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Vote Chori: वोट चोरी और चुनाव चुराने के संगीन आरोप, आयोग और सत्ता का अड़ियल रवैया

 
7 अगस्त 2025 का दिन। इस दिन भारत के चुनाव आयोग और भारत के प्रधानमंत्री, दोनों पर स्वतंत्र भारत के इतिहास के अब तक के सबसे संगीन आरोप लगे। "बीजेपी और मोदी सरकार ने चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट चोरी की है, चुनाव चुराए हैं" - भारत के नेता प्रतिप्रक्ष राहुल गांधी ने बाक़ायदा तमाम डेटा, दस्तावेज़, आँकड़े और तथ्यों के साथ इस दिन एक प्रेस वार्ता आयोजित कर एक विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया और यह दावा किया।
 
प्रेस वार्ता में कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा सीट का डेटा सामने रखा गया। कथित रूप से यह डेटा केंद्रीय चुनाव आयोग ने ही उन्हें दिया था, जिसका छह महीने तक विस्तृत विश्लेषण कर वोट चोरी का खेल पकड़ने का दावा राहुल गांधी ने किया। आरोप लगाया गया कि यहाँ 1 लाख से अधिक वोटों की वोट चोरी हुई।
 
केंद्रीय चुनाव आयोग का रवैया इन आरोपों को हवा दे रहा है। आयोग बेहतर ढंग से इस स्थिति से निपट सकता था, जो नहीं हो पाया है। किसी पर हमला करने की जगह आयोग विपक्ष की शिकायतों को सुन उसे हल कर सकता था। हो सकता है कि वोट चोरी जैसा कुछ न हो, किंतु वोटर लीस्ट में ग़लती, धाँधली या कमियों को सुधारने की कोशिश आयोग कर सकता था।
 
नेता प्रतिपक्ष के दावों के मुताबिक़,
·      फ़र्ज़ी मतदाता, अवैध पते, विचित्र और निसंदेह ग़लत नाम, एक ही पते पर सैकड़ों मतदाता, समेत कई खुलाए हुए
·         आयोग के दस्तावेज़ की जाँच पड़ताल के बाद पता चला है कि यहाँ 1,00,250 वोटों की चोरी की गई
·         चुनाव आयोग ने उन्हें यह डेटा लंबी मिन्नतों के बाद दिया, जबकि वह तुरंत प्रदान कर देना चाहिए था
·      आयोग से कई सीटों का डेटा माँगा गया था, जो कि आयोग के पास इलेक्ट्रॉनिक रूप में होता है, किंतु आयोग ने महज़ एक सीट का डेटा दिया
·         उपरांत आयोग ने वह डेटा इलेक्ट्रॉनिक रूप में नहीं बल्कि प्रिंट करके हार्ड कॉपी संस्करण दिया, ताकि जाँच पड़ताल मुश्किल और लंबी हो जाए
·      आयोग द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों के ऊपर लगभग छह महीने तक टीम लगी रही, पूरा विश्लेषण किया गया, संदेह और अंसतुलन पकड़ा गया, उसकी जाँच की गई
·        दावा किया गया कि इस प्रकार की धाँधली अन्य सीटों पर हुई थी इसकी पूरी संभावना है
·        आयोग से फिर गुहार लगाई कि उन्हें अन्य सीटों के दस्तावेज़ इलेक्ट्रॉनिक रूप में दिए जाए
·        दावा किया गया कि बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनावों में 20 से 25 सीटें ऐसी धाँधली कर जीती है
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस दिन वोट चोरी को लेकर सनसनीखेज़ दावें किए। उन्होंने केंद्रीय चुनाव आयोग के ही दस्तावेज़ के भीतर लिखे गए डेटा, आँकड़े और तथ्यों को देश के सामने रख दावा किया कि किस तरह हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में वोटों की चोरी की गई थी। उन्होंने इसके लिए भारत के चुनाव आयोग और बीजेपी के नेक्सस (गठजोड़) को ज़िम्मेदार ठहराया।
 
चुनाव आयोग के कथित दस्तावेज़ों को एक विस्तृत डिजिटल प्रेजेंटेशन के साथ दिखाते हुए आरोप लगाया गया कि मतदाता सूचियों में फ़र्ज़ी लोगों के नाम जोड़े जा रहे हैं। इस प्रेस वार्ता में कर्नाटक के बेंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का डेटा दिखाकर यह दावा किया गया। आरोप लगाया गया कि यहाँ 1 लाख से अधिक वोटों की वोट चोरी की गई थी।

 
2024 के लोकसभा चुनावों में बैंगलोर सेंट्रल सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार मंसूर अली ख़ान और बीजेपी उम्मीदवार पीसी मोहन के बीच काँटे की टक्कर देखने को मिली थी। कांग्रेस उम्मीदवार ने ज़्यादातर मतगणना में बढ़त बनाए रखी, लेकिन अंतिम नतीजों में भाजपा के उम्मीदवार को 32,707 वोटों के मामूली अंतर से जीत मिली।
 
राहुल गांधी ने कहा, "कांग्रेस द्वारा की गई एक आंतरिक जाँच में कर्नाटक के महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र में 1 लाख से ज़्यादा नक़ली मतदाता, अवैध पते और एक पते पर बड़ी संख्या में मतदाता पाए गए।"
 
राहुल गांधी का वोट चोरी का सनसनीखेज़ दावा, चुनाव आयोग के ही दस्तावेज़ों की जाँच पड़ताल का डिजिटल प्रेजेंटेशन, नक़ली मतदाता- अवास्तविक नाम- एक पते पर सैकड़ों मतदाता समेत कई खुलासे, महादेवपुरा में 1 लाख से अधिक वोटों की वोट चोरी का आरोप
कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने संसद के बाहर बोलते हुए कहा था कि हमने एक लोकसभा सीट की मतदाता सूची का अध्ययन किया और हमारे पास वोट चोरी का 100 प्रतिशत सबूत है। उन्होंने कहा था कि हम एटम बम फोड़ने जा रहे हैं।
 
7 अगस्त 2025 के दिन राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता आयोजित की। अपनी प्रेस वार्ता में उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा महादेवपुरा विधानसभा सीट के दिए गए डेटा की 6 महीने तक जाँच पड़ताल का दावा किया और खुलासा किया कि महादेवपुरा में 1,00,250 वोटों की चोरी हुई थी।
 
महादेवपुरा बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें सर्वज्ञनगर, सीवी रमन नगर, शिवाजीनगर, शांति नगर, गांधी नगर, राजाजी नगर, चामराजपेट और महादेवपुरा जैसे विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
 

राहुल गांधी ने कहा, "हमारे आंतरिक आकलन के अनुसार हमें कर्नाटक में 16 सीटें जीतनी थीं, लेकिन हम केवल 9 सीटें जीत पाए। हमने 7 अप्रत्याशित हार पर ध्यान केंद्रित किया और एक लोकसभा सीट पर गहराई से जाँच की। हमारी टीम का महादेवपुरा पर ध्यान गया तो हम हैरान रह गए।"
 
अपनी प्रेस वार्ता में राहुल गांधी ने बाक़ायदा दस्तावेज़ दिखाए, दस्तावेज़ के भीतर दर्ज़ आँकड़ों का सार्वजनिक दर्शन कराया। उन्होंने इसका संपूर्ण डिजिटल प्रेजेंटेशन दिया। उनके पीछे लगी स्क्रीन पर एक एक कर अनेक दस्तावेज़ दिखाए गए, जो कथित रूप से आयोग ने उन्हें दिए थे।
 
इस स्क्रीन पर जो दस्तावेज़ दिखाए गए, उनमें अनेक ऐसे नाम दिखे, जो बिलकुल अवास्तविक से थे। नक़ली मतदाता, अमान्य पतों वाले मतदाता, सिंगल पते वाले मतदाता, अमान्य फ़ोटो वाले मतदाता, फ़ोर्म 6 का दुरुपयोग करने वाले मतदाताओं के खुलासे पीछे लगी स्क्रीन पर शांति से और स्पष्ट रूप से देखा जाए, वैसे किए।
अपनी प्रेस वार्ता में राहुल गांधी ने दावा किया कि,
·         एक निर्वाचन क्षेत्र महादेवपुरा सीट पर 1,00,250 वोटों की वोट चोरी हुई,

·         जिसमें एक विधानसभा क्षेत्र में 11,965 डुप्लिकेट मतदाता,

·         40,009 मतदाता फ़र्ज़ी और अमान्य पतों के साथ,

·         10,452 बल्क मतदाता या सिंगल पते वाले मतदाता,

·         4,132 अमान्य फ़ोटो वाले मतदाता और

·         33,692 मतदाता जो नए मतदाताओं के फॉर्म 6 का दुरुपयोग कर रहे थे,

का मामला सामने आया है।
राहुल गांधी ने गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए कहा कि,
·         महाराष्ट्र में हमने सार्वजनिक रूप से चुनाव आयोग को बताया था कि पाँच महीने में जितने नए वोटर जोड़े गए, वो पिछले पाँच सालों में जोड़े गए कुल वोटर्स से भी ज़्यादा थे, जिससे संदेह पैदा हुआ

·         नए वोटरों की संख्या तो महाराष्ट्र की आबादी से भी ज़्यादा हो गई, जो बेहद हैरान करने वाली बात थी

·         फिर पाँच साल बाद अचानक मतदान प्रतिशत में बड़ा उछाल आया

·         विधानसभा चुनावों में हमारा गठबंधन पूरी तरह से साफ़ हो गया, जबकि कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में यही गठबंधन जीत गया था, यह बहुत ही संदेहास्पद था

·         महाराष्ट्र में राज्य स्तर पर हमने देखा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच 1 करोड़ नए वोटर जुड़ गए थे, इसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी की गई

·         राज्य में 40 लाख फ़र्ज़ी वोटर का पता लगाया गया

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि,
·         कई वोटर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग बूथ की वोटर लिस्ट में शामिल हैं

·         एक वोटर बेंगलुरु की महादेवपुरा सीट, पूर्वी लखनऊ और मुंबई की पूर्वी जोगेश्वरी चुनावी क्षेत्र में वोटर के रूप में दर्ज़ है

·         हमारी शोध टीम ने 40 हज़ार से अधिक ऐसे फ़र्ज़ी वोटरों की पहचान की है जिनके पते ग़लत थे या ऐसे पते थे जिनका कोई वजूद नहीं था या फिर वे उन पतों पर नहीं मिले

·         एक-एक घर के पते पर 80 और 46 वोटर दर्ज़ थे, अकेले घरों में बड़ी संख्या में दर्ज़ किए वोटरों की संख्या 10 हज़ार से अधिक थी

·         नए वोटर बनने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फॉर्म 6 का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया, ऐसे 33,692 मामले पाए गए

 
राहुल गांधी ने आयोग से दो विवादों पर सवाल पूछे,
·         विपक्ष को डिजिटल वोटर लिस्ट क्यों नहीं मिल रही? क्या छुपा रहे हो?

·         सीसीटीवी और वीडियो सबूत मिटाए जा रहे हैं, क्यों? किसके कहने पर?

राहुल गांधी ने दावा किया कि ऐसे 40,009 मतदाता हैं जिनके पते में 0 लिखा है या फिर पता नहीं है। उन्होंने कहा कि अनेक मतदाता हैं जिनकी तस्वीरें नहीं हैं। उन्होंने इसे स्क्रीन पर भी दिखाया। दिखाए गए दस्तावेज़ में कुछ मतदाताओं के माता या पिता के नाम बिलकुल अवास्तविक रूप में लिखे हुए दिखाई दिए, जैसे कि ABCD, DFOJGAIDF, आदि।
 
राहुल गांधी ने इस प्रेस वार्ता में दस्तावेज़ दिखाते हुए दावा किया कि गुरकीरत सिंह डैंग नामक मतदाता को चार अलग अलग मतदाता केंद्रों की सूची में पाया गया। शकुन रानी की उम्र 70 साल है। उन्होंने दो बार फॉर्म 16 के ज़रिए वोट डाला। एक ही मकान पर 60-60 वोटरों के पते मतदाता सूची में दर्ज़ हैं। जब कांग्रेस की टीम ने उस पते पर जाकर जाँच की तो पता चला कि उन नामों का कोई वोटर नहीं रहता।

 
दावा किया गया कि इसी तरह कर्मशल बिल्डिंगों, दुकानों को पते के रूप में 50-50 नाम वाले मतदाताओं के दिए गए। लेकिन टीम को उनमें कहीं भी उन नामों के मतदाता नहीं मिले। 10,452 मतदाता एक ही पते पर रहते हुए पाए गए। गांधी ने आदित्य श्रीवास्तव नामक व्यक्ति का उदाहरण पेश कर दावा किया कि वो तीन राज्यों में मतदाता के रूप में पंजीकृत है।
 
राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव पर बोलते हुए दावा किया कि हरियाणा में 8 सीटों पर कुल 2 करोड़ मतदाताओं में हार जीत का अंतर महज 22,779 था। यहाँ एक विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख वोट चोरी हुए।
 
राहुल गांधी ने इसे पूरे देश का पैटर्न बताया और कहा कि आयोग हमें पूरा डेटा दे दें, हम मिनटों में साबित कर देंगे कि कईं सीटों पर इस तरह का अपराध किया गया है। सीसीटीवी फ़ुटेज के मामले में चुनाव आयोग के विवादित निर्णय को भी राहुल गांधी ने निशाने पर लिया और आरोप लगाया कि यही कारण था जिसके लिए आप फ़ुटेज नष्ट करना चाहते थे।
 
चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक डेटा दे तो साबित कर देंगे कि मोदी वोट चोरी कर पीएम बने हैं, नेता प्रतिपक्ष का दावा
अपनी प्रेस वार्ता के एक दिन बाद, 8 अगस्त को, बेंगलुरू में एक रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, "यदि चुनाव आयोग हमें इलेक्ट्रॉनिक डेटा दे दे तो हम साबित कर देंगे कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री वोट चोरी कर प्रधानमंत्री बने हैं।"
 
राहुल गांधी ने इस दिन कहा,
·         आज जब देश की जनता हमारे डेटा को लेकर सवाल पूछ रही है तो चुनाव आयोग ने वेबसाइट ही बंद कर दी

·         जहाँ भी नए वोटर आए, वहाँ बीजेपी ने जीत हासिल की, हमारे वोटों में कमी नहीं आई, लेकिन नए मतदाताओं का वोट बीजेपी के खाते में गया, उसी दिन हमें समझ आ गया कि दाल में कुछ काला है

·         हमने चुनाव आयोग से मदद माँगी, उनसे वोटर लिस्ट और सीसीटीवी फ़ुटेज माँगे, लेकिन उन्होंने हमारी कोई मदद नहीं की, फिर वीडियो देने का क़ानून ही बदल दिया

·         यदि चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक कॉपी दे दे तो हम साबित कर देंगे कि पूरे देश में ऐसी गड़बड़ी की गई है

·         नरेंद्र मोदी 25 सीटों के अंतर से प्रधानमंत्री बने हैं, ये सीटें वो 35 हज़ार या उससे कम वोटों से जीते हैं

·         लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ये सीटें कम हो जातीं तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते

·         चुनाव में क़रीब 100 सीटों पर ऐसी गड़बड़ियाँ की गईं

 
उन्होंने कहा कि कर्नाटक में हमने जो डेटा निकाला है वह अपराध का सबूत है। उन्होंने आगे कहा, "हमारी माँग है कि चुनाव आयोग हमें पूरे देश की इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट दे, चुनाव से जुड़े वीडियोग्राफी के रिकॉर्ड दे। अगर हमें ये मिल जाए तो हम साबित कर देंगे कि पूरे देश में सीटें चोरी की गई हैं।"
 
चुनाव आयोग ने जाँच के लिए राहुल गांधी से हस्तलिखित शपथपत्र और स्पष्टीकरण माँगा, अंत में चेतावनी वाला लहज़ा भी दिखाया
7 अगस्त को ही, कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राहुल गांधी को एक पत्र लिखा और उनसे हटाए गए मतदाताओं और अनधिकृत रूप से जोड़े गए मतदाताओं के नाम पर हस्ताक्षरित एफिडेविट माँगा और साथ ही उनके दावों पर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा।
 
आयोग ने राहुल गांधी को एक एफिडेविट भेजा, जिसमें नीचे हस्ताक्षर कर उसे वापस करने के लिए कहा, ताकि आवश्यक कार्यवाही शुरू की जा सके। इतना ही नहीं, आयोग ने उनसे उन मतदाताओं के नाम साझा करने के लिए कहा, जो राहुल गांधी के हिसाब से अनधिकृत थे या अनधनिकृत तरीक़े से हटाए गए थे।
 
कार्यवाही शुरू करने का आश्वासन देते हुए आयोग ने चेतावनी वाला लहज़ा भी दिखाया। आयोग ने कहा कि अगर राहुल गांधी समझते हैं कि जो वो कह रहे हैं वह सच है तो वो शपथ पत्र पर साइन कर शिकायत दें, अगर कोई ग़लत हुआ तो आपराधिक मुक़दमा चलेगा।
 

इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि मैं एक राजनेता हूँ, मैं जो लोगों से कहता हूँ वह मेरा वचन है, मैं सार्वजनिक रूप से सभी से कह रहा हूँ, इसे शपथ के रूप में ही लें, यह आपका डेटा है और हम आपका ही डेटा प्रदर्शित कर रहे हैं।
 
यूँ तो आयोग द्वारा ऐसा करना प्रथम नज़र में सही और सरल सा लगता है। लगता है कि राहुल गांधी अपनी कही गई बातों पर भरोसा नहीं करते और बचने की कोशिश कर रहे हैं। किंतु जब पिछले कुछ सालों से लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थानों को लेकर जिस तरह का माहौल बना है तब यह इतना सरल नहीं लगता।
 
देश की लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसा संवैधानिक पद धारण करने वाला व्यक्ति बाक़ायदा तमाम दस्तावेज़, आँकड़े और तथ्य के साथ कथित रूप से आयोग के द्वारा ही दी गई जानकारी की जाँच पड़ताल के बाद सार्वजनिक रूप से डिजिटल प्रेजेंटेशन कर प्रेस वार्ता में खुलासे करता है।
जिस संस्था के ऊपर देश के लोकतंत्र की आत्मा समान चुनाव को निष्पक्ष तरीक़े से कराने की ज़िम्मेदारी है, वह इस तरह के तार्किक, तथ्यात्मक, आँकड़ों से लबालब आरोपों के बाद भी शपथपत्र क्यों माँगती है? वे अब भी किस बात का स्पष्टीकरण चाहते हैं? ख़ास करके तब कि जब राहुल गांधी और दूसरे नेता ऐसे दूसरे मामले में आयोग के सामने शिकायत कर चुके हैं।
 
स्व. टी. एन. शेषन का एक बयान था। वे कह गए थे - मैं भारत का चुनाव आयुक्त हूँ, ना कि भारत सरकार का (अनुवाद)। चुनाव आयोग का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस प्रकार के संवेदनशील मामले की ख़ुद आगे आकर जाँच करे।
 
चुनाव धाँधली से संबंधित यह मामला पुराने मामलों की तरह नहीं है। ऐसा नहीं है कि किसी नेता ने ईवीएम हैकिंग, बूथ कैप्चरिंग पर किताब लिख दी हो या किसी नेता ने सदैव की तरह मौखिक आरोप लगा दिए हो। यह पहली बार है कि भारत के नेता प्रतिपक्ष ने चुनाव आयोग पर इस तरह के प्रेजेंटेशन, आँकड़े, दस्तावेज़, तथ्यों, के साथ आयोग के ही डेटा के आधार पर आरोप लगाए हो।

 
यहाँ जो चीज़ें कहीं गई वह चुनाव आयोग के ही डेटा के आधार पर कही गई। जो धाँधली, जो गड़बड़ी, पाई गई वह आयोग के डेटा की जाँच-पड़ताल के बाद ही पाई गई थी। कुछ दिनों बाद पता तो यह भी चलता है कि ऐसी शिकायत इससे पहले कुछ अन्य नेता कर चुके थे। यह भी पता चलता है कि विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के नेता अपने इंटरव्यू में कुछ इस तरह का दावा पहले कर चुके थे!
 
दरअसल, इस मामले में चुनाव आयोग को अपनी साख बचानी है। अपनी साख ही नहीं, उसे भारत के लोकतंत्र, उसकी आत्मा, के साथ साथ भारत की जनता के आयोग पर भरोसे की भी रक्षा करनी है। राहुल गांधी हो या नरेंद्र मोदी, नेता आते रहेंगे-जाते रहेंगे। कल यह नेता नहीं होंगे तब भी चुनाव आयोग तो होगा ही।
 
बेहतर होता कि चुनाव आयोग इस मामले की जाँच करने की तरफ़ आगे बढ़ता दिखाई देता। जाँच आगे पूरी करें या न करें, लेकिन वो इस मामले को बेहतर तरीक़े से हैंडल कर सकता था।
 
आयोग द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप में डेटा प्रदान नहीं करने के पीछे राहुल गांधी के आरोप
राहुल गांधी ने दावा किया कि उन्होंने अनेक सीटों की जानकारी चुनाव आयोग से माँगी थी, लेकिन आयोग ने उन्हें नहीं दी। गांधी के अनुसार लंबी मिन्नतों के बाद आयोग ने माँगी गई सीटों में से मात्र एक, महादेवपुरा सीट, की जानकारी दी।
 
यूँ तो आयोग के पास सीटों की जानकारी, मतदाताओं के पूरे नाम, एड्रेस, फ़ोटो, वगैरह इलेक्ट्रॉनिक रूप में, इलेक्ट्रॉनिक संस्करण में, होती है। उपरांत कोई भी उम्मीदवार या नेता प्रतिपक्ष जैसे संवैधानिक पद को भी वह जानकारी जब माँगी जाए तब प्रदान किए जाने की परंपरा है।
 
बावजूद इसके आयोग ने जानकारी देने में इतने देर क्यों लगाई, यह सवाल उठा। सवाल यह भी उठा कि माँगी गई तमाम जानकारी क्यों नहीं दी गई? लेकिन इससे बड़ा मसला था - आयोग द्वारा हार्ड कॉपी के रूप में लंबे चौड़े दस्तावेजों को देना।
 

सीधी सी बात है कि माँगी गई जानकारी इलेक्ट्रॉनिक संस्करण में दी जाती तो उसका आसानी से, तुरंत और और ज़्यादा विस्तृत विश्लेषण किया जा सकता था। जबकि तमाम जानकारी प्रिंट करके हार्ड कॉपी में दिए जाने से उसका विश्लेषण मुश्किल हो जाता।
 
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची को इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध न कराने पर संदेह जताया और कहा, "चुनाव आयोग जानबूझकर 'मशीन से पढ़े न जा सकने वाले दस्तावेज़' मुहैया करा रहा है ताकि राजनीतिक दल मतदाता डेटा की जाँच न कर सकें। इस काम में हमें छह महीने लगे। अगर चुनाव आयोग हमें इलेक्ट्रॉनिक डेटा देता, तो हमें 30 सेकंड लगते। हमें इस तरह का डेटा क्यों दिया जा रहा है? ताकि उसका विश्लेषण न हो... ये दस्तावेज़ ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन की सुविधा नहीं देते।"
 
उन्होंने कहा, "यह एक चुनौती थी। यह सात फ़ीट ऊँचाई वाले काग़ज़ का ढेर है। अगर मुझे यह पता लगाना है कि आपने दो बार मतदान किया है या आपका नाम मतदाता सूची में दो बार है, तो मुझे आपकी तस्वीर लेनी होगी और फिर कागज़ के हर टुकड़े से उसकी तुलना करनी होगी। यह बहुत थकाने वाली प्रक्रिया थी।"
 
राहुल गांधी ने कहा, "हमें आयोग दूसरी सीटों का इलेक्ट्रॉनिक डेटा दे तो हम मिनटों में पूरी धाँधली सामने ला देंगे।"
 
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी का कमज़ोर प्रदर्शन, तुरंत बाद हुए हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों का चौंकाने वाला नतीजा, क्या यह धाँधली थी या संयोग?
2024 के लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का प्रदर्शन अपने पूर्व लोकसभा चुनावों और ताज़ा अपेक्षा के सामने बहुत निराशाजनक और कमज़ोर रहा। इस आम चुनाव में बीजेपी ने अपना बहुमत गँवा दिया और वो महज़ 240 सीटों पर रुक गई।
 
बहुमत गँवाने से भी ज़्यादा बड़ी ख़बर थी बीजेपी का राज्य वार तथा अपनी वीआईपी सीटों पर बुरा प्रदर्शन। राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने इस चुनाव में बीजेपी को बहुत बड़े झटके दिए। बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार के 15 केंद्रीय मंत्री चुनाव हारे! कांग्रेस ने इस चुनाव में बीजेपी से 50 प्रतिशत वोट शेयर वाली 29 सीटें छीन लीं!
 
उत्तर प्रदेश इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे ख़राब नतीज़े लेकर आया। यहाँ बीजेपी 33 सीटें ही जीत सकी। राम की राजनीति के सहारे ज़मीन मजबूत करने वाली बीजेपी अयोध्या (फैज़ाबाद) से चुनाव हार गई! इतना ही नहीं, वाराणसी के आसपास की लगभग तमाम सीटें बीजेपी ने गँवा दी! नरेंद्र मोदी अपनी ख़ुद की सीट इस तरह जीते कि वे देश में 225वें क्रम पर चले गए!

 
हालाँकि, इसके तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनावों में नतीजा चौंकाने वाला आया। हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की।
 
राहुल गांधी ने दावा किया कि इन्हीं नतीजों ने विपक्ष के मन में 'गहरा संदेह' पैदा किया। बक़ौल गांधी, लोकतंत्र में हर पार्टी सत्ता विरोधी लहर का शिकार बनती है, तो फिर बीजेपी, जिसने लोकसभा चुनाव में बुरा प्रदर्शन किया था, जो राज्यों में उन दिनों सत्ता पर काबिज़ थी, जिसके हारने की आशंका तमाम चुनावी विशेषज्ञ, आंतरिक सर्वे और एग़्जिट पोल व्यक्त कर चुके थे, वह वहाँ इस तरह क्यों जीती, इस संशय ने चुनाव आयोग से डेटा माँगने पर विवश किया।
 
लोकसभा चुनावों में बीजेपी का कमज़ोर प्रदर्शन, तुरंत बाद हुए हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों का चौंकाने वाला नतीजा। इस तरह के विरोधाभासी परिणाम धाँधली था या महज़ संयोग? देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने इस संशय के आधार पर आगे जो भी प्राप्त कर अति गंभीर दावा किया है, वह स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे सनसनीखेज़ आरोप है।
 
विपक्ष के सनसनीखेज़ आरोपों के निपटारे के मामले में आयोग का ताज़ा इतिहास और उसका अड़ियल रवैया संदेह को स्कैम के रूप में जनता के एक हिस्से में स्थापित कर रहा है?
आयोग पिछले कुछ सालों से चुनावी तारीख़ों की घोषणाएँ और कार्रवाईयाँ, चुनाव के लंबे चरणों की अनसुलझी शैली, आचारसंहिता उल्लंघन मामलों में असमान रवैया, मतदान के आँकड़ों पर उठ चुके सवाल, इलेक्ट्रॉनिक ज़माने में वोटिंग के 10-12 दिनों के बाद मतदान प्रतिशत का सही आँकड़ा देश के सामने रखना, जैसे विवादों में उलझा हुआ है।
 
साथ ही, चुनाव आयुक्तों का चुनाव, सुप्रीम कोर्ट का आदेश, आदेश के ख़िलाफ़ जाकर आयुक्तों का विवादित चुनाव, एक चुनाव आयुक्त की आपत्ति को रिकॉर्ड से हटाना, उस आयुक्त का इस्तीफ़ा, वोटिंग बूथ के सीसीटीवी फ़ुटेज पर नया और विवादित फ़ैसला, जैसे ताज़ा विवाद।
 
उपरांत बिहार में और देश भर में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की ज़ल्दबाजी, पुनरीक्षण का समय, पुनरीक्षण के दौरान कहीं हज़ारों-लाखों मतदाताओं का अचानक बढ़ना, ठीक उसी समय कहीं मतदाताओं का कम होना, दस्तावेज़ संबंधी अदालती लड़ाई, आयोग का अड़ियल और बेतुका रवैया, तमाम प्रक्रियाओं के समय विपक्ष की माँगों और आपत्तियों को ढीठता से साथ नहीं देखने का अंदाज़। केंद्रीय चुनाव आयोग से संबंधित तमाम हालिया विवाद इस मामले में अपनी भूमिका नकारात्मक ढंग से निभा रहे हैं।
 
लोग कह रहे हैं कि आयोग और सरकार के ख़िलाफ़ जो आरोप लगे हैं उनमें कुछ तो होगा, वर्ना आयोग बिना देर किए आरोप लगाने वाले पर कार्रवाई शुरू कर चुका होता। लोग चर्चा करते नज़र आते हैं कि यूँ ही वह शख़्स इतना बड़ा आरोप नहीं लगाता, कुछ तो होगा, वर्ना एक टुच्चे मामले तक में उसकी सांसदी और घर छीन लिए गए थे।
 
इस अतिगंभीर स्थिति का 'निष्पक्ष निपटारा' केवल चुनाव आयोग ही कर सकता है। किंतु आयोग का अड़ियल रवैया, हास्यास्पद तर्क, जाँच से दूर भागने की चेष्टा, विपक्ष या निष्पक्ष समुदायों की संवेदनशील शिकायतों पर ढीढता से पैश आना, यह चीज़ें निपटारे से दूर जाती दिख रही हैं।
 
आयोग द्वारा विपक्ष की ओर से माँगी गई जानकारी नहीं देना, तमाम सीटों की जानकारी नहीं देना, एकाध सीट की देर से जानकारी देना, इलेक्ट्रॉनिक डेटा नहीं देकर मशीन से पढ़े न जा सकने वाले दस्तावेज़ देना, आरोपों के सामने बेहद कमज़ोर तर्कों के साथ बचाव की मुद्रा में आना, जाँच करने की जगह दूसरी बेतुकी बातें करना। आयोग के तर्क, बयान, कार्यशैली, इस संशय को स्कैम के रूप में जनता के कुछ हिस्से के दिमाग़ में स्थापित किए जा रहे हैं।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)