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PM Degree Dispute: देश के प्रधानमंत्री या कैबिनेट मंत्रियों की डिग्री निजता का मामला कैसे हो गया?

 
भारत को अपने तमाम महान नायकों - महात्मा गाँधी या सरदार पटेल से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद या भगत सिंह तक, तमाम प्रधानमंत्रियों – नेहरू या नंदा से लेकर वाजपेयी या मनमोहन सिंह तक, तमाम मुख्यमंत्रियों, सबकी डिग्री का पता है, बस नरेंद्र मोदी की डिग्री पता नहीं कौन सा ऐसा राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता?
 
इस पूरे विवाद के लिए एकमात्र जवाबदेह व्यक्ति कोई है तो वह है स्वयं नरेंद्र मोदी। राजनीति जैसे सार्वजनिक व्यवसाय में वे हैं। उपरांत देश के सुप्रीम जनसेवक हैं। उन्हें एक बार नहीं किंतु जब भी ज़रूरत पड़े तब बार बार अपनी डिग्री दिखानी चाहिए। वे ऐसा करते तो यह मामला एक बेहतर नज़ीर के रूप में संपन्न हो गया होता। किंतु अब यह संदिग्ध और विवादित संस्करण हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा नहीं किया।
 
ये बात समझ से परे है कि उन्हें अपनी डिग्री सार्वजनिक करने में क्या परहेज़ है? क्यों वे ऐसा नहीं करते? उन्होंने ऐसा नहीं किया तभी तो उनकी डिग्री का मामला 'संदिग्ध' और 'विवादित' श्रेणी में शामिल हो चुका है। एक डिग्री ही तो है, दिखाने में क्या दिक्कत है? अमित शाह और बीजेपी एक बार प्रेस वार्ता कर बहुत दूर से दिखा चुके हैं, तो फिर अब निजता का सवाल कहाँ?
 
मूल बात यह है कि देश की जनता अपने प्रधानमंत्री की डिग्री का दर्शन चाहती है, तब उन्हें देश की जनता को दर्शन कराना चाहिए। उनके अपने चाहने या नहीं चाहने का कोई सवाल उठता ही नहीं।
 
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सुप्रीम जनसेवक की शिक्षा और संपत्ति का मामला निजता का मामला कैसे हो सकता है? आजकल यह अजीब दौर चल पड़ा है। चुनाव आयोग कहता है कि सीसीटीवी फुटेज नहीं दे सकते, इससे माताओं-बहनों-बेटियों की निजता का उल्लंघन होगा! जैसे कि मतदान मथक की जगह घर का फुटेज हो। इधर सूचना आयोग पीएम की डिग्री दिखाने के लिए राजी है, लेकिन अदालत कहती है कि देश के प्रधानमंत्री की डिग्री उनका निजी मामला है, उसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए!
अगस्त 2025 के महीने में दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि प्रधानमंत्री की डिग्री नहीं दिखाई जाएगी। केंद्रीय सूचना आयोग को कोई एतराज नहीं था, किंतु अदालत ने एतराज जताया! जबकि केंद्रीय सूचना आयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दे चुका था।
 
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग यानी सीआईसी के उस आदेश को रद्द कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सचिन दत्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। इस अपील में विश्वविद्यालय ने सीआईसी के 2017 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें डीयू को 1978 में बैचलर ऑफ़ आर्ट्स कोर्स पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड को एक आरटीआई आवेदक को देने का निर्देश दिया गया था।

 
दरअसल एक राजनीतिक विवाद के बाद 2016 में आरटीआई कार्यकर्ता नीरज शर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 में बीए पास करने वाले सभी छात्रों का नाम, रोल नंबर, अंक और पास-फेल का ब्योरा माँगा था। क्योंकि तब पीएम मोदी के डिग्री विवाद के बाद एक प्रेस वार्ता में बीजेपी ने दावा किया था कि मोदीजी ने डीयू से 1978 में बीए पास किया था।
 
डीयू ने इसे व्यक्तिगत जानकारी बताते हुए सूचना देने से मना कर दिया था। मामला सूचना आयोग पहुँचा। दिसंबर 2016 में नीरज शर्मा ने सीआईसी में अपील की।
केंद्रीय सूचना आयोग ने डीयू को आदेश दिया कि माँगी हुई जानकारी आवेदनकर्ता को दी जाए, क्योंकि विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक संस्था है और डिग्री का ब्योरा सार्वजनिक दस्तावेज़ माना जाता है। सूचना आयुक्त प्रो. एम. अचार्युलु ने डीयू को निर्देश दिया था कि वह छात्रों की सूची वाला रजिस्टर सार्वजनिक करें।
 
डीयू ने इस आदेश को 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी "फिड्युशियरी कैपेसिटी" (भरोसे में रखी गई गोपनीय जानकारी) के तहत आती है, जिसे किसी अजनबी को नहीं दिया जा सकता।
 
विश्वविद्यालय ने यह भी कहा था कि कोर्ट को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। वहीं, हाईकोर्ट ने सुनवाई की पहली ही तारीख़, 24 जनवरी 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी।
 
अगस्त 2025 में जस्टिस दत्ता ने अपने फ़ैसले में कहा, "सीआईसी का आदेश रद्द किया जाता है।" जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा, "किसी की शैक्षणिक डिग्री निजी जानकारी है और इसे तभी सार्वजनिक किया जा सकता है जब इसमें बड़ा जनहित जुड़ा हो।"
अदालत ने कहा, "इस मामले में ऐसा कोई जनहित नहीं है, क्योंकि पढ़ाई-लिखाई संवैधानिक पद पर बने रहने की क़ानूनी शर्त नहीं है। बिना वजह निजी शैक्षणिक जानकारी सार्वजनिक करना व्यक्ति की निजता का उल्लंघन होगा।"
 
दिल्ली हाईकोर्ट ने सिर्फ़ नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि स्मृति ईरानी के संबंध में भी फ़ैसला सुनाया है। केंद्रीय सूचना आयोग ने एक आदेश में सीबीएसई को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट रिकॉर्ड दिखाने का निर्देश दिया था।
 

बता दें कि पीएम मोदी ने अपने चुनावी हलफ़नामे में दावा किया था कि उन्होंने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए और 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की थी।
 
यूँ तो डिग्रियों से ज्ञान या विवेक का कोई वास्ता नहीं होता। 21वीं शताब्दी के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक माहौल ने डंके की चोट पर साबित किया है कि एजुकेटेड होने का मतलब यह नहीं होता कि वह इंटेलीजेंट भी होगा। शायद पिछली शताब्दी में भी साबित हुआ जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फिज़िक्स पढ़ाने वाले मुरली मनोहर जोशी 1995 की एक सुबह गणेशजी को दूध पिला कर अपनी डिग्री को पानी-पानी कर चुके थे!
यूँ तो पीएम मोदी की डिग्री का मसला सुर्खियों में तब आया जब 2016 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनसे उनकी शैक्षिक डिग्रियों को सार्वजनिक करने की माँग की थी। हालाँकि कहानी इससे पहले की है।
 
दरअसल उन दिनों दिल्ली में अरविंद केजरीवाल शासित आम आदमी पार्टी की सरकार थी। देश को जीतने वाले मोदी यहाँ केजरीवाल से क़रारी हार खा चुके थे। केजरीवाल और मोदी, दोनों की पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता एकदूसरे पर राजनीतिक टिका टिप्पणियाँ कर रहे थे। अपने बुरे दोर में पहुँच चुकी कांग्रेस भी कानाफूसी में हिस्सा ले रही थी।

 
इन राजनीतिक टिका टिप्पणियों के आदान प्रदान के बीच मोदी सरकार की तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाए गए। आप पार्टी ने कहा कि स्मृति ईरानी ने चुनाव आयोग के समक्ष पेश किए अपने हलफ़नामे में अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में ग़लत जानकारी दी है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि स्मृति ईरानी सिर्फ़ 12वीं पास हैं और उन्होंने आयोग को झूठी जानकारी दी है।
 
स्मृति ईरानी का मामला ख़ूब गर्माया और आगे जाकर अदालत तक भी पहुँचा। किंतु इस बीच केजरीवाल सरकार को विवाद में फँसाने का मौक़ा बीजेपी के हाथ लगा। मामला था जितेंद्र सिंह तोमर का।
वे उन दिनों दिल्ली सरकार में क़ानून मंत्री थे। मई या जून 2015 के दिन थे। एक आरटीआई के हवाले से पता चला कि उनकी वक़ालत की डिग्री बोगस है। उन्हें गिरफ़्तार किया गया। स्मृति ईरानी के मामले पर फँसी मोदी सत्ता को तोमर नाम का हथियार मिल गया। बदले में केजरीवाल ने पीएम मोदी की डिग्री और शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठा दिए।
 
कांग्रेस के बरअक्स बीजेपी के सामने ज़्यादा आक्रामक और ज़्यादा तीखी राजनीति के वाहक केजरीवाल ने इस मामले को लंबे समय तक चलाया। आप पार्टी की सोशल मीडिया टीम ने इसे व्यापक रूप से फ़ैला दिया।
 

दिल्ली विश्वविद्यालय से गुहार लगाई गई कि वे पीएम की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करें। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता डीयू के बाहर इक्ठ्ठा होकर दबाव बना रहे थे। उन दिनों डीयू के कुलपति योगेश त्यागी थे। वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक और प्रोफ़ेसर अभय दूबे बताते हैं कि उनका (योगेश त्यागी) नियम यह था कि उनका कहना था कि मैं कोई ग़लती नहीं करूँगा, क्योंकि मैं कोई काम नहीं करूँगा।
 
वो संभवत: 21वीं शताब्दी के देश के ऐसे पहले कुलपति थे, जिनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें बाक़ायदा सरकारी आदेश से हटा दिया गया हो। उन्हीं का कार्यकाल था, जब केजरीवाल और उनकी पार्टी पीएम मोदी की डिग्री के मुद्दे पर आक्रामक रूप में थे।
नीरज शर्मा दिसंबर 2016 में सूचना आयोग पहुँचे उससे पहले केजरीवाल ने अप्रैल 2016 में केंद्रीय सूचना आयुक्त को एक पत्र लिख पीएम की डिग्री से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने की गुहार लगाई थी। और तब सूचना आयोग ने पीएमओ को निर्देश दिया था कि वो प्रधानमंत्री की डिग्री का ब्यौरा डीयू और गुजरात यूनिवर्सिटी को मुहैया कराए, ताकि संबंधित जानकारियाँ लोगों को दी जा सके।
 
आम आदमी पार्टी डीयू के सामने ज़बरदस्त दबाव बनाने में लगी थी। लिखित रूप से और राजनीतिक रूप से, माँग की जा रही थी कि पीएम की डिग्री दिखाईए, सार्वजनिक करिए। लेकिन किसी को नहीं मिल रही थी। तभी अचानक से, शायद डीयू के किसी पिछले दरवाज़े से, एक दस्तावेज़ निकला।
 
यानी, कहीं से पीएम मोदी की डिग्री बाहर निकली। कैसे निकली, कहाँ से निकली, वह आज तक रहस्य है। पीएम मोदी की डिग्री का वह कथित दस्तावेज़ डीयू के किसी दरवाज़े या खिड़की से बाहर निकला और एक सार्वजनिक प्रेस वार्ता आयोजित हुई।
 
पीएम मोदी की डिग्री का वह कथित दस्तावेज़ बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, वित्त मंत्री अरूण जेटली, बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, इन नेताओं के हाथों में पहुँचा। उन लोगों ने प्रेस वार्ता आयोजित की और पत्रकारों को दूर से, पत्रकार दूर बैठे हुए थे, और दूर से पत्रकारों को वह दस्तावेज़ दिखाया, जो कथित रूप से पीएम मोदी की वह डिग्री थी, जिसे दिखाने की माँग की जा रही थी।
बताया गया कि पीएम मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978 में बीए की परीक्षा पास की थी और उन्हें 1979 में डिग्री प्रदान की गई थी। दूर बैठे पत्रकारों ने दूर से वह काग़ज़ देख लिया और बोल-छाप दिया कि पीएम की डिग्री दिख गई! लेकिन बात और ज़्यादा उलझी या उलझा दी गई।
 
जैसे किसी तरीक़े से बीजेपी के मंत्री और नेता को वह दस्तावेज़ कहीं से मिला था, दूसरे लोगों को भी उस दस्तावेज़ की तस्वीर कहीं से मिल गई। संभवत: प्रेस वार्ता में जब बीजेपी नेता दूर से दिखा रहे थे तब किसी तकनीक के सहारे या किसी और तरीक़े से।

 
देश में वह तस्वीर वायरल हुई। उसके बारे में तरह तरह के दावे हुए। पत्रकारों ने उसकी खोज़ की और सवाल किए। लोगों ने भी जाँच पड़ताल कर उस दस्तावेज़ के ऊपर सवाल उठाए। और बहुत सारे कथित तथ्य और सवाल लोगों ने खोज निकाले। बीजेपी नेताओं ने जिस दस्तावेज़ को पीएम मोदी की डिग्री बताकर दूर से पत्रकारों को उस काग़ज़ के दर्शन कराए थे, कथित रूप से उस दस्तावेज़ के बारे में देश में और सोशल मीडिया पर तरह तरह के सवाल पूछे गए।
 
उन दिनों केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय, दोनों को आदेश दिया था कि विवाद के निपटारे के लिए पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक कर दी जाए। डीयू की पीएम मोदी की डिग्री उस प्रेस वार्ता में दिखाई जा चुकी थी। फिर गुजरात विश्वविद्यालय ने पीएम की एमए की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक रूप से दी।
गुजरात विश्वविद्यालय ने आधिकारिक रूप से बताया कि नरेंद्र मोदी ने 1983 में गुजरात यूनिवर्सिटी से एंटायर पॉलिटिकल साइंस से एमए पास किया था। गुजरात यूनिवर्सिटी के वीसी ने कहा कि मोदीजी ने एमए पास किया था। उन्होंने उनके एमए के विषयों और उसमें हासिल नंबरों की भी जानकारी दी।
 
उन दिनों गुजरात यूनिवर्सिटी के कुलपति एमएन पटेल थे। हालाँकि उन्होंने डिग्री सार्वजनिक नहीं की थी, किंतु मोदीजी की गुजरात यूनिवर्सिटी में एमए की पढ़ाई को लेकर प्रथम और द्वितीय वर्षों के विषय और प्राप्त किए गए अंकों की जानकारी ज़रूर दी।
 
उन्हीं दिनों, यानी 2016 में, नरेंद्र मोदी को पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर जयंतीभाई पटेल का एक फ़ेसबुक पोस्ट चर्चा में आया, जिसे लेकर नेशनल प्रिंट मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित हुए। प्रोफ़ेसर पटेल जून 1969 से 1993 तक यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस विभाग में कार्यरत थे और वहाँ पर पढ़ाते थे।
 
प्रोफ़ेसर का कहना था कि मोदीजी की डिग्री में जिन विषयों का ज़िक्र है, वे उस दौरान गुजरात यूनिवर्सिटी में पढ़ाए नहीं जाते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी कक्षा से हमेशा ग़ायब रहते थे, इसलिए उन्हें एक्सटर्नल स्टूडेंट के तौर पर पढ़ाई करने के लिए कहा गया था।
उधर गुजरात यूनिवर्सिटी ने प्रोफ़ेसर पटेल के दावों को खारिज़ कर दिया। वेबसाइट इंडिया टुडे डॉट इन की ख़बर के मुताबिक़ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉक्टर महेश पटेल ने कहा कि जिस मार्कशीट को दिखाया जा रहा है वह 30 साल पुरानी है और उसमें जिन विषयों का विवरण है वे उस दौरान पढ़ाए जाते थे।
 
प्रोफ़ेसर से जब मीडिया ने संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि मुझे जो कुछ भी कहना था, वह मैं कह चुका हूँ और मैंने फ़ेसबुक पर जो भी लिखा है, वह सच है। हालाँकि प्रोफ़ेसर ने किन्हीं वजहों से बाद में अपनी पोस्ट को हटा दिया था।
 
नरेंद्र मोदी की दोनों डिग्रियाँ, बीए और एमए को लेकर तरह तरह के सवाल या तंज़ उठे। जैसे कि,

·         उस वर्ष मोदी अकेले ऐसे छात्र थे, जिन्होंने एंटायर पॉलिटिकल साइंस में एमए किया

·         उन्हें पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर तक को इस विषय के बारे में पता नहीं था, उन्हें इसका पता ही 2014 में चला

·         इस बात का कोई ठोस प्रमाण किसी ने नहीं दिया है कि उन दिनों किसी भी विश्वविद्यालय में ऐसा कोई विषय होता था या नहीं

·         मोदी इस कोर्स में अकेले थे जिन्होंने अपना नामांकन कराया, अकेले परीक्षा दी और अकेले ही डिग्री प्राप्त की

·         उनके साथ न कोई छात्र इस विषय में पढ़ा और न किसी प्रोफ़ेसर ने दावा किया कि उन्होंने इस विषय में उन्हें पढ़ाया था

·         भारत में कंप्यूटर का आगमन हुआ इससे पहले ही मोदीजी की डिग्री कंप्यूटर द्वारा प्रिंट की गई थी

·         1990 तक सभी डिग्री किसी दूसरे मशीन से प्रिंट की जाती थी, सिर्फ़ मोदीजी की डिग्री कंप्यूटर प्रिंटेड थी

·         उनकी बीए की डिग्री में जो फ़ॉन्ट इस्तेमाल हुआ है, वह फ़ॉन्ट माइक्रोसॉफ़्ट ने 1992 में पेटेंट किया था

·         उनकी बीए डिग्री पर एक आरोप यह था कि उसमें प्रिंट डेट का दिन रविवार आता था, जबकि रविवार को तमाम सरकारी कचहरियाँ बंद रहती हैं

·         एक आरोप यह भी तैरता रहा कि प्रेस वार्ता में दिखाई गए दस्तावेज़ में University की जगह Unibersity लिखा था
इन तमाम सवालों या आरोपों में कोई दम था या नहीं यह हमें नहीं पता। लेकिन जो बीजेपी सदैव दूसरों पर राजनीतिक रूप से हावी रहती है वह आज तक इन आरोपों या सवालों का ज़ोरदार ढंग से जवाब नहीं दे पाई है। जो डिग्रियाँ पहले से सार्वजनिक हैं उस पर अब यह आदेश कि पीएम की डिग्री सार्वजनिक नहीं की जा सकती, मामले को और ज़्यादा गर्मा गया है।
 
आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल पर सवाल उठाने के चक्कर में बीजेपी और मोदी अब तक अपनी ही डिग्री के चक्कर में फँसे हैं। यूँ कहे कि जब से मोदी केंद्र की सत्ता में आए हैं, तब से इनकी डिग्री का विवाद चल रहा है।
 
यूँ तो नरेंद्र मोदी 2001 से 2013 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 2001 से पहले, शायद 1985 से ही गुजरात की राजनीति में प्रवृत्त रहे। लेकिन मोदीजी ने पैतीस सालों तक भीख माँगी थी, रेल्वे स्टेशन पर चाय बेची थी, हिमालय जाकर तपस्या की थी, उनकी माँ बर्तन मांजती थी, उनकी शादी, किसी भी घटना के बारे में 2014 तक गुजरात को पता नहीं था!
 
जब कंप्यूटर भारत में नहीं थे तब इनकी डिग्री कंप्यूटर प्रिंटेड थी! जब देश में डिजिटल कैमरा नहीं आया तब भी वह डिजिटल कैमरा लेकर घूमते थे! जब ईमेल सेवा की पहुँच नहीं थी तब उन्होंने किसीको ईमेल कर दिया था! जब मोबाइल या सैटेलाइट फ़ोन की पहुँच नहीं थी तब उन्होंने एयरपोर्ट पर चलते चलते ही स्वामीजी को कॉल किया था! ये सब तब जबकि वे पैतीस साल तक भीख माँग रहे थे, चाय बेच रहे थे!
इन सबके बीच मोदीजी 2014 के बाद राज्य राज्य घूम कर, जगह जगह मंच से भाषण देकर, जैसे दावे अपनी जीवन यात्रा के बारे में कर चुके थे, फिर तो लोग सवाल उठाने लगे कि जो आदमी पैतीस साल तक भीख माँगता रहा, जिसकी माँ बर्तन माँजती थी, जिसके पिता की रेलवे स्टेशन पर चाय की केतली थी, जो वहाँ चाय बेचा करता था, जो हिमालय पर तपस्या कर रहा था, जिसका हर राज्य से रिश्ता था, वह गुजरात और दिल्ली के विश्वविद्यालय में बाहरी छात्र के रूप में पढ़ाई कब कर पाया और कैसे कर पाया?
 
कभी बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री किसी पत्रकार को इंटरव्यू देते समय मोदीजी कहते हैं कि वो ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, जब मुख्यमंत्री बने तो किसी भी चीज़ का पता नहीं था। मोदीजी ने ख़ुद अपने भाषणों में दावा किया है कि उन्होंने गाँव के स्कूल के अलावा कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है। मोदीजी के बारे में जितने भी विवाद हैं, ज़्यादातर विवाद उनके ही कथन और बयानों के कारण ही हैं।
 
किसी भी उम्मीदवार ने चुनावी हलफ़नामे में जो दावा किया है तो उसका सत्यापन करने में इतनी मुश्किल क्यों है? 2016 में सार्वजनिक प्रेस वार्ता करने के बाद से बीजेपी और सरकार ऐसा रवैया क्यों अपना रही है, मानो उनके पास छिपाने के लिए कुछ हो, बताने के लिए नहीं।
 
किसी भी चुने हुए जनसेवक की शिक्षा को अदालती सुरक्षा क्यों चाहिए? मोदीजी ने डीयू और जीयू से पढ़ाई की है तो इसके सत्यापन करने में हर्ज़ ही क्या? नागरिकों को अपनी नागरिकता तक साबित करनी होगी, उन्हें तमाम दस्तावेज़ जब भी माँगे जाए तब देने होंगे, वे कुछ गोपनीय नहीं रख सकते। तो फिर इन जनसेवकों को निजता और गोपनीयता की आड़ क्यों?
कोविड19 के दौरान विवादित ढंग से पीएम केयर्स फंड स्थापित कर दिया गया। आज तक किसी को नहीं पता कि इसके गोपनीय दाता कौन थे? इलेक्टोरल बॉन्ड ले आए और कह दिया कि इसमें भी दाता गोपनीय रखे जाएँगे! रफ़ाल सौदे में भी गोपनीयता! वोटिंग बूथ के सीसीटीवी फुटेज में भी गोपनीयता! मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण में गोपनीयता! डिग्री में भी गोपनीयता?
 
1978 और 1983 में दिल्ली और गुजरात विश्वविद्याल से बाहरी छात्र के रूप में बीए और एमए करने से पहले मोदीजी 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने का दावा कर चुके हैं, 1975 में आपातकाल से पहले सार्वजनिक सेवक के रूप में सक्रिय थे, राजनीति कर रहे थे, 1975 में आपातकाल के दौरान भूमिगत हुए। पैतीस साल भीख माँगना, रेल्वे स्टेशन पर चाय बेचना, हिमालय पर जाकर तपस्या करना, माँ द्वारा दूसरों के घर बर्तन मांजना, इन सबके बीच ऐसी सिद्धियाँ कम नहीं मानी जा सकती।

 
मोदीजी के साथ जुड़े उन स्वयंभू दावों के कारण, जो दावे स्वयं उन्होंने किए थे, कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मोदीजी की डिग्री का मामला भी कुछ इसी तरह का हो सकता है। मतलब कि जिस तरह वे अपनी ज़िंदगी के बारे में किसी मंच से कोई भी दावा कर देते हैं, अपनी डिग्री का दावा भी इसी तरह कर दिया होगा। ग़लती हो गई होगी, जुमला निकल गया होगा।
 
इन सवालों और विवादों से पता लग जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री की डिग्री आज से ही नहीं बल्कि जब से वे प्रधानमंत्री बने हैं तभी से सबसे बड़ा रहस्य है! बीजेपी और उसके संगठन का जिस तरह का राजनीतिक, सामाजिक इतिहास है, यह मसला संदिग्ध बनना ही नहीं चाहिए था। पता नहीं चलता कि इस मामले को ठोस तरीक़े से संपन्न क्यों नहीं किया जा रहा?
उपरांत, केंद्रीय सूचना आयोग एक संवैधानिक संस्था है, वैसी ही जैसे केंद्रीय चुनाव आयोग है। यह सूचना आयोग का आदेश था कि माँगी गई सूचना दे दी जाए। डीयू ने भले अदालत में चुनौती दी, किंतु क़ायदे से विश्वविद्यालय भी एक स्वायत्त संस्थान है। और डीयू यह भूलकर राजनीति में हिस्सेदार हो गई! ऊपर से हाईकोर्ट ने भी स्वायत्त संस्था के आदेश पर रोक लगा दी!
 
यह पूरा विवाद बहुत अशोभनीय है और राजनीतिक भी। जिस राजनीति की शुरुआत बीजेपी और मोदी सत्ता ने की थी, बदले में विपक्ष द्वारा यह उसी संस्करण का अधूरा और लंबा खींचा गया पाठ है। विपक्ष द्वारा खड़े गए विवाद की काट मोदीजी की पास यही है कि अदालत की चौखट पर पहुँचा जाए? इसकी जगह मोदीजी अपनी डिग्रियों को सार्वजनिक कर देते और बता देते कि वाक़ई उन्होंने वह पढ़ाई की है तो मामला कब का ख़त्म हो गया होता।
 

अदालत यह बात आसानी से ख़त्म कर सकती थी। देश के प्रधानमंत्री की शैक्षिक जानकारी निजता का मामला तो नहीं है। वह जानना, जब संदेह के बादल हो तब तब जानना, देश की जनता का अधिकार है। जनता को यह बताना राजनेताओं का दायित्व भी।
 
सुप्रीम कोर्ट का 2016 का एक फ़ैसला है, जिसमें कहा गया था - मतदाताओं को अपने उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता जानने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय को मतदाताओं का भरोसा और लोकतंत्र की प्रतिरक्षा से जोड़ा था।
इस मामले में पीएम की डिग्री निजता के अधिकार में कहाँ से आती है? जबकि वो चुनावी हलफ़नामे में पहले से ही मौजूद है, जो सार्वजनिक रूप से दिखाई जा चुकी है। मामला जो भी हो, मसला तो यही था कि मोदीजी द्वारा हलफ़नामे में दी गई जानकारी सही है या ग़लत इसका सत्यापन करना।
 
चुनावी हलफ़नामे की जानकारी में इतना 'निजी' क्या होने लगा है आज कल? सूचना आयोग जैसी संस्था के आदेश को हाईकोर्ट बल देकर सूचना और जानकारी पर नियंत्रण की कथित सरकारी कोशिश को रोक सकती थी। किसी भी जनसेवक से जुड़ी शिक्षा या संपत्ति जैसी जानकारी व्यक्तिगत तो है नहीं। इससे जनहित ही तो जुड़ा है।

 
मोदीजी ने नहीं दिखाया और उस प्रेस वार्ता में दूर से तथा झटपट दिखा दिया तभी तो मामला यहाँ तक पहुँचा है। जिस बात को छिपाने से विवाद हो गया उस बात को मोदीजी ठोस तरीक़े से सार्वजनिक कर देते तो तीन संस्थान - सूचना आयोग, विश्वविद्यालय और हाईकोर्ट तक बात ही नहीं पहुँचती।
 
मोदीजी के चुनावी हलफ़नामे से पता चलता है कि उनके पास डीयू से बीए और जीयू से एमए की डिग्री है। अगर जनता सवाल पूछती है कि यह विवरण सही है या नहीं, तो इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रमाण के साथ सत्यापित क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
 
सार्वजनिक जीवन महज़ चुनाव लड़ने, जीतने भर से शुरू या ख़त्म नहीं होता। वहाँ पारदर्शिता बनाए रखकर जनता का भरोसा क़ायम रखना पड़ता है। यहाँ सूचना का अधिकार प्रथम है, ना कि निजता का। दो डिग्रियों की जानकारी छुपाने के चक्कर में कई संस्थानों की डिग्री ख़तरे या संदेह में पड़ गई है। राजनीति के चक्कर में उलझे बगैर तीनों संस्थान यह समझ पाते तो बेहतर नहीं होता?
सारी बातें लोकतांत्रिक संस्थाओं के अवमूल्यन का नया प्रमाण है। हास्यास्पद बात यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय जिस डिग्री को न दिखाने की बात कर रहा है, उसे गृह मंत्री अमित शाह और दिवंगत नेता अरुण जेटली ने पहले ही सार्वजनिक किया था! उसी साल बीजेपी ने डिग्रियों को अपने एक्स हैंडल - तब ट्वीटर - पर पोस्ट किया था। पहले से सार्वजनिक हुई डिग्री को सार्वजनिक नहीं करने का आदेश हाईकोर्ट दे रहा है!
 
हाल के दिनों में अनगिनत और अतिगंभीर विवादों में फँसे हुए देश के प्रधानमंत्री की डिग्री का मुद्दा, जो अति सरल रूप से संपन्न हो सकता था, पता नहीं किन वजहों से संदिग्ध और विवादास्पद श्रेणी में स्वयं मोदी ले जा चुके हैं।

 
इस देश में लगभग तमाम स्वतंत्रता नायकों, तमाम प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों तक की डिग्री का जनता को पता है। उनकी वो बातें सार्वजनिक हैं और आसानी से जनता के समक्ष उपलब्ध हैं। उनकी तो छोड़िए, जो प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, चिंतक, पत्रकार, लेखक हैं उनकी शिक्षा, वे कहाँ पढ़े, कितना पढ़े, कैसे पढ़े, सब कुछ सार्वजनिक है।
 
किसी भी नागरिक से कोई डिग्री माँगे तो वो नागरिक बिना किसी संकोच के अपनी डिग्री दिखा देता है। हम तो कह रहे हैं कि पीएम मोदी को अपनी डिग्री राहुल गांधी या केजरीवाल के मुँह पर फेंक कर मारनी चाहिए, दिखा देनी चाहिए, ताकि देश के संवैधानिक पद और उसकी महान परंपरा पर संदेह के बादल छट जाए।
 
पिछले एक दशक से यह मामला अलादीन के जीन की तरह बाहर आता रहता है! वे जहाँ से पढ़े उनमें से एक विश्वविद्यालय, गुजरात यूनिवर्सिटी, कभी उनकी डिग्री बताने पर राजी हो जाता है, कभी दूसरा विश्वविद्यालय, दिल्ली यूनिवर्सिटी, डिग्री दिखाने से इनकार कर देता है!
केंद्रीय सूचना आयोग में मामला पहुँचता है और सूचना आयोग डीयू को पीएम मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश देता है। लेकिन पता नहीं क्यों, दिल्ली हाईकोर्ट कहता है कि डिग्री सार्वजनिक नहीं होगी! दुनिया में जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं, उसके सबसे बड़े संवैधानिक पद की डिग्री और शिक्षा की सच्चाई को लेकर इतना बड़ा विवाद हालिया दिनों में नायाब और शर्मनाक है।
 
केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में बैठकर देश के पीएम को चौथी पास कह रहे थे। क्यों नहीं देश के पीएम ने तब अपनी डिग्री की ठोस जानकारी देकर केजरीवाल को चुप कराया? क्यों इस मामले को विवाद और फिर पूरे घटनाक्रम को संदिग्ध मामले की सूची में रखा गया?
 
विश्वविद्यालय, सूचना आयोग या अदालत, पीएम की डिग्री को लेकर आपस में जितना भी आदेश-आदेश और निर्देश-निर्देश खेल लें, आख़िरकार चौराहों पर सवाल यही घूम रहा है कि पीएम क्यों अपनी डिग्री दिखा नहीं रहे? सवाल घूम रहा है कि नायकों, प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, बुद्धिजीवियों, चिंतकों, लेखकों, पत्रकारों, तमाम की जनता के सामने हैं, तो इनकी डिग्री कौन सा राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है?

 
कोई नागरिक इनसे पैतीस साल की भीख, चाय बेचना, शादी, हिमालय वाली तपस्या, से लेकर कोई दस्तावेज़ माँग नहीं रहा। एक डिग्री तो माँग रहा है। बीए-एमए किया है तो डिग्री उन लोगों के मुँह पर मारकर पूरे मामले को शांत करने में मोदीजी को क्या दिक्कत है? मोदीजी क्यों सबूत नहीं दे देते कि पैंतीस साल तक भीख माँगने वाला आदमी लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़कर और हिमालय पर तपस्या करते हुए बीए और एमए पास कर आया है।
 
यह भले आपसी राजनीति के चलते शुरू हुआ था, किंतु इस स्तर पर अब यह व्यक्तिगत मामला नहीं है। इतने लंबे विवाद के बाद यह जनहित का सार्वजनिक कोण रखने वाला मामला बन गया है। प्रधानमंत्री जनता का होता है, तो फिर जनता को संदेह और असमंजस के घेरे में क्यों रखा जाए?
 
फिर तो सभी लोग किसी न किसी की डिग्री माँगा करेंगे वाला तर्क बेतुका सा है। इस बेतुके तर्क मात्र के आधार पर संवैधानिक और सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति से संबंधित विवाद को क्यों और संदिग्ध बनाया जाए?
 
दरअसल यह केवल पीएम नरेंद्र मोदी की डिग्री से संबंधित मसला नहीं माना जा सकता। पीएम मोदी की डिग्री, या उनकी शिक्षा संबंधित आधिकारिक जानकारी, आदि पर हम सवाल उठा नहीं रहे। यह विवाद केवल राजनीतिक है, या कुछ और, हम इसमें जाना ही नहीं चाहते। सवाल यह है कि,
 
·         पीएम की इससे पहले सार्वजनिक की गई डिग्री अब क्यों सार्वजनिक नहीं हो सकती?

·         संवैधानिक पद पर बिराजमान व्यक्ति से संबंधित शिक्षा विवाद तुरंत और संतुष्ट तरीक़े से क्यों संपन्न हो नहीं सकता?

·         सार्वजनिक व्यवसाय में प्रवृत्त व्यक्तियों की शिक्षा, संपत्ति जैसी बातें निजता कैसे हो गई?

·         देश की जनता अपने जनसेवकों की शिक्षा, संपत्ति जैसी ज़रूरी जानकारी क्यों ले नहीं सकती?

 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)