"बीजेपी और मोदी सरकार ने चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट चोरी की है, चुनाव चुराए हैं"
- भारत के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा 7 अगस्त 2025 के दिन बाक़ायदा तमाम
तथ्यों, डाटा और कथित सबूतों के साथ की गई उस ऐतिहासिक प्रेस वार्ता से पहले भी और उस
प्रेस वार्ता के बाद भी भारत के चुनाव आयोग का रवैया, जवाब और तर्क, सभी चीज़ें वोट चोरी
के मुद्दे को नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस तक को लोकतंत्र के अपराधियों की 'सामाजिक श्रेणी' में स्थान प्रदान
किए जा रही हैं।
राहुल गांधी उस दिन जो कह रहे थे, जितना भी कह रहे थे, उसके लिए उनके पास दस्तावेज़ थे और उनके दावे की माने तो वह दस्तावेज़ उन्हें
चुनाव आयोग ने लंबी मिन्नतों के बाद प्रदान किए थे। वोट चोरी का यह मुद्दा स्वतंत्र
भारत के सबसे बड़े स्कैम की भाँति लगता है। किंतु यह भी स्पष्ट है कि इस कथित स्कैम
के आरोप झेलने वाली मोदी सरकार और आयोग, तथा आरोप लगाने वाला विपक्ष और राहुल गांधी, दोनों में से कोई
भी तकनीकी रूप से अपनी बातें ठोस और क़ानूनी तरीक़े से साबित नहीं कर सकते।
यूँ तो पिछले कईं दशकों का इतिहास बताता है कि स्कैम के आरोप साबित नहीं किए जा
सके। और इसीलिए तमाम पिछले उदाहरणों की तरह यह अभूतपूर्व विवाद भी संसद में नही बल्कि
सड़क पर, जनता के बीच, देखा-समझा जा रहा है। और इसमें चुनाव आयोग में पिछले कुछ सालों का माहौल, उसकी बीते कुछ समय
की आपत्तिजनक और चौंकाने वाली कार्यशैली, रवैया, यह सब स्वयं उसे ही नहीं बल्कि पीएम मोदी, बीजेपी और आरएसएस
को भी दाग़दार कर रही हैं।
'वोट चोर गद्दी छोड़', 'चौकीदार चोर है', 'चुनाव चोर', आदि आदि। इतिहास के सबसे गंभीर आरोप झेलने वाली नरेंद्र मोदी की सरकार और भारत
का चुनाव आयोग, दोनों इसलिए आसानी से कटघरे में किए जा सके हैं, क्योंकि दोनों ने
पिछले कुछ समय में इस तरह का माहौल और मौक़े देश को प्रदान किए थे।
अलग अलग राज्यों के
विधानसभा चुनाव और पिछला लोकसभा चुनाव। तमाम समय चुनावी तारीख़ों की घोषणाएँ, घोषणाओं से पहले चुनाव
संबंधी कार्रवाईयाँ, घोषणा के समय भारी विवाद, उसके बाद चुनाव के लंबे लंबे चरणों की अनसुलझी कार्यशैली, सत्ताधारी दल और स्वयं
पीएम मोदी के द्वारा आचार संहिता का लगातार किया गया कथित उल्लंघन, आचार संहिता के उल्लंघन
के मामलों में आयोग का भेदभावपूर्ण रवैया।
मतदान के आँकड़ों पर
उठे हुए सवाल, डिजिटल ज़माने में वोटिंग के 10-12 दिनों के बाद मतदान प्रतिशत का सही आँकड़ा देश के सामने रखना, चुनाव आयोग और चुनाव
आयुक्तों के चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अदालती आदेश के ख़िलाफ़ जाकर उसकी काट निकालने वाली मोदी सरकार, विवादित चुनाव आयुक्तों
का चुनाव, पैनल के एक चुनाव आयुक्त की आपत्तियों को रिकॉर्ड से निकालने का फ़ैसला और फिर
उस आयुक्त का नाराज़गी के साथ इस्तीफ़ा।
मतदाता सूची के शुद्धिकरण
की ज़ल्दबाजी, शुद्धिकरण का समय, शुद्धिकरण के दौरान कहीं हज़ारों-लाखों मतदाताओं का अचानक बढ़ना, ठीक उसी समय कहीं
मतदाताओं का कम होना, दस्तावेज़ संबंधी अदालती लड़ाई, आयोग का अड़ियल और बेतुका रवैया और अदालती आदेश, तमाम प्रक्रियाओं
के समय विपक्ष की माँगों और आपत्तियों को ढीठता से साथ नहीं देखने का अंदाज़।
और अंत में 17 अगस्त 2025 के दिन ऐतिहासिक स्कैम
के आरोप के सामने चुनाव आयोग की वो हास्यास्पद प्रेस वार्ता। चुनाव आयोग की वह प्रेस
वार्ता ऐसी थी, जिसे देख लगा कि किसी गली-मोहल्ले के व्हाट्सग्रुप वाले नुक्कड़ पर बैठ कर बेतुकी
बातें कर रहे हो!
विश्व के सबसे बड़े
लोकतंत्र का चुनाव आयोग, जिसका एक ज़माने में दुनिया में उदाहरण दिया जाता था, वह व्हाट्सएप विश्वविद्यालय
की भाँति बिलकुल बेतुकी, फूहड़ और पहली नज़र में ही चुनौती के लायक बातें करता है।
'जब बुरा समय चल रहा होता है तो उँट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है' - चुनाव आयोग का रवैया
मोदीजी, बीजेपी और आरएसएस को इसी तरह नुक़सान पहुँचा रहा है। जिस प्रकार के इल्ज़ाम लगाए
गए हैं, सवाल उठता है कि क्या यह रवैया आयोग का नहीं किंतु मोदीजी, बीजेपी या आरएसएस का
ही है?
बिहार के विवादास्पद
एसआईआर ने अब वो मोड़ ले लिया है, जहाँ बीजेपी और आरएसएस के ऊपर भारत के लोकतंत्र, संसदीय परंपराएँ और
संविधान को भारी नुक़सान पहुँचाने का दाग़ चिपकने लगा है।
शायद बीजेपी और आरएसएस
के प्रमुख चुनावी रणनीतिकारों और चुनाव आयोग के लोग, जिन्होंने कथित रूप से मिलजुल कर बिहार विधानसभा चुनाव से महज़
तीन महीने पहले पूरे राज्य में मतदाता शुद्धिकरण की योजना बनाई थी, जिसमें अपनी मर्ज़ी
की एक वोटर लीस्ट बनाई जाए, जिसमें अपने हिसाब से वोट काटे और अपने हिसाब से वोट जोड़े, ये सब मिलकर अकेले
में अपना सिर पीट रहे होंगे। सब नहीं किंतु कुछेक यक़ीनन सोच रहे होंगे कि पता नहीं
वो कौन सा ख़राब समय था, जब हमने इसका निर्णय लिया था।
यही लोग किसी समय तीन
कृषि क़ानून, नोटबंदी, जीएसटी, जातीय जनगणना, इत्यादि मामलों में अड़ियल रवैये के साथ इतना अंदर ऊतर गए थे कि इन्हें इन सबसे
बाहर आना था, लेकिन बाहर आने में महीनों या सालों लग गए। लेकिन तब तक बँटाधार हो चुका था। यहाँ
भी स्थिति वही बनती नज़र आ रही है।
मोदी
सरकार के दिग्गज़ मंत्री और आरएसएस के ख़ास नितिन गडकरी ने कहा था - मेरे 3.5 लाख वोट काटे गए
नितिन गडकरी कोई छोटा
नाम नहीं है और ना ही वे कांग्रेस, टीएमसी, सपा या किसी दूसरे विपक्षी दल से आते हैं। वे बीजेपी के दिग्गज़ नेता हैं। मोदी
सरकार में सड़क और परिवहन मंत्री हैं। बहुत पुराने नेता हैं। वाजपेयी और आडवाणी काल
के नेता। उपरांत मोदी और बीजेपी की मातृ-पितृ संस्था आरएसएस के बहुत ख़ास और नज़दीक़
माने जाने वाली शख़्सियत हैं। जो कभी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व भी संभ्हाल
चुके हैं।
नितिन गडकरी की वरिष्ठ
पत्रकार-लेखक राजदीप सरदेसाई के साथ एक बात रिकॉर्ड में हैं और सार्वजनिक भी। चलती
हुई कार में राजदीप सरदेसाई के साथ नितिन गडकरी की वो छोटी बातचीत पब्लिक डोमेन में
है।
इस बातचीत में नितिन गडकरी बिलकुल साफ़ आवाज़ में कहते हैं, "अब मेरा ध्यान आया है, अब
मुझे पता चला है कि मेरे निर्वाचन क्षेत्र में तो साढ़े तीन लाख वोट, मेरे वोट, काट दिए गए।" राजदीप
चौंकते हुए पूछते हैं, "अच्छा! आपके साढ़े तीन लाख वोट काट दिए गए? ये तो आपके ख़िलाफ़ साज़िश लग रही है। आपकी वोटर लीस्ट में
से साढ़े तीन लाख वोट कम कर दिए गए?" गडकरी
कहते हैं, "हाँ! साढ़े तीन लाट वोट काट दिए गए, जो मेरे वोटर थे। मेरे भाँजे का वोट भी काट दिया गया। मेरे
परिजनों के वोट भी काट दिए गए।"
मौजूदा स्थिति में
इसका क्या मतलब निकाला जाए? गडकरी साज़िश के सवाल का जवाब देते नज़र नहीं आते, किंतु टालते भी नज़र
नहीं आते। वे यह कहते नज़र नहीं आते कि नहीं यह साज़िश नहीं हो सकती। साज़िश न सही, किंतु देश का इतना
दिग्गज़ नेता जो कहता है, गड़बड़ी, ग़लती, इस प्रकार के तत्व भी तो शामिल हो सकते हैं।
गडकरीजी ने तो कहा
था - मैं किसी का नाम नहीं लूँगा। लेकिन मेरे वोट काट दिए गए। मेरा भाँजा था, मेरे परिजन थे, इनके वोट तक काटे
गए।
किंतु चुनाव आयोग किसी
भी बात का ठीक से जवाब सालों से दे कहाँ रहा है? हालाँकि गडकरीजी से आयोग ने कभी कोई हलफ़नामा नहीं माँगा, ना कभी कहा कि गडकरी
लोकतंत्र को बदनाम कर रहे हैं।
मध्य
प्रदेश के रीवा संसदीय क्षेत्र के बीजेपी सांसद ने दावा किया था - मेरे निर्वाचन क्षेत्र
में एक कमरे के अंदर 1,000-1,100 मतदाता
पंजीकृत थे
मध्य प्रदेश के रीवा
संसदीय क्षेत्र के लिए यह दावा करने वाले सांसद का नाम है जनार्दन मिश्रा। बीजेपी से
एमपी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इन्होंने यहाँ से कांगेस की नीलम अभय मिश्रा को 1,93,374 मतों से हराया था।
वे लगातार तीसरी बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। वह कृषि संबंधी स्थायी समिति के सदस्य
भी रह चुके हैं।
इन्होंने बाक़ायदा, खड़े
होकर, माइक के ज़रिए कहा था, "मेरे निर्वाचन क्षेत्र में तो एक कमरे के अंदर 1,000 से 1,100 वोट
रजिस्टर्ड हैं।" एक कमरे के मकान के पते पर 1,000-1,100 मतदाता! इस वीडियो को सोशल मीडिया में बहुत बार देखा जा चुका है।
बता दें कि मिश्राजी
अपनी यह बात विपक्ष के वोट चोरी और चुनाव चोरी के आरोपों को नकारने के लिए कहते हैं! वे मऊगंज जिले में कार्यकर्ता के एक कार्यक्रम में कांग्रेस पर निशाना साधने हेतु
यह दावा करते हैं। कहते हैं कि उस दौर में कांग्रेस की सरकार थी और बीजेपी ने फ़र्ज़ी
वोटरों का पर्दाफ़ाश करते हुए जमकर आंदोलन किया था।
मिश्रा कहते हैं कि
वोटर लीस्ट धांधली में रीवा सबसे बड़ा उदाहरण है। वे दावा करते हैं कि वोट चोरी की
इस धांधली को ख़ुद उनकी टीम ने पकड़ा था। मिश्राजी जो कहते हैं उसका अर्थ यही निकलता
है कि आयोग पुराना वोट चोर है!
ये बीजेपी के व्यक्ति
हैं। बीजेपी से सांसद हैं। और इनका कथन है कि एक कमरे वाले मकान में चुनाव आयोग को
1 हज़ार से ग्याहर सौ
मतदाता दिखते हैं। आयोग ने इनसे भी हलफ़नामा नहीं माँगा है, और ना ही इन्हें लोकतंत्र
को बदनाम करने वाला साज़िशकर्ता कहा है।
भाजपा
ने राहुल, प्रियंका
और स्टालिन समेत 6 वीआईपी
सीटों पर चुनाव में फ़र्ज़ी मतदान का आरोप लगाया, बीजेपी
नेता अनुराग ठाकुर इलेक्ट्रॉनिक डाटा लेकर कूदे, आयोग
और सत्ता की मिलीभगत का सबूत अनजाने में दे गए ठाकुर?
भारत के नेता प्रतिपक्ष
ने महीनों तक आयोग से डाटा माँगा। उन्हें नहीं मिला! मजबूरी में सिर्फ़ एक विधानसभा सीट का डाटा आयोग ने राहुल गांधी को दिया। वह डाटा
भी इलेक्ट्रॉनिक संस्करण नहीं था, बल्कि काग़ज़ी था! जिसका विश्लेषण करने
में 6 महीने लग गए।
और इधर चंद घंटों में
सत्ता पक्ष के नेता और सांसद अनुराग ठाकुर को छह-छह वीआईपी निर्वाचन क्षेत्र का डाटा
बैठे बिठाए मिल गया! अनुराग ठाकुर ने छह
लोकसभा सीटों पर मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया था।
जो राहुल गांधी आरोप
लगा रहे थे, वही बात जाने-अनजाने में अनुराग ठाकुर ने दोहरा दी! यही तो राहुल गांधी और दूसरे नेता कब से कह रहे थे। जब विपक्ष कहता है कि गड़बड़ी
है, तो आयोग गुस्से में
दिखता है। सत्ता दल वाले आयोग के ही आँकड़ों से बतला रहे हैं कि गड़बड़ी है, लेकिन आयोग कहीं ग़ायब
हो जाता है!
अनुराग ठाकुर ने 6 लोकसभा
सीटों का इलेक्ट्रॉनिक डाटा सामने रखा और उन सीटों पर फ़र्ज़ी मतदान का दावा किया।
13 अगस्त, 2025 को ठाकुर ने रायबरेली, कन्नौज, वायनाड और डायमंड हार्बर सहित
उन निर्वाचन क्षेत्रों की सूची दी थी, जहाँ उनके दावे के अनुसार
बड़ी संख्या में फ़र्ज़ी मतदाता मौजूद थे। इन्होंने आरोप लगाया कि, "राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अभिषेक बनर्जी, एम के स्टालिन, अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने वोट चोरी के साथ चुनावों में
जीत हासिल की थी। और इस धांधली के लिए उन्हें इस्तीफ़ा देना चाहिए।"
सवाल तुरंत उठा कि
अनुराग ठाकुर को महज़ 6 दिनों में 6 लोकसभा सीटों का इलेक्ट्रॉनिक डाटा कैसे मिल गया? जहाँ नेता प्रतिपक्ष
जैसे संवैधानिक और महत्वपूर्ण पद धारण करने वाले व्यक्ति को आयोग ने अब तक कोई डिजिटल
डाटा नहीं दिया है, ऐसे में बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर को छह लोकसभा सीटों के इलेक्ट्रॉनिक आँकड़े
कैसे मिल गए?
स्वाभाविक रूप से पूछा
जाने लगा कि जब चुनाव आयोग के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट है, तो वो विपक्षी दलों
को क्यों नहीं मिलती? इससे साफ़ यह होता है कि चुनाव आयोग के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट है, लेकिन वे जनता और
विपक्ष को देना नहीं चाहते। आख़िर क्यों?
चुनाव आयोग ने अब तक
ठाकुर से न कोई शपथपत्र माँगा है, न उनके डाटा को निराधार बताया है, और ना ही इस संबंध में आयोग से जो जायज़ सवाल पूछे गए उसका जवाब दिया है।
चुनाव
आयोग ने कहा - सपा या अखिलेश ने हमें कोई हलफ़नामा नहीं दिया, चंद घंटो में 18 हज़ार हलफ़नामों का सबूत पेश कर अखिलेश ने कहा
- आयोग झूठ बोल रहा है, ये
रहा सबूत
आयोग मामले को सही
तरीक़े से हैंडल करने में पूरी तरह नाकाम तो साबित हुआ ही है, साथ ही नकारेपन पर
उतारू है। आयोग का रवैया ऐसा है कि जहाँ राहुल गांधी 'वोट चोरी' शब्द का इस्तेमाल
कर रहे थे, अखिलेश यादव ने 'वोट की डकैती' कहा है।
17 अगस्त के दिन प्रेस वार्ता में चुनाव आयोग ने देश को यह जानकारी दी थी कि सपा
या अखिलेश यादव ने एक भी हलफ़नामा वोट चोरी या कथित अनियमितताओं को लेकर अब तक नहीं
दिया है। एक तरह से उन्होंने सपा और अखिलेश को अप्रत्यक्ष रूप से झूठा कहा।
यह मामला साल 2022 का था। तब यूपी चुनाव
के समय जब अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी के वोट काटे गए हैं, तब चुनाव आयोग ने
नोटिस देकर कहा कि आप एफिडेविट के माध्यम से बताइए। 17 अगस्त 2025 के दिन आयोग ने दावा
किया कि उन्हें इस मामले में एक भी एफिडेविट नहीं मिला है।
चंद घंटे ही हुए थे
आयोग के इस दावे के, अखिलेश यादव बाक़ायदा तमाम दस्तावेज़ों के साथ देश के सामने आए और कहा कि हमने
18 हज़ार हलफ़नामे आयोग
को दिए हैं और यह इसके सबूत हैं। उन्होंने तथ्य और तमाम दस्तावेज़ देश के सामने रख
दिए।
अखिलेश ने बताया, "हमने 18 हज़ार
हलफ़नामे दिए। हमने बीएलओ बदलने की भी शिकायत की। एक बिरादरी के लोगों को तैनात करने
की भी शिकायत की। ना हलफ़नामे के बदले में कोई जाँच हुई। ना बीएलओ के सवाल की जाँच
हुई, ना एक बिरादरी के लोगों की तैनाती के सवाल पर जाँच हुई।"
इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने एक्स
पर लिख यह भी बताया कि उनके पास इन हलफ़नामों की प्राप्ति की पावती है, जो आयोग के कार्यालय
द्वारा जारी की गई है। अखिलेश यादव ने मामले को 'वोट की डकैती' बताते हुए डाक विभाग की डिजिटल रसीदों की तस्वीरें साझा करते हुए माँग की कि आयोग
शपथपत्र दे कि ये रसीदें सही हैं नहीं?
बदले में चुनाव आयोग
ने मौन धारण कर लिया। ना अखिलेश द्वारा किए गए दावों का खंडन किया। देश को झूठी जानकारी
देने पर ना माफ़ी माँगी, ना खेद प्रकट किया।
मुख्य
चुनाव आयुक्त ज्ञानेश गुप्ता किसी पार्टी की बात नहीं सुन रहे, स्टालिन ने भी एक्सपोज़ किया
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़
राहुल गांधी ने ही इस तरह की बात की हो। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने सबसे
पहले दोहरे वोटर या दोहरे एपिक का मुद्दा उठाया था। नितिन गडकरी, जनार्दन मिश्रा, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, एम के स्टालिन। दरअसल, राहुल गांधी ने तो
इस धांधली को तथ्यों और दस्तावेज़ों के साथ शुद्धिकरण करके ठोस तरीक़े से पेश किया
है।
डीएमके ने एक महीना
पहले मृत वोटरों का मामला उठाया था लेकिन ज्ञानेश गुप्ता ने चुप्पी साध ली। डीएमके
ने विशेष रूप से मृत मतदाताओं के नाम हटाने में देरी और मतदाता सूची के संशोधन प्रक्रिया
में पारदर्शिता की कमी को लेकर शिकायत की थी।
स्टालिन बताते हैं, "डीएमके ने 17 जुलाई
2025 को चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि 1 मई 2025 की
अधिसूचना के अनुसार मृतक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जाएँ। हालाँकि, एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई
नहीं हुई। यह कब होगा? क्या मृतकों के नामों को हटाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि
इसे लागू करने में इतना समय लग रहा है?"
स्टालिन बताते हैं
कि डीएमके के सांसदों ने नई दिल्ली में निर्वाचन सदन में चुनाव अधिकारियों के साथ बैठक
की थी। इस बैठक में मृतकों के नाम हटाने के साथ-साथ आधार कार्ड और राशन कार्ड को जन्म
तिथि और निवास स्थान के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने की माँग की गई थी तथा इस प्रक्रिया
में पारदर्शिता और तेज़ी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया था।
ताज़ा विवाद पर स्टालिन
कहते हैं - जब घर-घर सत्यापन किया गया था, तब इतनी बड़ी संख्या में पात्र मतदाताओं के नाम कैसे हटाए गए? उन्होंने सवाल किया
कि नए मतदाताओं का नामांकन असामान्य रूप से कम क्यों है?
स्वतंत्र
भारत के सबसे संगीन इल्ज़ाम, चुनाव
आयोग के बेतुके और फूहड़ जवाब, मोदी
सत्ता की बदनामी
'वोट चोरी' और 'चुनाव चोरी' के यह जो आरोप हैं, वह कदाचित स्वतंत्र भारत के सबसे गंभीर आरोप हैं। इस बीच चुनाव
आयोग ने जिस तरीक़े की कार्यशैली पिछले कुछ समय से धारण की हुई है, उस शैली को वह धीरे धीरे बेतुकी, फूहड़ और गली-मोहल्ले के व्हाट्सएप ग्रुप सरीखी करके और नीचे
की तरफ़ ले जा रहा है।
आयोग ने पिछले कुछ
समय के दौरान अनेक विधानसभा चुनावों के समय, 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान और उसके बाद, उससे पहले भी और आज भी, इस तरह का रवैया अपनाया है कि चुनाव आयोग 'किसी का चुना हुआ आयोग' बनकर उभरा है।
लोकसभा चुनाव में तत्कालीन
पीएम मोदी आचार संहिता का एक से अधिक बार उल्लंघन करते हैं तब जाकर आयोग हरक़त में
आता है। हरक़त में भी कुछ इस तरह आता है कि आयोग 'चुना हुआ' दिखता है। कथित उल्लंघत करते हैं पीएम मोदी, जबकि आयोग बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को नोटिस देते हैं!
• डिजिटल ज़माने में यही आयोग मतदान के 10-12 दिनों के बाद किसी सीट या किसी चरण का अंतिम मतदान आँकड़ा देता है! इतनी देरी क्यों? इसका ठोस जवाब वह नहीं देता। कहीं वोटर लीस्ट
में हज़ारों-लाखों वोट कट जाते हैं, कहीं बढ़ जाते हैं, आयोग किसी भी मुद्दे पर कोई समाधान देना ज़रूरी नहीं समझता।
• विपक्ष मतदाता सूची माँगता है तो यह आयोग वो भी नहीं देता! अंतिम समय में मजबूरी में देनी पड़ती है तब भी डिजिटल कॉपी नहीं देता! विपक्ष माँगता है तो नहीं देता, बहाने बनाता है, किंतु सत्ता से जुड़े मंत्री अनुराग ठाकुर को छह-छह लोकसभा सीटों
की, वीआईपी सीटों की, डिजिटिल कॉपी मिल जाती है! आयोग उनसे नहीं कहता कि आपकी कॉपी झूठी है, या उनसे शपथपत्र भी नहीं माँगता!
• मतदाता शुद्धिकरण जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया की टाइमिंग और ज़ल्दबाजी पर आयोग आरोप
झेल रहा है। एक मतदाता के नाम कई जगह पाए जाने को भी यह कहकर आयोग कैसे जायज़ ठहरा
देता है कि लोग इधर से उधर आते-जाते रहते हैं इसलिए कई जगह नाम हो सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वह हर जगह वोट दे रहा है!
• आख़िर आयोग ने अपना नियम क्यों तोड़ा कि चुनाव के वर्ष में मतदाता सूची का पुनरीक्षण
नहीं किया जाएगा। इस सवाल का जवाब भी नहीं दिया गया कि आख़िर इतनी अफ़रा तफ़री में
चुनाव के ठीक पहले बाढ़ के बीच क्यों यह काम किया जा रहा है?
• सीसीटीवी फूटेज नहीं देने के मामले में आयोग ने ऐसा जवाब किस आधार पर दिया था कि
पूरे फूटेज जाँचने में किसी को 273 साल लगेंगे! जबकि आज के ज़माने में 273 साल का डाटा जाँचने
में 273 धंटे भी नहीं लगते।
• मतदान केंद्रों के सीसीटीवी ब्यौरे की माँग पर बेतुका जवाब देते हुए कहता है कि
माताओं, बहनों, बेटियों की तस्वीरें लोग देख लेंगे और वे बेपर्दा हो जाएँगी। हम अपनी माँओं, बहनों और बेटियों की निजता का हनन नहीं होने देंगे।
• मतदाता के माता-पिता के ऐसे असामान्य नाम कैसे? एक-एक कमरे के घरों में सैकड़ों मतदाता कैसे? अलग अलग सरनेम या अलग अलग जाति के लोगों का पता एक ही कैसे हो सकता है? मतदाताओं की तस्वीरों में ऐसी गंभीर गड़बड़ियाँ क्यों हैं? एक से अधिक मतदाता पहचान पत्र संख्या कैसे हो सकती है?
• बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में 2,92,048 मतदाताओं का मकान नंबर '0', '00' या '000' दर्ज है! माता-पिता के विचित्र नामों की धांधली के बाद मकान संख्या में भी ऐसी धांधली! ऐसा कैसे हो गया?
• बिहार के 65 लाख मतदाताओं के नाम आख़िर क्यों काटे गए, वे इसका कारण एक सर्चेबल फॉर्मेट में क्यों
नहीं दे रहे थे? इसके लिए देश की सर्वोच्च अदालत को आदेश क्यों
देना पड़ा? आयोग पूरी सूची को इस शक्ल में जारी नहीं
कर रहा था कि लोग मशीन से उसकी छानबीन कर सकें। मशीन से सूची की जाँच करने में निजता
का उल्लंघन कैसे होता है?
• आख़िर आयोग क्यों हटाए गए मतदाता नागरिकों की सूची उन्हीं साधारण नागरिकों को ही
नहीं दे रहा था? मतदाता सूची का ब्यौरा मतदाताओं को सीधे सीधे
क्यों नहीं मिल सकता?
• मतदाता के पास अपनी पहचान प्रमाणित करने के लिए जो काग़ज़ है, यानी आधार कार्ड, उसे आयोग क्यों नहीं स्वीकार कर रहा था?
• आख़िर यह कैसा पुनरीक्षण है कि एक भी नया नाम जुड़ा नहीं, नाम सिर्फ़ काटे जा रहे हैं? ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी पुनरीक्षण में हज़ारों-लाखों मतदाता मर जाते हैं, किंतु एक भी मतदाता 18 साल की आयु पार नहीं करता?
• जिन्हें आयोग ने मृत घोषित कर दिया था वे लोग सर्वोच्च अदालत में सशरीर पहुँचते
हैं! ऐसे कथित मृत लोगों के साथ राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेता
चाय नास्ता करते हुए दिखते हैं। आयोग ऐसे स्पष्ट सबूतों को ड्रामा किस आधार पर कहता
है?
• वोट चोरी का कथित स्कैम बाहर आने के तुरंत बाद चुनाव आयोग ने बिहार में डिजिटल
ड्राफ्ट मतदाता सूची को हटा लिया! इसने इसकी जगह पर
स्कैन की हुई मतदाता सूची अपलोड कर दी! क्या आयोग यह चाहता है कि पड़ताल करना नामुमकिन कर दिया जाए?
सीधा सवाल उठता है
कि चुनाव आयोग द्वारा यह सब किया जा रहा है, यह क्या है? विपक्ष दस्तावेज़, तथ्य और आँकड़े के साथ है, बदले में आप फूहड़ और बेतुकी बातें क्यों कर रहे हैं? चुनाव आयोग क्यों हवाबाजी कर रहा है? क्यों उसके अधिकारी पूरी संस्था को बार बार ग़लत साबित करने
पर तुले हुए हैं?
बीजेपी के ही गडकरी या मिश्रा के चौंकाने वाले दावे। संशय स्वाभाविक है
कि वोट चोरी या चुनाव चोरी का यह कथित गोरख घंधा अचानक से नहीं हुआ होगा, ना ही अभी से हुआ होगा। शायद 2024 से पहले भी हुआ होगा।
वोट काटने, वोट बढ़ाने, नये वोट जोड़ने का संदिग्ध चक्र लोगों के दिमाग़ में सवाल पैदा
कर रहा है कि न जाने कब से और किस हद तक चल रहा होगा।
बात बिहार से निकल कर देश में पहुँचते हुए अब अंतरराष्ट्रीय ख़बरों में छायी हुई
है। ऊपर से चुनाव आयोग के बेतुके और फूहड़ जवाब विवाद को ज़्यादा हवा दे रहे हैं। इलेक्टोरल
बॉन्ड, जिसे 'वसूली और भ्रष्टाचार
की उस्तादी योजना' माना गया था, उस समय का वह बेतुकापन फिर एक बार दोहराया जा रहा है!
इलेक्टोरल बॉन्ड - बैंकों के सारे काम डिजिटल हो रहे हैं, बस इलेक्टोरल बॉन्ड का महाकाव्य एसबीआई ने ताम्रपत्र पर लिख
रखा था! वोटर लीस्ट - चाय
का पेमेंट केतली वाले को डिजिटली हो रहा है, बस देश के चुनाव आयोग ने डाटा पत्थरों पर अज्ञात लिपि में लिखा था!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)