पहलगाम आतंकी हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, भारी युद्धोन्माद
और अचंभित करने वाले सीज़फायर के एलान से लेकर उसके पश्चात खड़े हुए सवालों तक, इन सबके बीच हिमांशी
नरवाल, कर्नल सोफ़िया कुरैशी, विदेश सचिव विक्रम मिस्री तथा उनकी बेटी, को लेकर जिस प्रकार
मोदी, बीजेपी और आरएसएस के उन्मादी समर्थकों ने अपना चरित्र दर्शन कराया है, वह उस खोखले राष्ट्रवाद
और मुखौटे के पीछे के असली चेहरे का स्वयंभू प्रदर्शन तो है ही, साथ ही देशभक्ति और
राष्ट्रवाद के बीच के विशाल अंतर का सबूत भी है।
पहलगाम आतंकी हमले में अपने पति (भारतीय नौसेना के लेफ़्टिनेंट) विनय नरवाल को
सदा के लिए खोने वाली हिमांशी नरवाल के नाम और चेहरे को लेकर उन्मादी समर्थकों ने राष्ट्रवाद
के नाम पर ख़ूब राजनीति की। किंतु जब हिमांशी नरवाल ने अपने पति को न्याय के लिए जाँच
की बात की तथा शांति का समर्थन किया तो यही लोग, जो उनके चेहरे और
नाम का इस्तेमाल कर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंक रहे थे, उसी हिमांशी नरवाल
को ट्रोल करने लगे, निशाना बनाने लगे!
जिस कर्नल सोफ़िया कुरैशी के नाम और चेहरे को आगे रख उन्मादी समर्थक भारत गौरव, भारत स्वाभिमान, भारत की बेटी, राष्ट्रवाद, भारतीय महिलाओं की
राष्ट्र समर्पण की पुरानी परंपरा, आदि का ढिंढोरा पीट रहे थे, वही लोग तब चुप हो गए जब सत्ता से जुड़े मंत्री ने सीज़फायर की घोषणा से मुश्किलों
में घिरने के बाद उन्हें आतंकियों की बहन कह दिया!
विदेश सचिव विक्रम मिस्री मोदी सरकार के निर्देशों पर केंद्र सरकार की बातों को
देश के सामने बिलकुल नपे तुले अंदाज़ में रोज़ाना रख रहे थे और उन्हीं बयानों का इस्तेमाल
कर उन्मादी समर्थक भारत और भारतीय सेना का बखान करते रहे। लेकिन ट्रंप द्वारा किए गए
सीज़फायर के एलान और व्यापार, टैरिफ़, सौदे का कॉकटेल, इसके बाद वही राष्ट्रवादी विक्रम मिस्री को ट्रोल करने लगे! इतना ही नहीं, वे लोग उनकी बेटी तक के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ करते पाए गए।
पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, ऑपरेशन सिंदूर तथा उसके बाद पाकिस्तान के साथ सिमित किंतु तीव्र सैन्य संघर्ष
के दिन, भारी युद्धोन्माद और इस बीच अचंभित करने वाला सीज़फायर का एलान, वह एलान अमेरिकी राष्ट्रपति
के द्वारा अनादरपूर्ण तरीक़े से, इन तमाम घटनाक्रमों के बीच मोदी सत्ता का जवाबदेही और ज़िम्मेदारी से भागना, पड़ोसी नीति- कूटनीति-
अंतरराष्ट्रीय समर्थन जैसे मामलों में सरकार की कमियाँ, भारतीय वायुसेना को
हुए कथित नुक़सान को छिपाने के प्रयास, ट्रंप द्वारा घोषित किए सीज़फायर के साथ टैरिफ़, व्यापार, सौदा, सीज़फायर में अमेरिका
की भूमिका आदि मुद्दों पर बचती नज़र आती मोदी सरकार।
इन सबसे अपने प्रिय पात्र, प्रिय संगठन या प्रिय संस्था को बचाने के लिए हिमांशी नरवाल, कर्नल सोफ़िया कुरैशी, विदेश सचिव विक्रम
मिस्री और उनकी बेटी को ट्रोल करना कहाँ की देशभक्ति थी? जिन चेहरों और जिन
नामों से भारत गौरव, भारत स्वाभिमान के गुण गाए जाते थे, चंद दिनों में उन्हीं चेहरों और उन्हीं नामों को निशाना बनाना, यह दरअसल देशभक्ति
और राष्ट्रवाद के बीच के विशाल अंतर का दर्शन था।
इन घटनाओं ने 2016 में सैनिक की बेटी
गुरमेहर कौर वाले क़िस्से को मस्तिष्क में फिर ताज़ा किया। ऐसा नहीं है कि इसके बाद
2025 तक ऐसे मामले नहीं हुए थे। दरअसल अनेकों बार हुए। इन घटनाओं ने भरोसा दिलाया है
कि राष्ट्रवाद यक़ीनन मानसिक दिवालियापन की निशानी है, जैसा कि सरदार वल्लभभाई
पटेल कह चुके हैं। राष्ट्रवाद निसंदेह नशे की शीशी है, जैसा कि महान विचारक
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था। देशभक्ति और राष्ट्रवाद में यही तो अंतर है। देशभक्ति
नामक समझ देश को एकजुट करती है, राष्ट्रवाद नामक सनक एक देश में किसी दूसरे देश का सृजन कर देती है।
तमाम
मामलों का पूर्वार्ध - बड़ा आतंकी हमला, हमले
के बाद जवाबदेही और ज़िम्मेदारी का मुद्दा और अनेक सवाल
22 अप्रैल 2025 के दिन कश्मीर घाटी के मशहूर पर्यटन स्थल पहलगाम बाज़ार से क़रीब छह किलोमीटर
दूर बेसरन धाटी में पर्यटकों के ऊपर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ। 26 लोग मारे गए, जिनमें 25 भारतीय नागरिक थे
और 1 नेपाली नागरिक। इनमें से कईं पर्यटकों को उनके घर के सदस्यों के सामने सिर में
गोली दाग कर मार दिया गया। बीते तीन दशक में जम्मू-कश्मीर में यह पहला इतना बड़ा हमला
था, जिसमें पर्यटकों को
निशाना बनाया गया हो।
इस प्रकार के आतंकवादी
हमले के बाद जवाबदेही और ज़िम्मेदारी को लेकर सवाल उठे। सुरक्षा में चूक, विफलता, इसका दायित्व जैसे
सवालों के बीच केंद्र सरकार फँसने लगी। पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया
कि वहाँ न कोई सैनिक था, न कोई पुलिस!
आतंकी हमले में अपने
पति शुभम द्विवेदी को खोने वाली ऐशान्या ने कहा - हमारी सरकार ने हमें उस जगह (पहलगाम)
पर अनाथ छोड़ दिया था, हम जिनके भरोसे वहाँ घूम रहे थे, वो उस वक़्त वहाँ मौजूद ही नहीं थे। हमले के दौरान इनकी आँखों के सामने ही इनके पति की हत्या कर दी गई थी। इस आतंकी
हमले में जो लोग मारे गए उनके परिजन कहने लगे - सरकार कह रही थी कि अब कश्मीर सुरक्षित
है, हमें पता नहीं था कि वहाँ हमारी दुनिया ख़त्म हो जाएगी।
पत्रकार और कश्मीर
मामलों की जानकार अनुराधा भसीन ने बीबीसी हिंदी के समक्ष कहा - सुरक्षा बलों को वहाँ
पहुँचने में समय लगा। लेकिन कुछ समय बाद ही उनके पास हमलावरों के स्केच थे! वे इस नतीजे पर कैसे पहुँचे? ये जाँच बहुत विश्वसनीय नहीं लगती।
रिपोर्ट किया गया कि
इतने मशहूर पर्यटन स्थल पर न कोई सीसीटीवी कैमरे थे, न पुलिस थी और न कोई सैनिक! ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी को लेकर बातें होने लगीं। सवाल उठे कि आतंकवाद
ख़त्म होने की जगह उसका दायरा जम्मू के उन इलाक़ों तक कैसे पहुँचा जहाँ बीते बीस वर्षों
से शांति थी? नाकामी की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही का सवाल उठ खड़ा हुआ।
हिमांशी
नरवाल, जिनके
चेहरे और नाम पर राष्ट्रभक्ति का भावनात्मक वातावरण तैयार किया जा रहा था, उन्हीं को चंद दिनों बाद ट्रोल क्यों किया जाने
लगा?
इसका ठोस और स्पष्ट
उत्तर एक ही है – इसलिए, क्योंकि देश की इस बेटी ने एक ऐसी माँग की, जिससे सत्ता बचना
चाहती थी और एक ऐसी अपील देश से की, जहाँ सत्ता समाज को जाने नहीं देना चाहती थी।
पहलगाम आतंकी हमले
में भारतीय नौसेना के लेफ़्टिनेंट विनय करवाल मारे गए थे। हिमांशी नरवाल उनकी पत्नी
हैं। दोनों की शादी को महज़ छह दिन ही हुए थे। वे यहाँ घूमने आए थे। उनके पति की हत्या
उनकी आँखों के सामने की गई थी।
अपने पति के मृत शरीर
के पास रोती-मदद माँगती उनकी तस्वीर देश भर में वायरल हुई। वह राष्ट्रीय शोक का प्रतीक
बन गईं।
देश का नागरिक
समाज मन और हृदय से दुखी था। राजनीति कभी भावुक नहीं होती, बल्कि वो भावुकता
का सियासी इस्तेमाल ज़रूर करती है। सरकार और प्रशासन
के ऊपर सवाल उठ रहे थे। राजनीति सदैव निष्ठुर होती है और शायद उसने इस भावुक क़िस्से
की पीड़िता के चेहरे और नाम का इस्तेमाल अपनी तरफ़ आ रहे सवालों से बचने के लिए किया।
फिर तो हिमांशी नरवाल
की कहानी, उनका चेहरा, उनका नाम, आदि को लेकर मुठ्ठी में कैद मीडिया और सोशल मीडिया आर्मी के सहारे राष्ट्रभक्ति
का माहौल तैयार किया जाने लगा। सवालों से भागने वाली राजनीति ने इन कहानियों के ज़रिए
ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से छिटकने की पगडंडी देख ली।
पाकिस्तान, आतंकवाद, बदला, सेना, गौरव, स्वाभिमान, आदि का
कॉकटेल बाहर निकला और हिमांशी नरवाल की कहानी के साथ राष्ट्रवाद का घूँट पिलाया जाने
लगा। हिमांशी नरवाल को देश के बेटी, सेना का गौरव, आतंक के ख़िलाफ़ भारत का न टूटने वाला जज़्बा, के रूप में पेश किया
गया।
उधर शायद इसी उन्मादी
समुदाय के लोग अपने इलाक़े में कश्मीर के छात्रों और दुकानदारों से मारपीट करने लगे।
मारपीट के वीडियो सोशल मीडिया पर फैलने लगे। कभी अपने शहर के छोटे से हवालदार को
तो छोड़िए, किसी सरकारी कहचरी के चपरासी की आँखों में आँखें डालकर एक सवाल तक पूछने की हिम्मत
जिनमें नहीं होती वैसे लोग पहलगाम आतंकी हमले के बाद अपने अपने इलाक़े में निर्दोष
कश्मीरी छात्रों, कश्मीरी दुकानदारों, कश्मीरी सेल्समैन को मारने पीटने लगे!
कहीं किसी के स्टॉल
तोड़े जाने लगे, कहीं किसी को बीच बाज़ार पीटा जाने लगा, कहीं छात्रों को मारा गया। इनमें से किसी ने आतंकी हमला नहीं किया था, ना उनके मददगार थे, ना इन पर दूर दूर
तक ऐसा कोई इल्ज़ाम था। जिनके भी साथ ये उन्मादी लोग राष्ट्रवाद के नाम पर मारपीट कर
रहे थे, वे सारे बेकसूर थे। जिन राष्ट्रवादियों को अपनी सरकार से सवाल पूछने चाहिए
थे, वे निर्दोष लोगों को पीट रहे थे।
इन घटनाओं के बाद हिमांशी नरवाल ने लोगों से बेकसूरों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं
करने की अपील करते हुए कहा, "हम शांति चाहते हैं, सिर्फ़ शांति।" उन्होंने कहा, "मैं किसी के प्रति
नफ़रत नहीं चाहती। यही हो रहा है। हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के
ख़िलाफ़ जाएँ। हम ऐसा नहीं चाहते। हम शांति चाहते हैं, सिर्फ़ शांति।"
1 मई को पत्रकारों के सामने ये बात हिमांशी नरवाल ने कही थी। उन्होंने कहा, "बेशक, हम न्याय चाहते हैं।
जिन्होंने ग़लत किया है उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए।" कुछ ही दिन पहले आतंकी हमले में मारे गए उनके पति और भारतीय नौ सेना के लेफ़्टिनेंट
विनय नरवाल का इस दिन 27वाँ जन्मदिन था। और उनकी पत्नी हिमांशी ने इस दिन न्याय, न्याय के लिए जाँच
और शांति की अपील की।
हिमांशी नरवाल ने वो माँग कर दी थी, वो बात कह दी थी, जिससे सरकार दूर रहना चाहती थी। बात ज़िम्मेदारी, जवाबदेही और जाँच
की न हो इसीलिए शायद राजनीति ने उनके नाम, उनकी कहानी का भावुक इस्तेमाल किया था। लेकिन अब उसी चेहरे ने जाँच और न्याय की
माँग की। सवालों को दफ़न करने के लिए ही शायद राजनीति ने राष्ट्रवाद का सहारा लिया
था और हिंसा पर चुप्पी साधी थी। किंतु हिमांशी ने शांति की बात की।
अब तक उनके नाम और उनकी कहानी के सहारे राष्ट्रवाद की राजनीति करने वाले लोग तुरंत
अपने असली चेहरे के साथ सामने आ गए। राष्ट्रवाद का घिनौना
चेहरा सामने आ गया। देशभक्ति की जगह राष्ट्रवाद का पागलपन और सनक उभर आई।
हिमांशी नरवाल के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर उन्हें लगातार ट्रोल किया गया, उन पर अभद्र टिप्पणियाँ
की गई। यहाँ तक कि हिंसा की धमकियाँ भी दी गईं। उन पर 'जिहादियों को संरक्षण' देने के आरोप लगाए
जाने लगे। उनके अतीत, निजी ज़िंदगी, को खँगाला गया और काल्पनिक बातें परोसी जाने लगीं। जिसे देश की बेटी बताते
लोग थकते नहीं थे, अब उनके पहनावे पर टिप्पणियाँ की जाने लगीं।
कुछ घंटे पहले जिस हिमांशी और उनके पति विनय की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल थी, जहाँ लोग उन्हें श्रद्धांजलि
दे रहे थे और इंसाफ़ की माँग कर रहे थे, वही लोग हिमांशी के ख़िलाफ़ भड़काऊ भाषण देने लगे और उनकी देशभक्ति तक पर सवाल
उठाने लगे! भद्दी बातें कही गईं।
उन्हें जेएनयू से जोड़ा
जाने लगा! उग्र कश्मीरियों के साथ उनका उठना बैठना
था यह झूठ लिखकर उन्हें पाकिस्तान परस्त तक बताया गया! हिमांशी को योजनाबद्ध तरीक़े से ट्रोल किया जाने लगा, सार्वजनिक रूप से
अभद्रता की जाने लगी। आतंकियों के साथ उनकी मिली भगत, उन्हें अपने पति की
फ़िक्र नहीं थी, इत्यादि बातें परोसी गईं!
यह कमाल का राष्ट्रवाद
था! जिसके लिए अब तक वे न्याय की माँग कर रहे थे, उसने ख़ुद न्याय माँगा
तो राष्ट्रवाद के पीछे छिपा पागलपन बाहर आ गया। दरअसल जो नैरेटिव बनाया जा रहा था, हिमांशी ने उसे खारिज़ करते हुए न्याय, जाँच और शांति की अपील की थी।
कर्नल
सोफ़िया कुरैशी, जिन्हें
भारत का गौरव, भारत
का स्वाभिमान, भारत
की बेटी, भारतीय
एकता की प्रतिमा बताया गया उसी पर सत्ता पक्ष के मंत्री ने गटर की भाषा इस्तेमाल कर
टिप्पणी की
कर्नल सोफ़िया कुरैशी।
वह सैन्य अधिकारी, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद भारत सरकार ने देश को सैन्य कार्रवाई की जानकारी
प्रदान करने की ज़िम्मेदारी दी।
वह भारतीय सेना के
सिग्नल कोर की एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। 1999 में सेना में शामिल हुईं कुरैशी ने 2018 में पुणे में आसियान देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व
किया था। उनका परिवार तीन पीढ़ियों से सेना में सेवा दे रहा है, और उनके पति भी मेजर
हैं।
पहलगाम आतंकी हमले
में आतंकियों ने महिलाओं के सामने उनके पतियों को गोली मार दी थी। प्रतिक्रिया देते
हुए भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और उस सैन्य प्रतिक्रिया से देश को अवगत कराने
के लिए एक महिला सैन्य अधिकारी, कर्नल सोफ़िया कुरैशी, को ज़िम्मेदारी दी। यह भावनात्मक पहलू
था, साथ ही शानदार भी।
उपरांत वह लघुमती समुदाय से थी, इस तरीक़े से यह भारतीय एकता का सूचक भी बना।
फिर तो कर्नल सोफ़िया
कुरैशी के नाम और उनके चेहरे के सहारे मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया, दोनों गौरवान्वित
मोड में आ गए। भारत का गौरव, भारत का स्वाभिमान, भारत की बेटी, भारत की एकता, आदि गुणों को अभिमान के साथ पेश किया गया और इसके ज़रिए दुश्मन और दुनिया को संदेश
देने का दावा किया जाने लगा।
देश भर में तमाम माता-पिता
और तमाम भाई, अपनी बेटियों और बहनों में कर्नल सोफ़िया कुरैशी को देखने लगे। भारतीय महिलाएँ, राष्ट्र के प्रति
उनके समपर्ण और त्याग के गौरवपूर्ण इतिहास की कहानियाँ, आदि बातें समाज को
अभिभूत करने लगीं।
कर्नल सोफ़िया कुरैशी अपनी तमाम प्रेस वार्ताओं में बेहद शानदार तरीक़े से भारतीय
सेना का पक्ष रखती रहीं। सबसे दिलचस्प यह कि उन्होंने प्रभावी ढंग से भारतीय सेना और
उसकी धर्मनिरपेक्षता को दुनिया के सामने पेश किया। उनका यह तरीक़ा पाकिस्तान के दुष्प्रचार
के विरुद्ध कारगर हथियार साबित हुआ।
इस बीच जैसे ही भारी
युद्धोन्माद के समय अचानक किसी तीसरे देश, अमेरिका से यह ख़बर आई कि भारत ने पाकिस्तान के साथ सीज़फायर पर समझोता किया है, तो पूरा माहौल बदल
गया। अचानक सीज़फायर, और इसकी उद्घोषणा तीसरे देश से होना, व्यापार, डील, सौदा, टैरिफ़ और सीज़फायर का डोनाल्ड ट्रंप का कॉकटेल, इन चीज़ों ने मोदी
सत्ता को मुश्किल परिस्थितियों में डाल दिया।
उसके बाद मध्य प्रदेश
बीजेपी सरकार के परिवहन और स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने भारत के गौरव का सबसे बड़ा
प्रतीक बन चुकी कर्नल सोफ़िया कुरैशी पर बेहद अपमानजक और ग़ैरज़िम्मेदार टिप्पणी कर
दी।
13 मई 2025 को इंदौर के पास महू में एक सार्वजनिक सभा में मंत्री विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर
का ज़िक्र करते हुए कहा, "जिन कटे-फटे लोगों ने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े, मोदीजी ने उनकी बहन
को भेजकर उनकी ऐसी-तैसी करवा दी।" बीजेपी के मंत्री ने स्पष्ट रूप से कर्नल सोफ़िया
को 'आतंकियों की बहन' कहा, और उन्हें प्रेस वार्ता में भेजना मोदीजी की विजयी नीति बताया!
जिस कर्नल सोफ़िया
कुरैशी को अब तक भारत की एकता, भारत की अखंडता, भारत का गौरव, भारतीय सेना का अभिमान, भारतीय महिलाओं का राष्ट्र के नाम समपर्ण का इतिहास, आदि का प्रतीक बताया
जा रहा था, उन पर ऐसी टिप्पणी स्वयं सत्ता के मंत्री ने कर दी! और फिर भी वे राष्ट्रवादी चुप रहे, जो अब तक उबल रहे थे! इतना ही नहीं, स्वयं पीएम मोदी ने भी अपना मुँह नहीं खोला!
विजय शाह नौ बार विधायक
और लंबे समय से मंत्री रहे हैं। उनकी टिप्पणी न केवल कर्नल सोफ़िया का घोर अपमान
था, बल्कि भारतीय सेना और उसकी सेकुलर परंपराओं पर सीधा हमला था। जिस चेहरे को एकजुट समाज के रूप में पेश किया जा रहा था, अब उसीको ये लोग नफ़रत, समाज को बाँटना और
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए इस्तेमाल करने लगे!
जिस महिला सैन्य अधिकारी ने भारतीय सेना और उसकी परंपरा के प्रतिनिधि के रूप में
दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखा, जिसे भारत के गौरव, एकता, अखंडता, स्वाभिमान, महिलाओं के समर्पण के इतिहास, से जोड़ कर देखा गया, उन पर अपने ही मंत्री की ऐसी घटिया टिप्पणी के बाद भी पीएम मोदी के मुँह पर ताला
लगा रहा! वे राष्ट्रवादी, जो अब तक पॉपकॉर्न
की तरह फट रहे थे, वे भी चुप रहे!
जो राष्ट्रवादी नहीं
थे बल्कि देशभक्त थे उन्होंने इस टिप्पणी का ज़ोरदार विरोध किया। सदैव नेता लोग करते
हैं वैसे मंत्री ने बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है वाली सड़क नापी और माफ़ी
भी माँग ली। मंत्री के उस बयान और फिर इस तरीक़े को तमाम बुद्धिजीवी और तटस्थ समाज, निष्पक्ष पत्रकार
आलम, ने स्वीकार नहीं किया और उन पर कार्रवाई की माँग की।
न किसी राष्ट्रवादी
ने विजय शाह का विरोध किया, न किसी राष्ट्रवादी ने विजय शाह के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध में साथ दिया। राज्य
सरकार और केंद्र सरकार, सभी जगह निर्लज्जता भरी शांति थी!
आख़िरकार मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए मंत्री
पर एफ़आईआर करने का आदेश दिया, साथ ही अदालत की निगराने में जाँच का निर्देश भी। हाईकोर्ट ने कहा, "यह गटर की भाषा थी।
सेना और राष्ट्रीय एकता के लिए ख़तरनाक।"
मंत्री ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे डाली! अब तक ना मध्य प्रदेश सरकार से कोई बोला था, ना केंद्र की मोदी सरकार से कोई बोला! हर राष्ट्रवादी ने अपने मुँह पर ताला लगा दिया! पीएम मोदी से लेकर इनके बीजेपी-आरएसएस के समर्थक कहीं जाकर छिप गए।
सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री को उनके घटिया बयान के लिए फटकार लगाई और हाईकोर्ट के
आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया। फिर मजबूरी में एमपी
पुलिस को मंत्री के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ करनी पड़ी।
दर्ज़ की गई एफ़आईआर को देख हाईकोर्ट भड़क गया। अदालत ने टिप्पणी की कि, "एफ़आईआर को इस तरह से तैयार किया गया है कि इसे रद्द किया जा सके। एफ़आईआर में
कुछ भी नहीं है। क्या पुलिस ने एफ़आईआर पढ़ी है? इसमें अपराध के तत्व कहाँ है?"
जिस चेहरे को देश का गौरव, देश का स्वाभिमान, देश की परंपरा, देश की एकता और अखंडता से जोड़ा जा रहा था, उस महिला सैन्य अधिकारी
को सत्ता से जुड़े मंत्री 'आतंकियों की बहन' क़रार देते हैं, और तमाम राष्ट्रवादी, पीएम मोदी, मोहन भागवत से लेकर तमाम समर्थक, चुप रहते हैं! राष्ट्रवाद का असली
दर्शन। असली चेहरे और असली चरित्र का प्रदर्शन।
देश भर में इसका विरोध
होने के बाद भी बीजेपी-आरएसएस का कोई भी प्रतिनिधि, नेता, कोई भी उस घटिया बयान के लिए न मंत्री की निंदा करता है, न उनके विरुद्ध कार्रवाई
करता दिखता है! इतना ही नहीं, अदालत आदेश देती है
तो अपनी मशीनरी (पुलिस सिस्टम) से ऐसी एफ़आईआर करता है, जिसे देख अदालत भड़क
जाती है।
इन्हीं दिनों बीजेपी-आरएसएस के लोग ऑपरेशन सिंदूर के जश्न के नाम पर देश भर में
तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे, और इधर अब तक उनके जश्न का मुख्य चेहरा बनी रही कर्नल सोफ़िया कुरैशी को आतंकियों
की बहन बताया जा रहा था और तमाम राष्ट्रवादी कहीं छिप गए थे!
आसानी से समझा जा सकता
है कि यदि ऐसी टिप्पणी कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी, जैसे दलों के किसी टुच्चे कार्यकर्ता तक ने की होती तो ये राष्ट्रवादी मेंढक देश
भर में आंदोलन कर चुके होते। यहाँ घटिया बयान उनके अपने मंत्री स्तर के पुराने राजनेता
ने दिया था, मेंढक तो ठीक हैं, उनके नॉन बायोलॉजिकल पीएम और आरएसएस के पूजनीय तक चुप थे!
हाईकोर्ट और सुप्रीम
कोर्ट के सख़्त रवैये के बाद मजबूरी में मंत्री के विरुद्ध बीजेपी ने थोड़ी बहुत कार्रवाई
की। देश भर में विवाद बढ़ता देख थोड़ी बहुत खानापूर्ति हुई। जिस पर तुरंत सख़्त
फ़ैसला लेना चाहिए था, उस पर महीनों बाद भी राष्ट्रवादियों में चुप्पी है।
विदेश
सचिव विक्रम मिस्री, जिन्होंने
दिनों तक केंद्र सरकार की बातों को नपे तुले अंदाज़ में देश और दुनिया के सामने रखा, उन्हें और उनकी बेटी को सीज़फायर के बाद ट्रोल
क्यों किया गया?
इसका उत्तर भी बिलकुल
सीधा है। इसलिए, क्योंकि अब तक उनका राजनीतिक इस्तेमाल कर प्रिय चेहरे और प्रिय सत्ता को बचाया
जा रहा था, लेकिन अब वह चेहरा और वह सत्ता मुश्किल में थी तो ठीकरा किसी पर तो फोड़ना ही
था।
भारत के विदेश सचिव
विक्रम मिस्री। वे पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर तक ही नहीं, बल्कि उसके बाद पाकिस्तान
के साथ चले तीव्र सैन्य संघर्ष के समय भी और उसके बाद भी भारत सरकार का पक्ष रखते देखे
गए।
बिलकुल नपे तुले अंदाज़ में वे रोज़ाना केंद्र सरकार की बातों को, सरकार के पक्ष को
देश और दुनिया के सामने रखते रहे। इस दौरान इन्होंने भारतीय सेना की गौरव गाथा, पाकिस्तान के दुष्प्रचार, आतंकवाद, कूटनीति, तमाम संवेदनशील मामलों
में भारत और भारत सरकार का पक्ष पेश किया।
उन्हीं के बयानों और टिप्पणियों का इस्तेमाल कर दिनों या सप्ताहों तक मोदी, बीजेपी और आरएसएस के समर्थक भारत और भारतीय सेना का बखान करते रहे। यूँ
कहे कि इसी बहाने अपने प्रिय चेहरे, प्रिय सत्ता या प्रिय संगठन की पीठ थपथपाते रहे।
उपरोक्त दोनों मामले, हिमांशी नरवाल और
कर्नल सोफ़िया कुरैशी, की तरह यहाँ भी मामला पूरी तरह तब बदला जब भारी युद्धोन्माद के बीच अचानक अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीज़फायर की घोषणा कर दी, साथ ही व्यापार, सौदा, टैरिफ़ के कॉकटेल
के साथ अपना दावा किया।
इस घटना ने मोदी सत्ता
ही नहीं, बल्कि बीजेपी-आरएसएस, दोनों को हास्यास्पद स्थिति में डाल दिया। इनके लिए मुश्किल परिस्थितियाँ सामने
आ गईं। भारी युद्धोन्माद के बीच अचानक सीज़फायर, उसकी घोषणा किसी तीसरे
देश के द्वारा, उसमें व्यापार और सौदे का मिश्रण। सत्ता और सत्ता समर्थकों के सामने काफी मुश्किल
परिस्थिति थी।
और उन्होंने इसका हल
वही ढूँढा, जो हिमांशी नरवाल और कर्नल सोफ़िया कुरैशी के मामले में ढूँढा था! अब तक विक्रम मिस्री के दम पर अपना गुज़ारा करने वाले समर्थकों ने विक्रम मिस्री
को ही निशाने पर ले लिया और सीज़फायर के अपराधी के रूप में उन्हें प्रचारित किया जाने
लगा!
यह ग़ज़ब राष्ट्रवाद
था! ग़ज़ब समझ थी! जिन्हें पीएम नरेंद्र मोदी या मोहन भागवत से सवाल पूछने चाहिए थे, वे विक्रम मिस्री
पर टूट पड़े! ये लोग उन्हें 'कमजोर नौकरशाह' और 'पाकिस्तान से युद्धविराम की भीख माँगने वाले व्यक्ति' कहने लगे! जैसे कि युद्धविराम
की सहमति विक्रम मिस्री ने दी हो!
इतना ही नहीं, ये लोग विक्रम
मिस्री की बेटी तक को सोशल मीडिया पर ट्रोल करने लगे! जबकि उनकी बेटी का इस मामले में दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था। महिला सम्मान
का यह राष्ट्रवादी ढोंग न जाने कितनी बार इन्होंने प्रदर्शित किया होगा।
हर ट्रोलिंग मामले
में होता है वैसा पैटर्न यहाँ भी दिखाई दिया। विक्रम मिस्री के पुराने पोस्ट ढूँढे
जाने लगे, उनकी निजी ज़िंदगी को खँगाला जाने लगा, उनके परिजन को घसीटा जाने लगा। यह ट्रोलिंग केवल नीतिगत आलोचना तक सीमित नहीं
रही, बल्कि उनकी बेटी तक को अभद्र और स्त्रीविरोधी टिप्पणियों का निशाना बनाया गया!
सीज़फायर के लिए विदेश सचिव विक्रम मिस्री को ज़िम्मेदार ठहराने का तुक क्या था? उनकी बेटी के साथ
ऑनलाइन दुर्व्यवहार करने को घिनौने काम की ज़रूरत क्या थी?
इन्हें इन राष्ट्रवादियों ने इस कदर परेशान किया कि उन्हें अपना सोशल मीडिया अकाउंट
लॉक करना पड़ गया! सोचिए, ये लोग भारत के विदेश
सचिव को किस स्थिति में ले आए, कि उन्हें अपना अकाउंट लॉक करना पड़ा!
इस मामले में भी आख़िरकार
उन बुद्धिजीवियों और निष्पक्ष समाज और पत्रकारों को मैदान में आना पड़ा। आम लोगों, स्वतंत्र पत्रकारों, चिंतकों, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों
के संगठनों ने विक्रम मिस्री और उनकी बेटी के ख़िलाफ़ चल रही घिनौनी ट्रोलिंग पर बेहद
सख़्त नाराज़गी जताई और इसे तत्काल रोकने की माँग की।
हर उस मामले की तरह
यहाँ भी पीएम मोदी से लेकर मोहन भागवत तक, सरकार से लेकर बीजेपी-आरएसएस में, चुप्पी ही थी!
बीजेपी
के दो नेताओं के बयान, एक
ने अपनों को गँवाने वाले पीड़िताओं के जख़्मों पर नमक डाला, दूसरे ने देश की सेना का अपमान किया
पहलगाम आतंकी हमले
के तुरंत बाद बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने कह दिया था, "हमले में अपने पतियों
को खोने वाली महिलाओं में वीरांगना का भाव और जोश नहीं था, जिसके कारण 26 लोग आतंकियों की गोली
का शिकार बने। यदि ये महिलाएँ आतंकियों का मुकाबला करतीं और प्रधानमंत्री की योजना
के तहत प्रशिक्षण लेतीं, तो इतनी मौतें नहीं होतीं।"
सीज़फायर के क़रीब
एक सप्ताह बाद मध्य प्रदेश के डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा ने कहा, "प्रधानमंत्री का शुक्रिया
अदा करना चाहिए। पूरा देश, देश की वो सेना, वे सैनिक... उनके चरणों में नतमस्तक हैं।"
इन्हीं दिनों अनेक
ऐसे मामले हुए, जिसमें किसी नागरिक ने पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, सीज़फायर को लेकर सरकार की आलोचना की तो सरकारी विभाग ने उन नागरिकों के ख़िलाफ़
एफ़आईआर कर दी, पकड़ कर जेल भेज दिया! प्रिंट मीडिया और
स्वतंत्र यू ट्यूब न्यूज़ चैनल या पत्रकारों पर सरकार की आलोचना के चलते क़ानूनी सिकंजा
भी कसा गया था इन दिनों!
लेकिन उपरोक्त तमाम
मामलों में हाथी के दाँत वैसे नहीं थे, जैसे सरकार से सवाल पूछने पर या उनकी आलोचना करने पर देखे गए थे।
दरअसल, जो लोग किसानों और पत्रकार की सरेआम हत्या करने वाले अपने मंत्री के ख़ूनी बेटे
के साथ निर्लज्जता के साथ खड़े दिखाई दिए थे, जो दुनिया के सबसे बड़े यौन शोषण स्कैम के मुख्य और बाद में
भगोड़ा बने अपराधी को जिताने के लिए चुनाव प्रचार कर चुके थे, जो देश के लिए मेडल
जीत लाने वाली देश की बेटियों को सड़क पर घसीट कर अपने आरोपी मंत्री का बचाव करते देखे
गए थे, जो गुरमेहर कौर जैसी बेटी को पाकिस्तानी कह चुके थे, वे हिमांशी नरवाल, कर्नल सोफ़िया कुरैशी
या विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ क्यों खड़े रहते?
दरअसल, अब स्थितियाँ यह हैं कि इन कथित राष्ट्रवादियों में शर्म या लिहाज़ नाम का कोई
गुण बचा ही नहीं है। समझ तो वैसे भी राष्ट्रवाद में नहीं होती, वहाँ तो सनक ही होती
है। महिला, माता, बहन, देश की बेटी जैसी सांस्कृतिक बातें करने वाले लोग दरअसल कितने घटिया क़िस्म के
और इंसानियत से बाहरी समुदाय के होते हैं, यह उसका दर्शन है।
राष्ट्रवाद होता ही ऐसा। यूँ ही सरदार पटेल ने उसे दिवालियापन की निशानी नहीं कहा
होगा। यूँ ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उसे नशे की शशी की रूप में नहीं देखा होगा। देशभक्ति
और राष्ट्रवाद में यही तो अंतर है। देशभक्ति नामक विचार देश को एकजुट करता है, राष्ट्रवाद नाम की
सनक एक देश में किसी दूसरे देश का सृजन कर देती है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)