एक
तरफ़ भारत दुनिया के सबसे बड़े मानव सृजित एविएशन डिजास्टर को भुगत रहा था, अफ़रा तफ़री का माहौल था, रोते बिलखते यात्री दिखाई
दे रहे थे, विदेश से आए यात्री यहाँ
फँस चुके थे और दुनिया में भारत की भद्द पीट रही थी, और ऐसे समय प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी संसद में वंदे मातरम् पर चर्चा करा रहे थे!
इंडिगो
एयरलाइंस क्राइसिस - दुनिया का सबसे बड़ा मैन मेड एविएशन डिजास्टर। जिसके पीछे
केंद्र सरकार की मोनोपोली सिस्टम के साथ साथ इलेक्शन फंड का फंडा, भी जवाबदेह माना गया। इस
संकट के दौरान देश के एयरपोर्ट रेलवे स्टेशन की तरह नज़र आने लगे!
हवाई
अड्डों पर सैकड़ों लोग फ़र्श पर लेट कर सोने को मजबूर हुए, जानकारी-विकल्प-समाधान के
लिए यहाँ से वहाँ भटकते रहे, सामान वापसी के लिए इंतज़ार करते रहे, चीख़ते-चिल्लाते रहे, आँखों से आँसू निकले, गुस्सा-बेबसी, सब कुछ नज़र आया।
'हवाई चप्पल पहनने वाले लोग भी हवाई जहाज में दिखने चाहिए' - सरीखे जुमलों के खोजी
नरेंद्र मोदी इस हवाई डिजास्टर के दौरान संसद में वंदे मातरम् पर बेतुकी, अर्थहीन और
तर्कहीन चर्चा वाली राजनीति करते रहे, इधर इंडिगो नाम की एक निजी कंपनी पूरे देश को धता बताती रही!
हज़ारों
यात्री, सरकारी नियमों, ज़िम्मेदारी, नैतिकता, सभी को इंडिगो ने बिना
मोदी सरकार के डर के कुचला, क्योंकि यह शायद फंड का फंडा भी था, जिसमें एक निजी कंपनी की
मोनोपोली को मोदी सरकार ने पूर्वकाल से अधिक संरक्षण दिया था।
अब तक,
·
नवम्बर से अब तक 5
हज़ार से ज़्यादा इंडिगो उड़ानें रद्द हो चुकी हैं
·
कईं छात्रों के एग्ज़ाम छुट गए, कई
युवा इंटरव्यू नहीं दे पाए
·
कईं व्यवसायी अपने काम पूरे नहीं कर पाए
·
मेडिकल इमर्जेंसी भुगत रहे हज़ारों लोग
रोते बिलखते रहे
·
कईयों की ख़ुद की शादी रुक गईं, कईं
अपनों के अंतिम समय में पहुँच नहीं पाए
·
हालात यह बने कि रेलवे को सैकड़ों
स्पेशल डिब्बे लगाकर सवारियाँ दौड़ानी पड़ी
·
हवाई टिकटों के दाम आसमान छूने लगे, सड़क
यातायात में यात्रियों को लूटा जाने लगा
·
देश के हवाई अड्डे किसी बस अड्डे या रेलवे
स्टेशन जैसे बन गए
·
हवाई अड्डों पर सैकड़ों यात्रियों को
मजबूरी में फ़र्श पर सोना पड़ा
·
कंपनी ने यात्रियों को सामान और टिकट के
पैसे वापस लौटाने में लापरवाही बर्ती
·
मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक जा
पहुँचा
इंडिगो, देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी। इस
कंपनी के प्रमोटर राहुल भाटिया हैं, जबकि इंडिगो की पैरेंट कंपनी इंटरग्लोब है। किंगफ़िशर, जेट
एयरवेज़, गो
फ़र्स्ट, एयर
डेक्कन या पैरामाउंट एयरवेज़ जैसी प्रसिद्ध एयरलाइंस कंपनियों को पीछे छोड़ इंडिगो
ने भारत के गुलज़ार आसमाँ को अपनी मुठ्ठी में कर लिया था। बाज़ार में एक के बाद एक
एयरलाइंस कंपनियाँ बंद होती गईं और अंत में इंडिगो ने बाज़ार का अधिकतम हिस्सा ले
लिया।
इंडिगो ने इन दिनों जिस तरह का परिचालन
संकट भारतीय जनता को दिया है, वह अभूतपूर्व है। इसे बाक़ायदा 'दुनिया का अब तक का
सबसे बड़ा मैन मेड एविएशन डिजास्टर' कहा जा रहा है। एक ऐसी त्रासदी, जिसे कंपनी-सिस्टम-सरकार, सभी
ने मिलकर जन्म दिया।
यूँ तो नवम्बर 2025
से पहले ही संकट दिखना शुरू हो चुका था। भारत के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस
तरह के ख़तरे की चेतावनी क़रीब एक साल पहले 2024 में ही दे दी थी।
नवम्बर 2025
के आख़िर में तथा दिसम्बर 2025 के शुरुआती दिनों
में भारत के हवाई अड्डों पर जो हुआ, वह आख़िरकार दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा एविएशन डिजास्टर बन
चुका है।
साल 2025 के नवम्बर महीने की
आख़िर में और दिसम्बर के शुरुआती दिनों में कंपनी ने अपनी सैकड़ों उड़ानें रद्द कर
दीं। एक-दो उड़ानें नहीं, बल्कि क़रीब 5 हज़ार उड़ानें रद्द कर दी गईं, अधिकतर बिना किसी
पूर्व सूचना के रद्द की गई थीं! और यह संकट एक-दो
घंटे के लिए नहीं बल्कि क़रीब क़रीब एक सप्ताह तक चलता रहा!
इसके पीछे सबसे पहले केंद्र की मोदी
सरकार के नए नियमों को वजह बताया गया। कहा गया कि नए नियमों के तहत पायलटों की
ड्यूटी समय सीमा में बदलाव और इंडिगो के लीन-स्टाफिंग मॉडल के कारण संकट खड़ा हुआ
था।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नवम्बर
से अब तक इंडिगो की 5 हज़ार से ज़्यादा फ़्लाइट कैंसिल हो
चुकी हैं, जिसमें
नवम्बर में 951
फ़्लाइट कैंसिल हुईं। दिसंबर में तो हालात इतने ज़्यादा ख़राब हुए कि महज़ तीन-चार
दिनों में ही क़रीब 1500 फ़्लाइट कैंसिल हो गईं!
दुनिया
के अब तक के सबसे बड़े मैन मेड एविएशन डिजास्टर की शुरुआती कहानी
यूँ तो इंडिगो बीते कुछ हफ़्तों से फ़्लाइट
लेट होने और छोटी तकनीकी ख़राबियों से जूझ रही थी। एयरलाइन इसके लिए कभी मौसम, तो
कभी एयरपोर्ट पर भीड़ को ज़िम्मेदार ठहरा कर जवाबदेही से किनारा कर रही थी।
वर्तमान संकट का असली दबाव तब शुरू हुआ
जब सरकार ने फ़्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन-एफडीटीएल के नए नियम लागू किए। इसका
मक़सद पायलटों को थकान से बचाना था, लेकिन पहले से ही स्टाफ़ की कमी झेल रही इंडिगो के लिए यह नियम
भारी पड़ गया।
एफडीटीएल नियमों के अनुसार पायलटों को
अनिवार्य आराम देना ज़रूरी हो गया। इससे बड़ी संख्या में पायलट आराम पर भेजे गए, जबकि
इंडिगो के पास उस हिसाब से एक्स्ट्रा स्टाफ़ था ही नहीं, जिसके
चलते एयरलाइन को कई उड़ानें रद्द करनी पड़ीं और यहीं से अभी चल रहे बड़े संकट की
शुरुआत हुई।
इसी बीच रात के समय उड़ानों के लिए
एयरबस 320
से जुड़े सुरक्षा अलर्ट आए, जिनके चलते कईं देर रात की उड़ानें तुरंत रद्द करनी पड़ीं। नए
नियम रात 12
बजे के बाद लागू हो चुके थे, जिससे अचानक बड़ी संख्या में फ्लाइट्स कैंसिल होने लगीं और
सिस्टम में भारी अव्यवस्था पैदा हो गई।
देश की अन्य एयरलाइंस कंपनियों को रोक
कर सबसे आगे निकलने वाली इंडिगो का अपना बड़ा आकार भी इसकी मुख्य वजह था। भारत की
सबसे बड़ी एयरलाइन होना उसके लिए उलटा पड़ गया। इतने बड़े नेटवर्क में जब एक
साइकिल बिगड़ा, तो
बाकी हिस्से भी तेज़ी से प्रभावित हो गए। हज़ारों क्रू, दर्ज़नों
एयरपोर्ट और प्रतिदिन 2 हज़ार से ज़्यादा उड़ानों का शेड्यूल एक झटके में चरमरा गया।
यूँ तो इस वर्तमान संकट की जड़ 2019
तक जाती है। इंडिया टुडे के आलोक रंजन की रिपोर्ट के मुताबिक़ पायलट यूनियन
डीजीसीए के 2019
के नियमों के ख़िलाफ़ दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचे। उन नियमों में पायलटों के लगातार
रात की उड़ानें भरने की संख्या एक से बढ़ाकर दो कर दी गई थी और आराम का समय घटा
दिया गया था। एयरलाइंस को विशेष परिस्थितियों, जैसे ख़राब मौसम या आपात स्थिति में
पायलट्स पर अतिरिक्त भार देने की छूट दी गई थी।
इस विरोध के बाद डीजीसीए ने अपने कदम
पीछे खींच लिए। 8
जनवरी 2024
को उसने संशोधित नियम जारी किए और एयरलाइंस को 1 जून 2024
तक का समय दिया। फिर एयरलाइंस ने इन नियमों को चुनौती दी, क्योंकि
उनका कहना था कि इन्हें लागू करने से कर्मचारियों की माँग बहुत बढ़ जाएगी, कई
विमान ग्राउंड हो जाएँगे और किराए बढ़ेंगे।
इन चिंताओं पर डीजीसीए ने एयरलाइंस से
नियम लागू करने की व्यावहारिक समयसीमा माँगी और नियमों को होल्ड कर दिया। इसके
चलते पायलट संघों ने फिर से कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। इसके बाद डीजीसीए ने अदालत
में हलफ़नामा पेश कर इन नियमों और योजनाओं को चरणबद्ध तरीक़े से लागू कराने की
योजना की जानकारी दी।
इंडिगो
प्रशासन पर पायलट संघ की नाराज़गी
लगातार बढ़ते हंगामे के बीच
डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ़ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने राहत देते हुए वह नियम वापस ले
लिया, जिसमें
पायलट के साप्ताहिक आराम को छुट्टी से बदलने की मनाही थी।
हालाँकि पायलट यूनियन ने आरोप लगाया कि
इंडिगो मैनेजमेंट पहले से नए नियमों की जानकारी होते हुए भी तैयारी नहीं कर पाया।
उनका दावा है कि ज़्यादा भर्तियाँ करनी चाहिए थीं, लेकिन एयरलाइन ने उल्टा स्टाफ़ और कम कर
दिया था।
दरअसल, केंद्र सरकार ने 2024
में ही यह अधिसूचना ज़ारी कर दी थी, जिसमें बताया गया था कि क्या आने वाला है। इंडिगो के पास
तैयारी के लिए पर्याप्त समय था। यह संकट अचानक नहीं आया, बल्कि
लंबे समय से चली आ रही लापरवाही का परिणाम है।
इंडिगो को दो साल का समय दिया गया था, लेकिन
पायलट संगठनों के आरोप हैं कि एयरलाइन ने पायलटों की भर्ती पर रोक लगा दी, वेतन
फ्रीज़ कर दिया और लागत नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया। नतीजा यह हुआ कि पायलटों
की भारी कमी हुई,
जिससे
उड़ानें रद्द होने लगीं।
कई रिपोर्टों में कहा गया है कि एयर
इंडिया और अकासा एयर जैसी अन्य एयरलाइंस ने पायलटों की भर्ती करके इन नियमों का
पालन किया, जबकि
इंडिगो की अनदेखी ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया।
रोते बिलखते
परेशान यात्री, तस्वीरों ने दुनिया में भारत की भद्द पीटवा दी, फिर एक
बार मूल सवालों को दबाकर मामले को दूसरे ढंग से पेश किया गया
यह संकट यात्रियों की सुरक्षा से जुड़ा
मामला भी है। पायलटों के संगठन इस बात को कह रहे हैं। साथ ही दूसरे बहुत सारे
मुद्दे और सवाल भी उठे। लेकिन सदैव की तरह इस बार भी सवालों को दबाकर मामले को
दूसरे ढंग से पेश किया गया।
भारत विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था या
भारत विश्वगुरु होने का ढोल बजाने वाले मीडिया को आख़िरकार उन हवाई अड्डों की
बदहाली दिखानी पड़ी जो इन दावों की पोल खोल रही थीं। भूख और प्यास से परेशान
यात्रियों की चीख़ पुकार और दवाओं से तड़प रहे बुज़ुर्गों की तस्वीरें दिखीं, जो
दुनिया भर में सुर्ख़ियाँ बनीं।
कईं विदेशी पर्यटकों, विदेशी यात्रियों
की तस्वीरें भी दिखीं, उनके इंटरव्यू भी चले। कईं विदेशी यात्रियों ने अपनी
परेशानियों और हवाई अड्डों पर फैली अफ़रा तफ़री को अपने पास उपलब्ध माध्यम से अपने
देश और अपने लोगों तक पहुँचाया।
कोई शादी में नहीं पहुँच पाया, कोई
मरीज़ इलाज के लिए लेट हो गया, तो कोई तय कार्यक्रम मिस कर बैठे। दिल्ली के इंदिरा गांधी
इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर तो सारे डिपार्चर ही बंद हो गए!
हज़ारों यात्री रात भर एयरपोर्ट पर फँसे रहे!
छात्र अपना एग्जाम मिस कर बैठे, नौकरी
के लिए इंटरव्यू देने जा रहे युवा चूक गए, किसी के अपने बीमार थे वे रोते रहे, कोई
किसी अपने के अंतिम समय में उसके पास पहुँच नहीं पाए।
हैरानी की बात थी कि एयरलाइंस ने न भोजन
का इंतज़ाम किया और न होटल का! लोग तय समय पर गंतव्य तक नहीं पहुँच
सके। ऐसा लगा कि कोई जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा करना चाहता है।
पेडिंग रिफंड को लेकर दिनों तक लोग
परेशान रहे। कंपनी मनमानी करती रही। सरकार ने भी इसे लेकर देरी से सीधा निर्देश
कंपनी को दिया। फ़्लाइट कैंसिल होने पर या देरी की वजह से यात्री अपने लगैज को
लेकर भी बहुत परेशान हुए।
अनेक वीडियो में देखा जा सकता था कि
यात्री, कंपनी से सही जानकारी, उपलब्ध विकल्प और अपनी सामान वापसी के लिए जैसे कि भीख माँग
रहे थे, मिन्नत
कर रहे थे!
अंत में यह सब आँखों में आँसू या गुस्से के रूप में दिखाई दिया, जहाँ
एयरपोर्ट पर लोग रोते बिलखते दिखाई दिए या फिर काउंटर पर चढ़कर गुस्सा करते!
एयरपोर्ट्स पर लगी हुई लंबी कतारें और
स्पष्ट जानकारी नहीं मिलने से तनावभरा माहौल। बिना किसी पूर्वसूचना के अचानक ही
फ़्लाइट कैंसिल होना! दूसरा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हो पाना।
कोई दल महीनों की मेहनत के बाद मिले हुए मौक़े को पूरा करने जा रहा था, अटक
गया। पता नहीं ज़िंदगी में आगे फिर कब मौक़ा मिलेगा।
कईं छात्र, इंटरव्यू
के लिए जा रहे युवा, कईं उद्यमी, कईं ग्रुप, अकेले यात्री, शादी करने के लिए जा रहा दूल्हा, सब के सब आँखों में आँसू के साथ यहाँ से
वहाँ भटकते रहे!
किसी की महीनों के मेहतन बेकार चली गई। कोई रो रहा था कि उसे ज़िंदगी में मुश्किल
से मौक़ा मिला था, चला
गया।
कईयों के पास पैसे नहीं बचे थे, ठहरने
की व्यवस्था नहीं थी। एयरपोर्ट पर यात्री इंडिगो कर्मचारियों से विकल्प और
व्यवस्था को लेकर पूछते रहे, जवाब मिलता रहा कि पता नहीं, कह नहीं सकते!
सवाल यह भी उठा है कि क्या इस संकट के
लिए सिर्फ़ इंडिगो ही दोषी है? केंद्र सरकार, उसका मंत्रालय और डीजीसीए ज़िम्मेदार नहीं हैं?
डीजीसीए ने नियम बनाए और एयरलाइन ने
नियम को लागू नहीं किया तो मोदी सरकार, मंत्रालय और डीजीसीए क्या सो रहे थे? आख़िर
जब हाहाकार मचा तब सरकार क्यों कह रही है कि वह सख़्त कार्रवाई करेगी। डीजीसीए ने
इतने महीनों तक कोई निगरानी क्यों नहीं की?
जबकि अगस्त 2025
में ही परिवहन, पर्यटन
और संस्कृति पर संसद की स्थायी समिति ने डीजीसीए को चेतावनी दी थी कि एफडीटीएल
अनुपालन की कड़ी निगरानी की जाए, ताकि एयरलाइंस सुरक्षा उपायों को दरकिनार न कर सकें।
अच्छे
दिन! अमृतकाल के नाम पर अंधकारयुग के दर्शन
अच्छे दिन!
इन दिनों हवाई चप्पल पहनकर हवाई यात्रा करने वाले नये यात्रियों के साथ साथ पहले
से हवाई यात्रा करने वाले पुराने यात्रियों तक को, सभी को, अमृतकाल
के नाम पर अंधकारयुग के दर्शन हो गए!
इस मामले ने समझाया कि कैसे एक उद्योग
को कॉर्पोरेट लूट, डुओपॉली
और नीतिगत विफलताओं ने सुनहरे नारों के बीच धीरे-धीरे ध्वस्त किया। विश्वगुरु के
जयघोष के बीच दिसम्बर के ठंडे दिन और सर्द रातों में लोग एयरपोर्ट के फ़र्श पर
सोने को मजबूर हुए!
सरकार कह रही है कि 2014
में देश में सिर्फ़ 74
एयरपोर्ट थे, अब
157
हैं। आँकड़ों की बाज़ीगरी की मास्टर मोदी सरकार के इस दावे के सामने विश्लेषक
बताते हैं कि सरकार ने 2014
के आँकड़ों में सिर्फ़ उन एयरपोर्ट्स को गिना जहाँ कमर्शियल फ़्लाइट्स आती थीं, और
2025
के आँकड़ों में हर उस हवाई पट्टी, हेलिपैड
और वाटर-एरोड्रम को जोड़ लिया, जहाँ
कभी-कभार कोई छोटा विमान उतरता है!
इस उद्योग के 2005
से 2008
के दौर पर ग़ौर करें। कैप्टन गोपीनाथ की एयर डेक्कन और विजय माल्या की किंगफ़िशर
के बीच प्राइस वॉर चल रहा था। तब सरकार ने कोई सब्सिडी नहीं दी थी, फिर
भी बाज़ार की प्रतिस्पर्धा में टिकट के दाम 999 रुपये के आसपास थे।
आज मोदी सरकार की बहुप्रचारित 'उड़ान' योजना
के नारों का हश्र देखिए। दावा था 2,500 रुपये में हवाई यात्रा का। लेकिन
दिसंबर 2025 में
सरकार ख़ुद 1500
किमी से कम की उड़ानों के लिए 18,000 रुपये तक की कैपिंग (सीमा) लगा रही है।
कैग की रिपोर्ट्स ने इस झूठ का पर्दाफ़ाश किया है।
52%
से ज़्यादा उड़ान रूट्स शुरू होने के बाद बंद हो गए, क्योंकि वे केवल तब तक चलते
थे जब तक सरकार वायबिलिटी गैप फंडिंग, यानी
सब्सिडी देती थी। जैसे ही सब्सिडी ख़त्म, उड़ान बंद! यह कनेक्टिविटी नहीं, एयरलाइनों
को सरकारी ख़ैरात बाँटने की योजना थी।
आँकड़े बताते हैं कि 2004 से
2014 में
यात्रियों की संख्या में 443% की वृद्धि हुई थी। आज यह वृद्धि दर गिरकर 132% के
आसपास रह गई है। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि
उस समय जेट एयरवेज़, किंगफ़िशर, सहारा, डेक्कन, स्पाइसजेट, इंडिगो
और गोएयर जैसे खिलाड़ी मैदान में थे। नयी नीतियों ने छोटे खिलाड़ियों का गला घोंटा
और पूरा उद्योग डुओपॉली पर आकर ठहर गया।
ख़ुद
को मजबूत कहने वाली मोदी सरकार दिनों तक इंडिगो से सिर्फ़ अपील करती रही, सख़्त
निर्देश के नाम पर की गई लीपापोती में भी देरी हुई
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नवम्बर
से अब तक इंडिगो की 5 हज़ार से ज़्यादा फ़्लाइट कैंसिल हो
चुकी हैं, जिसमें
नवम्बर में 951
फ़्लाइट कैंसिल हुईं! दिसंबर में तो हालात इतने ज़्यादा ख़राब हुए कि महज़ तीन-चार
दिनों में ही क़रीब 1500 फ़्लाइट कैंसिल हो गईं!
जिन नियमों को क्राइसिस के पीछे मूल वजह
बताया गया वह सही है, किंतु यह बात भी होनी चाहिए कि लंबी जद्दोजहद के बाद ये नियम
लागू हुए थे, इसे
लेकर कई विवाद थे, मतभेद
थे। नियम लागू करने में ज़ल्दबाजी को लेकर भी एक विशेष कोण है।
दिनों तक हज़ारों लोग परेशान होते रहे, कंपनी
मनमानी करती रही! मजबूत कही जाने वाली मोदी सरकार का
मंत्रालय अनुरोध करता रहा! बात नहीं बनी तो विनती के नाम पर
निर्देश देना शुरू हुआ। लेकिन हर बीते दिन के साथ समस्या विकट रूप धारण कर रही थी।
डीजीसीए और केंद्रीय उड्डयन मंत्री ने
इन गड़बड़ियों के लिए इंडिगो को ज़िम्मेदार तो ठहराया, लेकिन
अपने बयान में 'इंडिगो
की ग़लतफहमी और प्लानिंग में कमी' जैसे लचीले शब्दों का इस्तेमाल किया!
ग़ज़ब कि मोदी सरकार ने दिनों तक जैसे
कि इंडिगो से गुज़ारिश ही कीं। फिर सख़्त चेतावनी दी, कहा
कि सभी यात्रियों का रिफंड बिना देरी के पूरा करे, अगर ऐसा नहीं हुआ तो एयरलाइन के ख़िलाफ़
सख़्त कार्रवाई की जाएगी।
सबको पता है कि यह काम पूरा नहीं हुआ
होगा। और ठीक उसी तरह यह भी सभी को पता है कि सख़्त कार्रवाई वाली वो चेतावनी, इसे
ख़ुद सरकार भूल चुकी होगी। लोग गुस्से में हैं तो चलो थोड़ा बहुत सख़्त हो लेते
हैं, लोगों
का गुस्सा कुछ दिनों में हवा हो जाएगा, फिर हमें सख़्त होने की ज़रूरत ही क्या!
मंत्रालय ने कहा कि प्रभावित हुए
यात्रियों से कोई रीशेड्यूलिंग चार्ज नहीं लिया जाएगा। सरकार ने इंडिगो से कहा कि
यात्रियों की मदद के लिए हेल्पलाइन स्थापित करें। बैगों की सही ट्रैकिंग को लेकर
भी निर्देश दिया। इंडिगो के सीईओ को नोटिस भेजा। विमान किराए की सीमा भी तय की।
अंत में इंडिगो के शिडुअल में भी कटौती करने को कहा।
साल भर से लिख कर कहा जा रहा था कि
स्थितियाँ बिगड़ सकती हैं। लेकिन कंपनी और सरकार, दोनों लापरवाह से बने रहे। और फिर हवाई
अड्डे पर त्राहि-त्राहि मचने के बाद सरकार ने यूटर्न ले लिया।
सरकार ने ही नियम बनाया, सरकार
ने ही लागू कराया, और
फिर दुनिया का सबसे बड़ा मैन मेड एविएशन डिजास्टर हुआ, फिर
सरकार ने ही उस नियम को वापस ले लिया और कंपनी को समय दिया!
फ़िलहाल सरकार ने इंडिगो सेवा में
रुकावट की विस्तृत जाँच शुरू करने के लिए कमेटी बना दी है। कमेटी क्यों बनती है, कमेटी
बनने से क्या होता है, उसकी रिपोर्ट, वगैरह मैट्रिक पास तक समझ सकता है। वैसे भी इंडिगो प्रशासन ने
दो बार माफ़ी तो माँग ही ली है।
लोकसभा
में नेता विपक्ष ने एक साल पहले लिखकर इस ख़तरे के बारे में चेताया था
एक बार पत्रकार-लेखक अनिल जैन ने लिखा
था - यदि राहुल गांधी पप्पू हैं तो फिर पीएम मोदी और उनकी सरकार वहीं क्यों करते
हैं जो राहुल गांधी कहते हैं? नोटबंदी, जीएसटी, कृषि क़ानून, जातीय जनगणना, कोविड19 महामारी, लॉकडाउन, वैक्सीनेशन, रोजगार
समेत अनेक देशव्यापी मुद्दों पर राहुल गांधी ने जो कहा, कुछ
वक़्त बाद मोदी सरकार ने वही किया!
इस मामले को लेकर भी 6
नवम्बर 2024
को राहुल गांधी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था कि देश की अर्थव्यवस्था कुछ
चुनिंदा बड़े व्यावसायिक समूहों के एकाधिकार के ख़तरे की ओर बढ़ रही है। उन्होंने
अपने लेख Match-fixing
monopoly vs fairplay business – time to choose freedom over fear में
चेताया था कि किसी भी सेक्टर में मोनोपॉली बढ़ने के क्या ख़तरे हैं और इससे क्या
नुक़सान होगा।
राहुल गांधी ने उस लेख में ख़ास तौर पर
इंडिगो की बढ़ती हिस्सेदारी पर सवाल उठाया था। अपने उस लेख में उन्होंने इंडिगो के
बढ़ते एकाधिकारवाद के ख़तरों को एक एक कर चिन्हित किया था।
इनसाइड
इंडिगो क्राइसिस, मोनोपोली पावर ने आख़िरकार जनता को रुलाया
इंडिगो एयरलाइंस क्राइसिस को कुछ जगहों
पर बहुत बड़ा खेल भी माना जा रहा है, कहीं इसे खेल खुल जाने के बाद नियम, निर्देश, सख़्ती, समाधान, जैसी
चर्चाओं के छाते के नीचे छुपाया जा रहा प्रयास भी माना जा रहा है।
कैप्टन किशोर चिंता, जो
इंडियन एयर फ़ोर्स के रिटायर्ड स्कवाड्रन लीडर हैं और अभी सीरियस इंडिया एयरलाइंस
के चीफ़ पायलट हैं, उन्होंने रेडिफ़ को इस क्राइसिस पर एक इंटरव्यू दिया, जिसमें
वे बताते हैं, "जहाँ
रोस्टरिंग सिस्टम ऑटोमेटेड हैं और ड्यूटी टाइम सॉफ़्टवेयर सीधे डीजीसीए से
इंटरफ़ेस करता है, वहाँ
यह कहना कि उन्हें अचानक क्रू की कमी का पता चला, बिलकुल ग़लत है।"
केंद्र सरकार, डीजीसीए
और इंडिगो ने जो वादा देश को किया है, वे इस पर कहते हैं, "अगर क्राइसिस शुरू
होने के 12
से 24
महीनों के अंदर सही क्रू प्लानिंग नहीं हुई, तो वे 5 दिसंबर से 12
फ़रवरी तक के 45
दिन अचानक मामले कैसे सुलझा लेंगे?"
प्रसन्ना डी ज़ोरे-रेडिफ़ के साथ इस
इंटरव्यू में कैप्टन चिंता का कहना है कि चार दिनों में इंडिगो की लगभग 1,500
फ़्लाइट्स को कैंसिल करना कोई प्लानिंग की ग़लती नहीं थी, बल्कि
रेगुलेटर्स पर पायलट ड्यूटी टाइम लिमिट में ढील देने का दबाव बनाने की एक
सोची-समझी स्ट्रेटेजी थी।
चिंता ने बताया, "कैंसलेशन
रैंडम नहीं थे। वे सिर्फ़ तीन शहरों में 50-60% लोड फ़ैक्टर वाले कम
ऑक्यूपेंसी वाले सेक्टर में ज़्यादा थे। ख़ास बात यह कि कोई भी इंटरनेशनल रूट और
दिल्ली-गोवा जैसे ज़्यादा डिमांड वाले घरेलू सेक्टर कैंसल नहीं हुए।"
उन्होंने कहा, "सिलेक्टिविटी
ही स्ट्रेटेजी को दिखाती है।"
कैप्टन चिंता ने इंडस्ट्री की एक कम
जानी-पहचानी सच्चाई भी बताई। उनके मुताबिक़, "एयरक्राफ्ट के पेट
में ले जाए जाने वाले कार्गो से अक़्सर पैसेंजर के किराए से ज़्यादा कमाई होती है।
इसी आर्थिक सच्चाई से फ्री बैगेज लिमिट में लगातार कमी आई है। आज यह 30
केजी से घटकर 12
केजी हो गई है। सिर्फ़ 10
से 12
पैसेंजर के साथ भी फ्लाइट्स फ़ायदेमंद रह सकती हैं, क्योंकि कार्गो स्पेस भरा रहता
है।"
कैप्टन चिंता के अनुसार, जितनी
उड़ानें कैंसिल हुईं, उसमें इंडिगो का फ्यूल ख़र्च लगभग ज़ीरो रहा। शुरूआत में कोई
फ्री रीबुकिंग या रिफंड ऑफ़र नहीं हुआ था, पैसेजर्स को होटल, ट्रांसपोर्ट
और भोजन पर औसतन ख़र्च उठाना पड़ा, अगर मान लें कि लोगों को 100 करोड़ का नुक़सान
हुआ, तो
इंडिगो का लॉस असल में ज़ीरो है। वे कहते हैं कि एयरलाइन अगले कुछ दिनों में
करोड़ों का मुनाफ़ा कमा लेगी।
इसी साल 12 जून 2025
के दिन अहमदाबाद में हुए बड़े प्लेन क्रैश के बाद यात्री सुरक्षा के नाम पर जो
जुमले बाँटे गए, उसे
कैप्टन चिंता के इंटरव्यू में इस बात से भी समझा जा सकता है।
वे कहते हैं, "रिपोर्टों
के अनुसार इंडिगो के पास कोई वित्तीय बाधा नहीं है। इसके पास ऑर्डर पर विमान और
आक्रामक विस्तार की योजनाएँ हैं, लेकिन पायलट भर्ती इसकी प्राथमिकता नहीं है। वे पहले विमानों
में निवेश करते हैं। पायलट बाद में आते हैं।"
भव्य
और दिव्य की सनक में फँसे समाज के लिए हवाई अड्डों का बस या रेलवे अड्डों जैसा बन
जाना बड़ी बात नहीं
इंडिगो एयरलाइंस क्राइसिस, जो
दुनिया के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा मैन मेड एविएशन डिजास्टर है, जिसने
दुनिया में देश की भद्द पीटवा दी, जहाँ देश के हवाई अड्डे किसी बस या रेलवे अड्डे जैसे दिखाई दिए, यह
सब चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, भव्य और दिव्य की सनक में फँसे समाज के लिए यह कोई मुद्दा नहीं।
विशेषत: तब जब देश का मेनस्ट्रीम मीडिया
मुठ्ठी में हो। देश को क्या जानना है, कितना जानना है, क्या बताना है, कैसे बताना है, कितना बताना है, सब कुछ कथित रूप से तय है। फिर देश उसी तरह सोचता है, उतना
ही सोचता है, जितना
कुछ ताक़तें चाहती हैं। इसे ही तो नैरेटिव तय करना कहते हैं।
वैसे भी समाज जैसे जैसे ज़्यादा पढ़ा
लिखा होता जा रहा है वैसे वैसे ज़्यादा मुँद होता जा रहा है!
जो हवाईयात्रा नहीं करते उन्हें इस संकट से कोई लेना देना नहीं है।
भले ही इससे हज़ारों या लाखों लोग
परेशान हुए हो, उनमें
से ही सैकड़ों ऐसे होंगे, जो आख़िरकार इसे ज़ल्द भूल जाएँगे। क्योंकि आलिशान और नयी नयी
इमारतें, नयी
सड़कें, भव्य
और दिव्य निर्माण, यह
सब हो रहा है तब और क्या चाहिए?
टमाटर के दाम बढ़े, नींबू
के बढ़े या प्याज़ के, बैंगन के क़ीमतें आसमाँ की तरफ़ चल पड़े या विकास दर पाताल लोक
की तरफ़ गमन करे, कोई
फ़र्क़ नहीं पड़ता! जीडीपी क्या होती है वही नहीं पता तो फिर वह गिर कर टूट भी जाए तो
क्या! देश
में सब कुछ दिव्य और भव्य हो रहा है, फिर ऐसी चीज़ों की तरफ़ ध्यान देकर ज़माना वक़्त अपना क्यों
मशरूफ़ करे? वैसे भी इंडिगो प्रशासन ने दो बार
माफ़ी तो माँग ही ली है।
कोई सोचना चाहे तब भी सोच नहीं सकता!
क्योंकि मेनस्ट्रीम मीडिया बैठा ही है। इंडिगो की बात सोचने वालों को देश का
मीडिया ही नेहरू और इंडियन एयरलाइंस के बीच विवाद पर ले जाएगा!
वैसे भी इस सरकार के मुख्य नायक मोदीजी जनता की समस्या नहीं सुनते, बल्कि
जनता को अपनी समस्या सुनाने लग जाते हैं!
इंडिगो
आज भारत के एविएशन मार्केट में 60 से 65 परसेंट की ज़बरदस्त हिस्सेदारी रखता है और क़रीब 546 रूट पर अकेले काम करता
है। इस दबदबे ने इसे सिस्टम-सेंट्रिक बना दिया है। पिछले एक दशक से भारत का
बिज़नेस इकोसिस्टम तेज़ी से पॉलिटिकल कल्चर जैसा दिखने लगा है: एक लीडर, एक बड़ा प्लेयर, और बिना सवाल वाली ताक़त।
मोनोपोली, जहाँ ज़िम्मेदारी व
जवाबदेही आदि के लिए जगह नहीं होती।
पिछले
दशक में मौजूदा आर्थिक और रेगुलेटरी माहौल में इस कल्चर को न सिर्फ़ बर्दाश्त किया
गया है, बल्कि इसे अच्छे से
बढ़ावा भी दिया गया है। ऐसे माहौल में जवाबदेही कमज़ोर होती है, रेगुलेटर झुकते हैं, और ख़तरा बढ़ता जाता है।
संकट आने पर इस कल्चर को फैलाने वाली ताक़तें देश में नैरेटिव को बदलना भी जानते
हैं, बदलते भी हैं। भव्य और
दिव्य की सनक में यह और आसान हो जाता है।
यह लिख
रहे हैं तब भी इंडिगो का संकट पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, अब तक इस संकट के लिए
मोदी सरकार ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए हैं, ना ही कोई समाधान दिया है। विनती, चेतावनी, निर्देश, जैसे जुमलों के नाम पर
मोदी सरकार ने कुछ दिन गुज़ारे और फिर देश को वंदे मातरम् की अर्थहिन चर्चा में
झोंक दिया।
(इनसाइड इंडिया, एम
वाला)












