विक्रम मिस्री, कर्नल सोफ़िया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा मीडिया के माध्यम से देश को दी गई जानकारी के मुताबिक़ ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में घुसकर 9 जगहों पर बम बरसाए। पीओके के भीतर 8 किलोमीटर अंदर स्थित सरजाल कैंप से लेकर पाकिस्तान के अंदर 100 किलोमीटर भीतर बहावलपुर समेत कुल 9 जगहों को निशाना बनाया गया। भारत सरकार की तरफ़ से दी गई जानकारी के अनुसार भारतीय सेना द्वारा यह तमाम हमले आतंकी कैंप पर किए गए थे।
 
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने भारत की इस कार्रवाई को 'एक्ट ऑफ़ वॉर' बताया। भारत द्वारा की गई इस सैन्य कार्रवाई के बिलकुल तुरंत बाद, यानी उसी रात को पाकिस्तानी सेना ने पलटवार किया। स्वाभाविक है कि भारत ने जिस बड़े स्तर पर सैन्य कार्रवाई की थी, पाकिस्तान का पलटवार भी बड़े स्तर को छूने लगा।
 
अगली सुबह, 7 मई 2025 के दिन पाकिस्तान ने दावा किया कि भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उसने 6 भारतीय लड़ाकू विमान मार गिराए हैं। पाकिस्तान ने भारत के तीन रफ़ाल, एक एसयू-30, एक मिग-29 और एक हेरॉन ड्रोन को मार गिराने का दावा किया।
8 मई 2025 के दिन शाम 5-30 बजे आयोजित प्रेस वार्ता में कर्नल सोफ़िया ने बताया कि भारत के द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में 9 जगहों पर सैन्य कार्रवाई के बदले में पाकिस्तान ने उस रात भारत के 15 सैन्य ठिकानों पर हमले किए। भारत ने आतंकी शिविरों को निशाना बनाया था, पाकिस्तान ने सीधे सीधे भारतीय सैन्य ठिकानों पर आक्रमण किया। यह एक तरह से पूर्ण युद्ध के लिए खुला आमंत्रण था।
 
एक तरह से पाकिस्तान ने भारत के साथ अघोषित युद्ध शुरू कर दिया। दोनों देशों के बीच उस रात से लेकर अगले कुछ दिनों तक भारी हवाई संघर्ष हुआ। जम्मू-कश्मीर और पंजाब से सटी सरहदों से लेकर राजस्थान और गुजरात की सरहदों तक पाकिस्तान ने भारत के साथ सैन्य संघर्ष शुरू किया और अगले कुछ दिनों तक यहाँ भारी गोलाबारी, मिसाइल हमले, ड्रोन हमले, होते रहे।

 
भारत और पाकिस्तान के बीच क़रीब तीन से चार दिन तक एक तरह से अघोषित हवाई युद्ध चलता रहा। भारत ने जिस बड़े स्तर पर सैन्य कार्रवाई की थी, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया का स्तर भी बड़ा होता गया। एक तरह से दोनों देशों ने अपनी हवाई क्षमता का पूरी तरह से परीक्षण और प्रदर्शन किया।
 
भारतीय सेना के द्वारा रोज़ाना प्रेस रीलीज़ जारी हो रही थी। 10 मई तक पाकिस्तान ने भारत के 26 शहरों पर छोटे-मोटे हमले किए! पाकिस्तान ने पंजाब, गुजरात, राजस्थान समेत 5 भारतीय राज्यों पर हवाई आक्रमण किया। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान ने 9 मई की रात से लेकर 10 मई की सुबह तक एक ही रात में भारत के 26 शहरों पर क़रीब 500 से भी ज़्यादा ड्रोन हमले किए थे!
 
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान के 9 ठिकानों को टार्गेट किया तो बदले में पाकिस्तान ने उसी रात भारत के 15 ठिकानों पर हवाई आक्रमण किया। उपरांत जम्मू से लेकर गुजरात की सरहदों पर पाकिस्तानी सेना भारी गोलाबारी करती रही। और अब पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई का दायरा बहुत बढ़ चुका था।
 
10 मई तक पाकिस्तान भारत के 26 शहरों पर हवाई हमले कर चुका था। महज़ कुछ ही घंटों में 500 से ज़्यादा ड्रोन हमले बहुत बड़ी संख्या थी।
दोनों ही देशों के सरहदी इलाकों में तमाम स्कूल-कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए। गृह मंत्री अमित शाह को पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों से मीटिंग करनी पड़ी।
 
भारत सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पाकिस्तान ने भारत के सैन्य प्रतिष्ठानों और ठिकानों पर सीधे सीधे हवाई हमले किए। उपरांत अनेक भारतीय नागरिकी ठिकानों पर भी दुश्मन ने बम बरसाए। धर्मशाला में चल रहा आईपीएल मैच रद्द करना पड़ा और फिर चंद घंटों के बाद आईपीएल प्रतियोगिता अगले निर्देश तक पूरी तरह से स्थगित कर दी गई।
 
सिर्फ़ सरहदों पर ही नहीं बल्कि पूरे देश में तनाव का और युद्ध का माहौल नज़र आने लगा। देश भर में ब्लैकआउट, रेड एलर्ट के सायरन आदि के बारे में मॉक ड्रिल कराई जाने लगी। अनेक सरकारी अधिकारियों, चिकित्सकों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गई। देश भर में रक्तदान कैंप के आयोजन कराए जाने लगे, ताकि संभावित ख़तरे को देखते हुए आपातकालीन स्थिति को पहुँचा जा सके।
 
अनेक शहरों के एयरपोर्ट अस्थायी रूप से बंद कर दिए गए। अनेक उड़ानें रद्द कर दी गईं। भारी गोलाबारी और अभूतपूर्व ड्रोन हमलों के बीच सीमा से सटे गाँवों और शहरों में ब्लैकआउट लागू किया गया। अस्थायी सैन्य चौकियाँ और दूर दराज के रास्तों पर अस्थायी पुलिस चौकियाँ बनने लगी।
 
पाकिस्तान की बड़े स्तर वाली सैन्य प्रतिक्रिया के चलते कईं निर्दोष भारतीय नागरिक मारे गए और कुछेक भारतीय जवान भी वीर गति को प्राप्त हुए। साथ ही कुछ दिनों में स्पष्ट होने लगा कि पाकिस्तान द्वारा भारत के रफ़ाल समेत कुछ लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा सच था। यह भारत और भारतीय समाज के लिए चौंकाने वाली ख़बर थी।
दुश्मन की सैन्य कार्रवाई के सामने भारतीय सेना ने भी ज़ोरदार ढंग से जवाब दिया और पाकिस्तान के भीतर अनेक सैन्य ठिकानों, प्रतिष्ठानों और ढाँचों पर आक्रमण किए। पाकिस्तान के भी कुछेक लड़ाकू विमान भारतीय सेना ने मार गिराए और उसके एयर डिफ़ेंस सिस्टम को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया।
 
दोनों देशों के बीच हवाई संघर्ष इस स्तर पर जा पहुँचा जहाँ से वापस लौटना नामुमकिन लग रहा था। उपरांत भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही मोदी सत्ता, उनकी पार्टी बीजेपी और मातृ-पितृ संस्था आरएसएस, सब मिलकर एक ऐसा माहौल देश में तैयार कर चुके थे कि अब की बार पूर्ण युद्ध होगा और पीओके पाकिस्तान से वापस ले लिया जाएगा। सरकार की मुठ्ठी में कैद मीडिया लाहौर पर कब्ज़ा कर चुका था!
 
भारत और पाकिस्तान के बीच यह तीव्र सैन्य संर्घष चार दिन तक चलता रहा। यूँ कहे कि यह एक सीमित किंतु तीव्र हवाई संघर्ष था, जिसमें दोनों देशों ने अपने अपने लड़ाकू विमान और ड्रोन जैसे हथियारों के साथ एकदूसरे पर बम, मिसाइल आदि बरसाए। साथ ही दोनों देशों ने भारी तोपखाने का जमकर इस्तेमाल किया।

 
किसी भी समय युद्ध की आधिकारिक घोषणा की संभावना के बीच पूरा देश साँसे थामे सैन्य संघर्ष के अपडेट प्राप्त करने हेतु डिजिटल गलियों में भागता रहा। मेनस्ट्रीम मीडिया उबल रहा था। सोशल मीडिया गर्म था। मोदी समर्थक सोशल मीडिया अद्भुत रूप धारण कर चुका था।
 
और तभी एक ऐसी ख़बर विदेश से आई, जिसने आम नागरिकों को पूरी तरह से अंचभित कर दिया। ख़बर थी भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की! ख़बर अमेरिका से आई! घोषणा स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने की! घोषणा भी इस अंदाज़ में आई, जिसने विश्वगुरू भारत, नया भारत, नहीं झुकने वाला भारत, जैसे मोदी सत्ता और आरएसएस के तमाम जुमलों को ध्वस्त कर दिया।
बिना किसी संकोच के लिखा जा सकता है कि सीज़फायर की यह ख़बर अच्छी ही थी। इस जंग से फ़ायदा चीन और अमेरिका या दूसरे बड़े देशों के रक्षा संसाधन व्यापारियों का ही हो रहा था। युद्ध एक व्यापार है, इसका फ़ायदा उन व्यापारियों का ही होना था, जबकि इससे नुक़सान भारत और पाकिस्तान ही भुगतने वाले थे।
 
जो भी हो, किंतु पूर्ण युद्धोन्माद की स्थिति में, कभी भी युद्ध की आधिकारिक घोषणा होने की संभावना थी उस स्थिति में, अचानक से ही, देश को पता चलता है कि भारत और पाकिस्तान, दोनों युद्धविराम के लिए राजी हो चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप ने बाक़ायदा ट्वीट करके कहा कि दोनों देश सीज़फायर के लिए सहमत हो चुके हैं।

 
10 मई 2025 की शाम क़रीब 5.30 बजे ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर एक पोस्ट में कहा, "अमेरिका की मध्यस्थता में हुई एक लंबी बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए ख़ुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल सीज़फायर पर सहमति जताई है।" डोनाल्ड ट्रंप ने "पूर्ण और तत्काल सीज़फायर" तथा "अमेरिका की मध्यस्थता" का ख़ास ज़िक्र किया।
 
यह वाक़ई असहज पल थे, जब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संधर्ष या संभावित युद्ध की स्थिति के बीच दरअसल दोनों देशों ने क्या तय किया है उसकी घोषणा किसी तीसरे देश से हो, उसकी जानकारी देश के नागरिकों को अमेरिका से मिले! ट्रंप की घोषणा के बाद भारत ने अपने विदेश सचिव से संक्षिप्त बयान जारी कराकर सीज़फायर पर भारत की सहमति की जानकारी दी!
 
हम फिर लिखते हैं कि तमाम बातों को ज़मीनी रूप से, व्यावहारिक ढंग से और लंबे काल के लिए सोचा जाए तो सीज़फायर की यह ख़बर अच्छी ही थी। किंतु भारत अब इस सैन्य संघर्ष में आगे नहीं बढ़ेगा इसकी ख़बर भारतीय जनता को अमेरिका से मिलती है! यह अनादरपूर्ण था।
 
पहले ट्रंप कहते हैं, लंबा चौड़ा कहते हैं और फिर भारत अपने विदेश सचिव के ज़रिए संक्षेप में कहता है। जैसे कि बॉस ने पहल की हो और पीछे पीछे बाकी लोग चल रहे हो।
1971 का वो दौर, जब भारत ने अमेरिका को सिरे से नज़रअंदाज़ करते हुए पाकिस्तान के लिए अपनी सैन्य कार्रवाई को बेख़ौफ़ जारी रखा था। तब इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कहा था - हमारी रीढ़ की हड्डी सीधी है, हमारे पास इच्छाशक्ति और संसाधन हैं... वो वक़्त चला गया जब कोई देश तीन-चार हज़ार मील दूर बैठकर ये आदेश दे कि भारतीय उसकी मर्ज़ी के हिसाब से चलें।
 
सोशल मीडिया पर अचानक तथा किसी तीसरे देश के माध्यम से आपत्तिजनक ढंग से युद्धविराम की जो जानकारी मिली थी, इससे देश में बैचेनी सी थी। आम लोग भी लिख-बोलने लगे कि इंदिरा के समय अमेरिका को दिए गए मजबूत जवाब के सामने यह मोदीजी, बीजेपी और आरएसएस की वह शैली है, जिसने भारत की गरिमा के साथ समझौता किया है।

 
उपरांत डोनाल्ड ट्रंप ने यह दावा कुछ इस अंदाज़ में और कुछ ऐसी बातों के साथ किया, जिसने पीएम मोदी, बीजेपी और आरएसएस, सभी के राष्ट्रवाद और चाल-चरित्र पर सदैव के लिए दाग़ चिटका दिया। ट्रंप ने इसके बाद लगातार यह दावा किया! साथ ही व्यापार, सौदा, धमकी, चेतावनी, जैसे तत्व ट्रंप ने आधिकारिक ढंग से मिलाए, जिसका कोई ठोस खंडन ना पीएम मोदी ने समय रहते किया, ना उनकी सरकार ने।
 
बहरहाल, 10 मई 2025 के दिन वाले समय पर लौटे तो, भारत और भारतीय सेना के लिए स्वतंत्रता के पश्चात यह पहली बार था, जब कोई तीसरा देश और उसका राष्ट्राध्यक्ष ऐसा दावा कर रहा हो, और उस दावे में विशेष रूप से आपत्तिजनक लहज़ा शामिल हो।
 
नोट करें कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हो चुका है इसकी ख़बर भारतीय जनता को सबसे पहले अमेरिका से मिलती हैं, उनके राष्ट्रपति ट्रंप के द्वारा! फिर पाकिस्तान के डिप्टी पीएम इसहाक़ डार इसकी जानकारी देते हैं! और उसके बाद भारत अपने विदेश सचिव के माध्यम से युद्ध के भय और उन्माद में जी रहे भारत को जानकारी देता है!
अमेरिका और पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक घोषणा के बाद शाम 6 बजे भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक संक्षिप्त बयान में जानकारी दी कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम पर सहमति बन गई है। उन्होंने कहा, "दोनों देशों के डीजीएमओ की दोपहर के बाद 3-30 बजे हुई बातचीत में इस बात की सहमति बनी है कि भारतीय समयानुसार शाम 5 बजे से दोनों ही पक्ष ज़मीन, हवा और समंदर में सभी तरह की फायरिंग और मिलिट्री एक्शन रोक देंगे।"
 
उनके बयान के कुछ समय बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी संक्षेप बयान देकर सीज़फायर सहमति की जानकारी दी।
 
जिस जानकारी को भारतीय नागरिकों तक भारत सरकार द्वारा पहुँचना चाहिए था, वह अमेरिका और पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक ढंग से कही जाती है और तब जाकर मोदी सत्ता अपने देश को बताती है कि जी, यह सच है!
 
मोदी सरकार ने अपने विदेश सचिव और विदेश मंत्री द्वारा देश को जितना बताया, उससे ज़्यादा शब्द और ज़्यादा जानकारी भारत को अमेरिका के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के डिप्टी सीएम देते हैं! इतना ही नहीं, उसी दिन अमेरिकी विदेश मंत्रालय लंबा बयान जारी करता है।

 
बयान में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा, "पिछले 48 घंटों में उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और मैंने (अमेरिका के विदेश मंत्री) भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर, पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर और भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और असीम मलिक के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की है।"
 
मार्को रुबियो ने लिखा, "मुझे ये बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान की सरकारें 'तत्काल युद्धविराम' करने और एक 'तटस्थ स्थान' पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत करने के लिए सहमत हो गए हैं।"
ट्रंप ने पहले तो सीज़फायर उन्होंने कराया यह दावा किया। फिर अमेरिकी विदेश मंत्री ने लिखा - 'एक तटस्थ स्थान पर बातचीत।' अमेरिका का यह दावा पिछली शताब्दी से चली आ रही भारत की आधिकारिक नीति को एक झटके में ध्वस्त करने की कोशिश थी, या ध्वस्त हो चुकी है इसकी भारतीय नागरिकों को जानकारी।
 
गोदी मीडिया, जो मोदीजी की मुठ्ठी में कैद है, वह चुप रहा। स्वयं मोदी सत्ता भी चुप रही। लेकिन फिर भी यह बात ज़रूर उठी कि अब तक जिस मसले को 'द्विपक्षीय' माना जाता था, उसके लिए किसी तीसरे स्थान पर किसी तीसरे पक्ष द्वारा बातचीत? नेहरू, कश्मीर और यूनो.. अब मोदी, पाकिस्तान और तीसरा पक्ष?
 
दूसरे दिन 11 मई को भारत सरकार ने कहा, "हम नहीं चाहते कि कोई मध्यस्थता करे। हमें किसी की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है।" किंतु सरकार उस दिन भी यह स्पष्ट नहीं कह पाई कि अमेरिका द्वारा 'एक तटस्थ स्थान पर बातचीत' का दावा झूठा है और ऐसी कोई भी बातचीत सीज़फायर मुद्दे के दौरान नहीं हुई थी।
 
ट्रंप के सीज़फायर के दावे, व्यापार और डील की धमकी, तीसरे स्थान पर बातचीत का दावा, आदि पर पीएम मोदी या भारत सरकार ने 'ठोस तरीक़े से खंडन' करने में बहुत समय लिया। पहले कुछ दिनों तक भारत ने किसी भी बयान में अमेरिका का नाम तक नहीं लिया था। दिनों बाद बयान में अमेरिका का नाम आया। हालाँकि वह भी कुछ ऐसा था, जैसे कि ट्रंप से कह रहे हो कि बोलने की मजबूरी को समझिएगा और संभ्हाल लीजिएगा।
 
यह स्थिति भारत के लिए बहुत असहज थी। भारत का पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष का इतिहास, इतिहास के वो तमाम पल, इन तमाम के सामने ट्रंप का बड़बोलापन और सामने पीएम मोदी की रहस्यों से भरी चुप्पी, यह सौ फ़ीसदी असहज पल थे। ट्रंप की घोषणा के बाद देश को अपनी तरफ़ से सरकार द्वारा जानकारी देना, यह एक नेता, एक पार्टी और एक संस्था के रूप में मोदीजी, बीजेपी और आरएसए की शैली की उद्घोषणा थी।
दरअसल यह उद्घोषणा जैसा था कि बीजेपी और आरएसएस शासित सरकार ने अमेरिका के सामने नतमस्तक होने की नीति स्वीकार कर ली है। इससे पहले जिस तरह ट्रंप ने भारत के अवैध प्रवासियों को हथकड़ियों में कैद कर अपने सैन्य विमान से भारत लाकर एक तरह से फेंक दिया था, वह नरेंद्र मोदी की सरेंडर प्रवृत्ति की आधिकारिक उद्घोषणा थी।
 
तब कोलंबिया, मैक्सिको जैसे छोटे देशों ने अमेरिका के सैन्य विमान को अपनी ज़मीन पर उतरने की अनुमति नहीं दी थी। कोलंबिया, ब्राज़ील, मैक्सिको ने अपना विमान अमेरिका भेज कर अपने नागरिकों की सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित की थी। लेकिन तब भी मोदीजी उन छोटे देशों के नेताओं की तरह ना हिम्मत दिखा पाए थे और ना आलोचना करने का जिगरा धारण कर पाए थे!

 
यह भूलना नहीं चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रिया थी, उसमें उन्होंने "शर्मनाक" शब्द का इस्तेमाल किया था। मुझे पता था कि भारत कार्रवाई करेगा, यह कहते हुए 7 मई 2025 को ट्रंप का बयान था, "यह शर्मनाक है, हमने इसके बारे में तब सुना जब हम ओवल में थे।"
 
जिस पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बाँटने का हौआ कुछ लोग फ़ैला रहे थे, पीओके वापस लाने का भौकाल जो लोग दिखा रहे थे, वे इस मामले में ट्रंप के हाथों इस तरह बेइज़्ज़त हुए कि आख़िरकार भारत का गौरव, आत्मसम्मान और परंपरा, सब कुछ एक झटके में हिल गया।
 
फिर से लिखते हैं कि भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम कोई बुरी ख़बर नहीं थी। किंतु इसकी घोषणा तीसरे देश अमेरिका से होना अप्रत्याशित था। ट्रंप के द्वारा लगभग धमकाने के अंदाज़ में और धमंड से लबालब शब्दों के साथ घोषणा करना, इसने मोदी सत्ता, बीजेपी और आरएसएस के तमाम जुमलों को ध्वस्त कर दिया।
और इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अनेकों बार, लगभग एक दर्जन से भी अधिक बार, घमंडी लहज़े में दावे किए कि उनके एक फ़ोन कॉल ने भारत और पाकिस्तान के युद्ध को रोक दिया था। व्यापार, सौदा, डील, टैरिफ़ और तुरंत सीज़फायर, जैसे शब्द अमेरिकी राष्ट्रपति इन दावों के दौरान इस्तेमाल कर चुके हैं। और इसके सामने पीएम मोदी अब तक हैं!
 
10 मई 2025 के दिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और अमेरिकी विदेश मंत्री के उन चौंकाने वाले दावों के बाद भारत ने सिर्फ़ संकेत देते हुए इतना कहने का ही साहस दिखाया कि भारत-पाकिस्तान आपसी विचार विमर्श से युद्धविराम के समझौते पर पहुँचे हैं।
 
भारत के आधिकारिक ऐलान से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप क्रेडिट लेने के लिए लपक लिए और दावा कर दिया कि सबकुछ उन्होंने करवाया है। भारत ने आधे घंटे बाद यह ज़रूर कहा कि दोनों देशों के आपसी विचार विमर्श के बाद यह फ़ैसला लिया गया है। किंतु ट्रंप के दावे का खंडन सीधे सीधे नहीं कर पाना, यह नोट हो गया।

 
भारत सरकार ने जो कहा उसके अनुसार दोनों देशों के डीजीएमओ उस दिन सुबह और शायद अगली रात एकदूसरे से बातचीत कर चुके थे। अमेरिका या ट्रंप कहीं पिक्चर में नहीं थे। तो क्या ट्रंप ने सिर्फ़ न्यूज़ रिपोर्टर की तरह ख़बर को ब्रेक मात्र किया था?
 
सामने भारत सरकार की ठंडी प्रतिक्रियाएँ इसका ठोस जवाब नहीं दे पाई हैं। उपरांत आगे जाकर भारत ने यह भी स्वीकारा कि ऑपरेशन सिंदूर के दिन से ही इस मामले पर अमेरिका और भारत बातचीत कर रहे थे।
 
हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान ने आपसी बातचीत और आपसी मजबूरियों के चलते सीज़फायर पर सहमति बना ली थी और इसकी औपचारिक सूचना अमेरिका को दी गई। उतावले और बड़बोले ट्रंप ने किसी रिपोर्टर की तरह इसे ब्रेक कर दिया। भूल गए कि वे राष्ट्राध्यक्ष हैं, पत्रकार नहीं!
दो देशों के झगड़े में चौधरी बनने की अमेरिका की आदत पुरानी है। हो सकता है कि थोड़ी बहुत भूमिका उसकी रही भी हो, या प्रमुख भूमिका भी निभायी हो। एक फ़ोन कॉल से यूक्रेन और रूस के बीच जंग ख़त्म करने का ट्रंप का वो दावा कबका हवा हो चुका है। इज़रायल और हमास-फ़िलिस्तीन युद्ध में भी ट्रंप की चौधराहट किसी काम नहीं आयी थी।
 
"सामान्य बुद्धि और अच्छी समझ के इस्तेमाल के लिए बधाई" - ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की इन्हीं शब्दों में व्याख्या की थी। इसमें कोई शक नहीं कि जिस तरह अचानक ट्रंप ने भारत-पाक के बीच सीज़फायर की घोषणा की, उसने भारत और भारत सरकार, दोनों को असहज कर दिया था। भारत सरकार की ठंडी प्रतिक्रियाओं ने इस असहजता को ज़्यादा बढ़ाया।
 
ट्रंप ने सीज़फायर के जितने भी दावे किए, उनमें जिन बातों का ज़िक्र किया है वह सारी बातें चौंकाती हैं। उपरांत उनके दावे भारत की विदेश नीति से बिलकुल उलट थे।

 
ट्रंप ने अपनी पहली पोस्ट में लिखा था कि अमेरिका ने पूरी रात पाकिस्तान और भारत के बीच मध्यस्थता की और इसके बाद दोनों देश पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। उनके विदेश मंत्री ने उसी दिन का दावा किया था। यह भारत की घोषित नीति के बिलकुल विपरित था।
 
जानकारी के लिए बता दें कि सिर्फ़ कश्मीर या पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि चीन के साथ सीमा विवाद के संबंध में भी भारत सरकार ने संसद के ज़रिए देश को यह आश्वासन दिया हुआ है कि यह तमाम मसले द्विपक्षीय हैं और इसमें किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं की जाएगी।
 
11 मई को भारत ने तीसरे देश की मध्यस्थता वाली बात को ख़ारिज ज़रूर किया, लेकिन तब भी नाम लेकर यह कहने का साहस नहीं जुटाया कि ट्रंप और उनके दावे ग़लत हैं। मोदी सत्ता की ठंडी प्रतिक्रिया ने मामले को और विवादित बनाया।
10 मई की शाम सीज़फायर की ट्रंप द्वारा की गई घोषणा के बाद उस शाम और पूरी रात पाकिस्तान और भारत के बीच सैन्य झड़प होती रही, रातभर धमाकों की आवाज़े सुनी गईँ।
 
11 मई को ट्रंप ने फिर दावा किया कि उन्होंने सीज़फायर कराया। इस बार वे थोड़ा और आगे बढ़े और कह गए, "मैं कश्मीर मुद्दे के निपटारे की कोशिश करूँगा।"
 
12 मई को ट्रंप ने फिर कहा, "हमने परमाणु युद्ध को रोका है। अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में मदद की है। मुझे लगता है कि यह एक स्थायी युद्धविराम होगा।"

 
ट्रंप ने कहा, "दोनों देशों के पास ढेर सारे परमाणु हथियार हैं। हम व्यापार तभी करेंगे जब युद्ध रुकेगा। मेरी सरकार ने युद्धविराम में मदद की है। अगर यह संघर्ष नहीं रुका, तो हम व्यापार नहीं करेंगे।"
 
उन्होंने कहा, "हमने बहुत मदद की। मैंने कहा, हम आपके साथ ख़ूब व्यापार करेंगे।" इस दिन ट्रंप के बेटे ट्रंप जूनियर ने भी इस युद्धविराम का श्रेय अपने पिता को दिया।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऑन रिकॉर्ड कहा, "मैंने कहा, चलो इसे रोकते हैं। अगर आप इसे रोकते हैं, तो हम बिज़नेस में हैं। अगर आप इसे नहीं रोकते, तो हम बिज़नेस में नहीं हैं। लोगों ने मेरे जैसे बिज़नेस का कभी इस्तेमाल नहीं किया।"
 
13 मई के दिन भी ट्रंप नहीं रुके और वही दावा करते हुए कहा, "मैंने दोनों देशों के मध्य युद्धविराम कराने के लिए व्यापार का अधिक इस्तेमाल किया।"
 
13 मई को भारत सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हाल के भारत-पाकिस्तान सैन्य तनाव के दौरान अमेरिका के साथ हुई बातचीत में व्यापार से जुड़ी कोई चर्चा नहीं हुई। जम्मू-कश्मीर का मुद्दा द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझाया जाएगा।" विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "भारत ने भारत-पाक युद्धविराम पर राष्ट्रपति ट्रम्प के बयानों पर अपनी स्थिति अमेरिकी अधिकारियों को 'स्पष्ट' कर दी है।"
प्रेस वार्ता में जायसवाल ने यह ज़रूर कहा, "जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकृत नहीं है। भारत और पाकिस्तान इस विवाद को आपस में सुलझाएँगे। मुद्दा यही है कि पाकिस्तान पीओके को खाली करें।"
 
तीन दिन बाद भारत ने स्पष्ट रूप से यह स्वीकार ज़रूर किया कि अमेरिका के साथ बातचीत हो रही थी। यानी अमेरिका मध्यस्थता कर रहा था। किंतु सीज़फायर के निर्णय में अमेरिका ने मध्यस्थता नहीं की थी ऐसा भारत सरकार का दावा रहा।
 
प्रेस वार्ता में भारत ने स्पष्ट किया, "7 मई के दिन ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ तब से 10 मई के दिन गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बनी तब तक भारतीय और अमेरिकी नेताओं ने सैन्य स्थिति पर चर्चा की थी, लेकिन किसी भी चर्चा में व्यापार का मुद्दा उठाया नहीं गया था।"
 
प्रेस वार्ता का यह बयान ट्रंप के अनेक दावों और अनेक बातों के बीच इस बात की पुष्टि करता नज़र आया कि अमेरिका इस मामले में बातचीत में शामिल तो था ही। उसने किस हद तक मध्यस्थता की थी और किन मामलों में की थी, उसके दावों में अमेरिका और भारत, दोनों के शासनाध्यक्ष बँटे हुए हैं।
 
इस दिन भी मोदी सत्ता ने ट्रंप के दावों को साफ़ साफ़ ख़ारिज नहीं किया, उलटा सांकेतिक जवाब देने के चक्कर में यह स्वीकार ज़रूर कर लिया कि अमेरिका के साथ इस मामले में कुछ तो बातचीत हुई थी, भले व्यापार का ज़िक्र नहीं हुआ था।
 
14 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति ने चौथी बार अपना दावा दोहराया और कहा, "मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम करवाया।"
ट्रंप सऊदी अरब के दौरे पर थे। रियाध में एक निवेश मंच पर ट्रंप ने कहा, "कुछ दिन पहले ही मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए एक ऐतिहासिक युद्धविराम सफलतापूर्वक करवाया। और मैंने इसके लिए बड़े पैमाने पर व्यापार का इस्तेमाल किया। मैंने (भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं से) कहा - दोस्तों, आओ, एक समझौता करते हैं। चलो थोड़ा व्यापार करते हैं।"
 
ट्रंप ने मज़ाक में यहाँ तक कहा कि, "अब भारत और पाकिस्तान के नेता 'एक अच्छा डिनर' साथ में कर सकते हैं।"
 
रियाध से वापस आते हुए उसी दिन ट्रंप ने पाँचवी बार दावा किया। अपने सरकारी विमान एयरफोर्स 1 में स्काई न्यूज को दिए गए इंटरव्यू में इस बार ट्रंप ने गंभीर खुलासा करते हुए कहा, "मैंने प्रतिबंधों और व्यापारिक सौदों के लालच और धमकी का इस्तेमाल करके भारत को इस युद्धविराम के लिए मजबूर किया और ब्लैकमेल किया।"

 
पाँचवे दिन, यानी 15 मई को डोनाल्ड ट्रंप का बयान अपने पिछले चार दिनों के मुक़ाबले बिलकुल विपरित था। इस बार उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कहता कि मैंने यह किया, लेकिन इतना तय है कि पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान के बीच जो कुछ हुआ, मैंने समस्या के समाधान के लिए उनकी मदद की।"
 
17 मई 2025 को डोनाल्ड ट्रंप फिर बोले। फॉक्स न्यूज़ के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को मैंने रुकवाया। लेकिन मुझे इसका उचित श्रेय नहीं मिला।"
 
ट्रंप ने सीज़फायर और टैरिफ़ रिश्ते का दावा करते हुए कहा, "मैंने दोनों देशों को युद्ध रोकने के बदले उनके साथ व्यापार करने का ऑफ़र दिया था। अब मैं बिज़नेस का इस्तेमाल हिसाब बराबर करने और शांति की स्थापना करने के लिए कर रहा हूँ।" उन्होंने यह दावा तक कर दिया कि, "भारत अमेरिकी चीज़ों पर 100 फ़ीसदी टैरिफ़ कम करने के लिए तैयार है।"
 
इससे पहले 14 मई को भी ट्रंप ने सीज़फायर का श्रेय ख़ुद को देते हुए दावा किया था कि, "भारत ने अमेरिका को व्यापार में ज़ीरो टैरिफ़ का प्रस्ताव रखा है। भारत व्यापार में अमेरिका से किसी प्रकार का चार्ज नहीं लेने के लिए तैयार है।"
ट्रंप के 14 मई वाले बयान के जवाब में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "दोनों देशों के बीच व्यापार के ऊपर बातचीत चल रही है। यह एक जटिल क्रिया है। जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता।"
 
10 मई से 18 मई तक ट्रंप ने कम से कम 8 बार अपना दावा दोहराया! यानी प्रति दिन एक बार! यह संख्या इससे अधिक भी हो सकती है। और उनके यह दावे इसके बाद डबल अंक तक पहुँच गए!
 
19 मई को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संसद की स्थायी समिति को बताया कि इस युद्धविराम में संयुक्त राज्य अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने समिति को बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए युद्धविराम को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता के दावे को भारत ने सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है।
 
संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति की बैठक में इस दिन विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ़ किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम पूरी तरह से द्विपक्षीय था और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। मिस्री ने समिति को बताया कि ट्रंप ने अपनी मध्यस्थता का दावा करने से पहले भारत सरकार से कोई अनुमति नहीं ली या परामर्श नहीं किया।
 
फिर तो न जाने कितनी बार डोनाल्ड ट्रंप खुले तौर पर ऐलान करते रहे कि मैंने सीज़फायर कराया, मैंने व्यापार और सौदे की धमकी दी, वगैरह वगैरह। फिर तो गिनती करना भी मुश्किल हो गया कि उन्होंने कितनी बार क्रेडिट ली होगी।
 
मोदी सत्ता नपे तुले और हल्के फुल्के शब्दों के साथ प्रतिक्रियाएँ देती रही। विपक्ष ने बहुत हो-हल्ला किया तब भी अपने पहले के मर्यादित बयानों को रिपीट करती रही।
23 मई 2025 के दिन डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की अदालत तक में अपने इस दावे को दोहराया! मामला था ट्रंप की टैरिफ़ नीति पर सुनवाई का। उनकी व्यापार संबंधी टैरिफ़ नीति को अमेरिका में ही चुनौती दी गई है और मामला वहाँ की अदालत में है।
 
इस दिन अदालत में अपनी टैरिफ़ नीति के बचाव में ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी अदालत को दिए बयान में कहा, "भारत और पाकिस्तान, दो परमाणु शक्ति संपन्न देश जो मात्र 13 दिन पहले युद्ध अभियानों में शामिल थे, 10 मई 2025 को युद्धविराम पर पहुँचे। यह युद्धविराम तभी संभव हुआ जब राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्तक्षेप किया और दोनों देशों को पूर्ण युद्ध टालने के लिए अमेरिका के साथ व्यापार करने की अनुमति दी।"
 
हालाँकि अमेरिकी अदालत ने टैरिफ़ नीति के संबंध में भारत-पाकिस्तान के मध्य व्यापार की धमकी के ज़रिए सीज़फायर संभव हुआ, और इसलिए टैरिफ़ नीति अमेरिका को मजबूत करेगी, यह तर्क ख़ारिज़ कर दिया।

 
29 मई 2025 को भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, "इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष विराम के बारे में अमेरिका के साथ किसी भी चर्चा में टैरिफ़ का मुद्दा शामिल नहीं था।"
 
इस दिन भी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने यह ज़रूर माना कि भारत और अमेरिका के बीच 7 मई से 10 मई तक पाकिस्तान के साथ भारत के सैन्य संधर्ष के बारे में बातचीत हो रही थी, किंतु इसमें टैरिफ़ या व्यापार के मुद्दे को नकार दिया।
 
इस दिन भी जायसवाल ने दोहराया, "भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का श्रेय किसी बाहरी शक्ति को देना पूरी तरह गलत है। यह दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय प्रयासों का नतीजा है।"
इससे पहले 26 मई 2025 को ट्रंप ने अपना सीज़फायर और व्यापार वाला दावा फिर दोहराया। ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "हमने भारत और पाकिस्तान को युद्ध से रोका, जो एक परमाणु आपदा में बदल सकता था।" उन्होंने इस दिन फिर कहा, "मैंने व्यापार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर दोनों देशों को संघर्ष विराम के लिए राजी किया।"
 
उसी दिन भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जर्मन अख़बार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन जेतुंग को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "संघर्ष विराम का फ़ैसला दोनों पक्षों के सैन्य कमांडरों के बीच हुआ। इसमें अमेरिका की कोई मध्यस्थता या व्यापार संबंधी चर्चा शामिल नहीं थी।"
 
18 जुन 2025 की सुबह भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा, "पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच क़रीब 35 मिनट तक फ़ोन कॉल पर बात हुई है। पीएम मोदी ने ट्रंप को साफ़ किया कि 'ऑपरेशन सिंदूर' पाकिस्तान के अनुरोध पर रोका गया था, न कि अमेरिका के दबाव में। पीएम मोदी ने ट्रंप से यह भी कहा कि भारत ने कभी भी भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है, ना करता है, और ना कभी करेगा।"
 
उसी दिन शाम होते होते ट्रंप ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की कूटनीति में भी हलचल तेज़ कर दी। ट्रंप ने और तीख़े तेवर के साथ कहा, "मैंने युद्ध रुकवाया। मुझे पाकिस्तान से प्यार है।"
 
हालाँकि ट्रंप ने अपने इस लंबे बयान में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के एक बयान की पुष्टि कर दी। ट्रंप ने इस दिन कहा, "मैंने कल रात उनसे (पीएम मोदी से) बात की थी।" वैसे ट्रंप ने अपने इस बयान में भारत के विदेश सचिव के द्वारा दी गई दूसरी जानकारी, सीज़फायर में ट्रंप की मध्यस्थता और किसी तीसरे पक्ष की आगे बातचीत में भूमिका से इनकार, पर कोई बयान नहीं दिया।
इससे इतर ट्रंप ने आगे कहा, "हम पीएम मोदी के साथ एक व्यापार सौदा करने जा रहे हैं।" इतना ही नहीं, उसी रात को डोनाल्ड ट्रंप ने आसीम मुनीर के साथ व्हाइट हाउस में डिनर किया!
 
अचानक और किसी तीसरे देश द्वारा घोषित किए गए युद्धविराम के विवाद के बीच अनेक बार यह दावा किया गया कि दोनों देश परमाणु युद्ध के बहुत क़रीब आ चुके थे। यह दावा अनेक विशेषज्ञों और पत्रकारों ने किया, जो भारत से या विदेश से थे। स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उनके विदेश मंत्री तक ने ऐसा दावा किया था।
 
इन दावों के बीच 31 मई 2025 के दिन भारत के सीडीएस (चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़) जनरल चौहान ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि अमेरिका ने परमाणु युद्ध को टालने में मदद की। लेकिन उन्होंने यह ज़रूर कहा, "यह सुझाव देना 'अतिशयोक्तिपूर्ण' है कि दोनों में से कोई भी पक्ष परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के क़रीब था। पारंपरिक सैन्य कार्रवाई और परमाणु सीमा के बीच बहुत अधिक अंतर होता है।"
 
10 मई 2025 से 13 जून 2025 के बीच 34 दिनों में डोनाल्ड ट्रंप ने 13 मौकों पर सार्वजनिक रूप से और 3 अलग अलग देशों में घूम कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह ढिंढोरा पीटा कि उन्होंने अमेरिका के साथ व्यापार को प्रलोभन की तरह इस्तेमाल करते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम करा दिया।
 
ट्रंप स्वयं लिख-बोलकर दावा करते रहे, किंतु भारत में उनके समकक्ष पीएम मोदी ने एक भी बार स्वयं ट्रंप का, अमेरिकी मंत्रियों का या अमेरिका के किसी दावे का कोई खंडन कभी नहीं किया, बल्कि भारत के सचिव स्तर के अधिकारी बयान जारी करते रहे।
 
इस बीच दोनों देशों के सैन्य संधर्ष, सीज़फायर में अमेरिकी राष्ट्रपति की कथित भूमिका, इस मामले को लेकर एक और रिपोर्ट प्रकाशित हुई। जानकारी दी गई कि भारत-पाक के बीच सैन्य तनाव से पहले ट्रंप के परिवार का पाकिस्तान के साथ बिज़नेस सौदा हुआ था।
दावा किया गया कि ट्रंप के परिवार की एक ऐसी कंपनी में 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी है जिसने पाकिस्तान क्रिप्टोकरेंसी काउंसिल से सौदा किया है। कथित रूप से सौदे की बातचीत करने पहुँची उस कंपनी की टीम का ख़ुद पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर ने न सिर्फ़ व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया था, बल्कि उनकी शहबाज़ शरीफ़ के साथ बैठक भी कराई थी।
 
यह कथित घटनाक्रम भारत-पाक तनाव से पहले का बताया गया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी रिपोर्ट दी कि कैसे डोनाल्ड ट्रंप का भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में मध्यस्थ बनने का प्रयास उस सौदे पर ध्यान खींच रहा है, जो हाल ही में पाकिस्तान ने वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल के साथ किया था।

 
वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल ही वह क्रिप्टोकरेंसी कंपनी बताई गई, जिसमें कथित रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति के परिवार की 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। रिपोर्ट के मुताबिक़ इस कंपनी के शेयरहोल्डरों में ट्रंप के दो बेटे, एरिक और डोनाल्ड ट्रंप जूनियर, साथ ही उनके दामाद जेरेड कुशनर शामिल हैं। बता दें कि कुशनर व्हाइट हाउस से अपने संबंधों का लाभ उठाने के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
 
ट्रंप का क्रेडिट लेने के लिए लपकना, उनके लगातार दावे, दावों की भाषा, बयानों में आदेशात्मक और चेतावनी वाला लहज़ा - यह बातें इस मामले में बहुत बड़ा मसला रही हैं। बदले में बहुत गरजने वाली मोदी सत्ता की ठंडी और सांकेतिक सी प्रतिक्रियाएँ निशाने पर रही।
 
ट्रंप और उनके सरकारी विभागों या प्रतिनिधियों के दावों के सामने भारत और भारत सरकार ने प्रतिक्रियाएँ ज़रूर दीं, किंतु उसमें सांकेतिक और इशारों वाले बयान का इस्तेमाल कर अपनी प्रतिक्रियाओं को ठंडा रखा। और शायद इसीके चलते सरेंडर मोदी का नारा देश में फैल गया।
 
हालाँकि रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि सैन्य कार्रवाई करने से पहले रूकना कहाँ है यह यक़ीनन तय कर लिया गया होगा। यानी ऑपरेशन सिंदूर से पहले भारत सरकार ने अपनी सीमा तय कर ली होगी। वे मानते हैं कि जो कुछ भी आगे हुआ, वह पाकिस्तान द्वारा सैन्य संघर्ष को बड़े स्तर पर ले जानी की कोशिश के चलते हुआ।
ऑपरेशन सिंदूर की उस रात आधिकारिक पोस्ट्स और बयानों में भारत ने कहा था कि हमने बदला ले लिया है, पाकिस्तान रूकेगा तो हम भी रूक जाएँगे। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके बाद फिर जो हुआ, शायद दोनों देशों की अंदरूनी राजनीति का परिणाम था, शायद दोनों को अपने अपने लोगों को यक़ीन दिलाना था कि हमारा हाथ ऊपर रहा है।
 
जब 10 मई की सुबह पूरा देश, मीडिया और सोशल मीडिया युद्धोन्माद में लबालब था, तभी पीएम मोदी की सेना प्रमुखों के साथ मुलाक़ात के बाद ख़बरें आईं थीं कि भारत भविष्य में किसी भी आतंकवादी हमले को युद्ध की कार्रवाई मानेगा।
 
सैन्य संघर्ष इतना आगे बढ़ने के बाद, पूर्ण युद्ध के उस माहौल के बीच इस ख़बर ने उसी सुबह संकेत दिया था कि शायद भारत अब इस मामले में आगे कुछ नहीं चाहता है।
 

अमेरिकी राष्ट्रपति के द्वारा लगातार किए गए दावे और सामने भारत सरकार द्वारा संभल संभल कर दी गई प्रतिक्रियाओं ने कईयों को यह मानने पर मजबूर किया है कि इस सीज़फायर में अमेरिका ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। व्यापार, सौदा, एक फ़ोन कॉल, टैरिफ़, धमकी, चेतावनी - जैसे तत्व भी इस पूरे संस्करण में संदिग्ध रूप से शामिल हुए हैं।
 
बड़बोलेपन के आदि पीएम मोदी के मुँह पर एक बार भी ट्रंप नाम का शब्द नहीं आया है। दूसरों को आगे करके मोदी सत्ता इस मामले में जो भी प्रेस वार्ता करा रही है, उन प्रेस वार्ताओं में भी सांकेतिक और अस्पष्ट बयान उलझाते रहे हैं।
 
सीज़फायर की ख़बर ने भारतीय समाज को अचंभित ज़रूर किया था। उपरांत इसमें अमेरिकी भूमिका और उसके द्वारा इसकी घोषणा, इसने समाज को सकते में भी डाल दिया था। उधर वे कथित राष्ट्रवादी, जो अब तक पूर्ण युद्ध के मोड में, पीओके हथियाने के हौए के साथ लाहौर पर कब्ज़े का भौकाल दिखा रहे थे, स्थिति उन दिनों उनकी बहुत बिगड़ी हुई थी।
भारतीय समाज के वे राजनीतिक कीड़े इसके बाद सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय हुए। नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस के कट्टर समर्थक बहाने ढूँढने में लग गए। और ग़ज़ब बात यह कि उन्होंने इसका ठिकरा विदेश सचिव विक्रम मिस्री पर फ़ोड दिया!
 
विदेश सचिव और उनकी बेटी को ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा! उन्हें कुछ घंटों के लिए अपना सोशल मीडिया एकाउंट लॉक तक करना पड़ा! जैसे कि जंग करने या नहीं करने का फ़ैसला उनका लिया हुआ हो।
 
यह पूरा घटनाक्रम निसंदेह मोदी को एक कमजोर प्रधानमंत्री और एक कमजोर नेता के रूप में स्थापित कर गया। इस मामले में बीजेपी और उनकी मातृ-पितृ संस्था आरएसएस की फ़ज़ीहत भी कम नहीं हुई है। आरएसएस इस घटनाक्रम से ख़ुद को दूर नहीं कर सकता। आख़िरकार उन्हीं का बंदा पीएम है और उन सबने मिलकर ही वो माहौल तैयार किया था, जिसका बंटाधार ट्रंप कर चुके हैं।
 
ऑपरेशन सिंदूर से लेकर अब तक का घटनाक्रम, इसने मोदी सत्ता की कूटनीति, विदेश नीति, पड़ोसी नीति, अंतरराष्ट्रीय समर्थन, आर्थिक नीति, जैसे मामलों की विफलताओं को सतह पर लाकर खड़ा कर दिया है।
 
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, दोनों देश जब हवाई युद्ध लड़ रहे थे उसी समय पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का लोन मंजूर हो गया! पाकिस्तान को यह लोन आईएमएफ ने दिया था। ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पाकिस्तान को 800 मिलियन डॉलर दिए! 4 जून को पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया! बड़ी बड़ी डींगें हाँकने वाले पीएम मोदी कुछ नहीं कर सके।
पहलगाम आतंकी हमले से लेकर सैन्य संधर्ष तक भारत को इज़रायल और अफ़ग़ानिस्तान के सिवा किसी दूसरे बड़े देश ने स्पष्ट समर्थन नहीं किया। भारत के पुराने मित्र और सैन्य साझेदार रशिया की उन दिनों ख़ामोशी ने मोदी सत्ता को चिंता में डाला। पीठ थपथपाने के नाम पर छोटे देशों के समर्थन से संतोष करना पड़ा! अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप ने तो स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान के प्रति अपनी मुहब्बत और ज़रूरतों का इज़हार किया!
 
भारत और अमेरिका के बीच 7 मई से ही पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष पर बातचीत चल रही थी, यह बात भारत सरकार अलग अलग माध्यम से एक से अधिक बार स्वीकार कर चुकी है। अमेरिका के लिए ज़ीरो टैरिफ़ का ट्रंप का दावा, इसे भी विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से नकारा नहीं है।
 
यूँ तो भारत सरकार ने बहुत बार आधिकारिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि भारत पाकिस्तान के बीच सीज़फायर दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद किया गया था। साथ ही यह भी कहा है कि किसी तीसरे देश की मध्यस्थता या किसी तटस्थ जगह पर बातचीत भी नहीं हुई थी। व्यापार, सौदा, टैरिफ़, आदि बातें उस बातचीत में शामिल नहीं थीं यह भी आधिकारिक रूप से कहा है।
 
किंतु ट्रंप है कि मानते नहीं! भारत ने जितनी बार स्पष्ट किया है उससे अनेक गुना बार ट्रंप ने अपने दावों को दोहराया है! अमेरिका से भी और अमेरिका के बाहर जाकर भी उन्होंने यह किया है! उपरांत उनके भारतीय समकक्ष पीएम मोदी ने ट्रंप की बातों का उसी तरीक़े से अब तक स्पष्ट खंडन नहीं किया है। ट्रंप के सीज़फायर और व्यापार के कॉकटेल वाले दावे अब भी जारी हैं...
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)